473 केवल सत्य ही इंसान के दिल को सुकून दे सकता है
परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप सत्य हैं।
अनमोल भौतिक वस्तुओं से भी
इनका मूल्य न आँका जा सके,
क्योंकि ये वस्तु नहीं,
और ये हर दिल की ज़रूरतें पूरी करें।
1
ईश्वर द्वारा उद्धार और अपने स्वभाव में बदलाव
पाने का प्रयास करते हुए,
गर तुम सत्य, ईश्वर का स्वभाव
और उसकी इच्छा नहीं समझते,
क्या इससे तुम अशांत नहीं होगे?
क्या तुम्हारा दिल भूखा-प्यासा न होगा?
क्या तुम्हारे दिल में न होगी बेचैनी?
दिल की वो भूख कैसे मिटाओगे?
लोगों के जीवन में सत्य होना ही चाहिए।
इसके बिना उनका काम न चलेगा।
यह है सबसे महान चीज़।
भले ही इसे तुम देख या छू न पाओ,
पर इसकी महत्ता नकार नहीं सकते।
यही है वो चीज़ जो तुम्हारे
दिल को विश्राम दे सके।
2
जब तुममें ईश-प्रबोधन पाने की
इच्छा प्रबल हो, ताकि जान सको तुम
उसकी इच्छा और सत्य,
तो तुम्हें भोजन, दया भरे शब्दों या शरीर
के सुखों की ज़रूरत नहीं।
तुम्हें तो चाहिए निर्देश ईश्वर के।
तुम्हें ज़रूरत है कि वो तुम्हें बताए
क्या करना है, कैसे करना है,
और स्पष्टता से बताए सत्य क्या है।
जो तुम थोड़ा-भी समझ पाओ,
तो क्या अच्छा खाना खाने से ज़्यादा
संतुष्टि न महसूस करोगे?
जब तुम्हारा तृप्त हो दिल,
तो क्या पूरा अस्तित्व न सच्चा विश्राम पाये?
लोगों के जीवन में सत्य होना ही चाहिए।
इसके बिना उनका काम न चलेगा।
यह है सबसे महान चीज़।
भले ही इसे तुम देख या छू न पाओ,
पर इसकी महत्ता नकार नहीं सकते।
यही है वो चीज़ जो तुम्हारे
दिल को विश्राम दे सके।
3
जो आए ईश्वर से, उसका स्वरूप
और उसका सब कुछ हैं महान अन्य सभी चीज़ों से,
उस चीज़ या इंसान से भी अधिक
जिसे तुम सबसे ज़्यादा कभी थे सँजोते।
अगर तुम ईश्वर के मुख से वचन न पा सको,
उसकी इच्छा न समझ सको,
तो तुम कभी भी विश्राम न पा सकोगे।
जो भी ईश्वर करे, वो सत्य और जीवन है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित