i. मानवजाति के प्रबंधन के लिए परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

मेरी संपूर्ण प्रबंधन योजना, छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना, के तीन चरण या तीन युग हैं : आरंभ में व्यवस्था का युग; अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत के दिनों का राज्य का युग। इन तीनों युगों में मेरे कार्य की विषयवस्तु प्रत्येक युग के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग है, परंतु प्रत्येक चरण में यह कार्य मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है—या, ज्यादा सटीक रूप में, यह शैतान द्वारा उस युद्ध में चली जाने वाली चालों के अनुसार किया जाता है, जो मैं उससे लड़ रहा हूँ। मेरे कार्य का उद्देश्य शैतान को हराना, अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता व्यक्त करना, शैतान की सभी चालों को उजागर करना और परिणामस्वरूप समस्त मानवजाति को बचाना है, जो शैतान की सत्ता के अधीन रहती है। यह मेरी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता दिखाने के लिए और शैतान की असहनीय विकरालता प्रकट करने के लिए है; इससे भी अधिक, यह सृजित प्राणियों को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने देने के लिए है, यह जानने देने के लिए कि मैं सभी चीजों का संप्रभु हूँ, यह देखने देने के लिए कि शैतान मानवजाति का शत्रु है, अधम है, दुष्ट है; और उन्हें पूरी निश्चितता के साथ अच्छे और बुरे, सत्य और झूठ, पवित्रता और मलिनता के बीच का अंतर बताने देने के लिए है, और यह भी कि क्या महान है और क्या हेय है। इस तरह, अज्ञानी मानवजाति मेरी गवाही देने में समर्थ हो जाएगी कि वह मैं नहीं हूँ जो मानवजाति को भ्रष्ट करता है, और केवल मैं—सृष्टिकर्ता—ही मानवजाति को बचा सकता हूँ, लोगों को उनके आनंद की वस्तुएँ प्रदान कर सकता हूँ; और उन्हें पता चल जाएगा कि मैं सभी चीजों का संप्रभु हूँ और शैतान मात्र उन प्राणियों में से एक है, जिनका मैंने सृजन किया है और जिसने बाद में मुझसे विश्वासघात किया। मेरी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना तीन चरणों में विभाजित है, और मैं इस तरह इसलिए कार्य करता हूँ, ताकि सृजित प्राणियों को मेरी गवाही देने, मेरी इच्छा समझ पाने, और मैं ही सत्य हूँ यह जान पाने के योग्य बनाने का प्रभाव प्राप्त कर सकूँ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, छुटकारे के युग के कार्य के पीछे की सच्ची कहानी

परमेश्वर के 6,000 वर्षों के प्रबधंन-कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है : व्यवस्था का युग, अनुग्रह का युग और राज्य का युग। कार्य के ये तीनों चरण मानव-जाति के उद्धार के वास्ते हैं, अर्थात् ये उस मानव-जाति के उद्धार के लिए हैं, जिसे शैतान द्वारा बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया गया है। किंतु, साथ ही, वे इसलिए भी हैं, ताकि परमेश्वर शैतान के साथ युद्ध कर सके। इस प्रकार, जैसे उद्धार के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, ठीक वैसे ही शैतान के साथ युद्ध को भी तीन चरणों में बाँटा जाता है, और परमेश्वर के कार्य के ये दो पहलू एक-साथ संचालित किए जाते हैं। शैतान के साथ युद्ध वास्तव में मानव-जाति के उद्धार के वास्ते है, और चूँकि मानव-जाति के उद्धार का कार्य कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे एक ही चरण में सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता हो, इसलिए शैतान के साथ युद्ध को भी चरणों और अवधियों में बाँटा जाता है, और मनुष्य की आवश्यकताओं और मनुष्य में शैतान की भ्रष्टता की सीमा के अनुसार शैतान के साथ युद्ध छेड़ा जाता है। कदाचित् मनुष्य अपनी कल्पना में यह विश्वास करता है कि इस युद्ध में परमेश्वर शैतान के विरुद्ध शस्त्र उठाएगा, वैसे ही, जैसे दो सेनाएँ आपस में लड़ती हैं। मनुष्य की बुद्धि मात्र यही कल्पना करने में सक्षम है; यह अत्यधिक अस्पष्ट और अवास्तविक सोच है, फिर भी मनुष्य यही विश्वास करता है। और चूँकि मैं यहाँ कहता हूँ कि मनुष्य के उद्धार का साधन शैतान के साथ युद्ध करने के माध्यम से है, इसलिए मनुष्य कल्पना करता है कि युद्ध इसी तरह से संचालित किया जाता है। मनुष्य के उद्धार के कार्य के तीन चरण हैं, जिसका तात्पर्य है कि शैतान को हमेशा के लिए पराजित करने हेतु उसके साथ युद्ध को तीन चरणों में विभाजित किया गया है। किंतु शैतान के साथ युद्ध के समस्त कार्य की भीतरी सच्चाई यह है कि इसके परिणाम कार्य के अनेक चरणों में हासिल किए जाते हैं : मनुष्य को अनुग्रह प्रदान करना, मनुष्य के लिए पापबलि बनना, मनुष्य के पापों को क्षमा करना, मनुष्य पर विजय पाना और मनुष्य को पूर्ण बनाना। वस्तुतः शैतान के साथ युद्ध करना उसके विरुद्ध हथियार उठाना नहीं है, बल्कि मनुष्य का उद्धार करना है, मनुष्य के जीवन में कार्य करना है, और मनुष्य के स्वभाव को बदलना है, ताकि वह परमेश्वर के लिए गवाही दे सके। इसी तरह से शैतान को पराजित किया जाता है। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के माध्यम से शैतान को पराजित किया जाता है। जब शैतान को पराजित कर दिया जाएगा, अर्थात् जब मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा, तो अपमानित शैतान पूरी तरह से लाचार हो जाएगा, और इस तरह से, मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। इस प्रकार, मनुष्य के उद्धार का सार शैतान के विरुद्ध युद्ध है, और यह युद्ध मुख्य रूप से मनुष्य के उद्धार में प्रतिबिंबित होता है। अंत के दिनों का चरण, जिसमें मनुष्य को जीता जाना है, शैतान के साथ युद्ध का अंतिम चरण है, और यह शैतान की सत्ता से मनुष्य के संपूर्ण उद्धार का कार्य भी है। मनुष्य पर विजय का आंतरिक अर्थ मनुष्य पर विजय पाने के बाद शैतान के मूर्त रूप—मनुष्य, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है—का अपने जीते जाने के बाद सृष्टिकर्ता के पास वापस लौटना है, जिसके माध्यम से वह शैतान से विद्रोह कर पूरी तरह से परमेश्वर के पास वापस लौट जाएगा। इस तरह मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। और इसलिए, विजय का कार्य शैतान के विरुद्ध युद्ध में अंतिम कार्य है, और शैतान की पराजय के वास्ते परमेश्वर के प्रबंधन में अंतिम चरण है। इस कार्य के बिना मनुष्य का संपूर्ण उद्धार अंततः असंभव होगा, शैतान की संपूर्ण पराजय भी असंभव होगी, और मानव-जाति कभी भी अपनी अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करने या शैतान के प्रभाव से छुटकारा पाने में सक्षम नहीं होगी। परिणामस्वरूप, शैतान के साथ युद्ध की समाप्ति से पहले मनुष्य के उद्धार का कार्य समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य का केंद्रीय भाग मानव-जाति के उद्धार के वास्ते है। आदिम मानव-जाति परमेश्वर के हाथों में थी, किंतु शैतान के प्रलोभन और भ्रष्टता की वजह से, मनुष्य को शैतान द्वारा बाँध लिया गया और वह इस दुष्ट के हाथों में पड़ गया। इस प्रकार, परमेश्वर के प्रबधंन-कार्य में शैतान पराजित किए जाने का लक्ष्य बन गया। चूँकि शैतान ने मनुष्य पर कब्ज़ा कर लिया था, और चूँकि मनुष्य वह पूँजी है जिसे परमेश्वर संपूर्ण प्रबंधन पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है, इसलिए यदि मनुष्य को बचाया जाना है, तो उसे शैतान के हाथों से वापस छीनना होगा, जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य को शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाने के बाद उसे वापस लेना होगा। इस प्रकार, शैतान को मनुष्य के पुराने स्वभाव में बदलावों के माध्यम से पराजित किया जाना चाहिए, ऐसे बदलाव, जो मनुष्य की मूल विवेक-बुद्धि को बहाल करते हैं। और इस तरह से मनुष्य को, जिसे बंदी बना लिया गया था, शैतान के हाथों से वापस छीना जा सकता है। यदि मनुष्य शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो जाता है, तो शैतान शर्मिंदा हो जाएगा, मनुष्य को अंततः वापस ले लिया जाएगा, और शैतान को हरा दिया जाएगा। और चूँकि मनुष्य को शैतान के अंधकारमय प्रभाव से मुक्त किया जा चुका है, इसलिए एक बार जब यह युद्ध समाप्त हो जाएगा, तो मनुष्य इस संपूर्ण युद्ध में जीत के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ लाभ बन जाएगा, और शैतान वह लक्ष्य बन जाएगा जिसे दंडित किया जाएगा, जिसके पश्चात् मानव-जाति के उद्धार का संपूर्ण कार्य पूरा कर लिया जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

तुम लोगों को यह अवश्य जानना चाहिए कि परमेश्वर चाहे जो भी कार्य करे, उसके कार्य का उद्देश्य नहीं बदलता है, उसके कार्य का मर्म नहीं बदलता है और मनुष्य के प्रति उसकी इच्छा नहीं बदलती है। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि उसके वचन कितने कठोर हैं, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि परिस्थिति कितनी विपरीत है, उसके कार्य के सिद्धांत नहीं बदलेंगे, और मनुष्यों को बचाने का उसका ध्येय नहीं बदलेगा। बशर्ते कि यह मनुष्य के अंत या गंतव्य के प्रकाशन का कार्य न हो, और अंतिम चरण का कार्य न हो, या परमेश्वर के प्रबंधन की संपूर्ण योजना को समाप्त करने का कार्य न हो, और बशर्ते कि यह उस समय के दौरान हो जब वह मनुष्य पर कार्य करता है, तो उसके कार्य का मर्म नहीं बदलेगा। यह हमेशा मानवजाति का उद्धार होगा। यह परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास का आधार होना चाहिए। कार्य के तीन चरणों का उद्देश्य समस्त मानवजाति का उद्धार है—जिसका अर्थ है शैतान की सत्ता से मनुष्य का पूर्ण उद्धार। यद्यपि कार्य के इन तीन चरणों में से प्रत्येक का एक भिन्न उद्देश्य और महत्व है, किंतु प्रत्येक मानवजाति को बचाने के कार्य का हिस्सा है, और प्रत्येक उद्धार का एक भिन्न कार्य है जो मानवजाति की आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है। एक बार जब तुम कार्य के तीन चरणों के उद्देश्य के बारे में अवगत हो जाओगे, तब तुम समझ जाओगे कि तुम्हें कार्य के प्रत्येक चरण के महत्व को पूरी तरह कैसे समझना है, और तुम जान जाओगे कि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिए किस तरह से व्यवहार करना है। यदि तुम इस स्थिति तक पहुँच सकते हो, तो यह सबसे बड़ा दर्शन, परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का आधार बन जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

सभी लोगों को पृथ्वी पर मेरे कार्य के उद्देश्यों को समझने की आवश्यकता है, अर्थात् मैं अंततः क्या प्राप्त करना कहता हूँ, और इस कार्य को पूरा करने से पहले मुझे इसमें कौन-सा स्तर प्राप्त कर लेना चाहिए। यदि आज तक मेरे साथ चलते रहने के बाद भी लोग यह नहीं समझते कि मेरा कार्य क्या है, तो क्या वे मेरे साथ व्यर्थ में नहीं चले? यदि लोग मेरा अनुसरण करते हैं, तो उन्हें मेरी इच्छा जाननी चाहिए। मैं पृथ्वी पर हज़ारों सालों से कार्य कर रहा हूँ और आज भी मैं अपना कार्य इसी तरह से जारी रखे हुए हूँ। यद्यपि मेरे कार्य में कई परियोजनाएँ शामिल हैं, किंतु इसका उद्देश्य अपरिवर्तित है; यद्यपि, उदाहरण के लिए, मैं मनुष्य के प्रति न्याय और ताड़ना से भरा हुआ हूँ, फिर भी मैं जो करता हूँ, वह उसे बचाने के वास्ते, और अपने सुसमाचार को बेहतर ढंग से फैलाने और मनुष्य को पूर्ण बना दिए जाने पर अन्यजाति देशों के बीच अपने कार्य को आगे बढ़ाने के वास्ते है। इसलिए आज, एक ऐसे वक्त, जब कई लोग लंबे समय से निराशा में गहरे डूब चुके हैं, मैं अभी भी अपना कार्य जारी रखे हुए हूँ, मैं वह कार्य जारी रखे हुए हूँ जो मनुष्य को न्याय और ताड़ना देने के लिए मुझे करना चाहिए। इस तथ्य के बावजूद कि जो कुछ मैं कहता हूँ, मनुष्य उससे उकता गया है और मेरे कार्य से जुड़ने की उसकी कोई इच्छा नहीं है, मैं फिर भी अपना कर्तव्य कर रहा हूँ, क्योंकि मेरे कार्य का उद्देश्य अपरिवर्तित है और मेरी मूल योजना भंग नहीं होगी। मेरे न्याय का कार्य मनुष्य को मेरे प्रति बेहतर ढंग से समर्पण करने में सक्षम बनाना है, और मेरी ताड़ना का कार्य मनुष्य को अधिक प्रभावी ढंग से बदलने देना है। यद्यपि मैं जो करता हूँ, वह मेरे प्रबंधन के वास्ते है, फिर भी मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया है, जो मनुष्य के लाभ के लिए न हो, क्योंकि मैं इस्राएल से बाहर के सभी देशों को इस्राएलियों के समान ही आज्ञाकारी बनाना चाहता हूँ, उन्हें वास्तविक मनुष्य बनाना चाहता हूँ, ताकि इस्राएल के बाहर के देशों में मेरे लिए पैर रखने की जगह हो सके। यही मेरा प्रबंधन है; यही वह कार्य है जिसे मैं अन्यजाति देशों के बीच पूरा कर रहा हूँ। अभी भी, बहुत-से लोग मेरे प्रबंधन को नहीं समझते, क्योंकि उन्हें ऐसी चीज़ों में कोई रुचि नहीं है, और वे केवल अपने स्वयं के भविष्य और मंज़िल की परवाह करते हैं। मैं चाहे कुछ भी कहता रहूँ, लोग उस कार्य के प्रति उदासीन हैं जो मैं करता हूँ, इसके बजाय वे अनन्य रूप से अपनी कल की मंज़िलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अगर चीज़ें इसी तरह से चलती रहीं, तो मेरा कार्य कैसे फैल सकता है? मेरा सुसमाचार पूरे संसार में कैसे फैल सकता है? जान लो, कि जब मेरा कार्य फैलेगा, तो मैं तुम्हें तितर-बितर कर दूँगा और उसी तरह मारूँगा, जैसे यहोवा ने इस्राएल के प्रत्येक कबीले को मारा था। यह सब इसलिए किया जाएगा, ताकि मेरा सुसमाचार समस्त पृथ्वी पर फैल सके और अन्यजाति देशों तक मेरा कार्य फैल सके, ताकि मेरे नाम का सम्मान वयस्कों और बच्चों द्वारा समान रूप से किया जा सके, और मेरा पवित्र नाम सभी कबीलों और देशों के लोगों के मुँह से गूँजता रहे। ऐसा इसलिए है, ताकि इस अंतिम युग में, मेरा नाम अन्यजाति देशों के बीच सम्मान पा सके, मेरे कर्म अन्यजातियों द्वारा देखे जा सकें और वे मुझे मेरे कर्मों के आधार पर सर्वशक्तिमान कह सकें, और मेरे वचन शीघ्र ही साकार हो सकें। मैं सभी लोगों को ज्ञात करवाऊँगा कि मैं केवल इस्राएलियों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि अन्यजातियों के समस्त देशों का भी परमेश्वर हूँ, यहाँ तक कि उनका भी परमेश्वर हूँ जिन्हें मैंने शाप दिया है। मैं सभी लोगों को यह देखने दूँगा कि मैं सभी सृजित प्राणियों का परमेश्वर हूँ। यह मेरा सबसे बड़ा कार्य है, अंत के दिनों के लिए मेरी कार्य-योजना का उद्देश्य है, और अंत के दिनों में पूरा किया जाने वाला एकमात्र कार्य है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है

शायद, जब कार्य के तीन चरणों की पहेली मानवजाति को बताई जाएगी, तो अनुक्रम से परमेश्वर को जानने वाले प्रतिभावान लोगों का एक समूह प्रकट होगा। मैं आशा करता हूँ कि ऐसा ही हो, और साथ ही, मैं इस कार्य को करने की प्रक्रिया में हूँ और निकट भविष्य में ऐसे और भी अधिक प्रतिभावान लोगों के प्रकट होने की आशा करता हूँ। वे कार्य के इन तीन चरणों के तथ्य की गवाही देने वाले लोग बन जाएँगे और वे वास्तव में, कार्य के इन तीनों चरणों की गवाही देने वाले प्रथम लोग भी होंगे। परंतु इससे अधिक दुखद और खेदजनक कुछ भी नहीं होगा कि परमेश्वर के कार्य की समाप्ती के दिन इस प्रकार के प्रतिभावान लोग प्रकट न हों, या केवल ऐसे एक या दो ही लोग सामने आएं जिन्होंने देहधारी परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाना व्यक्तिगत रूप से स्वीकार कर लिया हो। फिर भी, यह सिर्फ़ सबसे बुरी संभावना है। चाहे जो भी हो, मैं अभी भी आशा करता हूँ कि जो वास्तव में परमेश्वर की तलाश में लगे हैं, वे इस आशीष को प्राप्त कर पाएँ। समय के आरम्भ से ही, इस प्रकार का कार्य पहले कभी नहीं हुआ; मानव विकास के इतिहास में कभी भी इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ है। यदि तुम वास्तव में परमेश्वर को जानने वालों में सबसे प्रथम लोगों में से एक हुए, तो क्या यह सभी सृजित प्राणियों में सर्वोच्च आदर की बात नहीं होगी? क्या मानवजाति में ऐसा कोई सृजित प्राणी होगा जो परमेश्वर से इससे बेहतर प्रशंसा प्राप्त कर सके? इस प्रकार का कार्य कर पाना आसान नहीं है, परंतु अंत में प्रतिफल प्राप्त करेगा। लिंग या राष्ट्रीयता से निरपेक्ष, वे सभी लोग जो परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं, अंत में, परमेश्वर का सबसे महान सम्मान प्राप्त करेंगे और एकमात्र वे ही परमेश्वर के अधिकार को प्राप्त करेंगे। यही आज का कार्य है, और भविष्य का कार्य भी है; यह 6,000 सालों के कार्य में निष्पादित किया जाने वाला अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, और यह कार्य करने का ऐसा तरीका है जो मनुष्य की प्रत्येक श्रेणी को प्रकट करता है। मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान करवाने के कार्य के माध्यम से, मनुष्य की विभिन्न श्रेणियाँ प्रकट होती हैं : जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने और उसकी प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने के योग्य होते हैं, जबकि जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के आशीषों और प्रतिज्ञाओं को स्वीकारने के योग्य नहीं होते हैं। जो परमेश्वर को जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग होते हैं, और जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे परमेश्वर के अंतरंग नहीं कहे जा सकते हैं; परमेश्वर के अंतरंग परमेश्वर का कोई भी आशीष प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु जो उसके घनिष्ठ नहीं हैं वे उसके किसी भी काम के लायक नहीं हैं। चाहे यह क्लेश, शुद्धिकरण या न्याय हो, ये सभी चीजें अंततः मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाने की खातिर हैं, और इसलिए हैं ताकि मनुष्य परमेश्वर के प्रति समर्पण करे। यही एकमात्र प्रभाव है जो अंततः प्राप्त किया जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

जब परमेश्वर के प्रबंधन का संपूर्ण कार्य समाप्ति के निकट होगा, तो परमेश्वर प्रत्येक वस्तु को उसके प्रकार के आधार पर श्रेणीबद्ध करेगा। मनुष्य रचयिता के हाथों से रचा गया था, और अंत में वह मनुष्य को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व में ले लेगा; कार्य के तीन चरणों का यही निष्कर्ष है। अंत के दिनों में कार्य का चरण और इस्राएल एवं यहूदा में पिछले दो चरण, संपूर्ण ब्रह्मांड में परमेश्वर के प्रबंधन की योजना के हिस्से हैं। इसे कोई नकार नहीं सकता है, और यह परमेश्वर के कार्य का तथ्य है। यद्यपि लोगों ने इस कार्य के बहुत-से हिस्से का अनुभव नहीं किया है या इसके साक्षी नहीं हैं, परंतु तथ्य तब भी तथ्य ही हैं और इसे किसी भी मनुष्य के द्वारा नकारा नहीं जा सकता है। ब्रह्मांड के हर देश के लोग जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे सभी कार्य के इन तीनों चरणों को स्वीकार करेंगे। यदि तुम कार्य के किसी एक विशेष चरण को ही जानते हो, और कार्य के अन्य दो चरणों को नहीं समझते हो, अतीत में परमेश्वर द्वारा किए गए कार्यों को नहीं समझते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रबंधन की समस्त योजना के संपूर्ण सत्य के बारे में बात करने में असमर्थ हो, और परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान एक-पक्षीय है, क्योंकि तुम परमेश्वर को जानते या समझते नहीं हो, और इसलिए तुम परमेश्वर की गवाही देने के लिए उपयुक्त नहीं हो। इन चीज़ों के बारे में तुम्हारा वर्तमान ज्ञान चाहे गहरा हो या सतही, अंत में, तुम लोगों के पास ज्ञान होना चाहिए, और तुम्हें पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहिए, और सभी लोग परमेश्वर के कार्य की संपूर्णता को देखेंगे और उसके प्रभुत्व के अधीन समर्पित होंगे। इस कार्य के अंत में, सभी धर्म एक हो जाएँगे, सभी सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन लौट जाएँगे, सभी सृजित प्राणी एक ही सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे, और सभी दुष्ट धर्म नष्ट हो जाएँगे और फिर कभी भी प्रकट नहीं होंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

परमेश्वर ने मनुष्यों का सृजन किया और उन्हें पृथ्वी पर रखा और तब से उनकी अगुआई की। फिर उसने उन्हें बचाया और मानवता के लिये पापबलि बना। अंत में, उसे अभी भी मानवता को जीतना होगा, मनुष्यों को पूरी तरह से बचाना होगा और उन्हें उनकी मूल समानता में वापस लौटाना होगा। यही वह कार्य है, जिसे वह आरंभ से करता रहा है—मनुष्य को उसकी मूल छवि और उसकी मूल समानता में वापस लौटाना। परमेश्वर अपना राज्य स्थापित करेगा और मनुष्य की मूल समानता बहाल करेगा, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर पृथ्वी और समस्त सृजित प्राणियों पर अपने अधिकार को बहाल करेगा। मानवता ने शैतान से भ्रष्ट होने के बाद सृजित प्राणियों के साथ-साथ अपने धर्मभीरु हृदय भी गँवा दिए, जिससे वह परमेश्वर के प्रति विद्रोह करने वाला शत्रु बन गया। तब मानवता शैतान की सत्ता के अधीन जीने लगी और शैतान के आदेशों का पालन करने लगी; इस प्रकार, अपने सृजित प्राणियों के बीच कार्य करने का परमेश्वर के पास कोई तरीका नहीं था और वह अपने प्राणियों के मन में भय पैदा कर पाने में असमर्थ हो गया। मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया था और उन्हें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए थी, पर उन्होंने वास्तव में परमेश्वर से मुँह मोड़ लिया और इसके बजाय शैतान की आराधना करने लगे। शैतान उनके दिलों में बस गया। इस प्रकार, परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में अपना स्थान खो दिया, जिसका मतलब है कि उसने मानवता के सृजन के पीछे का अर्थ खो दिया। इसलिए मानवता के सृजन के अपने अर्थ को बहाल करने के लिए उसे उनकी मूल समानता को बहाल करना होगा और मानवता को उसके भ्रष्ट स्वभाव से मुक्ति दिलानी होगी। शैतान से मनुष्यों को वापस प्राप्त करने के लिए, उसे उन्हें पाप से बचाना होगा। केवल इसी तरह परमेश्वर धीरे-धीरे उनकी मूल समानता और भूमिका को बहाल कर सकता है और अंत में, अपने राज्य को बहाल कर सकता है। विद्रोह करने वाले उन पुत्रों का अंतिम तौर पर विनाश भी क्रियान्वित किया जाएगा, ताकि मनुष्य बेहतर ढंग से परमेश्वर की आराधना कर सकें और पृथ्वी पर बेहतर ढंग से रह सकें। चूँकि परमेश्वर ने मानवों का सृजन किया, इसलिए वह मनुष्य से अपनी आराधना करवाएगा; क्योंकि वह मानवता के मूल कार्य को बहाल करना चाहता है, वह उसे पूर्ण रूप से और बिना किसी मिलावट के बहाल करेगा। अपना अधिकार बहाल करने का अर्थ है, मनुष्यों से अपनी आराधना कराना और समर्पण कराना; इसका अर्थ है कि वह अपनी वजह से मनुष्यों को जीवित रखेगा और अपने अधिकार की वजह से अपने शत्रुओं का विनाश करेगा। इसका अर्थ है कि परमेश्वर किसी प्रतिरोध के बिना, मनुष्यों के बीच उस सब को बनाए रखेगा जो उसके बारे में है। जो राज्य परमेश्वर स्थापित करना चाहता है, वह उसका स्वयं का राज्य है। वह जिस मानवता की आकांक्षा रखता है, वह है, जो उसकी आराधना करेगी, जो उसे पूरी तरह समर्पण करेगी और उसकी महिमा का प्रदर्शन करेगी। यदि परमेश्वर भ्रष्ट मानवता को नहीं बचाता, तो उसके द्वारा मानवता के सृजन का अर्थ खत्म हो जाएगा; उसका मनुष्यों के बीच अब और अधिकार नहीं रहेगा और पृथ्वी पर उसके राज्य का अस्तित्व अब और नहीं रह पाएगा। यदि परमेश्वर उन शत्रुओं का नाश नहीं करता, जो उसके प्रति विद्रोही हैं, तो वह अपनी संपूर्ण महिमा प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा, वह पृथ्वी पर अपने राज्य की स्थापना भी नहीं कर पाएगा। ये उसका कार्य पूरा होने और उसकी महान उपलब्धि के प्रतीक होंगे : मानवता में से उन सबको पूरी तरह नष्ट करना, जो उसके प्रति विद्रोही हैं और जो पूर्ण किए जा चुके हैं, उन्हें विश्राम में लाना। जब मनुष्यों को उनकी मूल समानता में बहाल कर लिया जाएगा, और जब वे अपने-अपने कर्तव्य निभा सकेंगे, अपने उचित स्थानों पर बने रह सकेंगे और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं को समर्पण कर सकेंगे, तब परमेश्वर ने पृथ्वी पर उन लोगों का एक समूह प्राप्त कर लिया होगा, जो उसकी आराधना करते हैं और उसने पृथ्वी पर एक राज्य भी स्थापित कर लिया होगा, जो उसकी आराधना करता है। पृथ्वी पर उसकी अनंत विजय होगी और वे सभी जो उसके विरोध में हैं, अनंतकाल के लिए नष्ट हो जाएँगे। इससे मनुष्य का सृजन करने की उसकी मूल इच्छा बहाल होगी; इससे सब चीजों के सृजन की उसकी मूल इच्छा बहाल होगी और इससे पृथ्वी पर सभी चीज़ों पर और शत्रुओं के बीच उसका अधिकार भी बहाल हो जाएगा। ये उसकी संपूर्ण विजय के प्रतीक होंगे। इसके बाद से मानवता विश्राम में प्रवेश करेगी और ऐसे जीवन में प्रवेश करेगी, जो सही मार्ग पर है। मानवता के साथ परमेश्वर भी अनंत विश्राम में प्रवेश करेगा और मनुष्यों और स्वयं के साथ एक अनंत जीवन का आरंभ करेगा। पृथ्वी से गंदगी और विद्रोहीपन मिट जाएगा, पृथ्वी पर से सारा विलाप भी समाप्त हो जाएगा और परमेश्वर का विरोध करने वाली प्रत्येक चीज़ का अस्तित्व नहीं रहेगा। केवल परमेश्वर और वही लोग बचेंगे, जिनका उसने उद्धार किया है; केवल उसकी सृष्टि ही बचेगी।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

आज के दिन तक अपने छह हजार वर्षों का कार्य करते हुए, परमेश्वर ने अपने बहुत से क्रिया-कलाप को पहले ही प्रकट कर दिया है, जिनका प्राथमिक प्रयोजन शैतान को पराजित करना और समस्त मानवजाति के लिए उद्धार लाना रहा है। वह स्वर्ग की हर चीज, पृथ्वी के ऊपर की हर चीज और समुद्र के अंदर की हर चीज और साथ ही पृथ्वी पर परमेश्वर के सृजन के हर अंतिम पदार्थ को परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता को देखने और परमेश्वर के समूचे क्रिया-कलाप को देखने की अनुमति देने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। वह शैतान को पराजित करने से प्राप्त हुए इस अवसर का उपयोग, मानवजाति पर अपने समूचे क्रिया-कलाप को प्रकट करने, लोगों को अपनी स्तुति के लिए सक्षम बनाने और शैतान को पराजित करने वाली अपनी बुद्धि का गुणगान करने में समर्थ बनाने के लिए करता है। पृथ्वी पर, स्वर्ग में, और समुद्र के भीतर की प्रत्येक वस्तु परमेश्वर की जय-जयकार करती है, उसकी सर्वशक्तिमत्ता का स्तुतिगान करती है, उसके सभी कर्मों का स्तुतिगान करती है, और उसके पवित्र नाम को ऊँचे स्वर में पुकारती है। यह उसके द्वारा शैतान की पराजय का प्रमाण है; यह शैतान पर उसकी विजय का प्रमाण है। और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, यह उसके द्वारा मानवजाति के उद्धार का प्रमाण है। परमेश्वर की समस्त सृष्टि उसकी जय-जयकार करती है, अपने शत्रु को पराजित करने और विजयी होकर लौटने के लिए उसका स्तुतिगान करती है और एक महान विजयी राजा के रूप में उसका स्तुतिगान करती है। उसका उद्देश्य केवल शैतान को पराजित करना नहीं है, इसीलिए उसका कार्य छ्ह हजार वर्ष तक जारी रहा। वह मानवजाति को बचाने के लिए शैतान की पराजय का उपयोग करता है; वह अपने सभी क्रिया-कलापों को प्रकट करने के लिए और अपनी सारी महिमा को प्रकट करने के लिए शैतान की पराजय का उपयोग करता है। वह महिमा प्राप्त करेगा, और स्वर्गदूतों का समस्त जमघट उसकी संपूर्ण महिमा को देखेगा। स्वर्ग में दूत, पृथ्वी पर मनुष्य, और पृथ्वी पर उसकी समस्त सृष्टि सृजनकर्ता की महिमा को देखेंगे। यही वह कार्य है जो वह करता है। स्वर्ग में और पृथ्वी पर उसकी सृष्टि, सभी उसकी महिमा को देखेंगे और वह शैतान को सर्वथा पराजित करने के बाद विजयोल्लास के साथ वापस लौटेगा, और मानवजाति को अपनी प्रशंसा करने देगा, इस प्रकार वह अपने कार्य में दोहरी विजय प्राप्त करेगा। अंत में समस्त मानवजाति उसके द्वारा जीत ली जाएगी, और वह ऐसे हर व्यक्ति को मिटा देगा जो उसका विरोध या विद्रोह करेगा, अर्थात्, वह उन सभी को मिटा देगा जो शैतान से संबंधित हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई

परमेश्वर का प्रबंधन ऐसा है : मनुष्य को शैतान के हवाले करना—मनुष्य, जो नहीं जानता कि परमेश्वर क्या है, सृष्टिकर्ता क्या है, परमेश्वर की आराधना कैसे करें, या परमेश्वर के प्रति समर्पित होना क्यों आवश्यक है—और शैतान को उसे भ्रष्ट करने देना। कदम-दर-कदम, परमेश्वर तब मनुष्य को शैतान के हाथों से बचाता है, जब तक कि मनुष्य पूरी तरह से परमेश्वर की आराधना नहीं करने लगता और शैतान को अस्वीकार नहीं कर देता। यही परमेश्वर का प्रबंधन है। यह किसी मिथक-कथा जैसा और अजीब लग सकता है। लोगों को यह किसी मिथक-कथा जैसा इसलिए लगता है, क्योंकि उन्हें इसका भान नहीं है कि पिछले हज़ारों सालों में मनुष्य के साथ कितना कुछ घटित हुआ है, और यह तो वे बिल्कुल भी नहीं जानते कि इस ब्रह्मांड और नभमंडल में कितनी कहानियाँ घट चुकी हैं। इसके अलावा, यही कारण है कि वे उस अधिक आश्चर्यजनक, अधिक भय-उत्प्रेरक संसार को नहीं समझ सकते, जो इस भौतिक संसार से परे मौजूद है, परंतु जिसे देखने से उनकी नश्वर आँखें उन्हें रोकती हैं। वह मनुष्य को अबोधगम्य लगता है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार या परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य की महत्ता की समझ नहीं है, और वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर अंततः मनुष्य को कैसा देखना चाहता है। क्या वह उसे शैतान द्वारा बिल्कुल भी भ्रष्ट न किए गए आदम और हव्वा के समान देखना चाहता है? नहीं! परमेश्वर के प्रबंधन का उद्देश्य लोगों के एक ऐसे समूह को प्राप्त करना है, जो उसकी आराधना करे और उसके प्रति समर्पित हो। हालाँकि ये लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं, परंतु वे अब शैतान को अपने पिता के रूप में नहीं देखते; वे शैतान के घिनौने चेहरे को पहचानते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं, और वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने के लिए उसके सामने आते हैं। वे जान जाते हैं कि कुरूप और पवित्र चीज में क्या अंतर है, और वे परमेश्वर की महानता और शैतान की दुष्टता को भी पहचान जाते हैं। इस प्रकार के मनुष्य अब शैतान के लिए कार्य नहीं करेंगे, या शैतान की आराधना नहीं करेंगे, या शैतान को प्रतिष्ठापित नहीं करेंगे। इसका कारण यह है कि यह एक ऐसे लोगों का समूह है, जो सचमुच परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिए गए हैं। यही परमेश्वर द्वारा मानवजाति का प्रबंधन करने के कार्य की महत्ता है। इस समय परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य के दौरान मानवजाति शैतान की भ्रष्टता और परमेश्वर के उद्धार दोनों की वस्तु है, और मनुष्य वह उत्पाद है, जिसके लिए परमेश्वर और शैतान दोनों लड़ रहे हैं। चूँकि परमेश्वर अपना कार्य कर रहा है, इसलिए वह धीरे-धीरे मनुष्य को शैतान के हाथों से बचा रहा है, और इसलिए मनुष्य पहले से ज्यादा परमेश्वर के निकट आता जा रहा है ...

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परमेश्वर का प्रेम और उसकी दया उसके प्रबंधन-कार्य के हर ब्योरे में व्याप्त रहती है और चाहे लोग परमेश्वर के अच्छे इरादे समझ पाएँ या नहीं, वह अभी भी अथक रूप से अपने उस कार्य में लगा हुआ है, जिसे वह पूरा करना चाहता है। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर के प्रबंधन को लोग कितना समझते हैं, परमेश्वर के कार्य से मनुष्य को हुए लाभ और सहायता को हर व्यक्ति भली-भाँति समझ सकता है। शायद आज तुमने परमेश्वर द्वारा प्रदत्त प्रेम या जीवन को थोड़ा भी महसूस नहीं किया है, परंतु यदि तुम परमेश्वर को और सत्य का अनुसरण करने के अपने संकल्प को नहीं छोड़ते, तो एक दिन ऐसा आएगा, जब परमेश्वर की मुस्कान तुम पर प्रकट होगी। क्योंकि परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य का उद्देश्य शैतान की सत्ता के अधीन मौजूद लोगों को बचाना है, न कि उन लोगों को त्याग देना, जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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