422 समर्पण और उचित प्रार्थनाएँ बहुत महत्व की हैं
1 लोगों की प्रार्थनाएँ पवित्र आत्मा के कार्य की वाहिकाएँ होती हैं। जब कोई सही दशा वाला व्यक्ति प्रार्थना करता है या कुछ माँगता है, तो पवित्र आत्मा भी कार्य कर रहा होता है। यह परमेश्वर और मनुष्य के बीच दो भिन्न नज़रियों से अच्छा तालमेल है या यह भी कहा जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के कुछ मसलों को सुलझाने में उसकी मदद करता है और जब लोग परमेश्वर के सामने आते हैं तो यह एक तरह का सहयोग होता है। यह उन तरीकों में से भी एक है जिनसे परमेश्वर लोगों को बचाता है और उन्हें स्वच्छ बनाता है और उससे भी ज़्यादा, यह सामान्य जीवन प्रवेश का एक मार्ग है। यह कोई रस्म नहीं है। प्रार्थना एक गहन महत्व की चीज़ हैं! यदि तुम प्रार्थना करने का तरीका जानते हो और अक्सर प्रार्थना करते हो तो ऐसी अक्सर की जाने वाली, परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी और विवेकसम्मत प्रार्थनाओं के साथ, तुम्हारी आंतरिक दशा ज़्यादातर सामान्य रहेगी।
2 जब कोई निजी तौर पर प्रार्थना में कुछ कहता है तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए और उसके प्रति ईमानदार रवैया अपनाना चाहिए; जब तुम मसीह के सामने आते हो, तभी तुम सामान्य समझ रख सकते हो। लोगों को परमेश्वर के सामने कैसे आना चाहिए? प्रार्थना और आत्म-मंथन के ज़रिए, यह जानने के लिए कि विवेकपूर्ण ढंग से कैसे बोलना चाहिए, मानवीय परिप्रेक्ष्य से कैसे बोलना चाहिए और अपने हृदय से कैसे बोलना चाहिए। मात्र ऐसी बातें मत बोलो जो केवल सुनने में अच्छी लगें या जो केवल परमेश्वर की खुशामद करने का प्रयास हों। यदि कुछ समय तक तुम इन बातों का अभ्यास करोगे, तो तुम समझ जाओगे कि परमेश्वर से प्रार्थना और संगति कैसे करनी है, और तब तुम्हारे लिए पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करना सरल हो जाएगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, प्रार्थना के मायने और उसका अभ्यास से रूपांतरित