5. बचाए जाने एवं सिद्ध बनाए जाने के लिए तुम्हें परमेश्वर पर किस प्रकार विश्वास करना चाहिए?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

सटीक रूप से, अपने विश्वास में पतरस के मार्ग को अपनाने का अर्थ है, सत्य को खोजने के मार्ग पर चलना, जो वास्तव में स्वयं को जानने और अपने स्वभाव को बदलने का मार्ग भी है। केवल पतरस के मार्ग पर चलने के द्वारा ही कोई परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर होगा। किसी को भी इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि वास्तव में कैसे पतरस के मार्ग पर चलना है साथ ही कैसे इसे अभ्यास में लाना है। पहले तो, किसी को भी अपने स्वयं के इरादों, अनुचित प्रयासों, और यहाँ तक कि अपने परिवार और अपनी स्वयं की देह की सभी चीजों को एक ओर रखना होगा। एक व्यक्ति को पूर्ण हृदय से समर्पित अवश्य होना चाहिए, अर्थात्, स्वयं को पूरी तरह से परमेश्वर के वचन के प्रति समर्पित करना चाहिए, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, परमेश्वर के वचनों में सत्य और उसकी आकांक्षाओं की खोज पर अवश्य ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और हर चीज में परमेश्वर के इरादों को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह अभ्यास की सबसे बुनियादी और प्राणाधार पद्धति है। यह वही था जो पतरस ने यीशु को देखने के बाद किया था, और केवल इस तरह से अभ्यास करने से ही कोई सबसे अच्छा परिणाम प्राप्त कर सकता है। परमेश्वर के वचन के प्रति हार्दिक समर्पण में मुख्यतः परमेश्वर के वचनों में सत्य और उसके आकांक्षाओं की खोज करना, परमेश्वर के इरादों को समझने पर ध्यान केंद्रित करना, और परमेश्वर के वचनों से सत्य को समझना व और अधिक प्राप्त करना शामिल है। परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय, पतरस ने सिद्धांतों को समझने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया था और धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर तो उसका ध्यान और भी केंद्रित नहीं था। इसके बजाय, उसने सत्य को समझने और परमेश्वर के इरादों को समझने पर, साथ ही परमेश्वर के स्वभाव और सुंदरता की समझ को प्राप्त करने पर ध्यान लगाया था। पतरस ने परमेश्वर के वचनों से मनुष्य की विभिन्न भ्रष्ट अवस्थाओं के साथ ही मनुष्य के प्रकृति सार तथा मनुष्य की वास्तविक कमियों को समझने का भी प्रयास किया, और इस प्रकार परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए आसानी से, उसकी अपेक्षाएँ पूरी कीं। पतरस के पास ऐसे बहुत-से सही अभ्यास थे जो परमेश्वर के वचनों के अनुरूप थे। यह परमेश्वर के इरादों के सर्वाधिक अनुकूल था, और यह वो सर्वोत्तम तरीका था जिससे कोई व्यक्ति परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए सहयोग कर सकता है। परमेश्वर के भेजे हुए सैकड़ों परीक्षणों का अनुभव करते समय पतरस परमेश्वर के न्याय और उजागर करने के हर वचन और मनुष्य से उसकी माँगों के हर वचन से सख्ती से अपना मिलान करता था, स्वयं को जाँचता था और परमेश्वर के वचनों का अर्थ ठीक-ठीक जानने का प्रयास करता था। यीशु उससे जो कुछ कहता था, उस पर वह गंभीरता से मनन करता था, हर वचन को मन में दृढ़ता से धारण करता था—और इस तरीके से बहुत अच्छे परिणाम मिलते थे। इस तरीके से अभ्यास कर उसने परमेश्वर के वचनों के जरिए स्वयं को जान लिया और वह न केवल मनुष्य की विभिन्न भ्रष्ट दशाओं और कमियों को जान गया, बल्कि वह मनुष्य के सार और प्रकृति को भी जान गया। यह दर्शाता है कि पतरस सच में स्वयं को जानता था। परमेश्वर के वचनों से पतरस ने एक ओर अपने बारे में सच्चा ज्ञान हासिल किया और दूसरी ओर उसने देखा परमेश्वर द्वारा व्यक्त धार्मिक स्वभाव, जो परमेश्वर के पास है और जो वह स्वयं है, परमेश्वर के अपने कार्य के लिए इरादे और मानवजाति से परमेश्वर की माँगें। इन वचनों से उसने परमेश्वर को सच में जाना, उसका स्वभाव और उसका सार उसे पता चला; परमेश्वर के पास जो है, जो वह स्वयं है, वे बातें उसने जानीं और समझीं, साथ ही परमेश्वर की मनोहरता और मनुष्य से परमेश्वर की माँगें भी जानीं। भले ही परमेश्वर ने उस समय उतना नहीं बोला, जितना आज वह बोलता है, किन्तु पतरस में इन पहलुओं में परिणाम उत्पन्न हुआ था। यह एक दुर्लभ और बहुमूल्य चीज थी। पतरस सैकड़ों परीक्षणों से गुजरा; उसका कष्ट सहना व्यर्थ नहीं गया। न केवल उसने परमेश्वर के वचनों और कार्यों से स्‍वयं को जाना बल्कि उसने परमेश्वर को भी जान लिया। इसके साथ ही, परमेश्वर के वचनों में पतरस ने विशेष रूप से मनुष्य से परमेश्वर की माँगों पर और उन पहलुओं पर ध्यान दिया जिनमें मनुष्य को परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए ताकि वह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप हो सके, और वह इन बातों में अत्यधिक प्रयास लगाने में समर्थ रहा और उनमें उसे पूरी स्पष्टता प्राप्त हुई। उसके जीवन प्रवेश के लिए यह अत्‍यंत लाभकारी था। परमेश्वर के वचनों का चाहे कोई भी पहलू हो जब तक वे वचन जीवन के रूप में कार्य करने योग्य थे और सत्य थे, तो पतरस ने उन्हें अपने हृदय में उकेर लिया, जहाँ वह अक्सर उन पर विचार करता और उन्हें समझता था। यीशु के वचनों को सुनकर, वह उन्‍हें अपने हृदय में उतार सका, जिससे पता चलता है कि उसका ध्‍यान विशेष रूप से परमेश्वर के वचनों पर ही था, और अंत में उसने वास्‍तव में परिणाम प्राप्‍त कर लिए। अर्थात्, वह परमेश्वर के वचनों को कुशलतापूर्वक अभ्यास में ला सका, वह सत्य का अभ्यास और परमेश्वर के इरादों के अनुसार कार्य सही ढंग से कर सका, वह पूरी तरह परमेश्वर की इच्छाओं के अनुसार कार्य कर सका और अपने निजी मतों और कल्पनाओं का त्याग कर सका। इस तरीके से पतरस ने परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश किया। पतरस की सेवा परमेश्वर के इरादों के अनुसार मुख्‍य रूप से इसीलिए हो पाई क्‍योंकि उसने ऐसा किया था।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें

परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की कोशिश करने के लिए, व्यक्ति को पहले यह समझना होगा कि परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का अर्थ क्या होता है, साथ ही, परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए किन शर्तों को पूरा करना होता है। एक बार जब इंसान ऐसे मामलों को समझ लेता है, तब उसे अभ्यास के पथ को खोजना चाहिए। परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए व्यक्ति को एक विशेष काबिलियत वाला होना चाहिए। बहुत से लोग स्वाभाविक रूप से उच्च काबिलियत वाले नहीं होते, ऐसी स्थिति में तुम्हें कीमत चुकानी चाहिए और अपने स्तर पर मेहनत करनी चाहिए। तुम्हारी काबिलियत जितनी कम होगी, तुम्हें उतना ही अधिक प्रयास करना पड़ेगा। परमेश्वर के वचनों की तुम्हारी समझ जितनी अधिक होगी और जितना अधिक तुम उन्हें अभ्यास में लाओगे, उतनी ही जल्दी तुम पूर्ण बनाए जाने के पथ में प्रवेश कर सकते हो। प्रार्थना करने से, तुम प्रार्थना के क्षेत्र में पूर्ण बनाए जा सकते हो; परमेश्वर के वचनों को खाने एवं पीने से, उनके सार को समझने और उनकी वास्तविकता को जीने से भी तुम्हें पूर्ण बनाया जा सकता है। दैनिक आधार पर परमेश्वर के वचनों का अनुभव करके, तुम्हें यह जान लेना चाहिए कि तुममें किस बात की कमी है, इसके अतिरिक्त, तुम्हें अपने घातक दोष एवं कमज़ोरियों को पहचान लेना चाहिए और परमेश्वर से प्रार्थना और विनती करनी चाहिए। ऐसा करके, तुम्हें धीरे-धीरे पूर्ण बनाया जाएगा। पूर्ण बनाए जाने का रास्ता है : प्रार्थना करना, परमेश्वर के वचनों को खाना एवं पीना, परमेश्वर के वचनों के सार को समझना; परमेश्वर के वचनों के अनुभव में प्रवेश करना; तुममें जिस बात की कमी है उसे जानना; परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होना; परमेश्वर के बोझ को ध्यान में रखना एवं अपने परमेश्वर-प्रेमी हृदय द्वारा देह की इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करना; और अपने भाई-बहनों के साथ निरन्तर सहभागिता में शामिल होना, जो तुम्हारे अनुभवों को समृद्ध करता है। चाहे तुम्हारा सामुदायिक जीवन हो या व्यक्तिगत जीवन, और चाहे बड़ी सभाएँ हों या छोटी हों, तुम सभी से अनुभव एवं प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हो, ताकि तुम्हारा हृदय परमेश्वर के सामने शांत रहे और परमेश्वर के पास वापस आ जाए। यह सब कुछ पूर्ण बनाए जाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। जैसा कि पहले कहा गया है, परमेश्वर के बोले गए वचनों का अनुभव करने का अर्थ वास्तव में उनका स्वाद ले पाना है और तुम्हें उनके अनुसार जीने देना है ताकि तुम परमेश्वर के प्रति कहीं अधिक बड़ा विश्वास एवं प्रेम पा सकोगे। इस तरीके से, तुम धीरे-धीरे अपना भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव त्याग दोगे; तुम स्वयं को अनुचित इरादों से मुक्त कर लोगे; और एक सामान्य मनुष्य के समान जीवन जियोगे। तुम्हारे भीतर परमेश्वर का प्रेम जितना ज़्यादा होता है—अर्थात, परमेश्वर के द्वारा तुम्हें जितना अधिक पूर्ण बनाया गया है—तुम शैतान के द्वारा उतने ही कम भ्रष्ट किए जाओगे। अपने व्यवहारिक अनुभवों के द्वारा, तुम धीरे धीरे पूर्ण बनाए जाने के पथ में प्रवेश करोगे। इसलिए, यदि तुम पूर्ण बनाए जाना चाहते हो, तो परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना और उसके वचनों का अनुभव करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहो

यदि तुम परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास करते हो, तो तुम्हें यह विश्वास करना होगा कि हर दिन जो भी अच्छा होता है या बुरा, वो यूँ ही नहीं होता। ऐसा नहीं है कि कोई जानबूझकर तुम पर सख्त हो रहा है या तुम पर निशाना साध रहा है; यह सब परमेश्वर की व्यवस्था और योजना बनाना है। परमेश्वर इन चीजों की योजना क्यों बनाता है? तुम कौन हो यह उजागर करने या तुम्हें प्रकट करके हटा देने के लिए नहीं है; तुम्हें प्रकट करना अंतिम लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य तुम्हें पूर्ण बनाना और बचाना है। परमेश्वर तुम्हें पूर्ण कैसे बनाता है? वह तुम्हें कैसे बचाता है? वह तुम्हें तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव से अवगत कराने और तुम्हें तुम्हारे प्रकृति-सार, तुम्हारे दोषों और कमियों से अवगत कराने से शुरुआत करता है। उन्हें समझकर और जानकर ही तुम सत्य का अनुसरण कर सकते हो और धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभाव को छोड़ सकते हो। यह परमेश्वर का तुम्हें एक अवसर प्रदान करना है। यह परमेश्वर की दया है। तुम्हें इस अवसर का लाभ उठाना आना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के प्रति प्रतिरोधी नहीं होना चाहिए, उसके साथ टकराना या उसे गलत नहीं समझना चाहिए। विशेष रूप से उन लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते समय, जिनकी परमेश्वर तुम्हारे आसपास व्यवस्था करता है, सदा यह मत सोचो कि चीजें तुम्हारे मन के हिसाब से नहीं हैं; हमेशा उनसे बच निकलने की मत सोचो या परमेश्वर के बारे में शिकायत मत करो या उसे गलत मत समझो। अगर तुम लगातार ऐसा कर रहे हो तो तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर रहे हो, और इससे तुम्हारे लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। चाहे ऐसी जिस भी चीज से सामना हो जिसे तुम पूरी तरह समझ न पाओ या जिसके कारण तुम्हें कठिनाइयों का अनुभव करना पड़े, तुम्हें समर्पण करना सीखना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के सामने आकर और अधिक प्रार्थना करके शुरुआत करनी चाहिए। इस तरह, इससे पहले कि तुम जान पाओ, तुम्हारी आंतरिक स्थिति में एक बदलाव आएगा और तुम अपनी समस्या को हल करने के लिए सत्य की तलाश कर पाओगे। इस तरह तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर पाओगे। जब ऐसा होगा तो, तुम्हारे भीतर सत्य वास्तविकता गढ़ी जाएगी, और इस तरह से तुम प्रगति करोगे और तुम्हारे जीवन की स्थिति का रूपांतरण होगा। एक बार जब ये बदलाव आएगा और तुममें यह सत्य वास्तविकता होगी, तो तुम्हारा आध्यात्मिक कद होगा, और आध्यात्मिक कद के साथ जीवन आता है। यदि कोई हमेशा भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के आधार पर जीता है, तो फिर चाहे उसमें कितना ही उत्साह या ऊर्जा क्यों न हो, उसे आध्यात्मिक कद, या जीवन धारण करने वाला नहीं माना जा सकता है। परमेश्वर हर एक व्यक्ति में कार्य करता है, और इससे फर्क नहीं पड़ता है कि उसकी विधि क्या है, सेवा करने के लिए वो किस प्रकार के लोगों, घटनाओं या चीज़ों का प्रयोग करता है, या उसकी बातों का लहजा कैसा है, परमेश्वर का केवल एक ही अंतिम लक्ष्य होता है : तुम्हें बचाना। और वह तुम्हें कैसे बचाता है? वह तुम्हें बदलता है। तो तुम थोड़ी-सी पीड़ा कैसे नहीं सह सकते? तुम्हें पीड़ा तो सहनी होगी। इस पीड़ा में कई चीजें शामिल हो सकती हैं। सबसे पहले तो, जब लोग परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकारते हैं, तो उन्हें कष्ट उठाना चाहिए। जब परमेश्वर के वचन बहुत कठोर और स्पष्ट होते हैं और लोग परमेश्वर को गलत समझ लेते हैं—और धारणाएँ भी रखते हैं—तो यह भी पीड़ाजनक हो सकता है। कभी-कभी परमेश्वर लोगों की भ्रष्टता प्रकट करने के लिए, और उनसे चिंतन करवाने के लिए कि वे खुद को समझें, उनके आसपास एक परिवेश बना देता है, और तब उन्हें कुछ पीड़ा भी होती है। कई बार जब लोगों की सीधे काट-छाँट कर उन्हें उजागर किया जाता है, तब उन्हें पीड़ा सहनी ही चाहिए। यह ऐसा है, जैसे उनका कोई ऑपरेशन हो रहा हो—अगर कोई कष्ट नहीं होगा, तो कोई प्रभाव भी नहीं होगा। यदि हर बार जब तुम्हारी काट-छाँट की जाती है और हर बार जब तुम किसी परिवेश द्वारा प्रकट किए जाते हो, यह तुम्हारे हृदय को झकझोरता है और तुम्हें बढ़ावा देता है, तो ऐसे अनुभवों के माध्यम से तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करोगे और तुम्हारा आध्यात्मिक कद होगा।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से सीखना चाहिए

परमेश्वर में अपने विश्वास में, पतरस ने प्रत्येक चीज में परमेश्वर को संतुष्ट करने की चेष्टा की थी, और उस सबके प्रति समर्पण करने की चेष्टा की थी जो परमेश्वर से आया था। वह ताड़ना और न्याय, साथ ही शोधन, क्लेश, और अपने जीवन की वंचनाओं को स्वीकार कर पाया, और इस पूरे समय उसने एक भी शिकायत नहीं की। इनमें से कुछ भी उसके परमेश्वर-प्रेमी हृदय को बदल नहीं सका था। क्या यह परमेश्वर के प्रति सर्वोत्तम प्रेम नहीं था? क्या यह सृजित प्राणी के कर्तव्य की पूर्ति नहीं थी? चाहे यह ताड़ना में हो, न्याय में हो, या क्लेश में हो, तुम मृत्युपर्यंत समर्पण प्राप्त करने में सक्षम होते हो, और यह वह है जो सृजित प्राणी को प्राप्त करना चाहिए, यह परमेश्वर के प्रति प्रेम की शुद्धता है। यदि मनुष्य इतना अधिक प्राप्त कर सकता है, तो वह मानक स्तर का सृजित प्राणी है, और सृष्टिकर्ता के इरादों को पूरा करने के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है

अगर लोग जीवित प्राणी बनने और परमेश्वर की गवाही देने की इच्छा रखते हैं, परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करना चाहिए; उन्हें सहर्ष उसके न्याय व ताड़ना के प्रति समर्पण करना चाहिए और परमेश्वर द्वारा काट-छाँट को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। तभी वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित तमाम सत्यों को अभ्यास में ला सकेंगे, तभी वे परमेश्वर के उद्धार को हासिल कर सकेंगे और सचमुच जीवित प्राणी बन सकेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो जीवित हो उठा है?

वे लोग जिनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी समर्पण नहीं है, जो केवल उसका नाम स्वीकारते हैं, जिन्हें परमेश्वर की दयालुता और मनोरमता की थोड़ी-सी भी समझ है, फिर भी वे पवित्र आत्मा के कदमों के साथ तालमेल बनाकर नहीं चलते, और पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य एवं वचनों के प्रति समर्पण नहीं करते—ऐसे लोग परमेश्वर के अनुग्रह में रहते हैं, लेकिन उसके द्वारा प्राप्त नहीं किए या पूर्ण नहीं बनाए जाएँगे। परमेश्वर लोगों को उनके समर्पण, परमेश्वर के वचनों को उनके खाने-पीने, उनका आनन्द उठाने और उनके जीवन में कष्ट एवं शुद्धिकरण के माध्यम से पूर्ण बनाता है। ऐसे विश्वास से ही लोगों का स्वभाव परिवर्तित हो सकता है और तभी उन्हें परमेश्वर का सच्चा ज्ञान हो सकता है। परमेश्वर के अनुग्रह के बीच रहकर सन्तुष्ट न होना, सत्य के लिए सक्रियता से लालायित होना और उसे खोजना और परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने का प्रयास करना—यही जागृत रहकर परमेश्वर के प्रति समर्पण करने का अर्थ है; और परमेश्वर ऐसा ही विश्वास चाहता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण करना चाहिए

पिछला: 4. परमेश्वर के परीक्षणों और शुद्धिकरण के कार्य का महत्व

अगला: 1. देहधारण क्या है? देहधारण का सार क्या है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 9) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें