791 सभी चीज़ों पर परमेश्वर की संप्रभुता द्वारा उसे जानो
1 लोगों के हृदय में परमेश्वर की समझ जितनी होती है, उतनी ही उनके हृदय में उसके लिए जगह होती है। उनके हृदय में परमेश्वर का ज्ञान जितना होता है, उनके हृदय में परमेश्वर उतना ही महान होता है। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, अगर वह खोखला और अस्पष्ट है, तो जिस परमेश्वर में तुम विश्वास करते हो, वह भी खोखला और अस्पष्ट ही होगा। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, वह तुम्हारी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के दायरे तक ही सीमित होता है, और उसका सच्चे स्वयं परमेश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है।
2 इसलिए, परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को जानना, परमेश्वर की व्यावहारिकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को जानना, स्वयं परमेश्वर की सच्ची पहचान को जानना, जो उसके पास है और जो वह स्वयं है, उसे जानना सभी चीजों के बीच अभिव्यक्त उसके कार्यों को जानना—ये चीजें हर उस व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो परमेश्वर के ज्ञान के अनुसरण में लगा है। इनका इस बात से सीधा संबंध है कि लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं।
3 अगर तुम परमेश्वर के बारे में अपनी समझ सीमित रखते हो केवल शब्दों तक, अपने छोटे-मोटे अनुभवों तक, जिसे परमेश्वर के अनुग्रहों के रूप में गिनते हो उस तक या परमेश्वर के लिए अपनी छोटी-मोटी गवाहियों तक, तो मैं कहता हूँ कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह सच्चा स्वयं परमेश्वर बिल्कुल नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह एक काल्पनिक परमेश्वर है, सच्चा परमेश्वर नहीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सच्चा परमेश्वर वह है, जो हर चीज पर शासन करता है, जो हर चीज के मध्य चलता है, और हर चीज का प्रबंधन करता है। वही है, जिसकी मुट्ठी में पूरी मानवजाति और सभी चीजों की नियति है। जिस परमेश्वर के बारे में मैं बात कर रहा हूँ, उसका कार्य और उसके कृत्य लोगों के एक छोटे-से हिस्से तक ही सीमित नहीं हैं। अर्थात्, वे केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं हैं, जो वर्तमान में उसका अनुसरण करते हैं। उसके कर्म सभी चीजों में, सभी चीजों के अस्तित्व में, और सभी वस्तुओं के परिवर्तन की व्यवस्थाओं में अभिव्यक्त होते हैं।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX