5. एक आवारा दिल घर आया
मेरा नाम नोवो है और मैं फिलीपींस का रहने वाला हूँ। जब मैं छोटा था, तभी से मैंने अपनी माँ के प्रभु में विश्वास का अनुसरण किया है और मैं अपने भाई-बहनों के साथ कलीसिया में प्रवचन सुनने जाया करता था। हालाँकि मैंने कई सालों से प्रभु पर विश्वास किया था, फिर भी मैंने महसूस किया कि मुझमें कोई बदलाव नहीं आया और मैं किसी अविश्वासी जैसा ही हूँ। अपने दिल में मैं लगातार सोचता रहता था कि किस तरह मैं और ज्यादा पैसा कमाऊँ और किस तरह आराम से अपने दिन बिताऊँ और अच्छे जीवन का आनंद लूँ। उससे भी बढ़कर, मैं अपने दोस्तों के साथ हर समय शराब पीने के लिए बाहर जाया करता था और जब मेरे पास कुछ अतिरिक्त पैसा होता, मैं जुआ खेलने लगता। मैं जानता था कि ये काम करना प्रभु की इच्छा के विपरीत है—इसलिए मैं अकसर प्रभु से प्रार्थना कर अपने पाप स्वीकार किया करता, और उसके सामने दृढ़ संकल्प लेता कि मैं इन बुरी आदतों को छोड़ दूँगा और उस दिन के बाद से फिर कभी पाप नहीं करूँगा। लेकिन अपने दोस्तों के बहलाने-फुसलाने पर मैं खुद पर नियंत्रण न रख पाता। और इसलिए ऐसा हुआ कि मैं अधिक से अधिक पतित हो गया, मेरा दिल परमेश्वर से अधिकाधिक दूर होता गया, मेरी प्रार्थनाओं में कोई ईमानदारी नहीं रही। हर हफ्ते मैं बस अनमने ढंग से कुछ साधारण प्रार्थनाएँ करता और भूल जाता। कभी-कभी मुझे वास्तव में निराशा महसूस होती, क्योंकि मुझे पता था कि जब प्रभु लौटेगा, तो वह हर व्यक्ति का उसके कार्यों और व्यवहार के आधार पर न्याय करेगा, फिर निर्णय लेगा कि वे स्वर्ग में जाएँगे या नरक में। मुझे लगा कि मैं इतना पतित हूँ कि परमेश्वर मुझे दोबारा माफ़ नहीं करेगा। बाद में मैंने शादी कर ली और मेरे बच्चे हो गए, और मैं बस अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में सोचने लगा। मैं अपने विश्वास को बहुत पहले ही अपने दिमाग के पीछे धकेल चुका था। अपने बच्चों को बेहतर भविष्य प्रदान करने और अमीर बनने की अपनी इच्छा साकार करने के लिए मैंने विदेश में काम करने का फैसला किया, जिस कारण मैं ताइवान आ गया। नौकरी पाने के बाद भी मैंने अपनी जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं किया। अपने खाली समय में मैं अपने सहकर्मियों के साथ शराब पीने और कराओके गाने जाता था और ऐश की ज़िंदगी जीता रहा; मैंने लंबे समय से परमेश्वर में अपने विश्वास को त्याग दिया था।
2011 में मैं ताइवान के एक कारखाने में वेल्डर के तौर पर काम करता था। 2012 में एक दिन ताइवान में एक सहकर्मी ने यह जानकर कि मैं कैथोलिक हूँ, मुझे अपनी कलीसिया में मिस्सा के लिए आमंत्रित किया। एक रविवार की सुबह वह मुझे कारखाने से लेने आ गई और मुझे अपने दोस्त के घर ले गई। वहीं मैं भाई जोसफ से मिला। उसने मुझसे पूछा, "भाई, क्या आप प्रभु यीशु के दूसरे आगमन पर विश्वास करते हैं?" मैंने कहा कि करता हूँ। इस पर उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या आप जानते हैं कि प्रभु यीशु जब लौटकर आएँगे, तो कौन-सा काम करेंगे?" मैंने जवाब दिया, "मुझे विश्वास है कि जब प्रभु यीशु लौटकर आएँगे, तो वे एक महान श्वेत सिंहासन पर बैठेंगे और मानवजाति का न्याय करेंगे। हर कोई न्याय के आसन के सामने घुटने टेककर अपने पापों का हिसाब देगा, और फिर प्रभु उनके कर्मों के आधार पर यह तय करेंगे कि उन्हें ऊपर स्वर्ग में जाना है या नीचे नरक में।" भाई जोसफ ने मुझसे आगे पूछा, "अगर हम आपसे कहें कि प्रभु यीशु पहले ही आ चुके हैं और वर्तमान में अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य कर रहे हैं, और इस प्रकार इस भविष्यवाणी को पूरा कर रहे हैं, 'पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए,' तो क्या आप इस पर विश्वास करेंगे?" उन्हें यह कहते सुनकर मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने सोचा : "क्या प्रभु यीशु पहले ही लौट आए हैं? यह कैसे हो सकता है? मैंने आकाश में महान श्वेत सिंहासन नहीं देखा, और न प्रभु को श्वेत बादल पर उतरते देखा। और फिर भी ये कहते हैं कि प्रभु अपना न्याय का कार्य करने के लिए लौट आए हैं और इस प्रकार यह भविष्यवाणी पूरी कर रहे हैं, 'पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए।' यह बात समझ में आती है। मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि की थाह नहीं ले सकता, इसलिए बेहतर है, मैं खोज करता रहूँ।" फिर मैंने उत्तर दिया, "भाई, मैं यह कहने का साहस नहीं करूँगा कि प्रभु यीशु लौट आए हैं या नहीं लौटे हैं, इसलिए कृपया इस बारे में मेरे साथ सहभागिता करें।" तब उन्होंने बाइबल में से प्रभु की वापसी और उनके द्वारा न्याय का कार्य करने से संबंधित भविष्यवाणियों के कई अंश ढूँढ़े और मुझे पढ़कर सुनाए। उदाहरण के लिए, पतरस की पहली पत्री के अध्याय 4, पद 17 में कहा गया है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए।" और यूहन्ना के सुसमाचार के अध्याय 16, पद 12–13 में भी कहा गया है : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।" भाई जोसफ ने कहा कि यह "सत्य का आत्मा" प्रभु की वापसी और उनके द्वारा सत्य को व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने को संदर्भित करता है। अंत के दिनों का परमेश्वर मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करके लौट आया है। अनुग्रह के युग में मनुष्य के छुटकारे के अपने कार्य की नींव पर वह सत्य को व्यक्त करता है और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य का चरण पूरा करता है। वास्तव में, न्याय का यह कार्य मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध करने और बचाने का कार्य है। यह प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को हूबहू पूरा करता है : "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है...। वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:22-27)। मैंने भाई की सहभागिता को ध्यान से सुना, और मुझे विश्वास हो गया कि वे सभी संदेश, जो वे मेरे साथ साझा कर रहे थे, सत्य थे क्योंकि मेरा मानना है कि प्रभु की सभी भविष्यवाणियाँ पूरी होनी हैं, और उन्हें साकार होना ही चाहिए।
बाद में भाई जोसफ ने मुझे "मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है" से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के दो अंश पढ़कर सुनाए : "न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर निःसंदेह अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होगा। अर्थात्, अंत के दिनों में मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है।" "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)।
इन वचनों को पढ़ने के बाद भाई जोसफ ने अंत के दिनों के न्याय के परमेश्वर के कार्य के बारे में कई सत्यों पर मुझसे सहभागिता की। मुझे यह समझ में आया कि परमेश्वर का कार्य बहुत ही व्यावहारिक है और वह बिलकुल भी अलौकिक नहीं है, और अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय का कार्य वैसा बिलकुल नहीं है, जैसी मैंने कल्पना की थी। मैंने कल्पना की थी कि परमेश्वर हवा के बीच में एक विशालकाय मेज रखेगा, और वह एक महान श्वेत सिंहासन पर बैठेगा और संपूर्ण मानवजाति उसके समक्ष घुटने टेकेगी। फिर परमेश्वर एक-एक करके हमारे पापों की सूची बनाकर यह निर्धारित करेगा कि हम अच्छे हैं या दुष्ट, और यह निर्णय लेगा कि हम ऊपर स्वर्ग में जाएँगे या नीचे नरक में। इसके बजाय, परमेश्वर देहधारण कर दुनिया में सत्य को व्यावहारिक रूप से व्यक्त करने, मनुष्य के पापों का न्याय करने और उसके भ्रष्टाचार के सत्य के साथ-साथ उसकी प्रकृति और सार को उजागर करने आया है। भाई जोसफ ने सहभागिता जारी रखते हुए हमें बताया कि हमारे शैतानी स्वभाव, जैसे कि हमारा अहंकार और दंभ, हमारी कुटिलता और चालाकी, और हमारे स्वार्थ और नीचता, सभी को न्याय से गुज़रना होगा, तभी हम शुद्ध किए जा सकेंगे। परमेश्वर के न्याय के कार्य का अंतिम परिणाम यह है कि हम अपनी गंदगी और भ्रष्टाचार, अपनी कुरूपता और दुष्टता के साथ-साथ अपने सार को देख सकें, जो परमेश्वर की अवहेलना और उसके साथ विश्वासघात करता है, और यह जान सकें कि हम शैतान द्वारा इतनी गहराई से भ्रष्ट किए जा चुके हैं कि हम शैतानी स्वभावों से भर गए हैं, कि हम शैतान के मूर्त रूप हैं, और हमें नष्ट हो जाना चाहिए। केवल इस तरह से हम खुद से घृणा कर सकते हैं और खुद को कोस सकते हैं, और शैतान को हमेशा के लिए छोड़ सकते हैं। इतना ही नहीं, यह इस लिए है कि हम परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना के भीतर परमेश्वर के धार्मिक, पवित्र और अपमानित न किए जाने योग्य स्वभाव को जान सकें। फिर हम अनजाने ही हमारे हृदय परमेश्वर-भीरू बन सकेंगे, फिर कभी हम परमेश्वर की अवज्ञा और अवहेलना करने की हिम्मत नहीं करेंगे, और अपनी देह का त्याग और सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हो जायेंगे। एक बार जब हमारे जीवन का स्वभाव बदल जाता है, तो हम वास्तव में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने और उसकी आराधना करने में सक्षम हो जाएँगे। और एक बार जब हम अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य के विभिन्न पहलुओं को जान लेते हैं, तो फिर हम परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से शुद्ध कर दिए जाएँगे और बचा लिए जाएँगे, और परमेश्वर द्वारा उसके राज्य में ले जाए जाने के योग्य हो जाएँगे। जो लोग अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे परमेश्वर का शुद्धिकरण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं—अंत में वे केवल परमेश्वर के कार्य द्वारा समाप्त ही किए जा सकते हैं, और वे बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का अवसर खो देंगे। भाई जोसफ की सहभागिता सुनकर मुझे लगा कि मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का काम कितना सत्य और व्यावहारिक है!
मैंने सोचा कि किस तरह मैंने कई वर्षों तक प्रभु पर विश्वास किया और भले ही मैं अकसर प्रभु के सामने अपने पाप स्वीकार करता और पश्चात्ताप किया करता था, लेकिन मैं पाप करना, झूठ बोलना, धोखा देना, कुटिल और चालाक होना नहीं छोड़ पाता था, यहाँ तक कि अकसर अपने निरंकुश अहम्मन्य, अहंकारी और दंभी शैतानी स्वभाव प्रकट कर दिया करता। मैं लगातार पाप करने और कबूल करने, कबूल करने और पाप करने के चक्र में जी रहा था—ऐसे दर्द में जी रहा था मैं। परमेश्वर अब अंत के दिनों के अपने न्याय और शुद्धि का काम करने के लिए आ गया है, जो भ्रष्ट मानवजाति के लिए अत्यधिक आवश्यक है। जो लोग प्रभु में विश्वास करते हैं और अपने पापों से छुटकारा पा चुके हैं, उन्हें अभी भी अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के काम के शुद्धिकरण की आवश्यकता है। बाइबल कहती है, "उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा" (इब्रानियों 12:14)। प्रभु पवित्र है। यदि हम केवल अपने पापों को समाप्त करते हैं, लेकिन हमारी पापमयी प्रकृति और शैतानी स्वभाव शुद्ध नहीं किए जाते, तो अभी भी हम किसी भी समय पाप करने और परमेश्वर की अवहेलना करने, बार-बार शिकायत करने, यहाँ तक कि परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने में भी सक्षम होते हैं। इस तरह की मलिनता और भ्रष्टाचार से भरे हम प्रभु के चेहरे की ओर देखने के योग्य कैसे हो सकते हैं? केवल तभी मैंने अपने दिल में महसूस किया कि अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य कितना अधिक आवश्यक है! अगर लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार प्रभु आकर लोगों से मिलने के लिए हर एक को हवा में ले जाता है, तो यह कितना अवास्तविक और अव्यावहारिक होगा! उसके बाद भाई जोसफ ने सहभागिता कर अपने अनुभवों और गवाही के बारे में बताया कि किस तरह उन्होंने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार किया। मुझे वास्तव में लगा कि उनकी सहभागिता में पवित्र आत्मा का प्रबोधन और प्रकाश समाहित है। उसे सुनना बहुत शिक्षाप्रद था, और मुझे विश्वास हो गया कि प्रभु यीशु वास्तव में लौट आए होंगे। इस प्रकार मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के काम के बारे में खोज और जाँच-पड़ताल करने का फैसला किया, ताकि मैं प्रभु के आगमन का स्वागत करने का अपना मौका न छोडूँ।
बाद में भाई जोसफ ने मुझे वचन देह में प्रकट होता है की एक प्रति दी और मैं रोमांचित हो गया। जब मैं उस शाम अपने शयनागार में वापस गया, तो मैंने परमेश्वर के वचन पढ़ने शुरू किए और मैं उन्हें रात भर पढ़ता रहा। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "तुम लोगों के मुँह छल और गंदगी, विश्वासघात और अहंकार के वचनों से भरे हैं। तुम लोगों ने मुझसे कभी ईमानदारी के वचन नहीं कहे, मेरे वचनों का अनुभव करने पर कोई पवित्र बातें, समर्पण करने के शब्द नहीं कहे। आखिर तुम लोगों का यह कैसा विश्वास है? तुम लोगों के हृदय में केवल अभिलाषाएँ और धन भरा हुआ है; तुम्हारे दिमाग में भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ नहीं है। तुम लोग प्रतिदिन हिसाब लगाते हो कि तुमने मुझसे कितनी सम्पत्ति और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त की हैं। तुम लोग प्रतिदिन और भी अधिक आशीष पाने की प्रतीक्षा करते हो ताकि तुम लोग और भी अधिक तथा और भी बेहतर तरीके से उन चीज़ों का आनन्द ले सको जिनका आनंद लिया जा सकता है। मैं तुम लोगों के विचारों में हर समय नहीं रहता, न ही वह सत्य रहता है जो मुझसे आता है, बल्कि तुम लोगों के विचारों में पति (पत्नी), बेटे, बेटियाँ, या तुम क्या खाते-पहनते हो, यही आते हैं। तुम लोग यही सोचते हो कि तुम अपने आनंद को और कैसे बढ़ा सकते हो। लेकिन अपने पेट को ठूँस-ठूँसकर भरकर भी क्या तुम लोग महज़ लाश ही नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग अपने बाहरी स्वरूप को सजा लेते हो, क्या तब भी तुम लोग एक चलती-फिरती लाश नहीं हो जिसमें कोई जीवन नहीं है? तुम लोग पेट की खातिर तब तक कठिन परिश्रम करते हो जब तक कि तुम लोगों के बाल सफेद नहीं हो जाते, फिर भी तुममें से कोई भी मेरे कार्य के लिए एक बाल तक का त्याग नहीं करता। तुम लोग अपनी देह, अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार सक्रिय रहते हो, अपने तन को थकाते रहते हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट देते रहते हो, फिर भी तुम में से कोई एक भी मेरी इच्छा के लिए चिंता या परवाह नहीं दिखाता। ऐसा क्या है जो तुम अब भी मुझ से प्राप्त करने की आशा रखते हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं)।
इन वचनों ने जो उजागर किया, मेरे जीवन की ठीक वही स्थिति थी, और मैं वास्तव में अपने दिल में ऐसा ही महसूस करता था। ये वचन एक दोधारी तलवार की तरह थे, जो मेरे सुन्न हृदय में घुस गए। मैं जानता था कि केवल परमेश्वर ही मनुष्य के अंतरतम हृदय की जाँच कर सकता है, और केवल परमेश्वर ही मनुष्य के भ्रष्टाचार के सत्य को प्रकट करने के साथ-साथ यह भी प्रकट कर सकता है कि उसके भीतर क्या छिपा है। मैंने महसूस किया कि ये वचन पवित्र आत्मा के कथन हैं, और ये परमेश्वर की वाणी हैं। परमेश्वर के वचनों से मुझे पता चला कि हालाँकि मैं कई वर्षों से प्रभु में विश्वास करता था और मैंने अकसर प्रभु के सामने पाप स्वीकार किए और पश्चात्ताप किया, लेकिन मेरी पापमयी प्रकृति और शैतानी स्वभाव शुद्ध नहीं हुए थे और बिलकुल भी नहीं बदले थे। मैं केवल प्रभु के नाम को स्वीकार कर रहा था, लेकिन मेरे दिल में प्रभु के लिए कोई जगह नहीं थी, न ही मैंने खुद को प्रभु के लिए खपाया और न उसके लिए काम ही किया। मैं लगातार इन बातों में लीन रहा कि किस तरह ज्यादा धन कमाया जाए, किस तरह अपने दैहिक भोगों को बढ़ाया जाए, और किस तरह मैं अपने परिवार को ज्यादा सुख-समृद्धि का जीवन-यापन करवा सकता हूँ, कभी भी मैंने परमेश्वर की इच्छा का ख़याल नहीं किया। मैं यह भी जानता था कि मैं अकसर झूठ बोलता और पाप करता था, पर उसके बारे में कुछ नहीं सोचता था। मेरा हमेशा से मानना था कि परमेश्वर हमेशा प्यार करने वाला, हमेशा दयालु परमेश्वर है, और अगर मैं पाप भी करूँगा, तो भी वह मुझे मेरे पापों से मुक्त कर देगा, मेरे प्रति दयालु रहेगा और मुझे आशीर्वाद देगा। केवल अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा कहे गए इन कथनों को पढ़ने के बाद ही मैंने परमेश्वर का धार्मिक और पवित्र स्वभाव देखा, और मैंने जाना कि परमेश्वर का स्वभाव कुछ ऐसा है, जिसे कोई ठेस नहीं पहुँचा सकता। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना ने मेरे भीतर उसके प्रति श्रद्धा को जन्म दिया और मैंने अपने अतीत पर शोक व्यक्त किया। मैं परमेश्वर के सामने गिर गया और फूट-फूटकर रोने लगा : "हे परमेश्वर, मैंने तुम्हारे खिलाफ बगावत की है, तुम्हें धोखा दिया है और कई मामलों में तुम्हारी अवहेलना की है, और मैं तुम्हारे सामने आने लायक नहीं हूँ। मैंने जो कुछ किया है, वह केवल सजा के योग्य है। हे परमेश्वर, मुझे पश्चात्ताप करने और बचाने का अवसर देने के लिए धन्यवाद। अब से मैं सत्य का अनुसरण करने, अपने कर्तव्य का अच्छी तरह से पालन करने और तुम्हारे प्यार की भरपाई करने में अपनी पूरी ताकत लगा दूँगा।" प्रार्थना करने के बाद मैंने दृढ़ संकल्प किया : मुझे परमेश्वर का न्याय स्वीकार करना चाहिए और पाप करने और उन्हें स्वीकार करने वाला अपना जीवन बदलना चाहिए; मुझे परमेश्वर के वचनों को अधिक पढ़ना चाहिए और उन पर अधिक चिंतन करना चाहिए, ताकि मैं सत्य को अधिक समझ सकूँ और और देह का त्याग करने, सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने की शक्ति प्राप्त कर सकूँ।
उस समय से मैं वचन देह में प्रकट होता है को अपने साथ काम पर ले जाने लगा, ताकि काम से थोड़ी देर का अवकाश मिलने पर मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकूँ और उनका चिंतन कर सकूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मेरा व्यवहार और मेरे विचार कितने भ्रष्ट और विद्रोही थे। बाद में मैंने परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा, जिनमें कहा गया है : "तुम्हारी प्रार्थना तुम्हारे हृदय की सच्ची अवस्था और पवित्र आत्मा के कार्य के अनुरूप धीरे-धीरे बढ़नी चाहिए; तुम परमेश्वर से उसकी इच्छा और मनुष्य से क्या अपेक्षा रखता है, इसके अनुसार उसके साथ संवाद करते हो। जब तुम प्रार्थना का अभ्यास शुरू करो, तो सबसे पहले अपना हृदय परमेश्वर को दे दो। परमेश्वर की इच्छा को समझने का प्रयास न करो—केवल अपने हृदय में ही परमेश्वर से बात करने की कोशिश करो। जब तुम परमेश्वर के समक्ष आते हो, तो इस तरह बोलो : 'हे परमेश्वर, आज ही मुझे एहसास हुआ कि मैं तुम्हारी अवज्ञा करता था। मैं वास्तव में भ्रष्ट और नीच हूँ। मैं केवल अपना जीवन बर्बाद करता रहा हूँ। आज से मैं तुम्हारे लिए जीऊँगा। मैं एक अर्थपूर्ण जीवन जीऊँगा और तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा। तुम्हारा आत्मा मुझे लगातार रोशन और प्रबुद्ध करता हुआ हमेशा मेरे अंदर काम करे। मुझे अपने सामने मज़बूत और ज़बर्दस्त गवाही देने दो। शैतान को हमारे भीतर प्रकाशित तुम्हारी महिमा, तुम्हारी गवाही और तुम्हारी विजय का प्रमाण देखने दो।' जब तुम इस तरह से प्रार्थना करते हो, तो तुम्हारा हृदय पूरी तरह से मुक्त हो जाएगा। इस तरह से प्रार्थना करने के बाद तुम्हारा हृदय परमेश्वर के ज्यादा करीब हो जाएगा, और यदि तुम अकसर इस तरह से प्रार्थना कर सको, तो पवित्र आत्मा तुममें अनिवार्य रूप से काम करेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रार्थना के अभ्यास के बारे में)। परमेश्वर के वचनों के भीतर मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव को सुधारने के लिए अभ्यास का एक रास्ता मिल गया, और मैंने अपने भ्रष्ट स्वभाव को परमेश्वर के सामने खोलकर रखते हुए और उसे यह बताते हुए कि मैं अपने हृदय में क्या प्राप्त करने की आशा रखता हूँ, ईमानदारी और सच्चे हृदय से परमेश्वर से प्रार्थना करनी शुरू कर दी। मैंने उससे कहा कि उसके वचनों पर खरा उतरने के लिए वह मेरा मार्गदर्शन करे। इस तरह की प्रार्थनाओं के माध्यम से मुझे अकसर लगता कि परमेश्वर मेरी अगुवाई और प्रबोधन कर रहा है, और मेरा हृदय विश्वास और शक्ति से भर गया। मैंने अब पहले की तरह रहना छोड़ दिया और अपने दिल के भ्रष्ट विचारों के अनुसार काम करना भी बंद कर दिया। मेरा जीवन बदल गया था; वह अब पहले जैसा पाप करके स्वीकार करने वाला पतित जीवन नहीं रहा, बल्कि इसके बजाय मैं वास्तव में परमेश्वर के सामने रहने लगा था, और मैंने परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा प्राप्त कर ली थी।
जुलाई 2014 में मैं फिलीपींस लौट आया, और तभी मुझे इस बात की जानकारी हुई कि परमेश्वर ने फिलीपींस में भी कई भाई-बहन चुन लिए थे। मैं बहुत खुश हुआ। अब मैं कलीसिया में अपने भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों की सहभागिता करता हूँ, हम कलीसिया का जीवन जीते हैं, और एक-दूसरे की सहायता और समर्थन करते हैं। हम सब सत्य का अनुसरण करते हैं; हम अपने स्वभाव बदलना और परमेश्वर द्वारा बचाया जाना चाहते हैं। हम अपने देश के लोगों के साथ-साथ अन्य देशों के लोगों के लिए भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के काम की गवाही भी देते हैं, ताकि वे जान जाएँ कि प्रभु यीशु पहले ही लौट आए हैं और वे भी हमारी तरह अंत के दिनों का परमेश्वर का उद्धार पा सकें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद! मैं अब बहुत समृद्ध और खुशहाल जीवन जी रहा हूँ। मैंने अब अपनी पहले की पतित और पतनशील ज़िंदगी से पूरी तरह से छुटकारा पा लिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जीवन-लक्ष्य और दिशा खोजने में मेरी अगुवाई की है। मुझे लगता है कि अर्थपूर्ण जीवन जीने का यही एकमात्र तरीका है!