हम केवल परमेश्वर की वाणी सुनकर ही प्रभु का स्वागत क्यों कर सकते हैं?
इस समय, सभी विश्वासी प्रभु यीशु के बादल पर आने की कामना कर रहे हैं, क्योंकि आपदाएँ और गंभीर होती जा रही हैं और हर तरह की महामारियाँ बढ़ रही हैं, अकाल और युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। विश्वासियों को लगता है कि प्रभु कभी भी लौट सकता है, पर वे नहीं जानते कि वह किस पल अचानक बादल पर उतरेगा, तो वे दिन-रात टकटकी लगाए प्रार्थना करते और उसके आने की बाट जोहते हैं। हालाँकि, आपदाएँ आनी शुरू हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने प्रभु को बादल पर प्रकट होते नहीं देखा। बहुत से लोग भ्रमित होकर सोच रहे हैं, “प्रभु अभी तक क्यों नहीं आया? क्या उसकी बातों में निष्ठा नहीं है?” ऐसा नहीं है। प्रभु विश्वासयोग्य है, उसके वचन कभी निष्फल नहीं होते। जब किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी, तब प्रभु पहले ही मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण कर गुप्त रूप से प्रकट हो चुका था, और अनेक लोगों ने उसका स्वागत किया। बरसों से पवित्र आत्मा के कार्य के पदचिह्नों की खोज करने के बाद, उन्होंने पाया कि मनुष्य का पुत्र बहुत-से सत्य बोल और व्यक्त कर रहा है। इन वचनों को पढ़कर उन्हें लगा कि यह तो पवित्र आत्मा की वाणी है, परमेश्वर की वाणी है, और अंततः उन्हें पता चल गया कि यह मनुष्य का पुत्र जो सत्य व्यक्त कर रहा था, लौटकर आया प्रभु यीशु है, वह देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर है! वे सब खुशी से झूम उठे : “प्रभु यीशु लौट आया है, अंतत: हमने प्रभु का स्वागत किया है!” परमेश्वर के चुने हुए लोग प्रचार करने दौड़ पड़े, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही दी कि वह प्रकट होकर सत्य व्यक्त करते हुए कार्य कर रहा है। सत्य से प्रेम करने और परमेश्वर के प्रकटन के लिए तरसने वाले तमाम संप्रदायों के लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर पहचान लिया कि यह परमेश्वर की वाणी है, और वे एक-एक करके परमेश्वर के सिंहासन के सामने आए और मेमने के विवाह-भोज में शामिल हुए। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणियाँ पूरी हुई : “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)। “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से प्रभु यीशु की ये भविष्यवाणियाँ भी पूरी हुईं : “मैं शीघ्र ही आनेवाला हूँ,” “मनुष्य के पुत्र का भी आना,” “मनुष्य का पुत्र आ जाएगा,” और “मनुष्य का पुत्र अपने दिन में प्रगट होगा।” इससे सिद्ध हुआ कि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, उसके सब वचन और भविष्यवाणियाँ पूरी होनी थीं। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, “आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी” (मत्ती 24:35)। और जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी टल सकते हैं, लेकिन मैं जो कहता हूँ, उसका एक अक्षर या एक रेखा भी कभी नहीं टलेगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 53)। हमारा उद्धारकर्ता यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर बनकर वापस आ गया है। उसने कई सत्य व्यक्त किए हैं और अंत के दिनों में न्याय-कार्य कर रहा है, वह बहुत पहले ही विजेताओं का समूह बना चुका है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने शैतान को हराकर सारी महिमा प्राप्त कर ली है, और इसके साथ ही बड़ी आपदाएँ शुरू हो गई हैं। हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का सारा कार्य परस्पर जुड़ा हुआ है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करके पूरी दुनिया और धार्मिक जगत को हिला रहा है। लेकिन, धर्म से जुड़े अनेक लोग अभी भी आकाश की ओर टकटकी लगाए, उद्धारकर्ता यीशु के बादलों पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे सब आपदा में गिर कर भी यह नहीं जान पाए कि क्या हो रहा है, उन्हें मूर्ख कुंवारियाँ ही कहा जा सकता है। ऐसे बहुत से मूर्ख और अज्ञानी लोग हैं जो धार्मिक दुनिया की मसीह-विरोधी ताकतों के धोखे और नियंत्रण में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की आलोचना और निंदा कर रहे हैं। यह जानते हुए भी कि उसके वचन सत्य हैं, वे उन्हें स्वीकार नहीं करते। वे सच्चे मार्ग की जाँच करने के बजाय,बाइबल की इस बात से चिपके रहते हैं कि प्रभु बादलों पर आएगा, परमेश्वर की वाणी सुनने का प्रयास तो बिल्कुल ही नहीं करते। नतीजतन वे आपदाओं में पड़ कर, शिकायत कर रहे हैं, रोते हुए दांत पीस रहे हैं। यह वाकई दुखद है। कुछ लोग पूछते हैं, “प्रभु का स्वागत करने के लिए हमें परमेश्वर की वाणी सुनने की क्या जरूरत है?” इस मुद्दे पर मैं आज अपनी समझ आपके सामने रखता हूँ।
सबसे पहले, तो हमें स्पष्ट होना चाहिए, अगर प्रभु सचमुच बादल पर सवार होकर सबके सामने लौटता, तो फिर हमें उसकी वाणी सुनने की जरूरत नहीं होती, सिर्फ अपनी आँखों पर भरोसा करना होता। परन्तु चूँकि प्रभु देह में मनुष्य के पुत्र के रूप में लौटता है, देखने में वह परमेश्वर की छवि न होकर सिर्फ एक साधारण इंसान है, अलौकिक नहीं है। इंसान नश्वर हैं, वे परमेश्वर के आत्मा को नहीं देख सकते। हम केवल मनुष्य के पुत्र के भौतिक रूप को ही देख सकते हैं, इसलिए मनुष्य के पुत्र की वाणी सुनने के अलावा, देह में उसे पहचानने का कोई तरीका नहीं है। उसे केवल उसकी वाणी से ही पहचाना जा सकता है। इसलिए प्रभु यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)। जैसा कि हम सब जानते हैं, 2,000 वर्ष पहले, इंसान को छुटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर ने प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया था। वह सामान्य मानव बनकर रहा, उसका खाना-पीना, सोना, पहनना, घूमना-फिरना आम लोगों जैसा था। कोई नहीं जानता था कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर है, उसके परिवार तक को पता नहीं था, यहाँ तक कि स्वयं प्रभु यीशु भी नहीं जानता था कि वह देहधारी परमेश्वर है। उसने हर जगह स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया और अनेक सत्य व्यक्त किए। उसने लोगों को पाप स्वीकारने, पश्चाताप करने, सहनशीलता और धैर्य रखने का पाठ पढ़ाया, उसने कहा कि लोगों को 70 गुना 7 बार क्षमा करो, क्रूस उठाकर उसका अनुसरण करो। उसने लोगों से कहा परमेश्वर से दिल, आत्मा और मन से प्रेम करो, लोगों से ऐसे ही प्रेम करो जैसे खुद से करते हो। प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य के रहस्य भी प्रकट किए, उसने लोगों को बताया कि कौन लोग राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, वगैरह। ये सत्य थे, मनुष्य के छुटकारे के लिए परमेश्वर द्वारा व्यक्त किया गया प्रायश्चित का तरीका, उससे पहले लोगों ने ऐसा न तो कभी सुना था, न देखा था। प्रभु यीशु के बहुत से अनुयायियों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने सुना कि प्रभु यीशु के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, जिन्हें कोई सृजित प्राणी व्यक्त नहीं कर सकता। उन्होंने परमेश्वर की वाणी को पहचानकर प्रभु अनुसरण किया। यह परमेश्वर की भेड़ का उसकी वाणी सुनकर प्रभु का स्वागत करना था। इस बीच, हालाँकि यहूदी धर्म के महायाजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने मान लिया था कि प्रभु के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन चूँकि प्रभु यीशु मनुष्य के पुत्र की तरह साधारण और सामान्य दिखता था, जिसका न कोई विशिष्ट परिवार था, न कोई रुतबा और सामर्थ्य था, उसके वचन भी धर्मग्रंथों में नहीं थे, न ही उसका नाम मसीहा था, जो धर्मग्रंथ की भविष्यवाणियों से मेल नहीं खाता था, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु को नकार दिया, ठुकरा दिया और उसे ईश-निंदा करने का दोषी ठहराया। अंतत:, उन्होंने उसे सूली पर चढ़ा दिया, और इस प्रकार परमेश्वर द्वारा दंडित और शापित हुए। तो हम देख सकते हैं कि प्रभु का स्वागत करने के लिए परमेश्वर की वाणी सुनना कितना महत्वपूर्ण है! अगर हम परमेश्वर की वाणी को सुनने के बजाय, मनुष्य के पुत्र के रूप-रंग को ही देखेंगे, तो हम उसे परमेश्वर के रूप में कभी नहीं देख पाएँगे। हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर प्रभु की निंदा करेंगे, उसे नकारेंगे। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने प्रकट होकर कार्य करने के लिए एक बार फिर मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया है। अगर हम प्रभु का स्वागत करना चाहते हैं, तो हमें परमेश्वर की वाणी सुननी होगी, सुनना होगा कि क्या ये परमेश्वर के वचन हैं, क्या ये सत्य हैं, क्या ये पवित्र आत्मा से आए हैं। हमारा संकल्प इन्हीं बातों पर आधारित होना चाहिए। तभी हम परमेश्वर की अभिव्यक्ति, मसीह को पहचान सकते हैं, और परमेश्वर की वाणी सुनकर ही हम प्रभु का स्वागत कर सकते हैं।
जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि ‘परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।’ और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)। “जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)।
“इस बार परमेश्वर कार्य करने के लिए आध्यात्मिक देह में नहीं, बल्कि बहुत ही साधारण शरीर में आया है। इसके अलावा, यह न केवल परमेश्वर के दूसरे देहधारण का शरीर है, बल्कि यह वह शरीर भी है, जिसके द्वारा वह देह में लौटकर आया है। यह एक बिलकुल साधारण देह है। तुम ऐसा कुछ नहीं देख सकते, जो इसे दूसरों से अलग करता हो, लेकिन तुम उससे पूर्व में अनसुने सत्य प्राप्त कर सकते हो। यह तुच्छ देह परमेश्वर से आए सत्य के समस्त वचनों का मूर्त रूप है, जो अंत के दिनों में परमेश्वर का काम करता है, और मनुष्य के समझने के लिए परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव को अभिव्यक्त करता है। क्या तुम स्वर्ग के परमेश्वर को देखने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते? क्या तुम स्वर्ग के परमेश्वर को समझने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते? क्या तुम मानवजाति का गंतव्य जानने की प्रबल अभिलाषा नहीं करते? वह तुम्हें ये सभी रहस्य बताएगा—वे रहस्य, जो कोई मनुष्य तुम्हें नहीं बता पाया है, और वह तुम्हें वे सत्य भी बताएगा, जिन्हें तुम नहीं समझते। वह राज्य में जाने का तुम्हारा द्वार है, और नए युग में जाने के लिए तुम्हारा मार्गदर्शक है। ऐसा साधारण देह अनेक अथाह रहस्य समेटे हुए है। उसके कर्म तुम्हारे लिए गूढ़ हो सकते हैं, लेकिन उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य का संपूर्ण लक्ष्य तुम्हें इतना समझाने के लिए पर्याप्त है कि वह कोई साधारण देह नहीं है, जैसा कि लोग मानते हैं। क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा और अंत के दिनों में मानवजाति के प्रति परमेश्वर द्वारा दिखाई गई परवाह को दर्शाता है। यद्यपि तुम उसके द्वारा बोले गए उन वचनों को नहीं सुन सकते जो आकाश और पृथ्वी को कँपाते-से लगते हैं, यद्यपि तुम आग की लपटों जैसी उसकी आँखें नहीं देख सकते, और यद्यपि तुम उसके लौह-दंड का अनुशासन नहीं पा सकते, फिर भी तुम उसके वचनों से यह सुन सकते हो कि परमेश्वर कुपित है, और यह जान सकते हो कि परमेश्वर मानवजाति पर दया दिखा रहा है; तुम परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव और उसकी बुद्धि देख सकते हो, और इतना ही नहीं, समस्त मानवजाति के लिए परमेश्वर की परवाह महसूस कर सकते हो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम जानते थे? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक महान काम किया है)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बताते हैं कि परमेश्वर के प्रकटन को कैसे खोजा जाए और उसके देहधारण को कैसे पहचाना जाए। यह एकदम स्पष्ट है : मसीह मार्ग, सत्य और जीवन है; मसीह की दिव्यता मुख्य रूप से सत्य और परमेश्वर की वाणी को व्यक्त करने से प्रकट होती है। तो मसीह का प्रकटन कितना भी मामूली और सामान्य हो, अगर वह सत्य व्यक्त कर सकता है, परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप व्यक्त कर सकता है, तो वह परमेश्वर की अभिव्यक्ति है। मसीह की मानवता कितनी भी साधारण और सामान्य क्यों न हो, अगर वह सत्य और परमेश्वर की वाणी व्यक्त कर सकता है, तो उसका सार दिव्य सार है—वह देहधारी परमेश्वर है। इसमें कोई शक नहीं है। जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रकट होकर कार्य करना शुरू किया है, सत्य से प्रेम करने वाले सभी संप्रदायों के लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े हैं, और पाया है कि उसके वचन सत्य हैं, पवित्र आत्मा से आए हैं और परमेश्वर की वाणी हैं। उन्होंने पुष्टि की है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर, परमेश्वर का प्रकटन है, वह देहधारी परमेश्वर है, लौटकर आया प्रभु यीशु है। इस तथ्य की पुष्टि परमेश्वर के चुने हुए लोग कर सकते हैं। देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहता है, लोगों के साथ खाता-पीता और बातचीत करता है, सत्य व्यक्त करता है, सिंचन-पोषण करता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई करता है। हमने एक के बाद एक व्यक्त किए गए परमेश्वर के वचनों के अध्याय देखे हैं, और अब उन्हें परमेश्वर के वचनों की पुस्तक, वचन देह में प्रकट होता है में संकलित किया गया है, जिसमें लाखों शब्द हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के 6,000-वर्ष के प्रबंधन कार्य के सभी रहस्य प्रकट कर दिए हैं, जैसे मानवजाति के प्रबंधन में परमेश्वर का उद्देश्य, शैतान ने मानवजाति को कैसे भ्रष्ट किया, कैसे परमेश्वर ने उन्हें बचाने के लिए कदम-दर-कदम काम किया है, देहधारण के रहस्य, बाइबल की अंदरूनी कहानी, अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय-कार्य इंसान को कैसे शुद्ध कर बचाता है, युग के समापन के लिए परमेश्वर लोगों को उनकी किस्म के अनुसार कैसे छाँटता है, नेकी को इनाम और बुराई को दंड देता है, मसीह का राज्य पृथ्वी पर कैसे साकार होता है, इत्यादि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान के परमेश्वर-विरोधी सार और उसकी भ्रष्टता की सच्चाई का न्याय और खुलासा भी करता है। वह लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा और उद्धार पाने का मार्ग भी प्रदान करता है। वह लोगों को यह भी बताता है कि परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध कैसे स्थापित किया जाए, एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करें, परमेश्वर के प्रति निष्ठावान कैसे रहें, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के लिए परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण कैसे करें, परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और प्रेम कैसे प्राप्त करें, और भी बहुत कुछ। ये सभी सत्य लोगों को अपनी आस्था में परमेश्वर द्वारा पाप से मुक्ति और पूर्ण उद्धार प्राप्त करने के लिए आवश्यक सत्य हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त ये सारे सत्य प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरा करते हैं : “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। जितना हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, उतना हमारा हृदय उज्जवल होता है, और वे हमें पूरी तरह से जीत लेते हैं। परमेश्वर के न्याय के वचनों से प्रकट हुई धार्मिकता, पवित्रता, प्रताप और क्रोध देखकर, और परमेश्वर के अलंघनीय स्वभाव का अनुभव कर, हम पुष्टि करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य और परमेश्वर की वाणी हैं, वे कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन हैं। जरा सोचिए—परमेश्वर के अलावा, उसके कार्य के रहस्यों को और कौन प्रकट कर सकता है? परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप को कौन व्यक्त कर सकता है? परमेश्वर के अलावा, इंसान के भ्रष्ट सार का न्याय और खुलासा और कौन कर सकता है? इंसान को पाप से और कौन बचा सकता है? इसमें कोई शक नहीं कि केवल परमेश्वर ही सत्य व्यक्त कर सकता है, मात्र परमेश्वर ही इंसान को भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकता है, उसे पाप और शैतान की ताकत से बचा सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर भले ही एक मामूली और सामान्य मनुष्य का पुत्र लगे, लेकिन उसके वचनों और कार्य से, हम देख सकते हैं कि उसमें न केवल सामान्य मानवता है, बल्कि एक दिव्य सार भी है। उसमें परमेश्वर के आत्मा का वास है, उसके वचन परमेश्वर के आत्मा की ओर से प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मार्ग, सत्य और जीवन है, वह देहधारी परमेश्वर और लौटकर आया प्रभु यीशु है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “विभिन्न तरीकों और परिप्रेक्ष्यों के उपयोग द्वारा हमें इस बारे में सचेत करते हुए कि हमें क्या करना चाहिए, और साथ ही अपने हृदय को वाणी प्रदान करते हुए, परमेश्वर अपने कथन जारी रखता है। उसके वचनों में जीवन-सामर्थ्य है, वे हमें वह मार्ग दिखाते हैं जिस पर हमें चलना चाहिए, और हमें यह समझने में सक्षम बनाते हैं कि सत्य क्या है। हम उसके वचनों से आकर्षित होने लगते हैं, हम उसके बोलने के लहजे और तरीके पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं, और अवचेतन रूप में इस साधारण व्यक्ति की अंतरतम भावनाओं में रुचि लेना आरंभ कर देते हैं। ... उसके अलावा कोई भी हमारे समस्त विचारों को नहीं जान सकता, या हमारी प्रकृति और सार को स्पष्ट और पूर्ण रूप से नहीं समझ सकता, या मानवजाति की विद्रोहशीलता और भ्रष्टता का न्याय नहीं कर सकता, या इस तरह से स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हम पर कार्य नहीं कर सकता। उसके अलावा किसी में परमेश्वर का अधिकार, बुद्धि और गरिमा नहीं है; उसमें परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप अपनी संपूर्णता में प्रकट होते हैं। उसके अलावा कोई हमें मार्ग नहीं दिखा सकता या हमारे लिए प्रकाश नहीं ला सकता। उसके अलावा कोई भी परमेश्वर के उन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता, जिन्हें परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ से अब तक प्रकट नहीं किया है। उसके अलावा कोई हमें शैतान के बंधन और हमारे भ्रष्ट स्वभाव से नहीं बचा सकता। वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। वह संपूर्ण मानवजाति के प्रति परमेश्वर के अंतरतम हृदय, परमेश्वर के प्रोत्साहनों और परमेश्वर के न्याय के सभी वचनों को व्यक्त करता है। उसने एक नया युग, एक नया काल आरंभ किया है, और एक नए स्वर्ग और पृथ्वी और नए कार्य में ले गया है, और हमारे द्वारा अस्पष्टता में बिताए जा रहे जीवन का अंत करते हुए और हमारे पूरे अस्तित्व को उद्धार के मार्ग को पूरी स्पष्टता से देखने में सक्षम बनाते हुए हमारे लिए आशा लेकर आया है। उसने हमारे संपूर्ण अस्तित्व को जीत लिया है और हमारे हृदय प्राप्त कर लिए हैं। उस क्षण से हमारे मन सचेत हो गए हैं, और हमारी आत्माएँ पुर्नजीवित होती लगती हैं : क्या यह साधारण, महत्वहीन व्यक्ति, जो हमारे बीच रहता है और जिसे हमने लंबे समय से तिरस्कृत किया है—ही प्रभु यीशु नहीं है; जो सोते-जागते हमेशा हमारे विचारों में रहता है और जिसके लिए हम रात-दिन लालायित रहते हैं? यह वही है! यह वास्तव में वही है! यह हमारा परमेश्वर है! यह सत्य, मार्ग और जीवन है!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना)।
इस समय, आपको और स्पष्ट होना चाहिए कि प्रभु का स्वागत करने के लिए हमें परमेश्वर की वाणी क्यों सुननी चाहिए। दरअसल, परमेश्वर की वाणी सुनना मुश्किल नहीं है। परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुन सकती हैं—यह परमेश्वर द्वारा नियत किया गया है। लोगों का शिक्षा-स्तर कोई मायने नहीं रखता, उनका बाइबल ज्ञान और अनुभव की गहराई भी कोई मायने नहीं रखती। दिल और आत्मा वाला हर व्यक्ति सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर महसूस कर सकता है कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, उनमें अधिकार और सामर्थ्य है, और वे परमेश्वर की वाणी हैं। वे मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम को महसूस कर सकते हैं, परमेश्वर का धार्मिक, प्रतापी स्वभाव किसी भी मानवीय अपराध को सहन नहीं करता। यह आध्यात्मिक भावना और अंतर्ज्ञान का प्रकार्य है। जब हम प्रभु यीशु के वचन पढ़ते हैं तो वैसा ही महसूस होता है, क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु के वचन दोनों एक ही आत्मा की अभिव्यक्ति हैं। वे एक ही स्रोत से हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर हैं। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंश पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “पूरे ब्रह्मांड में मैं अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब में असंख्य गर्जनाएँ निरंतर जारी हैं और सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है, जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में ले आई है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लेता हूँ, उन्हें इस धारा में बहाता हूँ और उनसे अपने सामने समर्पण करवाता हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा वापस लेकर उसे नए सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा देखने के लिए लालायित नहीं होता? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं करता? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता देखने के लिए नहीं तरसता? कौन प्रकाश में नहीं आना चाहता? कौन कनान की समृद्धि नहीं देखना चाहता? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन उसकी आराधना नहीं करता, जो सामर्थ्य में महान है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं अपने चुने हुए लोगों के सामने आकर उनसे और अधिक वचन बोलूँगा। मैं उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह, जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं, पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खजाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य छोड़ना नहीं चाहता और साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं, मानो किसी शिशु का जन्म हुआ हो। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक रूप से मनुष्यों की जाति में प्रवेश करूँगा, ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। स्वयं द्वारा विकीर्ण महिमा और अपने मुँह से निकले वचनों से मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएँगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में ‘जैतून के पर्वत’ पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, अब यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ, जिसकी आराधना अब से असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे अब से असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामय मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है और साथ ही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी : हर राष्ट्र मेरी आराधना करे, हर जिह्वा मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और हर मनुष्य मेरी अधीनता स्वीकार करे!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)।
“मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)।
“जैसे ही मैं बोलने के लिए ब्रह्माण्ड की तरफ अपना चेहरा घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ सुनती है, और उसके उपरांत उन सभी कार्यों को देखती है जिन्हें मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध खड़े होते हैं, अर्थात् जो मनुष्य के कर्मों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन आएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और, मेरी बदौलत, सूर्य और चन्द्रमा नये हो जाएँगे—आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था और पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। ब्रह्माण्ड के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से बाँटा जाएगा और उनका स्थान मेरा राज्य लेगा, जिससे पृथ्वी पर विद्यमान राष्ट्र हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राज्य बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता है; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ब्रह्माण्ड के भीतर मनुष्यों में से उन सभी का, जो शैतान से संबंध रखते हैं, सर्वनाश कर दिया जाएगा, और वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें मेरी जलती हुई आग के द्वारा धराशायी कर दिया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी धारा के अन्तर्गत हैं, शेष सभी को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत-से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीते जाने के उपरांत, भिन्न-भिन्न अंशों में, मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। सभी लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग किया जाएगा, और वे अपने-अपने कार्यों के अनुरूप ताड़नाएँ प्राप्त करेंगे। वे सब जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए हैं, नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कर्मों में मुझे शामिल नहीं किया है, उन्होंने जिस तरह अपने आपको दोषमुक्त किया है, उसके कारण वे पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर अस्तित्व में बने रहेंगे। मैं अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, और अपनी वाणी से, पृथ्वी पर ज़ोर-ज़ोर से और ऊंचे तथा स्पष्ट स्वर में, अपने महा कार्य के पूरे होने की उद्घोषणा करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 26)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर का हर वचन सामर्थ्य और अधिकार से पूर्ण है, जो लोगों के दिलों को झकझोर देता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर सृष्टिकर्ता के रूप में सारी मानवजाति से बात करता है। परमेश्वर का अधिकार और पहचान उसके वचनों के माध्यम से स्पष्ट रूप से प्रकट होता है, उनका लहजा, वह जिस पद पर है, अभिव्यक्त किया गया स्वभाव और स्वरूप, परमेश्वर के अद्वितीय गुण हैं। किसी स्वर्गदूत, किसी सृजित प्राणी, किसी शैतानी दुष्ट आत्मा में ये कभी भी नहीं हो सकते, न वे इन्हें हासिल कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार को प्रकट करते हैं, वे परमेश्वर के धार्मिक और अलंघनीय स्वभाव को दिखाते हैं। हम सभी ने देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर की अभिव्यक्ति और वाणी हैं।
आज, वचन देह में प्रकट होता है में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और परमेश्वर के वचनों के पाठ के वीडियो ऑनलाइन मिल सकते हैं, सभी देशों और अनेक संप्रदायों के लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर की जांच-पड़ताल कर उसे स्वीकार रहे हैं। लेकिन, धर्म के भीतर अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो बाइबल के शब्दों से ही चिपके हुए हैं, जो बादल पर उतरते प्रभु की धारणा से चिपके हुए हैं। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को इतने सारे सत्य व्यक्त करते हुए देखते हैं, फिर भी वे न तो परमेश्वर की वाणी को खोजते हैं, न ही उसे जांचते और सुनते हैं। वे धार्मिक दुनिया की मसीह-विरोधी ताकतों के साथ मिलकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आलोचना, अपमान और निंदा करते हैं। मानो उनके दिल के दरवाजे बंद हों—वे सुनते तो हैं लेकिन जानते नहीं, देखते तो हैं लेकिन समझते नहीं। ऐसे लोग परमेश्वर की वाणी नहीं सुन पाते, जिससे पता चलता है कि वे परमेश्वर की भेड़ नहीं हैं। वे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य से प्रकट हुए घास-फूस हैं, मूर्ख कुँवारियाँ हैं, जिन्हें अब परमेश्वर ने त्यागकर हटा दिया है, और वे आपदा में जा पड़े हैं। कहना मुश्किल है कि वे जिएंगे या मरेंगे। अगर जीवित रहे, तो केवल प्रभु यीशु के बादल पर आने और आपदाओं के बाद सबके सामने प्रकट होने की प्रतीक्षा ही कर सकते हैं। लेकिन जब तक, उन्हें पता चलेगा कि जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की उन्होंने निंदा की और विरोध किया, वह लौटकर आया हुआ प्रभु यीशु है, तब तक वे हक्के-बक्के हो जाएंगे और पछतावे के लिए भी बहुत देर हो चुकी होगी। वे रोते और दांत पीसते रह जाएंगे। इससे प्रकाशितवाक्य की यह भविष्यवाणी पूरी होती है : “देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे” (प्रकाशितवाक्य 1:7)।
अंत में, आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य व्यक्त होता है, और वहाँ परमेश्वर की वाणी होगी। केवल वे लोग ही परमेश्वर की वाणी सुन पाएँगे, जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और केवल इस तरह के लोग ही परमेश्वर के प्रकटन को देखने के योग्य हैं। अपनी धारणाओं को जाने दो! स्वयं को शांत करो और इन वचनों को ध्यानपूर्वक पढ़ो। यदि तुम सत्य के लिए तरसते हो, तो परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम उसकी इच्छा और उसके वचनों को समझोगे। ‘असंभव’ के बारे में अपनी राय जाने दो! लोग किसी चीज़ को जितना अधिक असंभव मानते हैं, उसके घटित होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं के पार जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सत्य होता है, जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे होती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसका सार उसके प्रकटन के स्थान या तरीके के आधार पर कभी नहीं बदलेगा। ... तो आओ, हम परमेश्वर की इच्छा खोजें और उसके कथनों में उसके प्रकटन की खोज करें, और उसके पदचिह्नों के साथ तालमेल रखें! परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकटन साथ-साथ विद्यमान हैं, और उसका स्वभाव और पदचिह्न मनुष्यजाति के लिए हर समय खुले हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?