प्रश्न 3: जब से हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अध्ययन शुरू किया है, धार्मिक पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अधिक व्यग्रता से निंदा करने लगे हैं, हमें सच्चे मार्ग का अध्ययन करने से रोकने के लिए जो भी हो सके सब करते हुए। यहूदी फरीसियों ने प्रभु यीशु का जैसा विरोध और निंदा की थी, उससे बिल्कुल भी अलग नहीं! इन दिनों मैं सोचता रहा हूँ कि, परमेश्वर ने कार्य करने के लिए दो बार देहधारण क्यों किया, और दो बार धार्मिक समुदाय और नास्तिक सरकार द्वारा सामूहिक निंदा और उत्पीड़न क्यों झेला? अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए, बोल कर और कार्य कर सत्य व्यक्त करने के लिए प्रकट होते और कार्य करते हैं। धार्मिक समुदाय और चीन की कम्युनिस्ट सरकार मसीह के विरुद्ध इतनी विद्वेषपूर्ण क्यों है कि वे मसीह की निंदा और तिरस्‍कार और ईशनिंदा करने, उनको घेरने और नष्ट कर देने के लिए मीडिया कंपनियों और सशक्त पुलिस बल तक को जुटा लेते हैं? यह मुझे याद दिलाता है कि जब राजा हेरोदस ने सुना कि यहूदियों के राजा यानी प्रभु यीशु का जन्म हुआ है, तब उसने बैतलहम में दो वर्ष से छोटे सभी नर शिशुओं की हत्या का आदेश दे दिया। उन्हें मसीह को छोड़ने की बजाय हज़ारों मासूम बच्चों की हत्या अधिक जंच रही थी। जब परमेश्वर मानवजाति के उद्धार के लिए देहधारी हुए, तो धार्मिक समुदाय और सरकार ने उनके आने का स्वागत क्यों नहीं किया, लेकिन व्यग्रता के साथ परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा की और उनको गाली दी? उन्होंने किसी भी कीमत पर मसीह को सूली पर चढ़ा देने के लिए पूरे देश के संसाधनों को क्यों जाया कर दिया? मानवजाति क्यों इतनी दुष्ट और विद्वेषपूर्ण ढंग से परमेश्वर के विरुद्ध है?

उत्तर: सवाल बहुत अहम है, और पूरी मानवजाति में बहुत थोड़े-से लोग इस बात को अच्छी तरह समझ सकते हैं! मानवजाति इतने अंधाधुंध तरीके से परमेश्वर की अवज्ञा क्यों करती है, यह अब सुर्ख़ियों में है, और देहधारी मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने की ऐतिहासिक त्रासदी फिर दोहराई जा रही है; यह एक तथ्य है। प्रभु यीशु ने कहा था: "और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए" (यूहन्ना 3:19-20)। "यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा" (यूहन्ना 15:18)। "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। और 1 यूहन्ना 5:19 में कहा गया है "और सारा संसार उस दुष्‍ट के वश में पड़ा है।" मानवजाति की करनी और मसीह के प्रति उनका रवैया यह साबित करने के लिए काफी है कि संपूर्ण संसार शैतान के कब्जे और उसकी शक्ति में है। आजकल, हममें से ज़्यादातर लोग साफ़ देख सकते हैं कि धार्मिक संसार के अधिकतर पादरी और एल्डर्स मसीह की अवज्ञा, निंदा करने वाले और उनको नकारने वाले लोग हैं, और धार्मिक संसार बहुत समय पहले ही इन पाखंडी फरीसियों और मसीह-विरोधियों के कब्जे में आ गया था। इसलिए, जब देहधारी परमेश्वर प्रकट हो कर कार्य करते हैं, तब धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर्स उठ कर निंदा करने और अवज्ञा करने वाले पहले लोग होते हैं—यह अवश्यंभावी है। सीसीपी सरकार एक शैतानी शासन है जो सत्य से सबसे अधिक घृणा करती है और परमेश्वर की अवज्ञा करती है, और यह हमेशा से ईसाइयों को गिरफ्तार कर उनका उत्पीड़न करती रही है। जब अंत के दिनों के मसीह चीन में प्रकट हो कर अपना कार्य करने आये, सीसीपी सरकार ने मसीह का पीछा करने, घेरने और ख़त्म करने का बेशर्मी और बर्बरता से प्रयास किया, जिससे पूरी दुनिया में सनसनी-सी फ़ैल गयी। इस सच ने प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरी तरह साकार किया: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। परमेश्वर मानवजाति को पापमुक्त करने और उसकी रक्षा करने के लिए, मनुष्य के बीच बोलने और कार्य करने के लिए दो बार देहधारी हुए, और दोनों बार धार्मिक नेताओं और सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा की गयी संयुक्त तिरस्‍कार, ईश-निंदा, पीछा करने और दमन को सहा; यह तथ्य यह साबित करने के लिए काफी है कि यह दुनिया कितनी दुष्ट और बुरी है और मानवजाति कितनी गहराई से भ्रष्ट हो चुकी है! मानवजाति इस कदर भ्रष्ट और विकृत हो चुकी है कि वे सत्य से ऊब चुके हैं, सत्य से घृणा करते हैं, दुष्टता को ऊंचा स्थान देते हैं, और स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करते हैं, शैतान जैसे और शैतान की संतान बन जाते हैं, परमेश्वर के अस्तित्व को बिल्कुल न सह सकने वाले। इसलिए देहधारी परमेश्वर की अभिव्यक्ति और कार्य को अनिवार्य रूप से उत्पीड़न और त्याग दिये जाने की पीड़ा सहनी होगी। मानवजाति किस कारण से परमेश्वर की अवज्ञा करती है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य के इस पहलू को प्रकाशित किया है, और इस बारे में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अनेक अंशों को पढ़ने के बाद यह हमारे सामने स्पष्ट हो जाएगा।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "आज मानवजाति जहाँ है, वहाँ तक पहुँचने के लिए उसे इतिहास के दसियों हज़ार साल लग गए हैं, फिर भी, जिस मानवजाति की सृष्टि मैंने आरंभ में की थी वह बहुत पहले ही अधोगति में डूब गई है। जिस मनुष्य की मैंने कामना की थी अब मनुष्य वैसा नहीं रह गया है, और इस प्रकार मेरी नज़रों में, लोग अब मानवजाति कहलाने योग्य नहीं हैं। बल्कि वे मानवजाति के मैल हैं, जिन्हें शैतान ने बंदी बना लिया है, वे चलती-फिरती सड़ी हुई लाशें हैं जिनमें शैतान बसा हुआ है और जिनसे शैतान स्वयं को आवृत करता है। लोगों को मेरे अस्तित्व में थोड़ा सा भी विश्वास नहीं है, न ही वे मेरे आने का स्वागत करते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है)

"परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य के विरोध और उसकी विद्रोहशीलता का स्रोत शैतान के द्वारा उसकी भ्रष्टता है। क्योंकि वह शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, इसलिये मनुष्य की अंतरात्मा सुन्न हो गई है, वह अनैतिक हो गया है, उसके विचार पतित हो गए हैं, और उसका मानसिक दृष्टिकोण पिछड़ा हुआ है। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने से पहले, मनुष्य स्वाभाविक रूप से परमेश्वर का अनुसरण करता था और उसके वचनों को सुनने के बाद उनका पालन करता था। उसमें स्वाभाविक रूप से सही समझ और विवेक था, और सामान्य मानवता थी। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने के बाद, उसकी मूल समझ, विवेक, और मानवता मंद पड़ गई और शैतान के द्वारा दूषित हो गई। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और प्रेम को खो दिया है। मनुष्य की समझ पथ से हट गई है, उसका स्वभाव एक जानवर के समान हो गया है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक बढ़ गई है और गंभीर हो गई है। लेकिन फिर भी, मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, और केवल आँख बंद करके विरोध और विद्रोह करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है)

"मानवजाति मेरी शत्रु के अलावा और कुछ नहीं है। मानवजाति ऐसी दुष्ट है जो मेरा विरोध और मेरी अवज्ञा करती है। मानवजाति मेरे द्वारा श्रापित दुष्ट की संतान के अतिरिक्त और कोई नहीं है। मानवजाति उस प्रधान दूत की वंशज ही है जिसने मेरे साथ विश्वासघात किया था। मानवजाति और कोई नहीं बल्कि उस शैतान की विरासत है जो बहुत पहले ही मेरे द्वारा ठुकराया गया था और हमेशा से मेरा कट्टर विरोधी शत्रु रहा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है)

"शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन-प्रकृति बन गए हैं। 'स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं' एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। जीने के लिए दर्शन के कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश की उत्तम पारंपरिक संस्कृति के माध्यम से लोगों को शिक्षित करता है और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें')

"ऐसी गन्दी जगह में जन्म लेकर, मनुष्य समाज के द्वारा बुरी तरह संक्रमित किया गया है, वह सामंती नैतिकता से प्रभावित किया गया है, और उसे 'उच्च शिक्षा के संस्थानों' में सिखाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन पर मतलबी दृष्टिकोण, जीने के लिए तिरस्कार-योग्य दर्शन, बिल्कुल बेकार अस्तित्व, पतित जीवन शैली और रिवाज—इन सभी चीज़ों ने मनुष्य के हृदय में गंभीर रूप से घुसपैठ कर ली है, और उसकी अंतरात्मा को बुरी तरह खोखला कर दिया है और उस पर गंभीर प्रहार किया है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर हो गया है, और परमेश्वर का और अधिक विरोधी हो गया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है)

"मानवजाति द्वारा सामाजिक विज्ञानों के आविष्कार के बाद से मनुष्य का मन विज्ञान और ज्ञान से भर गया है। तब से विज्ञान और ज्ञान मानवजाति के शासन के लिए उपकरण बन गए हैं, और अब मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं रही हैं। मनुष्य के हृदय में परमेश्वर की स्थिति सबसे नीचे हो गई है। हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली है। बाद में मनुष्य के हृदय और मन को भरने के लिए कई समाज-वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने सामने आकर सामाजिक विज्ञान के सिद्धांत, मानव-विकास के सिद्धांत और अन्य कई सिद्धांत व्यक्त किए, जो इस सच्चाई का खंडन करते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की है, और इस तरह, यह विश्वास करने वाले बहुत कम रह गए हैं कि परमेश्वर ने सब-कुछ बनाया है, और विकास के सिद्धांत पर विश्वास करने वालों की संख्या और अधिक बढ़ गई है। अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथक और किंवदंतियाँ समझते हैं। अपने हृदयों में लोग परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति भी कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है, उदासीन हो जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रहे, और मनुष्य केवल खाने-पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)

"कोई भी सक्रिय रूप से परमेश्वर के पदचिह्नों और उसके प्रकटन को नहीं खोजता और कोई भी परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में रहने के लिए तैयार नहीं है। इसके बजाय, वे इस दुनिया के और दुष्ट मानवजाति द्वारा अनुसरण किए जाने वाले अस्तित्व के नियमों के अनुकूल होने के लिए, उस दुष्ट शैतान द्वारा किए जाने वाले क्षरण पर भरोसा करना चाहते हैं। इस बिंदु पर, मनुष्य का हृदय और आत्मा शैतान के लिए आभार व्यक्त करते उपहार और उसका भोजन बन गए हैं। इससे भी अधिक, मानव हृदय और आत्मा एक ऐसा स्थान बन गए हैं, जिसमें शैतान निवास कर सकता है, और वे शैतान के खेल का उपयुक्त मैदान बन गए हैं। इस तरह, मनुष्य अनजाने में मानव होने के सिद्धांतों और मानव-अस्तित्व के मूल्य और अर्थ के बारे में अपनी समझ को खो देता है। परमेश्वर की व्यवस्थाएँ और परमेश्वर और मनुष्य के बीच का प्रतिज्ञा-पत्र धीरे-धीरे मनुष्य के हृदय में धुँधला होता जाता है, और वह परमेश्वर की तलाश करना या उस पर ध्यान देना बंद कर देता है। समय बीतने के साथ मनुष्य अब यह नहीं समझता कि परमेश्वर ने उसे क्यों बनाया है, न ही वह उन वचनों को जो परमेश्वर के मुख से आते हैं और न उस सबको समझता है, जो परमेश्वर से आता है। मनुष्य फिर परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आदेशों का विरोध करने लगता है, और उसका हृदय और आत्मा शिथिल हो जाते हैं...। परमेश्वर उस मनुष्य को खो देता है, जिसे उसने मूल रूप से बनाया था, और मनुष्य उस मूल खो देता है जो मूल रूप से उसके पास था : यही इस मानव-जाति की त्रासदी है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)

"हज़ारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[1] क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर ज़बर्दस्त पहरेदारी[2] है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हज़ारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीक नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है? लोगों की स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधकारपूर्ण समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उसकी बनायी दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति के भ्रष्टाचार के स्रोतों और मौजूदा स्थिति पर विस्तार से बोला है। जब हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, तो ऐसे मसलों का हमारा ज्ञान बढ़ता है, जैसे कि दुनिया में इतना अंधेरा और बुराई क्यों है, मानवजाति इतनी कट्टरता से परमेश्वर का विरोध क्यों करती है, और शैतान द्वारा मानवजाति के भ्रष्टाचार का सत्य और सार क्या है, ठीक? इस काल की बुराई और अंधकार यह साबित करते हैं कि शैतान के हाथों मानवजाति का भ्रष्टाचार बहुत गहरा है, तो मानवजाति में ऐसे कितने लोग हैं, जिनमें परमेश्वर के प्रकटन की लालसा है और जो उनके आने का स्वागत करते हैं? ऐसे कितने लोग हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुनना और सत्य को स्वीकार करना पसंद करते हैं? ऐसे कितने लोग हैं, जो परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को खोज कर उसका अध्ययन करते हैं? अधिकतर लोग न केवल इन चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते हैं, इसके विपरीत वे शैतानी सीसीपी सरकार की अफवाहों और झूठी बातों को सुनते हैं और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करने में शैतान की ताकतों के साथ मिल कर काम करते हैं। ये ऐसे तथ्य हैं, जिनको हर कोई साफ़ तौर पर समझता है। हालांकि परमेश्वर में विश्वास करने वाले बहुत-से लोग हैं, पर ऐसे लोग कितने हैं, जो सत्य को स्वीकार कर उसकी खोज कर सकते हैं और पूरे मन से परमेश्वर को समर्पित हो सकते हैं? अगर हम उस समय को याद करें जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने प्रकट हुए थे, सारे यहूदी लोगों ने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने के लिए प्रधान पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों का अनुसरण किया। अंत के दिनों में जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपना कार्य करने प्रकट हुए, तो धार्मिक संसार के अधिकतर पादरी और एल्डर्स अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा कर रहे हैं; वे उनकी कलीसियाओं को सीलबंद करने तक का काम कर रहे हैं, और विश्वासियों को सच्चे मार्ग का अध्ययन नहीं करने दे रहे हैं। इस समय विश्व कितना अंधकारमय और बुरा है, यह दर्शाने के लिए यह काफी है। मानवजाति सत्य से ऊब,चुकी है, मनुष्य सत्य से घृणा करता है और उसने परमेश्वर को त्याग दिया है और उसके विरोध में खड़ा होना चुन लिया है। विश्व के इस अंधकार और बुराई की जड़ है मानवजाति पर शैतान का कब्जा और यह कि पूरी दुनिया उस दुष्ट के अधिकारक्षेत्र में है। पिछले कई हज़ार वर्षों में, शैतान ने मानवजाति को धोखा देने और भ्रष्ट करने के लिए, नास्तिकता, विकासवाद के सिद्धांत, और भौतिकवाद और दूसरी हानिकारक शिक्षाओं और भ्रांतियों का उपयोग किया। इस कारण से मानवजाति उन शैतानों के राजाओं और "महान विभूतियों" की आराधना और उनकी तरह-तरह की झूठी बातों और भ्रांतियों में अंधा विश्वास करने लगी है, जिन्होंने ऐसी बातें कही हैं जैसे: "कोई परमेश्वर या उद्धारकर्ता नहीं है"; "मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है तथा स्वर्ग और पृथ्वी के विरुद्ध लड़ाई कर सकता है" "किसी व्यक्‍ति की नियति उसी के ही हाथ में होती है।" "बुद्धिमान लोग मजबूत देह वालों पर शासन करते हैं;" "दूसरे का गला काटे बिना सफलता नहीं मिलती।" "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है"; "जैसे एक छोटे मन से कोई सज्जन व्यक्ति नहीं बनता है, वैसे ही वास्तविक मनुष्य विष के बिना नहीं होता है," आदि-इत्‍यादि। इन बुरी शिक्षाओं और भ्रांतियों से मानवजाति ने धोखा खाया है और व‍ह भ्रष्ट हो गयी है, जिसने उसे अहंकारी, कपटी, स्वार्थी, लालची और धूर्त बना दिया है; ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो मानवता और नैतिकता की बात करता हो, कोई नहीं जो अंतरात्मा और तर्क की बात करता हो, और कोई नहीं, जो ईमानदार होने की बात करता हो। नाम और पद की खोज में, मनुष्य आपस में कुत्तों की तरह लड़ते हैं, और वे एक-दूसरे के साथ षड्यंत्र और धोखा करते हैं; वे एक-दूसरे की हत्या तक कर देते हैं। राष्ट्र विभिन्न स्वार्थों के लिए निरंतर युद्ध लड़ते हैं। क्या यह शैतान द्वारा मानवजाति के भ्रष्टाचार का नतीजा नहीं है? ये तथ्य यह दिखाते हैं कि मानवजाति को शैतान ने बहुत गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है और मानवजाति शैतान जैसी हो गयी है, शैतान की वंशज। मानवजाति एक दुष्ट शक्ति हो गयी है, जो परमेश्वर के विरोध में शत्रुता से खड़ी है। इस कारण से, जब परमेश्वर बोलने और मनुष्यों के बीच अपना कार्य करने के लिए दो बार देहधारी हुए, तो भ्रष्ट मानवजाति ने उनका विरोध किया, निंदा की, और दोनों मौकों पर उनको त्याग दिया, यहाँ तक कि उन्होंने उनको सूली पर चढ़ा दिया। मानवजाति के परमेश्वर का विरोध करने के पीछे ये कुछ तथ्य हैं।

जैसा कि सभी जानते हैं, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन पर साठ से भी अधिक वर्षों से शासन किया है, सारा समय पागलपन के साथ धार्मिक विश्वासों का दमन और उत्पीड़न करते हुए, ईसाई धर्म और कैथोलिक ईसाई मत को कुपंथ का नाम दे कर, बाइबल पर एक कुपंथी पुस्तक का ठप्पा लगा कर उसकी प्रतियां जलाकर और नष्ट कर, कलीसियाओं और सूलियों को हर जगह ध्वस्त कर के, और ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ्तार कर, रोक कर और कैद में डाल कर, अनगिनत ईसाइयों को विस्थापित और बेघर कर के। अनकही संख्या में लोगों के धार्मिक विश्वासों पर रोक लगाई गयी है और उनको जीवन के अधिकार तक से वंचित कर दिया गया है। अनगिनत ईसाइयों के परिवारिक सदस्यों को लोकसेवाओं से निकाल दिया गया है, उनके बच्चों के विश्वविद्यालयों में पढ़ने पर, नौकरी करने पर, और देश से बाहर जाने तक पर पाबंदी लगा दी गयी है, चीन एक तरह से एक राक्षसी जेल हो गया है जहां धार्मिक आज़ादी का कोई अस्तित्व नहीं है, और जीवन के अधिकार तक पर भी पाबंदी है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर के विश्वासियों को बिल्कुल जीने नहीं देती; उसका बस चले तो वह सबकी जान ले ले। सीसीपी द्वारा चमकती पूर्वी बिजली के विरुद्ध पागल दमन और हमलों ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। बहुत-से लोगों को यह समझ ही नहीं आता कि वे परमेश्वर का विरोध और खिलाफत करने के पीछे इतने दीवाने क्यों हैं। निश्चित रूप से इसलिए क्योंकि देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने वचन देह में प्रकट हुआ में अनेक सत्य व्यक्त किये हैं और यही वह किताब है, जिसने हर धार्मिक वर्ग को हिला कर रख दिया है। प्रभु में विश्‍वास करने वाले कई लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कथन सुने हैं और उन्‍हें परमेश्‍वर की वाणी और कार्य के रूप में स्‍वीकार कर, उनकी ओर मुड़ गये हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रचार और उनकी गवाही देने वालों की निरंतर बढ़ती संख्या को देख कर सीसीपी डर गयी है। सुसमाचार का प्रचार करते हुए परमेश्वर की गवाही देने वाले अनगिनत लोगों को सीसीपी ने गिरफ्तार कर लिया है, और वचन देह में प्रकट हुआ की अनेक प्रतियां ज़ब्त कर ली हैं। दिन-ब-दिन वे इस किताब पर शोध करते हैं, और अधिक-से-अधिक महसूस करते हैं कि यह कितनी अजेय है। इसमें सब पर विजय पाने की क्षमता है। सीसीपी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को चाहे जिस तरह बदनाम करने की कोशिश करे, उन पर राय थोप कर उनको बेकार कहने की कोशिश करे, वे वचन देह में प्रकट हुआ को लोगों की जानकारी में लाने की हिम्मत नहीं कर सकते। वे इस बात का ज़रा भी उल्लेख नहीं करते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने क्या कहा। वचन देह में प्रकट हुआ की प्रतिक्रया में वे इतने शांत क्यों रहते हैं? उन्हें डर है कि पूरी दुनिया देखेगी कि परमेश्वर पूरब में अभिव्यक्त हो कर अपना कार्य कर रहे हैं, कि मानवजाति के उद्धारक पूरब में प्रकट हुए हैं, और वहीं है मानवजाति के लिए आशा की किरण। मानवजाति के वचन देह में प्रकट हुआ पढ़ने से सीसीपी क्यों डर रही है? क्योंकि यह किताब परमेश्वर की वाणी है, यह सत्य का वचन है, और यह वह सच्ची रोशनी है, जो पूरब में प्रकट हुई है! सीसीपी शैतान का शासन है, जो सबसे अधिक दुष्ट है और सत्य से सबसे अधिक घृणा करती है। उसे सबसे अधिक यह डर है कि सत्य मनुष्य की दुनिया में आ जाएगा, और यह कि मानवजाति सत्य को स्वीकार कर लेगी, कि परमेश्वर मनुष्य की दुनिया पर शासन करने के लिए सत्ता हासिल कर लेंगे, और मसीह का राज्य पृथ्वी पर प्रकट हो जाएगा। इस प्रकार, सीसीपी इतने पागलपन से मसीह का पीछा करके उनको खदेड़ती है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को अंधाधुंध तरीके से फंसाने, उस पर झूठे आरोप लगाने और बदनाम करने के लिए मीडिया नेटवर्क का उपयोग करती है वह परमेश्वर के चुनिंदा लोगों का जबरदस्त दमन, गिरफ्तारी और उत्पीड़न करने के लिए राष्ट्र के सशक्त पुलिस बल को लामबंद करने से भी नहीं चूकती। सीसीपी के उत्पीड़न के कारण, छिपने की कोई जगह न पा कर, परमेश्वर के चुने हुए लोग जबरन निर्वासित हो गए हैं, और सीसीपी के अधीन चीन की सरकार ने बाहर के हर देश में अपने दुष्ट पाँव पसार दिये हैं, और राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक साधनों का उपयोग करके कुछ पर दबाव डाला है कि वे विदेश भाग गये ईसाइयों को वापस चीन भेज दें, ताकि उनको यातना दी जा सके और उत्पीड़ित किया जा सके। इससे भी अधिक घृणित यह है कि सीसीपी, विदेश जा चुके ईसाइयों के रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर उनका उत्पीड़न करती है और उनसे बंधकों जैसा व्यवहार करती है, जिनसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को धमकाया जा सके। यह उन्‍‍हें अपने पासपोर्ट निकाल कर विदेश जाकर हर देश में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया को अस्‍त व्‍यस्‍त करने के लिए विवश करती है, और कूटनीतिक मार्गों से कोशिश करती है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर झूठे आरोप लगा कर बदनाम किया जाए, करने की, अफवाहों से लोगों को गुमराह कर, लोकमत में हेरफेर करके उसको कलंकित किया जाए। सीसीपी दूसरे देशों की सरकारों और लोगों, दोनों को उकसाती है कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का विरोध कर उसको नकारें, और कलीसिया के विदेशी सदस्यों को देशनिकाला दें; उसका कुटिल उद्देश्य, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया और विदेशों में उसके सुसमाचार कार्य के प्रसार को बाधित करने, रोकने और दमन करने में सफल होना है। क्या आप सब नहीं कहेंगे कि सीसीपी राक्षसी शैतान है, जो सत्य से घृणा और परमेश्वर से नफ़रत करती है? सीसीपी लोगों से क्रूर व्यवहार और आत्माओं को निगल जाने में महारथी है; यह ऐसी राक्षसी है, जो लोगों को उनकी अस्थियों समेत खा जाती है।

"जोखिम भरा है मार्ग स्वर्ग के राज्य का" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

फुटनोट :

1. "निराधार आरोप लगाते हुए" उन तरीकों को संदर्भित करता है, जिनके द्वारा शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है।

2. "ज़बर्दस्त पहरेदारी" दर्शाता है कि वे तरीके, जिनके द्वारा शैतान लोगों को यातना पहुँचाता है, बहुत ही शातिर होते हैं, और लोगों को इतना नियंत्रित करते हैं कि उन्हें हिलने-डुलने की भी जगह नहीं मिलती।

पिछला: प्रश्न 2: एल्‍डर्स (गुरूजनों) तथा पादरियों को पता लगा है कि आप हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देते रहे हैं। वे चारों ओर पाखंड और झूठ फैला रहे हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा कर रहे हैं। उन्होंने कलीसिया को बंद कर दिया और हमारे भाईयों और बहनों जो कि आपके उपदेश सुनने की कोशिश करते हैं, को परेशान करना और रोकना शुरू कर दिया है। वे हमें अपनी आंख के कांटों के रूप में देखते हैं और हमसे सबसे अधिक घृणा करते हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि वे सभी जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, कलीसिया से निष्कासित कर दिये जायेंगे। कलीसिया स्पष्ट रूप से दो वर्गों में विभाजित हो चुकी है। कुछ भाई बहन हमारे साथ सत्य के मार्ग का अध्ययन करना चाहते हैं। अन्य लोग चमकती पूर्वी बिजली का विरोध और निंदा करने में पादरियों और एल्‍डर्स (गुरूजनों) का अनुसरण कर रहे हैं। वे हमारे साथ अपने शत्रुओं जैसा व्यवहार भी करते हैं। इन थोड़े ही दिनों में कलीसिया इतनी ज्यादा कैसे बदल गई है?

अगला: प्रश्न 1: बाइबल परमेश्वर के कार्य की गवाही है, यह मानवजाति के लिए अपार लाभदायक रही है। बाइबल पढ़ने के माध्यम से, हम यह समझ जाते हैं कि परमेश्‍वर ही सभी चीजों का सृष्टिकर्ता है, हम परमेश्‍वर के चमत्कारिक और पराक्रमी कर्मों और उनकी सर्वक्षमता को देखते हैं। बाइबल परमेश्वर के वचन और मनुष्‍य की परमेश्वर को गवाही का एक अभिलेख है, तो कोई बाइबल पढ़ने से शाश्‍वत जीवन क्‍यों नहीं प्राप्‍त कर सकता है। ऐसा क्यों है कि शाश्वत जीवन का मार्ग बाइबिल में नहीं पाया जाता है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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