68. मुझे प्रसिद्धि और रुतबे के लिए कर्तव्य नहीं निभाना चाहिए

झाओ यांग, चीन

अक्टूबर 2023 में एक दिन अगुआ ने मुझे एक पृष्ठभूमि छवि बनाने के लिए कहा। जब मैंने देखा कि छवि में ऊँचे दर्जे की जरूरतें हैं, तो मुझे चिंता हुई कि मैं इसे ठीक से नहीं बना पाऊँगी और चीजों में देरी करूँगी, इसलिए इसे बनाते समय मैंने ढिलाई बरतने की हिम्मत नहीं की। मैंने संबंधित सिद्धांतों की सावधानीपूर्वक समीक्षा की और जब भी मुझे कठिनाइयाँ आईं, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। एक हफ्ते बाद पृष्ठभूमि छवि पूरी हो गई। इसे जाँचने के बाद अगुआ ने केवल कुछ छोटी-मोटी बातों की ओर इंगित किया और कहा कि छवि बहुत अच्छी बनी है। मैं बहुत खुश थी और सोचा कि कैसे मुझे इतनी मुश्किल छवि इतनी जल्दी पूरा करने की उम्मीद नहीं थी, कैसे अगुआ निश्चित रूप से सोचेंगे कि मैं तकनीकी रूप से कुशल और जिम्मेदार हूँ, मुझमें अपने कर्तव्यों में जिम्मेदारी की समझ है और मैं सौंपे गए कार्यों को व्यावहारिक तरीके से पूरा कर सकती हूँ। इसके बाद अगुआ ने मुझे दो और पृष्ठभूमि छवियाँ बनाने को कहा, उन्हें भी मैंने ठीक-ठाक समय में पूरा कर लिया। इनके नतीजे भी काफी अच्छे थे। मैंने आत्म-संतुष्टि महसूस करनी शुरू कर दी, मैं सोचने लगी, “पिछले महीने मेरे कर्तव्य के नतीजे इतने अच्छे नहीं थे, लेकिन अगुआ के साथ संगति करने के बाद मेरी छवियों की गुणवत्ता में तुरंत सुधार हुआ और मेरी कार्यकुशलता में वृद्धि हुई, इसलिए अब अगुआ के मन में मेरी छवि बेहतर होनी चाहिए।” इसके तुरंत बाद मेरे लिखे अनुभवजन्य गवाही लेख और सुसमाचार संबंधी धर्मोपदेश भी चुने गए। मैं बहुत खुश होकर सोचने लगी, “ऐसा लगता है कि मुझे न केवल अपनी छवियों के साथ अच्छे नतीजे मिल रहे हैं, बल्कि मेरे पास कुछ सत्य वास्तविकताएँ भी हैं। अगर मुझे जानने वाले भाई-बहनों को पता चल जाए, तो वे मुझे निश्चित रूप से एक नई रोशनी में देखेंगे। मेरे बारे में अगुआ का मूल्यांकन भी काफी बेहतर हो जाएगा।” भले ही मैं खुलकर दिखावा करती नहीं दिख रही थी, लेकिन मेरे भीतर श्रेष्ठता की भावना बनी हुई थी, ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा मूल्य अचानक बढ़ गया है।

एक बार मेरे साथ सहयोग करने वाली एक बहन ने कहा, “तुम्हारी कार्य क्षमताओं के साथ तुम्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए, लेकिन यहाँ के काम में तुम्हारी अधिक जरूरत है और तुम जो कर्तव्य कर रही हो, वह ऐसा नहीं है जिसे कोई भी तुम्हारी जगह कर सके।” यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई, मानो मुझे प्रभामंडल का ताज पहना दिया गया हो, मैंने सोचा, “भले ही मैं अगुआ नहीं हूँ, फिर भी भाई-बहनों के दिलों में मेरी कुछ जगह है।” श्रेष्ठता की इस भावना का आनंद लेने के दौरान ही मैंने अचानक सोचा, “अगर मेरी अगली छवि न चुनी गई, तो क्या भाई-बहन मुझे तब भी सम्मान देंगे?” मुझे इतनी चिंता हुई कि मैं बयाँ नहीं कर सकती, मैंने सोचा कि मेरे कर्तव्यों के नतीजे केवल ऊपर जा सकते हैं, नीचे नहीं, क्योंकि अगर वे फिसले तो मेरा प्रभामंडल गायब हो जाएगा। मैंने खुद से कहा, “मुझे कड़ी मेहनत करते रहना है, इस महीने की छवि का चयन होना ही चाहिए और मुझे मूल्यवान अनुभवजन्य गवाहियाँ लिखना जारी रखना होगा। इसी तरह मैं अपना मौजूदा प्रभामंडल बनाए रख सकती हूँ।” उसके बाद मैंने जो कुछ भी किया, मैं लगातार यह सोचती रही कि अगुआ को कैसे संतुष्ट करूँ और भाई-बहनों का उच्च सम्मान कैसे पाऊँ। एक बार अगुआ ने काम की प्रगति और भाई-बहनों के कर्तव्य निर्वहन के बारे में पूछताछ करने के लिए लिखा और जब मुझे एहसास हुआ कि मैं उनके काम से परिचित नहीं हूँ, तो मैंने तुरंत अपना कर्तव्य छोड़ दिया ताकि इसका पता लगा सकूँ और अगुआ को लगे कि मुझमें जिम्मेदारी की भावना है और मैं एक जिम्मेदार इंसान हूँ। अगुआ ने मुझसे पूछा कि मैंने हाल ही में कोई धर्मोपदेश क्यों नहीं लिखा और मैंने सोचा, “मुझे जल्दी से कुछ लिखने के लिए समय निकालना चाहिए। अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो क्या अगुआ सोचेगी कि मुझमें पहले जैसी जिम्मेदारी की भावना नहीं है? क्या इससे उसकी नजर में मेरी अच्छी छवि खराब नहीं हो जाएगी?” उस दौरान मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि मेरे पास पर्याप्त समय नहीं है और मुझे हमेशा चिंता रहती थी कि अगर मैंने अगुआ की अपेक्षाएँ समय पर पूरी न कीं, तो वह मेरे बारे में बुरा सोचेगी। मैं हर दिन व्यस्त रहती थी और मेरी भक्ति अनियमित हो गई थी और कभी-कभी व्यस्त दिन के बाद मैं अपने स्वयं के भ्रष्ट खुलासों को भी नहीं देख पाती थी या यह नहीं जानती थी कि मुझे कौन-से सबक सीखने चाहिए। छवियाँ बनाते समय मुझे इसकी चिंता रहती थी कि अगर मौजूदा छवि पिछली छवियों जैसी न बनी तो मैं क्या करूँगी। कभी-कभी बेहतर नतीजे पाने के लिए मैं खुद उलझ जाती, लंबे समय तक सोचती रहती और फिर भी कोई निर्णय नहीं ले पाती थी। समय के साथ छवियाँ बनाते समय मेरी सोच कम स्पष्ट होती गई और मैं हैरान हो जाती, सोचती कि मेरा कर्तव्य करना इतना मुश्किल क्यों हो गया है। मेरा दिमाग पहले जैसा तेज क्यों नहीं रहा?

एक सभा के बाद मैंने एक बहन से अपनी दशा के बारे में बात की। बहन के याद दिलाने पर मैंने विचार किया तो मुझे महसूस हुआ कि इस दौरान मैं लगातार डरती रही थी कि कहीं मेरे कर्तव्य की प्रभावशीलता कम तो नहीं हो जाएगी, मैं चिंतित रहती थी कि भाई-बहनों के दिलों में बनी मेरी अच्छी छवि कहीं बिगड़ न जाए, इसलिए मैं अपना प्रभामंडल बनाए रखने की कोशिश करती रहती थी। मुझे याद आया कि परमेश्वर ने ऐसी दशाएँ उजागर की थीं, इसलिए मैंने पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचन खोजे। परमेश्वर कहता है : “लौकिक दुनिया में एक निश्चित क्षेत्र में कुछ सफलता प्राप्त कर प्रसिद्ध होने वाले बहुत-से लोगों के दिमाग पर प्रसिद्धि और लाभ का नशा छा जाता है, और वे खुद को महान समझने लगते हैं। असल में तुम्हें दूसरे लोग जो आदर, प्रशंसा, समर्थन और मान्यता देते हैं, वे केवल अस्थायी सम्मान हैं। वे जीवन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, न ही उनका जरा सा भी अर्थ यह है कि व्यक्ति सही मार्ग पर चल रहा है। वे अस्थायी सम्मान और यश से ज्यादा कुछ नहीं हैं। ये यश क्या हैं? ये वास्तविक हैं या खोखले? (खोखले।) ये टूटते तारों की तरह हैं, ये पलभर के लिए चमक बिखेरकर गायब हो जाते हैं। ऐसा यश, सम्मान, वाहवाही, ख्याति और प्रशंसा प्राप्त करने के बाद भी लोगों को वास्तविक जीवन में वापस लौटना होगा और वैसे जीना होगा जैसे उन्‍हें जीना चाहिए। कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते और चाहते हैं कि ये चीजें हमेशा उनके साथ रहें, जो कि अव्‍यावहारिक है। ऐसे वातावरण और माहौल में रहने से जैसा अनुभव होता है, उसके कारण लोग इसमें रहना चाहते हैं; वे हमेशा इस भाव का आनंद लेना चाहते हैं। यदि वे इसका आनंद नहीं उठा पाते हैं, तो वे गलत रास्ते पर चलने लगते हैं। कुछ लोग खुद को भुलाने के लिए मदिरापान और नशीली दवाओं का सेवन करने जैसे विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं : शैतान की दुनिया में रहने वाले इंसानों का प्रसिद्धि और लाभ को लेकर ऐसा ही रुख होता है। एक बार जब कोई व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है और थोड़ा यश प्राप्त कर लेता है, तो उसके दिशा खोने की आशंका रहती है और वह नहीं जानता कि उसे कैसे कार्य करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। वह आसमान में उड़ने लगता है और जमीन पर नहीं आ पाता—यह खतरनाक है। क्या तुम लोग कभी ऐसी स्थिति में रहे हो या क्‍या तुमने कभी ऐसा व्यवहार प्रदर्शित किया है? (बिल्कुल।) इसका क्या कारण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों का स्वभाव भ्रष्ट है : वे बहुत घमंडी और अहंकारी हैं, वे प्रलोभन या प्रशंसा नहीं झेल सकते, और वे सत्य का अनुसरण नहीं करते या इसे समझते नहीं हैं। वे सोचते हैं कि वे अपनी केवल एक छोटी-सी उपलब्धि या यश के कारण अद्वितीय हैं; उन्हें लगता है कि वे एक महान व्यक्ति या महानायक बन गए हैं। वे सोचते हैं कि इस सारी प्रसिद्धि, लाभ और यश के सामने खुद को महान न समझना एक अपराध होगा। जो लोग सत्य को नहीं समझते, उनकी कभी भी और कहीं भी अपने बारे में ऊँची राय रखने की संभावना होती है। जब वे अपने बारे में बहुत ऊँची राय रखने लगते हैं, तो क्या उनके लिए फिर से धरातल पर आना आसान होता है? (नहीं।) थोड़ी-सी भी समझ रखने वाले लोग अपने बारे में अकारण ऊँची राय नहीं रखते। जब तक उन्होंने कुछ हासिल नहीं किया होता, देने के लिए उनके पास कुछ नहीं होता, और समूह में कोई उन पर ध्यान नहीं देता, वे चाहकर भी अपने बारे में ऊँची राय नहीं रख सकते। वे थोड़े अहंकारी और आत्ममुग्ध हो सकते हैं, या उन्‍हें लग सकता है कि वे कुछ हद तक प्रतिभाशाली और दूसरों से बेहतर हैं, लेकिन उनकी अपने बारे में ऊँची राय रखने की संभावना नहीं होती। लोग किन परिस्थितियों में अपने बारे में ऊँची राय रखते हैं? जब दूसरे लोग किसी उपलब्धि के लिए उनकी तारीफ करते हैं। वे सोचते हैं कि वे दूसरों से बेहतर हैं, अन्य लोग साधारण और मामूली हैं, केवल वे ही रुतबे वाले हैं और अन्य लोगों वाले वर्ग या स्तर के न होकर उनसे ऊँचे हैं। ऐसे वे अहंकारी हो जाते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश को पढ़ने के बाद मेरा विश्वास दृढ़ हुआ कि यह मेरी ही दशा का वर्णन कर रहा था। परमेश्वर कहता है कि जब लोग कुछ सफलता या कुछ प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, तो वे सम्मान और प्रभामंडल का आनंद लेना शुरू कर देते हैं और वे इसे बनाए रखना चाहते हैं और हमेशा दूसरों द्वारा आदर से देखे जाने की भावना का आनंद लेना चाहते हैं। शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद लोग प्रसिद्धि और रुतबे को इसी तरह देखते हैं। इसने मुझे अविश्वासियों की दुनिया की कई मशहूर हस्तियों के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया, जो प्रसिद्ध होने के बाद अपनी छवि गढ़ने और खुद को विशिष्ट दिखाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, ताकि दूसरों से अधिक तारीफ और प्रशंसा प्राप्त कर सकें। क्या मैं बिल्कुल वैसी ही नहीं थी? जब मेरे बनाए चित्रों और लेखों का चयन हुआ और मेरे आसपास के अगुआ और भाई-बहनों ने मेरी प्रशंसा की, तब से मैं बहुत घमंडी महसूस करने लगी और मेरा मूल्य अचानक बढ़ गया, मानो मैं एक मशहूर हस्ती बन गई हूँ, भीड़ से अलग हूँ और मैं भाई-बहनों से इस सराहना और प्रशंसा का आनंद लेने लगी। मुझे यह भी चिंता हुई कि अगर मैं अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाती रही, तो भाई-बहनों की नजरों में मेरी अच्छी छवि खत्म हो जाएगी। इस सम्मान और प्रभामंडल को बचाने के लिए मैं लगातार इस बारे में सोचती रहती थी कि अपने कर्तव्यों में अगुआ की प्रशंसा कैसे प्राप्त करूँ। मैं पूरी तरह से प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भाग रही थी और परमेश्वर के प्रतिरोध के मार्ग पर चल रही थी। कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि मैं परमेश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त नहीं कर पाई और मेरा मन स्पष्ट नहीं था क्योंकि यह साफ था कि मैं गलत मार्ग पर थी। मेरा दिल बहुत पहले ही परमेश्वर से दूर चला गया था, जिसके कारण परमेश्वर मुझसे घृणा करता था और मुझसे अपना चेहरा छिपाता था।

बाद में मैंने अपनी समस्याओं पर चिंतन करना जारी रखा। मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “शैतान एक बहुत ही सौम्य किस्म का तरीका चुनता है, ऐसा तरीका जो मनुष्य की धारणाओं से बहुत अधिक मेल खाता है; जो बिल्कुल भी क्रांतिकारी नहीं है, जिसके जरिये वह लोगों से अनजाने ही जीने का अपना मार्ग, जीने के अपने नियम स्वीकार करवाता है, और जीवन के लक्ष्य और जीवन में उनकी दिशा स्थापित करवाता है, और वे अनजाने ही जीवन में महत्‍वाकांक्षाएँ भी पालने लगते हैं। जीवन की ये महत्‍वाकांक्षाएँ चाहे जितनी भी ऊँची क्यों न प्रतीत होती हों, वे ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं। कोई भी महान या प्रसिद्ध व्यक्ति—वास्तव में सभी लोग—जीवन में जिस भी चीज का अनुसरण करते हैं, वह केवल इन दो शब्दों : ‘प्रसिद्धि’ और ‘लाभ’ से जुड़ी होती है। लोग सोचते हैं कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए, तो वे ऊँचे रुतबे और अपार धन-संपत्ति का आनंद लेने के लिए, और जीवन का आनंद लेने के लिए इन चीजों का लाभ उठा सकते हैं। उन्हें लगता है कि प्रसिद्धि और लाभ एक प्रकार की पूँजी है, जिसका उपयोग वे भोग-विलास का जीवन और देह का प्रचंड आनंद प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर, जिसके लिए मनुष्‍य इतना ललचाता है, लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीर, मन, वह सब जो उनके पास है, अपना भविष्य और अपनी नियति शैतान को सौंप देते हैं। वे ईमानदारी से और एक पल की भी हिचकिचाहट के बगैर ऐसा करते हैं, और सौंपा गया अपना सब-कुछ वापस प्राप्त करने की आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान रहते हैं। लोग जब इस प्रकार शैतान की शरण ले लेते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं, तो क्या वे खुद पर कोई नियंत्रण बनाए रख सकते हैं? कदापि नहीं। वे पूरी तरह से शैतान द्वारा नियंत्रित होते हैं, सर्वथा दलदल में धँस जाते हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ रहते हैं। जब कोई प्रसिद्धि और लाभ के दलदल में फँस जाता है, तो फिर वह उसकी खोज नहीं करता जो उजला है, जो न्यायोचित है, या वे चीजें नहीं खोजता जो खूबसूरत और अच्छी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रसिद्धि और लाभ की जो मोहक शक्ति लोगों के ऊपर हावी है, वह बहुत बड़ी है, वे लोगों के लिए जीवन भर, यहाँ तक कि अनंतकाल तक सतत अनुसरण की चीजें बन जाती हैं। क्या यह सत्य नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मैं आखिरकार उन तरीकों का भेद पहचानने लगी, जिनसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है। शैतान लोगों को लुभाने और भ्रष्ट करने के लिए मानवीय धारणाओं से मेल खाने वाले तरीके इस्तेमाल करता है, जिससे लोग जीवन के बारे में गलत दृष्टिकोण अपना लेते हैं और धीरे-धीरे दुष्टता के मार्ग पर चलने लगते हैं। “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है,” “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” और “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” जैसे विचार शैतान द्वारा लोगों में डाले जाते हैं, जिससे लोग श्रेष्ठ बनने की और दूसरों का सम्मान और प्रशंसा पाने वाला व्यक्ति बनने की कोशिश करते हैं। मनुष्यों को यह उनकी धारणाओं के अनुरूप प्रतीत होता है क्योंकि प्रतिष्ठा और रुतबे के साथ व्यक्ति दूसरों की प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सकता है और वह जहाँ भी जाता है, उसका समर्थन होता है और पक्ष लिया जाता है, जो ऐसी चीजें हैं जो व्यक्ति के अहंकार को बहुत संतुष्ट करती हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए लोग कड़ी मेहनत करते हैं और संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, धोखा देते हैं और षडयंत्र करते हैं और जी-जान से लड़ते हैं। शैतान लोगों को भ्रष्ट करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है, उन्हें कदम-दर-कदम पाप की खाई में धकेलता है। मैंने अपने व्यवहार पर आत्म-चिंतन किया। जब से मेरे काम ने हाल ही में कुछ नतीजे दिखाए और मुझे अगुआ और भाई-बहनों से प्रशंसा मिली, मैंने सोचा कि मुझमें जिम्मेदारी और सत्य वास्तविकताओं की समझ है और मैं दूसरों से मिलने वाले सम्मान और प्रशंसा का आनंद लेने लगी, मुझे उम्मीद थी कि यह सम्मान और प्रभामंडल हमेशा के लिए रहेगा। साथ ही मुझे डर था कि अगर किसी दिन मेरे कर्तव्यों में मेरी प्रभावशीलता कम हो गई, तो यह सम्मान और प्रभामंडल गायब हो जाएगा और इसलिए मैंने दूसरों को दिखाने के लिए अपने कर्तव्य करने शुरू कर दिए। मेरे दिल में परमेश्वर के लिए काफी पहले से ही जगह नहीं थी और मैं केवल यही सोचती थी कि दूसरों से अपना सम्मान कैसे कराया जाए। चाहे वह तकनीकें सीखना हो या चित्र बनाना, मैंने जो कुछ भी किया वह भाई-बहनों को यह दिखाने के लिए था कि मैं जिम्मेदार हूँ और मुझमें अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की भावना है और इस तरह उनके दिलों में मेरा रुतबा बना रहे। मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “यदि, अपने मन में, तुम अभी भी प्रतिष्ठा और रुतबे पर नजरें गड़ाए हो, अभी भी दिखावा करने और दूसरों से अपनी प्रशंसा करवाने में जुटे हो, तो तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो, और तुम गलत रास्ते पर चल रहे हो। तुम जिसका अनुसरण करते हो, वह सत्य नहीं है, न ही यह जीवन है, बल्कि वो चीजें हैं जिनसे तुम प्रेम करते हो, वह शोहरत, लाभ और रुतबा है—ऐसे में, तुम जो कुछ भी करोगे उसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, यह सब कुकर्म और श्रम करना है। अगर अपने दिल में तुम सत्य से प्रेम करते हो, हमेशा सत्य के लिए प्रयास करते हो, अगर तुम स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करते हो, परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण प्राप्त करने में सक्षम हो, और परमेश्वर का भय मान सकते हो और बुराई से दूर रह सकते हो, और अगर तुम अपने हर काम में खुद पर संयम रखते हो, और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकारने में सक्षम हो, तो तुम्हारी दशा बेहतर होती जाएगी, और तुम ऐसे व्यक्ति होगे जो परमेश्वर के सामने रहता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अच्छे व्यवहार का यह मतलब नहीं कि व्यक्ति का स्वभाव बदल गया है)। दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भागना शैतान का मार्ग है। सत्य का अनुसरण करना, परमेश्वर के सामने रहना और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करना मूल्य और अर्थ से युक्त जीवन जीने का तरीका है। मैंने उस समय के बारे में आत्म-चिंतन किया जब मैंने पहली बार वे चुनौतीपूर्ण पृष्ठभूमि चित्र बनाए थे। मैं अपना कर्तव्य अच्छे से करने पर ध्यान देती थी और जब भी मुझे मुश्किलें आती थीं, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती थी और मुझे लगता था कि मेरा दिल परमेश्वर के बहुत करीब है। लेकिन जब से मैंने प्रसिद्धि और रुतबे के लिए काम करना शुरू किया, मेरा दिल परमेश्वर से दूर होता चला गया और पूरे दिन मेरे विचार इस बारे में नहीं होते थे कि परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य कैसे अच्छी तरह करूँ, बल्कि ये होते थे कि दूसरों से अपनी प्रशंसा कैसे करवाऊँ और अपना रुतबा गिरने से कैसे बचाऊँ। नतीजतन, मेरे विचार और भी भ्रमित हो गए और न केवल मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने में विफल रही, बल्कि मेरे जीवन को भी नुकसान पहुँचा। प्रसिद्धि और लाभ शैतान द्वारा लोगों का नुकसान करने और उन्हें परमेश्वर से दूर ले जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले साधन हैं और वे मुझे केवल परमेश्वर का प्रतिरोध करने के मार्ग पर ले जाएँगे।

बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन खोजना और पढ़ना जारी रखा : “तुम रुतबे को इतना क्यों सँजोते हो? रुतबे से तुम्हें क्या फायदे मिल सकते हैं? अगर रुतबा तुम्हारे लिए आपदा, कठिनाइयाँ, शर्मिंदगी और दर्द लेकर आए, तो क्या तुम उसे फिर भी सँजोकर रखोगे? (नहीं।) रुतबा होने से बहुत सारे फायदे मिलते हैं, जैसे दूसरों की ईर्ष्या, आदर, सम्मान और चापलूसी, और साथ ही उनकी प्रशंसा और श्रद्धा मिलना। श्रेष्ठता और विशेषाधिकार की भावना भी होती है, जो रुतबे से तुम्हें मिलती है, जो तुम्हें गरिमा और खुद के योग्य होने का एहसास कराती है। इसके अलावा, तुम उन चीजों का भी आनंद ले सकते हो, जिनका दूसरे लोग आनंद नहीं लेते, जैसे कि रुतबे के लाभ और विशेष व्यवहार। ये वे चीजें हैं, जिनके बारे में तुम सोचने की भी हिम्मत नहीं करते, लेकिन जिनकी तुमने अपने सपनों में लालसा की है। क्या तुम इन चीजों को बहुमूल्य समझते हो? अगर रुतबा केवल खोखला है, जिसका कोई वास्तविक महत्व नहीं है, और उसका बचाव करने से कोई वास्तविक प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, तो क्या उसे बहुमूल्य समझना मूर्खता नहीं है? अगर तुम देह के हितों और भोगों जैसी चीजें छोड़ पाओ, तो प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा तुम्हारे पैरों की बेड़ियाँ नहीं बनेंगे। तो, रुतबे को बहुमूल्य समझने और उसके पीछे दौड़ने से संबंधित मुद्दे हल करने के लिए पहले क्या हल किया जाना चाहिए? पहले, बुराई और छल करने, छिपाने और ढंकने, और साथ ही रुतबे के फायदों का आनंद लेने के लिए परमेश्वर के घर द्वारा निरीक्षण, पूछताछ और जाँच-पड़ताल से मना करने की समस्या की प्रकृति समझो। क्या यह परमेश्वर का घोर प्रतिरोध और विरोध तो नहीं? अगर तुम रुतबे के फायदों के लालच की प्रकृति और नतीजे समझ पाओ, तो रुतबे के पीछे दौड़ने की समस्या हल हो जाएगी(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे समझ आया कि मैंने प्रसिद्धि और रुतबे का पीछा क्यों किया। मेरे यह करने का वास्तविक कारण रुतबे के फायदों का आनंद उठाना था और चूँकि मैं सोचती थी कि प्रसिद्धि और रुतबे से मुझे दूसरों से सम्मान और प्रतिष्ठा मिलेगी और मैं जहाँ भी जाऊँगी, भाई-बहन मुझे गंभीरता से लेंगे। जब से मेरी छवियाँ और लेख एक के बाद एक चुने जाने लगे और मैंने भाई-बहनों की आँखों में प्रशंसा और ईर्ष्या देखी, मुझे इस भावना से बहुत खुशी हुई और मुझे डर था कि अगर मेरी प्रभावशीलता कम हुई, तो फिर मैं इन चीजों का आनंद नहीं ले पाऊँगी। एक सृजित प्राणी के रूप में परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाना परमेश्वर का अनुग्रह होता है, लेकिन मैं इसका उपयोग रुतबे के फायदों का आनंद लेने में करना चाहती थी। यह सचमुच मेरी बेशर्मी थी! मुझे एहसास हुआ कि छवियाँ बनाने में मेरे काम की प्रभावशीलता परमेश्वर के प्रबोधन के कारण थी, यह कौशल परमेश्वर की ओर से एक उपहार था और ये नतीजे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के मार्गदर्शन और भाई-बहनों की मदद के कारण थे और मैंने देखा कि ये सभी चीजें परमेश्वर के मार्गदर्शन से अलग नहीं थीं। मेरे पास घमंड करने या प्रशंसा के लायक कुछ भी नहीं था। महज इसलिए कि मैं अपने कर्तव्य में कुछ प्रभावी थी, इसका मतलब यह नहीं था कि मेरी कीमत बढ़ गई थी, न ही इसका मतलब यह था कि मैं भ्रष्टता या कमियों से रहित थी। मैं अभी भी मैं ही थी, महज एक साधारण इंसान जिसमें कई कमियाँ थीं और मुझे इसे सही तरीके से देखना था। अगर मेरे कर्तव्य में समस्याएँ हैं, तो मुझे आत्म-चिंतन करना चाहिए, भटकावों का सारांश तैयार करना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए। मुझे अपनी कमियाँ उजागर करने या उनसे बचने से डरने की जरूरत नहीं है और उन्हें छिपाने के लिए मुझे निश्चित रूप से मानवीय तरीकों का उपयोग करने की जरूरत नहीं है। मुझे बस अपने पद के अनुसार आचरण करना चाहिए और अपने कर्तव्यों में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में अपना सब कुछ लगा देना चाहिए। इन चीजों को समझकर मुझे अपने अंदर सहजता और मुक्ति का एहसास हुआ और मुझे अब इसकी चिंता नहीं रही कि भाई-बहन मुझे कैसे देखते हैं। फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, इस परिवेश के जरिए मुझे बेनकाब करने के लिए तुम्हारा धन्यवाद, वरना मैं अपनी समस्याएँ नहीं पहचान पाती। अब मैं पश्चात्ताप करने, दूसरे मुझे किस नजर से देखते हैं इस पर ध्यान न देने, तुम्हारे सामने जीने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह करने के लिए तैयार हूँ। अगर मैं फिर से प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भागी, तो तुम्हारा अनुशासन मुझ पर आए ताकि मैं समय रहते अपने होश में आ जाऊँ।”

जनवरी 2024 की शुरुआत में अगुआ ने मेरे लिए एक चित्र को ठीक करने की व्यवस्था की। यह दूसरे भाई-बहनों का बनाया आधा-अधूरा चित्र था, जिसमें मुझे सुधार करने थे और मुझे यह सोचकर थोड़ी घबराहट महसूस हुई, “अगुआ इस व्यवस्था के लिए मुझ पर भरोसा कर रही है, इसलिए मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा और उसे निराश नहीं करना होगा।” मुझे उम्मीद थी कि मैं इसे एक बार में ही सही कर लूँगी ताकि अगुआ को दिखा सकूँ कि मुझमें अभी भी कुछ क्षमताएँ हैं। इस बिंदु पर मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा गलत थी और मैं अभी भी प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भाग रही थी, इसलिए अपने गलत इरादे के खिलाफ विद्रोह करने के लिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, परमेश्वर से अपने दिल की रक्षा करने और जिम्मेदारियाँ पूरी करने में मेरी मदद करने को कहा। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “परमेश्वर यह देखता है कि क्या तुम अपने पद के अनुरूप तरीके से आचरण करते हो और क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सृजित प्राणी के कर्तव्यों का निर्वहन अच्छी तरह से करता है। वह यह देखता है कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें दी गई अंतर्निहित परिस्थितियों के तहत, क्या तुम अपने कर्तव्य निर्वहन में अपना पूरा दिल और प्रयास लगाते हो और क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हो और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप परिणाम प्राप्त करते हो। अगर तुम इन सभी चीजों को पूरा कर पाते हो तो परमेश्वर तुम्हें पूरे अंक देता है। अगर तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार चीजें नहीं करते हो तो इस तथ्य के बावजूद कि हो सकता है तुम प्रयास करो और कार्य में लग जाओ लेकिन अगर तुम जो भी करते हो वह सब अपनी शान दिखाने और दिखावा करने के लिए है और तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने पूरे दिल और शक्ति से अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हो और न ही सत्य सिद्धांतों के अनुसार चीजें कर रहे हो, तो तुम्हारी अभिव्यक्तियाँ और तुम्हारे खुलासे, तुम्हारा व्यवहार परमेश्वर को घिनौना लगता है। परमेश्वर उनसे नफरत क्यों करता है? परमेश्वर कहता है कि तुम उचित कार्यों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हो, तुमने अपने कर्तव्य निर्वहन में अपना पूरा दिल, शक्ति या मन नहीं लगाया है और तुम सही मार्ग पर नहीं चल रहे हो(वचन, खंड 7, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (3))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि मुझे उन सिद्धांतों के अनुसार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए जिन्हें मैं समझती हूँ। अगर मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती हूँ और फिर भी भटकाव होते हैं, तो अगुआ द्वारा मेरी कमियाँ बताना मेरी मदद करने का उनका तरीका है और मुझे उन्हें सुधारना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखकर अब मुझे घबराहट नहीं हुई और मैंने ध्यान से सोचा कि छवि के साथ सबसे अच्छा प्रभाव कैसे पैदा किया जाए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और जब भी कुछ ऐसा हुआ जो मुझे समझ में नहीं आया, तो मैंने जानकारी खोजी और जल्द ही छवि पूरी हो गई। कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि छवि को चुन लिया गया था और मैंने अपने दिल की गहराई से परमेश्वर का धन्यवाद किया। मुझमें यह बदलाव परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन का ही नतीजा था।

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