बाइबल कहती है, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। हम इसकी व्याख्या कैसे करें?

11 मार्च, 2021

उत्तर: हमें प्रभु की वापसी की आशा, उनकी भविष्यवाणियों के आधार पर करनी चाहिए। यही सही तरीका है। आप दरअसल, किनका हवाला दे रहीं हैं? प्रभु के वचनों का या इंसानों के वचनों का? "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें;" ये बात किसने कही? क्या ये प्रभु यीशु के वचन हैं? प्रभु यीशु ने, ऐसी बात कभी नहीं कही। न ही पवित्र आत्मा ने कभी ऐसा कहा। आप जिन वचनों का हवाला दे रहीं हैं, वे पौलुस के वचन हैं। क्या पौलुस के वचन प्रभु यीशु के वचनों को दर्शाते हैं? क्या वे परमेश्वर का, प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? इस रहस्य का जवाब सिर्फ परमेश्वर जानते हैं। अगर हम भ्रष्ट इंसान आँख मूँदकर इस तरह व्याख्या और परखने का साहस करेंगे तो फिर यह समस्या गंभीर है। पौलुस मसीह नहीं था। वह सिर्फ एक सामान्य भ्रष्ट व्यक्ति था। उसका लेखन इंसानी विचारों और कल्पनाओं से भरा हुआ है। चूँकि उसके वचन सत्य नहीं हैं, इसलिए हम सबूत के तौर पर, उनका उपयोग नहीं कर सकते। सारे सबूत बाइबल में परमेश्वर के वचनों पर आधारित होने चाहिए। वो सत्य के अनुरूप है। बाइबल में लोगों के अनुसार आरोहण और, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की जांच करना गलत है, खास तौर से प्रभु यीशु के वचनों के आधार पर न करके पौलुस के वचनों के, आधार पर करना केवल प्रभु यीशु के वचन ही सत्य हैं; सिर्फ उनके वचनों में अधिकार है। केवल प्रभु यीशु मसीह हैं, स्वर्गीय राज्य के सम्राट। आप प्रभु यीशु के वचनों में सत्य और परमेश्वर की इच्छा की खोज क्यों नहीं करतीं? उसके बजाय आप अपनी खोज का आधार इंसान के वचनों को क्यों बनातीं हैं? क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है? इससे आपका झुकाव इंसान का अनुसरण करने और अपने खुद के, रास्ते पर चलने की ओर होने लगता है। परमेश्वर ने इंसान को धरती पर मिट्टी से बनाया है। उन्होंने इंसान को धरती पर बाकी सभी, सृजित जीवों के प्रबंधन का दायित्व सौंपा है। वे चाहते थे की इंसान धरती पर उनकी आज्ञा माने, उनकी आराधना और सम्मान करे, और यह अधिदेश दिया कि उनका गंतव्य, धरती पर है, न कि स्वर्ग में। परमेश्वर ने हमें बहुत पहले ही बता दिया था, कि वे अपना राज्य धरती पर स्थापित करेंगे। वे हम इंसानों के साथ धरती पर रहेंगे और, धरती के राज्य मसीह द्वारा शासित राज्यों में बदल दिए जाएंगे।। आखिरकार, परमेश्वर का राज्य धरती पर स्थापित होगा, न कि स्वर्ग में। ऐसे बहुत से लोग हैं जो चाहते हैं कि उन्हें स्वर्ग में उन्नत किया जाए। ऐसे लोगों की अपनी मान्यताएँ और कल्पनाएँ हैं, ख़्याली इच्छाएँ हैं। ये बातें परमेश्वर के, कार्य की सच्चाई से बिल्कुल मेल नहीं खाती।

"स्वप्न से जागृति" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

अगला: प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुए और हमारे लिये एक स्थान तैयार करने स्वर्ग लौटे, इसका अर्थ ये हुआ कि वो स्थान स्वर्ग में है। अगर प्रभु लौट आए हैं, तो उनका आना, हमें स्वर्ग में आरोहित करने के लिये होना चाहिये, पहले हमें प्रभु से मिलवाने, आसमान में ऊपर उठाने के लिये होना चाहिये। अब तुम लोग इस बात की गवाही दे रहे हो कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, वे देहधारी हुए हैं, और धरती पर वचन बोलने और कार्य करने में लगे हैं। तो वो हमें स्वर्ग के राज्य में कैसे लेकर जाएंगे? स्वर्ग का राज्य धरती पर है या स्वर्ग में?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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आप सब गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, और उन्होंने प्रकट होकर चीन में कार्य किया है, मुझे विश्वास है कि यह सच है, क्योंकि प्रभु यीशु ने बाइबल में यह भविष्यवाणी की थी: "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। लेकिन हमें लगता है कि प्रभु हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए अंत के दिनों में वापस आयेंगे, या कम-से-कम वे हमें बादलों पर ही उठा लें ताकि हम हवा में उनसे मिल तो सकें। जैसा कि बाइबल में पौलुस ने कहा था, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उनके साथ बादलों पर उठा लिए जायेंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें: और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। लेकिन जैसा बाइबल में बताया गया है, प्रभु वैसे क्यों नहीं आये? अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य का हमारे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश से क्या लेना-देना है?

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