प्रश्न 4: मैंने सुना कि आप लोगों ने इस बात का प्रमाण दिया है कि देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन कहे हैं और परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए अपना न्याय का कार्य पूरा किया है। लेकिन यह साफ़ तौर पर बाइबल से आगे निकल जाता है। इसका कारण यह है कि पादरी और नेतागण अक्सर हमसे कहा करते थे कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल से बाहर नहीं है। प्रभु यीशु का उद्धार कार्य पहले ही पूरा हो चुका है। अंत में दिनों में प्रभु की वापसी विश्वासियों को सीधे स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए होगी। इस प्रकार, हमेशा से हमारा यह मानना रहा है प्रभु में विश्वास बाइबल के आधार पर होना चाहिए। जब तक हम बाइबल की बातों पर कायम रहते हैं, हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और शाश्‍वत जीवन पाने में सफल होंगे। बाइबल से दूर जाना प्रभु के रास्ते को छोड़ देना है। यह उनका विरोध करना और उनको धोखा देना है। सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स ऐसा ही सोचते हैं। इसमें गलत क्या हो सकता है?

उत्तर: धर्म में, वे सभी लोग जो प्रभु पर विश्वास करते हैं, उनका मानना है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में निहित हैं। बाइबल में परमेश्वर का उद्धार कार्य पूर्ण हो चुका है, और परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। प्रभु में विश्वास बाइबल पर आधारित और बाइबल के वचनों पर अवलंबित होना चाहिए। जब तक हम बाइबल को नहीं छोड़ते हैं, तो जब प्रभु का आगमन होगा, वे हमें स्वर्ग के राज्य में लेकर जाएंगे। इस तरह का नज़रिया लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप हो सकता है, मगर क्या यह प्रभु यीशु के वचनों पर आधारित है? क्या आप गारंटी दे सकते हैं कि यह सत्य के अनुरूप है? प्रभु यीशु ने ऐसा कभी नहीं कहा था कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज होंगे, यह कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। यह सही है। बाइबल को समझने वाले सभी लोग यह जानते हैं कि बाइबल को परमेश्वर के कार्य के कई सालों बाद मनुष्यजाति द्वारा संकलित किया गया था। परमेश्वर का कार्य पहले आता है, और बाइबल उसके बाद। दूसरे शब्दों में, हर बार जब परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, जिन लोगों ने परमेश्वर के कार्य को अनुभव किया उन्‍होंने उस समय से परमेश्वर के वचन और कार्य को दर्ज किया, और इन दस्‍तावेज़ों को लोगों द्वारा बाइबल में संकलित किया गया। जब हम इस पर विचार करते हैं, परमेश्वर द्वारा अब तक पूरे नहीं किये गए कार्य को पहले से बाइबल में कैसे संकलित किया जा सकता है? ख़ास तौर पर, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य को शायद बाइबल में दर्ज नहीं किया गया होता। नए और पुराने विधान करीब 2000 सालों से बाइबल का हिस्सा रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य अभी ही शुरू किया है। इसलिए, अंत के दिनों के परमेश्वर के वचन और कार्य शायद हज़ारों साल पहले बाइबल में दर्ज नहीं किए गए होंगे। क्या यह एक सच्चाई नहीं है? अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए न्याय का कार्य पूरा किया है, और लाखों वचन कहे हैं। ये सारे वचन सत्य हैं जो मनुष्य को शुद्ध करते और बचाते हैं, और अंत में दिनों के मसीह द्वारा लाये गए मरणोपरांत जीवन का रास्ता हैं। इन्हें व्यवस्था के युग के बाइबल में पहले ही संकलित किया जा चुका है। यह पुस्तक है, "वचन देह में प्रकट होता है।" हालांकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सत्य वचनों को पहले से बाइबल में दर्ज नहीं किया गया था, वे पूरी तरह से प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरा करते हैं। "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु, जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा..." (यूहन्ना 16:12-13)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:17)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सत्य वचनों ने इस बात की पूरी तरह से पुष्टि कर दी है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य की आत्मा का शरीर रूप हैं। वे अवतरित परमेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सारे वचन, यानी अंत के दिनों में सत्य की आत्मा की अभिव्यक्तियां, कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन हैं। क्या हममें यह कहने की हिम्मत है कि ये परमेश्वर के वचन नहीं हैं? क्या हममें अभी भी इससे इनकार करने की हिम्मत है। अगर हम अंत के दिनों में परमेश्वर के वचनों और कार्यों की वास्तविकता पर नज़र डालते हैं, क्या हम अभी भी यही कहेंगे कि परमेश्वर के सारे वचन बाइबल में दर्ज हैं और यह कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है? बाइबल कैसे बनी इसकी अंदर की कहानी को हम नहीं समझ पाते हैं। हम इस तथ्य को नहीं जानते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर द्वारा अपने कार्य का हर चरण पूरा करने के पश्‍चात बनाई गई थी, और फिर भी हम मनमाने ढंग से यह निष्कर्ष निकालते और तय करते हैं कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। क्या हम काफी मनमाने और बेतुके नहीं हैं? अगर हम यह नहीं समझ पाते हैं कि बाइबल कैसे बनाई गई और इसकी अंदर की कहानी क्या है, तो परमेश्वर में विश्वास करने के मार्ग से विचलित होना बहुत आसान हो जाएगा। असल में, व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य के दो चरणों के दौरान, परमेश्वर द्वारा कहे गए सारे वचन बाइबल में पूरी तरह से दर्ज नहीं किए गए थे। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग में कुछ ऐसे पैगंबर हुए थे जिनकी भविष्यवाणियां बाइबल में दर्ज नहीं की गयी थीं। पैगंबर इज़रा की कुछ भविष्यवाणियां बाइबल में दर्ज नहीं की गयी थीं। फिर अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने कहीं अधिक वचन बोले थे। लेकिन बाइबल में दर्ज किए गए वचन बहुत सीमित हैं। ज़रा सोचिए। प्रभु यीशु ने करीब साढ़े-तीन वर्षों तक पृथ्वी पर उपदेश दिया था। हम हर दिन कितने शब्द बोलते हैं? प्रत्येक धर्मोपदेश में उन्होंने कितने वचन बोले होंगे? उन साढ़े तीन वर्षों में प्रभु यीशु ने बहुत सारे धर्मोपदेश और वचन बोले थे। ऐसा कोई तरीका नहीं है कि कोई इसकी गणना करने में सफल रहा होगा। जैसा कि प्रचारक यूहन्ना ने कहा था: "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)। आइए अब हम चार नए प्रामाणिक सुसमाचारों पर नज़र डालें। इनमें दर्ज किए गए प्रभु यीशु के वचन बहुत सीमित हैं! यह तो मानो एक हिमशिला की नोक समान है! अगर प्रभु यीशु ने उन साढ़े तीन सालों के चार सुसमाचारों में केवल वे चंद वचन कहे होते, तो फिर वे उन लोगों को जीतने में कैसे सफल हो पाते जिन्होंने उस समय उनका अनुसरण किया था? प्रभु यीशु का कार्य पूरे यहूदिया को हिलाने में कैसे सफल हुआ होता? इसलिए, यह निश्चित है कि बाइबल में दर्ज किए गए परमेश्वर के वचन इसका केवल एक बहुत सीमित हिस्सा हैं, निश्चित रूप से इसमें परमेश्वर द्वारा अपने कार्य के दौरान बोले गए सारे वचन शामिल नहीं हैं। यह एक ऐसा तथ्‍य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता! हम सब जानते हैं कि परमेश्वर सृष्टि के प्रभु हैं। मनुष्य के जीवन का स्रोत! सजीव पानी का सोता जो कभी नहीं सूखता। परमेश्वर की प्रचुरता कभी न ख़त्म होने वाली है और हमेशा इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होती है, जबकि बाइबल सिर्फ परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों का एक लेखा जोखा है। परमेश्वर के वचनों की दर्ज की गयी मात्रा बहुत ही सीमित है। यह परमेश्वर के जीवन में सागर की एक बूँद के सामान है। हम परमेश्वर के वचनों और कार्य को सिर्फ बाइबल तक कैसे सीमित कर सकते हैं? हालांकि यह ऐसा है कि परमेश्वर ने केवल बाइबल में सीमित वे वचन बोले थे। क्या यह परमेश्वर को सीमांकित करना, छोटा करना और उनकी निंदा करना नहीं है? इसलिए, परमेश्वर के सभी वचन और कार्य को बाइबल तक सीमित करना और यह सोचना कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है, एक बड़ी गलती है!

आइए आगे हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंशों को पढ़ते हैं, और हमें सच्चाई के इस पहलू के बारे में और भी स्पष्ट हो जाएगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1))

"आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

"मैं जिसे यहाँ समझा रहा हूँ वह तथ्य यह है: परमेश्वर जो है और उसके पास जो है, वह सदैव अक्षय और असीम है। परमेश्वर जीवन का और सभी वस्तुओं का स्रोत है। परमेश्वर की थाह किसी भी रचित जीव के द्वारा नहीं पाई जा सकती। अन्त में, मुझे अभी भी सब को याद दिलाना होगा: पुस्तकों, वचनों या उनकी अतीत की उक्तियों में परमेश्वर को सीमांकित न करो। परमेश्वर के कार्य की विशेषता के लिए केवल एक ही शब्द है—नवीन। वह पुराने रास्ते लेना या अपने कार्य को दोहराना पसंद नहीं करता, और इसके अलावा, वह नहीं चाहता कि लोग उसे एक निश्चित दायरे के भीतर सीमांकित करके उसकी आराधना करें। यह परमेश्वर का स्वभाव है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अंतभाषण)

"मायाजाल को तोड़ दो" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 3: हम सोचते हैं परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर पर हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित होना चाहिए। क्या ये गलत है?

अगला: प्रश्न 5: पौलुस ने 2 तिमुथियस में यह बात बिलकुल साफ़ कर दी है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश" (तीमुथियुस 3:16)। इसका मतलब है कि बाइबल का प्रत्येक वचन परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। बाइबल से दूर जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना! प्रभु में हमारा विश्वास केवल हमसे बाइबल पर अवलंबित रहने की मांग करता है। भले ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, हमें तब भी मुक्ति मिलेगी और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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