298 शैतान के हाथों इंसान के दूषण के परिणाम का सत्य
1
बरसों से भरोसा करते लोग जिन विचारों पर
जीते चले आये हैं, दूषित कर दिया उनके दिलों को उन विचारों ने।
इंसान को उन विचारों ने, कपटी, कायर और नीच बना दिया है।
न इच्छाशक्ति है न संकल्प है इंसान में,
बस लालची, अहंकारी और हठीला बन गया है
ऊँचा खुद को उठा नहीं सकता इतना कमज़ोर है
अंधेरों के असर से, अंधेरों की शक्तियों से,
खुद को आज़ाद कर नहीं सकता इंसान।
2
गले हुए विचार हैं और जीवन उनके।
परमेश्वर में आस्था पर ख़्याल उसके
सचमुच बदसूरत हैं, सहे जा नहीं सकते।
बर्दाश्त के इतने बाहर हैं, सुने जा नहीं सकते।
न इच्छाशक्ति है न संकल्प है इंसान में,
बस लालची, अहंकारी और हठीला बन गया है,
ऊँचा खुद को उठा नहीं सकता, इतना कमज़ोर है
अंधेरों के असर से, अंधेरों की शक्तियों से,
खुद को आज़ाद कर नहीं सकता इंसान।
3
डरपोक है, नीच है, कमज़ोर है इंसान,
अँधेरों की शक्तियों से नफ़रत नहीं करता वो।
प्रेम नहीं है उसमें रोशनी और सत्य के लिये,
बल्कि अपनी पूरी ताकत से उन्हें दूर भगा देता है इंसान, इंसान।
न इच्छाशक्ति है न संकल्प है इंसान में,
बस लालची, अहंकारी और हठीला बन गया है,
ऊँचा खुद को उठा नहीं सकता, इतना कमज़ोर है
अंधेरों के असर से, अंधेरों की शक्तियों से,
खुद को आज़ाद कर नहीं सकता इंसान।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो? से रूपांतरित