14. प्रभु पूर्व में प्रकट हुआ है

क्यू झेन, चीन

एक दिन, मेरी बहन ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि वह उत्तर की अपनी यात्रा से वापस आ गई है और मुझे बताने के लिए उसके पास कोई महत्वपूर्ण बात थी। उसने मुझे तुरंत आने के लिए कहा। मुझे कुछ बुरी घटना का आभास हो रहा था इसलिए मैं सीधे अपनी बहन के यहाँ जा पहुँची। जैसे ही मैंने प्रवेश किया और देखा कि मेरी बहन एक किताब पढ़ रही थी, मुझे राहत मिली। मेरी बहन मुझे आते हुए देख उछलकर खड़ी हो गयी और खुशी से बोली: "बहन! देश के उत्तरी भाग में इस बार मुझे कुछ अच्छी खबर मिली: प्रभु यीशु वापस आ गया है!"

यह सुनकर, मैं अपने ख़्यालों में खो गयी और सोचने लगी: पिछले कुछ वर्षों से पूर्वी बिजली यह प्रमाण दे रही है कि प्रभु यीशु वापस आ गया है; तो क्या मेरी बहन ने पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है? मेरे कुछ भी कहने से पहले, मेरी बहन ने गंभीरता से कहा: "ओह, क्यू झेन! प्रभु ने देहधारण कर लिया है, और वह हमारे देश, चीन में, आया है।" यह सुनते ही मैंने जल्दी से कहा: "लोगों की हर बात पर विश्वास मत करो। क्या परमेश्वर चीन में आ सकता है? बाइबल में यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है: 'उस दिन वह जैतून के पर्वत पर पाँव रखेगा, जो पूर्व की ओर यरूशलेम के सामने है; तब जैतून का पर्वत पूर्व से लेकर पश्‍चिम तक बीचोबीच से फटकर बहुत बड़ा खड्ड हो जाएगा; तब आधा पर्वत उत्तर की ओर और आधा दक्षिण की ओर हट जाएगा' (जकर्याह 14:4)। परमेश्वर का आगमन इस्राएल में ही होगा। वह चीन में नहीं आ सकता है। तुम प्रभु के लिए काम करती हो, और इतना भी नहीं जानती!"

मेरी बहन ने ईमानदारी से कहा, "मैं भी तुम्हारी तरह सोचा करती थी, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और भाइयों और बहनों की सहभागिता के माध्यम से, मुझे एहसास हुआ है कि प्रभु ने वास्तव में चीन में देहधारण किया है। जिस शास्त्र की तुम बात कर रही हो वह एक भविष्यवाणी है, लेकिन भविष्यवाणियों की हम इच्छानुसार व्याख्या नहीं कर सकते हैं। वे परमेश्वर के कार्य के तथ्यों के माध्यम से पूरी की जाती हैं ताकि लोग देख सकें। जब प्रभु यीशु काम करने के लिए आया, न तो पतरस और न ही सामरी स्त्री, न ही इथियोपिया का नपुंसक बाइबल की भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ से चिपके रहे थे। यह तो प्रभु यीशु के कथन, और उसने जो कार्य किय, इन सबके तथ्य थे जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि मसीहा प्रभु यीशु के रूप में आया था। उन सभी ने परमेश्वर के कदमों का अनुसरण किया और प्रभु का उद्धार प्राप्त किया। और बाइबल की भविष्यवाणियों के शब्दों पर ध्यान देने वाले फरीसियों ने, प्रभु यीशु से, वो मसीहा जो आ चुका था उससे, एक साधारण व्यक्ति जैसा व्यवहार किया और प्रभु यीशु को अस्वीकार किया, उसका विरोध किया और उसकी निंदा की। अंत में प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया, इसलिए उन्हें परमेश्वर ने दंडित किया। क्यू झेन, हमें प्रभु के आगमन को सावधानीपूर्वक लेना होगा। हमारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होना चाहिए। तुम्हें इस मामले में निर्णय लेने की जल्दबाज़ी बिलकुल नहीं करनी चाहिए!"

मैंने अपनी बहन की ओर देखा और बाइबल उठाकर कहा, "यहोवा परमेश्वर ने इस्राएल में व्यवस्था को लागू किया और प्रभु यीशु को भी इस्राएल में ही क्रूस पर चढ़ाया गया। चीन एक नास्तिक पार्टी द्वारा शासित देश है, तो क्या परमेश्वर ऐसे देश में आएगा? हमने प्रभु में इतने सालों से विश्वास किया है, लेकिन हमें हर सुनी बात का विश्वास नहीं करना चाहिए!"

मेरी बहन ने चिंतित होकर कहा, "क्यू झेन, जब प्रभु यीशु अपना कार्य कर रहा था, तो फरीसियों ने प्रभु का विरोध किया और कहा: 'ढूँढ़ और देख कि गलील से कोई भविष्यद्वक्‍ता प्रगट नहीं होने का' (यूहन्ना 7:52)। 'क्या मसीह गलील से आएगा?' (यूहन्ना 7:41)। लेकिन वास्तव में प्रभु यीशु गलील के नासरत में बड़ा हुआ था। बाइबल कहती है: 'आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! "प्रभु की बुद्धि को किसने जाना? या उसका मंत्री कौन हुआ?"' (रोमियों 11:33-34)। हम परमेश्वर की बुद्धि को कैसे माप सकते हैं? हम अपने दिमाग के आधार पर परमेश्वर के कार्य का विश्लेषण नहीं कर सकते! हम हर दिन प्रभु के आने की प्रतीक्षा करते हैं। अब जब प्रभु वास्तव में लौट आया है, तब यदि हम अपनी अवधारणाओं को थामे रहते हैं और खोज या जाँच नहीं करते हैं, तो हम परमेश्वर से मिलने का मौका चूक जाएँगे और अफसोस में डूबे रहेंगे!"

अपनी बहन को इतनी गंभीरता से बोलते देखकर मैंने सोचा: "मेरी बहन ईमानदारी से प्रभु में विश्वास करती है और वह एक विचारशील महिला है जो अपने विचारों को अच्छे से समझती है। वह आम तौर पर जो भी करती है उसे लेकर सावधान रहती है, और प्रभु के आगमन जैसे एक बड़े मुद्दे पर वह किसी के कहने पर अंधाधुंध विश्वास कर ले, इसकी संभावना और भी कम है। अब चूँकि उसने पूर्वी बिजली को स्वीकार कर लिया है, क्या यह हो सकता है कि प्रभु वास्तव में वापस आ गया है और चीन में अपना कार्य कर रहा है?" लेकिन फिर एक और विचार आया: "प्रभु चीन में कैसे अपना काम कर सकता है? इसकी तो कल्पना भी मुश्किल है!" तो मैंने दृढ़ता से कहा: "बाइबल उस केक की तरह है जिसकी एक हज़ार परतें हों और इसकी व्याख्या करने का तरीक़ा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग है। बाइबल भविष्यवाणी करती है कि परमेश्वर वास्तव में अंत के दिनों में इस्राएल में अवतरित होगा। इसके अलावा, अधिकांश चीनी लोग बुद्ध की पूजा करते हैं और राष्ट्रीय सरकार ने हमेशा धार्मिक मान्यताओं को सताया है। परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए चीन में नहीं आएगा!"

मेरी बहन ने उत्सुकता से कहा, "क्यू झेन, प्रभु लौट आया है और कार्य करने के लिए चीन में प्रकट हुआ है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। मैंने अभी-अभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया है। मैं अभी भी सत्य के इस पहलू के बारे में बहुत कुछ नहीं समझती हूँ, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई- बहन एक बहुत ही रोशन करने वाले तरीके से गवाही देते हैं। मैं उन्हें तुम्हारे साथ सहभागिता करने के लिए बुलाती हूँ!" मैंने अपना हाथ हिलाया और कहा, "रहने दो, उन्हें मत बुलाओ। मैं जा रही हूँ।" घर लौटने के बाद, मैं सोफे पर सुस्ती से बैठ गई और मेरी बहन ने जो कहा था, उस पर मैंने फिर से सोचा। मैं दिमाग के तूफान-सा आ गया था और मैं शांत नहीं हो पा रही थी। मैंने हमेशा जैतून के पर्वत पर प्रभु यीशु के अवतरित होने का इंतजार किया था, तो मेरी बहन अचानक कैसे कह सकती थी कि प्रभु चीन में आया था? यह कैसे हो सकता है? मैंने लगातार बाइबल के पन्ने पलटाये लेकिन एक भी ऐसा अध्याय नहीं मिला जो भविष्यवाणी करता हो कि प्रभु चीन में अपना कार्य करने आएगा।" उस समय जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया, तो फरीसियों ने प्रभु का विरोध किया और कहा: 'ढूँढ़ और देख कि गलील से कोई भविष्यद्वक्‍ता प्रगट नहीं होने का' (यूहन्ना 7:52)। 'क्या मसीह गलील से आएगा?' (यूहन्ना 7:41)। लेकिन वास्तव में प्रभु यीशु गलील के नासरत में पला-बढ़ा था...। मेरी बहन के शब्द बार-बार मेरे दिमाग में आ रहे थे, और मैंने सोचा कि उसने जो कहा, वह सच था। मैंने एक पल के लिए बाइबल पर नज़र डालती फिर अपनी बहन के शब्दों के बारे में सोचती। मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ रहे थे लेकिन, मुझे पता नहीं चला कि मुझे क्या करना चाहिए, इसलिए मैंने बस अपने दिल में प्रभु को पुकारा, "प्यारे प्रभु, मुझे क्या करना चाहिए? हे प्रभु, तुम कहाँ अवतरित होगे?"

कुछ दिनों बाद मेरी बहन फिर मुझे ढूँढते हुए आई। जैसे ही उसने घर में प्रवेश किया, वह मुस्कुराई और बोली, "क्यू झेन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की बहन ज़ी और बहन हाओ मेरे समर्थन के लिए मेरे घर आईं। उन्होंने लंबे समय से सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास किया है और मुझसे कहीं ज्यादा समझती हैं। यदि प्रभु की वापसी के बारे में ऐसा कुछ भी है जो तुम नहीं समझती हो, तो जाओ और उनके साथ सहभागिता करो।" मैंने सोचा: "मैंने प्रभु में इतने वर्षों से विश्वास किया है और हमेशा से प्रभु के आने की आशा की है। क्या प्रभु वास्तव में आ गया है?शायद मुझे उनके साथ सहभागिता करने के इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।" तो मैं अपनी बहन के साथ उसके घर गई। जैसे ही मैंने कमरे में प्रवेश किया, दोनों बहनों ने बहुत स्नेह से मेरा अभिवादन किया और बहुत ही शिष्टाचार से बात की। उन्होंने कहा कि अगर मेरे पास कोई सवाल हो, तो मैं खुलकर बात करूँ ताकि सब मिलकर सहभागिता कर सकें। मैंने पूछा, "आप कहती हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है और चीन में अपना कार्य कर रहा है? क्या बाइबल में इस बात का कोई आधार है?" बहन हाओ मुस्कुराई और उसने कहा, "बहन, बाइबल में वास्तव में अंत के दिनों में प्रभु के चीन में अपना कार्य करने के लिए आने के बारे में भविष्यवाणियाँ हैं।" मैं यह सुनकर भौचक्की रह गयी और मैंने कहा, "यह कैसे हो सकता है? मैं कई बार बाइबल पढ़ चुकी हूँ, लेकिन बाइबल में मैंने इसका एक भी ज़िक्र नहीं पाया है। बाइबल में इसका आधार कहाँ है?" बहन हाओ ने धैर्यपूर्वक कहा, "बहन, आओ, हम पवित्रशास्त्र के दो पद पढ़ें और तुम जान लोगी। मलाकी 1:11 में लिखा है: 'क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है ... सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।' मत्ती 24:27 में यह कहा गया है: 'क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा।' पवित्रशास्त्र के इन दो पदों से, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि वह स्थान जहाँ परमेश्वर एक बार फिर उतरेगा, वह दुनिया का पूर्व है और यह अन्यजातियों का देश है। हम सभी जानते हैं कि चीन दुनिया का पूर्व है। परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरण इस्राएल में थे। इस्राएल के लिए चीन एक अन्यजातियों का राष्ट्र है। इसलिए अंत के दिनों में काम करने के लिए परमेश्वर का चीन में आगमन इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है!" बहनों की सहभागिता सुनने और पवित्रशास्त्र के इन दो पदों के अर्थ पर विचार करने के बाद, मैंने सोचा कि उनकी सहभागिता बहुत ज्ञानवर्धक थी। हालाँकि मैंने इन दो पदों को पहले पढ़ा था, लेकिन मैंने प्रभु की पूर्व में वापसी का अर्थ चीन नहीं समझा था। उनकी व्याख्या को सुनकर, अब मुझे लगा कि उनकी सहभागिता का स्त्रोत पवित्र आत्मा के प्रबोधन में था।

बहन हाओ ने आगे कहा, "चलो, देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने क्या कहा है: 'मैं पूरे ब्रह्मांड में अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब से असंख्य गर्जनाएं निरंतर गूँज रही हैं, जो सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में लाई है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लूँगा, उन्हें इस धारा में बहाऊँगा और अपने सामने समर्पण करवाऊँगा, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा को वापस लेकर इसे नये सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा को देखने के लिए लालायित नहीं है? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं कर रहा है? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता को देखने के लिए तरस नहीं रहा है? कौन प्रकाश में नहीं आना चाहता? कौन कनान की समृद्धि को नहीं देखना चाहता? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन महान सर्वशक्तिमान की आराधना नहीं करता है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं चाहता हूँ कि अपने चुने हुए लोगों के समक्ष मैं और अधिक वचन बोलूँ। मैं पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ, उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खज़ाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं कि मनुष्य उन्हें छोड़ना बिलकुल पसंद नहीं करता, पर साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, लेकिन फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे होते हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं, मानो किसी शिशु का जन्म हुआ हो। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक तौर पर मनुष्य जाति में प्रवेश करूँगा ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। मुझमें से झलकती महिमा और मेरे मुँह से निकले वचनों से, मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएंगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में "जैतून के पर्वत" पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ जिसकी आराधना असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी लोग मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामयी मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है, यही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी है। सभी राष्ट्र मेरी आराधना करें, हर ज़बान मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और सभी लोग मेरी अधीनता स्वीकार करें!' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)। हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर अपने पहले देहधारण के समय राज्य का सुसमाचार लाया था। यह सुसमाचार पश्चिम से पूर्व में प्रसारित किया गया था। लेकिन हमने यह उम्मीद कभी नहीं की कि परमेश्वर दुनिया के पूर्व—चीन में, लौटेगा, अनन्त सुसमाचार लाएगा और लोगों का न्याय करने, शुद्धिकरण करने और उन्हें बचाने का काम करेगा। इस बार परमेश्वर का काम पूर्व से पश्चिम की ओर फैलेगा...।"

जब मैंने यह सुना, तो मैंने बहन को रोका और उलझन में पड़कर पूछा, "बहन, पुराने नियम में दर्ज है कि यहोवा परमेश्वर ने इस्राएल में कार्य किया था, प्रभु यीशु का कार्य यहूदिया में था और परमेश्वर के कार्य के दोनों चरण इस्राएल में थे, इसलिए प्रभु की वापसी भी इस्राएल में ही होनी चाहिए। आप कैसे कह सकती हैं कि यह चीन में है?" बहन हाओ मुस्कुराई और बोली, "हम सोचते हैं चूँकि परमेश्वर के कार्य के पहले दोनों चरण इस्राएल में थे, इसलिए जब प्रभु लौटता है तो निश्चित रूप से वह इस्राएल में ही अपना कार्य करेगा। लेकिन क्या इस तरह की सोच तथ्यों के अनुरूप है? क्या यह हो सकता है कि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर है? क्या यह हो सकता है कि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों को नियंत्रित करता और बचाता है? चलो, देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का क्या कहना है।"

बहन ज़ी ने परमेश्वर के वचनों की किताब खोली और इन वचनों को पढ़ा: "यदि अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्ता का आगमन होता और उसे तब भी यीशु कहकर पुकारा जाता, और उसने दोबारा यहूदिया में जन्म लिया होता और वहीं अपना काम किया होता, तो इससे यह प्रमाणित होता कि मैंने केवल इस्राएल के लोगों की ही रचना की थी और केवल इस्राएल के लोगों को ही छुटकारा दिलाया था, और अन्य जातियों से मेरा कोई वास्ता नहीं है। क्या यह मेरे इन वचनों खंडन न करता कि 'मैं वह प्रभु हूँ जिसने आकाश, पृथ्वी और सभी वस्तुओं को बनाया है?' मैंने यहूदिया को छोड़ दिया और अन्य जातियों के बीच कार्य करता हूँ, क्योंकि मैं मात्र इस्राएल के लोगों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि सभी प्राणियों का परमेश्वर हूँ। मैं अंत के दिनों के दौरान अन्य जातियों के बीच प्रकट होता हूँ, क्योंकि मैं केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा नहीं हूँ, बल्कि, इससे भी बढ़कर, मैं अन्य जातियों के बीच अपने चुने हुए सभी लोगों का रचयिता भी हूँ। मैंने न केवल इस्राएल, मिस्र और लेबनान की रचना की, बल्कि इस्राएल से बाहर के सभी अन्य जाति के राष्ट्रों की भी रचना की। इस कारण, मैं सभी प्राणियों का प्रभु हूँ। मैंने इस्राएल का मात्र अपने कार्य के आरंभिक बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया था, मैंने यहूदिया और गलील को छुटकारे के अपने कार्य के महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में इस्तेमाल किया था, और अब मैं अन्य जाति के राष्ट्रों को ऐसे आधार के रूप में इस्तेमाल करता हूँ, जहाँ से मैं पूरे युग का समापन करूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)। "मैं सभी लोगों को ज्ञात करवाऊँगा कि मैं केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि अन्यजातियों के समस्त देशों का भी परमेश्वर हूँ, यहाँ तक कि उनका भी परमेश्वर हूँ जिन्हें मैंने शाप दिया है। मैं सभी लोगों को यह देखने दूँगा कि मैं समस्त सृष्टि का परमेश्वर हूँ। यह मेरा सबसे बड़ा कार्य है, अंत के दिनों के लिए मेरी कार्य-योजना का उद्देश्य है, और अंत के दिनों में पूरा किया जाने वाला एकमात्र कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है)। "उसने इस्राएलियों की अगुवाई की और यहूदिया में पैदा हुआ, और वह एक अन्य-जाति भूमि में भी पैदा हुआ है। क्या उसका सभी कार्य उस मानवजाति के लिए नहीं किया जाता जिसकी उसने रचना की है? क्या वह इस्राएलियों को सौ गुना चाहता है और अन्य-जाति लोगों से एक हज़ार गुना घृणा करता है? क्या यह तुम्हारी अवधारणा नहीं है? ऐसा नहीं है कि परमेश्वर कभी तुम्हारा परमेश्वर था ही नहीं, बल्कि बात केवल इतनी है कि तुम उसे स्वीकारते नहीं; ऐसा नहीं है कि परमेश्वर तुम लोगों का परमेश्वर बनने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि तुम लोग परमेश्वर को ठुकराते हो। सृजित प्राणियों में ऐसा कौन है जो सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं है? आज तुम लोगों पर विजय पाने के लिए, क्या यही लक्ष्य नहीं है कि तुम लोग मानो कि परमेश्वर तुम लोगों का ही परमेश्वर है? यदि तुम अभी भी यही मानते हो कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, इस्राएल में दाऊद का घर ही परमेश्वर का जन्म-स्थान है और इस्राएल के अलावा कोई भी राष्ट्र परमेश्वर को 'उत्पन्न' करने के योग्य नहीं है, और तो और, कोई अन्य-जाति परिवार यहोवा के कार्यों को निजी तौर पर प्राप्त करने के लिए सक्षम नहीं है—अगर तुम अभी भी इस तरह सोचते हो, तो क्या यह तुम्हें एक ज़िद्दी विरोधी नहीं बनाता? ... परमेश्वर में तुम्हारी आस्था बहुत पुरानी नहीं है, फिर भी उसके बारे में तुममें बहुत सारी अवधारणाएं हैं, इस हद तक कि तुम लोग इस बारे में एक क्षण के लिए भी यह सोचने की हिम्मत नहीं करते कि इस्राएलियों का परमेश्वर अपनी उपस्थिति से तुम लोगों पर अनुग्रह करेगा। यह जानते हुए कि तुम कितने अधिक अपवित्र हो, तुम लोग इस बारे में सोचने की हिम्मत तो बिल्कुल नहीं करते कि तुम कैसे परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से प्रकट होते हुए देख सकते हो। न ही तुम लोगों ने कभी यह सोचा है कि कैसे एक अन्य-जाति भूमि में परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से अवतरित हो सकता है। उसे तो सिनाई पर्वत पर या जैतून पर्वत पर अवतरित होकर इस्राएलियों के समक्ष प्रकट होना चाहिए। क्या अन्य-जाति (यानी इस्राएल से बाहर के लोग) के सभी लोग उसकी घृणा के पात्र नहीं हैं? वह व्यक्तिगत रूप से उनके बीच कैसे काम कर सकता है? इन सभी अवधारणाओं ने बरसों से तुम्हारे अंदर गहरी जड़ें जमा ली हैं। आज तुम लोगों पर विजय प्राप्त करने का उद्देश्य है तुम लोगों की इन अवधारणों को ध्वस्त करना। इस तरह तुम लोग परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से अपने बीच में प्रकट होते हुए देखते हो—सिनाई पर्वत पर या जैतून पर्वत पर नहीं, बल्कि उन लोगों के बीच जिनकी उसने पहले कभी अगुवाई नहीं की है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (3))। "यदि उसका वर्तमान कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, तो जब तक उसकी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना समाप्त होने को आती, हर कोई यह विश्वास करने लगता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर का आशीष और प्रतिज्ञा विरासत में पाने योग्य हैं। अंत के दिनों के दौरान बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के अन्यजाति-देश में परमेश्वर का देहधारण संपूर्ण सृष्टि के परमेश्वर के रूप में परमेश्वर का कार्य पूरा करता है; वह अपना संपूर्ण प्रबंधन-कार्य पूरा करता है, और वह बड़े लाल अजगर के देश में अपने कार्य के केंद्रीय भाग को समाप्त करता है। कार्य के इन तीनों चरणों के मूल में मनुष्य का उद्धार है—अर्थात, संपूर्ण सृष्टि से सृष्टिकर्ता की आराधना करवाना। इस प्रकार, कार्य के प्रत्येक चरण का बहुत बड़ा अर्थ है; परमेश्वर ऐसा कुछ नहीं करता जिसका कोई अर्थ या मूल्य न हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है)

तब बहन हाओ ने सहभागिता में कहा: "अतीत में हमने अपने दिल में तय कर लिया था कि परमेश्वर इस्राएलियों का परमेश्वर है क्योंकि परमेश्वर के कार्य के पहले दोनों चरणों को इस्राएल में किया गया था। इस्राएल परमेश्वर के कार्य का जन्मस्थल था और यह परमेश्वर के कार्य का आधार क्षेत्र भी था, इसलिए हमने सोचा कि परमेश्वर का कार्य केवल इस्राएल में ही हो सकता है, सुसमाचार केवल इस्राएल से ही आ सकता है और केवल इस्राएल के लोग वास्तव में परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं। यदि परमेश्वर अब भी अंत के दिनों में इस्राएल में ही कार्य करे, तो हम और भी सोचेंगे कि परमेश्वर केवल इस्राएल में ही अपना कार्य कर सकता है, कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों को ही आशीर्वाद दे सकता है उसे अन्यजातियों से कोई भी सरोकार नहीं है। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने लोगों के न्याय और शुद्धिकरण करने के अपने कार्य को पूरा करने के लिए एक अन्यजाति के देश को चुना है। यह भूमि चीन है, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे बैठा है। ऐसा करके वह हर किसी की अवधारणा को पलट देता है ताकि लोग वास्तव में यह देख सकें कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि अन्यजातियों के सभी राष्ट्रों का, सभी सर्जित प्राणियों का परमेश्वर भी है। परमेश्वर न केवल इस्राएलियों को आशीर्वाद देता है, बल्कि अन्यजातियों को भी आशीर्वाद देता है। यह 'परमेश्वर संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है' के कार्य को पूरा करता है। यह स्पष्ट है कि परमेश्वर का अंत के दिनों में कार्य करने के लिए चीन को चुनना बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर वास्तव में सर्वशक्तिमान और बहुत बुद्धिमान है।"

बहन की सहभागिता को सुनकर, मैं चिंतन में डूब गई: "हाँ, परमेश्वर समूची सृष्टि का प्रभु है। क्या पूरी मानव जाति परमेश्वर द्वारा रचित नहीं है? परमेश्वर केवल इस्राएलियों को ही नहीं बचाता, बल्कि वह चीनी लोगों को भी बचाता है। क्या परमेश्वर का आज चीन में कार्य करने के लिए आना अन्यजातियों के लिए उसका प्रेम नहीं दर्शाता है? ऐसा लगता है कि मैं वास्तव में परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझती हूँ!" इस बारे में सोचकर, मुझे कुछ थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, मैंने अपना स्वर नर्म किया और कहा: "बहन, मैं समझती हूँ कि तुम क्या कह रही हो। यदि परमेश्वर फिर से इस्राएल में काम करने के लिए आता, तो हम परमेश्वर को सीमाओं में बांध देते और सोचते कि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर है। आज परमेश्वर आज इस तरह कार्य इसलिए करता है कि लोगों की अवधारणाओं को तोड़ दे और लोगों को यह समझाये कि परमेश्वर सभी सर्जित प्राणियों का प्रभु है। परमेश्वर इस्राएल में अपना काम कर सकता हैं और चीन में भी, और इसलिए हम परमेश्वर के कार्य को सीमाओं में नहीं बांधेंगे। ऐसा लगता है कि अवधारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के कार्य को सीमित करना वास्तव में बहुत मूर्खतापूर्ण और अज्ञानतापूर्ण है! हालांकि, अभी भी एक बात है जिसे मैं समझ नहीं पा रही हूँ। दुनिया में इतने सारे देश हैं, जैसे यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कई देश, जहाँ प्रोटेस्टेंट और कैथलिक धर्म राष्ट्रीय धर्म हैं। इन जगहों पर परमेश्वर की हमेशा से आराधना की जाती रही है। क्या परमेश्वर के लिए उन देशों में आकर लोगों के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करना अधिक आसान नहीं होता? चीन एक नास्तिक देश है, मूर्तिपूजकों से भरा है। राष्ट्रीय सरकार उन लोगों पर अंधाधुंध अत्याचार करती है जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर चीन में कार्य क्यों करेगा?"

बहन ज़ी मुस्कुराई और बोली, "बहन, आपका सवाल बहुत ही आवश्यक है! परमेश्वर ने न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करने के लिए चीन को क्यों चुना? अगर हम परमेश्वर के इस्राएल और चीन में कार्य करने के उद्देश्य और महत्व समझें, तभी हम सत्य के इस पहलू को समझ पाएंगे। आइए, हम देखें कि परमेश्वर का वचन क्या कहता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: 'पुराने नियम में इस्राएलियों के लिए यहोवा के वचनों को और इस्राएल में उसके कार्यों को दर्ज किया गया है; नये नियम में यहूदिया में यीशु के कार्य को दर्ज किया गया है। किन्तु बाइबल में कोई चीनी नाम क्यों नहीं है? क्योंकि परमेश्वर के कार्य के पहले दो भाग इस्राएल में संपन्न हुए थे, क्योंकि इस्राएल के लोग चुने हुए लोग थे—जिसका अर्थ है कि वे यहोवा के कार्य को स्वीकार करने वाले सबसे पहले लोग थे। वे समस्त मानवजाति में सबसे कम भ्रष्ट थे और आरंभ में वे परमेश्वर की खोज करने और उसका आदर करने का मन रखने वाले लोग थे। वे यहोवा के वचनों का पालन करते थे और हमेशा मंदिर में सेवा करते थे और याजकीय लबादे या मुकुट पहनते थे। वे परमेश्वर की पूजा करने वाले सबसे आरंभिक लोग थे, और उसके कार्य का आरंभिक लक्ष्य थे। ये लोग संपूर्ण मानवजाति के लिए नमूने और आदर्श थे। वे पवित्रता और धार्मिकता के नमूने और आदर्श थे। अय्यूब, अब्राहम, लूत या पतरस और तीमुथियुस जैसे लोग—ये सभी इस्राएली थे, और सर्वाधिक पवित्र नमूने और आदर्श थे। इस्राएल मानव-जाति में से परमेश्वर की पूजा करने वाला सबसे आरंभिक देश था और किसी भी अन्य स्थान की तुलना में अधिक धार्मिक लोग यहीं के थे। परमेश्वर ने उन पर कार्य किया ताकि भविष्य में वह पूरी भूमि पर मानवजाति को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकें। उनकी उपलब्धियाँ और यहोवा की उनकी आराधना की धार्मिकता दर्ज की गई ताकि वे अनुग्रह के युग के दौरान इस्राएल से बाहर के लोगों के लिए नमूने और आदर्श बन सकें; उनके क्रियाकलापों ने आज के दिन तक कई हजार वर्षों के कार्य को कायम रखा है' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))। 'यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई समस्या नहीं है; मनुष्य की अवधारणाएँ समान हैं, यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते, तो वे अवश्य ही उसके विरोधी होंगे। यहूदियों ने भी परमेश्वर का विरोध और उसकी अवहेलना क्यों की? फ़रीसियों ने भी उसका विरोध क्यों किया? यहूदा ने यीशु के साथ विश्वासघात क्यों किया? उस समय, बहुत-से अनुयायी यीशु को नहीं जानते थे। यीशु को सूली पर चढ़ाये जाने और उसके फिर से जी उठने के बाद भी, लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया? क्या मनुष्य की अवज्ञा पूरी तरह से समान नहीं है? बात बस इतनी है कि चीन के लोग इसके एक उदाहरण के रूप में पेश किए जाते हैं, जब उन पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी तो वे एक आदर्श और नमूना बन जाएँगे और दूसरों के लिए संदर्भ का काम करेंगे। मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछडी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य बहुत बेहतर तरीके से आगे बढ़ेगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता—ये सभी इन लोगों में पाए जाते हैं और ये मानवजाति की समस्त विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, एक बार जब वे जीत लिए गए तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक आदर्श और नमूने बन जाएँगे' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))

परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, बहन ज़ी ने अपनी सहभागिता जारी रखी: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उसके कार्य के हर चरण के लिए, कार्यस्थल का प्रकार और लक्ष्य, उसके कार्य की ज़रूरतों के आधार पर चुना जाता है और वह सब काफ़ी अर्थपूर्ण होता है। मिसाल के तौर पर, परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरण इस्राएल में थे क्योंकि इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग थे। वे समस्त मानवजाति में सबसे कम भ्रष्ट थे और उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाले दिल थे। परमेश्वर के लिए, उनके बीच कार्य करके, परमेश्वर की आराधना करने के लिए आदर्श और नमूने का एक समूह बनाना सबसे आसान था। इस प्रकार परमेश्वर का कार्य तेज़ी से और अधिक आसानी से फैल सकता था, ताकि पूरी मानवजाति परमेश्वर के अस्तित्व और परमेश्वर के कार्य को जान सके, और अधिक लोग परमेश्वर के सामने आने और परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने में, सक्षम हो सकें। इसलिए, परमेश्वर के लिए कार्य के पहले दो चरणों को इस्राएल में करना सबसे अधिक उपयुक्त था। अंत के दिनों में, परमेश्वर लोगों को जीतने और शुद्ध करने का कार्य करता है। उसे कुछ प्रतिनिधियों की भी आवश्यकता है जो पहले परमेश्वर के विजय और शुद्धिकरण को स्वीकार करें। पूरी मानवजाति में, चीन के लोग सबसे भ्रष्ट और पिछड़े हैं और चीन वह राष्ट्र है जो परमेश्वर में सब से कम विश्वास करता है और जो परमेश्वर के प्रति सबसे बुरे प्रतिरोध का स्थान है। तो अंत के दिनों में, परमेश्वर का अपने न्याय और विजय का कार्य पहले चीन में करने के द्वारा, सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों की ताड़ना और उनके न्याय का कार्य करने के द्वारा, और दुनिया के सबसे भ्रष्ट लोगों अर्थात चीन के लोगों को जीतने और उनका शुद्धिकरण करने के द्वारा, परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता, पवित्रता और धार्मिकता सर्वोत्त्म ढंग से प्रदर्शित की जाती है और शैतान सबसे अधिक शर्मिंदा होता है। जब वे जो सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं, परमेश्वर द्वारा जीते जाते हैं, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि शेष मानव जाति भी जीत ली जाएगी और शैतान भी पूरी तरह से पराजित हो जाएगा। अपने कार्य के हर चरण के लिए परमेश्वर द्वारा चुने गए स्थान और लक्ष्य से, और प्राप्त किये गए अंतिम परिणामों से, हम यह और भी बेहतर ढंग से देख सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य कितना बुद्धिमत्तापूर्ण और अद्भुत है!"

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और बहनों की सहभागिता को सुनने के बाद मैंने समझा: परमेश्वर ने पहले इस्राएल में कार्य किया क्योंकि वह सबसे कम दूषित लोगों में आदर्श और नमूने लोगों का एक समूह बनाना चाहता था, और उनकी गवाही और परमेश्वर के सुसमाचार की घोषणा के माध्यम से और भी लोगों को परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने देना चाहता था। अंत के दिनों में परमेश्वर जो कार्य करता है वह विजय और शुद्धिकरण का कार्य है और उसने दुनिया के सबसे भ्रष्ट, सबसे दूषित लोगों को अर्थात चीनी लोगों को अपने कार्य के लक्ष्य के रूप में चुना है, उसने इन लोगों को वो आदर्श और नमूना बनाया है जिन्हें जीत लिया और बचाया गया है। यह परमेश्वर के ज्ञान और सर्वशक्तिमत्ता को और भी अधिक प्रकट करता है। मैं परमेश्वर के इरादे को कभी नहीं समझ पाई थी, और जब मैंने बाइबल में यह पढ़ा कि प्रभु इस्राएल के जैतून पर्वत पर फिर से उतरेगा, तो मैंने इसके शाब्दिक अर्थ को स्वीकार किया और सोचा कि परमेश्वर निश्चित रूप से इस्राएल में अपना कार्य करेगा। मैं कभी नहीं अपेक्षा की थी कि परमेश्वर बहुत पहले चीन में आ गया होगा! ऐसा लगता है कि परमेश्वर का कार्य उतना सरल नहीं है जैसा कि लोग कल्पना करते हैं!

इस समय, बहन ज़ी ने आगे कहा: "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर किस देश में काम करता है, यह सब उसके ही काम के लिए और मानवजाति को बेहतर तरीके से बचाने के लिए है, और यह सब बहुत अर्थपूर्ण है। अगर हम आज परमेश्वर के प्रकटन को खोजना चाहते हैं, तो हमें पहले अपनी कल्पनाओं और अवधारणाओं को दूर करना होगा। हमें परमेश्वर के कदमों को यह सोचते हुए एक निश्चित सीमा में नहीं बांधना चाहिए कि परमेश्वर को इस या उस देश में आना चाहिए। परमेश्वर समस्त मानवजाति का परमेश्वर है। वह अपने कार्य की ज़रूरतों के हिसाब से कार्य की जगह स्वतंत्र रूप से चुन सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: 'परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति का परमेश्वर है। वह स्वयं को किसी भी राष्ट्र या लोगों की निजी संपत्ति नहीं मानता, बल्कि अपना कार्य अपनी बनाई योजना के अनुसार, किसी भी रूप, राष्ट्र या लोगों द्वारा बाधित हुए बिना, करता जाता है। शायद तुमने इस रूप की कभी कल्पना नहीं की है, या शायद इस रूप के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण इनकार करने वाला है, या शायद वह देश, जहाँ परमेश्वर स्वयं को प्रकट करता है और वे लोग, जिनके बीच वह स्वयं को प्रकट करता है, ऐसे हैं, जिनके साथ सभी के द्वारा भेदभाव किया जाता है और वे पृथ्वी पर सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। लेकिन परमेश्वर के पास अपनी बुद्धि है। उसने अपने महान सामर्थ्य के साथ, और अपने सत्य और स्वभाव के माध्यम से, सचमुच ऐसे लोगों के समूह को प्राप्त कर लिया है, जो उसके साथ एक मन वाले हैं, और जिन्हें वह पूर्ण बनाना चाहता है—उसके द्वारा विजित समूह, जो सभी प्रकार के परीक्षणों, क्लेशों और उत्पीड़न को सहन करके, अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, मैं उत्साहित होकर रो पड़ी और मैंने बहनों से कहा, "ये वचन परमेश्वर के सामर्थ्य और अधिकार लिए हुए हैं और वे परमेश्वर से आए हैं। अब मैं अंततः समझती हूँ: परमेश्वर न केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, बल्कि चीनी लोगों का परमेश्वर और उससे अधिक, पूरी मानवजाति का परमेश्वर भी है। परमेश्वर वास्तव में वापस आ गया है! इन पिछले कुछ दिनों में, मैं अच्छी तरह से न खा सकी हूँ, न सो सकी हूँ’, क्योंकि मैं गलत रास्ता लेने से डरती थी! आज आपके साथ हुई सहभागिता के कारण, मेरे दिल से पत्थर हट गया है। मैं सचमुच परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उसने मुझे नही त्यागा!" बाद में, दोनों बहनों ने मुझे "वचन देह में प्रकट होता है" पुस्तक की एक प्रति दी। मैं खुशी से दोनों हाथों से किताब को थामे घर लौट आई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के माध्यम से, मैं आश्वस्त हो गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटा हुआ प्रभु यीशु है। हमारा प्रभु यीशु वास्तव में लौट आया है!

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