vii. अंत के दिनों में सामने आने और कार्य करने के लिए परमेश्वर के चीन में देहधारण का उद्देश्य और अर्थ

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

यहोवा का कार्य दुनिया का सृजन था, वह आरंभ था; कार्य का यह चरण कार्य का अंत है, और यह समापन है। आरंभ में, परमेश्वर का कार्य इस्राएल के चुने हुए लोगों के बीच किया गया था और यह सभी जगहों में से सबसे पवित्र जगह पर एक नए युग का उद्भव था। कार्य का अंतिम चरण दुनिया का न्याय करने और युग को समाप्त करने के लिए सभी देशों में से सबसे अशुद्ध देश में किया जा रहा है। पहले चरण में, परमेश्वर का कार्य सबसे प्रकाशमान स्थान पर किया गया था और अंतिम चरण सबसे अंधकारमय स्थान पर किया जा रहा है, और इस अंधकार को बाहर निकालकर प्रकाश को प्रकट किया जाएगा और सभी लोगों पर विजय प्राप्त की जाएगी। जब इस सबसे अशुद्ध और सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी और समस्त आबादी स्वीकार कर लेगी कि परमेश्वर है, जो कि सच्चा परमेश्वर है और हर व्यक्ति को पूरी तरह से विश्वास हो जाएगा, तब समस्त ब्रह्मांड में विजय का कार्य करने के लिए इस तथ्य का उपयोग किया जाएगा। कार्य का यह चरण प्रतीकात्मक है : एक बार इस युग का कार्य समाप्त हो गया, तो प्रबंधन का छह हजार वर्षों का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया गया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। इस तरह, केवल चीन में ही विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्त रूप है और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं, शैतान के हैं, मांस और रक्त के हैं। चीनी लोग ही बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, वही परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी हैं, उन्हीं की मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूल आदर्श हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य देशों में कोई समस्या नहीं है; मनुष्य की अवधारणाएँ समान हैं, यद्यपि इन देशों के लोग अच्छी क्षमता वाले हो सकते हैं, किन्तु यदि वे परमेश्वर को नहीं जानते, तो वे अवश्य ही उसके विरोधी होंगे। यहूदियों ने भी परमेश्वर का विरोध और उससे विद्रोह क्यों किया? फरीसियों ने भी उसका विरोध क्यों किया? यहूदा ने यीशु के साथ विश्वासघात क्यों किया? उस समय, बहुत-से अनुयायी यीशु को नहीं जानते थे। यीशु को सूली पर चढ़ाये जाने और उसके फिर से जी उठने के बाद भी, लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया? क्या मनुष्य का विद्रोहीपन बिल्कुल वैसा ही नहीं है? बात बस इतनी है कि चीन के लोग इसके एक उदाहरण के रूप में पेश किए जाते हैं, जब उन पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी तो वे एक आदर्श और नमूना बन जाएँगे और दूसरों के लिए संदर्भ का काम करेंगे। मैंने हमेशा क्यों कहा है कि तुम लोग मेरी प्रबंधन योजना के सहायक हो? चीन के लोगों में भ्रष्टता, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता पूरी तरह से व्यक्त और विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं और दूसरी ओर, उनका जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़ी हुई है, उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जिस परिवार में वे जन्में हैं—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी निम्न है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, एक बार जब यह परीक्षा-कार्य पूरी तरह से संपन्न हो जाएगा, तो परमेश्वर का बाद का कार्य अधिक आसान हो जाएगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सका, तो इसके बाद का कार्य अच्छी तरह से आगे बढ़ेगा। एक बार जब कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जायेगा, तो बड़ी सफलता प्राप्त हो जाएगी और समस्त ब्रह्माण्ड में विजय का कार्य पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल होने पर, यह समस्त ब्रह्माण्ड में सफलता प्राप्त करने के बराबर होगा। यही इस बात की महत्ता है कि क्यों मैं तुम लोगों को एक आदर्श और नमूने के रूप में कार्य करने को कहता हूँ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)

चीन सभी देशों में सबसे पिछड़ा है; यह वह देश है जहाँ बड़ा लाल अजगर कुण्डली मारकर बैठा है, इसके पास ऐसे लोग सबसे अधिक हैं जो मूर्तियों की पूजा और जादू-टोने करते हैं, सबसे ज़्यादा मंदिर हैं, और यह ऐसा स्थान है जहाँ गंदी दुष्टात्माएँ निवास करती हैं। तुम इसी से जन्मे थे, तुम इसी के द्वारा शिक्षित हुए हो और इसके प्रभाव से तरबतर हुए थे; तुम इसके द्वारा भ्रष्ट और पीड़ित किए गए हो, परंतु जागृत होने के पश्चात तुम इससे विद्रोह कर देते हो और परमेश्वर द्वारा पूर्णतः प्राप्त कर लिए जाते हो। यह परमेश्वर की महिमा है, और यही कारण है कि कार्य के इस चरण का अत्यधिक महत्व है। परमेश्वर ने इतने बड़े पैमाने का कार्य किया है, इतने अधिक वचन बोले हैं, और वह अंततः तुम लोगों को पूरी तरह प्राप्त कर लेगा—यह परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य का एक भाग है, और तुम शैतान के साथ परमेश्वर की लड़ाई के “विजय के उपहार” हो। तुम लोग सत्य को जितना अधिक समझते हो और कलीसिया का तुम्हारा जीवन जितना बेहतर होता है, उतना ही अधिक वह बड़ा लाल अजगर उसके घुटनों पर लाया जाता है। ये सब आध्यात्मिक जगत के विषय हैं—ये आध्यात्मिक जगत की लड़ाइयाँ हैं, और जब परमेश्वर विजयी होगा तो शैतान लज्जित और धराशायी होगा। परमेश्वर के कार्य के इस चरण का विशालकाय महत्व है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2)

ऐसे लोगों पर विजय पाने का कार्य करने का गहनतम अर्थ है। तुम सभी लोग अंधकार के प्रभाव में आ गए हो और तुम्हें गहरा नुकसान पहुँचा है। अतः इस कार्य का लक्ष्य तुम लोगों को मानव-प्रकृति को जानने और परिणामस्वरूप सत्य को जीने में सक्षम बनाना है। पूर्ण बनाया जाना ऐसी चीज़ है, जिसे सभी सृजित प्राणियों को स्वीकार करना चाहिए। यदि इस चरण के कार्य में केवल लोगों को पूर्ण बनाना ही शामिल होता, तो इसे इंग्लैंड या अमेरिका या इस्राएल में किया जा सकता था; इसे किसी भी देश के लोगों पर किया जा सकता था। परंतु विजय का कार्य चयनात्मक है। विजय के कार्य का पहला चरण अल्पकालिक है; इतना ही नहीं, इसे शैतान को अपमानित करने और संपूर्ण ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। यह विजय का आरंभिक कार्य है। कहा जा सकता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने वाले किसी भी सृजित प्राणी को पूर्ण बनाया जा सकता है, क्योंकि पूर्ण बनाया जाना ऐसा काम है, जिसे केवल एक दीर्घकालिक परिवर्तन के बाद ही हासिल किया जा सकता है। परंतु जीता जाना अलग बात है। जीत के लिए नमूना और आदर्श वह होना चाहिए, जो बहुत अधिक पीछे रह गया है और गहनतम अंधकार में जी रहा है; वे सर्वाधिक तुच्छ और परमेश्वर को स्वीकार करने के सर्वाधिक अनिच्छुक तथा परमेश्वर के प्रति सर्वाधिक विद्रोही भी होने चाहिए। ठीक इसी प्रकार का व्यक्ति जीते जाने की गवाही दे सकता है। विजय के कार्य का मुख्य लक्ष्य शैतान को हराना है, जबकि लोगों को पूर्ण बनाने का मुख्य लक्ष्य उन्हें प्राप्त करना है। विजय का यह कार्य यहाँ तुम जैसे लोगों पर इसलिए किया जा रहा है, ताकि तुम लोगों को जीते जाने के बाद गवाही देने में सक्षम बनाया जा सके। इसका लक्ष्य है विजय प्राप्त करने के बाद लोगों से गवाही दिलवाना। इन जीते गए लोगों का उपयोग शैतान को अपमानित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए किया जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है

अब मोआब के वंशजों पर कार्य करना उन लोगों को बचाना है, जो सबसे गहरे अँधेरे में गिर गए हैं। यद्यपि वे शापित थे, फिर भी परमेश्वर उनसे महिमा पाने का इच्छुक है, क्योंकि पहले वे सभी ऐसे लोग थे, जिनके हृदयों में परमेश्वर की कमी थी; केवल उन लोगों को जिनके हृदयों में परमेश्वर नहीं है, परमेश्वर के प्रति समर्पण और उससे प्रेम करने के लिए तैयार करना ही सच्ची विजय है, और ऐसे कार्य का फल सबसे मूल्यवान और सबसे ठोस है। केवल यही महिमा प्राप्त कर रहा है—यही वह महिमा है, जिसे परमेश्वर अंत के दिनों में हासिल करना चाहता है। बावजूद इसके कि ये लोग कम दर्जे के हैं, अब इनका ऐसे महान उद्धार को प्राप्त करने में सक्षम होना वास्तव में परमेश्वर द्वारा एक उन्नयन है। यह काम बहुत ही सार्थक है, और वह न्याय के माध्यम से ही इन लोगों को प्राप्त करता है। उसका इरादा इन लोगों को दंडित करने का नहीं, बल्कि बचाने का है। यदि, अंत के दिनों में, वह अभी भी इस्राएल में विजय प्राप्त करने का काम कर रहा होता, तो वह बेकार होता; यदि वह फलदायक भी होता, तो उसका कोई मूल्य या कोई बड़ा अर्थ न होता, और वह समस्त महिमा प्राप्त करने में सक्षम न होता। वह तुम लोगों पर कार्य कर रहा है, अर्थात् उन लोगों पर, जो सबसे अंधकारमय स्थानों में गिर चुके हैं, जो सबसे अधिक पिछड़े हैं। ये लोग यह नहीं मानते कि परमेश्वर है और वे कभी नहीं जान पाए हैं कि परमेश्वर है। इन सृजित प्राणियों को शैतान ने इस हद तक भ्रष्ट किया है कि वे परमेश्वर को भूल गए हैं। वे शैतान द्वारा अंधे बना दिए गए हैं और वे बिल्कुल नहीं जानते कि स्वर्ग में एक परमेश्वर है। अपने दिलों में तुम सब लोग मूर्तियों और शैतान की पूजा करते हो, क्या तुम सबसे अधम, सबसे पिछड़े लोग नहीं हो? देह से तुम लोग निम्नतम हो, किसी भी निजी स्वतंत्रता से विहीन, और तुम लोग कष्टों से पीड़ित भी हो। तुम लोग इस समाज में सबसे निम्न स्तर पर भी हो, जिन्हें विश्वास की स्वतंत्रता तक नहीं है। तुम सब पर कार्य करने का यही अर्थ है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ

परमेश्वर ने सबसे पिछड़े और मलिन स्थान पर देहधारण किया, और केवल इसी तरह से परमेश्वर अपने पवित्र और धार्मिक स्वभाव की समग्रता को साफ तौर पर दिखा सकता है। और उसका धार्मिक स्वभाव किसके ज़रिये दिखाया जाता है? वह तब दिखाया जाता है, जब वह मनुष्य के पापों का न्याय करता है, जब वह शैतान का न्याय करता है, जब वह पाप से घृणा करता है, और जब वह उन शत्रुओं से नफरत करता है जो उसका विरोध और उससे विद्रोह करते हैं। मेरे आज के वचन मनुष्य के पापों का न्याय करने के लिए, मनुष्य की अधार्मिकता का न्याय करने के लिए और मनुष्य के विद्रोहीपन को शाप देने के लिए हैं। मनुष्य की कुटिलता और धोखेबाजी, उसके शब्द और कर्म—जो भी परमेश्वर की इच्छा के विपरीत हैं, उनका न्याय होना चाहिए, और मनुष्य के समस्त विद्रोहीपन की पाप के रूप में निंदा होनी चाहिए। उसके वचन न्याय के सिद्धांतों के इर्द-गिर्द घूमते हैं; वह मनुष्य की अधार्मिकता के न्याय का, मनुष्य की विद्रोहशीलता के श्राप का, मनुष्य के कुरूप चेहरों के खुलासे का इस्तेमाल अपने धार्मिक स्वभाव को अभिव्यक्त करने के लिए करता है। पवित्रता उसके धार्मिक स्वभाव का निरूपण है, और दरअसल, परमेश्वर की पवित्रता वास्तव में उसका धार्मिक स्वभाव है। तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव आज के वचनों के प्रसंग हैं—मैं उनका इस्तेमाल बोलने, न्याय करने और विजय-कार्य संपन्न करने के लिए करता हूँ। मात्र यही व्यावहारिक कार्य है, और मात्र यही परमेश्वर की पवित्रता को जगमगाता है। अगर तुममें भ्रष्ट स्वभाव का कोई निशान नहीं है, तो परमेश्वर तुम्हारा न्याय नहीं करेगा, न ही वह तुम्हें अपना धार्मिक स्वभाव दिखाएगा। चूँकि तुम्हारा स्वभाव भ्रष्ट है, इसलिए परमेश्वर तुम्हें छोड़ेगा नहीं, और इसी के ज़रिये उसकी पवित्रता दिखाई जाती है। अगर परमेश्वर देखता कि मनुष्य की मलिनता और विद्रोहशीलता बहुत भयंकर हैं, लेकिन वह न तो बोलता, न तुम्हारा न्याय करता, न तुम्हारी अधार्मिकता के लिए तुम्हें ताड़ना देता, तो इससे यह साबित हो जाता कि वह परमेश्वर नहीं है, क्योंकि उसे पाप से कोई घृणा न होती; वह मनुष्य जितना ही मलिन होता। आज मैं तुम्हारी मलिनता के कारण ही तुम्हारा न्याय कर रहा हूँ, और तुम्हारी भ्रष्टता और विद्रोहशीलता के कारण ही तुम्हें ताड़ना दे रहा हूँ। मैं तुम लोगों के सामने अपने सामर्थ्य की अकड़ नहीं दिखा रहा या जानबूझकर तुम लोगों का दमन नहीं कर रहा; मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि इस मलिन धरती पर पैदा हुए तुम लोग मलिनता से बुरी तरह दूषित हो गए हो। तुमने गंदी जगहों पर रहने वाले सूअर की तरह अपनी निष्ठा और मानवीयता खो दी है। तुम्हारी गंदगी और भ्रष्टता की वजह से ही तुम्हारा न्याय किया जाता है और मैं तुम पर अपना क्रोध बरसाता हूँ। ठीक इन वचनों के न्याय की वजह से तुम यह देख पाए हो कि परमेश्वर धार्मिक परमेश्वर है, और कि परमेश्वर पवित्र परमेश्वर है; ठीक अपनी पवित्रता और धार्मिकता की वजह से ही वह तुम लोगों का न्याय करता है और तुम लोगों पर अपना क्रोध बरसाता है; ठीक इस वजह से कि वह मानव-जाति की विद्रोहशीलता देखता है, वह अपना धार्मिक स्वभाव प्रकट करता है। मानव-जाति की मलिनता और भ्रष्टता उसकी पवित्रता प्रकट करवाती है। यह ये दिखाने के लिए पर्याप्त है कि वह स्वयं परमेश्वर है, जो पवित्र और प्राचीन है, और फिर भी मलिनता की धरती पर रहता है। ...

इजराइल में किए गए कार्य में और आज के कार्य में बहुत बड़ा अंतर है। यहोवा ने इजराइलियों के जीवन का मार्गदर्शन किया, तो उस समय इतनी ताड़ना और न्याय नहीं था, क्योंकि उस वक्त लोग दुनियादारी बहुत ही कम समझते थे और उनके स्वभाव थोड़े ही भ्रष्ट थे। तब इजराइली पूरी तरह से यहोवा की आज्ञा का पालन करते थे। जब उसने उन्हें वेदियों का निर्माण करने के लिए कहा, तो उन्होंने जल्दी से वेदियों का निर्माण कर दिया; जब उसने उन्हें याजकों का पोशाक पहनने के लिए कहा, तो उन्होंने उसकी आज्ञा का पालन किया। उन दिनों यहोवा भेड़ों के झुंड की देखभाल करने वाले चरवाहे की तरह था, जिसके मार्गदर्शन में भेड़ें हरे-भरे मैदान में घास चरती थीं; यहोवा ने उनकी ज़िंदगी को राह दिखाई, उनके खाने, पहनने, रहने और यात्रा करने में उनकी अगुआई की। वह समय परमेश्वर के स्वभाव को स्पष्ट करने का नहीं था, क्योंकि उस समय मनुष्य नवजात था; कुछ ही लोग थे, जो विद्रोही और विरोधी थे, मनुष्यों में मलिनता अधिक नहीं थी, इसलिए लोग परमेश्वर के स्वभाव के लिए विषमता नहीं बन सकते थे। परमेश्वर की पवित्रता मलिनता की धरती से आए लोगों के माध्यम से ज़ाहिर होती है; आज वह मलिनता की धरती के इन लोगों में दिखने वाली मलिनता का इस्तेमाल कर रहा है, और ऐसा करते समय उसके न्याय में उसका स्वरूप प्रकट होता है। वह न्याय क्यों करता है? वह न्याय के वचन इसलिए बोल पाता है, क्योंकि वह पाप से घृणा करता है; अगर वह मनुष्य की विद्रोहशीलता से घृणा न करता, तो वह इतना क्रोधित कैसे हो सकता था? अगर उसके अंदर चिढ़ न होती, कोई नफरत न होती, अगर वह लोगों की विद्रोहशीलता की ओर कोई ध्यान न देता, तो इससे वह मनुष्य जितना ही मलिन प्रमाणित हो जाता। वह मनुष्य का न्याय और उसकी ताड़ना इसलिए कर सकता है, क्योंकि उसे मलिनता से घृणा है, और जिस मलिनता से वह घृणा करता है, वह उसके अंदर नहीं है। अगर उसके अंदर भी विरोध और विद्रोहशीलता होते, तो वह विरोधी और विद्रोही लोगों से घृणा न करता। अगर अंत के दिनों का कार्य इजराइल में किया गया होता, तो उसका कोई मतलब न होता। अंत के दिनों का कार्य सबसे अंधकारमय और सबसे पिछड़े स्थान चीन में ही क्यों किया जा रहा है? यह सब परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता दिखाने के लिए है। संक्षेप में, स्थान जितना अधिक अंधकारमय होता है, परमेश्वर की पवित्रता वहाँ उतनी ही स्पष्टता से दिखाई जा सकती है। दरअसल, यह सब परमेश्वर के कार्य के लिए है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय-कार्य के दूसरे चरण के प्रभावों को कैसे प्राप्त किया जाता है

चीनी लोगों ने कभी परमेश्वर में विश्वास नहीं किया है; उन्होंने कभी भी यहोवा की सेवा नहीं की है, और कभी भी यीशु की सेवा नहीं की है। वे केवल धूप जलाना, जॉस पेपर जलाना, और बुद्ध की पूजा करना जानते हैं। वे सिर्फ मूर्तियों की पूजा करते हैं—वे सब चरम सीमा तक विद्रोही हैं। इसलिए लोगों की स्थिति जितनी अधिक निम्न है, उससे उतना ही अधिक पता चलता है कि परमेश्वर तुम लोगों से और भी अधिक महिमा पाता है। अपने दृष्टिकोण से कुछ लोग कह सकते हैं : “परमेश्वर, तुम यह क्या कार्य करते हो? तुम जैसा उत्कृष्ट परमेश्वर, तुम जैसा पवित्र परमेश्वर, एक गंदे मुल्क में आता है? क्या तुम खुद को इतना छोटा समझते हो? हम इतने गंदे हैं, और तुम हमारे साथ रहने को तैयार हो? तुम हमारे बीच रहने को तैयार हो? हम ऐसी निम्न स्थिति के हैं, लेकिन तुम हमें पूर्ण बनाने को तैयार हो? और तुम हमें प्रतिमान और नमूनों के रूप में इस्तेमाल करोगे?” मैं कहता हूँ : तुम मेरी इच्छा नहीं समझते। तुम उस कार्य को नहीं समझते, जिसे मैं करना चाहता हूँ, न ही तुम मेरे स्वभाव को समझते हो। मैं जो कार्य करने जा रहा हूँ, उसका अर्थ समझ पाना तुम्हारे वश में नहीं है। क्या मेरा कार्य तुम्हारी मानवीय धारणाओं के अनुरूप हो सकता है? मानवीय धारणाओं के अनुसार तो मुझे किसी अच्छे देश में जन्म लेना होगा, यह दिखाने के लिए कि मैं ऊँची हैसियत का हूँ, यह दिखाने के लिए कि मेरा मोल बहुत ज्यादा है, और अपना सम्मान, पवित्रता और महानता दिखाने के लिए। अगर मैं किसी ऐसे स्थान पर पैदा हुआ होता जो मुझे पहचानता, किसी संभ्रांत परिवार में, और अगर मैं उच्च स्थिति और हैसियत का होता, तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जाता। इससे मेरे कार्य को कोई लाभ नहीं होता, और क्या तब भी ऐसा महान उद्धार प्रकट किया जा सकता था? वे सभी लोग जो मुझे देखते, वे मेरे प्रति समर्पण करते, और वे गंदगी से प्रदूषित न होते। मुझे इस तरह के स्थान पर जन्म लेना चाहिए था। तुम लोग यही मानते हो। लेकिन इस बारे में सोचो : क्या परमेश्वर पृथ्वी पर आनंद लेने के लिए आया था, या कार्य करने के लिए? अगर मैं उस तरह के आसान, आरामदायक स्थान पर काम करता, तो क्या मैं अपनी पूरी महिमा हासिल कर सकता था? क्या मैं सभी सृजित प्राणियों को जीत सकता था? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आया, तो वह संसार का नहीं था, और संसार का सुख भोगने के लिए वह देह नहीं बना था। जिस स्थान पर कार्य करना सबसे अच्छी तरह से उसके स्वभाव को प्रकट करता और जो सबसे अर्थपूर्ण होता, वह वही स्थान है, जहाँ वह पैदा हुआ। चाहे वह स्थल पवित्र हो या गंदा, और चाहे वह कहीं भी काम करे, वह पवित्र है। दुनिया में हर चीज़ उसके द्वारा बनाई गई थी, हालाँकि शैतान ने सब-कुछ भ्रष्ट कर दिया है। फिर भी, सभी चीजें अभी भी उसकी हैं; वे सभी चीजें उसके हाथों में हैं। वह अपनी पवित्रता प्रकट करने के लिए एक गंदे देश में आता है और वहाँ कार्य करता है; वह केवल अपने कार्य के लिए ऐसा करता है, अर्थात् वह इस दूषित भूमि के लोगों को बचाने के लिए ऐसा कार्य करने में बहुत अपमान सहता है। यह पूरी मानवजाति की खातिर, गवाही के लिए किया जाता है। ऐसा कार्य लोगों को परमेश्वर की धार्मिकता दिखाता है, और वह परमेश्वर की सर्वोच्चता प्रदर्शित करने में अधिक सक्षम है। उसकी महानता और शुचिता उन नीच लोगों के एक समूह के उद्धार के माध्यम से व्यक्त होती है, जिनका अन्य लोग तिरस्कार करते हैं। एक मलिन भूमि में पैदा होना यह बिल्कुल साबित नहीं करता कि वह दीन-हीन है; यह तो बस सभी सृजित प्राणियों को उसकी महानता और मानवजाति के लिए उसका सच्चा प्यार दिखाता है। जितना अधिक वह ऐसा करता है, उतना ही अधिक यह मनुष्य के लिए उसके शुद्ध प्रेम, उसके दोषरहित प्रेम को प्रकट करता है। परमेश्वर पवित्र और धर्मी है। यद्यपि वह एक गंदी भूमि में पैदा हुआ था, और यद्यपि वह उन लोगों के साथ रहता है जो गंदगी से भरे हुए हैं, ठीक वैसे ही जैसे यीशु अनुग्रह के युग में पापियों के साथ रहता था, फिर भी क्या उसका हर कार्य संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व की खातिर नहीं किया जाता? क्या यह सब इसलिए नहीं है कि मानवजाति महान उद्धार प्राप्त कर सके? दो हजार साल पहले वह कई वर्षों तक पापियों के साथ रहा। वह छुटकारे के लिए था। आज वह गंदे, नीच लोगों के एक समूह के साथ रह रहा है। यह उद्धार के लिए है। क्या उसका सारा कार्य तुम मनुष्यों के लिए नहीं है? यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह एक नाँद में पैदा होने के बाद कई सालों तक पापियों के साथ रहता और कष्ट उठाता? और यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह दूसरी बार देह में लौटकर आता, इस देश में पैदा होता जहाँ दुष्ट आत्माएँ इकट्ठी होती हैं, और इन लोगों के साथ रहता जिन्हें शैतान ने गहराई से भ्रष्ट कर रखा है? क्या परमेश्वर वफ़ादार नहीं है? उसके कार्य का कौन-सा भाग मानवजाति के लिए नहीं रहा है? कौन-सा भाग तुम लोगों की नियति के लिए नहीं रहा है? परमेश्वर पवित्र है—यह अपरिवर्तनीय है। वह गंदगी से प्रदूषित नहीं है, हालाँकि वह एक गंदे देश में आया है; इस सबका मतलब केवल यह हो सकता है कि मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम अत्यंत निस्वार्थ है और जो पीड़ा और अपमान वह सहता है, वह अत्यधिक है! क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि वह तुम सभी के लिए, और तुम लोगों की नियति के लिए जो अपमान सहता है, वह कितना बड़ा है? वह बड़े लोगों या अमीर और शक्तिशाली परिवारों के पुत्रों को बचाने के बजाय विशेष रूप से उनको बचाता है, जो दीन-हीन हैं और नीची निगाह से देखे जाते हैं। क्या यह सब उसकी पवित्रता नहीं है? क्या यह सब उसकी धार्मिकता नहीं है? समस्त मानवजाति के अस्तित्व के लिए वह एक दूषित भूमि में पैदा होगा और हर अपमान सहेगा। परमेश्वर बहुत वास्तविक है—वह कोई मिथ्या कार्य नहीं करता। क्या उसके कार्य का हर चरण इतने व्यावहारिक रूप से नहीं किया गया है? यद्यपि सब लोग उसकी निंदा करते हैं और कहते हैं कि वह पापियों के साथ मेज पर बैठता है, यद्यपि सब लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं और कहते हैं कि वह गंदगी के पुत्रों के साथ रहता है, कि वह सबसे अधम लोगों के साथ रहता है, फिर भी वह निस्वार्थ रूप से अपने आपको समर्पित करता है, और वह अभी भी मानवजाति के बीच इस तरह नकारा जाता है। क्या जो कष्ट वह सहता है, वह तुम लोगों के कष्टों से बड़ा नहीं है? क्या जो कार्य वह करता है, वह तुम लोगों द्वारा चुकाई गई कीमत से ज्यादा नहीं है? तुम लोग गंदे देश में पैदा हुए, फिर भी तुमने परमेश्वर की पवित्रता प्राप्त की है। तुम लोग उस देश में पैदा हुए, जहाँ राक्षस एकत्र होते हैं, फिर भी तुम्हें महान सुरक्षा प्राप्त हुई है। तुम्हारे पास विकल्प क्या है? तुम्हारी शिकायतें क्या हैं? क्या जो पीड़ा उसने सही है, वह तुम लोगों द्वारा सही गई पीड़ा से अधिक नहीं है? वह पृथ्वी पर आया है और उसने मानव-जगत के सुखों का कभी आनंद नहीं उठाया। वह ऐसी चीज़ों से घृणा करता है। परमेश्वर मनुष्य से भौतिक चीज़ें पाने के लिए पृथ्वी पर नहीं आया, न ही वह मनुष्य के भोजन, कपड़ों और गहनों का आनंद उठाने के लिए आया है। वह इन चीज़ों पर कोई ध्यान नहीं देता। वह धरती पर मनुष्य की खातिर दुःख उठाने के लिए आया, न कि सांसारिक ऐश्वर्य का आनंद उठाने के लिए। वह पीड़ित होने, काम करने और अपनी प्रबंधन योजना पूरी करने के लिए आया। उसने किसी अच्छे स्थान का चयन नहीं किया, रहने के लिए कोई दूतावास या महँगा होटल पसंद नहीं किया, और न ही उसकी सेवा में कई नौकर खड़े थे। तुम लोगों ने जो देखा है, क्या उससे तुम्हें पता नहीं चलता कि वह काम करने के लिए आया या सुख भोगने के लिए? क्या तुम लोगों की आँखें नहीं देखतीं? तुम लोगों को उसने कितना दिया है? यदि वह किसी आरामदायक स्थान पर पैदा हुआ होता, तो क्या वह महिमा पाने में सक्षम होता? क्या वह कार्य करने में सक्षम होता? क्या उसके ऐसा करने का कोई अर्थ होता? क्या वह मानवजाति को पूरी तरह से जीत पाता? क्या वह लोगों को गंदगी की भूमि से बचा सकता? अपनी धारणाओं के अनुसार लोग पूछते हैं, “चूँकि परमेश्वर पवित्र है, तो वह हमारे इस गंदे स्थान में क्यों पैदा हुआ? तुम हम गंदे मनुष्यों से घृणा करते हो और हमारा तिरस्कार करते हो; तुम हमारे प्रतिरोध और विद्रोह से घृणा करते हो, तो तुम हमारे साथ क्यों रहते हो? तुम सर्वोच्च परमेश्वर हो। तुम कहीं भी पैदा हो सकते थे, तो तुम्हें इस गंदे देश में क्यों पैदा होना पड़ा? तुम प्रतिदिन हमारा न्याय करते हो और हमें ताड़ना देते हो, और तुम स्पष्ट रूप से जानते हो कि हम मोआब के वंशज हैं, तो फिर भी तुम हमारे बीच क्यों रहते हो? तुम मोआब के वंशजों के परिवार में क्यों पैदा हुए? तुमने ऐसा क्यों किया?” तुम लोगों के इस तरह के विचार पूर्णतः विवेकरहित हैं! केवल इसी तरह का कार्य लोगों को उसकी महानता, उसकी विनम्रता और उसका छिपाव दिखाता है। वह अपने कार्य की खातिर सब-कुछ बलिदान करने को तैयार है, और उसने समस्त कष्ट अपने कार्य के लिए सहे हैं। ऐसा वह मानव-जाति की खातिर करता है, और इससे भी बढ़कर, शैतान को जीतने के लिए करता है, ताकि सभी सृजित प्राणी उसके प्रभुत्व के अंतर्गत आ सकें। केवल यही सार्थक, मूल्यवान कार्य है। अगर याकूब के वंशज चीन में, ज़मीन के इस टुकड़े पर, पैदा हुए होते, और वे तुम सब ही होते, तो तुम लोगों में किए गए कार्य का क्या अर्थ होता? शैतान क्या कहता? शैतान कहता : “वे पहले तुमसे डरते थे, उन्होंने शुरू से तुम्हारे प्रति समर्पण किया और तुम्हें धोखा देने का उनका कोई इतिहास नहीं है। वे मानवजाति के सबसे कलंकित, अधम या सबसे पिछड़े नहीं हैं।” यदि कार्य वास्तव में इस तरह से किया जाता, तो इस कार्य से कौन प्रभावित होता? पूरे संसार में चीनी लोग सबसे पिछड़े हैं। वे कम ईमानदारी के साथ निम्न दर्जे में जन्म लेते हैं; वे मूर्ख और सुस्त हैं, और वे अशिष्ट और पतनशील हैं। वे शैतानी स्वभावों से ओतप्रोत, गंदे और कामुक हैं। तुम सबमें ऐसे शैतानी स्वभाव हैं। एक बार यह कार्य पूरा हो जाने पर लोग इन भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देंगे और पूरी तरह से समर्पण करने में सक्षम हो जाएँगे और पूर्ण कर दिए जाएँगे। केवल कार्य के ऐसे फल ही सृजित प्राणियों के बीच गवाही हैं!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ

परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है। उसने तुम लोगों के लिए अपने हृदय का रक्त तक निचोड़कर दे दिया है; उसने ब्रह्माण्ड भर में पवित्रात्मा का समस्त कार्य पुनः प्राप्त करके तुम लोगों को दे दिया है। इसी कारण से तुम लोग सौभाग्यशाली हो। इतना ही नहीं, वह अपनी महिमा इस्राएल, उसके चुने हुए लोगों से हटाकर तुम लोगों के ऊपर ले आया है, और वह इस समूह के माध्यम से अपनी योजना का उद्देश्य पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष करेगा। इसलिए तुम लोग ही वह हो जो परमेश्वर की विरासत प्राप्त करोगे, और इससे भी अधिक, तुम परमेश्वर की महिमा के वारिस हो। तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : “क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।” तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है। अर्थात, परमेश्वर विजय का कार्य उन्हीं लोगों के माध्यम से करता है जो उसका विरोध करते हैं, और केवल इसी प्रकार परमेश्वर की महान सामर्थ्य प्रत्यक्ष की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, केवल अशुद्ध देश के लोग ही परमेश्वर की महिमा का उत्‍तराधिकार पाने के योग्य हैं, और केवल यही परमेश्वर की महान सामर्थ्‍य को उभारकर सामने ला सकता है। इसी कारण अशुद्ध देश से ही, और अशुद्ध देश में रहने वालों से ही परमेश्वर की महिमा प्राप्त की जाती है। ऐसी ही परमेश्वर की इच्छा है। यीशु के कार्य का चरण भी ऐसा ही था : वह केवल उन्हीं फरीसियों के बीच महिमा प्राप्त कर सकता था जिन्होंने उसे सताया था; यदि फरीसियों द्वारा किया गया उत्पीड़न और यहूदा द्वारा दिया गया धोखा नहीं होता, तो यीशु का उपहास नहीं उड़ाया जाता या उसे लांछित नहीं किया जाता, सलीब पर तो और भी नहीं चढ़ाया जाता, और इस प्रकार उसे कभी महिमा प्राप्त नहीं हो सकती थी। जहाँ परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य करता है, और जहाँ वह देह में काम करता है, वहीं वह महिमा प्राप्त करता है और वहीं वह उन्हें प्राप्त करता है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है। यही परमेश्वर के कार्य की योजना है, और यही उसका प्रबंधन है।

परमेश्वर की कई हज़ार वर्षों की योजना में, कार्य के दो भाग देह में किए गए हैं : पहला है सलीब पर चढ़ाए जाने का कार्य, जिसके लिए वह महिमा प्राप्त करता है; दूसरा है अंत के दिनों में विजय और पूर्णता का कार्य, जिसके लिए वह महिमा प्राप्त करता है। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। इसलिए परमेश्वर के कार्य, या तुम लोगों को दिए गए परमेश्वर के आदेश को सीधी-सादी बात मत समझो। तुम सभी लोग परमेश्वर की कहीं अधिक असाधारण और अनंत महत्व की महिमा के वारिस हो, और यह परमेश्वर द्वारा विशेष रूप से निश्चित किया गया था। उसकी महिमा के दो भागों में से एक तुम लोगों में प्रत्यक्ष होता है; परमेश्वर की महिमा का एक समूचा भाग तुम लोगों को प्रदान किया गया है, जो तुम लोगों की विरासत हो सकता है। यही परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्कर्ष है, और यह वह योजना भी है जो उसने बहुत पहले पूर्वनिर्धारित कर दी थी। जहाँ बड़ा लाल अजगर रहता है उस देश में परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य की महानता को देखते हुए, यदि यह कार्य कहीं और ले जाया जाता, तो यह बहुत पहले अत्यंत फलदायी हो गया होता और मनुष्य द्वारा तत्परता से स्वीकार कर लिया जाता। यही नहीं, परमेश्वर में विश्वास करने वाले पश्चिम के पादरियों के लिए इस कार्य को स्वीकार कर पाना कहीं अधिक आसान होता, क्योंकि यीशु द्वारा किए गए कार्य का चरण एक पूर्ववर्ती मिसाल का काम करता है। यही कारण है कि परमेश्वर महिमा पाने के कार्य का यह चरण कहीं और पूरा कर पाने में असमर्थ है; जब कार्य का लोगों द्वारा समर्थन किया जाता है और उसे देशों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है, तो परमेश्वर की महिमा प्रभावी नहीं हो सकती है। इस देश में कार्य के इस चरण का यही असाधारण महत्व है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?

आज ऐसे लोग हैं, जो अभी भी नहीं समझते कि परमेश्वर ने कौन-सा नया कार्य आरंभ किया है। अन्यजाति-राष्ट्रों में परमेश्वर ने एक नई शुरुआत की है। उसने एक नया युग प्रारंभ किया है, और एक नया कार्य शुरू किया है—और वह इस कार्य को मोआब के वंशजों पर कर रहा है। क्या यह उसका नवीनतम कार्य नहीं है? पूरे इतिहास में पहले कभी किसी ने इस कार्य का अनुभव नहीं किया है। किसी ने कभी इसके बारे में नहीं सुना है, समझना तो दूर की बात है। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर का चमत्कार, परमेश्वर की अज्ञेयता, परमेश्वर की महानता, परमेश्वर की पवित्रता सब कार्य के इस चरण के माध्यम से प्रकट किए जाते हैं, जो कि अंत के दिनों का कार्य है। क्या यह नया कार्य नहीं है, ऐसा कार्य, जो मानव की धारणाओं को खंडित करता है? ऐसे लोग भी हैं, जो इस प्रकार सोचते हैं : “चूँकि परमेश्वर ने मोआब को शाप दिया था और कहा था कि वह मोआब के वंशजों का परित्याग कर देगा, तो वह उन्हें अब कैसे बचा सकता है?” ये अन्यजाति के वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर द्वारा शाप दिया गया था और इस्राएल से बाहर निकाल दिया गया था; इस्राएली उन्हें “अन्यजाति के कुत्ते” कहते थे। हरेक की दृष्टि में, वे न केवल अन्यजाति के कुत्ते हैं, बल्कि उससे भी बदतर, विनाश के पुत्र हैं; कहने का तात्पर्य यह कि वे परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोग नहीं हैं। वे इस्राएल की सीमा में पैदा हुए होंगे, लेकिन वे इस्राएल के लोगों से संबंधित नहीं थे; और अन्यजाति-राष्ट्रों में निष्कासित कर दिए गए थे। ये सबसे हीन लोग हैं। चूंकि वे मानवता के बीच हीनतम हैं, यही कारण है कि परमेश्वर एक नए युग को आरंभ करने का अपना कार्य उनके बीच करता है, क्योंकि वे भ्रष्ट मानवता के प्रतिनिधि हैं। परमेश्वर का कार्य चयनात्मक और लक्षित है; जो कार्य वह आज इन लोगों में करता है, वह सृजित प्राणियों पर किया जाने वाला कार्य भी है। नूह परमेश्वर का एक सृजित प्राणी था, जैसे कि उसके वंशज भी हैं। दुनिया में हाड़-मांस से बने सभी प्राणी परमेश्वर के सृजित प्राणी हैं। परमेश्वर का कार्य सभी सृजित प्राणियों पर निर्देशित है; यह इस बात पर आधारित नहीं है कि सृजित किए जाने के बाद किसी को शापित किया गया है या नहीं। उसका प्रबंधन-कार्य सभी सृजित प्राणियों पर निर्देशित है, केवल उन चुने हुए लोगों पर नहीं, जिन्हें शापित नहीं किया गया है। चूँकि परमेश्वर अपने सृजित प्राणियों के बीच अपना कार्य करना चाहता है, इसलिए वह इसे निश्चित रूप से सफलतापूर्वक पूरा करेगा, और वह उन लोगों के बीच कार्य करेगा जो उसके कार्य के लिए लाभदायक हैं। इसलिए, जब वह मनुष्यों के बीच कार्य करता है, तो सभी परंपराओं को तहस-नहस कर देता है; उसके लिए, “शापित,” “ताड़ित” और “धन्य” शब्द निरर्थक हैं! यहूदी लोग अच्छे हैं, इस्राएल के चुने हुए लोग भी अच्छे हैं; वे अच्छी क्षमता और मानवता वाले लोग हैं। प्रारंभ में यहोवा ने उन्हीं के बीच अपना कार्य आरंभ किया, और अपना सबसे पहला कार्य किया—परंतु आज उन पर विजय प्राप्त करने का कार्य अर्थहीन होगा। वे भी सृजित प्राणियों का एक हिस्सा हो सकते हैं और उनमें बहुत-कुछ सकारात्मक हो सकता है, किंतु उनके बीच कार्य के इस चरण को कार्यान्वित करना बेमतलब होगा; परमेश्वर लोगों को जीत पाने में सक्षम नहीं होगा, न ही वह सभी सृजित प्राणियों को समझाने में सक्षम होगा, जो कि उसके द्वारा अपने कार्य को बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के इन लोगों तक ले जाने का आशय है। यहाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसका युग आरंभ करना, उसका सभी नियमों और मानवीय धारणाओं को खंडित करना और संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करना है। यदि उसका वर्तमान कार्य इस्राएलियों के मध्य किया गया होता, तो जब तक उसकी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना समाप्त होने को आती, हर कोई यह विश्वास करने लगता कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर का आशीष और प्रतिज्ञा विरासत में पाने योग्य हैं। अंत के दिनों के दौरान बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के अन्यजाति-देश में परमेश्वर का देहधारण उस परमेश्वर का कार्य पूरा करता है जो सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है; वह अपना संपूर्ण प्रबंधन-कार्य पूरा करता है, और वह बड़े लाल अजगर के देश में अपने कार्य के केंद्रीय भाग को समाप्त करता है। कार्य के इन तीनों चरणों के मूल में मनुष्य का उद्धार है—अर्थात, सभी सृजित प्राणियों से सृष्टिकर्ता की आराधना करवाना। इस प्रकार, कार्य के प्रत्येक चरण का बहुत बड़ा अर्थ है; परमेश्वर ऐसा कुछ नहीं करता जिसका कोई अर्थ या मूल्य न हो। एक ओर, कार्य का यह चरण एक नए युग का सूत्रपात और पिछले दो युगों का अंत करता है; दूसरी ओर, यह मनुष्य की समस्त धारणाओं और उसके विश्वास और ज्ञान के सभी पुराने तरीकों को खंडित करता है। पिछले दो युगों का कार्य मनुष्य की विभिन्न धारणाओं के अनुसार किया गया था; किंतु यह चरण मनुष्य की धारणाओं को पूरी तरह मिटा देता है, और ऐसा करके वह मानवजाति को पूरी तरह से जीत लेता है। मोआब के वंशजों के बीच किए गए कार्य के माध्यम से उसके वंशजों को जीतकर परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी लोगों को जीत लेगा। यह उसके कार्य के इस चरण का गहनतम अर्थ है, और यही उसके कार्य के इस चरण का सबसे मूल्यवान पहलू है। भले ही तुम अब जानते हो कि तुम्हारी अपनी हैसियत निम्न है और तुम कम मूल्य के हो, फिर भी तुम यह महसूस करोगे कि तुम्हारी सबसे आनंददायक वस्तु से भेंट हो गई है : तुमने एक बहुत बड़ा आशीष विरासत में प्राप्त किया है, एक बड़ी प्रतिज्ञा प्राप्त की है, और तुम परमेश्वर के इस महान कार्य को पूरा करने में सहायता कर सकते हो। तुमने परमेश्वर का सच्चा चेहरा देखा है, तुम परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव को जानते हो, और तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलते हो। परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में संपन्न किए गए थे। यदि अंत के दिनों के दौरान उसके कार्य का यह चरण भी इस्राएलियों के बीच किया जाता, तो न केवल सभी सृजित प्राणी मान लेते कि केवल इस्राएली ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, बल्कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना भी अपना वांछित परिणाम प्राप्त न कर पाती। जिस समय इस्राएल में उसके कार्य के दो चरण पूरे किए गए थे, उस दौरान अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच न तो कोई नया कार्य—न ही नया युग प्रारंभ करने का कोई कार्य—किया गया था। कार्य का आज का चरण—एक नए युग के सूत्रपात का कार्य—पहले अन्यजाति-राष्ट्रों में किया जा रहा है, और इतना ही नहीं, प्रारंभ में मोआब के वंशजों के बीच किया जा रहा है; और इस प्रकार संपूर्ण युग का आरंभ किया गया है। परमेश्वर ने मनुष्य की धारणाओं में निहित किसी भी ज्ञान को बाकी नहीं रहने दिया और सब खंडित कर दिया। विजय प्राप्त करने के अपने कार्य में उसने मानवीय धारणाओं को, ज्ञान के उन पुराने, आरंभिक मानवीय तरीकों को ध्वस्त कर दिया है। वह लोगों को देखने देता है कि परमेश्वर पर कोई नियम लागू नहीं होते, कि परमेश्वर के मामले में कुछ भी पुराना नहीं है, कि वह जो कार्य करता है वह पूरी तरह से स्वतंत्र है, पूरी तरह से मुक्त है, और कि वह अपने समस्त कार्य में सही है। वह सृजित प्राणियों के बीच जो भी कार्य करता है, उसके प्रति तुम्हें पूरी तरह से समर्पित होना चाहिए। उसके समस्त कार्य में अर्थ होता है, और वह उसकी अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार किया जाता है, मनुष्य की पसंद और धारणाओं के अनुसार नहीं। अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक होती है, तो वह उसे करता है; और अगर कोई चीज़ उसके कार्य के लिए लाभदायक नहीं होती, तो वह उसे नहीं करता, चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों न हो! वह कार्य करता है और अपने कार्य के अर्थ और प्रयोजन के अनुसार अपने कार्य के प्राप्तकर्ताओं और स्थान का चयन करता है। कार्य करते हुए वह पुराने नियमों से चिपका नहीं रहता, न ही वह पुराने सूत्रों का पालन करता है। इसके बजाय, वह अपने कार्य की योजना उसके मायने के अनुसार बनाता है। अंततः वह वास्तविक प्रभाव और प्रत्याशित लक्ष्य प्राप्त करेगा। यदि तुम आज इन बातों को नहीं समझते, तो इस कार्य का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर समस्त सृजित प्राणियों का प्रभु है

पिछले दो युगों के कार्य का एक चरण इस्राएल में पूरा किया गया, और एक यहूदिया में। सामान्य तौर पर कहा जाए तो, इस कार्य का कोई भी चरण इस्राएल छोड़कर नहीं गया, और प्रत्येक चरण पहले चुने गए लोगों पर किया गया। परिणामस्वरूप, इस्राएली मानते हैं कि यहोवा परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है। चूँकि यीशु ने यहूदिया में कार्य किया, जहाँ उसने सूली पर चढ़ने का काम किया, इसलिए यहूदी उसे यहूदी लोगों के उद्धारक के रूप में देखते हैं। वे सोचते हैं कि वह केवल यहूदियों का राजा है, अन्य किसी का नहीं; कि वह अंग्रेजों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु नहीं है, न ही अमेरिकियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु, बल्कि वह इस्राएलियों को छुटकारा दिलाने वाला प्रभु है, और इस्राएल में भी उसने यहूदियों को छुटकारा दिलाया। वास्तव में, परमेश्वर सभी चीज़ों का संप्रभु है। वह सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। वह केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, न यहूदियों का; बल्कि वह सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। उसके कार्य के पिछले दो चरण इस्राएल में हुए, जिसने लोगों में कुछ निश्चित धारणाएँ पैदा कर दी हैं। वे मानते हैं कि यहोवा ने अपना कार्य इस्राएल में किया, और स्वयं यीशु ने अपना कार्य यहूदिया में किया, और इतना ही नहीं, कार्य करने के लिए उसने देहधारण किया—और जो भी हो, यह कार्य इस्राएल से आगे नहीं बढ़ा। परमेश्वर ने मिस्रियों या भारतीयों में कार्य नहीं किया; उसने केवल इस्राएलियों में कार्य किया। लोग इस प्रकार विभिन्न धारणाएँ बना लेते हैं, वे परमेश्वर के कार्य को एक निश्चित दायरे में बाँध देते हैं। वे कहते हैं कि जब परमेश्वर कार्य करता है, तो अवश्य ही उसे ऐसा चुने हुए लोगों के बीच और इस्राएल में करना चाहिए; इस्राएलियों के अलावा परमेश्वर किसी अन्य पर कार्य नहीं करता, न ही उसके कार्य का कोई बड़ा दायरा है। वे देहधारी परमेश्वर को नियंत्रित करने में विशेष रूप से सख़्त हैं और उसे इस्राएल की सीमा से बाहर नहीं जाने देते। क्या ये सब मानवीय धारणाएँ मात्र नहीं हैं? परमेश्वर ने संपूर्ण स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें बनाईं, उसने सभी सृजित प्राणी बनाए, तो वह अपने कार्य को केवल इस्राएल तक सीमित कैसे रख सकता है? अगर ऐसा होता, तो उसके तमाम सृजित प्राणी बनाने का क्या तुक था? उसने पूरी दुनिया को बनाया, और उसने अपनी छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना केवल इस्राएल में नहीं, बल्कि ब्रह्मांड में प्रत्येक व्यक्ति पर कार्यान्वित की। चाहे वे चीन में रहते हों या संयुक्त राज्य अमेरिका में, यूनाइटेड किंगडम में या रूस में, प्रत्येक व्यक्ति आदम का वंशज है; वे सब परमेश्वर के बनाए हुए हैं। उनमें से एक भी सृजित प्राणियों के दायरे से बाहर नहीं जा सकता, और उनमें से एक भी खुद को “आदम का वंशज” होने के ठप्पे से अलग नहीं कर सकता। वे सभी सृजित प्राणी हैं, वे सभी आदम की संतानें हैं, और वे सभी आदम और हव्वा के भ्रष्ट वंशज भी हैं। केवल इस्राएली ही सृजित प्राणी नहीं हैं, बल्कि सभी लोग सृजित प्राणी हैं; बस इतना ही है कि कुछ को शाप दिया गया है, और कुछ को आशीष। इस्राएलियों के बारे में कई स्वीकार्य बातें हैं; परमेश्वर ने आरंभ में उन पर कार्य किया क्योंकि वे सबसे कम भ्रष्ट थे। चीनियों की उनसे तुलना नहीं की जा सकती; वे उनसे बहुत हीन हैं। इसलिए, आरंभ में परमेश्वर ने इस्राएलियों के बीच कार्य किया, और उसके कार्य का दूसरा चरण केवल यहूदिया में संपन्न हुआ—जिससे मनुष्यों में बहुत सारी धारणाएँ और नियम बन गए हैं। वास्तव में, यदि परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं के अनुसार कार्य करता, तो वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, और इस प्रकार वह अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच अपने कार्य का विस्तार करने में असमर्थ होता, क्योंकि वह केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर होता, सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर नहीं। भविष्यवाणियों में कहा गया है कि यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में सम्मान पाएगा, कि वह अन्यजाति-राष्ट्रों में फैल जाएगा। यह भविष्यवाणी क्यों की गई थी? यदि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर होता, तो वह केवल इस्राएल में ही कार्य करता। इतना ही नहीं, वह इस कार्य का विस्तार न करता, और वह ऐसी भविष्यवाणी न करता। चूँकि उसने यह भविष्यवाणी की थी, इसलिए वह निश्चित रूप से अन्यजाति-राष्ट्रों में, प्रत्येक राष्ट्र में और समस्त भूमि पर, अपने कार्य का विस्तार करेगा। चूँकि उसने ऐसा कहा है, इसलिए वह ऐसा ही करेगा; यह उसकी योजना है, क्योंकि वह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ों का सृष्टिकर्ता प्रभु और सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर है। चाहे वह इस्राएलियों के बीच कार्य करता हो या संपूर्ण यहूदिया में, वह जो कार्य करता है, वह संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण मानवता का कार्य होता है। आज जो कार्य वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र—एक अन्यजाति-राष्ट्र में—करता है, वह भी संपूर्ण मानवता का कार्य है। इस्राएल पृथ्वी पर उसके कार्य का आधार हो सकता है; इसी प्रकार, अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच चीन भी उसके कार्य का आधार हो सकता है। क्या उसने अब इस भविष्यवाणी को पूरा नहीं किया है कि “यहोवा का नाम अन्यजाति-राष्ट्रों में खूब बढ़ेगा”? अन्यजाति-राष्ट्रों के बीच उसके कार्य का पहला चरण यह कार्य है, जिसे वह बड़े लाल अजगर के राष्ट्र में कर रहा है। देहधारी परमेश्वर का इस राष्ट्र में कार्य करना और इन शापित लोगों के बीच कार्य करना विशेष रूप से मनुष्य की धारणाओं के विपरीत है; ये लोग सबसे निम्न स्तर के हैं, इनका कोई मूल्य नहीं है, और इन्हें यहोवा ने आरंभ में त्याग दिया था। लोगों को दूसरे लोगों द्वारा त्यागा जा सकता है, परंतु यदि वे परमेश्वर द्वारा त्यागे जाते हैं, तो किसी की भी हैसियत उनसे कम नहीं होगी, और किसी का भी मूल्य उनसे कम नहीं होगा। एक सृजित प्राणी के लिए शैतान द्वारा कब्ज़े में ले लिया जाना या लोगों द्वारा त्याग दिया जाना कष्टदायक चीज़ है—परंतु किसी सृजित प्राणी को उसके सृष्टिकर्ता द्वारा त्याग दिए जाने का अर्थ है कि उसकी हैसियत उससे कम नहीं हो सकती। मोआब के वंशज शापित थे और वे इस पिछड़े देश में पैदा हुए थे; निःसंदेह अंधकार के प्रभाव से ग्रस्त सभी लोगों में मोआब के वंशजों की हैसियत सबसे कम है। चूँकि अब तक ये लोग सबसे कम हैसियत वाले रहे हैं, इसलिए उन पर किया गया कार्य मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने में सबसे सक्षम है, और परमेश्वर की संपूर्ण छह हजार वर्षीय प्रबंधन योजना के लिए सबसे लाभदायक भी है। इन लोगों के बीच ऐसा कार्य करना मनुष्य की धारणाओं को खंडित करने का सर्वोत्तम तरीका है; और इसके साथ परमेश्वर एक युग का सूत्रपात करता है; इसके साथ वह मनुष्य की सभी धारणाओं को खंडित कर देता है; इसके साथ वह संपूर्ण अनुग्रह के युग के कार्य का समापन करता है। उसका पहला कार्य इस्राएल की सीमा के भीतर यहूदिया में किया गया था; अन्यजाति-राष्ट्रों में उसने नए युग का सूत्रपात करने के लिए कोई कार्य नहीं किया। कार्य का अंतिम चरण न केवल अन्यजातियों के बीच किया जा रहा है; बल्कि इससे भी अधिक, उन लोगों में किया जा रहा है, जिन्हें शापित किया गया है। यह एक बिंदु शैतान को अपमानित करने के लिए सबसे सक्षम प्रमाण है, और इस प्रकार, परमेश्वर ब्रह्मांड में सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर, सभी चीज़ों का प्रभु, और सभी जीवधारियों की आराधना की वस्तु “बन” जाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर समस्त सृजित प्राणियों का प्रभु है

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परमेश्वर के चीन में प्रकट होकर कार्य करने का बहुत महत्व है

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परमेश्वर ने चीन में पूरा कर लिया है विजेताओं का एक समूह

पिछला: vi. यह कैसे जानें कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है

अगला: i. मानवजाति के प्रबंधन के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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