14. कर्तव्य पालन और परमेश्वर के लिए गवाही देने के बीच संबंध

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

जो कुछ तुम लोगों ने अनुभव किया और देखा है, वह हर युग के संतों और पैगंबरों के अनुभवों से बढ़कर है, लेकिन क्या तुम लोग अतीत के इन संतों और पैगंबरों के वचनों से बड़ी गवाही देने में सक्षम हो? अब जो कुछ मैं तुम लोगों को देता हूँ, वह मूसा से बढ़कर और दाऊद से बड़ा है, अतः उसी प्रकार मैं कहता हूँ कि तुम्हारी गवाही मूसा से बढ़कर और तुम्हारे वचन दाऊद के वचनों से बड़े हों। मैं तुम लोगों को सौ गुना देता हूँ—अतः उसी प्रकार मैं तुम लोगों से कहता हूँ मुझे उतना ही वापस करो। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि वह मैं ही हूँ, जो मनुष्य को जीवन देता है, और तुम्हीं लोग हो, जो मुझसे जीवन प्राप्त करते हो और तुम्हें मेरी गवाही अवश्य देनी चाहिए। यह तुम लोगों का वह कर्तव्य है, जिसे मैं नीचे तुम लोगों के लिए भेजता हूँ और जिसे तुम लोगों को मेरे लिए अवश्य निभाना चाहिए। मैंने अपनी सारी महिमा तुम लोगों को दे दी है, मैंने तुम लोगों को वह जीवन दिया है, जो चुने हुए लोगों, इजरायलियों को भी कभी नहीं मिला। उचित तो यही है कि तुम लोग मेरे लिए गवाही दो, अपनी युवावस्था मुझे समर्पित कर दो और अपना जीवन मुझ पर कुर्बान कर दो। जिस किसी को मैं अपनी महिमा दूँगा, वह मेरा गवाह बनेगा और मेरे लिए अपना जीवन देगा। इसे मैंने पहले से नियत किया हुआ है। यह तुम लोगों का सौभाग्य है कि मैं अपनी महिमा तुम्हें देता हूँ, और तुम लोगों का कर्तव्य है कि तुम लोग मेरी महिमा की गवाही दो। अगर तुम लोग केवल आशीष प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हो, तो मेरे कार्य का ज़्यादा महत्व नहीं रह जाएगा, और तुम लोग अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे होगे। ... तुम लोगों ने केवल मेरे सत्य, मेरे मार्ग और मेरे जीवन को ही प्राप्त नहीं किया है, अपितु मेरी उस दृष्टि और प्रकटीकरण को भी प्राप्त किया है, जो यूहन्ना को प्राप्त दृष्टि और प्रकटीकरण से भी बड़ा है। तुम लोग कई और रहस्य समझते हो, और तुमने मेरा सच्चा चेहरा भी देख लिया है; तुम लोगों ने मेरे न्याय को अधिक स्वीकार किया है और मेरे धर्मी स्वभाव को अधिक जाना है। और इसलिए, यद्यपि तुम लोग इन अंत के दिनों में जन्मे हो, फिर भी तुम लोग पूर्व की और पिछली बातों की भी समझ रखते हो, और तुम लोगों ने आज की चीजों का भी अनुभव किया है, और यह सब मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था। जो मैं तुम लोगों से माँगता हूँ, वह बहुत ज्यादा नहीं है, क्योंकि मैंने तुम लोगों को इतना ज़्यादा दिया है और तुम लोगों ने मुझमें बहुत-कुछ देखा है। इसलिए, मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि सभी युगों के संतों के लिए मेरी गवाही दो, और यह मेरे हृदय की एकमात्र इच्छा है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?

कार्य के संबंध में, मनुष्य का विश्वास है कि परमेश्वर के लिए इधर-उधर दौड़ना, सभी जगहों पर प्रचार करना और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाना ही कार्य है। यद्यपि यह विश्वास सही है, किंतु यह अत्यधिक एकतरफा है; परमेश्वर इंसान से जो माँगता है, वह परमेश्वर के लिए केवल इधर-उधर दौड़ना ही नहीं है; यह आत्मा के भीतर सेवकाई और पोषण से जुड़ा है। कई भाइयों और बहनों ने इतने वर्षों के अनुभव के बाद भी परमेश्वर के लिए कार्य करने के बारे में कभी नहीं सोचा है, क्योंकि मनुष्य द्वारा कल्पित कार्य परमेश्वर द्वारा की गई माँग के साथ असंगत है। इसलिए, मनुष्य को कार्य के मामले में किसी भी तरह की कोई दिलचस्पी नहीं है, और ठीक इसी कारण से मनुष्य का प्रवेश भी काफ़ी एकतरफा है। तुम सभी लोगों को परमेश्वर के लिए कार्य करने से अपने प्रवेश की शुरुआत करनी चाहिए, ताकि तुम लोग अनुभव के हर पहलू से बेहतर ढंग से गुज़र सको। यही है वह, जिसमें तुम लोगों को प्रवेश करना चाहिए। कार्य परमेश्वर के लिए इधर-उधर दौड़ने को संदर्भित नहीं करता, बल्कि इस बात को संदर्भित करता है कि मनुष्य का जीवन और जिसे वह जीता है, वे परमेश्वर को आनंद देने में सक्षम हैं या नहीं। कार्य परमेश्वर के प्रति गवाही देने और साथ ही मनुष्य के प्रति सेवकाई के लिए मनुष्य द्वारा परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा और परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान के उपयोग को संदर्भित करता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है और इसे सभी मनुष्यों को समझना चाहिए। कहा जा सकता है कि तुम लोगों का प्रवेश ही तुम लोगों का कार्य है, और तुम लोग परमेश्वर के लिए कार्य करने के दौरान प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हो। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने का अर्थ मात्र यह नहीं है कि तुम जानते हो कि उसके वचन को कैसे खाएँ और पीएँ; बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर की गवाही कैसे दें और परमेश्वर की सेवा करने तथा मनुष्य की सेवकाई और आपूर्ति करने में सक्षम कैसे हों। यही कार्य है, और यही तुम लोगों का प्रवेश भी है; इसे ही हर व्यक्ति को संपन्न करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (2)

तुमने परमेश्वर के इतने सारे कार्य का अनुभव किया है, तुमने इसे अपनी आँखों से देखा है और व्यक्तिगत रुप से अनुभव किया है; एकदम अंत तक पहुँचकर तुम्हें सौंपे गए प्रकार्य को पूरा करने में असफल नहीं होना चाहिए। यह कितना दुखद होगा! भविष्य में, जब सुसमाचार फैलेगा, तो तुम्हें अपने ज्ञान के बारे में बताने में सक्षम होना चाहिए, अपने दिल में तुमने जो कुछ पाया है, उसकी गवाही देने में सक्षम होना चाहिए और कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए। एक सृजित प्राणी को यह सब हासिल करना चाहिए। परमेश्वर के कार्य के इस चरण के असली मायने क्या हैं? इसका प्रभाव क्या है? और इसका कितना हिस्सा इंसान पर किया जाता है? लोगों को क्या करना चाहिए? जब तुम लोग देहधारी परमेश्वर के धरती पर आने के बाद से उसके द्वारा किए सारे कार्य को साफ तौर पर बता सकोगे, तब तुम्हारी गवाही पूरी होगी। जब तुम लोग साफ तौर पर इन पाँच चीजों के बारे में बता सकोगे : उसके कार्य के मायने; उसकी विषय-वस्तु; उसका सार, वह स्वभाव जिसका प्रतिनिधित्व उसका कार्य करता है; उसके सिद्धांत, तब यह साबित होगा कि तुम परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम हो और तुम्हारे अंदर सच्चा ज्ञान है। मेरी तुमसे बहुत अधिक अपेक्षाएँ नहीं हैं, जो लोग सच्ची खोज में लगे हैं, वे उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। अगर तुम परमेश्वर के गवाहों में से एक होने के लिए दृढ़संकल्प हो, तो तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर को किससे घृणा है और किससे प्रेम। तुमने उसके बहुत सारे कार्य का अनुभव किया है; उसके कार्य के जरिए तुम्हें उसके स्वभाव का ज्ञान होना चाहिए, उसकी इच्छा को और इंसान से उसकी अपेक्षाओं को समझना चाहिए, और इस ज्ञान का उपयोग उसकी गवाही देने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7)

सभी सृजित प्राणियों की पहली प्राथमिकता सुसमाचार फैलाना, परमेश्वर की गवाही देना और पूरे संसार और पृथ्वी के अंतिम छोर तक परमेश्वर के कार्य को फैलाना है। यह परमेश्वर के सुसमाचार को स्वीकारने वाले हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी और दायित्व है। वे इसे निभाने के लिए सम्मान से बाध्य हैं। यह भी हो सकता है कि तुम अभी यह कर्तव्य नहीं निभा रहे हो, या यह कर्तव्य तुमसे बहुत दूर है, या फिर तुमने कभी नहीं सोचा कि तुम्हें यह कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। लेकिन, तुम्हारे दिल में यह बात स्पष्ट होनी चाहिए : यह कर्तव्य तुमसे जुड़ा है। यह केवल दूसरों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह तुम्हारी जिम्मेदारी और कर्तव्य भी है। सिर्फ इसलिए कि अभी तुम्हें यह कर्तव्य निभाने के लिए नहीं सौंपा गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि इस कर्तव्य से तुम्हारा कोई लेना-देना सोचना नहीं है, कि यह कर्तव्य निभाना तुम्हारा काम नहीं है, या फिर परमेश्वर ने तुम्हें यह कर्तव्य निभाने के लिए नहीं सौंपा है। अगर तुम्हारी समझ इस स्तर तक बढ़ सकती है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे हृदय में सुसमाचार फैलाने के कर्तव्य का परिप्रेक्ष्य सत्य और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है? जब तुम्हारी समझ इस स्तर तक बढ़ जाएगी, तब एक दिन, जब तुम सभी लोग अपने सभी काम पूरे कर चुके होगे, तो परमेश्वर तुम लोगों को जगह-जगह फैल जाने का आदेश देगा, यहाँ तक कि ऐसी जगहों पर भी जो तुम्हें सबसे अजनबी, सबसे खराब और सबसे कठिन लगती हैं। तब तुम लोग क्या करोगे? (हम इसे स्वीकारने को सम्मान से बाध्य होंगे।) यह तो तुम लोग अभी कह रहे हो, लेकिन जब वह दिन आएगा, तो तुम्हारी आँखों में आँसू आ सकते हैं। अभी, तुम लोगों को इस तरह से तैयारी करनी चाहिए : तुममें यह जागरूकता होना चाहिए, “मैं इस युग में पैदा हुआ था। मैं खुशकिस्मत हूँ जो मैंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया और मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे परमेश्वर की प्रबंधन योजना के कार्य में हिस्सा लेने का मौका मिला। इसलिए, मेरे जीवन का मूल्य और महत्व मेरे जीवन की सारी ऊर्जा को परमेश्वर के सुसमाचार कार्य को फैलाने के लिए समर्पित करना होना चाहिए। मैं किसी और चीज के बारे में नहीं सोचूँगा।” क्या तुम लोग भी यही चाहते हो? (हाँ।) तुम्हारी यही इच्छा होनी चाहिए और तुम्हें इसकी तैयारी करनी और योजना बनानी चाहिए। केवल इसी तरह से तुम एक सच्चे सृजित प्राणी बन सकते हो, ऐसा सृजित प्राणी जो परमेश्वर को प्रिय है और उसके लिए पर्याप्त है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है

आज तुम सभी लोग अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त होकर प्रवचन देने और परमेश्वर के वचनों के साथ ही अंत के दिनों में उसके कार्य की गवाही देने का प्रशिक्षण ले रहे हो। चाहे फिल्में बनाना हो या परमेश्वर की गवाही देने के लिए भजन गाना, तुम लोग जो कर्तव्य निभाते हो क्या वे भ्रष्ट मानवजाति के लिए मूल्यवान हैं? (बिल्कुल हैं।) उनका मूल्य कहाँ निहित है? उनका मूल्य परमेश्वर द्वारा व्यक्त इन वचनों और सत्यों को देखने के बाद लोगों को सही मार्ग पर चलने में मदद करने में और लोगों को यह समझने में मदद करने में निहित है कि वे सृष्टि का हिस्सा हैं, और उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष आना चाहिए। बहुत से लोग जिन चीजों का सामना करते हैं उनमें से कई चीजों की असलियत जानने या इन्हें समझने में असमर्थ होते हैं। वे असहाय महसूस करते हैं और उन्हें जीवन निरर्थक और खोखला लगता है, उनके पास कोई आध्यात्मिक पोषण नहीं होता। इस सबका स्रोत क्या है? इन सबका उत्तर परमेश्वर के वचनों में निहित है। जब से तुम लोगों ने परमेश्वर में विश्वास किया है, तुम सभी ने उसके वचनों को बहुत पढ़ा है और तुमने कुछ सत्यों को भी समझा है, तो तुम लोगों को जो कर्तव्य पूरा करना चाहिए वह है परमेश्वर के वचन का उपयोग करके इन लोगों को प्रबुद्ध बनाना और उनके गलत विचारों और नजरियों को बदलना, उन्हें परमेश्वर के वचन के भीतर के सत्य को समझने और संसार के अँधेरे और बुराई को समझने में सक्षम बनाना, उन्हें सच्चा मार्ग खोजने, सृष्टिकर्ता को खोजने, परमेश्वर की वाणी सुनने, और उसके वचनों को पढ़ने में मदद करना। इससे वे कुछ सत्यों को समझ सकेंगे और परमेश्वर द्वारा किए जा रहे उद्धार के कार्य को देख पाएँगे, ताकि वे उसकी ओर मुड़कर उसके कार्य को स्वीकार सकें। यही वह कर्तव्य है जो तुम लोगों को निभाना चाहिए। तुम सबका दिल जानता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद से तुमने कितने सत्यों को समझा है और कितनी समस्याओं का समाधान किया है। आजकल, धर्मावलंबी और अविश्वासी दोनों तरह के बहुत से लोग सच्चा मार्ग खोजकर उद्धारकर्ता की तलाश में हैं। वे विशिष्ट प्रश्नों के उत्तर नहीं जानते, जैसे कि लोग क्यों जीते और मरते हैं, किसी व्यक्ति के जीवन का मूल्य और अर्थ क्या है, या लोग कहाँ से आते हैं और कहाँ जा रहे हैं। वे तुम लोगों के इंतजार में हैं, ताकि तुम सुसमाचार फैलाते हुए और परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए, उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष ले जाओ—यही कारण है कि आज जो कर्तव्य तुम लोग निभा रहे हो वे बहुत अर्थपूर्ण हैं! एक ओर तुम खुद परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर रहे हो, वहीं दूसरी ओर तुम दूसरों को भी परमेश्वर के कार्य के बारे में गवाही दे रहे हो। जितना अधिक तुम लोग इसका अनुभव करोगे, तुम्हें उतने ही अधिक सत्यों को समझने और उनसे सुसज्जित होने की जरूरत होगी, और तुम्हें उतना ही अधिक कार्य भी करना होगा। यह परमेश्वर के लिए लोगों को पूर्ण बनाने का एक बेहतरीन अवसर है। अपने कर्तव्य निभाते समय चाहे किसी भी कठिनाई का सामना करना पड़े, तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना कर उसकी ओर देखना चाहिए; जब सभी लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और मिलकर सत्य की खोज अधिक करते हैं, तो ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे हल न किया जा सके। परमेश्वर के वचनों में ऐसे बहुत से सत्य हैं जिन्हें तुम लोगों को समझना है, इसलिए तुम्हें उन पर अक्सर विचार और संगति करनी चाहिए, तभी तुम्हें पवित्र आत्मा का प्रबोधन और रोशनी मिलेगी। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान परमेश्वर पर भरोसा करके न किया जा सके, तुम लोगों की यह आस्था होनी चाहिए।

परमेश्वर ने इस मानवजाति को बनाने के बाद एक प्रबंधन योजना बनाई। पिछले कुछ हजार वर्षों में इस मानवजाति ने कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं उठाई या सृष्टिकर्ता के लिए गवाही देने का कार्य नहीं किया, और परमेश्वर ने मानवजाति के बीच जो कार्य किया वह अपेक्षाकृत छिपा हुआ और सरल था। लेकिन अंत के दिनों में चीजें पहले जैसी नहीं हैं। सृष्टिकर्ता ने वचन व्यक्त करने शुरू कर दिए हैं। वह बहुत सारे सत्य व्यक्त कर अपनी प्रबंधन योजना के रहस्य उजागर कर चुका है, लेकिन भ्रष्ट मानवजाति मंदबुद्धि और सुन्न है : लोग देखते हैं लेकिन जानते नहीं हैं, वे सुनते हैं लेकिन समझते नहीं हैं, मानो उनके मन पर अज्ञानता की परत चढ़ी हुई हो। इसलिए तुम लोगों पर एक बड़ी जिम्मेदारी है! इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? परमेश्वर द्वारा व्यक्त ये वचन और सत्य फैलाने के अलावा यह बात अभी और भी महत्वपूर्ण है कि तुम हरेक सृजित प्राणी को सृष्टिकर्ता की गवाही दो और परमेश्वर का सुसमाचार सुन चुके उन सभी सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता के समक्ष लेकर आओ, ताकि वे परमेश्वर द्वारा मानवजाति की रचना के महत्व को जान सकें, और यह समझ सकें कि सृजित प्राणी के रूप में उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष लौटना चाहिए, उसके कथन सुनने चाहिए और उसके द्वारा व्यक्त सभी सत्य स्वीकारने चाहिए। इस प्रकार सभी मनुष्यों को सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित कराया जा सकता है। क्या परमेश्वर के वचनों के केवल कुछ अंश पढ़कर या सिर्फ कुछ भजन गाना सीखकर या कार्य का केवल एक ही पहलू पूरा करके ये नतीजे हासिल करना मुमकिन है? बिल्कुल नहीं। इसलिए यदि तुम लोगों को अपने कर्तव्य भली-भाँति निभाने हैं, तो तुम्हें विभिन्न तरीकों और विभिन्न रूपों का उपयोग कर सृष्टिकर्ता के कार्यों और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं की गवाही देनी चाहिए। इस तरह तुम अधिक लोगों को सृष्टिकर्ता के समक्ष लाने में सक्षम रहोगे और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं को स्वीकार करके उसके प्रति समर्पित होने में उनकी मदद करोगे। क्या यह एक बड़ी जिम्मेदारी नहीं है? (बिल्कुल है।) तो फिर तुम लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति कैसा रवैया अपनाना चाहिए? क्या उलझन की स्थिति में रहना ठीक है? क्या चीजों से आँखें मूँद लेना ठीक है? क्या आधे-अधूरे मन से और लापरवाही से काम करना ठीक है? क्या काम को टालना और चीजों को लापरवाही से करना ठीक है? (नहीं।) तो फिर क्या करना चाहिए? (पूरे दिल से काम करना चाहिए।) तुम्हारे पास जितनी भी ऊर्जा, अनुभव और अंतर्दृष्टि है, उसका उपयोग करते हुए, तुम्हें पूरे दिल से काम करना चाहिए। अविश्वासियों को यह समझ नहीं आता कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में सबसे सार्थक काम क्या कर सकता है, लेकिन तुम लोग तो इस बारे में थोड़ा-बहुत समझते हो, है ना? (बिल्कुल।) परमेश्वर ने तुम्हें जो काम सौंपा है उसे स्वीकारना और अपना लक्ष्य पूरा करना—ये सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। आज तुम लोग जो कर्तव्य निभा रहे हो वे मूल्यवान हैं! हो सकता है कि तुम्हें अभी इसका प्रभाव दिखाई न दे, और यह भी हो सकता है कि तुम्हें अभी उनसे अच्छे नतीजे न मिलें, लेकिन उनका फल मिलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। यदि यह काम अच्छी तरह कर लिया गया तो लंबे समय में मानवजाति के लिए इसके योगदान को पैसों से नहीं मापा जा सकेगा। ऐसी सच्ची गवाहियाँ किसी भी अन्य चीज से अधिक कीमती और मूल्यवान हैं और वे अनंत काल तक बनी रहेंगी। ये परमेश्वर का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे कर्म हैं, और ये याद रखने योग्य हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने, सत्य का अनुसरण करने और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के अलावा मनुष्य के जीवन में सब कुछ खोखला है और याद रखने योग्य नहीं है। भले ही तुमने धरती को हिला देने वाले कारनामे किए हों, भले ही तुम चंद्रमा पर जाकर लौटे हो, भले ही तुमने ऐसी वैज्ञानिक प्रगति की हो जिससे मानवजाति को कुछ लाभ या मदद मिली हो, यह सब व्यर्थ है और एक दिन खत्म हो जाएगा। ऐसी एकमात्र चीज कौन-सी है जो कभी खत्म नहीं होगी? (परमेश्वर के वचन।) केवल परमेश्वर के वचन, परमेश्वर की गवाहियाँ, वे सभी गवाहियाँ और कार्य जो सृष्टिकर्ता की गवाही देते हैं, और लोगों के अच्छे कर्म खत्म नहीं होंगे। ये चीजें हमेशा रहेंगी और ये बहुत मूल्यवान हैं। इसलिए अपनी सभी सीमाएँ लाँघ दो, इस महान प्रयास को अंजाम दो और खुद को किसी भी व्यक्ति, घटनाओं और चीजों से बाधित मत होने दो; ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपाओ, और अपनी सारी ऊर्जा और प्रयास अपने कर्तव्य निभाने में लगाओ। यही वह चीज है जिसे परमेश्वर सबसे अधिक आशीष देता है और इसके लिए किसी भी हद तक कष्ट उठाना सार्थक है!

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सृजित प्राणी का कर्तव्य भली-भाँति निभाने में ही जीने का मूल्य है

यदि तुम यह स्वीकारते हो कि तुम सृजित प्राणी हो, तो तुम्हें सुसमाचार फैलाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करने और अपना कर्तव्य समुचित रूप से निभाने की खातिर कष्ट भुगतने और कीमत चुकाने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। यह कीमत कोई शारीरिक बीमारी या कठिनाई या बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न या सांसारिक लोगों की गलतफहमियाँ, और साथ ही वे क्लेश सहना भी हो सकती है जिनसे सुसमाचार फैलाते समय व्यक्ति गुजरता है : जैसे विश्वासघात किया जाना, पिटाई और डाँट-फटकार किया जाना; निंदा किया जाना—यहाँ तक कि घेरकर हमला किया जाना और मृत्यु के खतरे में डाल दिया जाना। सुसमाचार फैलाने के दौरान, यह संभव है कि परमेश्वर का कार्य पूरा होने से पहले ही तुम्हारी मृत्यु हो जाए, और तुम परमेश्वर की महिमा का दिन देखने के लिए जीवित न बचो। तुम्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। इसका उद्देश्य तुम लोगों को भयभीत करना नहीं है; यह सच्चाई है। अब जब मैंने यह स्पष्ट कर दिया है, और तुमने इसे समझ लिया है, यदि अब भी तुम लोगों की यही आकांक्षा है और तुम सुनिश्चित हो कि यह बदलेगी नहीं और तुम मृत्यु तक वफादार रहोगे, तो यह सिद्ध करता है कि तुम्हारा एक निश्चित आध्यात्मिक कद है। यह मानकर मत चलो कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों वाले इन समुद्रपार राष्ट्रों में सुसमाचार का प्रसार खतरे से खाली होगा, और तुम जो करोगे वह सब कुछ सुचारू ढंग से होता जाएगा, यह कि इन सभी को परमेश्वर की आशीष मिलेगी और उसके महान सामर्थ्य और अधिकार का साथ मिलेगा। यह मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं की एक बात है। फरीसी भी परमेश्वर में विश्वास करते थे, फिर भी उन्होंने देहधारी परमेश्वर को सलीब पर चढ़ा दिया। तो मौजूदा धार्मिक संसार देहधारी परमेश्वर के साथ कौन-सी बुरी चीजें करने में सक्षम है? उन्होंने बहुत-सी बुरी चीजें की हैं—परमेश्वर की आलोचना करना, परमेश्वर की निंदा करना, परमेश्वर का तिरस्कार करना—ऐसी कोई भी बुरी चीज नहीं है जो वे करने में सक्षम नहीं हैं। भूलो मत कि जिन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाकर मार डाला, वे विश्वासी थे। केवल उन्हीं के पास इस प्रकार का काम करने का मौका था। अविश्वासी इन चीजों की परवाह नहीं करते थे। ये विश्वासी ही थे जिन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाकर मार डालने के लिए सरकार के साथ साँठ-गाँठ की थी। इतना ही नहीं, प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के निर्णायक अंत की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और भर्त्सना थी, या यह उसकी योजना और आशीष था? यह दोनों ही नहीं था। यह क्या था? अब लोग अत्यधिक मानसिक व्यथा के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, “इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?” वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उनके जीवन को, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि समस्त मानवजाति के लिए उसने जो छुटकारे का कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही समझ और प्रवृत्ति सृजित प्राणियों की होनी चाहिए। यही अंतिम सत्य है, जिसे सुसमाचार फैलाने और अपने कर्तव्य के निर्वहन में हर किसी को समझना चाहिए—देहधारी परमेश्वर द्वारा अपना कार्य करने और मानवजाति के उद्धार के सुसमाचार को फैलाने और उसकी गवाही देने के लिए इंसान को अपने जीवन की कीमत चुकानी ही होगी। यदि तुम्हारे मन में यह अभिलाषा है, यदि तुम इस तरह गवाही दे सकते हो, तो बहुत अच्छी बात है। यदि तुम्हारे मन में अभी तक इस प्रकार की अभिलाषा नहीं है, तो तुम्हें इतना तो करना ही चाहिए कि अपने सामने उपस्थित इस दायित्व और कर्तव्य को अच्छी तरह पूरा करो, और बाकी सब परमेश्वर को सौंप दो। शायद तब, ज्यों-ज्यों महीने और वर्ष बीतेंगे और तुम्हारे अनुभव और आयु में बढ़ोतरी होगी, और सत्य की तुम्हारी समझ गहरी होती जाएगी, तो तुम्हें एहसास होगा कि अपने जीवन के अंतिम पल तक भी, परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने के कार्य के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देना तुम्हारा दायित्व और जिम्मेदारी है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है

जो जीवन-प्रवेश किए बिना कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास कर रहा हो, जो परमेश्वर की गवाही देना तो दूर रहा, अपनी अनुभवजन्य गवाही के बारे में भी न बता सके, जो किसी को सफलतापूर्वक सुसमाचार न सुना सके—वह परमेश्वर का गवाह कहलाने लायक नहीं है। लिहाजा, जिसका आध्यात्मिक कद अपरिपक्व है और जीवन-प्रवेश नहीं हुआ है, वह कभी भी परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकता। यहां निहितार्थ यह है कि इस किस्म के लोग परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं जीते हैं। अगर तुम परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं जीते हो, तुमने जीवन-प्रवेश नहीं किया है, परमेश्वर के गवाह नहीं हो, तो क्या वह तुम्हें अपना अनुयायी मानेगा? नहीं मानेगा। परमेश्वर ने तुम्हें अपना कर्तव्य निभाने का अवसर दिया है, और तुम इसके इच्छुक भी हो, लेकिन तुम्हारा व्यवहार देखकर वह जान चुका है कि इतने लंबे समय तक उस पर विश्वास करने के बावजूद तुम उसकी गवाही नहीं दे सकते हो। तुम्हारे पास न तो सच्चा अनुभवजन्य ज्ञान है, न ही सत्य की वास्तविकता, यही नहीं तुम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार जीते हो और परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं रहते हो। ... अगर तुम चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हें अपना अनुयायी स्वीकारे, तो पहले अपने जीवन-प्रवेश पर ध्यान देना होगा। इसकी शुरुआत खुद को समझने, अपना भ्रष्ट स्वभाव दूर करने लायक बनने, अपने कर्तव्य पर टिके रहने की क्षमता हासिल करने और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार अपना कर्तव्य निभाने से करनी होगी—यही सर्वोपरि है। जीवन-प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करने का उद्देश्य अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना है, यही इसका मूल अर्थ है। तुम्हें अपना कर्तव्य निभाने से जीवन-प्रवेश का प्रयास शुरू कर देना चाहिए, और जीवन-प्रवेश से तब तक बूंद-दर-बूंद सत्य को समझना और पाना चाहिए, जब तक कि तुम एक ऐसे मुकाम पर नहीं पहुंच जाते जहां तुम्हारा अपना आध्यात्मिक कद हो, जहां तुम्हारा जीवन धीरे-धीरे बढ़ता रहे और तुम्हारे पास सत्य के सच्चे अनुभव हों। फिर तुम्हें अभ्यास के सभी प्रकार के सिद्धांत साध लेने चाहिए ताकि तुम किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज से बेबस या परेशान हुए बिना अपना कर्तव्य निभा सको। इसी रास्ते चलकर तुम हौले-हौले परमेश्वर की उपस्थिति में रहने लगोगे। तुम किसी भी तरह के व्यक्ति, घटना या वस्तु से परेशान नहीं होओगे, और तुम्हें सत्य का अनुभव होगा। जैसे-जैसे तुम्हारा अनुभव भरपूर बढ़ता जाएगा, तुम परमेश्वर की गवाही देने में अधिक सक्षम होते जाओगे, और जैसे-जैसे तुम परमेश्वर की गवाही देने में अधिक सक्षम होओगे, तुम धीरे-धीरे उपयोगी व्यक्ति बनते जाओगे। उपयोगी व्यक्ति बनने पर तुम परमेश्वर के घर में मान्य मापदंड के अनुसार अपना कर्तव्य निभा सकोगे, एक सृजित प्राणी की जगह खड़े होने और परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आयोजनों के प्रति समर्पण करने में सक्षम रहोगे, और तुम दृढ़ता से खड़े रह सकोगे। जो व्यक्ति परमेश्वर की प्रशंसा पाता है, सिर्फ वही मान्य सृजित प्राणी होता है। तभी तुम उस सब के योग्य बनोगे जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन में प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है

यद्यपि तुम लोगों का विश्वास बहुत सच्चा है, फिर भी तुम लोगों में से कोई भी मेरा पूर्ण विवरण दे पाने में समर्थ नहीं है, कोई भी उन सारे तथ्यों की पूर्ण गवाही नहीं दे सकता जिन्हें तुम देखते हो। इसके बारे में सोचो : आज तुम लोगों में से ज्यादातर अपने कर्तव्यों में लापरवाह हैं, इसके बजाय वे देह-सुखों का अनुसरण कर रहे हैं, देह को तृप्त कर रहे हैं, और ललचाते हुए देह-सुखों का आनंद ले रहे हैं। तुम्हारे पास सत्य बहुत कम है। तो फिर तुम उस सबकी गवाही कैसे दे सकते हो, जो तुम लोगों ने देखा है? क्या तुम लोग सचमुच आश्वस्त हो कि तुम मेरे गवाह बन सकते हो? अगर कोई ऐसा दिन आता है, जब तुम उस सबकी गवाही देने में असमर्थ होते हो जो तुमने आज देखा है, तो तुम सृजित प्राणी का कार्यकलाप गँवा चुके होगे, और तुम्हारे अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होगा। तुम मनुष्य होने के लायक नहीं होगे। यहाँ तक कहा जा सकता है कि तुम मनुष्य नहीं रहोगे! मैंने तुम लोगों पर अथाह कार्य किया है, लेकिन चूँकि तुम फिलहाल कुछ नहीं सीख रहे, कुछ नहीं जानते, और तुम्हारा परिश्रम अकारथ है, इसलिए जब मेरे पास अपने कार्य का विस्तार करने का समय होगा, तब तुम बस भावशून्य दृष्टि से ताकोगे, तुम्हारे मुँह से आवाज नहीं निकलेगी और तुम बिल्कुल बेकार होगे। क्या यह तुम्हें सदा के लिए पापी नहीं बना देगा? जब वह समय आएगा, तो क्या तुम्हें गहरा अफसोस नहीं होगा? क्या तुम उदासी में नहीं डूब जाओगे? आज मेरा सारा कार्य बेकारी और ऊब के कारण नहीं, बल्कि भविष्य के मेरे कार्य की नींव रखने के लिए किया जाता है। ऐसा नहीं है कि मेरे सामने गतिरोध है और मुझे कुछ नया करने की जरूरत है। मैं जो कार्य करता हूँ, उसे तुम्हें समझना चाहिए; यह गली में खेल रहे किसी बच्चे द्वारा की गई कोई चीज नहीं है, बल्कि मेरे पिता के प्रतिनिधित्व में किया जाने वाला कार्य है। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि यह सब मैं स्वयं नहीं कर रहा हूँ; बल्कि मैं अपने पिता का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ। इस बीच, तुम लोगों की भूमिका दृढ़ता से अनुसरण करने, समर्पण करने, बदलने और गवाही देने की है। तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि तुम लोगों को मुझमें विश्वास क्यों करना चाहिए; यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न है जो तुम लोगों में से प्रत्येक को समझना चाहिए। मेरे पिता ने अपनी महिमा के वास्ते तुम सब लोगों को उसी क्षण से मेरे लिए पूर्वनियत कर दिया था, जिस क्षण उसने इस संसार की सृष्टि की थी। मेरे कार्य और अपनी महिमा के वास्ते उसने तुम लोगों को पूर्वनियत किया था। यह मेरे पिता के कारण ही है कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हो; यह मेरे पिता द्वारा पूर्वनियत करने के कारण ही है कि तुम मेरा अनुसरण करते हो। इसमें से कुछ भी तुम लोगों का अपना चुनाव नहीं है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि तुम लोग यह समझो कि तुम वही लोग हो, जिन्हें मेरे लिए गवाही देने के उद्देश्य से मेरे पिता ने मुझे प्रदान किया है। चूँकि उसने तुम लोगों को मुझे दिया है, इसलिए तुम लोगों को उन तरीकों का पालन करना चाहिए, जो मैं तुम लोगों को प्रदान करता हूँ, साथ ही उन तरीकों और वचनों का भी, जो मैं तुम लोगों को सिखाता हूँ, क्योंकि मेरे तरीके का पालन करना तुम लोगों का कर्तव्य है। यह मुझमें तुम्हारे विश्वास का मूल उद्देश्य है। इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ : तुम लोग बस मेरे पिता द्वारा मेरे तरीकों का पालन करने के लिए मुझे प्रदान किए गए लोग हो। हालाँकि तुम लोग सिर्फ मुझमें विश्वास करते हो; लेकिन तुम मेरे नहीं हो, क्योंकि तुम लोग इस्राएली परिवार के नहीं हो, और इसके बजाय प्राचीन साँप जैसे हो। मैं तुम लोगों से सिर्फ इतना करने के लिए कह रहा हूँ कि मेरे लिए गवाही दो, लेकिन आज तुम लोगों को मेरे मार्ग पर चलना चाहिए। यह सब भविष्य की गवाही के वास्ते है। अगर तुम लोग केवल उन लोगों की तरह कार्य करते हो जो मेरे तरीकों को सुनते हैं, तो तुम्हारा कोई मूल्य नहीं होगा और मेरे पिता द्वारा तुम लोगों को मुझे प्रदान किए जाने का महत्त्व खो जाएगा। मैं तुम लोगों को यह बताने पर जोर देता हूँ : तुम्हें मेरे मार्ग पर चलना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?

अब क्या तुम सच में जानते हो कि तुम मुझ पर क्यों विश्वास करते हो? क्या तुम सच में मेरे कार्य के उद्देश्य और महत्व को जानते हो? क्या तुम सच में अपने कर्तव्य को जानते हो? क्या तुम सच में मेरी गवाही को जानते हो? अगर तुम मुझमें मात्र विश्वास करते हो, और तुममें मेरी महिमा या गवाही नहीं पाई जाती, तो मैंने तुम्हें बहुत पहले ही बाहर निकाल दिया है। जहाँ तक सब-कुछ जानने वालों का सवाल है, वे मेरी आँख के और भी ज्यादा काँटे हैं, और मेरे घर में वे मेरे रास्ते की अड़चनों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। मेरे कार्य से पूरी तरह निकाले जाने वाले खरपतवार हैं, वे किसी काम के नहीं हैं, वे बेकार हैं; मैंने लंबे समय से उनसे घृणा की है। अकसर मेरा प्रकोप उन पर टूटता है, जिनके पास गवाही नहीं है, और मेरी लाठी कभी उन पर से नहीं हटती। मैंने बहुत पहले ही उन्हें दुष्ट के हाथों में दे दिया है; वे मेरे आशीषों से वंचित हैं। जब दिन आएगा, उनका दंड मूर्ख स्त्रियों के दंड से भी कहीं ज़्यादा पीड़ादायक होगा। आज मैं केवल वही काम करता हूँ, जो मेरा कर्तव्य है; मैं सारे गेहूँ को उस मोठ घास के साथ गठरियों में बाँधूँगा। आज मेरा यही कार्य है। पछोरने के समय वह सारी मोठ घास मेरे द्वारा पछोर दी जाएगी, और फिर गेहूँ के दानों को भंडार-गृह में इकट्ठा किया जाएगा, और पछोरी गई उस मोठ घास को जलाकर राख कर देने के लिए आग में डाल दिया जाएगा। अब मेरा कार्य मात्र सभी मनुष्यों को एक गठरी में बाँधना है, अर्थात् उन सभी को पूरी तरह से जीतना है। तब सभी मनुष्यों के अंत को प्रकट करने के लिए मैं पछोरना शुरू करूँगा। अतः तुम्हें जानना ही होगा कि अब तुम मुझे कैसे संतुष्ट कर सकते हो और तुम्हें किस तरह मेरे प्रति विश्वास में सही पथ पर आना चाहिए। अब मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और समर्पण में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारे विश्वास का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना, और किसी और के प्रति नहीं, और अंत तक समर्पित बने रहना।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?

संबंधित अनुभवात्मक गवाहियाँ

परमेश्वर की गवाही देना सच में कर्तव्य निभाना है

संबंधित भजन

परमेश्वर के लिए गवाही देना मानव का कर्तव्य है

एक विश्वासी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य परमेश्वर के लिए गवाही देना है

पिछला: 13. कर्तव्य पालन और जीवन प्रवेश के बीच संबंध

अगला: 15. अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना ही सच्ची गवाही है

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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