2. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, और यह कि परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को करने के लिए वह सत्य को व्यक्त कर रहा है। फिर भी पादरियों और एल्डर्स का कहना है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं, और यह कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाइबल की सच्चाईयों में शामिल न किया गया हो। वे कहते हैं कि बाइबल के बाहर परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य नहीं हो सकता, और बाइबल के बाहर जो कुछ है, वह विधर्म है। हमें इस मुद्दे के साथ कैसे पेश आना चाहिए चाहिए?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)

"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12–13)

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, उस को मैं गुप्‍त मन्ना में से दूँगा, और उसे एक श्‍वेत पत्थर भी दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा" (प्रकाशितवाक्य 2:17)

"जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था, 'इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?' परन्तु न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य निकला। तब मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य कोई न मिला। इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, 'मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है'" (प्रकाशितवाक्य 5:1–5)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1)

यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। आज परमेश्वर देहधारी हो चुका है और उसने चीन में अन्य चयनित लोगों को छाँट लिया है। परमेश्वर इन लोगों में कार्य करता है, वह पृथ्वी पर अपना काम जारी रख रहा है, और अनुग्रह के युग के कार्य से आगे जारी रख रहा है। आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। इस प्रकार, जो कार्य पहले कभी नहीं किया गया, वह इतिहास नहीं है, क्योंकि अभी तो अभी है, और वह अभी अतीत नहीं बना है। लोग नहीं जानते कि परमेश्वर ने पृथ्वी पर और इस्राएल के बाहर पहले से बड़ा और नया काम किया है, जो पहले ही इस्राएल के दायरे के बाहर और नबियों के पूर्वकथनों के पार जा चुका है, वह भविष्यवाणियों के बाहर नया और अद्भुत, और इस्राएल के परे नवीनतर कार्य है, और ऐसा कार्य, जिसे लोग न तो समझ सकते हैं और न ही उसकी कल्पना कर सकते हैं। बाइबल ऐसे कार्य के सुस्पष्ट अभिलेखों को कैसे समाविष्ट कर सकती है? कौन आज के कार्य के प्रत्येक अंश को, बिना किसी चूक के, अग्रिम रूप से दर्ज कर सकता है? कौन इस अति पराक्रमी, अति बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य को, जो परंपरा के विरुद्ध जाता है, इस पुरानी घिसी-पिटी पुस्तक में दर्ज कर सकता है? आज का कार्य इतिहास नहीं है, और इसलिए, यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे। तुम्हें यह समझना चाहिए कि आज तुमसे बाइबल न पढ़ने के लिए क्यों कहा जा रहा है, क्यों एक अन्य कार्य है जो बाइबल से अलग है, क्यों परमेश्वर बाइबल में कोई अधिक नवीन और अधिक विस्तृत अभ्यास नहीं देखता, इसके बजाय बाइबल के बाहर अधिक पराक्रमी कार्य क्यों है। यही सब है, जो तुम लोगों को समझना चाहिए। तुम्हें पुराने और नए कार्य के बीच का अंतर जानना चाहिए, और भले ही तुम बाइबल को न पढ़ते हो, फिर भी तुम्हें उसकी आलोचना करने में सक्षम होना चाहिए; यदि नहीं, तो तुम अभी भी बाइबल की आराधना करोगे, और तुम्हारे लिए नए कार्य में प्रवेश करना और नए परिवर्तनों से गुज़रना कठिन होगा। जब एक उच्चतर मार्ग मौजूद है, तो फिर निम्न, पुराने मार्ग का अध्ययन क्यों करते हो? जब यहाँ अधिक नवीन कथन और अधिक नया कार्य उपलब्ध है, तो पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों के मध्य क्यों जीते हो? नए कथन तुम्हारा भरण-पोषण कर सकते हैं, जिससे साबित होता है कि यह नया कार्य है; पुराने अभिलेख तुम्हें तृप्त नहीं कर सकते, या तुम्हारी वर्तमान आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकते, जिससे साबित होता है कि वे इतिहास हैं, और यहाँ का और अभी का कार्य नहीं हैं। उच्चतम मार्ग ही नवीनतम कार्य है, और नए कार्य के साथ, भले ही अतीत का मार्ग कितना भी ऊँचा हो, वह अभी भी लोगों के चिंतनों का इतिहास है, और भले ही संदर्भ के रूप में उसका कितना भी महत्व हो, वह फिर भी एक पुराना मार्ग है। भले ही वह "पवित्र पुस्तक" में दर्ज किया गया हो, फिर भी पुराना मार्ग इतिहास है; भले ही "पवित्र पुस्तक" में नए मार्ग का कोई अभिलेख न हो, फिर भी नया मार्ग यहाँ का और अभी का है। यह मार्ग तुम्हें बचा सकता है, और यह मार्ग तुम्हें बदल सकता है, क्योंकि यह पवित्र आत्मा का कार्य है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1)

बाइबल एक ऐतिहासिक पुस्तक है, और यदि तुमने अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान को खाया और पीया होता—यदि तुम अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान के समय में जो अपेक्षित था, उसे व्यवहार में लाए होते—तो यीशु ने तुम्हें अस्वीकार कर दिया होता, और तुम्हारी निंदा की होती; यदि तुमने पुराने विधान को यीशु के कार्य में लागू किया होता, तो तुम एक फरीसी होते। यदि आज तुम पुराने और नए विधान को खाने और पीने के लिए एक-साथ रखोगे और अभ्यास करोगे, तो आज का परमेश्वर तुम्हारी निंदा करेगा; तुम पवित्र आत्मा के आज के कार्य में पिछड़ गए होगे! यदि तुम पुराने विधान और नए विधान को खाते और पीते हो, तो तुम पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हो! यीशु के समय में, यीशु ने अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार यहूदियों की और उन सबकी अगुआई की थी, जिन्होंने उस समय उसका अनुसरण किया था। उसने जो कुछ किया, उसमें उसने बाइबल को आधार नहीं बनाया, बल्कि वह अपने कार्य के अनुसार बोला; उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया कि बाइबल क्या कहती है, और न ही उसने अपने अनुयायियों की अगुआई करने के लिए बाइबल में कोई मार्ग ढूँढ़ा। ठीक अपना कार्य आरंभ करने के समय से ही उसने पश्चात्ताप के मार्ग को फैलाया—एक ऐसा मार्ग, जिसका पुराने विधान की भविष्यवाणियों में बिलकुल भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसने न केवल बाइबल के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि एक नए मार्ग की अगुआई भी की, और नया कार्य किया। उपदेश देते समय उसने कभी बाइबल का उल्लेख नहीं किया। व्यवस्था के युग के दौरान, बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने के उसके चमत्कार करने में कभी कोई सक्षम नहीं हो पाया था। इसी तरह उसका कार्य, उसकी शिक्षाएँ, उसका अधिकार और उसके वचनों का सामर्थ्य भी व्यवस्था के युग में किसी भी मनुष्य से परे था। यीशु ने मात्र अपना नया काम किया, और भले ही बहुत-से लोगों ने बाइबल का उपयोग करते हुए उसकी निंदा की—और यहाँ तक कि उसे सलीब पर चढ़ाने के लिए पुराने विधान का उपयोग किया—फिर भी उसका कार्य पुराने विधान से आगे निकल गया; यदि ऐसा न होता, तो लोग उसे सलीब पर क्यों चढ़ाते? क्या यह इसलिए नहीं था, क्योंकि पुराने विधान में उसकी शिक्षाओं, और बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की उसकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं कहा गया था? उसका कार्य एक नए मार्ग की अगुआई करने के लिए था, वह जानबूझकर बाइबल के विरुद्ध लड़ाई करने या जानबूझकर पुराने विधान को अनावश्यक बना देने के लिए नहीं था। वह केवल अपनी सेवकाई करने और उन लोगों के लिए नया कार्य लाने के लिए आया था, जो उसके लिए लालायित थे और उसे खोजते थे। वह पुराने विधान की व्याख्या करने या उसके कार्य का समर्थन करने के लिए नहीं आया था। उसका कार्य व्यवस्था के युग को विकसित होने देने के लिए नहीं था, क्योंकि उसके कार्य ने इस बात पर कोई विचार नहीं किया कि बाइबल उसका आधार थी या नहीं; यीशु केवल वह कार्य करने के लिए आया था, जो उसके लिए करना आवश्यक था। इसलिए, उसने पुराने विधान की भविष्यवाणियों की व्याख्या नहीं की, न ही उसने पुराने विधान के व्यवस्था के युग के वचनों के अनुसार कार्य किया। उसने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि पुराने विधान में क्या कहा गया है, उसने इस बात की परवाह नहीं की कि पुराना विधान उसके कार्य से सहमत है या नहीं, और उसने इस बात की परवाह नहीं की कि लोग उसके कार्य के बारे में क्या जानते हैं या कैसे उसकी निंदा करते हैं। वह बस वह कार्य करता रहा जो उसे करना चाहिए था, भले ही बहुत-से लोगों ने उसकी निंदा करने के लिए पुराने विधान के नबियों के पूर्वकथनों का उपयोग किया। लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो उसके कार्य का कोई आधार नहीं था, और उसमें बहुत-कुछ ऐसा था, जो पुराने विधान के अभिलेखों से मेल नहीं खाता था। क्या यह मनुष्य की ग़लती नहीं थी? क्या परमेश्वर के कार्य पर सिद्धांत लागू किए जाने आवश्यक हैं? और क्या परमेश्वर के कार्य का नबियों के पूर्वकथनों के अनुसार होना आवश्यक है? आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1)

उस समय, यीशु ने अनुग्रह के युग में अपने अनुयायियों को इन विषयों पर बस उपदेशों की एक श्रृंखला दी, जैसे कि कैसे अभ्यास करें, कैसे एक साथ इकट्ठा हों, प्रार्थना में कैसे याचना करें, दूसरों से कैसा व्यवहार करें इत्यादि। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और उसने केवल यह प्रतिपादित किया कि शिष्य और वे लोग जो उसका अनुसरण करते हैं, कैसे अभ्यास करें। उसने केवल अनुग्रह के युग का ही कार्य किया और अंत के दिनों का कोई कार्य नहीं किया। जब यहोवा ने व्यवस्था के युग में पुराने नियम निर्धारित किए, तब उसने अनुग्रह के युग का कार्य क्यों नहीं किया? उसने पहले से ही अनुग्रह के युग के कार्य को स्पष्ट क्यों नहीं किया? क्या यह मनुष्यों को इसे स्वीकार करने में मदद नहीं करता? उसने केवल यह भविष्यवाणी की कि एक नर शिशु जन्म लेगा और सामर्थ्य में आएगा, परन्तु उसने पहले से ही अनुग्रह के युग का कार्य नहीं किया। प्रत्येक युग में परमेश्वर के कार्य की स्पष्ट सीमाएँ हैं; वह केवल वर्तमान युग का कार्य करता है और कभी भी कार्य का आगामी चरण पहले से नहीं करता। केवल इस तरह से उसका प्रत्येक युग का प्रतिनिधि कार्य सामने लाया जा सकता है। यीशु ने केवल अंत के दिनों के चिह्नों के बारे में बात की, इस बारे में बात की कि किस प्रकार से धैर्यवान बनें, कैसे बचाए जाएँ, कैसे पश्चाताप करें, कैसे अपने पापों को स्वीकार करें, सलीब को कैसे धारण करें और कैसे पीड़ा सहन करें; उसने कभी इस पर कुछ नहीं कहा कि अंत के दिनों में मनुष्य को किस प्रकार प्रवेश हासिल करना चाहिए या उसे परमेश्वर की इच्छा को किस प्रकार से संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए। वैसे, क्या अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को बाइबल के अंदर खोजना हास्यास्पद नहीं है? महज़ बाइबल को हाथों में पकड़कर तुम क्या देख सकते हो? चाहे बाइबल का व्याख्याता हो या उपदेशक, आज के कार्य को कौन पहले से देख सकता था?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?

बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? अतीत की चीज़ों को आज सामने लाना उन्हें इतिहास बना देता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे हैं तो इतिहास ही—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता, क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास नहीं देखता! तो यदि तुम केवल बाइबल को समझते हो और परमेश्वर आज जो कार्य करना चाहता है, उसके बारे में कुछ नहीं समझते और यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, किन्तु पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते, तो तुम्हें पता ही नहीं कि परमेश्वर को खोजने का क्या अर्थ है। यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने के लिए, परमेश्वर द्वारा समस्त लोकों और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल पढ़ते हो, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो और मृत पत्रों और सिद्धांतों या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजना चाहिए और पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा की तलाश करनी चाहिए। यदि तुम पुरातत्ववेत्ता होते तो तुम बाइबल पढ़ सकते थे—लेकिन तुम नहीं हो, तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अच्छा होगा तुम परमेश्वर की आज की इच्छा की खोज करो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4)

मैं जिसे यहाँ समझा रहा हूँ वह तथ्य यह है: परमेश्वर जो है और उसके पास जो है, वह सदैव अक्षय और असीम है। परमेश्वर जीवन का और सभी वस्तुओं का स्रोत है। परमेश्वर की थाह किसी भी रचित जीव के द्वारा नहीं पाई जा सकती। अन्त में, मुझे अभी भी सब को याद दिलाना होगा: पुस्तकों, वचनों या उनकी अतीत की उक्तियों में परमेश्वर को सीमांकित न करो। परमेश्वर के कार्य की विशेषता के लिए केवल एक ही शब्द है—नवीन। वह पुराने रास्ते लेना या अपने कार्य को दोहराना पसंद नहीं करता, और इसके अलावा, वह नहीं चाहता कि लोग उसे एक निश्चित दायरे के भीतर सीमांकित करके उसकी आराधना करें। यह परमेश्वर का स्वभाव है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अंतभाषण

पिछला: 1. बाइबल प्रभु के प्रति गवाही है, और यह हमारी आस्था का आधार भी है। दो हज़ार वर्षों से, जिन लोगों ने भी प्रभु में विश्वास किया है, उन्होंने बाइबल के अनुसार ऐसा किया है। इसलिए हम मानते हैं कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है, कि प्रभु पर विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है, और बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। हम कभी भी बाइबल से हट नहीं सकते। अगर हम बाइबल से हट जाते तो हम प्रभु पर विश्वास कैसे कर सकते थे? क्या आप कह रहे हैं कि हमारे समझने में कोई भूल है?

अगला: 3. पौलुस के शब्दों के आधार पर, जिसने कहा था कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), धार्मिक दुनिया के पादरियों और एल्डर्स का मानना है कि बाइबल के शब्द परमेश्वर के वचन हैं। फिर भी आप कहते हैं कि बाइबल के सभी शब्द परमेश्वर के वचन नहीं हैं। इससे आपका तात्पर्य क्या है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें