19 राज्य के नज़ारे लगते हैं नये सदा
1
धुंधले आसमान से चमकता है उगता सूरज पूरब में,
लौट आया है साकार रूप लेकर
इस जगत में मुक्तिदाता।
राज्य-जीवन को अंगीकार कर रही है दुनिया,
जीवंत हो उठी है हर चीज़।
आह! अब हो गया है सवेरा।
आह! हमारी नज़रों के सामने है रोशनी।
साकार हुई हैं उम्मीदें दो हज़ार सालों की।
बीत चुके हैं मायूसी के बरस, गुज़र चुके हैं ग़मों के दिन-रात।
हालेल्लुया! हालेल्लुया!
2
फूल खिलकर बिखेरते हैं मधुर ख़ुश्बू,
चक्रवाक गाते हैं ऊंचे सुरों में।
मानव पुत्र के आगमन के ऐलान और गवाही से,
परमेश्वर-जन अपने जज़्बात का इज़हार करते हैं,
कहते हैं खुलकर अपने मन की बात, एक होकर सभी।
प्रार्थना करो श्रद्धा से! गाओ सब ऊँचे सुर में!
नमन करो सिंहासन को सभी।
स्तुति कर रहे हैं हम परमेश्वर की। सुदूर देशों के हमारे भाई-बहनो,
दूर के हमारे परिजनो, आओ उत्सव मनाएं।
हालेल्लुया! हालेल्लुया!
3
सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम मसीह ने किया है देहधारण
और कर रहा है कार्य अपना, बीच इंसानों के।
इंसान का न्याय करने के लिये सत्य व्यक्त करता है वो,
शुद्ध और पूर्ण करते हैं जन-समूह को उसके वचन।
पोषण देते हैं हमारे दिल को,
आपूर्ति देते हमारे जीवन को परमेश्वर के वचन,
धन्य हैं हम, मधुर हैं हम।
ख़ुशकिस्मत है पीढ़ी हमारी जो आ गई है शरण में परमेश्वर की
और यही है प्रेम परमेश्वर का।
हालेल्लुया! हालेल्लुया!
4
राज्य के युग में प्रवेश पाने को, तरसते हैं हम।
उसके न्याय का अनुभव करके, बचा लिये और जीत लिये गए हैं हम।
आभारी हैं बहुत हम परमेश्वर के, उसकी स्तुति करते हैं हम।
पूरी सामर्थ्य से आगे बढ़ें हम।
पूरी शक्ति से करें संघर्ष हम,
परमेश्वर की इच्छा को पूरा करके।
पतरस का जोश आत्मा, संघर्ष करने को
और अब सच्चा इंसानी जीवन जीने के लिये,
परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने को संकल्पित हम।
हालेल्लुया! हालेल्लुया! हालेल्लुया!