2. आप गवाही देते हैं कि अंतिम दिनों का लौटा हुआ परमेश्वर सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहलाता है। हमारा मानना है कि "सर्वशक्तिमान परमेश्वर" नाम परमेश्वर की सर्वव्यापकता को दर्शाता है और यह परमेश्वर का कोई नया नाम नहीं है। आप क्यों कहते हैं कि "सर्वशक्तिमान परमेश्वर" परमेश्वर का नया नाम है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:12)

"प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, 'मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ'" (प्रकाशितवाक्य 1:8)

"वे परमेश्‍वर के दास मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत गा गाकर कहते थे, 'हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, तेरे कार्य महान् और अद्भुत हैं; हे युग-युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्‍ची है। हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा और तेरे नाम की महिमा न करेगा?'" (प्रकाशितवाक्य 15:3-4)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

स्तुति सिय्योन तक आ गई है और परमेश्वर का निवास स्थान-प्रकट हो गया है। सभी लोगों द्वारा प्रशंसित, महिमामंडित पवित्र नाम फैल रहा है। आह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर! ब्रह्मांड का मुखिया, अंत के दिनों का मसीह—वह जगमगाता सूर्य है, जो पूरे ब्रह्मांड में प्रताप और वैभव में ऊँचे पर्वत सिय्योन पर उदित हुआ है ...

सर्वशक्तिमान परमेश्वर! हम हर्षोल्लास में तुझे पुकारते हैं; हम नाचते और गाते हैं। तू वास्तव में हमारा उद्धारकर्ता, ब्रह्मांड का महान सम्राट है! तूने विजेताओं का एक समूह बनाया है और परमेश्वर की प्रबंधन-योजना पूरी की है। सभी लोग इस पर्वत की ओर बढ़ेंगे। सभी लोग सिंहासन के सामने घुटने टेकेंगे! तू एकमेव सच्चा परमेश्वर है और तू ही महिमा और सम्मान के योग्य है। समस्त महिमा, स्तुति और अधिकार सिंहासन का हो! जीवन का झरना सिंहासन से प्रवाहित होता है, जो बड़ी संख्या में परमेश्वर के लोगों को सींचता और पोषित करता है। जीवन प्रतिदिन बदलता है; नई रोशनी और नए प्रकटन हमारा अनुसरण करते हैं, जो लगातार परमेश्वर के बारे में अंतर्दृष्टियाँ देते हैं। अनुभवों के बीच हम परमेश्वर के बारे में पूर्ण निश्चितता पर पहुँचते हैं। उसके वचन लगातार प्रकट किए जाते हैं, उनके भीतर प्रकट किए जाते हैं, जो सही हैं। हम सचमुच बहुत धन्य हैं! परमेश्वर से रोज़ाना आमने-सामने मिल रहे हैं, सभी बातों में परमेश्वर के साथ संवाद कर रहे हैं, और हर बात में परमेश्वर को संप्रभुता दे रहे हैं। हम सावधानीपूर्वक परमेश्वर के वचन पर विचार करते हैं, हमारे हृदय परमेश्वर में शांति पाते हैं, और इस प्रकार हम परमेश्वर के सामने आते हैं, जहाँ हमें उसका प्रकाश मिलता है। रोज़ाना अपने जीवन, कार्यों, वचनों, विचारों और धारणाओं में हम परमेश्वर के वचन के भीतर जीते हैं, और हम हमेशा पहचान करने में सक्षम होते हैं। परमेश्वर का वचन सुई में धागा पिरोता है; अप्रत्याशित ढंग से हमारे भीतर छिपी हुई चीज़ें एक-एक करके प्रकाश में आती हैं। परमेश्वर के साथ संगति देर सहन नहीं करती; हमारे विचार और धारणाएँ परमेश्वर द्वारा उघाड़कर रख दी जाती हैं। हर पल हम मसीह के आसन के सामने जी रहे हैं, जहाँ हम न्याय से गुज़रते हैं। हमारे शरीर के भीतर हर जगह पर शैतान का कब्ज़ा है। आज, परमेश्वर की संप्रभुता पुन: प्राप्त करने के लिए, उसके मंदिर को स्वच्छ करना होगा। पूरी तरह से परमेश्वर के अधीन होने के लिए हमें जीवन-मरण के संघर्ष में संलग्न होना होगा। केवल हमारी पुरानी अस्मिता को सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद ही मसीह का पुनरुत्थित जीवन संप्रभुता में शासन कर सकता है।

अब पवित्र आत्मा हमारे उद्धार की लड़ाई लड़ने के लिए हमारे हर कोने में धावा बोलता है! जब तक हम अपने आपको नकारने और परमेश्वर के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं, तब तक परमेश्वर निश्चित रूप से हमें हर समय भीतर से रोशन और शुद्ध करेगा, और उसे नए सिरे से प्राप्त करेगा, जिस पर शैतान ने कब्ज़ा कर रखा है, ताकि हम परमेश्वर द्वारा शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण किए जा सकें। समय बरबाद मत करो—और हर क्षण परमेश्वर के वचन के भीतर रहो। संतों के साथ बढ़ो, राज्य में लाए जाओ, और परमेश्वर के साथ महिमा में प्रवेश करो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 1

जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर—राज्य के राजा—की गवाही दी गई है, तब से पूरे ब्रह्मांड में परमेश्वर के प्रबंधन का दायरा पूरी तरह खुलकर सामने आ गया है। परमेश्वर के प्रकटन की गवाही न केवल चीन में दी गई है, बल्कि सभी राष्ट्रों और सभी स्थानों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की गवाही दी गई है। वे सभी इस पवित्र नाम को पुकार रहे हैं, किसी भी तरह से परमेश्वर के साथ सहभागिता करने का प्रयास कर रहे हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की इच्छा को समझ रहे हैं और कलीसिया में मिल कर सेवा कर रहे हैं। पवित्र आत्मा इसी अद्भुत तरीके से काम करता है।

विभिन्न राष्ट्रों की भाषाएँ एक दूसरे से अलग हैं लेकिन आत्मा एक ही है। यह आत्मा संसार भर की कलीसियाओं को जोड़ता है और बिना किसी भेदभाव के, परमेश्वर के साथ एक है, और इसमें कोई शक नहीं है। पवित्र आत्मा अब उन्हें पुकारता है और उसकी वाणी उन्हें जगाती है। यह परमेश्वर की दया की वाणी है। वे सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पवित्र नाम को पुकार रहे हैं! वे स्तुति भी करते हैं और गाते भी हैं। पवित्र आत्मा के कार्य में कभी भी कोई चूक नहीं हो सकती: और सही मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए ये लोग किसी भी हद तक जाते हैं, वे पीछे नहीं हटते हैं—चमत्कारों पर चमत्कार होते रहते हैं। लोगों के लिए इसकी कल्पना करना भी मुश्किल होता है और इसका अनुमान लगाना उन्हें असंभव लगता है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर सारे ब्रह्मांड में जीवन का राजा है! वह महिमामय सिंहासन पर बैठता है और दुनिया का न्याय करता है, सभी पर वर्चस्व रखता है, और सभी राष्ट्रों पर शासन करता है; सभी लोग उसके सामने घुटने टेकते हैं, उससे प्रार्थना करते हैं, उसके करीब आते हैं और उसके साथ संवाद करते हैं। चाहे तुमने परमेश्वर में कितने भी लम्बे समय से विश्वास रखा हो, चाहे तुम्हारा रुतबा कितना भी ऊंचा हो या तुम्हारी वरिष्ठता कितनी भी अधिक हो, यदि तुम अपने दिल में परमेश्वर का विरोध करते हो तो तुम्हारा न्याय किया जाना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर के सामने दंडवत होकर दर्द भरा अनुनय-विनय करना चाहिए; यह वास्तव में तुम्हारा अपने कर्मों के फल को भुगतना है। यह विलाप का स्वर अग्नि और गंध की झील में पीड़ा सहने का स्वर है, और यह परमेश्वर की लोहे की छड़ी से प्रताड़ित होने का क्रंदन है; यह मसीह के आसन के सामने किया गया न्याय है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 8

मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है

"यहोवा" वह नाम है, जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोगों) का परमेश्वर, जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन कर सकता है; वह परमेश्वर, जिसके पास बड़ा सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। "यीशु" इम्मानुएल है, जिसका अर्थ है वह पाप-बलि, जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा दिलाता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबंधन-योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। अर्थात्, केवल यहोवा ही इस्राएल के चुने हुए लोगों का परमेश्वर, अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, मूसा का परमेश्वर और इस्राएल के सभी लोगों का परमेश्वर है। और इसलिए, वर्तमान युग में यहूदी लोगों के अलावा सभी इस्राएली यहोवा की आराधना करते हैं। वे वेदी पर उसके लिए बलिदान करते हैं, और याजकीय लबादे पहनकर मंदिर में उसकी सेवा करते हैं। वे यहोवा के पुन: प्रकट होने की आशा करते हैं। केवल यीशु ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने वाला है, और वह वो पाप-बलि है, जिसने मानवजाति को पाप से छुटकारा दिलाया है। कहने का तात्पर्य यह है कि यीशु का नाम अनुग्रह के युग से आया, और अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य के कारण विद्यमान रहा। यीशु का नाम अनुग्रह के युग के लोगों को पुनर्जन्म दिए जाने और बचाए जाने के लिए अस्तित्व में आया, और वह पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। इस प्रकार, "यीशु" नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है और अनुग्रह के युग का द्योतक है। "यहोवा" नाम इस्राएल के उन लोगों के लिए एक विशेष नाम है, जो व्यवस्था के अधीन जिए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में मेरा नाम आधारहीन नहीं है, बल्कि प्रातिनिधिक महत्व रखता है : प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। "यहोवा" व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह सम्मानसूचक शब्द है, जिससे इस्राएल के लोग उस परमेश्वर को पुकारते थे जिसकी वे आराधना करते थे। "यीशु" अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है और उन सबके परमेश्वर का नाम है, जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था। यदि मनुष्य अब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और उसके अब भी उसी छवि में आने की अपेक्षा करता है जो उसने यहूदिया में अपनाई थी, तो छह हज़ार सालों की संपूर्ण प्रबंधन-योजना छुटकारे के युग में रुक गई होती, और आगे प्रगति न कर पाती। इतना ही नहीं, अंत के दिनों का आगमन कभी न होता, और युग का समापन कभी न किया जा सकता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उद्धारकर्ता यीशु सिर्फ मानवजाति के छुटकारे और उद्धार के लिए है। "यीशु" नाम मैंने अनुग्रह के युग के सभी पापियों की खातिर अपनाया था, और यह वह नाम नहीं है जिसके द्वारा मैं पूरी मानवजाति को समापन पर ले जाऊँगा। यद्यपि यहोवा, यीशु और मसीहा सभी मेरे पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, किंतु ये नाम केवल मेरी प्रबंधन-योजना के विभिन्न युगों के द्योतक हैं, और मेरी संपूर्णता में मेरा प्रतिनिधित्व नहीं करते। पृथ्वी पर लोग मुझे जिन नामों से पुकारते हैं, वे मेरे संपूर्ण स्वभाव और स्वरूप को व्यक्त नहीं कर सकते। वे मात्र अलग-अलग नाम हैं, जिनके द्वारा मुझे विभिन्न युगों के दौरान पुकारा जाता है। और इसलिए, जब अंतिम युग—अंत के दिनों के युग—का आगमन होगा, तो मेरा नाम पुनः बदल जाएगा। मुझे यहोवा या यीशु नहीं कहा जाएगा, मसीहा तो कदापि नहीं—मुझे सामर्थ्यवान स्वयं सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाएगा, और इस नाम के तहत ही मैं समस्त युग का समापन करूँगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है

परमेश्वर को कई नामों से बुलाया जा सकता है, किंतु इन नामों में से एक भी ऐसा नहीं है, जो परमेश्वर का सब-कुछ समाहित कर सकता हो, एक भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वर का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व कर सकता हो। और इसलिए, परमेश्वर के कई नाम हैं, किंतु ये कई नाम परमेश्वर के स्वभाव को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर सकते, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव इतना समृद्ध है कि वह बस मनुष्य के जानने की सीमा से बढ़कर है। मनुष्य की भाषा का उपयोग करके परमेश्वर को पूरी तरह से समाहित करने का मनुष्य के पास कोई तरीका नहीं है। मनुष्य परमेश्वर के स्वभाव के बारे में जो कुछ जानता है, उस सबको समाहित करने के लिए उसके पास सीमित शब्दावली है : महान, आदरणीय, अद्भुत, अथाह, सर्वोच्च, पवित्र, धार्मिक, बुद्धिमान इत्यादि। इतने-से शब्द! इतनी सीमित शब्दावली उस थोड़े-से का भी वर्णन करने में असमर्थ है, जो मनुष्य ने परमेश्वर के स्वभाव के बारे में देखा है। समय के साथ कई अन्य लोगों ने ऐसे शब्दों को जोड़ा, जिनके बारे में उन्हें लगता था कि वे उनके हृदय के उत्साह का बेहतर ढंग से वर्णन करने में समर्थ हैं : परमेश्वर इतना महान है! परमेश्वर इतना पवित्र है! परमेश्वर इतना प्यारा है! आज, मनुष्य की ऐसी उक्तियाँ अपने चरम पर पहुँच गई हैं, फिर भी मनुष्य अभी भी स्वयं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में असमर्थ है। और इसलिए, मनुष्य के लिए परमेश्वर के कई नाम हैं, मगर उसका कोई एक नाम नहीं है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर का अस्तित्व इतना प्रचुर है, और मनुष्य की भाषा इतनी दरिद्र है। किसी एक विशेष शब्द या नाम में परमेश्वर का उसकी समग्रता में प्रतिनिधित्व करने की क्षमता नहीं है, तो क्या तुमको लगता है कि उसका नाम नियत किया जा सकता है? परमेश्वर इतना महान और इतना पवित्र है, फिर भी तुम उसे हर नए युग में अपना नाम नहीं बदलने दोगे? इसलिए, हर युग में, जिसमें परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, वह उस कार्य को समाहित करने के लिए, जिसे करने का वह इरादा रखता है, एक ऐसे नाम का उपयोग करता है, जो उस युग के अनुकूल होता है। वह अस्थायी महत्व वाले इस विशेष नाम का उपयोग उस युग के अपने स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है। यह परमेश्वर अपने स्वभाव को व्यक्त करने के लिए मनुष्य की भाषा का उपयोग करता है। फिर भी बहुत-से लोग, जिन्हें आध्यात्मिक अनुभव हो चुके हैं और जिन्होंने परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से देखा है, अभी भी महसूस करते हैं कि यह एक विशेष नाम परमेश्वर का उसकी समग्रता में प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है—आह, इसमें कुछ नहीं किया जा सकता—इसलिए मनुष्य अब परमेश्वर को किसी नाम से नहीं बुलाता, बल्कि उसे केवल "परमेश्वर" कहता है। यह ऐसा है, मानो मनुष्य का हृदय प्रेम से भरा हो, लेकिन वह विरोधाभासों से भी घिरा हो, क्योंकि मनुष्य नहीं जानता कि परमेश्वर की व्याख्या कैसे की जाए। परमेश्वर जो है, वह इतना प्रचुर है कि उसके वर्णन का कोई तरीका है ही नहीं। ऐसा कोई अकेला नाम नहीं है, जो परमेश्वर के स्वभाव का ख़ुलासा कर सकता हो, और ऐसा कोई अकेला नाम नहीं है, जो परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन कर सकता हो। यदि कोई मुझसे पूछे, "तुम ठीक-ठीक किस नाम का उपयोग करते हो?" तो मैं उनसे कहूँगा, "परमेश्वर तो परमेश्वर है!" क्या यह परमेश्वर के लिए सर्वोत्तम नाम नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव का सर्वोत्तम संपुटीकरण नहीं है? ऐसा होने पर, क्यों तुम लोग परमेश्वर के नाम की तलाश में इतना प्रयास लगाते हो? क्यों तुम्हें बिना खाए और सोए, सिर्फ एक नाम के वास्ते अपना दिमाग़ चलाना चाहिए? एक दिन आएगा, जब परमेश्वर यहोवा, यीशु या मसीहा नहीं कहलाएगा—वह केवल सृष्टिकर्ता होगा। उस समय वे सभी नाम, जो उसने पृथ्वी पर धारण किए हैं, समाप्त हो जाएँगे, क्योंकि पृथ्वी पर उसका कार्य समाप्त हो गया होगा, जिसके बाद उसका कोई नाम नहीं होगा। जब सभी चीजें सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन आती हैं, तो उसे किसी अत्यधिक उपयुक्त फिर भी अपूर्ण नाम की क्या आवश्यकता है? क्या तुम अभी भी परमेश्वर के नाम की तलाश कर रहे हो? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यहोवा ही कहा जा सकता है? क्या तुम अभी भी कहने का साहस करते हो कि परमेश्वर को केवल यीशु कहा जा सकता है? क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा का पाप सहन करने में समर्थ हो? तुम्हें पता होना चाहिए कि मूल रूप से परमेश्वर का कोई नाम नहीं था। उसने केवल एक या दो या कई नाम धारण किए, क्योंकि उसके पास करने के लिए कार्य था और उसे मानवजाति का प्रबंधन करना था। चाहे उसे किसी भी नाम से बुलाया जाए—क्या उसने स्वयं उसे स्वतंत्र रूप से नहीं चुना? क्या इसे तय करने के लिए उसे तुम्हारी—एक प्राणी की—आवश्यकता होगी? जिस नाम से परमेश्वर को बुलाया जाता है, वह ऐसा नाम होता है, जिसके अनुसार मनुष्य मानवजाति की भाषा के साथ उसे समझने में समर्थ होता है, किंतु यह नाम कुछ ऐसा नहीं है, जिसे मनुष्य समेट सकता हो। तुम केवल इतना ही कह सकते हो कि स्वर्ग में एक परमेश्वर है, कि वह परमेश्वर कहलाता है, कि वह महान सामर्थ्य वाला स्वयं परमेश्वर है, जो इतना बुद्धिमान, इतना उच्च, इतना अद्भुत, इतना रहस्यमय, इतना सर्वशक्तिमान है, और फिर तुम इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते; तुम बस इतना जरा-सा ही जान सकते हो। ऐसा होने पर, क्या मात्र यीशु का नाम ही स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है? जब अंत के दिन आते हैं, भले ही यह अभी भी परमेश्वर ही है जो अपना कार्य करता है, फिर भी उसके नाम को बदलना ही है, क्योंकि यह एक भिन्न युग है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

पिछला: 1. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु अंतिम दिनों में लौट आया है और उसका एक नया नाम है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर। यह कैसे हो सकता है? बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है, "किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकें" (प्रेरितों 4:12)। "यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है" (इब्रानियों 13:8)। हम मानते हैं कि प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं बदल सकता है, और यह कि उनकी वापसी पर उन्हें किसी अन्य नाम से नहीं पुकारा जा सकता है।

अगला: 3. आप इस बात की गवाही देते हैं कि विभिन्न युगों में यहोवा, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ये सभी परमेश्वर के नाम हैं। मैं यह पूछना चाहता हूँ कि परमेश्वर अलग-अलग युगों में अलग-अलग नामों को क्यों अपनाता है? इसका क्या महत्व है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

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