त्रित्व की पहेली का निराकरण
मैं भाग्यशाली थी कि 1997 में मैंने प्रभु यीशु के सुसमाचार को स्वीकार किया और, जब मैंने बपतिस्मा लिया, तो पादरी ने प्रार्थना की और मुझे त्रित्व—पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा—के नाम पर बपतिस्मा दिया। तब से, जब भी मैंने प्रार्थना की, मैंने त्रित्व अर्थात स्वर्गीय पिता, उद्धारकर्ता प्रभु यीशु और पवित्र आत्मा, के नाम पर प्रार्थना की। लेकिन मेरे दिल में हमेशा कुछ अनिश्चितता रही: तीन एक कैसे हो सकते हैं? मैं कभी भी पूरी तरह से समझ नहीं पाई कि त्रित्व क्या है।
दो साल बाद, मैं अपनी कलीसिया में एक उप-याजिका बन गई, और जब मैं भावी विश्वासियों के धार्मिक अध्ययन में उनके साथ होती थी, तो अक्सर कोई मुझसे त्रित्व का मतलब पूछता था। अपराध स्वीकार करने के दौरान भी लोग अक्सर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के त्रित्व के बारे में पूछते थे। चूँकि मैं ही इस रहस्य को नहीं समझती थी, मैं कभी उन्हें उत्तर नहीं दे पाती थी, और इस बात ने मुझे बहुत परेशान किया। मैं बहुत चाहती थी कि इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से समझूँ, इसलिए मैंने निश्चित उत्तर पाने की आशा में, पादरी और प्रचारकों से इसे समझाने के लिए कहा। बहरहाल, उनके उत्तर में मूल रूप से यही बात हुआ करती थी: "परमेश्वर एक त्रित्व है, जिसमें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा शामिल हैं। पिता हमारे उद्धार के लिए योजना बनाता है, पुत्र इसे अंतिम रूप देता है और पवित्र आत्मा उस योजना को कार्यान्वित करता है। पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है, और पवित्र आत्मा भी परमेश्वर है—तीन व्यक्ति, जो मिलकर एक सच्चे परमेश्वर का निर्माण करते हैं।" इस व्याख्या ने मुझे और भी उलझन में डाल दिया, और मैंने पूछा, "लेकिन अगर वे तीन व्यक्ति है, तो परमेश्वर एक कैसे हो सकता है?" इस पर उन्होंने मुझसे कहा, "त्रित्व एक रहस्य है। इस पर बहुत गहराई से मत सोचो। बस अपने विश्वास पर भरोसा रखो और इसे मानते रहो, बस इतना ही तुम्हें करने की आवश्यकता है।" हालाँकि मैं अभी भी इस बात से बहुत उलझन में थी, फिर भी मैंने यह सोचकर खुद को इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि "अब इसके बारे में मत सोचो। बस इस पर विश्वास करो!" अब भी जब मैं प्रार्थना करती, तो त्रित्व से ही प्रार्थना किया करती: प्यार करने वाला स्वर्गीय पिता, उद्धारकर्ता प्रभु यीशु और पवित्र आत्मा। मुझे ऐसा लगा, जैसे केवल उस तरह से प्रार्थना करने से ही परमेश्वर मेरी प्रार्थना सुनेगा, और मुझे डर था, कि अगर मैंने केवल परमेश्वर के किसी एक ही व्यक्ति से प्रार्थना की, तो वह मुझे नहीं सुनेगा। और इसलिए मैं अपनी कल्पना के त्रित्व में विश्वास करते हुए, वर्षों तक इस तरह की उलझन में बनी रही। उसके बाद, जब भी कलीसिया में भाई-बहन मुझसे पूछते कि त्रित्व का क्या मतलब है, तब भी मुझे पता नहीं होता था कि क्या उत्तर दूँ। मैं केवल यही कर सकती थी कि पादरी ने मुझे जो बताया था, उसके अनुसार मैं उन्हें उत्तर दे दूँ, हालाँकि मैं उनके चेहरे से बता सकती थी कि वे वास्तव में समझ नहीं पाते थे। इससे मैं असहाय महसूस करती, और मैं केवल इतना ही कर पाती कि प्रभु के सामने जाकर प्रार्थना करने लगती: "मैं तुम्हें धन्यवाद देती हूँ, प्रिय स्वर्गीय पिता! जब भाई-बहन और भावी विश्वासी मुझसे त्रित्व के बारे में सवाल पूछते हैं, तो मुझे नहीं पता कि उन्हें कैसे जवाब देना है। मैं तुमसे मदद माँगती हूँ। पवित्र आत्मा मेरा मार्गदर्शन करे, ताकि मुझे समझ में आ सके कि त्रित्व का क्या अर्थ है, ताकि आगे मुझे इस मुद्दे पर उलझन न हो, एवं और भी अधिक लोग आपको जान सकें।"
2017 के मई महीने में मैं फेसबुक पर एक बहन से मिली। वह बहुत स्नेही और धैर्यवान थी, और जब हमने पवित्रशास्त्र के कुछ अंशों को साझा किया और उन पर चर्चा की, तो मैंने पाया कि उसकी सहभागिताओं में प्रकाश था। मैंने उससे बहुत कुछ हासिल किया, और मैं उसके साथ विचारों के आदान-प्रदान के लिए उत्सुक रहती थी। बाद में वह मुझे और कुछ अन्य भाइयों और बहनों को कुछ सभाओं में ले गई। इन बैठकों में साझा की गई सहभागिताओं के माध्यम से मुझे कुछ ऐसी सच्चाइयाँ समझ में आईं, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाई थी, जैसे कि देहधारण क्या था और प्रभु किस तरह से आएगा, वगैरह। मुझे उनसे बहुत फायदा हुआ और पवित्रशास्त्र के कुछ अंशों की बहुत स्पष्ट समझ प्राप्त हुई। जब मैंने बहन से पूछा कि कैसे वह बाइबल पढ़ने से इतना कुछ समझ पा रही थी, जबकि मैं ऐसा नहीं कर पाती थी, तो उसने मुझ से कहा, "मैं जो कुछ भी समझती हूँ, वह परमेश्वर के वचनों को पढ़ने से समझ पाई हूँ। हमारा प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है। उसने अपने वचनों को व्यक्त करने और अंतिम दिनों में नया काम करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया है...।" मैं इस खबर से अचंभित और रोमांचित हो गई, और मैंने बहन से सवालों की झड़ी लगा दी: "क्या यह सच है? क्या प्रभु वास्तव में लौट आया है?" उसने निश्चितता के साथ निश्चयपूर्वक उत्तर दिया, "हाँ, यह सच है!" उसने आगे कहा कि परमेश्वर अंतिम दिनों में देहधारी रूप में लौटा था, लेकिन परमेश्वर का नाम बदल गया था। परमेश्वर को अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है, प्रकाशित वाक्य पुस्तक में की गई भविष्यवाणी के अनुसार "सर्वशक्तिमान"। जिस क्षण मैंने "सर्वशक्तिमान परमेश्वर" का नाम सुना, मेरे दिल की धड़कन रुक-सी गई, और मैंने अपने मन में सोचा: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर? क्या वह पूर्वी बिजली नहीं है? हमारे पादरी ने हमें पूर्वी बिजली के खिलाफ़ चौकन्ने रहने के लिए कहा था और उसने कहा था कि हम उनसे कोई लेना-देना न रखें। इतना ही नहीं, हम प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं, लेकिन यह बहन कह रही है कि प्रभु यीशु लौट आया है और उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम ले लिया है, तो उसका नाम अलग कैसे है? क्या मैं अंततः रास्ता भटक जाऊंगी?" लेकिन फिर मैंने सोचा: "जब से मैंने इस बहन को जाना है, मैंने पाया है कि न केवल उसकी सहभागिताएँ बाइबल के साथ मेल खाती हैं, बल्कि वे बहुत शिक्षाप्रद भी हैं, और उनमें स्पष्ट रूप से पवित्र आत्मा का ज्ञान शामिल है। अगर यह रास्ता गलत है, तो इसमें पवित्र आत्मा का कार्य कैसे हो सकता है? क्या मुझे उसकी बात सुननी चाहिए या नहीं?"
ज्यों ही मैं परस्पर विरोधी भावनाओं से विदीर्ण महसूस कर रही थी, मुझे तभी अचानक एक अंश याद आया जो कि उस बहन ने पहले मेरे साथ साझा किया था: "परमेश्वर देहधारी हुआ और मसीह कहलाया, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है")। इस अंश में मसीह का उल्लेख है और इसमें कहा गया है कि मसीह लोगों को सत्य दे सकता है। यूहन्ना का सुसमाचार, अध्याय 14, छंद 6 में, प्रभु यीशु कहता है: "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" प्रभु यीशु मसीह है, देहधारी परमेश्वर, और उसने कहा, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ।" सर्वशक्तिमान परमेश्वर और यीशु दोनों के वचनों में मसीह और सत्य का उल्लेख है। "अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मसीह है," मैंने सोचा, "तो वह निश्चित रूप से सच्चाई व्यक्त कर सकता है और लोगों के जीवन के लिए पोषण प्रदान कर सकता है।" मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचनों के बारे में सोचा, जो बहन ने हाल ही में मुझे पढ़कर सुनाए थे। जब मैंने उन्हें सुना था, मैंने उनमें अधिकार और शक्ति होने का अनुभव किया था, और मैंने महसूस किया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन वास्तव में सत्य हैं और वे पवित्र आत्मा से आए हैं! इसलिए मैंने अनुभव किया कि यह मार्ग सच्चा मार्ग होना चाहिए, और यह गलत नहीं हो सकता था। बाइबल में यह कहा गया है: "अत: विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है" (रोमियों 10:17)। यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु हो और मैं इस तरह से उसकी तलाश या जांच करने में विफल रही, और पादरियों एवं एल्डर्स ने जो कहा, सिर्फ उसी पर अंधाधुंध विश्वास कर लिया, तो क्या मैं प्रभु के उद्धार से वंचित नहीं हो जाऊँगी और उसकी वापसी का स्वागत करने में असमर्थ न रहूँगी? यह सोचकर, मैंने कुछ और सभाओं में भाग लेने का फैसला किया, ताकि मैं अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को बेहतर समझ सकूँ।
एक अन्य सभा में बहन ने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को हमारे साथ साझा किया: "वर्तमान में किए जा रहे कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने आगे प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? इसका अर्थ है कि आज के दिन का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुडी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु के द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यदि यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में एक और क्रूसीकरण घटित होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि यह कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य को पहले से भी अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबन्धन योजना समझा जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "देहधारण के महत्व को दो देहधारण पूरा करते हैं")। बहन ने तब यह कहते हुए सहभागिता दी, "परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहता है, और विभिन्न युगों में मनुष्य की ज़रूरतों के अनुसार वह अलग-अलग कार्य करता है और अलग-अलग नामों को धारण करता है। लेकिन चाहे परमेश्वर किसी भी नाम से कार्य का कोई भी चरण पूरा करे, सार रूप में, हमेशा यह मानवजाति को बचाने के लिए कार्य करने वाला स्वयं परमेश्वर ही होता है। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने अपना कार्य करने के लिए यहोवा का नाम ग्रहण किया: उसने पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था और आज्ञाओं की घोषणा की, और उसने मनुष्य को यह जानने की अनुमति दी कि पाप क्या होते हैं, उन्हें किन नियमों का पालन करना चाहिए, उन्हें परमेश्वर की उपासना कैसे करनी चाहिए, इत्यादि; अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने देह-धारण किया, उसने यीशु का नाम ग्रहण किया और व्यवस्था के युग के कार्य की नींव पर उसने मानव-जाति को छुटकारा दिलाने के लिए सूली पर चढ़ने का कार्य किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि मनुष्य के पाप क्षमा कर दिए गए। अब, राज्य के अंतिम युग में, परमेश्वर ने दूसरी बार देह-धारण किया है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम ग्रहण करते हुए, मनुष्य के छुटकारे के कार्य की नींव पर वह उसके न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करता है। इसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य में निहित पापी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभाव हट जाते हैं, और मनुष्य द्वारा पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने के मूल कारण को ही सदा के लिए हटा दिया जाता है। कार्य के तीन चरण पूर्ण रूप से एक-दूसरे के पूरक हैं, कार्य का प्रत्येक चरण पिछले चरण से अधिक ऊँचा और अधिक गहरा होता है। परमेश्वर के कार्य का कोई भी चरण एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकता—आपस में मिलकर ही ये तीन चरण उस पूरे कार्य का निर्माण करते हैं जो मानव-जाति को बचाने के लिए परमेश्वर द्वारा किया जाता है, और साथ मिलकर ही वे मानवजाति के लिए परमेश्वर की छह हजार साल की प्रबंधन-योजना का रूप लेते हैं हैं। परमेश्वर केवल युगों का सीमांकन करने और युगों को बदलने के लिए अपने नाम का प्रयोग करता है, और इसी कारण से हम देखते हैं कि परमेश्वर का नाम युग के साथ हमेशा बदल जाता है। लेकिन चाहे परमेश्वर का नाम कैसे भी बदल जाए, परमेश्वर फिर भी एकमेव परमेश्वर है।" परमेश्वर के वचनों और बहन की सहभागिता को सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गई। मैंने हमेशा परमेश्वर पर विश्वास किया था और कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली थी, जो परमेश्वर के छह हजार साल के प्रबंधन कार्य की व्याख्या करने में सक्षम हो, लेकिन फिर भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने इस रहस्य का खुलासा कर दिया था—ये वचन वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ थे! मैं अपने विश्वास में भटकी नहीं थी: सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटा हुआ प्रभु यीशु है। बात सिर्फ इतनी है कि एक युग से दूसरे युग में परमेश्वर अपना नाम बदल देता है। लेकिन वह फिर भी एकमेव परमेश्वर है।
मैं कुछ और दिनों तक इस पर ध्यान देती रही। बहन ने हमें सच्चाई के पहलुओं पर सहभागिता प्रदान की, जैसे कि अंतिम दिनों में परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य और परमेश्वर के नामों का महत्व, और जितना अधिक मैंने सुना, मुझे उतनी ही अधिक स्पष्टता प्राप्त हुई। एक दिन उसने कहा, "परमेश्वर के वचनों नेबाइबल के सभी रहस्यों को उजागर कर दिया है," और जब मैंने यह सुना, तो मेरा दिल तुरंत प्रसन्न हो गया; मैंने उसे त्रित्व के मुद्दे के बारे में बताया जो इतने सालों से मुझे परेशान कर रहा था। तब बहन ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: "यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में मौजूद है, तो वह समझाए कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का काम पवित्र आत्मा का काम नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा किया गया यहोवा का काम यीशु के काम के ही समान नहीं था? परमेश्वर के पास कितनी आत्माएं हो सकती हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन जन एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर के पास अभी भी परमेश्वर का निहित पदार्थ कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे बन सकता है? क्या यह सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा कि बाइबल में लिखा गया है कि 'केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक ही परमेश्वर है'। जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो वे चाहे अस्तित्व में हों, फिर भी एक ही परमेश्वर है, और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार जिसे तुम सब मानते हो, वह पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है, लेकिन वह देहधारण में और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा पर विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है, और केवल एक ही व्यक्ति है; और वह परमेश्वर का आत्मा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)।
बहन ने सहभागिता देते हुए कहा, "परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। परमेश्वर अद्वितीय है और केवल एक ही है। पवित्र आत्मा भी केवल एक ही है। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का एक ही सार है, जो कि आत्मा का सार है। परमेश्वर आत्मा के रूप में काम करने में सक्षम है, यहोवा की तरह, लेकिन वह यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की तरह मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करके भी कार्य कर सकता है। लेकिन चाहे परमेश्वर आत्मा में काम करे या देह में, सार यह है कि परमेश्वर का आत्मा ही अपना कार्य कर रहा है। इसलिए त्रित्व की धारणा मनुष्य की अवधारणाओं और कल्पनाओं से संबंध रखती है, जिसका ज़रा भी समर्थन नहीं किया जा सकता। दरअसल, प्रभु के 300 साल से अधिक समय के बाद नाइसिया की विश्वव्यापी परिषद में त्रित्व की धारणा स्थापित हुई थी। उस परिषद में ईसाई जगत के सभी धार्मिक विशेषज्ञों ने परमेश्वर के एकात्मक और बहु-आयामी स्वभावों के बारे में एक जीवंत बहस में भाग लिया था, और अंततः उन्होंने अपनी अवधारणाओं, कल्पनाओं और अपने तार्किक निष्कर्षों के आधार पर त्रित्व की धारणा स्थापित की थी। तब से लोगों ने एक सच्चे परमेश्वर को, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया था, एक त्रित्व के रूप में परिभाषित किया, इस विश्वास से कि पवित्र पुत्र प्रभु यीशु के अलावा स्वर्ग में एक पवित्र पिता है, और पिता और पुत्र दोनों के द्वारा प्रयोग में लाया गया एक उपकरण भी है, जो कि पवित्र आत्मा है। यह बहुत ही असंगत है। यदि हम धार्मिक दुनिया की व्याख्या के अनुसार चलते हैं और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के त्रित्व में विश्वास करते हैं, तो इसका मतलब है कि तीन आत्माएँ और तीन परमेश्वर हैं, और क्या यह इस तथ्य का खंडन नहीं करता कि परमेश्वर केवल एक है और अद्वितीय है? सच में, त्रित्व मौजूद नहीं है। यह पूरी तरह से मनुष्य के दिमाग से पैदा हुई व्याख्या है और यह हमारी अवधारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर भ्रष्ट मानवजाति द्वारा निकाला गया एक निष्कर्ष है। परमेश्वर ने कभी ऐसी बात नहीं कही, न ही परमेश्वर द्वारा प्रेरित किसी पैगम्बर या प्रेरित ने कभी ऐसा कहा, और बाइबल में कहीं भी इस तरह का कोई रिकॉर्ड नहीं है।"
परमेश्वर के वचनों और बहन की सहभागिता को सुनने के बाद भी कुछ भ्रम मेरे दिल में बना हुआ था, इसलिए मैंने पूछा, "बाइबल में कहा गया है कि यीशु के बपतिस्मा लेने के बाद आकाश खुल गया और पवित्र आत्मा कबूतर की तरह यीशु पर उतर आया और स्वर्ग से आवाज़ आई: 'यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ' (मत्ती 3:17)। साथ ही, सूली पर चढ़ाए जाने से पहले प्रभु यीशु ने प्रार्थना की और कहा: 'हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए, तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो' (मत्ती 26:39)। पवित्र शास्त्र कहते हैं कि स्वर्ग के परमेश्वर ने यीशु को अपना प्रिय पुत्र कहकर पुकारा, और प्रार्थना करते समय यीशु ने स्वर्ग के परमेश्वर को अपना पिता कहा। इसलिए, हमारे पास पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा हैं—क्या यह नहीं दर्शाता कि परमेश्वर एक त्रित्व है? तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में क्यों कहा गया है कि त्रित्व का अस्तित्व नहीं है और यह मनुष्य की अवधारणा और कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है। इन सब का क्या मतलब है?"
मेरे सवाल के जवाब में बहन ने सहभागिता देते हुए कहा, "पुराने नियम में त्रित्व जैसी कोई धारणा नहीं है। प्रभु यीशु द्वारा धरती पर अपना कार्य करने के लिए देहधारण करने के बाद ही हमारे पास 'पिता और पुत्र' की व्याख्या आई। यूहन्ना के सुसमाचार में यह दर्ज है कि फिलिप परमेश्वर को नहीं जानता था और उसका मानना था कि पृथ्वी पर प्रभु यीशु के अलावा स्वर्ग में एक पवित्र पिता भी है, और इसलिए उसने यीशु से कहा, 'हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे।' प्रभु यीशु ने उसके गलत विचार को सुधारा और फिलिप से यह कहते हुए इस रहस्य को उजागर किया कि 'हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा?' (यूहन्ना 14:9)। उसने यह भी कहा, 'मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है' (यूहन्ना 14:10)। 'मैं और पिता एक हैं' (यूहन्ना 10:30)। पिता पुत्र है, और पुत्र पिता है; पिता और पुत्र एक हैं, उनका आत्मा एक है। यह कहकर प्रभु यीशु हमें यह बता रहा था कि वह और पिता एक ही परमेश्वर हैं, दो नहीं।"
फिर बहन ने मुझे "परमपिता और पुत्र" के रहस्य को प्रकट करना नाम की एक अद्भुत फिल्म क्लिप दिखाई। इसके बाद हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा: "अभी भी ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, 'क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?' यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को साक्ष्य देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, 'मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है,' क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। ... क्योंकि वह देहधारण था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया, और इस से, पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच जो विभाजन है उसके कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता के देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है जो उसने कहा: मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देह धारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ। इस कारण से, वह केवल पिता परमेश्वर के सामने देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था, और जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं है क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता है। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता है, वह अभी भी परमेश्वर है, क्योंकि वह आत्मा का देहधारण है, और उसका सार अब भी आत्मा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)।
बहन ने कहा, "जब परमेश्वर ने पहली बार प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया और वह अपना कार्य करने आया, तो कोई भी परमेश्वर को नहीं जानता था, वे देहधारण की सच्चाई को नहीं समझते थे, और वे नहीं जानते थे कि देहधारण क्या था। यदि प्रभु यीशु ने उनसे सीधे कहा होता कि वह वही यहोवा परमेश्वर है, जिसकी वे पूजा करते हैं, तो वे उस समय अपने छोटे आध्यात्मिक क़द के कारण इसे स्वीकार न कर पाते, वे प्रभु यीशु की निंदा करते और अपना काम शुरू करने से पहले ही वह मानवजाति द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता। मानवजाति के छुटकारे का परमेश्वर का वह कार्य तब असंभव हो जाता, और मानवजाति ने पाप की भेंट के रूप में यीशु को कभी प्राप्त नहीं किया होता। यीशु के औपचारिक रूप से अपना काम शुरू करने से पहले मानवजाति प्रभु यीशु को स्वीकार करे, उस पर विश्वास करे और परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करे, इसके लिए परमेश्वर ने अपने आत्मा के स्वरूप से खुद की गवाही दी और अपने देहधारी स्वरूप को अपने पुत्र के रूप में संबोधित किया, ताकि लोग देख सकें कि यीशु वास्तव में परमेश्वर से आया है; इसने प्रभु यीशु के उद्धार को हमारे द्वारा स्वीकार करना आसान बनाने में मदद की। और जब प्रभु यीशु ने प्रार्थना की और स्वर्ग के परमेश्वर को अपना पिता कहा, तो यह देहधारी मनुष्य का पुत्र था, जो देह के नज़रिए से स्वयं के भीतर की आत्मा को पिता के नाम से संबोधित कर रहा था; इसका मतलब यह नहीं था कि पिता और पुत्र अलग थे। वास्तव में, पिता और पुत्र की व्याख्या केवल परमेश्वर के देहधारण के समय ही उचित थी। जब पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य समाप्त हो गया, अर्थात जब प्रभु यीशु छुटकारे का कार्य पूरा कर चुका, पुनर्जीवित हो गया, और उसने स्वर्ग पर आरोहण कर लिया, तो पिता और पुत्र की व्याख्या की अब कोई आवश्यकता नहीं थी। इसलिए हम मानवजाति की धारणाओं के आधार पर तैयार की गई पिता और पुत्र की व्याख्या का प्रयोग कर इसे परमेश्वर पर थोक में लागू नहीं कर सकते, यह कहते हुए कि परमेश्वर में एक पिता और एक पुत्र है, और एक उपकरण—पवित्र आत्मा—भी है जिसका उपयोग पिता और पुत्र दोनों करते हैं, और परमेश्वर एक त्रित्व है। ऐसा कहना परमेश्वर के वचन और तथ्यों के साथ मेल नहीं खाता। हमने पहले सच्चाई को समझा नहीं था, और इसलिए जब हमने ऐसी बात कही, तो परमेश्वर ने हमारी निंदा नहीं की। लेकिन अब परमेश्वर ने इस सत्य और रहस्य को पूरी तरह से प्रकट कर दिया है, और हमें सत्य को स्वीकार करना चाहिए और परमेश्वर को उसके वचनों के प्रकाश में जानना चाहिए। केवल यही सही है, और केवल यही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है।"
इस बहन की सहभागिता के माध्यम से मुझे समझ में आया कि क्यों प्रभु यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को अपना पिता कहा। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उसने मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया था और वह एक मनुष्य के नज़रिए से स्वर्गीय पिता से प्रार्थना कर रहा था। परमेश्वर ने अपने प्यारे पुत्र के रूप में यीशु की गवाही दी, और यह आत्मा के नज़रिए से परमेश्वर का अपने स्वयं के देहधारण की गवाही देना था। एक स्वर्ग में था और एक पृथ्वी पर, लेकिन सार रूप में उनका एक ही आत्मा था। बात सिर्फ यह थी कि परमेश्वर अलग-अलग नज़रिए से ये बातें कह रहा था, और इस तरह "पिता और पुत्र" की व्याख्या पैदा हुई। परमेश्वर एकमेव, सच्चा परमेश्वर है, वह एक आत्मा है, सबको समाहित करने वाला और सर्वव्यापी। वह स्वर्ग में हो सकता है, पृथ्वी पर हो सकता है, और वह देह बन सकता है। एक बार जब मैंने यह समझ लिया, तो सब कुछ अचानक स्पष्ट हो गया, जो भ्रम वर्षों से लगातार मेरे भीतर बना हुआ था, वह एक ही पल में गायब हो गया, और मुझे प्रकाश और रिहाई की एक अविश्वसनीय भावना महसूस हुई।
बाद में, बहन ने मुझे सुसमाचार की गवाही पर "त्रित्व" की छानबीन नामक एक फिल्म दिखाई, जिसमें मैंने परमेश्वर के ये वचन पाए: "इतने सालों में, परमेश्वर तुम लोगों के द्वारा इस प्रकार से विभाजित किया गया है, प्रत्येक पीढ़ी द्वारा इसे इतनी सूक्ष्मता से विभाजित किया गया है कि एक परमेश्वर को बिल्कुल तीन अलग भागों में बांट दिया गया है। और अब मनुष्य के लिए यह पूरी तरह से असम्भव है कि इन तीनों को फिर से एक परमेश्वर बना दिया जाए, क्योंकि तुम लोगों ने उसे बहुत ही सूक्ष्मता से बांट दिया है! यदि मेरा कार्य सही समय पर शुरु ना हो गया होता तो, कहना कठिन है कि तुम इस तरह ढिठाई से कब तक चलते रहते! इस प्रकार से परमेश्वर को विभाजित करते रहने से, वह अब तक कैसे तुम्हारा परमेश्वर बना रह सकता है? क्या तुम लोग अब भी परमेश्वर को पहचान सकते हो? क्या तुम अभी भी उसके पास वापस आओगे? यदि मैं थोड़ा और बाद में आता, तो हो सकता है कि तुम लोग 'पिता और पुत्र', यहोवा और यीशु को इस्राएल वापस भेज चुके होते और दावा करते कि तुम स्वयं ही परमेश्वर का एक भाग हो। भाग्यवश, अब ये अंत के दिन हैं। अंत में, वह दिन आ गया है जिसकी मैंने बहुत प्रतीक्षा की है, और मेरे अपने हाथों से इस चरण के कार्य को पूर्ण करने के बाद ही तुम लोगों द्वारा स्वयं परमेश्वर को बांटने का कार्य रूका है। यदि यह नहीं होता, तो तुम लोग और भी अधिक आगे बढ़ जाते, यहां तक कि सभी शैतानों को अपने मध्य में आराधना के लिए वेदी पर रख दिया होता। यह तुम सबकी चालाकी है! परमेश्वर को बांटने के तुम्हारे तरीके! क्या तुम सब अभी भी ऐसा ही करोगे? मैं तुमसे पूछता हूं: कितने परमेश्वर हैं? कौन सा परमेश्वर तुम लोगों के लिए उद्धार लाएगा? पहला परमेश्वर, दूसरा या फिर तीसरा जिससे तुम सब हमेशा प्रार्थना करते हो? उनमें से तुम लोग हमेशा किस पर विश्वास करते हो? पिता पर, या फिर पुत्र पर? या फिर आत्मा पर? मुझे बताओ कि तुम किस पर विश्वास करते हो। हालांकि तुम्हारे हर शब्द में परमेश्वर पर विश्वास दिखता है, लेकिन जिस पर वास्तव में तुम लोग विश्वास करते हो वो तुम्हारा मष्तिष्क है। तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर है ही नहीं! फिर भी तुम सबके दिमाग में इस प्रकार के कई 'त्रित्व' हैं! क्या तुम सब इस बात से सहमत नहीं हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?)।
फिल्म देखने के बाद मुझे खुशी महसूस हुई, लेकिन मैंने परेशानी और कुछ खेद भी महसूस किया। मैं खुश थी, क्योंकि वर्षों से जो भ्रम मेरे भीतर बना था, उसका अंततः समाधान हो गया था: परमेश्वर एक है, और त्रित्व की व्याख्या का कोई अस्तित्व ही नहीं है। केवल एक सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करना परमेश्वर की इच्छा के साथ मेल खाता है, और मुझे अब एक क्षण पिता से, और फिर अगले क्षण पवित्र आत्मा या पुत्र से, प्रार्थना नहीं करनी थी, जैसा कि मैं पहले किया करती थी—मैंने बहुत सहजता महसूस की। लेकिन मैंने परेशानी और अपने प्रति खेद महसूस किया, क्योंकि मैं परमेश्वर पर इतने सालों से विश्वास करती थी और अभी तक परमेश्वर को नहीं जान पाई थी। जिस पर मैं विश्वास करती थी, वह मेरी अवधारणाओं और कल्पनाओं द्वारा आविष्कृत परमेश्वर से अधिक कुछ नहीं था—पौराणिक कथा का एक परमेश्वर। मैं वास्तविक परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर रही थी और इतना ही नहीं, मैं परमेश्वर का विरोध कर रही थी और परमेश्वर को खंडित कर रही थी—मैं वास्तव में परमेश्वर के खिलाफ़ जाकर ईशनिंदा कर रही थी! परमेश्वर को धन्यवाद हो, क्योंकि यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आगमन है, जिसने भ्रष्ट मानवजाति के विश्वास की सभी असंगतियो को प्रकट किया है, और यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही है जिसने धार्मिक दुनिया को हमेशा चकराते रहने वाले इस रहस्य पर से परदा उठाया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर निस्संदेह लौटा हुआ प्रभु यीशु है, वो प्रभु जिसने आकाश, पृथ्वी और सभी चीजों का निर्माण किया है। वह एकमेव, सच्चा परमेश्वर है!
बाद में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मैंने पाया कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और वे परमेश्वर की आवाज़ हैं। बिना किसी हिचकिचाहट के मैंने अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया और मेमने के क़दमों से कदम मिलाकर चलने लगी। अब जब मैं प्रार्थना करती हूँ, तो मुझे तीन परमेश्वरों से प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। मैं बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से प्रार्थना करती हूँ, और इससे मैं बहुत सहज, शांत और आनंदित महसूस करती हूँ। अब जब मैं प्रार्थना करती हूँ, तो मुझे यह चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती कि मैं परमेश्वर के एक या दूसरे स्वरूप के प्रति पर्याप्त प्रार्थना नहीं कर रही हूँ, और इसलिए परमेश्वर मेरी प्रार्थना नहीं सुनेगा। मैंने वास्तव में रिहाई, आज़ादी, आनंद और उस खुशी का अनुभव किया है जो सच्चाई को समझने और परमेश्वर को जानने से आती है। परमेश्वर को धन्यवाद हो!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?