395 सच्चे विश्वासी की ज़िम्मेदारियाँ
1
अगर ज़मीर है तुम्हारे पास, तो,
होना ही चाहिए बोझ और ज़िम्मेदारी का एहसास।
तुम जीते या पूर्ण किये जाओ या चाहे न किये जाओ,
लेकिन इस चरण की गवाही उचित रीति से दो।
परमेश्वर के जीव होने के नाते, खुद को उसे समर्पित करके,
उसके द्वारा जीता जाना, अंत में उसे संतुष्ट कर पाना,
परमेश्वर-प्रेमी दिल से उसके प्रेम का प्रतिदान चुकाना,
यही है मनुष्य का दायित्व।
यह फ़र्ज़ है उसे निभाना, यह बोझ है उसे उठाना।
उसे आदेश पूरा करना होगा।
ये बनाता है उसे ईश्वर का सच्चा विश्वासी।
ये बनाता है उसे ईश्वर का सच्चा विश्वासी।
2
इन सब कार्यों का अनुभव करते हुए, अगर मनुष्य जीता गया है,
और अगर उसके पास सच्चा ज्ञान है, तो वो आज्ञापालन में समर्थ होगा,
वो जरूर समर्थ होगा, अपने भाग्य, संभावनाओं की परवाह न करेगा।
इस प्रकार, परमेश्वर का महान कार्य अपनी पूरी समग्रता में साकार होगा।
परमेश्वर के जीव होने के नाते, खुद को उसे समर्पित करके,
उसके द्वारा जीता जाना, अंत में उसे संतुष्ट कर पाना,
परमेश्वर-प्रेमी दिल से उसके प्रेम का प्रतिदान चुकाना,
यही है मनुष्य का दायित्व।
यह फ़र्ज़ है उसे निभाना, यह बोझ है उसे उठाना।
उसे आदेश पूरा करना होगा।
ये बनाता है उसे ईश्वर का सच्चा विश्वासी।
ये बनाता है उसे ईश्वर का सच्चा विश्वासी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (3) से रूपांतरित