278 कोई ताकत आड़े आ नहीं सकती उस लक्ष्य के जो हासिल करना चाहता है परमेश्वर
1
परमेश्वर अब फिर आया है जगत में अपना कार्य करने।
अधिनायकों की विशाल सभा उसका पहला पड़ाव है:
चीन-मज़बूत गढ़ है नास्तिकता का, गढ़ है नास्तिकता का।
अपनी बुद्धि और सामर्थ से पा लिया है लोगों के एक समूह को परमेश्वर ने।
इस समय के दरमियाँ पीछा करता है उसका हर तरह से, चीन का सत्ताधारी दल।
वो सह रहा है दुख-दर्द, न आरामगाह है न कोई आसरा है।
फिर भी, वो उस काम में लगा है, जो काम करना है उसे,
जो काम करना है उसे: अपनी वाणी सुनाना और सुसमाचार फैलाना।
2
परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता की थाह कोई पा नहीं सकता।
चीन जैसे देश में जो शत्रु समझता है परमेश्वर को,
परमेश्वर ने अपना काम रोका नहीं कभी, रोका नहीं कभी।
बल्कि और ज़्यादा लोग आए हैं, स्वीकार करने उसके काम को, उसके वचन को,
क्योंकि परमेश्वर जो भी कर सकता है, करता है, मानवता को बचाने,
परमेश्वर जो भी कर सकता है, करता है, इंसान को बचाने।
परमेश्वर जो हासिल करना चाहता है,
न कोई देश आ सकता है उस रास्ते में, न आ सकती ताकत कोई।
अगर बाधा डालेगा कोई परमेश्वर के काम में,
या करेगा विरोध कोई उसके वचन का,
रोकेगा या पहुँचाएगा नुकसान उसकी योजना को,
तो सज़ा देगा परमेश्वर उसे अंत में, तो सज़ा देगा परमेश्वर उसे अंत में।
3
अगर अवहेलना करता है कोई परमेश्वर के काम की,
तो परमेश्वर पहुँचा देता है सीधे उसे नरक में।
अगर कोई देश अवहेलना करता है उसके काम की,
तो परमेश्वर कर देता है तबाह उस देश को।
अगर कोई राष्ट्र सिर उठाता है परमेश्वर के काम के विरोध में,
तो वो मिटा देगा उसे धरती से, और फिर रहेगा न वजूद उसका।
परमेश्वर जो हासिल करना चाहता है,
न कोई देश आ सकता है उस रास्ते में, न आ सकती ताकत कोई।
अगर बाधा डालेगा कोई परमेश्वर के काम में,
या करेगा विरोध कोई उसके वचन का,
रोकेगा या पहुँचाएगा नुकसान उसकी योजना को,
तो सज़ा देगा परमेश्वर उसे अंत में, तो सज़ा देगा परमेश्वर उसे अंत में।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है से रूपांतरित