28. क्या प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने से जीवन खुशहाल होता है?
1998 में जिस कंपनी में मैं और मेरी पत्नी काम करते थे, वह दिवालिया हो गई और हम दोनों की नौकरी चली गई। उस दौरान हमारे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। मेरी माँ बीमार थी और उसका इलाज चल रहा था और हमें अपने बच्चे के स्कूल की फीस भी देनी थी। मैंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेने की कोशिश की लेकिन कोई भी पैसे देने को तैयार नहीं था। मैंने देखा कि लोग एक-दूसरे के प्रति कितने उदासीन हो सकते हैं। मैंने मन में सोचा, “मुझे और पैसे कमाने चाहिए और खुद को लायक बनाना चाहिए ताकि फिर कोई मुझे नीची नजर से न देखे!” उसके बाद मैंने सूअर पालन शुरू किया और कुछ लोगों के साथ मिलकर एक कंपनी खोली। लेकिन इस सब में विफलता मिली और मैं बहुत सारे कर्ज में डूब गया। बाद में किसी ने मुझे एक लॉजिस्टिक्स कंपनी में अकाउंटेंट के बतौर काम करने की सलाह दी। मुझे यह नौकरी बहुत पसंद थी क्योंकि यह देश की सबसे प्रभावशाली कंपनियों में से एक थी और मुझे लगा कि अगर मैं कड़ी मेहनत करता रहा तो यहाँ आगे बढ़ने के लिए बहुत गुंजाइश है। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए मैं अक्सर ओवरटाइम करता था। मेरा बॉस मेरे बारे में अच्छा सोचता था और उसने मुझे कंपनी के कुछ सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय कार्य सौंपने शुरू कर दिए। मैंने हर काम को कर्तव्यनिष्ठा से सँभाला, मुझे जो भी काम दिया जाता था, मैं उसे मेहनत और जिम्मेदारी से करता था जिस कारण मेरा बॉस निश्चिंत रहता था। मेरा बॉस वास्तव में मुझसे बहुत खुश था, इसलिए धीरे-धीरे मेरी पदोन्नति होती रही, मैं अकाउंटेंट की भूमिका से डिपार्टमेंट मैनेजर की भूमिका में आ गया और इसी के साथ मेरी जिम्मेदारियों का दायरा भी बढ़ता गया। वे रिश्तेदार, दोस्त और सहकर्मी जो कभी मुझे नीची नजर से देखते थे, अब मेरी चापलूसी करने लगे। मैं वास्तव में बहुत खुश था और सोचता था कि आखिरकार मेरे पास अपने जीवन में उद्यम करने के लिए कुछ है। हालाँकि जब मैंने इस बारे में सोचा था तब मैं सिर्फ एक डिपार्टमेंट मैनेजर था, मुझे लगा कि अगर मुझे और पदोन्नति मिल जाए, तो न केवल मेरी आय बढ़ जाएगी बल्कि मेरी प्रतिष्ठा भी बढ़ती जाएगी और तब मैं वास्तव में सफल हो जाऊँगा और प्रसिद्धि और लाभ दोनों अर्जित करूँगा।
कुछ समय बाद एक रिश्तेदार ने मुझे अंत के दिनों के परमेश्वर के सुसमाचार का उपदेश दिया। कुछ समय तक सभाओं में जाने के बाद मुझे समझ आया कि परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में व्यक्त किए गए सत्य मानवता को बचाने के लिए हैं और अगर कोई सत्य का अनुसरण करता है और उसका स्वभाव बदल जाता है, तो वह बड़ी आपदाओं के दौरान परमेश्वर द्वारा संरक्षित हो सकता है और एक सुंदर गंतव्य में प्रवेश कर सकता है। तब से अपने दैनिक कार्य के साथ-साथ मैं भाई-बहनों के साथ सभाओं में भाग लेता, परमेश्वर के वचनों को खाता-पीता और परमेश्वर की स्तुति के भजन गाता। इसके तुरंत बाद मैंने अपना कर्तव्य करना शुरू कर दिया। पहले मेरा कर्तव्य मेरी नौकरी के आड़े नहीं आता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं कर्तव्य में व्यस्त होता गया और मुझे कभी-कभी लगातार कई दिनों की छुट्टी लेनी पड़ती। मैं चिंतित रहने लगा, मुझे आशंका होने लगी कि मेरा कर्तव्य मेरी नौकरी पर असर डालेगा। चूँकि मैं जिस वित्तीय कार्य के लिए जिम्मेदार था, वह धन से जुड़ा था, एक छोटी सी चूक से मेरी नौकरी जा सकती थी और अगर मेरा बॉस मुझे नौकरी से निकाल देता तो मेरी सारी उम्मीदें धराशायी हो जातीं। मैंने सोचा, “अगर ऐसा हुआ तो क्या मेरे रिश्तेदार, दोस्त और सहकर्मी तब भी मुझे उतना ही सम्मान देंगे?” इसके अलावा मेरे परिवार की जीवन परिस्थितियों में अभी सुधार होना शुरू ही हुआ था और अगर मुझसे गलती हुई और यह नौकरी हाथ से गई तो हम फिर से गरीबी में चले जाएँगे। बहुत सोच-विचार के बाद मैंने कम छुट्टियाँ लेने और अधिक काम करने का फैसला किया। उसके बाद जब भी मैं अपना कर्तव्य करने के लिए छुट्टी लेता तो मैं अपने सहायक के काम के बारे में जानने के लिए फोन करता उसे चेताता और हिदायतें देता कि ध्यान रहे कि कुछ भी गलत न हो। मैं नियमित काम के घंटों के दौरान और भी ज्यादा मेहनत करता बल्कि अपनी भक्ति के दौरान भी मैं काम के बारे में चिंतित रहता। यहाँ तक कि जब काम छोड़कर जाने का समय होता तो अगर मुझे कोई काम मिलता तो मैं तुरंत उस पर लग जाता था। जब दूसरे लोग काम खत्म करने के बाद आराम करने के लिए घर जाते थे तो मैं दफ्तर में रहता और ओवरटाइम काम करता रहता था। कभी-कभी मैं देर रात तक ओवरटाइम काम करता और इतना थक जाता था कि मेरी पीठ में दर्द होने लगता और मेरे शरीर में बिल्कुल भी ताकत नहीं बचती थी। मैं घर पहुँचने पर परमेश्वर के वचन पढ़ने की योजना बनाता था, लेकिन कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद ही मेरा दिमाग बंद हो जाता और आगे पढ़ने पर बहुत ज्यादा नींद आने लगती थी। यहाँ तक कि मैं खुद को यह कहकर सांत्वना देता था, “जब मेरे पास बाद में ज्यादा समय होगा तो मैं पढ़ूँगा” और फिर मैं सो जाता था। कभी-कभी मैं परमेश्वर के वचनों पर ध्यानपूर्वक विचार करने के लिए अपने दिल को शांत करना चाहता था लेकिन मेरे पास ऊर्जा नहीं होती थी। जैसे ही कंपनी के किसी मामले को लेकर मेरा फोन बजता, मैं परमेश्वर के वचनों की अपनी किताब बंद करता और जाकर उसे सँभालता। हालाँकि मैं अपने कर्तव्य का पालन कर रहा था, एक विश्वासी के बतौर मैं नियमित रूप से भक्ति भी नहीं कर पाता था या परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध भी नहीं रख पाता था। मैं वास्तव में असहज महसूस करता था और सोचता था कि यह वह जीवन नहीं है जो मैं चाहता था। लेकिन जब मैं नौकरी से मुझे मिलने वाली प्रतिष्ठा के बारे में सोचता तो इसे छोड़ने में असमर्थ महसूस करने लगता था। यह एक वास्तविक दुविधा थी।
यह देखने के बाद कि मैं कितना समर्पित और जिम्मेदार हूँ, मेरे बॉस ने मुझे मुख्यालय में वित्तीय बंदोबस्त प्रबंधक के पद पर पदोन्नत कर दिया, जो नेटवर्क-व्यापी माल ढुलाई बंदोबस्त की जिम्मेदारी थी। यह कंपनी का मुख्य विभाग था और यह पद पाने का मतलब था कि मैं कार और घर का मालिक होने के अपने लक्ष्य के और करीब पहुँच रहा था और इस पद पर पदोन्नत होने के साथ मिलने वाले अतिरिक्त लाभों का तो जिक्र ही क्या करें। कंपनियों से लेकर व्यक्तियों तक हर कोई जो पहले से अग्रिम भुगतान और माल ढुलाई की आय चाहता था, वह जमकर मुझे खुश करना चाहता था। इसके अतिरिक्त मेरे पास वेतन वृद्धि, नौकरी प्रेषण और विभाग के कर्मियों के लिए पद परिवर्तन पर सलाहकार के अधिकार थे, इसलिए अधिक से अधिक लोग मेरी कृपा पाने की कोशिश करते थे। कभी-कभी जब मैं कार्य समूह में कोई संदेश लिखता था तो कई लोग जवाब देते थे और इस तरह की जबर्दस्त प्रतिक्रिया कुछ ऐसी चीज थी जिसका मैंने पहले कभी आनंद नहीं लिया था। इस पदोन्नति के साथ ही मेरा वेतन भी बढ़ गया और मुझे बहुत अधिक अतिरिक्त आय भी हो गई। सक्रिय रूप से मेरी मदद माँगने वाले बॉस कभी-कभी मेरे लिए स्थानीय विशेषता वाली चीजें, उच्च श्रेणी की सिगरेट और शराब, उपहार कार्ड और ऐसी दूसरी वस्तुएँ ले आते थे और हर छुट्टी मेरे लिए फसल की कटाई के मौसम की तरह होती थी। कभी-कभी मैं सोचता था कि एक विश्वासी के रूप में मुझे एक ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए और अपनी ताकत का उपयोग गैर-विश्वासियों की तरह निजी लाभ खोजने में नहीं करना चाहिए लेकिन मैं लाभ का लालच नहीं छोड़ पाता था। मैं परमेश्वर की अपेक्षाओं से अच्छी तरह वाकिफ था लेकिन उन्हें व्यवहार में लाने में असमर्थ था। इसके अलावा लंबे समय तक आँखों पर जोर पड़ने के कारण मेरी नजर धीरे-धीरे कमजोर होती गई और बहुत देर रात तक जागने से मेरा रक्तचाप बढ़ जाता था और पिंडलियाँ सूज जाती थीं जिससे मैं दिन भर के काम के बाद शारीरिक और मानसिक रूप से थका हुआ महसूस करता था। मुझे पता था कि इसी तरह करते रहने से मेरी सेहत को नुकसान पहुँचेगा लेकिन मैं रुक नहीं पाया। इस नौकरी के बिना मैं ये सभी भौतिक लाभ और हरेक की प्रशंसा खो देता। कभी-कभी सभाओं में भाई-बहन इस बारे में बात करते थे कि उन्होंने चीजों का अनुभव कैसे किया था, कैसे उन्होंने अपनी भ्रष्टता के पहलुओं को पहचाना और कैसे उन्होंने परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद सुधार किया। मुझे गहरी ईर्ष्या महसूस हुई, मैंने सोचा, “ये सभी भाई-बहन स्वभाव में बदलाव की कोशिश में जुटे हैं लेकिन मैं अभी भी धन, प्रसिद्धि और लाभ के दलदल में संघर्षरत हूँ, अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करना तो दूर की बात है; मैंने तो एक ईसाई की तरह भी जीवन नहीं जिया है। मैं पूरी तरह पैसे का गुलाम बन गया हूँ!” मुझे पता था कि इस नौकरी ने वास्तव में मुझे सत्य के अनुसरण और परमेश्वर में मेरी आस्था में धीमा कर दिया है, लेकिन मैं अभी भी इससे मिलने वाली प्रसिद्धि और लाभ को छोड़ने को तैयार नहीं था। मुझे पता था कि जैसे ही मैंने इसे जाने दिया, सालों की कड़ी मेहनत के बदले मुझे जो इतनी प्रतिष्ठा और भौतिक सुख मिला है, वह सब खो जाएगा। मैं काफी उलझन में था और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है।
एक दिन एक सभा में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मनुष्य को अर्थपूर्ण जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और उसे अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पतरस की छवि के अनुरूप अपना जीवन जीने के लिए, उसमें पतरस के ज्ञान और अनुभवों का होना जरूरी है। मनुष्य को ज़्यादा ऊँची और गहन चीजों के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए। उसे परमेश्वर को अधिक गहराई एवं शुद्धता से प्रेम करने का, और एक ऐसा जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए जिसका कोई मोल हो और जो सार्थक हो। सिर्फ यही जीवन है; तभी मनुष्य पतरस जैसा बन पाएगा। तुम्हें सकारात्मक तरीके से प्रवेश के लिए सक्रिय होने पर ध्यान देना चाहिए, और अधिक गहन, विशिष्ट और व्यावहारिक सत्यों को नजरअंदाज करते हुए क्षणिक आराम के लिए निष्क्रिय होकर पीछे नहीं हट जाना चाहिए। तुम्हारा प्रेम व्यावहारिक होना चाहिए, और तुम्हें जानवरों जैसे इस निकृष्ट और बेपरवाह जीवन को जीने के बजाय स्वतंत्र होने के रास्ते ढूँढ़ने चाहिए। तुम्हें एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जो अर्थपूर्ण हो और जिसका कोई मोल हो; तुम्हें अपने-आपको मूर्ख नहीं बनाना चाहिए या अपने जीवन को एक खिलौना नहीं समझना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे वास्तव में प्रबुद्ध किया। परमेश्वर अपेक्षा करता है कि हम पतरस का अनुकरण करें, जो सांसारिक मामलों में नहीं उलझा था और एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रसिद्धि, लाभ, रुतबे और दैहिक सुखों को त्यागने में सक्षम था। पतरस ने उत्कृष्ट विद्वत्तापूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की थीं और अपनी प्रतिभा और बुद्धि के साथ वह निश्चित रूप से उस समय एक अधिकारी बन सकता था लेकिन उसे लगा कि एक अधिकारी के बतौर करियर अपनाकर सांसारिक प्रसिद्धि और लाभ के पीछे दौड़ना व्यर्थ है और इसके बजाय वह एक सार्थक जीवन की तलाश करना चाहता था। बाद में पतरस को प्रभु ने अपना अनुसरण करने के लिए बुलाया और उसने कई सत्य प्राप्त किए, परमेश्वर की वास्तविक समझ हासिल की और अंततः परमेश्वर के लिए सर्वोच्च प्रेम अर्जित किया और मृत्यु तक समर्पण किया और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त की। फिर मैंने इसके प्रकाश में खुद को देखा। ऊँचा सम्माननीय जीवन जीने और आगे बढ़ने के लिए मैंने अपनी सारी ऊर्जा काम में लगा दी थी लेकिन इस तरह धन, रुतबे और दैहिक सुखों के पीछे भागने से मुझे वास्तव में क्या हासिल होगा? इस पर विचार करते हुए भले ही मेरी दैहिक इच्छाएँ संतुष्ट हो गई हों और कार, घर और रुतबा पाने के मेरे लक्ष्य साकार हो गए हों, अगर मैं परमेश्वर में अपने विश्वास के बावजूद सत्य प्राप्त करने में विफल रहा तो ऐसे जीवन का क्या अर्थ होगा? क्या यह जीवन की बर्बादी नहीं होगी? केवल दैहिक सुखों की संतुष्टि के लिए जीना, पशु की तरह जीने से अलग नहीं है और चाहे दैहिक सुख कितने भी अच्छे क्यों न हों, वे अंततः व्यर्थ हो जाते हैं। हालाँकि मैंने अभी भी पतरस के संकल्प को प्राप्त नहीं किया था, मुझे इसके लिए प्रयास करना था और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य का अनुसरण करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना था। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरे लिए रास्ता खोलने को कहा, “परमेश्वर, मैं इस तरह से चलते नहीं रहना चाहता। मैं पूरी लगन से सत्य का अनुसरण करना चाहता हूँ। हालाँकि अभी मेरी समझ सीमित है लेकिन मैं धीरे-धीरे धन, प्रसिद्धि और लाभ छोड़ने के लिए तैयार हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम धन, प्रसिद्धि और लाभ के दलदल से मुक्त होने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे बहुत शांति महसूस हुई।
एक दिन मेरे बॉस ने अचानक मुझसे बात करने के लिए कहा। उसने कहा कि माल ढुलाई बंदोबस्त मूल रूप से पक्के हो गए हैं पर विमानन बंदोबस्त अभी भी अन्वेषण के चरण में हैं और वह चाहता था कि मैं इस काम की जिम्मेदारी ले लूँ। माल बंदोबस्त की तुलना में विमानन बंदोबस्त में बहुत कम प्रतिष्ठा थी लेकिन कार्यभार बहुत कम था और मेरे लिए यह साफ संकेत था कि परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और वह मुझे मेरे आध्यात्मिक कद के अनुसार धन, प्रसिद्धि और लाभ के बंधनों से मुक्त करने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ा रहा है। माल ढुलाई क्षेत्र के मालिक वास्तव में घमंडी थे और जब उन्होंने सुना कि मेरा तबादला हो गया है तो वे सभी मुझसे दूर हो गए और मेरे साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे। वे जब कभी मुझे देखते तो अपने फोन निकालने का दिखावा करते थे और कॉल पर बात करने का नाटक करते थे। पहले की तुलना में जब लोग लगातार मेरे चक्कर लगाते रहते थे, यह वास्तव में सम्मान कम होने जैसा लगता था और मुझे वे दिन याद आने लगे जब लोग मेरी प्रशंसा और चापलूसी करते थे। एक दिन एक सभा में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निवृत्ति से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के प्रत्येक प्रश्न ने मेरे दिल को छू लिया। हालाँकि मेरा परमेश्वर में विश्वास था, फिर भी मैं धन, प्रसिद्धि और लाभ की असलियत नहीं जान पाया, मैंने अपनी ज्यादातर ऊर्जा काम और धन कमाने पर केंद्रित कर दी थी और मैं सामान्य भक्ति भी नहीं कर पाया या परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाया। इस नवीनतम पुनर्नियुक्ति के साथ, हालाँकि मैं परमेश्वर से इसे स्वीकार कर पाया था, विमानन बंदोबस्त का कार्य लेने के बाद मैंने देखा कि जो बॉस मेरी चापलूसी करते थे, उनके सुर अचानक बदल गए और इस चीज ने मुझे भावनात्मक रूप से हिला दिया। मुझे लगा कि सत्ता होना बेहतर है और इसके बिना कोई भी तुम्हारा आदर नहीं करता, इसलिए मुझे अभी भी माल ढुलाई बंदोबस्त सँभालने वाले दिन याद आए। मैं वास्तव में परमेश्वर द्वारा उजागर किया गया ऐसा व्यक्ति था जो केवल धन, प्रसिद्धि और लाभ के प्रति निष्ठावान है! पद में यह बदलाव परमेश्वर द्वारा मेरे लिए रास्ता खोलना था और विमानन बंदोबस्त का कार्यभार माल ढुलाई बंदोबस्त की तुलना में बहुत कम होने के कारण परमेश्वर के वचनों से खुद को और अधिक सुसज्जित करने के लिए मुझे और समय मिल गया था और मैं अपने खाली समय का उपयोग अपने सहकर्मियों में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कर सकता था, जो मेरे सत्य के अनुसरण और अपने कर्तव्य करने के लिए फायदेमंद था। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी पिछली नौकरी को याद करना बंद कर दिया।
मई 2013 में मेरे बॉस ने माल ढुलाई और विमानन बंदोबस्त विभागों को मिलाकर एक नया विभाग बना दिया और मुझे पूरी जिम्मेदारी दे दी। जब मैं सिर्फ एक काम देखता था, तब की तुलना में अब कार्यभार दोगुना हो गया था और हालाँकि कई सहायक दिए गए थे, फिर भी देखदेख की बहुत सी चिंताएँ रहती थीं और धीरे-धीरे मेरा समय एक बार फिर काम में जाने लगा। मैं उस समय के बारे में सोचे बिना नहीं रह पाया जब मैं विमानन बंदोबस्त विभाग का प्रभारी था, तब समय की इतनी तंगी नहीं थी और मैं न केवल नियमित भक्ति करने में सक्षम था बल्कि अपने सहकर्मियों के बीच सुसमाचार का प्रचार करने के लिए भी समय निकाल पाता था, जिसके माध्यम से मैं कई सत्य समझ पाया था, अपनी कमियों का पता लगा पाया था और लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर के तत्काल इरादे का अनुभव कर पाया। लेकिन अब मेरी ऊर्जा पूरी तरह से काम पर केंद्रित थी और मुझे एहसास हुआ कि मेरे बॉस का मुझे नए विलय किए गए विभाग का प्रभारी बनाने का निर्णय शैतान का प्रलोभन था। इसलिए मैं नौकरी छोड़ना चाहता था। लेकिन जब मैंने सोचा कि यह नौकरी मेरे इतने सालों की कड़ी मेहनत का नतीजा है तो मुझे इसे इतनी आसानी से छोड़ने की इच्छा नहीं हुई, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं जूझ रहा हूँ। अगर मैं यह नौकरी छोड़ता हूँ तो मुझे एक साधारण जीवन जीना होगा और मेरे सभी पिछले सपने भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं रह जाएँगे लेकिन मैं जानता हूँ कि सत्य का अनुसरण करना अधिक महत्वपूर्ण है, इसलिए मेरा मार्गदर्शन करो।” उस दौरान मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करता था, उसका मार्गदर्शन और अगुआई चाहता था और मैं सचेत रूप से पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचन खोजता था। एक दिन मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन सुना जिसका नाम था “क्या ये दुनिया तुम्हारी आरामगाह है?” :
1 ... क्या संसार सच में तुम्हारे आराम करने की जगह है? क्या तुम वास्तव में, मेरी ताड़ना से बचकर संसार से संतुष्टि की कमजोर-सी मुसकराहट प्राप्त कर सकते हो? क्या तुम वास्तव में अपने क्षणभंगुर आनंद का उपयोग अपने हृदय के खालीपन को ढकने के लिए कर सकते हो, उस खालीपन को, जिसे छिपाया नहीं जा सकता?
2 तुम अपने परिवार में हर किसी को मूर्ख बना सकते हो, लेकिन मुझे कभी मूर्ख नहीं बना सकते। चूँकि तुम लोगों की आस्था बहुत कम है, इसलिए तुम आज तक जीवन की कोई भी खुशी पाने में असमर्थ हो। मैं तुमसे आग्रह करता हूँ : बेहतर है, अपना पूरा जीवन साधारण ढंग से और देह के लिए अल्प मूल्य का कार्य करते हुए, और उन सभी दुःखों को सहन करते हुए बिताने के बजाय, जिन्हें मनुष्य शायद ही सहन कर सके, अपना आधा जीवन ईमानदारी से मेरे वास्ते बिताओ। अपने आप को इतना अधिक सँजोने और मेरी ताड़ना से भागने से कौन-सा उद्देश्य पूरा होता है? ...
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है
परमेश्वर के वचनों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मैंने सोचा कि कैसे मैं हर दिन धन, रुतबे और भौतिक समृद्धिपूर्ण जीवन की तलाश में मशीन की तरह बिना रुके काम कर रहा था और किस तरह मैंने अपने शरीर और दिमाग को थका दिया था और कई शारीरिक बीमारियों से पीड़ित था। जब मैं विमानन बंदोबस्त का प्रभारी था, भले ही अतिरिक्त आय कम थी, मेरे पास परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के लिए समय ज्यादा था और मेरा दिल परमेश्वर के करीब आ गया था, जिसने मेरे आध्यात्मिक दृष्टिकोण को बदल दिया था। आपदाएँ बड़ी और बड़ी होती जा रही थीं, अगर मैं धन और रुतबे से चिपका रहा तो जब परमेश्वर का काम खत्म होगा, अगर मैंने सत्य प्राप्त न किया और आपदाओं में नष्ट हो गया तो पश्चात्ताप के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। परमेश्वर ने मेरे लिए इतना अच्छा अवसर तैयार किया था, कि मुझे उसके वचनों का पोषण और सिंचन प्राप्त करने और भाई-बहनों के साथ उसके वचनों पर इकट्ठा होकर संगति करने का मौका मिला, जिससे मुझे आध्यात्मिक पोषण मिला। फिर भी मेरे मन में कोई कृतज्ञता नहीं थी। मैंने लोगों को बचाने के परमेश्वर के तत्काल इरादे को नहीं समझा था, मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ था और मैं अभी भी सिर्फ अपने भविष्य और आजीविका की योजना बना रहा था। क्या अपनी देह की खातिर इतनी मेहनत और परिश्रम व्यर्थ नहीं था? अपने सामने मौजूद छोटे-मोटे फायदों की परवाह करके मैंने सत्य और जीवन पाने का मौका गँवा दिया था। मैं सचमुच दूरदर्शी नहीं था! मैं जिन भौतिक चीजों के पीछे भाग रहा था, उनका आपदाओं में कोई उपयोग नहीं होने वाला और वे मुझे बिल्कुल भी नहीं बचा पाएँगी। इस एहसास के साथ मैंने परमेश्वर के सामने घुटने टेके और प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं सचमुच तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमने मुझे बचाया लेकिन मैंने उसका बदला चुकाने के बारे में नहीं सोचा है और अभी भी धन और रुतबे से चिपका हुआ हूँ। इन चीजों ने मुझे बहुत लालची बना दिया है। परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मैं इस गंदगी के दायरे में शैतान द्वारा लगातार भ्रष्ट और मूर्ख नहीं बनना चाहता। मुझे देह के खिलाफ विद्रोह करने का संकल्प दो ताकि मैं तुम्हारे प्रेम का बदला चुकाने के लिए पूरे समय अपना कर्तव्य कर सकूँ।”
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने के नतीजों को और अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विशाल बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचन एकदम सही जगह जाकर लगे, उन्होंने उजागर किया कि कैसे शैतान प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग लोगों को बाँधने और नियंत्रित करने में करता है। मैं लंबे समय से शैतान के विचारों से प्रभावित था, जैसे “पैसा ही सब कुछ नहीं है, लेकिन इसके बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” और “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” और इन विचारों ने मुझे काबू में कर लिया था। वर्षों तक मैंने ओवरटाइम किया था और धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागते हुए अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया था और मैं परमेश्वर से कम प्रार्थना करने लगा था और उसके वचनों को कम पढ़ने लगा था और उससे दूर होता गया था। मैंने देखा कि कुछ भाई-बहन अपना समय सत्य के अनुसरण में बिताते हैं और वे अपने जीवन में तेजी से प्रगति कर रहे हैं लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने के चक्कर में मैंने अपने जीवन में कोई प्रगति नहीं की थी। यह कितना भयंकर नुकसान था! वर्षों से मैंने खुद को काम में डुबो रखा था और अपमान सहा था और अंत में भले ही मेरे सपने सच हो गए, मैं और अधिक कुटिल और धोखेबाज बन गया, मैं अपने दिन बेईमान लोगों के साथ बातचीत करते हुए बिता रहा था, पर मेरा नजरिया भी पारस्परिक शोषण का था, मैं प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपनी मानवीय गरिमा और सत्यनिष्ठा गँवा रहा था और अत्यधिक कष्ट और पीड़ा का जीवन जी रहा था। मैंने कभी प्रसिद्ध रहे एक उद्यमी के बारे में सोचा, जो अपनी युवावस्था में ही अरबपति बन गया था, जब वह अपनी प्रसिद्धि और धन के शिखर पर था तो रोज तरह-तरह की डिनर पार्टियों में जाता रहता था। थकान से चूर-चूर होने के बावजूद उसने कभी आराम नहीं किया और परिणामस्वरूप वह बीमार हुआ और चालीस वर्ष की आयु से पहले ही मर गया। यह शैतान द्वारा लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करने का अंतिम परिणाम है। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों में मानवता को बचाने के लिए हमें सभी सत्य मुक्त रूप से दिए हैं। अगर मैं अभी भी प्रसिद्धि और लाभ से चिपका रहता तो हो सकता है कि मेरा पद बढ़ता रहता लेकिन मैं सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खो देता। मैं अब अपने तथाकथित आदर्शों के लिए प्रयास नहीं करना चाहता था और मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देने और खुद को पूरी तरह परमेश्वर के लिए खपाने का अवसर तलाशने का फैसला किया। मैंने पदभार सौंपने की तैयारी शुरू कर दी और अपने इस्तीफे पर चर्चा करने के लिए अपने महाप्रबंधक श्री शू से संपर्क किया। श्री शू ने कहा, “तुम्हारे इस्तीफे को मंजूर करने के लिए तुम्हारी जगह कोई दूसरा व्यक्ति चाहिए और उसमें लंबा समय लगेगा लेकिन यदि तुम लंबी छुट्टी माँगते हो तो मैं तुम्हारा काम सँभालने के लिए एक प्रबंधक की व्यवस्था कर सकता हूँ और तब तुम अपनी जिम्मेदारियाँ सौंपकर जा सकते हो।” इस पर विचार करने के बाद मैं इस सुझाव से सहमत हो गया और अगली सूचना की प्रतीक्षा करते हुए मैंने पदभार सौंपने की तैयारी शुरू कर दी।
अक्टूबर की शुरुआत में एक दिन मेरे बॉस ने मुझसे कहा, “मैंने सुना है कि पारिवारिक मामलों के कारण तुम्हें छह महीने की छुट्टी चाहिए। हमारी कंपनी के वित्त से जुड़े कर्मचारियों के बीच यह अभूतपूर्व बात है, खासकर तुम्हारे जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए लेकिन इस बार मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए इसे विशेष रूप से स्वीकृत कर दिया है और तुम्हारी छह महीने की छुट्टी के दौरान तुम्हारे वेतन में कोई बदलाव नहीं होगा। जब तुम वापस लौटोगे तो तुम्हें एकमुश्त भुगतान किया जाएगा और मैं तुम्हारा प्रबंधकीय पद तुम्हारे लिए आरक्षित रखूँगा।” अपने बॉस को धन्यवाद देने के बाद मैं कार्यालय से बाहर निकल गया। बॉस के शब्दों ने मुझे काफी प्रभावित किया। छह महीने तक काम किए बिना वेतन प्राप्त करना और मेरे लिए एक प्रबंधक पद को आरक्षित करना? लग रहा था कि कंपनी मुझे बहुत महत्व देती है। मैंने सोचा कि कैसे बॉस ने मेरे लिए मुख्यालय का वित्त सँभालने की योजना बनाई थी। अगर ऐसा हुआ तो कंपनी में मुझे कार्यकारी पद मिल जाएगा और इसका मतलब होगा कि और ज्यादा लोग मेरा सम्मान करेंगे। उस पल मुझे लगा कि मेरे विचार और इरादे गलत हैं और मुझे पिछली सभाओं में पढ़े गए परमेश्वर के वचनों के दो अंश याद आ गए : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है।” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। “जब लोग उस दिन तक अनुभव करते हैं जब तक जीवन के बारे में उनका दृष्टिकोण और उनके अस्तित्व का अर्थ एवं आधार पूरी तरह से बदल नहीं जाते हैं, जब उनका सब कुछ परिवर्तित नहीं हो जाता और वे कोई अन्य व्यक्ति नहीं बन जाते हैं, क्या यह अद्भुत नहीं है? यह एक बड़ा परिवर्तन है; यह एक ऐसा परिवर्तन है जो सब कुछ उलट-पुलट कर देता है। केवल जब दुनिया की कीर्ति, लाभ, पद, धन, सुख, सत्ता और महिमा में तुम्हारी रुचि ख़त्म हो जाती है और तुम आसानी से उन्हें छोड़ पाते हो, केवल तभी तुम एक मनुष्य के समान बन पाओगे। जो लोग अंततः पूर्ण किये जाएंगे, वे इस तरह के एक समूह होंगे। वे सत्य के लिए, परमेश्वर के लिए और धार्मिकता के लिए जीएँगे। यही एक मनुष्य के समान होना है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि भले ही मेरे बॉस के शब्द मेरी दैहिक जरूरतें पूरी करते प्रतीत होते थे लेकिन इसके पीछे एक शैतानी योजना थी। शैतान का इरादा पैसे, प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल करके मुझे लुभाने और अपनी सेवा करते रहने को मजबूर करना था ताकि मैं आखिरकार बचाए जाने का अपना मौका गँवा दूँ। परमेश्वर चाहता था कि मैं सत्य प्राप्त करने के लिए जीते हुए एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाऊँ, मुझे इस लक्ष्य का अनुसरण करना चाहिए था। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मजबूत किया और मैंने जल्दी से पदभार सौंपने की प्रक्रियाएँ निपटाईं। पदभार सौंपने की प्रक्रिया बहुत आसानी से हो गई और मुझे एहसास हुआ कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर द्वारा आयोजित है। इस्तीफा देने के एक महीने से भी कम समय में मैंने कलीसिया में अपने कर्तव्य करने शुरू कर दिए और मेरे पास नियमित रूप से भक्ति करने और कलीसियाई जीवन जीने का समय था, मैं परमेश्वर के वचनों से दैनिक सिंचन और पोषण का आनंद लेता था और मेरा दिल शांति और आनंद से भर जाता था। जब अपने कर्तव्यों में मेरे सामने कठिनाइयाँ आती थीं तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता था और अपने साथी भाइयों से परामर्श करता था और उन समस्याओं के लिए अगुआओं से पूछता था जिन्हें मैं हल नहीं कर पाता था। कभी-कभी भाई-बहन मेरे कर्तव्यों में मेरी कमियों की ओर इशारा करते थे और हालाँकि यह थोड़ा शर्मनाक होता था लेकिन प्रार्थना करने और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने से मैं परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पित होने और अभ्यास का मार्ग खोजने में सक्षम हो जाता था, जिससे मेरे कर्तव्यों की प्रभावशीलता में सुधार हुआ। यह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन के कारण था!
इस अनुभव के जरिए मैंने स्पष्ट रूप से देखा है कि धन और रुतबा केवल अस्थायी आनंद लाते हैं और अगर मुझे मेरी कल्पना से भी ज्यादा समृद्धि, प्रसिद्धि और लाभ मिल जाए तो भी यह क्षणभंगुर गौरव से अधिक कुछ नहीं होगा, जिसके बाद खालीपन ही आएगा और मैं महज शैतान की बलि का चढ़ावा बनकर रहा जाऊँगा। आज मैं धन और रुतबे के प्रलोभनों से मुक्त रहने, शैतान की पीड़ा से बचने और जीवन में सही मार्ग पर चलने में सक्षम हूँ। यह सब परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण है। मानवता को बचाने का परमेश्वर का कार्य सचमुच व्यावहारिक है और मैं ईमानदारी से अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ!