198 परमेश्वर के दो देहधारणों के मायने
1
पहले देहधारण ने इंसान को पाप से छुटकारा दिलाया
यीशु की देह के जरिये।
उसने इंसान को क्रूस से बचाया, पर उसमें
बना रहा भ्रष्ट शैतानी स्वभाव।
दूसरा देहधारण पापबलि नहीं है,
बल्कि छुटकारा पाए लोगों को
पूरी तरह बचाने के लिए है।
ताकि जिन्हें क्षमा मिली वे अपने
पापों से मुक्त हों, पूरी तरह शुद्ध बनाए जाएँ;
स्वभाव में बदलाव लाकर वे,
शैतान के अंधेरे प्रभाव से निकल सकेंगे,
ईश्वर के सिंहासन के सामने लौट सकेंगे।
इंसान सिर्फ ऐसे ही पवित्र हो सकता है।
2
सामान्य देह बनकर ही ईश्वर इंसान संग रह सके,
इस दुनिया की पीड़ा जान सके।
इसी तरह वह इंसान को वह मार्ग दे सके
जिसकी उसे एक सृजित प्राणी के नाते जरूरत है।
ईश्वर के देहधारण से इंसान पूर्ण उद्धार पाए,
न कि अपनी प्रार्थना के बदले स्वर्ग से पाए।
इंसान बना है शरीर और रक्त से,
इसलिए न वो ईश्वर के आत्मा को देख सके,
न उस तक पहुँच सके।
लोग केवल तभी ईश्वर के संपर्क में आ सकें
जब वो देहधारण करे।
सिर्फ इसी ढंग से इंसान सभी मार्ग,
सारे सत्य और पूर्ण उद्धार पा सके।
3
इंसान को पाप से मुक्ति दिलाने,
उसे शुद्ध बनाने के लिए
दूसरा देहधारण पर्याप्त होगा।
इसके बाद देह में ईश्वर का काम खत्म हो जाएगा,
वह अपने देहधारण का अर्थ पूरा करेगा।
उसका प्रबंधन अपने अंत तक पहुँच चुका होगा।
वह तीसरी बार देहधारण नहीं करेगा।
अंत के दिनों के देहधारण द्वारा,
ईश्वर द्वारा चुने लोग पूरी तरह प्राप्त किए जाएंगे,
और अंत के दिनों में सभी इंसान
अपने प्रकार के अनुसार बाँटे जाएंगे।
वह अब अपना उद्धार कार्य और नहीं करेगा,
न कोई कार्य करने के लिए देह में लौटेगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4) से रूपांतरित