51. प्रसिद्धि और लाभ की होड़ से मिला कष्ट
नवंबर 2015 में अगुआ ने मुझे कलीसिया में सामान्य मामलों के काम की जिम्मेदारी सौंपी। मैं सामान्य मामलों के कर्मियों के किसी भी मुद्दे को सुलझाने में सक्रियता से मदद करती थी और हर कोई मुझे अच्छा मानता था, जिससे मुझे कलीसिया की एक अपरिहार्य सदस्य होने जैसा लगता था। अक्टूबर 2017 में मुझे और बहन तियान यू को सामान्य मामलों के काम की देखरेख में सहयोग करने में लगाया गया। शुरू में हमने काफी अच्छा सहयोग किया। उसने मेरे जीवन प्रवेश में मेरी मदद की और मैं उसके साथ सहयोग करके काफी खुश थी। लेकिन कुछ समय बाद मैंने पाया कि तियान यू खूब काबिल और हाजिर-जवाब है और सत्य पर संगति करने और समस्याएँ सुलझाने में मुझसे बेहतर है। एक बार एक सभा के दौरान एक बहन ने अपने काम में कुछ कठिनाइयों का उल्लेख किया। मैं अभी तक समस्या समझ नहीं पाई थी, लेकिन तियान यू ने बहन के साथ संगति करने के लिए अपने अनुभवों का सहारा लिया और परमेश्वर के वचनों के कुछ प्रासंगिक अंश भी पढ़े। संगति करने के बाद बहन ने अपनी सहमति दिखाने के लिए बार-बार सिर हिलाया। तर्कसंगत रूप से कहें तो यह अच्छी बात थी कि बहन की समस्या हल हो गई, लेकिन मुझे इससे खुशी नहीं मिली। मैंने मन ही मन सोचा, “तियान यू में अच्छी काबिलियत है और वह हमेशा समस्याएँ सुलझाने के लिए संगति प्रदान कर सकती है तो भाई-बहन उसकी तुलना में मुझे कैसे देखेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मेरी काबिलियत तियान यू जितनी अच्छी नहीं है? मैं भविष्य में भाई-बहनों के साथ सभाओं में कैसे शामिल हो पाऊँगी?” बाद में मैंने यह भी देखा कि तियान यू को कंप्यूटर कौशल की कुछ समझ थी और जब भाई-बहनों को अपने कंप्यूटर या वीडियो प्लेयर में कोई समस्या होती थी तो वे हमेशा तियान यू के पास जाते थे। मैंने देखा कि तियान यू हर तरह से मुझसे बेहतर थी और मैं ईर्ष्या और जलन से भर गई। मैंने खुद को दबा हुआ भी महसूस किया। मैंने मन ही मन शिकायत की, “हम दोनों सुपरवाइजर हैं, लेकिन हमारे बीच इतना बड़ा अंतर क्यों है? अगुआ और भाई-बहन भविष्य में मुझे कैसे देखेंगे?” मैंने सोचा कि जब मैं अकेली प्रभारी थी तो मेरे कर्तव्य में कैसे कुछ नतीजे मिलते थे और कैसे सभी भाई-बहन भी मेरा आदर करते थे। लेकिन जब तियान यू आई तो वह हर तरह से मुझसे बेहतर थी और मेरे पास खुद को दिखाने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए मुझे लगा कि तियान यू ने मेरी चमक चुरा ली है। मैं तियान यू से नाराज रहने लगी और मैंने मन ही मन सोचा, “तुम हर चीज में अच्छी प्रतीत होती हो, लेकिन चलो देखते हैं कि क्या ऐसा कुछ है जो तुम नहीं कर सकती।”
कुछ ही समय बाद अगुआ ने मुझे और तियान यू को कुछ भाई-बहनों को लाने के काम में लगाया। मैं वहाँ नहीं थी, इसलिए तियान यू ने किसी और को भेजने की व्यवस्था कर दी। लेकिन उसने चीजों को ठीक से व्यवस्थित नहीं किया और भाई-बहनों को लाया नहीं जा सका और वे बेचैनी से इंतजार करते रह गए। मैंने इस अवसर का इस्तेमाल एक बहन के सामने तियान यू को नीचा दिखाने के लिए किया क्योंकि मैं उसे दिखाना चाहती थी कि तियान यू इतनी छोटी सी बात भी नहीं सँभाल सकती। मैंने जो बात फैलाई, उसके कारण बहन ने तियान यू के बारे में कुछ नकारात्मक राय विकसित कर ली और शिकायत की कि तियान यू चीजों को ठीक से व्यवस्थित नहीं कर सकती। एक और बार मुझे पता चला कि तियान यू के जिम्मे सौंपी गई एक बहन शिन रू केवल बाहरी तौर पर उत्साही थी, लेकिन लगातार सत्य का अनुसरण नहीं करती थी या परमेश्वर के वचनों को ज्यादा खाती और पीती नहीं थी। वह केवल सांसारिक प्रवृत्तियों, खाने-पीने और मौज-मस्ती में लगी रहती थी। संगति के बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ था और उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था। मैंने सोचा, “शिन रू के काम की जिम्मेदारी तियान यू के पास है लेकिन वह उसका ज्यादा भेद नहीं पहचानती है; ऐसा लगता है कि तियान यू भेद पहचानने में मेरे जितनी अच्छी नहीं है।” मुझे श्रेष्ठता की भावना महसूस हुई, मुझे लगा कि आखिरकार कुछ ऐसा है जिसमें मैं तियान यू से बेहतर हूँ। मैंने सोचा, “तुममें भी कमियाँ और खामियाँ हैं। चूँकि अगुआ यहाँ है, इसलिए मैं शिन रू के व्यवहार के बारे में बात करूँगी और अगुआ को दिखा दूँगी कि तुम भेद पहचानने के मामले में मेरे जितनी अच्छी नहीं हो। इससे तुम एक या दो पायदान नीचे गिर जाओगी।” लेकिन तियान यू ने भेद पहचानने की अपनी कमी का जिक्र नहीं किया और यह देखकर कि अँधेरा हो रहा है और अगुआ जा रहा है, मैं अधीर और क्रोधित होने लगी, इसलिए मैंने तियान यू को उपदेशात्मक लहजे में कहा, “तुम सिर्फ अपनी खूबियों के बारे में बात करती हो, अपनी कमियों के बारे में नहीं; मैं देखती हूँ कि तुम खुद को भी नहीं पहचानती!” मेरे यह कहने के बाद कमरे का माहौल तुरंत तल्ख हो गया और किसी ने कुछ नहीं कहा। अगुआ ने देखा कि मेरी अवस्था में कुछ गड़बड़ है और पूछा कि क्या चल रहा है, इसलिए मैंने अपनी असली अवस्था बताई कि मैं तियान यू को शर्मिंदा करना चाहती थी और उसे दिखाना चाहती थी कि ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जिनमें वह मेरे जितनी अच्छी नहीं है। तियान यू फूट-फूट कर रोने लगी और मैं वाकई असहज हो गई और मुझे अपराध बोध हुआ, इसलिए मैंने उससे माफी माँग ली। उस समय मुझे बस इतनी साधारण समझ थी कि मैं अपनी प्रतिष्ठा को महत्व देती हूँ और रुतबे की प्रबल इच्छा रखती हूँ, लेकिन मेरा भ्रष्ट स्वभाव अभी भी नहीं सुलझा था।
बाद में चूँकि मेरे काम के नतीजे तियान यू जितने अच्छे नहीं थे, मुझे लगा कि मैं अलग नहीं दिख सकती या अपना चेहरा नहीं दिखा सकती, इसलिए मैं और भी हताश हो गई और जब सभा का समय आया तो मैं इसमें शामिल नहीं होना चाहती थी। मैंने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश और कर्तव्यों में आने वाली कठिनाइयों की अनदेखी की और ज्यादातर काम तियान यू ने अकेले ही किया। कुछ समय के बाद मुझे अपनी छाती में जकड़न, साँस लेने में तकलीफ और खाँसी हो गई और जांच के बाद, मुझे अंतरालीय निमोनिया होने का पता चला। डॉक्टर ने कहा कि यह बीमारी तेजी से बढ़ती है और तत्काल उपचार की जरूरत है। बीमार होने के बाद भी मैंने बहुत आत्म-चिंतन नहीं किया और मैं अपने कर्तव्य में गलतियाँ करती रही, इसलिए अगुआ ने मुझे बर्खास्त कर दिया। उस समय मैंने खुद को दर्द में डूबा हुआ पाया और मुझे विश्वास था कि मुझे परमेश्वर ने बेनकाब किया है और निकाल दिया है, जिसने मुझे और भी हताश कर दिया। एक बार मैंने परमेश्वर के वचनों का पाठ सुना : “जो लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे सत्य के वचन को सुनने के अयोग्य हैं और सत्य के लिये गवाही देने के अयोग्य हैं। सत्य बस उनके कानों के लिए नहीं है; बल्कि, यह उन पर निर्देशित है जो इसका अभ्यास करते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मेरे दिल को चीर दिया। मुझे याद आया कि जब मुझे बर्खास्त किया गया था तो अगुआ ने उजागर किया था कि कैसे मैं हमेशा प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागती रहती थी, मैं कई दौर की संगति के बावजूद बदलने में नाकाम रही थी और मैं सत्य को बिल्कुल भी नहीं स्वीकारती थी। मैंने यह भी सोचा कि कैसे मैं लगभग तीन वर्षों से तियान यू के साथ सहयोग कर रही थी और भले ही मुझे पता था कि तियान यू से ईर्ष्या करना और उसके साथ प्रतिस्पर्धा करना गलत था, मैं अपने मसले सुलझाने के लिए सत्य की तलाश नहीं करती थी। क्या मैं बिल्कुल वैसी इंसान नहीं थी जैसा परमेश्वर ने वर्णन किया था जो सत्य का अभ्यास नहीं करता? उस समय मैं परमेश्वर के इरादे नहीं समझ पाई और नकारात्मक हाे गई थी और खुद पर फैसला सुनाती थी। उस दौरान मुझे जरा भी भूख नहीं लगती थी, परमेश्वर के वचन खाने और पीने से कोई प्रबोधन नहीं मिलता था और मैं कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं जुटा पाती थी। बाद में मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा ठीक नहीं है, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसे खोजा। उसके बाद मैंने “अपनी असफलताओं और पतन से निपटने के सिद्धांत” पढ़े। परमेश्वर कहता है : “यदि तुम परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास करते हो, तो तुम्हें यह विश्वास करना होगा कि हर दिन जो भी अच्छा होता है या बुरा, वो यूँ ही नहीं होता। ऐसा नहीं है कि कोई जानबूझकर तुम पर सख्त हो रहा है या तुम पर निशाना साध रहा है; यह सब परमेश्वर की व्यवस्था और योजना बनाना है। परमेश्वर इन चीजों की योजना क्यों बनाता है? तुम कौन हो यह उजागर करने या तुम्हें प्रकट करके हटा देने के लिए नहीं है; तुम्हें प्रकट करना अंतिम लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य तुम्हें पूर्ण बनाना और बचाना है। परमेश्वर तुम्हें पूर्ण कैसे बनाता है? वह तुम्हें कैसे बचाता है? वह तुम्हें तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव से अवगत कराने और तुम्हें तुम्हारे प्रकृति-सार, तुम्हारे दोषों और कमियों से अवगत कराने से शुरुआत करता है। उन्हें साफ तौर पर समझकर और जानकर ही तुम सत्य का अनुसरण कर सकते हो और धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव को छोड़ सकते हो। यह परमेश्वर का तुम्हें एक अवसर प्रदान करना है। यह परमेश्वर की दया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से सीखना चाहिए)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरा बर्खास्त होना परमेश्वर द्वारा मुझे निकाला जाना नहीं था, बल्कि मुझ पर उसका अनुशासन और ताड़ना थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि मैंने बहन के साथ प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा की थी, कलीसिया के काम में देरी की थी और आत्म-चिंतन करने के बजाय मैंने बहन पर हमला किया था और उसे बहिष्कृत कर दिया था, जिसने परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया था। ऐसी परिस्थितियों में परमेश्वर का इरादा यह था कि मैं सत्य खोजूँ, आत्म-चिंतन करूँ और खुद को जानूँ। परमेश्वर का इरादा समझने पर मेरी अवस्था में कुछ सुधार हुआ और मैं पूरी तरह से आत्म-चिंतन करने और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करने के लिए उस पर भरोसा करने को तैयार थी।
बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो अगुआ ने मुझे दिखाया था : “मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, इसलिए वे यकीनन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने के लिए ही बोलते और काम भी करते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं। अगर उनके आसपास कोई अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है और वह सत्य का अनुसरण करता है, और इस व्यक्ति को भाई-बहनों के बीच कुछ प्रसिद्धि हासिल करने के बाद टीम का अगुआ चुन लिया जाता है, और भाई-बहन वास्तव में उस व्यक्ति की प्रशंसा करते और उसे स्वीकारते हैं, तो मसीह-विरोधी कैसी प्रतिक्रिया देंगे? यकीनन वे इससे खुश नहीं होंगे, और उनमें ईर्ष्या पैदा होगी। अगर मसीह-विरोधी मन में ईर्ष्या रखते हैं, तो मुझे बताओ, क्या वे सही बर्ताव कर सकेंगे? क्या उन्हें इस बारे में कुछ नहीं करना होगा? (बिल्कुल करना होगा।) अगर वे वास्तव में इस व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं, तो वे क्या करेंगे? अपने मन में, वे जरूर कुछ इस तरह का हिसाब लगाएँगे : ‘इस व्यक्ति में काफी अच्छी काबिलियत है, उसके पास इस पेशे की कुछ समझ है, और वह मुझसे ज्यादा मजबूत है। यह परमेश्वर के घर के काम के लिए फायदेमंद है, मगर मेरे लिए नहीं! क्या वह मेरी जगह ले लेगा? अगर उसने वाकई एक दिन मेरी जगह ले ली, तो क्या यह परेशानी की बात नहीं होगी? मुझे पहले से ही निवारक काम करना चाहिए। अगर वह कभी अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम हो जाए, तो मेरे लिए उसे ठीक करना इतना आसान नहीं होगा। बेहतर होगा कि मैं पहले ही वार करूँ। अगर मैं देर करता हूँ और उसे मुझे उजागर करने देता हूँ, तो कौन जाने इसके परिणाम क्या होंगे। तो, मैं वार कैसे करूँ? मुझे एक बहाना, एक अवसर खोजना होगा।’ मुझे बताओ, अगर कोई किसी को दंडित करना चाहे, तो क्या उसके लिए ऐसा करने का बहाना और अवसर ढूँढ़ना आसान नहीं है? शैतान की कौन-सी एक चाल है? (‘जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।’) बिल्कुल, ‘जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।’ शैतान के संसार में, इस तरह का तर्क मौजूद है, और ऐसी चीजें होती रहती हैं। परमेश्वर के लिए यह मौजूद नहीं है। मसीह-विरोधी शैतान के हैं और ये सब करने में सबसे ज्यादा सक्षम हैं। वे इस बारे में सोचेंगे : ‘जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है। मैं तुम पर आरोप लगाऊँगा, तुम्हें दंडित करने का अवसर ढूँढूँगा, तुम्हारे अहंकार और हेकड़ी को दबाऊँगा, और भाई-बहनों को तुम्हारा सम्मान करने और अगली बार तुम्हें टीम का अगुआ चुनने से रोकूँगा। फिर, तुम मेरे लिए कोई खतरा नहीं रहोगे, है न? अगर मैं इस संभावित समस्या को खत्म कर दूँ और इस प्रतिस्पर्धी को हटा दूँ, तो क्या मुझे राहत नहीं मिलेगी?’ अगर उसके दिमाग में इस तरह की उथल-पुथल मची हुई है, तो क्या वह बाहर से खुद को इस पर काम करने से रोक पाएगा? मसीह-विरोधियों की प्रकृति को देखें, तो क्या वे इस विचार को अपने अंदर दबाए रखने और कुछ न करने में सक्षम हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं। वे यकीनन अपनी चाल चलने का रास्ता खोज ही लेंगे। यह मसीह विरोधियों की मक्कारी है। वे न केवल ऐसा सोचते हैं, बल्कि इस लक्ष्य को हासिल भी करना चाहते हैं। इसलिए, वे इस मामले पर बेतहाशा विचार करेंगे, अपना दिमाग खपाएँगे। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते, न ही वे कलीसिया के कार्य पर विचार करते हैं। उन्हें इस बात की और भी कम परवाह होती है कि उनके क्रियाकलाप परमेश्वर के इरादे के अनुसार हैं या नहीं। वे बस अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने, अपनी ताकत की रक्षा करने के बारे में ही सोचते हैं। उन्हें लगता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने पहले ही उनके रुतबे के लिए खतरा पैदा कर दिया है, इसलिए वे उन्हें नीचे गिराने का अवसर खोजने की कोशिश करते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने उनसे सलाह-मशविरा किए बिना किसी ऐसे व्यक्ति को बदल दिया है जो लगातार अनमने ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहा था, तो वे इसे अपने प्रतिद्वंद्वी पर कुछ आरोप लगाने का सही मौका समझेंगे। भाई-बहनों के सामने वे कहते हैं, ‘क्योंकि आज सभी यहाँ हैं, तो आओ इस मामले का गहन विश्लेषण करें। क्या अधिकृत हुए बिना, अपने सहकर्मियों या साथियों से विचार-विमर्श किए बिना किसी को बदलना तानाशाही नहीं है? कोई ऐसी गलती क्यों करेगा? क्या उनके स्वभाव में कोई समस्या नहीं है? क्या उनकी काट-छाँट नहीं की जानी चाहिए? क्या भाई-बहनों को उनका परित्याग नहीं कर देना चाहिए?’ वे यह मुद्दा उठाते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने और खुद को ऊँचा उठाने के लिए बात का बतंगड़ बना देते हैं। वास्तव में, स्थिति इतनी गंभीर नहीं है। टीम के किसी सदस्य के कर्तव्य में कुछ फेर-बदल करने या उसे बदले जाने के बाद रिपोर्ट बनाना पूरी तरह से स्वीकार्य है, अगर यह फेर-बदल या बदलाव सिद्धांतों का पालन करके किया गया हो। लेकिन, मसीह-विरोधी इस मुद्दे को हद से ज्यादा तूल देते हैं। वे जान-बूझकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करते और खुद को ऊँचा उठाते हैं। क्या यह दूसरों को दंडित करने की अभिव्यक्ति नहीं है? वे अपने प्रतिद्वंद्वी को मक्कारी से काटते-छाँटते हैं, और उनके बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगाते हैं। ... ये मसीह-विरोधी राई का पहाड़ बना रहे हैं : यह सीधे तौर पर प्रतिकार और व्यक्तिगत प्रतिशोध है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन का सामना करते हुए मेरा दिल डर से काँप उठा। तियान यू के साथ सहयोग करने के अपने समय पर विचार करते हुए मैंने देखा था कि वह हर तरह से मुझसे आगे निकल गई थी, इसलिए मैं प्रसिद्धि और लाभ की तलाश में भ्रष्ट स्वभाव में फँस गई थी, तियान यू के प्रति ईर्ष्या और घृणा महसूस कर रही थी। मुझे लगा था कि तियान यू ने मेरी चमक चुरा ली है, इसलिए मैंने दूसरों के मन में उसके प्रति उच्च सम्मान को कम करने के लिए उसकी कमियाँ उजागर करने के अवसरों की तलाश की। इसे हासिल करने के लिए मैंने उसी तरह सही समय का इंतजार किया, जैसे एक शिकारी अपने शिकार की प्रतीक्षा करता है। जब तियान यू ने भाई-बहनों को लेने के लिए किसी की व्यवस्था की थी तो मैंने जानबूझकर एक बहन के सामने यह कहते हुए उसे नीचा दिखाया था कि वह चीजों को ठीक से व्यवस्थित नहीं कर सकती। मैं यह देखकर खुश थी कि तियान यू की देखरेख वाले एक समूह की सदस्य शिन रू अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है, मानो मुझे तियान यू को अपनी कमियाँ मनवाने का मौका मिल गया हो। इसलिए जब अगुआ ने हमारे साथ सभा की और मैंने देखा कि तियान यू ने भेद पहचानने की अपनी कमी का उल्लेख नहीं किया, मैंने खुलेआम उसकी आलोचना की थी कि वह खुद को नहीं जानती, उसे निराश करने की कोशिश की थी और अगुआ को दिखाया था कि मैं लोगों का भेद पहचानने में उससे बेहतर हूँ। मैं प्रसिद्धि और लाभ की तलाश में भ्रष्ट स्वभाव में जी रही थी और जब मैंने देखा कि मैं किसी भी तरह तियान यू से आगे नहीं निकल सकती तो मैं नकारात्मक हो गई और काम में ढिलाई बरतने लगी और मैंने उन कठिनाइयों को नजरअंदाज कर दिया जिनका सामना भाई-बहन अपने कर्तव्यों और जीवन प्रवेश में कर रहे थे, जिससे काम में देरी हो रही थी। मैंने सोचा कि कैसे तियान यू को अपने कर्तव्यों में बोझ का एहसास था, वह जिम्मेदार थी और भाई-बहनों की वास्तविक समस्याओं को हल कर सकती थी, जो कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद था, लेकिन मैं अपना सारा दिन उसके साथ प्रतिस्पर्धा और होड़ करने में बिताती थी और जब मैं उससे आगे नहीं निकल सकी तो मैंने उस पर हमला किया और उसे बहिष्कृत कर दिया। मैं जो कर रही थी वह केवल किसी के लिए चीजें मुश्किल बनाने की कोशिश नहीं थी; मैं कलीसिया के कार्य को कमजोर कर रही थी और इसमें गड़बड़ी पैदा कर रही थी। किस तरह का इंसान ऐसा करेगा? यह एहसास होने पर मुझे बहुत तकलीफ हुई और मैं खुद को रोक नहीं पाई और रोने लगी। पहले मुझे लगता था कि मैं ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखने वाली और कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकने वाली इंसान हूँ, लेकिन तथ्यों के प्रकाशन के माध्यम से मैंने देखा कि मैं कितनी घृणित और मानवता से रहित हूँ। इस बारे में मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि यह कोई भ्रष्टता का छोटा-मोटा प्रकाशन नहीं है, बल्कि मैं पहले से ही एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर हूँ। डर ने मेरे दिल को जकड़ लिया और मुझे एहसास हुआ कि मेरी अवस्था कितनी खतरनाक है और अगर मैंने पश्चात्ताप न किया तो मुझे निकाल दिया जाएगा और दंडित किया जाएगा।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “अगर तुम यह कहते रहो कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, उद्धार का अनुसरण करते हो, परमेश्वर की पड़ताल और मार्गदर्शन को स्वीकारते हो, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण करते हो, मगर यह सब कहते हुए भी तुम कलीसिया के विभिन्न कार्यों में बाधा डाल रहे हो, उनमें गड़बड़ी पैदा कर रहे हो और उन्हें नष्ट कर रहे हो, और तुम्हारी इस बाधा, गड़बड़ी और तबाही के कारण, तुम्हारी लापरवाही या कर्तव्यहीनता के कारण या तुम्हारी स्वार्थी इच्छाओं और अपने व्यक्तिगत के हितों के अनुसरण के कारण, परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के हितों और अन्य अनेक पहलुओं को नुकसान हुआ है, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई और वह तबाह हो गया है, तो फिर, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन की किताब में क्या परिणाम लिखना चाहिए? तुम्हें क्या किस रूप में चित्रित किया जाना चाहिए? निष्पक्षता से कहें तो तुम्हें दंड मिलना चाहिए। इसे ही तुम्हारा उचित परिणाम मिलना कहते हैं” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता। मैंने अपने कर्तव्य में सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई थी, जिस बहन के साथ मैं सहयोग कर रही थी, उस पर मैंने हमला किया और उसे बहिष्कृत कर दिया और कलीसिया के काम में गड़बड़ी की। परमेश्वर इसकी निंदा करता है। अपना कर्तव्य सँभालने के बाद से मैं हमेशा घोषणा करती थी कि मैं सत्य का अनुसरण करना चाहती हूँ और परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहती हूँ, लेकिन जब तथ्यों का सामना हुआ तो मैंने देखा कि मेरा इरादा अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना या परमेश्वर को संतुष्ट करना नहीं था, बल्कि अपने खुद के रुतबे का प्रबंधन करना था। मैं हमेशा दूसरों से उच्च सम्मान पाने की कोशिश करती थी और जैसे ही कोई मेरे रुतबे को खतरे में डालता था, मैं उसकी खामियाँ चुनने और उसकी कमियाँ भुनाने के मौके तलाशती थी और फिर इसे बड़ा मुद्दा बना देती थी, इन चीजों का इस्तेमाल करके उस पर हमला करती थी और उसे बहिष्कृत कर देती थी। कलीसिया के कार्य में सहयोग के लिए ऐसे और अधिक लोगों की जरूरत है जो खूब काबिल हों और वास्तविक कार्य कर सकते हों, लेकिन मैंने दूसरों पर हमला किया और उन्हें बहिष्कृत कर दिया और कलीसिया के काम में गड़बड़ी की और इसे बर्बाद कर दिया। राक्षस यही करते हैं! जब मुझे अपने कार्यकलापाें की प्रकृति का एहसास हुआ तो मैंने घुटने टेके और परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैंने तुम्हारे बहुत से वचनों के प्रावधान का आनंद लिया है, फिर भी मैंने तुम्हारे वचनों के अनुसार अभ्यास नहीं किया है। इसके बजाय मैंने अपने शैतानी स्वभाव पर भरोसा करके तुम्हारा विरोध किया है। मैंने प्रसिद्धि, लाभ और प्रतिष्ठा की खोज में बहुत सारे बुरे काम किए हैं, लेकिन मैं पश्चात्ताप करने और नए सिरे से शुरुआत करने के लिए तैयार हूँ।”
फिर मैंने आगे चिंतन किया, खुद से पूछा, “मैं हमेशा प्रसिद्धि, लाभ और प्रतिष्ठा के पीछे क्यों भागती हूँ, तब भी जब मैं ऐसा नहीं करना चाहती?” बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और मेरा दिल रोशन हो गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान मनुष्य को मजबूती से अपने नियंत्रण में रखने के लिए किसका उपयोग करता है? (प्रसिद्धि और लाभ का।) तो, शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि प्रसिद्धि और लाभ के लिए तियान यू के साथ मेरी प्रतिस्पर्धा और परमेश्वर विरोधी बुरे काम, ये सब शैतान से गुमराह और भ्रष्ट होने के नतीजे हैं। शैतान लोगों में इस तरह के विचार भर देता है जैसे “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ,” “एक व्यक्ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज करता जाता है” और “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है।” ये और ऐसे अन्य विचार मेरे दिल में गहराई तक समा चुके थे और मुझे बांध रहे थे और नियंत्रित कर रहे थे। बचपन से चाहे मैं कहीं भी गई, मुझे हमेशा आदर और प्रशंसा पाना पसंद था और कलीसिया में मेरे कर्तव्यों के साथ भी ऐसा ही था। चाहे मैं कोई भी कर्तव्य कर रही थी मैं हमेशा अलग दिखना चाहती थी और ध्यान आकर्षित करना चाहती थी और जब तक मैं लोगों से आदर और समर्थन पाने में सक्षम थी, मैं कोई कठिनाई सहने के लिए तैयार थी। यह देखकर कि तियान यू कार्यक्षमता, काबिलियत और अन्य पहलुओं में मुझसे बेहतर थी, मुझे लगा था जैसे मैं एक बड़े पेड़ की छाया में खड़ी हूँ, जो मुझे दूसरों से अलग दिखने या लोगों की नजरों में आने से रोक रहा है। मुझे वाकई दबा हुआ और घुटन महसूस हुई और मेरे दिल में तियान यू के प्रति ईर्ष्या और नाराजगी होने लगी, मैं चाहती थी कि वह गलती करे, खुद को शर्मिंदा करे या यहाँ तक कि उसे अपने कर्तव्यों से बर्खास्त कर दिया जाए। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि काम का बोझ मेरे अकेले सँभालने के लिए बहुत ज्यादा था, तियान यू एक सक्षम कार्यकर्ता थी और हमारा सहयोग कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद था, लेकिन अपने हितों की खातिर मैंने न केवल उसके काम में साथ नहीं किया, बल्कि मैंने उस पर हमला भी किया और उसे बहिष्कृत कर दिया। इससे न केवल तियान यू को ठेस पहुँची बल्कि कलीसिया के काम में भी देरी हुई। मुझमें वाकई मानवता की कमी थी! मुझे एहसास हुआ कि “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ” और “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है” जैसे विचारों के आधार पर आचरण करने, जिसका उपयोग शैतान लोगों को प्रेरित करने के लिए करता है, ने मुझे अभिमानी और विवेकहीन बना दिया था और मेरा स्वभाव अधिक से अधिक द्वेषपूर्ण होता जा रहा था। इसने मुझे और भी संकीर्ण सोच वाला बना दिया था और मुझमें कोई मानवता नहीं बची थी। दरअसल जब मैंने देखा कि मैंने तियान यू को चोट पहुँचाई है तो मुझे अपराध बोध हुआ, लेकिन जब भी मैंने तियान यू को अलग खड़ा और लोगों का ध्यान आकर्षित करते देखा तो मैं उससे ईर्ष्या करने से खुद को रोक नहीं पाई। मैं इस अवस्था से छुटकारा पाना चाहती थी, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी। जैसा कि परमेश्वर ने कहा है : “शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। जब मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े तो मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। ऐसा लगा जैसे परमेश्वर के वचन सीधे मेरे दिल से बात कर रहे थे और मैं उनसे गहराई से जुड़ी हुई थी। मैं इस समय तक तियान यू के साथ लगभग तीन वर्षों से सहयोग कर रही थी और अगुआ ने प्रसिद्धि और लाभ के लिए मेरी होड़ के मुद्दे पर कई बार मुझसे संगति की थी, यहाँ तक कि मुझे उजागर किया था और काट-छाँट भी की थी और उस समय मैं इसे पहचान सकी थी और खुद से नफरत करती थी, लेकिन जब फिर से उसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा तो मैं फिर से उन्हीं बुरी आदतों में पड़ गई। चूँकि मैं प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागती रही, यहाँ तक कि पर्दे के पीछे कलीसिया के काम को कमजोर करती रही और गड़बड़ी डालती रही, मैंने परमेश्वर के स्वभाव को नाराज किया और परमेश्वर की ताड़ना और अनुशासन मुझ पर आया। मैं बीमार पड़ गई लेकिन फिर भी मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया और जब तक मुझे आखिरकार बर्खास्त नहीं कर दिया गया, तब तक मुझे डर नहीं लगा। मैंने देखा कि मेरा प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागना वाकई नियंत्रण से बाहर हो गया था। मुझे आखिरकार समझ आ गया कि परमेश्वर क्यों नहीं चाहता कि लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागें। परमेश्वर के उद्धार के बिना मैं और भी गहराई में डूब जाती!
मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, मैं सत्य खोजना और इस शैतानी स्वभाव के बंधन तोड़ना चाहती थी। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और अभ्यास के कुछ मार्ग पाए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रतिष्ठा और रुतबे को त्यागना आसान नहीं है—लोग इसे केवल सत्य का अनुसरण करके हासिल कर सकते हैं। केवल सत्य समझकर ही व्यक्ति खुद को जान सकता है, शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ने का खोखलापन स्पष्ट रूप से देख सकता है और मानवजाति की भ्रष्टता का सत्य साफ तौर पर देख सकता है। जब व्यक्ति वास्तव में खुद को जान लेता है केवल तभी वह रुतबे और प्रतिष्ठा को त्याग सकता है। अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्याग पाना आसान नहीं है। अगर तुम पहचान गए हो कि तुम में सत्य की कमी है, तुम कमियों से घिरे हो और बहुत अधिक भ्रष्टता प्रकट करते हो, फिर भी तुम सत्य का अनुसरण करने का कोई प्रयास नहीं करते और छद्मवेश धारण करके पाखंड में लिप्त होते हो, इससे लोगों को विश्वास दिलाते हो कि तुम कुछ भी कर सकते हो, तो यह तुम्हें खतरे में डाल देगा और देर-सवेर एक ऐसा समय आएगा जब तुम्हारे आगे का रास्ता बंद हो जाएगा और तुम गिर जाओगे। तुम्हें स्वीकारना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य नहीं है, और पर्याप्त बहादुरी से वास्तविकता का सामना करना चाहिए। तुममें कमजोरी है, तुम भ्रष्टता प्रकट करते हो और हर तरह की कमियों से घिरे हो। यह सामान्य है, क्योंकि तुम एक सामान्य व्यक्ति हो, तुम अलौकिक या सर्वशक्तिमान नहीं हो, और तुम्हें यह पहचानना चाहिए। जब दूसरे लोग तुम्हारा तिरस्कार या उपहास करें, तो इसलिए तुरंत चिढ़कर प्रतिक्रिया मत दो, क्योंकि वे जो कहते हैं वह अप्रिय है, या इसलिए इसका प्रतिरोध मत करो क्योंकि तुम खुद को सक्षम और परिपूर्ण मानते हो—ऐसी बातों के प्रति तुम्हारा रवैया ऐसा नहीं होना चाहिए। तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हें अपने आपसे कहना चाहिए, ‘मेरे अंदर दोष हैं, मेरी हर चीज भ्रष्ट और दोषपूर्ण है और मैं एक साधारण-सा व्यक्ति हूँ। उनके द्वारा मेरा तिरस्कार और उपहास किए जाने के बावजूद, क्या इसमें कोई सच्चाई है? अगर वे जो कहते हैं उसका थोड़ा-सा हिस्सा भी सच है, तो मुझे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए।’ अगर तुम्हारा ऐसा रवैया है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तुम रुतबे, प्रतिष्ठा और अपने बारे में दूसरे लोगों की राय को सही तरीके से सँभालने में सक्षम हो। ... जब तुममें रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की निरंतर सोच और इच्छा होती है, तो तुम्हें पता होना चाहिए कि अगर इस तरह की स्थिति को अनसुलझा छोड़ दिया जाए तो कैसी बुरे परिणाम हो सकते हैं। इसलिए समय बर्बाद न करते हुए सत्य खोजो, रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा पर प्रारंभिक अवस्था में ही काबू पा लो, और इसके स्थान पर सत्य का अभ्यास करो। जब तुम सत्य का अभ्यास करने लगोगे, तो रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की तुम्हारी इच्छा और महत्वाकांक्षा कम हो जाएगी और तुम कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालोगे। इस तरह, परमेश्वर तुम्हारे क्रियाकलापों को याद रखेगा और उन्हें स्वीकृति देगा। तो मैं किस बात पर जोर दे रहा हूँ? वह बात यह है : इससे पहले कि तुम्हारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ पुष्पित और फलीभूत होकर बड़ी विपत्ति लाएँ, तुम्हें उनसे छुटकारा पा लेना चाहिए। यदि तुम उन्हें शुरुआत में ही काबू नहीं करोगे, तो तुम एक बड़े अवसर से चूक जाओगे; अगर वे बड़ी विपत्ति का कारण बन गईं, तो उनका समाधान करने में बहुत देर हो जाएगी। यदि तुममें दैहिक इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा तक नहीं है, तो तुम्हारे लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा; यदि तुम शोहरत, लाभ और रुतबा पाने के प्रयास में असफलताओं और नाकामयाबियों का सामना करने पर होश में नहीं आते, तो यह स्थिति बहुत खतरनाक होगी : इस बात की संभावना है कि तुम्हें हटा दिया जाए। जब सत्य से प्रेम करने वालों को अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को लेकर एक-दो असफलताओं और नाकामियों का सामना करना पड़ता है, तो वे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि प्रतिष्ठा और रुतबे का कोई मूल्य नहीं है। वे रुतबे और प्रतिष्ठा को पूरी तरह त्यागने में सक्षम होते हैं, और यह संकल्प लेते हैं कि भले ही उनके पास कभी भी रुतबा न हो, फिर भी वे सत्य का अनुसरण करते हुए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना जारी रखेंगे, और अपनी अनुभवजन्य गवाही साझा करते रहेंगे और इस तरह परमेश्वर की गवाही देने का नतीजा हासिल करेंगे। वे साधारण अनुयायी होकर भी, अंत तक अनुसरण करने में सक्षम बने रहते हैं। उनकी बस एक ही चाहत होती है कि उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति मिले। ऐसे लोग ही वास्तव में सत्य से प्रेम करते हैं और उनमें संकल्प होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागने से बचने के लिए किसी को सबसे पहले अपनी कमियाँ और अपर्याप्तताएँ स्वीकारनी चाहिए और साथ ही भाई-बहनों के सामने आगे बढ़कर खुद को उजागर करना चाहिए, अपनी खुद की भ्रष्टता और कमियाँ स्वीकारनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जब किसी का प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ करने का भ्रष्ट स्वभाव फिर से उभरता है तो उसे अपने खिलाफ विद्रोह करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और इसकी जगह सत्य का अभ्यास करना चाहिए ताकि कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी डालने वाले बुरे कर्मों से खुद को रोके। मैंने तियान यू की अच्छी काबिलियत, कार्यक्षमता और भाई-बहनों के मसले सुलझाने के लिए सत्य की संगति करने की उसकी क्षमता के बारे में सोचा और इस बारे में सोचा कि कैसे कलीसिया ने मेरी कमियाँ पूरा करने के लिए तियान यू को मेरे साथ सहयोग करने में लगाया था और कैसे ये चीजें काम और मेरे अपने जीवन प्रवेश दोनों के लिए फायदेमंद थीं। आगे बढ़ते हुए जब मुझसे बेहतर काबिलियत वाले और मुझसे श्रेष्ठतर भाई-बहनों का सामना हुआ, मुझे उनके साथ सही तरीके से पेश आना था और अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए उनकी खूबियों को अपनाना था। बाद में अगुआ ने देखा कि मैंने कुछ सबक सीखे हैं और मुझे एक कर्तव्य सौंपा। अपना कर्तव्य निभाते हुए मेरी मुलाकात फिर से तियान यू से हुई। मैं उसके प्रति काफी ऋणी महसूस कर रही थी, इसलिए मैंने उसके सामने अपना भ्रष्ट स्वभाव उजागर करने की पहल की और उसने भी हमारे सहयोग के दौरान प्रकट हुई अपनी भ्रष्टता के बारे में खुलकर बताया। जितना अधिक मैंने उसके साथ संगति की, मुझे उतनी ही अधिक राहत और मुक्ति मिली।
अप्रैल 2024 में मुझे कलीसिया का सफाई कार्य करने और बहन लियू शिन के साथ सहयोग करने के लिए नियुक्त किया गया था। लियू शिन में अच्छी काबिलियत और कार्यक्षमता थी। एक बार हम दो बहनों से मिलने गए और पाया कि सफाई कार्य के प्रति उनका रवैया कुछ ढीला है। लियू शिन ने तब उनके साथ संगति करने के लिए परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों का उपयोग किया। अपनी संगति के बाद दोनों बहनों ने लियू शिन की कही बातों को सच में स्वीकारा और एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मैं शायद ही वहाँ मौजूद थी और मैंने सोचा, “लियू शिन ही एकमात्र इंसान है जो आज सुबह उनके साथ संगति कर रही है। वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” मुझे कुछ हद तक परेशानी हुई और लगा कि लियू शिन के वहाँ होने से मैं सुर्खियों में नहीं रह सकती। उसी पल मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ की अवस्था में जी रही थी और इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरी यह मदद करो कि मैं तुम्हारे वचनों के आधार पर आचरण करूँ और अपना कर्तव्य निभाऊँ और शैतानी स्वभाव के भरोसे न जिऊँ।” प्रसिद्धि और लाभ के अनुसरण में मैंने जो बुरा किया था और उससे मुझे जो पीड़ा मिली थी, उस पर विचार करते हुए मैंने सोचा, “मैं असफलता के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकती। मुझे अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करने और कलीसिया के हितों पर विचार करने की जरूरत है। मैं आज यहाँ सफाई कार्य लागू कराने के लिए आई हूँ, न कि बहन के साथ प्रतिस्पर्धा या अपनी तुलना करने आई हूँ। मुझे अपनी बहन के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना सीखना होगा।” इस बात को ध्यान में रखते हुए मेरा दिल शांत हो गया। मैंने उन सभी क्षेत्रों की भरपाई की, जहाँ लियू शिन की संगति में कमी थी और मैंने उसके साथ सहयोग किया और मसले सुलझाने के लिए संगति की। आखिरकार दोनों बहनों को अपने मुद्दों की कुछ समझ मिली और वे बदलने के लिए तैयार हो गईं। मैंने अपने कर्तव्य में अपना दिल लगाने की मिठास का भी स्वाद चखा।
यह परमेश्वर के वचनों के न्याय, प्रकाशन, ताड़ना और अनुशासन के माध्यम से था कि मैंने साफ देखा कि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागने से मुझ पर क्या कष्ट आया और इस बात की कुछ समझ मिली कि शैतान लोगों को बांधने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल कैसे करता है। मैं अब प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के प्रति बहुत अधिक उदासीन हूँ और मुझे लगता है कि अपना कर्तव्य पूरा करना सबसे महत्वपूर्ण है। मैं अपने दिल की गहराई से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!