प्रश्न 6: बाइबल बाइबल है, परमेश्‍वर परमेश्‍वर हैं। मैं समझ गयी हूँ कि बाइबल परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्व बिल्कुल नहीं कर सकती है! लेकिन बाइबल और परमेश्‍वर के बीच संबंध क्या है? मैं अभी भी यह नहीं समझ पायी हूँ। कृपया हमारे साथ कुछ और चर्चा करें!

उत्तर: प्रभु यीशु ने यह सवाल बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। कृपया यूहन्ना 5:39-40: "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो; क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है: और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।" प्रभु यीशु ने बाइबल और परमेश्‍वर के बीच संबंध को बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। बाइबल परमेश्‍वर की गवाही है। बाइबल के पास स्वयं शाश्‍वत जीवन नहीं है और मनुष्य को जीवन प्रदान नहीं कर सकती है। केवल मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। इसलिए, केवल मसीह को स्वीकार और अनुसरण करके और अंतिम दिनों में परमेश्‍वर के वचनों और कार्यों का पालन करके, हम सत्य और शाश्वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। एक और नज़र डालें कि कैसे अभी भी धार्मिक मंडलियों में कई लोग हैं जो यह आग्रह करते हैं कि "परमेश्‍वर में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है, बाइबल से हट जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना।" उन्हें यह भी लगता है कि जब तक वे बाइबल पर अवलंबित रहेंगे, उन्हें स्वर्ग के राज्य में लाया जा सकता है। क्या यह दृष्टिकोण बहुत बेतुका नहीं है? तो मुझे अपने भाइयों और बहनों से पूछने दें: क्या बाइबल अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य की जगह ले सकती है? क्या सच्चाई व्यक्त करने में बाइबल मसीह की जगह ले सकती है? क्या कोई वास्तव में बाइबल का अध्ययन करके और उस पर अवलंबित रह कर सत्य और जीवन को प्राप्त कर सकता है? यदि लोग फरीसियों की तरह अड़ियल ढंग से शास्त्रों को पकड़े रहें तो क्या यह साबित करता है कि वे परमेश्‍वर का अनुसरण और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं? अगर लोग केवल बाइबल को पकड़े रहे लेकिन अंत के दिनों के मसीह के कार्य को स्वीकार नहीं करें या उसका पालन नहीं करें, तो वे कैसे सत्य और जीवन को प्राप्त कर सकते हैं, उद्धार प्राप्त कर सकते हैं, सिद्ध बनाए जा सकते हैं, और परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंशों को पढ़ें और हम सत्य के इस पहलू को और भी स्पष्ट रूप से समझ जाएँगे।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

"वे मेरा अस्तित्व मात्र बाइबल के दायरे में ही सीमित मानते हैं, और वे मेरी बराबरी बाइबल से करते हैं; बाइबल के बिना मैं नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापों पर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत से लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद तक कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, और विश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्ती से पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे। बाइबल के हितों की रक्षा करने, बाइबल की गरिमा बनाए रखने और बाइबल की प्रतिष्ठा बचाने के लिए वे यहाँ तक चले गए कि उन्होंने दयालु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। ऐसा उन्होंने सिर्फ़ बाइबल का बचाव करने के लिए और लोगों के हृदय में बाइबल के हर एक वचन की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए किया। इस प्रकार उन्होंने अपना भविष्य त्यागने और यीशु की निंदा करने के लिए उसकी मृत्यु के रूप में पापबलि देने को प्राथमिकता दी, क्योंकि यीशु पवित्रशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। क्या वे लोग पवित्रशास्त्र के एक-एक वचन के नौकर नहीं थे?

और आज के लोगों के बारे में क्या कहूँ? मसीह सत्य बताने के लिए आया है, फिर भी वे निश्चित ही उसे इस दुनिया से निष्कासित कर देंगे, ताकि वे स्वर्ग में प्रवेश हासिल कर सकें और अनुग्रह प्राप्त कर सकें। वे बाइबल के हितों की रक्षा करने के लिए सत्य के आगमन को पूरी तरह से नकार देंगे और बाइबल का चिरस्थायी अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए देह में लौटे मसीह को फिर से सूली पर चढ़ा देंगे। मनुष्य मेरा उद्धार कैसे प्राप्त कर सकता है, जब उसका हृदय इतना अधिक द्वेष से भरा है और उसकी प्रकृति मेरे इतनी विरोधी है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने स्पष्ट रूप से ऐसे धार्मिक नेताओं को उजागर किया है जो बस बाइबल की प्रशंसा करते हैं और बाइबल की गवाही देते हैं लेकिन कभी भी परमेश्‍वर के लिए प्रशंसा या गवाही नहीं देते हैं, और परमेश्‍वर की जगह लेने और परमेश्‍वर का रूप धारण करने के लिए बाइबल का उपयोग करने और परमेश्‍वर के कार्य का विरोध और निंदा करने के लिए बाइबल के वचनों का उपयोग करने के उनके सत्‍य और सार को भी उजागर किया है, उनकी सत्य-से-नफरत-करने और परमेश्‍वर-विरोधी शैतानी प्रकृति को पूरी तरह से उजागर किया है। उस समय के बारे में सोचिए जब फरीसियों ने हठधर्म से शास्त्रों को पकड़ लिया था और परमेश्‍वर को शास्त्रों के भीतर सीमांकित कर दिया था। उन्होंने कभी सत्‍य या परमेश्‍वर के पदचिन्हों को नहीं तलाशा। यद्यपि प्रभु यीशु ने, उपदेश देते और अपना कार्य करते समय, कई सत्य व्यक्त किये और बहुत से संकेतों और चमत्कारों का प्रदर्शन किया, पहले से ही परमेश्‍वर के अधिकार और शक्ति का प्रदर्शन करते हुए फरीसियों ने क्या किया? उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि प्रभु यीशु का उपदेश कितना गहन था, या उनका अधिकार कितना महान था। जब तक यह शास्त्रों के वचनों के साथ अनुरूप नहीं था, तब तक वे प्रभु यीशु का उग्रता से विरोध और निंदा करते थे। और क्योंकि प्रभु यीशु ने परमेश्‍वर के वचन व्यक्त किए थे, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु के वचनों को ईशनिंदा के रूप में निंदित और निराकृत किया, और अंत में करुणाशील प्रभु यीशु को जिंदा सलीब पर चढ़ा कर, अपनी सत्य-से-नफरत-करने और परमेश्‍वर-विरोधी शैतानी प्रकृति को पूरी तरह से उजागर किया। आज, धार्मिक पादरी और एल्डर्स पुराने फरीसियों की तरह हैं। वे बाइबल की प्रशंसा करने और गवाही के लिए जो कर सकते हैं वह सब करते हैं, लेकिन कभी प्रभु की प्रशंसा नहीं करते हैं या गवाही नहीं देते हैं, और इसके अलावा प्रभु के वचनों की तथा प्रभु द्वारा व्यक्त समस्त सत्य को घोषित नहीं करते हैं उसकी गवाही नहीं करते हैं। वे बाइबल के ज्ञान और धर्मशास्त्र के बारे में बात करने में विशेषज्ञ हैं, लोगों को धोखा देने, नियंत्रित और बाध्य करने के लिए विभिन्न विरोधाभासी, निरर्थक, आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रसार करते हैं, यह कहते हुए कि, "परमेश्‍वर के सभी कथन और काम बाइबल में दर्ज हैं, बाइबल से बाहर परमेश्‍वर के कोई कथन और कार्य नहीं हैं, परमेश्‍वर में विश्वास बाइबल में विश्वास है, बाइबल से दूर जाने का मतलब परमेश्‍वर में विश्वास नहीं करना है, और स्वर्ग के राज्य में ले जाए जाने के लिए किसी को भी बाइबल पर दृढ़ता से अवलंबित रहने की आवश्यकता है," हर किसी को यह गलत विश्वास दिलाते हुए कि शाश्वत जीवन बाइबल में निहित है, और कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और शाश्वत जीवन प्राप्त करने के लिए लोगों को केवल बाइबल से चिपके रहने की आवश्यकता है। इससे पहले कि लोगों को पता चलता, बाइबल ने उनके दिलों में परमेश्‍वर का स्थान ले लिया। हर कोई आँख बंद करके बाइबल की पूजा और उस पर विश्वास करता है, और बाइबल को परमेश्‍वर के रूप मानता है। अति-सूक्ष्म रूप से, बाइबल विश्वासियों के लिए एक बाध्यकारी मायाजाल बन गई है, और लोगों के दिलों में से प्रभु का स्थान पूरी तरह से चला गया है। इसका परिणाम क्या होगा? लोगों का प्रभु में विश्वास और प्रभु के बारे में ज्ञान समाप्‍त हो गया है! धार्मिक पादरियों और एल्डर्स को बाइबल की व्याख्या करने देने का यही परिणाम है।

"मायाजाल को तोड़ दो" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 5: पौलुस ने 2 तिमुथियस में यह बात बिलकुल साफ़ कर दी है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश" (तीमुथियुस 3:16)। इसका मतलब है कि बाइबल का प्रत्येक वचन परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। बाइबल से दूर जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना! प्रभु में हमारा विश्वास केवल हमसे बाइबल पर अवलंबित रहने की मांग करता है। भले ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, हमें तब भी मुक्ति मिलेगी और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

अगला: प्रश्न 7: आप लोग यह गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही आ चुके हैं और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं। और यह कि उन्होंने कई सत्य व्यक्त किए हैं और वे अंतिम दिनों का न्याय का कार्य कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह असंभव है। हमने हमेशा यही कहा है कि परमेश्वर के वचन एवं कार्य बाइबिल में लिखे हुए हैं, और यह कि परमेश्वर के शब्द और कार्य बाइबिल के बाहर विद्यमान नहीं हैं। बाइबल में पहले से ही परमेश्वर द्वारा उद्धार की पूर्णता समाविष्ट है, बाइबिल परमेश्वर की प्रतिनिधि है। जब तक कोई व्यक्ति बाइबल का पालन करता है, तब तक वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा। प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित है, बाइबल से भटकना प्रभु को इनकार तथा उनसे विश्वासघात करने का गठन करता है! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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