70. सही लोगों की सिफारिश करने में अनिच्छा के पीछे की मंशा

कियाओ मिन, चीन

जनवरी 2021 में कलीसिया अगुआ के तौर पर झांग फैंग और मेरा चुनाव किया गया। हम सुबह से देर रात तक कलीसिया में व्यस्त रहते थे। चूँकि मैंने पहले कभी पाठ-आधारित कार्य या सफाई कार्य में सहयोग नहीं किया था और चूँकि मैं उस कलीसिया में नई थी और कई पहलुओं से अपरिचित थी, इसलिए काम बहुत प्रभावी नहीं था। कुछ समय बाद ली यान कहीं और से अपना कर्तव्य करके लौटी और उसे भी कलीसिया अगुआ चुन लिया गया। मैं बहुत खुश थी। मैं ली यान को जानती थी। उसने पहले भी इस कलीसिया में अपना कर्तव्य किया था और वह सभी पहलुओं को अच्छी तरह से समझती थी। इसके अलावा उसकी काबिलियत ऊँची थी और उसके पास काम करने की क्षमताएँ थीं। उसने कई कर्तव्य किए भी थे। मैंने सोचा, “अब जब हमारे पास कलीसिया के काम में सहयोग करने के लिए ली यान है तो हम भाई-बहनों की समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान खोजने में सक्षम होंगे और जब काम की प्रभावशीलता सुधरेगी तो मैं भी अच्छी दिखूँगी।” इसलिए मैंने जल्दी से ली यान को कलीसिया की स्थिति के बारे में सब कुछ बता दिया। ली यान बहुत जल्दी काम से परिचित हो गई और हमने अपने कामों को बाँटकर सहयोग करना शुरू कर दिया। झांग फैंग और मैं मुख्य रूप से सुसमाचार कार्य और सिंचन कार्य के लिए जिम्मेदार थे। ली यान सफाई कार्य और कलीसियाई जीवन के लिए जिम्मेदार थी। जब झांग फैंग और मुझे ऐसी समस्याएँ पेश आती थीं जिनका समाधान हमारे पास नहीं होता था, तो हमेशा ली यान ही संगति करती थी। उसकी मदद से हम कई समस्याएँ हल करने के तरीके खोजने में सक्षम होते थे। ली यान हमारी कलीसिया का मुख्य आधार भी बन गई। उच्चस्तरीय अगुआओं ने हमारी कलीसिया के कार्य की जाँच करने के लिए हमारे साथ सहकर्मियों की बैठक बुलाई और जब उन्होंने देखा कि हम सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं और कार्य की विभिन्न मदों को व्यवस्थित तरीके से पूरा कर रहे हैं तो वे स्वीकृति में सिर हिलाते गए। मुझे याद है कि जब अगुआ पहले हमारे काम के बारे में जानने आए थे तो उन्होंने हमारी काट-छाँट की थी क्योंकि हमने कुछ अहम कार्य ठीक से नहीं किए थे, जिसके कारण देरी हुई थी। मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई थी और मैं अपना सिर नहीं उठा सकी थी। अब जब हमारे पास अपने कर्तव्य करने में सहयोग के लिए ली यान थी तो कार्य की प्रभावशीलता स्पष्ट रूप से अलग थी। उच्चस्तरीय अगुआ अब मुश्किल से ही कभी हमारी काट-छाँट करते थे और मैं सहकर्मी बैठकों में अच्छी दिखती थी। मैंने सोचा, “आगे से मैं ली यान के साथ ठीक से सहयोग करूँगी और कलीसिया में सभी कार्यों को और भी बेहतर ढंग से करने का प्रयास करूँगी।”

जुलाई की एक शाम उच्चस्तरीय अगुआओं ने हमें एक पत्र भेजा जिसमें किसी ऐसे व्यक्ति की सिफारिश करने को कहा गया था जो काफी अच्छा हो और कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी ले सके। मैंने मन ही मन सोचा, “ली यान काबिलियत और कार्य क्षमता के मामले में सर्वश्रेष्ठ है और अगर उसे पदोन्नत किया जाता है तो वह और अधिक अभ्यास हासिल करेगी। लेकिन अगर मैंने उसकी सिफारिश की तो हमारी कलीसिया अपने मुख्य आधारों में से एक को गँवा देगी। झांग फैंग और मैं अभी भी अपने काम में उतने अच्छे नहीं हैं। अगर कलीसिया का कार्य कम प्रभावी हुआ तो उच्चस्तरीय अगुआ निश्चित रूप से कहेंगे कि हमारे पास कार्य क्षमता की कमी है और हम वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। यहाँ तक कि वे हमें बरखास्त भी कर सकते हैं। तब हमारे भाई-बहन हमारे बारे में क्या सोचेंगे? मैं ली यान को जाने देने की सिफारिश नहीं कर सकती। लेकिन अगर मैं उसकी सिफारिश नहीं करती तो यह कलीसिया के कार्य की रक्षा करना नहीं है या स्थिति पर पूरी तरह से विचार करना नहीं है।” कोई भी विकल्प सही नहीं लगा और इससे मैं वास्तव में परेशान हो गई। अंत में मैंने अनिच्छा से ली यान से कहा, “मैं तुम्हारे जाने की सिफारिश करूँगी।” ली यान ने झिझकते हुए कुछ नहीं कहा लेकिन मुझे महसूस हुआ कि वह जाना नहीं चाहती। पहले तो मैं उसके विचार जानना और उसके साथ संगति करना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर हमारी संगति के बाद वह जाने के लिए सहमत हो गई तब क्या होगा? तब हमारी कलीसिया के कार्य के नतीजे कम हो जाएँगे और मैं बुरी दिखूँगी। चलो इसे भूल जाते हैं, मैं उससे नहीं पूछूँगी या उसके साथ संगति नहीं करूँगी। मैं बस दिखावा करूँगी कि जैसे मैंने कुछ नहीं देखा। अगर वह नहीं जाती तो क्या यह मेरे लिए बेहतर नहीं होगा?” इसलिए मैंने उच्चस्तरीय अगुआओं को जवाब नहीं दिया। घर पहुँचकर मैं अपने बिस्तर पर लेटी करवटें बदलती रही, सो नहीं पाई। मैंने सोचा कि अगुआओं ने हमें जल्दी जवाब लिखने को कहा था, लेकिन मैंने देरी की और जवाब नहीं दिया। क्या इससे कार्य रुक जाएगा? जितना मैंने इस बारे में सोचा, उतनी ही मैं परेशान होती गई। लेकिन दिल से मैं अभी भी ली यान की सिफारिश करने को तैयार नहीं थी। कलीसिया में इतना काम करना था और एक व्यक्ति का सहयोग कम होने से कार्य की प्रभावशीलता निश्चित रूप से उतनी अच्छी नहीं होगी। यह सोचकर मैंने उसकी सिफारिश नहीं की।

दूसरे दिन सुबह जब उठी तो मुझे कमजोरी और दुर्बलता महसूस हुई और मैं कुछ भी नहीं खा सकी। अपने दिल में मुझे बेचैनी सी महसूस हुई। मैंने परमेश्वर के सामने प्रार्थना की और खोज करते हुए परमेश्वर के ये वचन देखे : “मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कार्य कर रहे हों, वे पहले अपना हित देखते हैं, वे तभी कार्य करते हैं जब वे हर चीज पर अच्छी तरह सोच-विचार कर लेते हैं; वे बिना समझौते के, सच्चाई से, ईमानदारी से और पूरी तरह से सत्य के प्रति समर्पित नहीं होते, बल्कि वे चुन-चुन कर अपनी शर्तों पर ऐसा करते हैं। यह कौन-सी शर्त होती है? शर्त है कि उनका रुतबा और प्रतिष्ठा सुरक्षित रहे, उन्हें कोई नुकसान न हो। यह शर्त पूरी होने के बाद ही वे तय करते हैं कि क्या करना है। यानी मसीह-विरोधी इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं कि सत्य सिद्धांतों, परमेश्वर के आदेशों और परमेश्वर के घर के कार्य से किस ढंग से पेश आया जाए या उनके सामने जो चीजें आती हैं, उनसे कैसे निपटा जाए। वे इन बातों पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर के इरादों को कैसे संतुष्ट किया जाए, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने से कैसे बचा जाए, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया जाए या भाई-बहनों को कैसे लाभ पहुँचाया जाए; वे लोग इन बातों पर विचार नहीं करते। मसीह-विरोधी किस बात पर विचार करते हैं? वे सोचते हैं कि कहीं उनके अपने रुतबे और प्रतिष्ठा पर तो आँच नहीं आएगी, कहीं उनकी प्रतिष्ठा तो कम नहीं हो जाएगी। अगर सत्य सिद्धांतों के अनुसार कुछ करने से कलीसिया के काम और भाई-बहनों को लाभ पहुँचता है, लेकिन इससे उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है और लोगों को उनके वास्तविक कद का एहसास हो जाता है और पता चल जाता है कि उनका प्रकृति सार कैसा है, तो वे निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। यदि कुछ वास्तविक काम करने से और ज्यादा लोग उनके बारे में अच्छी राय बना लेते हैं, उनका सम्मान और प्रशंसा करते हैं, उन्हें और ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त करने देते हैं, या उनकी बातों में अधिकार आ जाता है जिससे और अधिक लोग उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, तो फिर वे काम को उस प्रकार करना चाहेंगे; अन्यथा, वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों पर ध्यान देने के लिए अपने हितों की अवहेलना करने का चुनाव कभी नहीं करेंगे। यह मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है। क्या यह स्वार्थ और घिनौना नहीं है?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। जब मेरी स्थिति उजागर करने की बात आई तो परमेश्वर के वचन एकदम सटीक निशाने पर लगे। मैंने जो स्वभाव प्रकट किया था वह किसी मसीह-विरोधी की तरह स्वार्थी और घृणित था। अपनी छवि और रुतबा बचाने के लिए मैंने परमेश्वर के घर के हितों के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा था। उच्चस्तरीय अगुआओं ने हमसे बड़े पैमाने पर कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी सँभालने के लिए किसी की सिफारिश करने के लिए कहा था। मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि ली यान की काबिलियत अच्छी है, उसके पास कार्य क्षमता है और वह एक उपयुक्त उम्मीदवार है। सिद्धांतों के अनुसार मुझे उसकी सिफारिश करनी चाहिए थी, लेकिन मुझे डर था कि ली यान के जाने के बाद मैं कुछ काम अच्छी तरह से नहीं कर पाऊँगी, जिससे कार्य के नतीजे कम हो जाएँगे, अगुआ मेरी काट-छाँट करेंगे और मैं बुरी दिखूँगी। इसलिए मैं ली यान की सिफारिश नहीं करना चाहती थी। जब मैंने देखा कि ली यान जाना नहीं चाहती तो मैंने उसकी कठिनाइयों के बारे में नहीं पूछा या मदद के लिए उसके साथ संगति नहीं की। मैं अंदर ही अंदर खुश थी और उत्सुकता से कामना कर रही थी कि वह न जाए। यह सोचकर कि अब कलीसिया के कार्य में सहयोग के लिए लोगों की तत्काल आवश्यकता है, एक कलीसिया अगुआ के नाते मुझे परमेश्वर के इरादे के बारे में विचारशील होना चाहिए था और ली यान के साथ संगति कर उसकी मदद करनी चाहिए थी ताकि वह सक्रिय रूप से सहयोग करे। लेकिन मैंने वास्तव में कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचा। मैं वाकई स्वार्थी और नीच थी! मुझमें मानवता का लेशमात्र भी अंश नहीं था! मुझे काफी अपराध-बोध हुआ और मैंने जल्दी से ली यान की सिफारिश करते हुए अगुआओं को पत्र लिखा।

कुछ समय तक उच्चस्तरीय अगुआओं ने जवाब नहीं दिया, तो मैंने मान लिया कि उन्हें किसी अन्य कलीसिया से कोई मिल गया होगा और उन्हें ली यान की जरूरत नहीं है। मैं मन ही मन थोड़ी खुश थी। अप्रत्याशित रूप से एक दिन अगुआओं ने एक पत्र लिखा जिसमें भाई-बहनों से ली यान का मूल्यांकन लिखने के लिए कहा गया था। इस पत्र को देखकर मेरा दिल बैठ गया और मैंने सोचा, “वे ली यान का मूल्यांकन चाहते हैं, तो लगता है कि अगुआ भी उसे प्रोन्नत करना चाहते हैं।” मैं थोड़ी निराश हो गई। “अब सुसमाचार उपयाजक गंभीर रूप से बीमार है और अपने कर्तव्य नहीं कर सकता। मैं अपने अन्य कर्तव्यों के साथ-साथ सुसमाचार कार्य का भी ध्यान रख रही हूँ। इसके अलावा हाल ही में सुसमाचार कार्य में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है और मैं बहुत चिंतित हूँ। हो सकता है कि मैं कुछ समय के लिए सही व्यक्ति न ढूँढ़ पाऊँ। मूल रूप से ली यान अपना ही काम पूरा करने जा रही थी और फिर सुसमाचार कार्य में मेरी मदद करने वाली थी। अगर उसका तबादला हो गया तो सुसमाचार कार्य में मेरी मदद कौन करेगा? साथ ही हमें ली यान का सारा काम भी सँभालना होगा। झांग फैंग और मैं इन सभी कामों की जिम्मेदारी कैसे उठा पाएँगे? अगर कार्य के नतीजे नहीं सुधरे तो भाई-बहन हमें कैसी नजर से देखेंगे?” यह सब सोचकर ही मैं ली यान को यहाँ रखना चाहती थी। मैं बहुत स्पष्ट थी कि अगर मैंने ली यान का ईमानदारी से मूल्यांकन लिखा तो उसकी पदोन्नति की संभावना बहुत अधिक होगी। इसलिए मैंने लिखा कि जब उसे पहले उसके कर्तव्य से हटाया गया था तो वह कितनी नकारात्मक और निराश हो गई थी, मैंने सोचा था कि अगर अगुआओं ने देखा कि वह इस तरह की है तो वे उसे पदोन्नत नहीं करेंगे। पत्र लिखकर मैंने इसके बारे में और कुछ नहीं सोचा और मामला खत्म हो गया।

एक दिन मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला और तब मैंने इस तरह से अपने काम करने की प्रकृति और परिणामों को समझना शुरू किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, समूह-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं। यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए, तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : ‘ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।’ जिन लोगों में जमीर और विवेक होता है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए, और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें ऐसा ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर का घर समग्र के कार्य में संलग्न है और कलीसियाएँ हिस्सों के कार्य में संलग्न हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के घर को कलीसिया से कोई विशेष आवश्यकता हो, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा जमीर और विवेक नहीं होता। वे सब बहुत स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं! परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिल्कुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की सारी संपत्ति को जो उनकी जिम्मेदारी के दायरे में आती है, निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। मानते हैं कि यह उन पर है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें, और कि परमेश्वर के घर को दखल देने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं, और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन शिष्ट और कोमल तरीके से करना होता है और उनकी अभिव्यक्तियों से इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र के स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति होती है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, वे सिद्धांतों का ज़रा भी पालन नहीं करते, और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं, जो भाई-बहनों को अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर सेवा करने वाले साधन की तरह मानते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई विचार नहीं करते। मसीह-विरोधियों से अपनी तुलना करूँ तो मेरा व्यवहार भी वैसा ही था। मुझे अच्छी तरह से पता था कि बरखास्तगी के बाद ली यान को अपनी कुछ समझ आई है और उसमें बदलाव आया है, वह अब अपने कर्तव्य प्रभावी ढंग से करती है। लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने उसकी सिफारिश की तो हमारी कलीसिया के कार्य के नतीजे नहीं सुधरेंगे और मेरी इज्जत कम हो जाएगी, इसलिए मैंने अगुआओं को धोखा देने के लिए यह बात उठाई कि खराब स्थिति में ली यान ने कैसा व्यवहार किया था, मुझे उम्मीद थी कि ली यान को यहाँ रख पाऊँगी ताकि मैं उसका इस्तेमाल करती रह सकूँ। ली यान जाने के लिए बहुत इच्छुक नहीं थी लेकिन मैंने उसे संगति और मदद की पेशकश नहीं की थी और यहाँ तक कि मैं मन ही मन खुश भी थी, मुझे उम्मीद थी कि वह गलत दशा में जीती रहेगी, इसलिए उसका तबादला नहीं होगा। मुझे अच्छी तरह पता था कि कलीसिया के कार्य के लिए लोग चाहिए, लेकिन मुझे सिर्फ अपने हितों की रक्षा करने की परवाह थी और मैंने कलीसिया के समग्र कार्य के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा। यह अपना कर्तव्य करना कैसे हुआ? किसी को अपनी सेवा करते रहने के लिए रखने और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बचाने के लिए मैंने कलीसिया के कार्य की जरूरतों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। ऐसा करके क्या मैं कलीसिया के कार्य में बाधा नहीं डाल रही थी? मैं जिस रास्ते पर चल रही थी वह परमेश्वर के प्रतिरोध का मसीह-विरोधियों वाला रास्ता था। अगर मैंने अपने बुरे तरीके नहीं छोड़े और परमेश्वर के आगे पश्चात्ताप न किया तो अंतत: मैं परमेश्वर द्वारा हटा दी जाऊँगी। जितना मैंने इस बारे में सोचा, उतना ही मैं डर गई और अपनी स्वार्थी और घृणित शैतानी प्रकृति को लेकर कुछ हद तक नफरत करने लगी और इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे कहा कि मैं पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हूँ।

मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जो लोग सत्य को अभ्‍यास में लाने में सक्षम हैं, वे अपने कार्यों में परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की पड़ताल को स्वीकार करने पर तुम्‍हारा हृदय निष्कपट हो जाएगा। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही काम करते हो, और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहता हो और परमेश्वर की पड़ताल स्वीकार नहीं करते, तब भी क्या तुम्‍हारे हृदय में परमेश्वर है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीज़ों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्‍हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्‍हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्‍हारेतुम्‍हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्‍हें अच्‍छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्‍ठ दिया होगा। तुमतुम अपनी स्‍वार्थपूर्णइच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। भले ही तुम्‍हें अपने कर्तव्‍य में अच्छे परिणाम प्राप्त न हों, फिर भी तुम्‍हारा दिल निष्‍कपट हो गया होगा; अगर इसके अलावा, इसके ऊपर से, तुम अपने कर्तव्य में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य खोज सकते हो, तब तुम अपना कर्तव्‍य निर्वहन मानक स्तर का कर पाओगे और साथ ही, तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने अभ्यास का मार्ग दिखाया। अपने कर्तव्य करते हुए व्यक्ति को निजी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को छोड़ देना चाहिए और हर चीज में परमेश्वर के घर के कार्य को सबसे आगे रखना चाहिए। उदाहरण के लिए ली यान की सिफारिश करने के मामले को ही ले लें। चूँकि बहन पदोन्नति और विकसित होने के लिए परमेश्वर के घर की शर्तें पूरी करती थी, इसलिए मुझे उसकी सिफारिश करनी चाहिए थी और उसे एक उपयुक्त पद पर बेहतर अभ्यास करने देना चाहिए था, जिससे कलीसिया के कार्य को भी लाभ होता। इस एहसास के साथ मैं ली यान की सिफारिश करने के लिए तैयार थी और मैंने अपने काम के खराब नतीजों के कारण अपनी इज्जत गँवाने के बारे में और नहीं सोचा। मैं केवल प्रार्थना करना और परमेश्वर पर ज्यादा भरोसा करना चाहती थी और अपनी पूरी क्षमता से कलीसिया के कार्य को आगे बढ़ाना चाहती थी।

कुछ ही समय बाद ली यान का तबादला हो गया और मैंने वह काम सँभाल लिया जिसकी जिम्मेदारी अब तक उसके पास थी। इससे पहले मैंने शायद ही कभी उस काम में भाग लिया था जिसकी जिम्मेदारी उसके पास थी। जब मैंने देखा कि सफाई के काम में कई सिद्धांतों का जिक्र होता है और अगर मैंने इन सिद्धांतों में महारत हासिल नहीं की तो इससे कार्य में देरी होगी, तो मुझे इससे थोड़ा तनाव महसूस हुआ। उसी समय मुझे परमेश्वर का यह कथन याद आया कि व्यक्ति को अपना कर्तव्य पूरे दिल, ताकत और मन से करना चाहिए। मुझे अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिए और वह सब करना चाहिए जो मैं करने में सक्षम हूँ। बाद में जब भाई-बहन लोगों को हटाने के लिए सामग्री छाँट रहे थे तो कई भटकाव और समस्याएँ सामने आईं। इसलिए मैंने हर एक के साथ सिद्धांतों पर संगति की और उनका अध्ययन किया, जो कुछ भी मुझे समझ में नहीं आया उसके लिए मार्गदर्शन माँगा और धीरे-धीरे मुझे सिद्धांतों की कुछ समझ प्राप्त हुई। जब मैंने सहयोग करने के प्रति सही मानसिकता अपनाई, तो यह वास्तव में उतना कठिन नहीं था जितना मैंने सोच रखा था। मुझे याद आया कि इससे पहले जब ली यान यहाँ थी तो उसी ने भाई-बहनों के साथ संगति करके उनकी कई समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान किया था, इसलिए मुझ पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी। ली यान के चले जाने के बाद मैं परमेश्वर पर अधिकाधिक निर्भर हो गई थी और पहले से कुछ अधिक जिम्मेदारी भी थी।

मैंने परिवेशों की व्यावहारिक व्यवस्था के लिए परमेश्वर का धन्यवाद किया, जिसकी वजह से मैं अपने स्वार्थी और घृणित प्रकृति सार की कुछ समझ रख पाई थी। साथ ही मुझे यह भी एहसास हुआ कि जब भी कलीसिया को काम में सहयोग करने के लिए लोगों की आवश्यकता होती है तो हमें वे सक्रिय रूप से प्रदान करने चाहिए और उनकी सिफारिश करनी चाहिए और हमें अपने हितों के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि कलीसिया के समग्र कार्य पर विचार करना चाहिए। यह कलीसिया के कार्य की रक्षा करना है और यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। जब मैंने अपने हितों को अलग रखा और अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी उठाई तो मैं अपने कर्तव्य की कुछ कठिनाइयों को हल करने में भी सक्षम हो पाई और मैंने परमेश्वर की अगुआई देखी। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे सहजता और दिल में शांति महसूस हुई।

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