8. हम मानते हैं कि बुद्धिमान कुँवारियों द्वारा तेल तैयार करने का अर्थ है प्रार्थना में अचल होना, धर्मशास्त्रों का पढ़ना, और सभा में उपस्थित होना, प्रभु के लिए यत्नपूर्वक काम करना, और सतर्कता से प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करना। एक बुद्धिमान कुँवारी होने का मतलब यही है, और जब परमेश्वर लौटता है, तो हम दूल्हे का स्वागत करेंगे और मेम्ने की दावत में भाग लेंगे।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।' तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। और मूर्खों ने समझदारों से कहा, 'अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जा रही हैं।' परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया, 'कदाचित् यह हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।' जब वे मोल लेने को जा रही थीं तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चली गईं और द्वार बन्द किया गया" (मत्ती 25:6-10)

"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)

"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)

"ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे "जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना" चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा निष्कासित कर दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि "यहोवा ही परमेश्वर है" और "यीशु ही मसीह है," जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करता हो, मनुष्य बिना किसी संदेह के अनुसरण करता है, और वह निकट से अनुसरण करता है। इस तरह, मनुष्य पवित्र आत्मा द्वारा कैसे निष्कासित किया जा सकता है? परमेश्वर चाहे जो भी करे, जब तक मनुष्य निश्चित है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, और बिना किसी आशंका के पवित्र आत्मा के कार्य में सहयोग करता है, और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने का प्रयास करता है, तो उसे कैसे दंड दिया जा सकता है? परमेश्वर का कार्य कभी नहीं रुका है, उसके कदम कभी नहीं थमे हैं, और अपने प्रबंधन-कार्य की पूर्णता से पहले वह सदैव व्यस्त रहा है और कभी नहीं रुकता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि "परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।" और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण :

बुद्धिमान कुँवारियों द्वारा प्रभु का स्वागत करना यह बताता है कि उनकी बुद्धिमत्ता मुख्य रूप से प्रभु की आवाज़ को पहचानने में निहित थी, जो बुद्धिमत्ता मूर्ख कुँवारियों के पास नहीं थी। क्या प्रभु की आवाज़ को पहचानना एक साधारण बात है? यदि लोग धारणाओं और कल्पनाओं के साथ अभिमान से फूले हुए हैं, तो वे प्रभु की आवाज़ को सुनते ही ज़ब्त और विवश हो जाएँगे, और हो सकता है कि वे प्रभु की आवाज़ पर संदेह भी करें। जब बुद्धिमान कुँवारियों को प्रभु की आवाज़ सुनाई देती है, तो वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को अलग करने में समर्थ होती हैं; उन्हें कोई संदेह नहीं होता कि यह प्रभु बोल रहा है, और इस प्रकार वे प्रभु का स्वागत करती हैं। और इसलिए, जो लोग प्रभु की आवाज़ को पहचान सकते हैं वे आध्यात्मिक चीज़ों को समझते हैं: इस आवाज़ का स्रोत उनके लिए स्पष्ट होता है, और वे देख सकते हैं कि यह परमेश्वर की आत्मा बोल रही है। यह पर्याप्त होता है, और उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ अब एक बड़ी समस्या नहीं होती हैं। मूर्ख कुँवारियाँ, इस बीच, उनकी धारणाओं और कल्पनाओं को उनके निर्णयों के एक आधार के रूप में लेती हैं, और वे उन्हें सच्चाई के रूप में मानती हैं। भले ही वे प्रभु की आवाज़ सुनती हैं, वे इसे अस्वीकार कर देती हैं, वे इससे इन्कार कर देती हैं, और इसलिए वे प्रभु का स्वागत करने का अवसर चूक जाती हैं। यही वो जगह है जहाँ पर मूर्ख कुँवारियाँ विफल हो जाती हैं। तो बुद्धिमान कुँवारियों द्वारा तेल को तैयार रखने का तात्पर्य किस बात से है? मुख्य रूप से इसका अर्थ, धारणाओं और कल्पनाओं से विवश हुए बिना, प्रभु की आवाज़ को ध्यान से सुनना है, और यह पता लगाकर कि यह प्रभु की आवाज़ है, बिना किसी संदेह के प्रभु का स्वागत करना और उसे स्वीकार करना है—यह बात सबसे महत्वपूर्ण है। प्रभु का स्वागत करने में, कई लोग धार्मिक धारणाओं से विवश होते हैं। यह ऐसा है जैसे कि मानो उन्होंने पहले से ही प्रभु की वापसी के लिए एक मॉडल को स्थापित और निश्चित कर रखा है, और वे ऐसा कुछ भी सुनना नहीं चाहते हैं जो उनकी स्वयं की धारणाओं और कल्पनाओं के साथ मेल न खाता हो। ऐसे लोग कितने मूर्ख होते हैं! ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने सच्चे मार्ग की जाँच की है, जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है और वे लोग इसे स्वीकार करते हैं कि वे वचन सत्य हैं, लेकिन वे यह स्वीकार नहीं करते कि यह व्यक्ति (परमेश्वर का) देहधारण है। वे ठीक उसी तरह से कार्य करते हैं जैसे फरीसियों ने प्रभु यीशु के प्रति किया था —वे सब लोग सबसे अधिक मूर्ख होते हैं। जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद यह स्वीकार करते हैं कि ये वचन सत्य हैं, जो इस बात में निश्चित होते हैं कि यह परमेश्वर की ही उपस्थिति और कार्य है, और जो स्वीकार करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही उद्धारकर्ता हैं, वे सबसे बुद्धिमान हैं। यह बात प्रभु यीशु के वचनों को भी पूरा करती है कि बुद्धिमान कुँवारियाँ प्रभु के आगमन का स्वागत करेंगी।

—ऊपर से संगति

पिछला: 7. बाइबल में यह लिखा हुआ है, "क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्‍वर की तुरही फूँकी जाएगी; और जो मसीह में मरे हैं, वे पहले जी उठेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:16)। आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु वापस आ गया है, लेकिन हमने न तो ललकार, न ही प्रधान दूत की आवाज़, और न ही परमेश्‍वर की तुरही फूँकने की आवाज़ सुनी है, और न ही हमने मृत संतों को फिर से जी उठते देखा है। तो यह कैसे सिद्ध हो सकता है कि प्रभु लौट आया है?

अगला: 1. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, और वह अपना कार्य करने के लिए देह बना है। यह कैसे हो सकता है? बाइबल का कहना है: "हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा" (प्रेरितों 1:11)। प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर चढ़ने का कार्य समाप्त करने के बाद, वह मृत्यु से जी उठा और अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुआ। वह एक महिमामय आध्यात्मिक शरीर बन गया और स्वर्ग में आरोहित हुआ। जब प्रभु लौटता है, तो हमारे लिए उसे मृत्यु से जी उठे एक आध्यात्मिक शरीर के रूप में ही प्रकट होना चाहिए। आप यह क्यों कहते हैं कि परमेश्वर को देह बनना चाहिए और अंतिम दिनों में उसे मनुष्य के पुत्र के रूप में कार्य करना चाहिए।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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