परमेश्वर के परिवार में न्याय शुरू हो चुका है

04 दिसम्बर, 2018

ऐशन, अमेरिका

मैं एक ईसाई हूँ। जब मैंने पहली बार परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया, तो मैंने अकसर उन उपदेशों को सुना जहाँ लोग कहा करते थे, "प्रभु यीशु हमारा उद्धार करने वाला है। वह हमारे पापों के कारण क्रूस पर चढ़ाया गया था। यीशु दयालु और प्यार करने वाला है। जब तक हम प्रभु के सामने अक्सर आते हैं और प्रार्थना के माध्यम से हमारे पापों को स्वीकार करते हैं, हमारे पाप क्षमा किए जाएँगे और जब प्रभु लौटेगा, तो हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे।" बाद में, जब मैंने बाइबल पढ़ी, तो मैंने कई उन कई हिस्सों पर ध्यान दिया जहाँ "न्याय" का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लि: "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। "क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है" (प्रेरितों के काम 17:31)। उस समय, मैं नहीं समझती थी कि न्याय का अर्थ क्या था। तो, मैं उपदेशक से पूछने गई। उपदेशक ने मुझे बताया, "जब प्रभु लौटता है, तो वह मनुष्यों के पापों का निर्धारण करने के लिए न्याय का कार्य करेगा। चूँकि यीशु हमारे प्रायश्चित के लिए बलिदान है, इसलिए हमारे पाप क्षमा किए जाएँगे और हमें दोषी नहीं ठहराया जाएगा। इसके अलावा, जो लोग प्रभु के लिए खर्च और परिश्रम करते हैं उन्हें उनके योगदान के अनुसार मुकुट प्राप्त होंगे। मुकुट बड़े और छोटे होंगे"। प्रचारक ने मुझसे जो कहा, वह मेरी समझ में नहीं आया। मुझे लगा कि यह "मुकुट" का विचार धर्मनिरपेक्ष दुनिया के उस विचार की तरह था कि वरिष्ठता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मेरा दिल इसे स्वीकार नहीं कर सका।

बाद में, मुझे एक सुसमाचार संगठन में सचिव पद का काम मिला। मेरी बॉस भी एक उपदेशक थी और स्वाभाविक रूप से वह मेरे आध्यात्मिक वरिष्ठों में से एक बन गई। उसने मुझे कई आध्यात्मिक दृष्टिकोणों को समझाया। जो मुझे सबसे स्पष्ट रूप से याद रहा, वह यह था: एक व्यक्ति के पास न केवल ज्ञान होना चाहिए, बल्कि जब धर्मनिरपेक्ष दुनिया की बात आती है तो उसे चालाक भी होना चाहिए। ज्ञान से उसका मतलब प्रभु के लिए और अधिक कार्य करना था। चूँकि लोगों के काम के नतीजे समान नहीं हैं, इसलिए उनके मुकुट भी समान नहीं होते हैं। यदि काम के परिणाम बड़े हैं, तो मुकुट भी बड़ा होगा। उसने अपने ही अनुभवों का एक उदाहरण के रूप में उपयोग किया। सुसमाचार फैलाने के लिए, उसने बहुत सहन किया और उसे एक बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी थी। स्थानीय रूप से, उसने एक कलीसिया की स्थापना की थी और कई लोगों को प्रभु में विश्वास करने के लिए मार्गदर्शन दिया था। सुसमाचार फैलाने के लिए वह कई देशों में जा चुकी है और उसे प्रभु में विश्वास करने के लिए क़ैद भी किया गया था जब भी उसने उन अनुभवों के बारे में बात की, मैंने वापस इन शब्दों के बारे में सोचा, "मुकुट काम के अनुसार दिए जाएँगे"। अनजाने में, मुझे लगा कि वह एक ऐसी व्यक्ति थी जिसे प्रभु पसंद करता था। आखिरकार, उसने प्रभु के लिए बहुत काम किया था और उसने बहुत पीड़ा झेली थी। नतीजतन, मैंने उसका और अधिक आदर करना शुरू कर दिया।

जैसे ही मैं इस प्रचारक का बड़ी भावुकता से सम्मान कर रही थी, मैंने पाया कि उसने अप्रत्याशित रूप से कलीसिया के कुछ धन का ग़बन किया था। यह कोई छोटी राशि भी नहीं थी। कोई आश्चर्य नहीं था कि वह हर दिन बहुत आडम्बर से खर्च किया करती थी। वह अक्सर अपने परिवार को रेस्तराँ में खाने के लिए ले जाती थी, मेरे लिए उसके खाते से धर्मशास्त्र का अध्ययन करने के लिए भुगतान करती थी और यहाँ तक कि अमेरिका में एक बड़ा घर भी नकद खरीदा था। पहले, मैं बहुत हैरान थी, "जब उसका पति अमेरिका में आया, तो उसके पास नौकरी नहीं थी। उसका परिवार पूरी तरह से वित्तीय रूप से उस पर निर्भर था। तो उसके पास इतना धन कैसे आया?" मुझे अंदर की कहानी केवल तब समझ में आई जब मुझे पता चला कि उसने कलीसिया के धन का ग़बन किया किया था। मैं इसे समझ नहीं पाई। वह एक प्रचारक थी, फिर भी वह खुले आम प्रभु की शिक्षाओं का उल्लंघन कर उसके चढ़ावे को चुरा सकती थी। क्या यह हो सकता है कि वह दंडित होने से नहीं डरती थी? बाइबल कहती है: "क्योंकि वह आनेवाला है। वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है, वह धर्म से जगत का, और सच्‍चाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा" (भजन संहिता 96:13)। परमेश्वर धर्मी और विश्वसनीय है। इस प्रचारक ने पहले ही प्रभु की माँगों का उल्लंघन किया था। क्या यह हो सकता है कि जब प्रभु आएगा, तो वह उसका न्याय नहीं करेगा? बाहर से, वह सही दिखती थी, लेकिन हकीक़त में, वह एक ऐसी व्यक्ति थी जिसमें प्रभु के प्रति कोई सम्मान या भय नहीं था। क्या वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने वाला कोई व्यक्ति ऐसा हो सकता है? क्या यह हो सकता है कि एक ईसाई जिसने प्रभु के लिए काम किया है और पीड़ा सही है, उसे दोषी नहीं ठहराया जाएगा चाहे वह कितना भी बड़ा पाप करे? इन सिलसिलेवार समस्याओं से मुझे यह समझ पाने की इच्छा हुई कि आख़िर न्याय क्या है। जब प्रभु वापस आता है, तो वह लोगों का न्याय कैसे करेगा? बहरहाल, अंत में, मैं बाइबल में जवाब खोजने में असमर्थ रही थी।

इस प्रचारक के कारण, मैं कई ईसाई अगुआओं को जान पाई। उनके साथ मेरी बातचीत के माध्यम से, मैं देख सकी कि उनमें से काफ़ी लोग पाप में जीते थे और खुद को इसमें से बाहर निकाल पाने में असमर्थ थे। वे दिन में पाप किया करते और रात में क्षमा माँगते थे। उन्होंने धन इकट्ठा करने के लिए परमेश्वर के नाम का दिखावा किया और बाद में इसे अपने लिए ले लिया ताकि वे और उनके परिवार ठाठ से जी सकें। कुछ लोगों के विवाहेतर मामले भी थे, जिससे उनके विवाह खोखले हो गए थे। कुछ के तलाक भी हो चुके थे...। मौखिक रूप से, वे दावा करते थे कि वे प्रभु के तरीक़े का अनुपालन करते थे और उनकी प्राथमिकताएँ परमेश्वर का राज्य और परमेश्वर की धार्मिकता थीं। बहरहाल, अभ्यास में, वे सांसारिक लोगों के समान ही थे। वे धन, पदवी और प्रसिद्धि की लालसा करते थे और घृणास्पद, गंदे और बुरे जीवन जीते थे। वे जो करते थे उससे मुझे घृणा होती थी और मेरा दिल इसे स्वीकार नहीं कर सकता था।

इसके बाद, पूरी आशा लिए, मैं कुछ अन्य कलीसियाओं में गई। बहरहाल, इन कलीसियाओं की, और कलीसियाओं के विश्वासियों की, परिस्थितियों में काफी कुछ वैसा ही था जैसा मैंने पहले देखा था। मैं बहुत निराश हुई। इसके अलावा, मैं प्रभु की शिक्षाओं को जीने में असमर्थ हो रही थी। मेरे मित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते समय, मैं हमेशा गुस्सा हो जाती थी और छोटी छोटी बातों पर उनके साथ बहस हो जाती थी। मैं दूसरों का, उनकी पीठ के पीछे, आकलन भी किया करती थी। मूल रूप से, मैं धैर्य और स्वीकृति को अभ्यास में नहीं ला पाई थी। मैं देख सकती थी कि मैं खुद पाप में जी रही थी और मेरे पास खुद को बाहर निकालने का कोई तरीक़ा नहीं था। मुझे बहुत परेशानी महसूस हुई और मैंने अक्सर सोचा, "यदि हम विश्वास के इस मार्ग पर चलना जारी रखते हैं, और पाप करने और फिर उसके लिए क्षमा माँगने के इस अंतहीन चक्र में रहते हैं, तो जब प्रभु लोगों का न्याय करने के लिए आता है, तो क्या हमें वास्तव में हमारे पापों के लिए यीशु के प्रायश्चित्त के कारण क्षमा किया जाएगा और क्या हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे?" मुझे यह संभव नहीं लगा क्योंकि मुझे याद है कि बाइबल में कहा गया है, "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्य. 11:45)। "सब से मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के, खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा" (इब्रा. 12:14)। यदि मनुष्य शुद्ध और पवित्र नहीं है, तो वह प्रभु को देखने के योग्य भी नहीं है। क्या प्रभु उसे स्वर्ग के राज्य में जाने देगा? यह अपने ही झूठ पर विश्वास करने जैसा है। कोई भी मेरे प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम नहीं था, और ऐसा लगा कि किसी को इसकी परवाह भी न थी। इसके अलावा, क्योंकि मैं लगातार पाप कर रही थी और इसके लिए क्षमा माँग रही थी, इसलिए मुझे प्रभु के सामने आने में शर्म आती थी। धीरे धीरे, मैं अब कलीसिया जाना ही नहीं चाहती थी।

ठीक तभी जब मैं निराश महसूस कर रही थी, फरवरी 2017 में एक दिन, मैंने एक बहन से इन्टरनेट पर मुलाकात की। बाइबल की स्वीकृति के बारे में उसकी बात सुनकर, मुझे लगा कि यह बहुत शुद्ध था। उसने बहुत रोशनी के साथ बातचीत की और मुझे बहुत खुशी हुई कि मुझे अंततः अपनी बिरादरी की एक आध्यात्मिक बहन मिली थी। हमने अंतहीन बातें कीं। कभी कभी, हम यह भी महसूस नहीं करते थे कि हमने पूरी दोपहर बातें की थी। यह कभी थकाऊ महसूस नहीं हुआ। इसके विपरीत, मैंने इसका बहुत आनंद लिया क्योंकि हर बार जब मैंने इस बहन को बात करते हुए सुना, मुझे लगा जैसे मुझे बहुत फायदा हुआ था। एक दिन, इस बहन ने मुझे बताया कि प्रभु पहले ही लौट चुका है, वह नए वचनों को व्यक्त कर रहा है और परमेश्वर के परिवार से शुरू होने वाले न्याय के अपने कार्य को कर रहा है, जो यीशु के निम्नलिखित वचनों को पूरा करता है: "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। जब मैंने यह खबर सुनी, तो मैं चौंक गई और खुश भी हुई हमारा जीसस, जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे थे, अंततः वापस आ गया है! अतीत में, जब मैं बाइबल पढ़ती थी, तो मैं उन शिष्यों से ईर्ष्या किया करती थी जो यीशु का अनुसरण करते थे क्योंकि वे प्रभु को आमने सामने देख और सुन सकते थे। यह कितना सौभाग्यपूर्ण अवसर था! मैंने कभी नहीं सोचा था कि स्वयं मुझे लौटे हुए प्रभु का स्वागत करने का मौका मिलेगा। आश्चर्य की बात है कि मुझे कुछ चिंताएँ भी थीं: प्रभु न्याय का कार्य करने लौट आया है। वह लोगों का न्याय कैसे करेगा? प्रभु मेरा न्याय कैसे करेगा? मैं बहुत चिंतित थी और मैं इन सवालों के जवाब जानना चाहती थी।

इसके बाद, मैंने उन प्रश्नों को बता दिया जो मेरे पास थे। बहन ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े: "अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की सच्चाइयों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सच्चाइयों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरूद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों से ही मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए अबोधगम्य हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा निष्पादित होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है" ("वचन देह में प्रकट होता है"से "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है")। "परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का सार मानवजाति को शुद्ध करना है, और यह अंतिम विश्राम के दिन के लिए है। अन्यथा, संपूर्ण मानवजाति अपने स्वयं के स्वभाव का अनुसरण करने या विश्राम में प्रवेश करने में समर्थ नहीं होगी। यह कार्य ही मानवजाति के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्ध करने का कार्य ही मानवजाति को उसकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा, और केवल उसका ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानव जाति की अवज्ञा की बातों को प्रकाश में लाएगा, फलस्वरूप, जिन्हें बचाया नहीं जा सकता है उनमें से जिन्हें बचाया जा सकता है उन्हें, और जो नहीं बचेंगे उनमें से जो बचेंगे उन्हें अलग करेगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे")

परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, उस बहन ने कहा, "अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु का कार्य छुटकारे का होता है, न कि मनुष्य की पापी प्रकृति से उसे मुक्त करने का। यही कारण है कि भले ही हमें हमारे पापों के लिए क्षमा किया गया हो, पाप करने की हमारी प्रकृति अभी भी हमारे भीतर बनी रहती है और हम अभी भी अक्सर शैतानी भ्रष्ट स्वभाव जैसे कि अहंकार, घमंड, कुटिलता, धोखेबाज़ी, स्वार्थ, लालच, बुराई इत्यादि व्यक्त करने में सक्षम हैं। शैतानी प्रकृति के बंधन और नियंत्रण के कारण, हम पाप करने और उसे स्वीकार करने के इस अंतहीन चक्र में अक्सर जीते हैं और इससे बच निकलने में असमर्थ होते हैं।" बहन ने मुझसे पूछा, "अगर हम हमेशा पाप में रहते हैं, तो क्या हम स्वर्ग के राज्य में यूँ ही आरोहण कर लेंगे?" मैंने निश्चितता से जवाब दिया, "नहीं"। बहन ने सहमति में सिर हिलाकर कहा, "ठीक है। जो लोग पाप में रहते हैं वे स्वर्ग के राज्य में बिलकुल प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि परमेश्वर शुद्ध और पवित्र है। परमेश्वर उन लोगों को जो शैतानी भ्रष्ट स्वभाव से भरे हुए हैं और प्रभु के वचनों को अभ्यास में रखने में सक्षम नहीं हैं, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति क्यों देगा? यदि ऐसा होता, तो लोगों को परमेश्वर की धार्मिकता, शुद्धता और पवित्रता को देखने का कोई तरीक़ा नहीं होगा, और न ही शैतान आश्वस्त होगा। इसलिए, अंत के के दिनों में, यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर परमेश्वर ने अपने वचनों के माध्यम से न्याय के कार्य का एक चरण किया है। उसने लाखों वचनों में सत्य को व्यक्त किया है, रहस्यों का खुलासा किया है, मानवजाति की भ्रष्टता की सच्चाई और सार का खुलासा किया है और मनुष्य के चलने के लिए एक व्यावहारिक मार्ग को भी दिखाया है, इत्यादि। इन सच्चाइयों का उद्देश्य मनुष्यों के जीवन-स्वभाव को शुद्ध करना और बदलना है ताकि हम उद्धार और पूर्णता को प्राप्त कर सकें और हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के योग्य बन सकें। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के न्याय के कार्य का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति विशेष की भ्रष्टता को लक्षित नहीं कर रहा है। इसके बजाए, यह मनुष्यों का न्याय करने के लिए पूरी मानवजाति की प्रकृति और परमेश्वर का विरोध करने और परमेश्वर को धोखा देने के सार को लक्षित करता है। परमेश्वर के न्याय के वचनों को पढ़ने के माध्यम से, हम इस बात को समझ सकते हैं कि हम शैतान द्वारा कैसे भ्रष्ट किये गए हैं और हम स्पष्ट रूप से हमारे भीतर रहे शैतानी ज़हर को, और साथ ही परमेश्वर के प्रतिकूल होने और उसका विरोध करने की शैतानी प्रकृति को भी, देख सकते हैं। यह वैसा ही है कि हम बाहर से भले ही परमेश्वर के लिए परिश्रम करने, काम करने, त्याग करने और खर्च करने में सक्षम होते हैं, हमारे काम के परिणामों का एक हिस्सा बेहद आत्मसंतुष्ट होता है। हम फिर भी खुद को ऊपर उठाते हैं और खुद की गवाही देते हैं ताकि अन्य लोग हमें अत्यधिक सम्मान दें और हमारी ओर आदर से देखें। जब हम परमेश्वर के लिए थोड़ा सा खर्च कर लेते हैं, तो हम परमेश्वर के साथ एक सौदा करने की कोशिश करते हैं क्योंकि हम परमेश्वर के अनुग्रह, आशीर्वाद, पुरस्कार और उसके मुकुट को प्राप्त करना चाहते हैं। जब हम दुखद परिस्थितियों या आपदाओं का सामना करते हैं, तो हम परमेश्वर से शिकायत करना शुरू करते हैं, परमेश्वर को गलत समझते हैं और गंभीर समय के दौरान, हम परमेश्वर को धोखा देने और परमेश्वर को छोड़ देने में भी सक्षम होते हैं, इत्यादि। परमेश्वर के वचनों के न्याय और तथ्यों के प्रकटन के भीतर, हम अंत में खुद को सचमुच समझने और खुद से घृणा करने में सक्षम होते हैं और इन भ्रष्ट स्वभावों में जिनकी वजह से परमेश्वर हमसे नफ़रत करता है, अब और न रहने के लिए हम तरसते हैं। साथ ही, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव अपराध को सहन नहीं करता है और परमेश्वर का शुद्ध और पवित्र सार दागों को बर्दाश्त नहीं करता है। हमारे स्वभाव भ्रष्ट हैं और हमें परमेश्वर के न्याय को स्वीकार करना चाहिए। इससे, हमें ऐसे दिलों को विकसित करना चाहिए जो परमेश्वर का सम्मान करें। इस तरह के न्याय और ताड़ना के कई अवसरों का सामना करके, हम धीरे-धीरे अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभाव के बन्धनों को दूर कर लेते हैं। हमारा जमीर और हमारा विवेक थोड़ा थोड़ा करके बहाल हो जाता है और हम एक वास्तविक इंसान की कुछ समानता को जी सकते हैं। ये सभी वो परिणाम हैं जिन्हें परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है"।

परमेश्वर के वचनों और बहन के संवाद को सुनकर, मेरे दिल ने महसूस किया कि सब कुछ अचानक स्पष्ट हो गया था और मुझे बहुत लाभ हो रहा था। मैं समझ गई कि अंत के दिनों में परमेश्वर सत्य को व्यक्त करने के माध्यम से न्याय का अपना कार्य करता है। वह अपने वचनों के द्वारा मनुष्य का न्याय करता है, उसे शुद्ध करता और बचाता है। उस समय, मुझे गहराई से अनुभव हुआ कि परमेश्वर का यह कार्य वास्तव में व्यावहारिक और विलक्षण था! अब, अंततः मैं समझ गई थी। अगर हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, तो केवल यीशु के छुटकारे का अनुभव करना और हमारे पापों को माफ़ करवा लेना पर्याप्त नहीं है। हमें उसके वचनों के माध्यम से न्याय के कार्य को भी स्वीकार करना होगा जिसे करने के लिए यीशु लौटा है। तभी हम शुद्ध हो सकेंगे और बचाए जाएँगे। यही वो एकमात्र मार्ग है जिससे होकर मनुष्य को बचाया जा सकता है और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश किया जा सकता है। मैं बाइबल के निम्नलिखित परिच्छेदों के बारे में सोचे बिना न रह सकी: "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17)। "जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आने वाले समय में प्रगट होने वाली है, की जाती है" (1 पतरस 1:5)। ठीक उस पल, मुझे लगा कि मैंने जिन भ्रांतियों को तब तक ढोया था, वे उस समय मेरे कंधों से हटा दी गईं थीं और मेरे दिल को बिल्कुल स्पष्ट महसूस हुआ। मैंने उसके बारे में सोचा जो कि यीशु ने कहा था: "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। सत्य केवल परमेश्वर से आ सकता है। केवल परमेश्वर ही सत्य को व्यक्त कर सकता है। मेरा मानना है कि न्याय का जो कार्य सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने करना शुरू कर दिया है, वह परमेश्वर के परिवार के साथ प्रारंभ होता है और यह परमेश्वर का कार्य है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु है। नतीजतन, मैं खुशी से अंत के के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करती हूँ।

इसके बाद, मैंने सक्रिय रूप से सभाओं में भाग लिया और मैंने उत्सुकता से परमेश्वर के वचनों को पढ़ा। एक दिन, मैंने निम्नलिखित परिच्छेद पढ़ा: "मैं प्रत्येक व्यक्ति की मंज़िल आयु, वरिष्ठता, पीड़ा की मात्रा, के आधार पर नहीं और जिस हद तक वे दया आकर्षित करते हैं उस पर तो बिल्कल भी नहीं बल्कि इस बात के अनुसार तय करता हूँ कि वे सत्य को धारण करते हैं या नहीं। इसे छोड़कर अन्य कोई विकल्प नहीं है। तुम्हें यह अवश्य समझना चाहिए कि वे सब जो परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण नहीं करते हैं दण्डित किए जाएँगे। यह एक अडिग तथ्य है। इसलिए, वे सब जो दण्ड पाते हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के कारण और उनके अनगिनत बुरे कार्यों के प्रतिफल के रूप में इस तरह से दण्ड पाते हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "अपनी मंज़िल के लिए तुम्हें अच्छे कर्मों की पर्याप्तता की तैयारी करनी चाहिए")। "मुझे तुम में से ऐसे लोगों से कोई सहानुभूति नहीं होगी जो बरसों कष्ट झेलते हैं और मेहनत करते हैं, लेकिन उनके पास दिखाने को कुछ नहीं होता। इसके विपरीत, जो लोग मेरी माँगें पूरी नहीं करते, मैं ऐसे लोगों पुरस्कृत नहीं, दंडित करता हूँ, सहानुभूति तो बिल्कुल नहीं रखता। ...मुझे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि तुम्हारी मेहनत कितनी सराहनीय है, तुम्हारी योग्यताएं कितनी प्रभावशाली हैं, तुम कितने बारीकी से मेरा अनुसरण कर रहे हो, तुम कितने प्रसिद्ध हो, या तुम कितने उन्नत प्रवृत्ति के हो; जब तक तुमने मेरी अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है, तब तक तुम मेरी प्रशंसा प्राप्त नहीं कर पाओगे। ...क्योंकि मैं अगले युग में, अपने शत्रुओं और शैतान की तर्ज़ पर बुराई में लिप्त लोगों को अपने राज्य में नहीं ला सकता" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "उल्लंघन मनुष्य को नरक में ले जाएगा")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझने में मदद की कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के प्रति न्यायपूर्ण है। परमेश्वर किसी की बाहरी लागत के आधार पर उसके अंतिम ठिकाने का निर्धारण नहीं करता है। इसके बजाए, यह इस बात पर आधारित होता है कि लोगों के पास सत्य है या नहीं, और क्या वे परमेश्वर के तरीक़े को मानते हैं। परमेश्वर वास्तव में बहुत धर्मी है! परमेश्वर ही इस तरह के एक धर्मी स्वभाव को प्रकट कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैंने इन वचनों को उस बात से जोड़ा जो यीशु ने एक बार कही थी: "जो मुझ से, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। इससे पहले मेरा यह मानना था कि जो लोग प्रभु के लिए मेहनत करते थे और काम करते थे और जिन्होंने एक बड़ी क़ीमत चुकाई थी और बहुत पीड़ा का सामना किया था, उनके साथ परमेश्वर निश्चित रूप से धीरज से व्यवहार करेगा जब प्रभु न्याय के अपने काम करने के लिए लौटता है। अब, मैंने सीख लिया है कि यह पूरी तरह से मेरी खुद की अवधारणा और कल्पना थी। यह इसे लेने का एक गलत तरीक़ा है और यह मूल रूप से परमेश्वर के इरादों के अनुसार नहीं है। आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमारे सामने अपने कार्य, अपने स्वभाव और अपने इरादों को प्रकट कर दिया है। तभी मैं यीशु ने जो कहा था उसके आंतरिक अर्थ को समझ पाई। यह वास्तव में परमेश्वर का आशीर्वाद है!

जिस बात ने मुझे और भी खुश किया वह यह थी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को मैंने स्वीकार किया उसके कुछ समय बाद, मैं देख पाई कि परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना के वचन, पाप करने की मेरी समस्या को हल करने में, वास्तव में सक्षम थे। अतीत में, यीशु ने हमें सिखाया था कि हमें दूसरों के प्रति सहिष्णु और धीर होना चाहिए, बहरहाल, मैं इसे अभ्यास में रखने में असमर्थ थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को स्वीकार करने के बाद, मैं पहचान पाई कि मैं इन बातों को अभ्यास में रखने में इसलिए असमर्थ थी कि मैं अपनी अहंकारी और घमंडी शैतानी प्रकृति के द्वारा नियंत्रित की जा रही थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं अभिमान से भरपूर थी, मेरी नज़र हमेशा दूसरों पर रहती थी और मैंने हमेशा दूसरों को तुच्छ जाना था। परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना के वचनों के माध्यम से, मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैं शैतान द्वारा किस तरह से दूषित थी। वास्तव में, मैं किसी और से अलग नहीं थी। हम सभी कुटिल, विश्वासघाती, स्वार्थी, घृण्य और मुनाफ़ाखोर थे। हमारे पास हर तरह का भ्रष्ट स्वभाव था। मैं भी एक ऐसी व्यक्ति थी जो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हो चुकी थी और मेरे पास कोई मानवीयता और तर्कसंगतता नहीं थी। परमेश्वर के न्याय को मैंने जितना अधिक प्राप्त किया, उतना ही मैं देख सकी थी कि मैं दरिद्र, दयनीय और महत्वहीन थी, और उतना ही मैंने देखा कि परमेश्वर शुद्ध, पवित्र, महान और सर्वोच्च था। अब मैं इस तरह अहंकारी बने रहना और दूसरों को तुच्छ मान लेना नहीं चाहती थी। जब मैं अपने आसपास के लोगों से बात करती, तो अब मैं उनसे ठीक से पेश आने में सक्षम थी। इस तरह, मैं बस बाहर से आत्म-संयम और धैर्य के अभ्यास पर भरोसा नहीं कर रही थी। इसके बजाय, मेरे अपने दिल में अब दूसरों के प्रति अधिक समझदारी, सहिष्णुता और क्षमाशीलता थी। मैं समझती हूँ कि वास्तव में, सारे लोग शैतानी भ्रष्ट स्वभाव के भीतर जी रहे हैं। हम सभी इसके शिकार हैं। यह शैतान है जिसने हमें भ्रष्ट कर दिया है। पर साथ ही, मैं परमेश्वर की ओर कुछ अधिक आभारी थी। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य ही है जिसने हमें अपने स्वभाव को बदलने और शुद्धिकरण तथा उद्धार को प्राप्त करने का अवसर दिया है!

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य का अनुभव करके, मैं देख सकती हूँ कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का कार्य बहुत व्यावहारिक है! अतीत में, जब मैंने प्रभु में विश्वास किया, मैंने पवित्र बनना चाहा लेकिन मेरे पास कोई मार्ग नहीं था। मेरे पाप अधिक से अधिक गंभीर होते गए थे। पाप करने के सार के संदर्भ में, प्रभु से प्रार्थना करने और प्रभु से क्षमा माँगने के अलावा, हम उन लोगों के समान ही थे जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते थे। पाप करने के हमारे सार को हल करने की खातिर परमेश्वर ने न्याय का अपना कार्य करने के लिए देहधारण किया है। यही वह कार्य है जिसे यीशु अंत के दिनों में लौटने पर करना चाहता है। यह बाइबल की उन भविष्यवाणियों को बिलकुल पूरा करता है जिनमें मनुष्य के पुत्र द्वारा अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने का ज़िक्र है। हालांकि अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किये मुझे लम्बा समय नहीं हुआ है, फिर भी परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के माध्यम से मुझे लगता है कि जब मैं परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को स्वीकार करती हूँ, और परमेश्वर के वचनों के आधार पर आत्म-चिंतन करती हूँ, परमेश्वर को समझने और परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में रखने की खोज करती हूँ, तो मैं अपने स्वभाव में बदलाव लाने में सक्षम हो जाती हूँ। अगर कोई इस तरह अंत तक खोज करता रहे, तो वह निश्चित रूप से शुद्धिकरण और उद्धार को प्राप्त कर सकता है और परमेश्वर से उसके राज्य में प्रवेश करने की अनुमति पा सकता है। इस समय, ऐसा लगता है कि मैं पहले से ही राज्य में जीने के सुंदर दृश्य को देख सकती हूँ। परमेश्वर को धन्यवाद हो! सारी महिमा सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए हो!

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