92. दुखदायी फैसले

एलीना, स्पेन

1999 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारा, और जल्दी ही मुझे कलीसिया-अगुआ चुन लिया गया। साल 2000 के दिसंबर महीने में, एक दिन दोपहर में, मैं अपने दोनों बच्चों के साथ खाना खा रही थी, जब अचानक पाँच अफ़सर ज़बरदस्ती घर में घुस आए और बिना किसी वारंट के घर की तलाशी लेने लगे। तब मेरा बेटा बस छह साल का था और मेरे दोनों बच्चों ने डर के मारे मेरे कपड़ों को कस कर पकड़ रखा था, उनके हाथ काँप रहे थे। अंत में, उन लोगों को घर में बाइबल और मेरी लिखी हुई धार्मिक कार्यों की किताब मिल गई। वे मुझे खींच कर पुलिस कार में जबर्दस्ती बैठाने लगे। बच्चे चीख-चीख कर रोने लगे, “मम्मी! मत जाओ!” उस पल, अचानक मेरी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे, क्योंकि मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मैं वापस आकर दोबारा उन्हें कभी देख पाऊँगी भी या नहीं। मेरा दिल दुख में डूब गया। इसके बाद, वो लोग मुझे पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो के पूछताछ वाले कमरे में लेकर गए, जहाँ उन्होंने मुझे एक मेटल की कुर्सी से बाँध दिया। कई लोग मेरी ओर गुस्से से देख रहे थे। मैं बहुत डरी हुई थी, तब मैं निरंतर परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, उससे मुझे आस्था देने को कहा। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मुझे भरोसा मिला, यह सोचकर कि परमेश्वर मेरा सहारा है, मेरा डर काफी कम हो गया। चाहे पुलिसवाले कितने भी निर्दयी हों, वे परमेश्वर के हाथों में थे, वो लोग मुझे कैसी भी यातना दें, मैं यहूदा नहीं बनूंगी और परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी। मैंने जान देकर परमेश्वर के लिए गवाही देने की कसम खाई!

उनमें से एक अफ़सर मुझसे पूछताछ करने लगा : “तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के लिए किसने कहा? तुम्हारा अगुआ कौन है? कलीसिया का पैसा कहाँ रखा है?” मैंने कहा, “मैं कुछ नहीं जानती।” नेशनल सिक्योरिटी ब्रिगेड के डायरेक्टर ने कहा, “आज हमने तुम्हारा घर ढूँढा है क्योंकि हमारे पास तुम्हारी आस्था का सबूत पहले से मौजूद था। तुम एक शब्द भी ना कहो, तब भी हम तुम्हें अपराधी साबित कर सकते हैं। लेकिन अगर तुम हमें सारी जानकारी दे दोगी, तो हम तुम्हें अभी घर जाने देंगे।” मैंने एक शब्द नहीं कहा। इस पर उसने कहा, “तुम्हारे बच्चे बहुत छोटे हैं—अगर उनका ध्यान रखने के लिए उनकी माँ नहीं होगी, तो कितना बुरा होगा। अगर उनके टीचरों और सहपाठियों को पता चला कि उनकी माँ जेल में है, तो सब उन्हें ताने देंगे और उनका मज़ाक उड़ाएँगे। क्या ये सब उनकी मानसिक स्थिति के लिए ठीक होगा? क्या तुम इसके लिए तैयार हो? तुम अपनी आस्था के लिए अपने बच्चों को अनदेखा नहीं करोगी, है ना?” उसकी बात सुनकर तुरंत मेरे मन में मेरी गिरफ्तारी के समय का बच्चों का डरा हुआ चेहरा आ गया और तुरंत परेशान हो गई। आज जो भी हुआ, उससे मेरे बच्चों को चोट पहुँची होगी और इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा! अगर मुझे जेल हो गई, तो उनका ध्यान कौन रखेगा? खासकर मेरा बेटा, जो आम तौर पर बीमार पड़ता रहता है, वो मेरी देखभाल बिना कैसे रहेगा? जब टीचर और क्लास के बच्चे उनके साथ पक्षपात करेंगे, उनका मज़ाक उड़ाएँगे, तो क्या वे यह सब सह पाएंगे? ये सब सोचकर मेरी आँखों से लगातार आँसू बहने लगे और मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी : “परमेश्वर! मुझे अपने बच्चों की चिंता हो रही है, मैं अपनी बर्बादी देख पा रही हूँ। कृपा करके मेरी रक्षा करो, ताकि मैं शांत रह सकूँ, तुम पर भरोसा कर सकूँ, और तुम्हारे लिए गवाही दे सकूँ।” फिर मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो? तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप करते रहते हो! क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। परमेश्वर के वचनों ने फ़ौरन मेरे दिल को रोशन कर दिया। परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, सबकी किस्मत का स्वामित्व और अधिकार उसके पास है। मेरे बच्चों के साथ भविष्य में क्या होगा, ये उसके हाथों में है, इसलिए मेरी चिंता व्यर्थ है। मुझे परमेश्वर में आस्था रखकर, अपने बच्चों को उसके हाथों में देना होगा। यह सोचकर, मैं शांत हो गई और उनके बारे में चिंता करना बंद कर दिया। मैं जानती थी पुलिस बच्चों के सहारे मुझसे कलीसिया को धोखा दिलवाना चाहती है। उन लोगों ने ग़ैरकानूनी तरीके से गिरफ़्तार किया और मेरे सामान्य पारिवारिक जीवन को तहस-नहस कर दिया, और अब वे कह रहे थे कि यह मेरी आस्था थी जो मुझे बच्चों की देखभाल नहीं करने दे रही थी। क्या यह तथ्यों को मरोड़ना और काले को सफ़ेद बनाना नहीं है? मन में यह सवाल आते ही मैंने उनसे पूछा, “क्या ये सब मेरी आस्था की वजह से हो रहा है, या इसलिए कि तुम लोगों ने मुझे यहाँ बंद कर रखा है? परमेश्वर के विश्वासी परमेश्वर के वचन पढ़ते औरअच्छे इंसान बनने की कोशिश करते हैं, वे कोई भी गैरकानूनी काम नहीं करते। तो तुम लोग निरंतर विश्वासियों को गिरफ़्तार क्यों कर रहे हो?” मेरे ऐसा कहते ही वो लोग क्रूरता से मुझ पर हँसने लगे और एक अफ़सर ने कहा, “कितनी नासमझ हो तुम। अगर सभी परमेश्वर में विश्वास करने लगेंगे, तो सीसीपी की कौन सुनेगा? पार्टी किस पर हुकुम चलाएगी? इसलिए हम तुम लोगों को विश्वासी नहीं बनने दे सकते, अगर ऐसा किया तो गिरफ़्तार होना ही पड़ेगा!” मुझे बहुत गुस्सा आ गया और इससे मुझे परमेश्वर की यह बात याद आ गई : “इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों से, मैं सीसीपी के सार को समझ सकी। वो लोग दुष्ट और स्वर्ग की सत्ता के खिलाफ़ हैं। परमेश्वर ने सभी चीज़ों का निर्माण किया, यह मानवजाति बनाई, वो परमेश्वर ही है जो पूरी मानवजाति का पालन-पोषण करते हुए सबको संभाल रहा है। परमेश्वर की आराधना करना स्वर्ग द्वारा नियत है और धरती द्वारा अभिस्वीकृत है, मगर कम्युनिस्ट पार्टी लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने और उसका अनुसरण करने से रोकती है, लोगों को गुमराह करने के लिए नास्तिकता और विकासवाद का प्रचार करती है। वे तो बेशर्मों की तरह ये भी कहते हैं, “इस दुनिया में कोई परमेश्वर नहीं है,” और “लोगों को सारी खुशियाँ पार्टी से मिलती हैं।” वो चाहते हैं कि लोग उनके आभारी रहें, उनकी बातें सुनें और उनका पालन करें। सीसीपी बेहद दुष्ट और नीच है! अंत के दिनों में, परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए खुद धरती पर आया, उसने लाखों वचन व्यक्त किए। सीसीपी को सबसे ज्यादा इस बात का डर है कि लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ेंगे और सत्य जान जाएंगे, वे पार्टी का असली चेहरा देख लेंगे, और उसके काबू से निकलकर परमेश्वर की ओर मुड़ जाएँगे। यही वजह है कि सीसीपी ईसाइयों को गिरफ़्तार करने के लिए जो बन पड़े वो कर रही है, घमंड में आकर परमेश्वर के कार्य को दबाने और इंसानों पर हमेशा के लिए राज करने की उम्मीद करती है। उनके अत्याचार को निजी तौर पर अनुभव करके, मैंने उनके सत्य से नफ़रत करने वाले और परमेश्वर से शत्रुता रखने वाले राक्षसी सार को पहचान लिया और दिल की गहराइयों से इन परमेश्वर के विरोध करने वाले राक्षसों के दुष्ट झुंड से नफ़रत करने लगी। फिर चाहे मुझे कितनी भी तकलीफ़ों का सामना क्यों ना करना पड़े, मैंने दृढ़ता से परमेश्वर का अनुसरण करके उसके लिए गवाही देने का संकल्प कर लिया।

बाद में, मेरे पति ने किसी को पैसे देकर मुझे जमानत पर छुड़वा लिया। जिस दिन मुझे छोड़ा गया, एक अफ़सर ने कहा, “तुम्हारे मौजूदा बर्ताव को देखकर तो यही लगता है कि तुम बेशक अब भी विश्वासी बनी रहोगी। वैसे हमारी नज़र तुम पर रहेगी, अगर हमने तुम्हें कहीं भी सभा करते या सुसमाचार का प्रचार करते देख लिया, तो तुम्हें दोबारा गिरफ़्तार कर लेंगे!” अपना विश्वास बनाए रखने और सामान्य तौर पर अपना कर्तव्य निभाते रहने के लिए, मुझे अपनी जगह बदलते रहने पर मजबूर होना पड़ा। उन दिनों मेरे पति एक टाउनशिप के डिप्टी हेड थे, मेरी आस्था के लिए मुझे गिरफ़्तार किये जाने के कारण उनके प्रमोशन के सारे रास्ते बंद हो गये। फिर अप्रैल 2007 में, एक शाम मेरे पति घर आए और कहने लगे, “जल्द ही शहर में कुछ कैडरों का प्रमोशन किया जाएगा। तुम्हारी आस्था के चक्कर में, इससे पहले कई बार जब मुझे मौके मिले, तो मैं राजनीतिक पृष्ठभूमि की जाँच में पास नहीं हो पाया था। मैंने अपने लीडर से कहा है, इस बार मैं फ़ील्ड का हिस्सा बनना चाहता हूँ, उनका कहना था कि अगर तुम अपनी आस्था का त्याग नहीं करोगी, तो वे मेरी सिफ़ारिश नहीं करेंगे।” उन्होंने मुझसे ये भी कहा, “तुम्हें हम सबके लिए अपनी आस्था त्यागनी होगी, ताकि हमें अच्छा जीवन मिल सके और हम अपने बच्चों को एक स्थायी घर दे सकें। अगर तुम अपनी आस्था पर अड़ी रही, तो हमें तलाक लेना होगा। मैं अब इन पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इस बारे में जरा सोचो!” उनके मुँह से ये सब सुनकर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। हमारा तलाक हुआ तो, हमारे बच्चों को कितनी तकलीफ होगी! वो हमेशा मेरा बहुत ख़याल रखते थे, और हमारे बच्चे हमारी सारी बातें मानते थे। उनके पास नौकरी थी, मैं अपना कारोबार कर रही थी, हमारा जीवन बहुत खुशहाल हुआ करता था। चीनी सरकार के अत्याचार के कारण हमारा खूबसूरत परिवार बिखरने लगा था। इस बारे में सोचकर, लगने लगा जैसे मेरे दिल के दो टुकड़े किये जा रहे हों। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती, लेकिन मैं अपने पति और बच्चों को भी नहीं छोड़ सकती। मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ। कृपया मुझे प्रबुद्ध करो, ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकूँ।” फिर, मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “एक विश्वास करने वाले पति और विश्वास न करने वाली पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वास करने वाले बच्चों और विश्वास न करने वाले माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश से पहले एक व्यक्ति के रक्त-संबंधी होते हैं, किंतु एक बार जब उसने विश्राम में प्रवेश कर लिया, तो उसके कोई रक्त-संबंधी नहीं होंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मैं समझ गई कि आस्थावान लोग और आस्था से रहित लोग, दो अलग-अलग प्रकार हैं। जीवन और मूल्यों को लेकर दोनों का नज़रिया अलग-अलग है। मैं आस्था और सत्य के अनुसरण के सही मार्ग पर चल रही थी। मेरे पति आधिकारिक करियर की राह पर चल रहे थे, उन्नति करके पैसे कमाने के मार्ग पर चल रहे थे। प्रमोशन पाने के लिए तलाक का रास्ता चुनकर, वे हमारे सालों के रिश्ते और बच्चों की भावनाओं को दांव पर लगाने के लिए तैयार थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके लिए उनका रुतबा और भविष्य मुझसे और हमारे बच्चों से ज़्यादा ज़रूरी हो गया था। भले ही उनका कहना था कि वो बच्चों को एक स्थायी घर और ख़ुशहाल जिंदगी देना चाहते हैं, मगर ये बस एक छलावा था। पहले, वो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते थे क्योंकि मैं उनके निजी हितों पर असर नहीं डाल रही थी। लेकिन अब, मेरी आस्था और गिरफ़्तारी से उनके आधिकारिक करियर पर असर पड़ रहा था, मैं यह उनके प्रमोशन और पैसे कमाने के रास्ते में रुकावट बन गई थी, इसलिए वो तलाक लेना चाहते थे। इस बारे में सोचा तो मुझे यह बहुत निर्दयी लगा। मुझे एहसास हुआ कि इंसानों के बीच असली प्रेम जैसी कोई चीज़ नहीं है, सब कुछ बस धोखा और एक-दूसरे का फायदा उठाने की कोशिश है। मेरे पति भी अच्छे से जानते थे कि कम्युनिस्ट पार्टी एक दुष्ट पार्टी है, लेकिन फिर भी वो उनकी तरफ़दारी करते रहे, मुझसे मेरी आस्था त्यागने को कहते रहे, मुझ पर तलाक का दबाव भी बनाया। हमारा नज़रिया बिलकुल अलग था और हम अलग-अलग मार्ग पर चल रहे थे, इसलिए हम साथ रहने के बावजूद कभी खुश नहीं रह पाते। इसका एहसास होते ही मैं समझ गई कि मुझे क्या करना है।

अगली सुबह हम अपने तलाक की कागज़ी कार्यवाही के लिए सिविल अफेयर्स ब्यूरो गए, रास्ते में उन्होंने मुझसे कहा, “तुम जानती हो, मैं तलाक नहीं लेना चाहता, लेकिन मेरे पास कोई और चारा भी नहीं है। अपना ध्यान रखना।” उन्हें ये कहते सुनकर अचानक मेरा गला भर आया। मैं उन सभी मुश्किलों और तानों के बारे में सोच रही थी जो मुझे तलाक लेने के बाद सहने पड़ेंगे और मैं बहुत दुखी हो गई। मैंने फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे कहा कि वो मेरे मन को शक्ति दे। फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि चाहे किसी को धरती पर कितना भी अच्छा जीवन मिले, चाहे लोग उनसे कितनी भी नफ़रत करें या कितनी भी प्रशंसा करें, इन सबका कोई मतलब नहीं है। सिर्फ़ सत्य का अनुसरण करके और सृजित इंसान का कर्तव्य निभाकर ही परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती है। यही ईमानदारी और आत्मसम्मान भरा जीवन है, और सबसे सार्थक और अनमोल है। ये सोचकर मेरे मन का बोझ हल्का हो गया और मैंने तलाक की कार्यवाही बिना किसी आशंका के अच्छे से पूरी की।

मई 2011 में एक सभा के दौरान, मुझे दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया। वो वही दस साल पहले वाले अफ़सर थे। उन्होंने मेरी आईडीई ढूँढकर मुझे बुलाया और कहने लगे, “इन दस सालों में हम अनेकों बार तुम्हारे घर गये, मगर तुम हमें वहाँ नहीं मिली, मगर अब हमारे हाथ वाकई सोना लग गया है। इस बार हम तुम्हें जाने नहीं देंगे!” यह कहते-कहते, उन्होंने मुझे हथकड़ियाँ पहनाकर पुलिस वाली गाड़ी में डाल दिया। गाड़ी में मैं उन तीन बहनों के बारे में सोचने लगी जिन्हें पहले गिरफ्तार किया गया था, पुलिसवालों ने उन पर करीब एक महीने तक क्रूर यातनाएं दीं। उनमें से एक बहन का बायां हाथ हमेशा के लिए बेकार हो गया था क्योंकि उन्हें काफी समय तक लटकाकर रखा गया था। ये सब सोचकर मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। मुझे डर था कि वो लोग मुझे पीट-पीटकर अपंग बना देंगे या मार डालेंगे। मैंने फ़ौरन मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर! कृपा करके इस परिवेश में मेरी रक्षा करो और मेरा मार्गदर्शन करो। भले ही मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाए, मैं कभी यहूदा नहीं बनूँगी।” प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया : “तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और मेरे द्वारा तुम्हें दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। यह सच था। मेरी जिंदगी और मेरी मौत, दोनों परमेश्वर के हाथों में है, वे लोग परमेश्वर की अनुमति के बिना मुझसे मेरी जिंदगी नहीं छीन सकते। मैंने उस पल को याद किया जब अय्यूब अपनी परीक्षा दे रहा था। परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब के जीवन को नुकसान नहीं पहुँचाने दिया और शैतान परमेश्वर की बात काटने में अक्षम रहा। इससे मेरे मन को थोड़ी शांति मिली और मुझे आने वाली मुश्किलों का सामना करने की हिम्मत मिली।

बाद में, नेशनल सिक्योरिटी ब्रिगेड के प्रमुख ने मुझसे पूछताछ की। उसने कहा, “यह अब हमारे शहर के लिए बड़ा गंभीर मामला बन चुका है। तुम्हें दस सालन पहले गिरफ्तार किया गया था, और फिर 2009 में किसी ने सूचना दी कि तुम दोबारा सुसमाचार का प्रचार कर रही हो। हम तुम्हें गिरफ़्तार करने में कितनी बार नाकाम हुए। इस बार, हमने तुम्हें सभा में रंगे हाथों पकड़ लिया, इसलिए अगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला, तो भी हम तुम्हें सात से दस साल के लिए तो अंदर करवा ही देंगे। एक बार तुम्हें जेल हो गई, तो फिर तुम्हारे दोनों बच्चों को कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा और उन्हें कभी सिविल सेवा की नौकरी भी नहीं मिलेगी। हर कोई उनके साथ पक्षपात करेगा क्योंकि उन्हें तुम्हारी जैसी माँ मिली है। उनके भविष्य की बर्बादी का कारण तुम होगी। वो जिंदगी भर तुमसे नफ़रत करेंगे! अपना नहीं, तो कम-से-कम अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचो। अगर तुम हमारी बात मानकर हमें अपने अगुआ का नाम बता दोगी और कलीसिया का सारा पैसा हमें दे दोगी, तो हम तुम्हें जाने देंगे।” उसे ऐसा कहते सुनकर मुझे उससे घिन आने लगी। यह कम्युनिस्ट पार्टी है जो ईसाइयों पर अत्याचार करने के लिए कुछ भी करती है—यहाँ तक उसने मेरे बच्चों के भविष्य का नाम लेकर मुझे धमकाया और मुझे कलीसिया को धोखा देने और परमेश्वर से गद्दारी पर मजबूर करने की कोशिश की, और कहा कि मेरी आस्था के कारण उनका भविष्य खराब हो रहा है। यह पूरी तरह तथ्यों को मरोड़ना है!

उस दिन उन लोगों ने मुझसे सुबह के दो बजे तक निरंतर पूछताछ की। जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ नहीं बोलूंगी तो मुझे हिरासत गृह भेज दिया। एक अधिकारी ने कहा, “इस बार तुम्हें जेल की सज़ा मिलेगी!” वहाँ की कोठरी में चारों तरफ़ अँधेरा और नमी थी। मेरा गठिया और दिल की बीमारी बद-से-बदतर होती जा रहे थे, मेरा एक-एक जोड़ दुख रहा था। हर रात दो घंटे मुझे पहरा देना होता था, और कुछ देर खड़े रहने के बाद मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती और छाती में अकड़न होने लगती। वो अनुभव भयानक था। मैंने उस अफ़सर के बारे में सोचा जिसने कहा था कि मुझे सात से दस साल तक की जेल होगी और हिसाब लगाने लगी, सात सालों में और फिर दस सालों में कितने दिन होते हैं। इसमें तो हज़ारों दिन-रात निकल जाएंगे। मैं इसे कैसे झेलूंगी? क्या मैं यहाँ से निकलने के लिए ज़िंदा भी बचूँगी? ये सब सोचकर, मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाई और अपने दिल पर अँधकार का साया मंडराता महसूस करने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरी हालत ठीक नहीं है, इसलिए मैं फ़ौरन परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी कि वो मेरे दिल की रक्षा करे और इस माहौल को झेलने की आस्था दे। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “इस विशाल संसार में, कौन मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से जाँचा गया है? किसने मेरे आत्मा के वचन व्यक्तिगत रूप से सुने हैं? बहुत सारे लोग अँधेरे में इधर-उधर टटोलते और खोजबीन करते हैं; बहुत सारे विपत्ति के बीच प्रार्थना करते हैं; बहुत सारे भूखे और ठण्डे, आशा से देखते हैं; और बहुत सारे शैतान द्वारा जकड़े हुए हैं; फिर भी बहुत सारे नहीं जानते हैं कि कहाँ जाएँ, बहुत सारे अपनी प्रसन्नता के बीच मुझे धोखा देते हैं, बहुत सारे कृतघ्न हैं, और बहुत सारे शैतान के कपटपूर्ण कुचक्रों के प्रति निष्ठावान हैं। तुम लोगों के बीच अय्यूब कौन है? पतरस कौन है? मैंने बार-बार अय्यूब का उल्लेख क्यों किया है? मैंने इतनी अधिक बार पतरस का उल्लेख क्यों किया है? क्या तुम लोगों ने कभी सुनिश्चित किया है कि तुम लोगों के लिए मेरी आशाएँ क्या हैं? तुम लोगों को ऐसी बातों पर विचार करते हुए अधिक समय बिताना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 8)। परमेश्वर के वचनों पर विचार के बाद, मैं समझ गई कि परमेश्वर पतरस और अय्यूब को इसलिए स्वीकार करता है क्योंकि वे सच में विश्वास और समर्पण करते थे। अय्यूब परीक्षणों से गुज़रा, उसने अपने पैसे और बच्चे खो दिए, उसका शरीर फोड़ों से भर गया, इसके बावजूद उसने परमेश्वर का गुणगान करते हुए कहा, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21), जिससे शैतान शर्मिंदा हुआ। वहीं पतरस को परमेश्वर के लिए सूली पर उलटा लटका दिया गया, मौत तक वह आज्ञाकारी बना रहा और जबर्दस्त गवाही दी। जहाँ तक मेरी बात है, मैंने परमेश्वर के वचनों से मिलने वाले पोषण का बहुत लाभ उठाया, लेकिन ज़रा सी तकलीफ़ का सामना होते ही इससे दूर भाग जाना चाहती थी। मेरी आस्था कहाँ थी? मेरी आज्ञाकारिता कहाँ थी? मैं परमेश्वर की अपेक्षा से काफ़ी दूर थी। मैं अपनी जिंदगी से इस कदर चिपकी हुई थी, फिर परमेश्वर के लिए गवाही कैसे दे सकती थी? मुझे बहुत पछतावा होने लगा और मैं खुद को दोषी समझने लगी इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर! मैं खुद को तुम्हारे हवाले करना चाहती हूँ। चाहे मुझे कितने साल की भी जेल हो जाए या कितना भी अत्याचार सहना पड़े, फिर भी, मैं तुम्हारे लिए गवाही देना और शैतान को नीचा दिखाना चाहती हूँ।” हैरानी की बात है कि जैसे ही मैं खुद को परमेश्वर के प्रति समर्पित करके गवाही देने को तैयार हुई, मुझे रिहा कर दिया गया। बाद में, मुझे पता चला कि मेरे पूर्व पति ने किसी को रिश्वत देकर मुझे आज़ाद करवा लिया, क्योंकि उन्हें यह डर था कि मेरे जेल जाने से हमारे बच्चों को यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिलेगा।

मेरे हिरासत गृह से रिहा होने के दिन मेरे पूर्व पति मुझसे वहाँ मिलने आए। उन्होंने देखा कि वजन कम हो जाने के कारण मैं कितनी अलग दिख रही थी, उन्होंने मुझसे पूछा, “तुम एक महीने में ही कितनी पतली हो गई हो, कई सालों तक जेल में रहना तो तुम्हारे लिए नामुमकिन होता। इस बार तुम विश्वास करना छोड़ दोगी, है ना?” जब मैंने उनके सवाल का जवाब नहीं दिया, तो वे मुझ पर दबाव बनाने लगे : “बोलो, क्या अब विश्वास करना छोड़ दोगी?” मैंने उन्हें एकदम शांत मन से कहा, “मैं अपना विश्वास नहीं त्याग सकती! आस्था रखना स्वर्ग द्वारा तय किया गया और धरती द्वारा अभिस्वीकृत है, जब तक मैं जिंदा हूँ, विश्वासी बनी रहूँगी।” मेरी बात सुनकर, उन्होंने गुस्से से स्टीयरिंग व्हील पर जोर से हाथ मारा, आह भरी और अपना सिर हिलाते हुए, मुझ पर चिल्ला उठे, “मैं तुम्हारे परमेश्वर के बारे में एक बात ज़रूर कहूँगा! पार्टी लोगों का दिल जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है, मगर ऐसा नहीं कर पाती, जबकि तुम विश्वासी बिना किसी फायदे के और कई बार गिरफ़्तार होने के बावजूद विश्वास करने पर अड़े रहते हो। कुछ बात तो है तुम्हारे परमेश्वर में!” मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि उसने मुझे अपने लिए गवाही देने का रास्ता दिखाया।

घर आने के कुछ दिनों बाद मेरा बेटा स्कूल से घर वापस आया, और दृढ़ता से मुझसे कहा, “मम्मी, आज आपको फैसला करना ही होगा। अगर आप मुझे अपना बेटा मानती हैं, तो आपको अपनी आस्था त्यागनी होगी। अगर आप अपने धर्म पर अड़ी रहीं, तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊँगा और फिर आप मुझे कभी नहीं देख पाएंगीं।” मैं चौंक गई। मेरा बेटा हमेशा से मेरे दिल के बहुत करीब था, उसने पहले कभी मेरी आस्था का विरोध भी नहीं किया था। उसने आज ऐसा क्यों कहा? मुझे बहुत तकलीफ़ हुई और मुझे एहसास हुआ कि आस्था का यह मार्ग वाकई कठिनाइयों और उतार-चढ़ाव से भरा है। हर कदम पर एक फैसला लेना पड़ता है। मेरे लिए यह फैसला लेना बहुत मुश्किल था, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे रह दिखाने को कहाताकि मैं उसकी इच्छा को समझ सकूँ। प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के अंश को याद किया : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का विघ्न था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि भले ही ऐसा लग रहा था जैसे मेरा बेटा मुझसे फैसला लेने के लिए कह रहा हो, लेकिन असल में शैतान मुझे परखते हुए मुझ पर वार कर रहा था, वह देखना चाहता था कि मैं अपने बेटे के पारिवारिक रिश्ते को चुनूँगी या परमेश्वर को। मुझे गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाना ही था। इस पर सोचते हुए, मैंने अपने बेटे से कहा, “मैं परमेश्वर से अलग नहीं हो सकती। परमेश्वर को छोड़ने का फैसला करना वैसा ही होगा जैसे आज तुम मुझे छोड़ने का फैसला कर रहे हो। ऐसा करना मतलब ज़मीर का न होना और इससे परमेश्वर को निराशा होगी। मैं हमेशा परमेश्वर का अनुसरण करूँगी। यही मेरा फैसला है!” मुझे ऐसा कहते सुनकर, वो रोते हुए वहाँ से चला गया। उस वक्त मेरा भी दिल टूट गया था, मगर मैं जानती थी कि मैंने सही फैसला लिया है!

करीब आधे घंटे बाद, वह वापस आया और मुझसे कहने लगा, “मम्मी, मैं गलत था। मुझे तुम्हें ऐसा फैसला करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए था। मेरे पापा ने कहा था कि अगर आप फिर से गिरफ़्तार हो गईं, तो कभी बाहर नहीं आ पाएँगी और मुझे डर था कि आप गिरफ्तार हो जाएंगी, इसलिए मैं तरकीब का इस्तेमाल करके आपसे आपकी आस्था त्यागने को मजबूर करना चाहता था।” उसकी यह बात सुनकर मेरा मन परमेश्वर विरोधी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति घृणा से भर गया। परमेश्वर में मेरे विश्वास के कारण, सीसीपी ने मुझे गिरफ़्तार करके यातना दी, मेरे परिवार को तोड़ दिया, मेरे पति और बच्चों को भी इसमें खींच लिया। वह जितना मुझे यातना देगी, उतना ही मैं उसका त्याग करूँगी और दृढ़ता से परमेश्वर का अनुसरण करूँगी!

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