280 एकमात्र परमेश्वर का प्रभुत्व है इंसान की नियति पर
1
तुम अपने जीवन में चाहे कितनी ही दूर तक चले हो,
चाहे तुम कितने ही बुज़ुर्ग हो, तुम्हारी यात्रा चाहे कितनी ही शेष हो,
तुम्हें परमेश्वर के अधिकार को पहचानना होगा,
वो तुम्हारा अद्वितीय स्वामी है, इसे पूरे ईमान से स्वीकारना होगा।
कितनी ही बड़ी हो काबिलियत किसी की,
दूसरों की नियति को कोई प्रभावित कर नहीं सकता,
आयोजित करने, बदलने या काबू करने की तो बात ही क्या।
इंसान की हर चीज़ पर प्रभुत्व है सिर्फ़ अद्वितीय परमेश्वर का,
क्योंकि इंसान की नियति पर सिर्फ़ उसी को अधिकार है शासन करने का।
इस तरह सिर्फ़ सृष्टिकर्ता ही स्वामी है इंसान का।
2
ज्ञान होना चाहिये सभी को, इंसान की नियति पर परमेश्वर के प्रभुत्व का।
कुंजी है ये इंसानी ज़िंदगी को जानने की, सत्य को पाने की,
सबक है ये हर रोज़ परमेश्वर को जानने का।
छोटा मार्ग ले नहीं सकते तुम इस लक्ष्य को पाने का।
कितनी ही बड़ी हो काबिलियत किसी की,
दूसरों की नियति को कोई प्रभावित कर नहीं सकता,
आयोजित करने, बदलने या काबू करने की तो बात ही क्या।
इंसान की हर चीज़ पर प्रभुत्व है सिर्फ़ अद्वितीय परमेश्वर का,
क्योंकि इंसान की नियति पर सिर्फ़ उसी को अधिकार है शासन करने का।
इस तरह सिर्फ़ सृष्टिकर्ता ही स्वामी है इंसान का।
3
बच नहीं सकते परमेश्वर के प्रभुत्व से तुम।
परमेश्वर एकमात्र प्रभु है इंसान का।
एकमात्र स्वामी है वो इंसान की नियति का।
इसलिये ख़ुद अपनी नियति पर इंसान हुक्म चला नहीं सकता;
ये नामुमकिन है, इंसान इसके परे जा नहीं सकता।
कितनी ही बड़ी हो काबिलियत किसी की,
दूसरों की नियति को कोई प्रभावित कर नहीं सकता,
आयोजित करने, बदलने या काबू करने की तो बात ही क्या।
इंसान की हर चीज़ पर प्रभुत्व है सिर्फ़ अद्वितीय परमेश्वर का,
क्योंकि इंसान की नियति पर सिर्फ़ उसी को अधिकार है शासन करने का।
इस तरह सिर्फ़ सृष्टिकर्ता ही स्वामी है इंसान का।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III से रूपांतरित