30. उद्धार पाने के लिए व्यक्ति को क्यों अवश्य ईमानदार होना चाहिए?

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

मेरे राज्य को उन लोगों की ज़रूरत है जो ईमानदार हैं, उन लोगों की जो पाखंडी और धोखेबाज़ नहीं हैं। क्या सच्चे और ईमानदार लोग दुनिया में अलोकप्रिय नहीं हैं? मैं ठीक विपरीत हूँ। ईमानदार लोगों का मेरे पास आना स्वीकार्य है; इस तरह के व्यक्ति से मुझे प्रसन्नता होती है, और मुझे इस तरह के व्यक्ति की ज़रूरत भी है। ठीक यही तो मेरी धार्मिकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 33

तुम लोगों को पता होना चाहिए कि परमेश्वर ईमानदार इंसान को पसंद करता है। मूल बात यह है कि परमेश्वर निष्ठावान है, अतः उसके वचनों पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है; इसके अतिरिक्त, उसका कार्य दोषरहित और निर्विवाद है, यही कारण है कि परमेश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके साथ पूरी तरह से ईमानदार होते हैं। ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीज़ें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना। मैं जो कहता हूँ वह बहुत सरल है, किंतु तुम लोगों के लिए दुगुना मुश्किल है। बहुत-से लोग ईमानदारी से बोलने और कार्य करने की बजाय नरक में दंडित होना पसंद करेंगे। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि जो बेईमान हैं उनके लिए मेरे भंडार में अन्य उपचार भी है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ तुम्हारे लिए ईमानदार इंसान बनना कितना मुश्किल काम है। चूँकि तुम लोग बहुत चतुर हो, अपने तुच्छ पैमाने से लोगों का मूल्यांकन करने में बहुत अच्छे हो, इससे मेरा कार्य और आसान हो जाता है। और चूंकि तुम में से हरेक अपने भेदों को अपने सीने में भींचकर रखता है, तो मैं तुम लोगों को एक-एक करके आपदा में भेज दूँगा ताकि अग्नि तुम्हें सबक सिखा सके, ताकि उसके बाद तुम मेरे वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाओ। अंततः, मैं तुम लोगों के मुँह से “परमेश्वर एक निष्ठावान परमेश्वर है” शब्द निकलवा लूँगा, तब तुम लोग अपनी छाती पीटोगे और विलाप करोगे, “कपटी है इंसान का हृदय!” उस समय तुम्हारी मनोस्थिति क्या होगी? मुझे लगता है कि तुम उतने खुश नहीं होगे जितने अभी हो। तुम लोग इतने “गहन और गूढ़” तो बिल्कुल भी नहीं होगे जितने कि तुम अब हो। कुछ लोग परमेश्वर की उपस्थिति में नियम-निष्ठ और उचित शैली में व्यवहार करते हैं, वे “शिष्ट व्यवहार” के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी आत्मा की उपस्थिति में वे अपने जहरीले दाँत और पँजे दिखाने लगते हैं। क्या तुम लोग ऐसे इंसान को ईमानदार लोगों की श्रेणी में रखोगे? यदि तुम पाखंडी और ऐसे व्यक्ति हो जो “व्यक्तिगत संबंधों” में कुशल है, तो मैं कहता हूँ कि तुम निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर को हल्के में लेने का प्रयास करता है। यदि तुम्हारी बातें बहानों और महत्वहीन तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे। यदि सत्य का मार्ग खोजने से तुम्हें प्रसन्नता मिलती है, तो तुम सदैव प्रकाश में रहने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवाकर्मी बने रहकर बहुत प्रसन्न हो, गुमनाम बनकर कर्मठतापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से काम करते हो, हमेशा देने का भाव रखते हो, लेने का नहीं, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निष्ठावान संत हो, क्योंकि तुम्हें किसी फल की अपेक्षा नहीं है, तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। यदि तुम स्पष्टवादी बनने को तैयार हो, अपना सर्वस्व खपाने को तैयार हो, यदि तुम परमेश्वर के लिए अपना जीवन दे सकते हो और दृढ़ता से अपनी गवाही दे सकते हो, यदि तुम इस स्तर तक ईमानदार हो जहाँ तुम्हें केवल परमेश्वर को संतुष्ट करना आता है, और अपने बारे में विचार नहीं करते हो या अपने लिए कुछ नहीं लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग प्रकाश में पोषित किए जाते हैं और वे सदा राज्य में रहेंगे। तुम्हें पता होना चाहिए कि क्या तुम्हारे भीतर सच्चा विश्वास और सच्ची वफादारी है, क्या परमेश्वर के लिए कष्ट उठाने का तुम्हारा कोई इतिहास है, और क्या तुमने परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पण किया है। यदि तुममें इन बातों का अभाव है, तो तुम्हारे भीतर विद्रोहीपन और कपट अभी शेष हैं। चूँकि तुम्हारा हृदय ईमानदार नहीं है, इसलिए तुमने कभी भी परमेश्वर से सकारात्मक स्वीकृति प्राप्त नहीं की है और प्रकाश में जीवन नहीं बिताया है। अंत में किसी व्यक्ति की नियति कैसे काम करती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके अंदर एक ईमानदार और भावुक हृदय है, और क्या उसके पास एक शुद्ध आत्मा है। यदि तुम ऐसे इंसान हो जो बहुत बेईमान है, जिसका हृदय दुर्भावना से भरा है, जिसकी आत्मा अशुद्ध है, तो तुम अंत में निश्चित रूप से ऐसी जगह जाओगे जहाँ इंसान को दंड दिया जाता है, जैसाकि तुम्हारी नियति में लिखा है। यदि तुम बहुत ईमानदार होने का दावा करते हो, मगर तुमने कभी सत्य के अनुसार कार्य नहीं किया है या सत्य का एक शब्द भी नहीं बोला है, तो क्या तुम तब भी परमेश्वर से पुरस्कृत किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम तब भी परमेश्वर से आशा करते हो कि वह तुम्हें अपनी आँख का तारा समझे? क्या यह सोचने का बेहूदा तरीका नहीं है? तुम हर बात में परमेश्वर को धोखा देते हो; तो परमेश्वर का घर तुम जैसे इंसान को, जिसके हाथ अशुद्ध हैं, जगह कैसे दे सकता है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

परमेश्वर हमेशा इस बात पर जोर क्यों देता है कि लोगों को ईमानदार होना चाहिए? चूँकि ईमानदार होना बहुत महत्वपूर्ण है—इसका सीधा संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर को समर्पित हो सकता है या नहीं और वह उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं। कुछ लोग कहते हैं : “मैं अहंकारी और आत्म-तुष्ट हूँ, और मैं अक्सर नाराज होकर भ्रष्टता दिखाता हूँ।” दूसरे कहते हैं : “मैं बहुत ओछा हूँ, तुच्छ हूँ, और जब लोग मेरी चापलूसी करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।” ये तमाम चीजें हैं जो लोगों को बाहर से दिखाई देती हैं, और ये बड़ी समस्याएँ नहीं हैं। तुम्हें इनके बारे में बोलते नहीं रहना चाहिए। तुम्हारा स्वभाव या चरित्र चाहे जैसा हो, अगर तुम परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार ईमानदार बन पाते हो, तो तुम्हें बचाया जा सकेगा। तो तुम सब क्या कहते हो? क्या ईमानदार होना महत्वपूर्ण है? यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है, इसीलिए परमेश्वर अपने वचनों के अध्याय तीन चेतावनियाँ में ईमानदार होने के बारे में बात करता है। अन्य अध्यायों में, वह अक्सर जिक्र करता है कि विश्वासियों को सामान्य आध्यात्मिक जीवन और उचित कलीसिया जीवन बिताना चाहिए, और वह वर्णन करता है कि उन्हें सामान्य मानवता के साथ कैसे जीना चाहिए। इन विषयों पर उसके वचन सामान्य हैं; उन पर विशिष्ट रूप से या बहुत विस्तार से चर्चा नहीं की गई है। लेकिन जब परमेश्वर ईमानदार होने के बारे में बोलता है, तो वह लोगों को चलने का मार्ग दिखाता है। वह लोगों को बताता है कि अभ्यास कैसे करें, और वह बहुत विस्तार और स्पष्टता से बोलता है। परमेश्वर कहते हैं, “यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा।” ईमानदार होने का संबंध उद्धार प्राप्त करने से है। तो तुम सब क्या कहते हो, परमेश्वर लोगों के ईमानदार होने की माँग क्यों करता है? यह मानव आचरण के सत्य को छूता है। परमेश्वर ईमानदार लोगों को बचाता है, और जिन्हें वह अपने राज्य के लिए चाहता है, वे ईमानदार लोग होते हैं। अगर तुम झूठ और चालबाजी में सक्षम हो, धोखेबाज, कुटिल और छली व्यक्ति हो; तो तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो। अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो इसकी कोई संभावना नहीं है कि परमेश्वर तुम्हें बचाएगा, न ही संभवतः तुम्हें बचाया जा सकेगा। तुम कहते हो कि अब तुम बहुत पवित्र हो, अहंकारी या आत्मतुष्ट नहीं हो, अपना कर्तव्य निभाते समय कीमत चुका सकने में समर्थ हो, या सुसमाचार फैलाकर अनेक लोगों का धर्म-परिवर्तन कर सकते हो। लेकिन अगर तुम ईमानदार नहीं हो, अभी भी धोखेबाज हो, बिल्कुल नहीं बदले हो, तो क्या तुम्हें बचाया जा सकेगा? बिल्कुल नहीं। इसलिए परमेश्वर के ये वचन सभी को याद दिलाते हैं कि बचाए जाने के लिए उन्हें पहले परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार ईमानदार बनना पड़ेगा। उन्हें खुद को खोलकर अपने भ्रष्ट स्वभाव, अपने इरादे और रहस्य दिखाने होंगे, और प्रकाश के मार्ग को खोजना होगा।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

ईमानदार इंसान होने का अर्थ है अंतरात्मा और विवेक युक्त व्यक्ति होना। इसका अर्थ है भरोसेमंद होना, ऐसा व्यक्ति जिससे परमेश्वर प्रेम करता है, और जो सत्य का अभ्यास और परमेश्वर से प्रेम कर सके। ईमानदार इंसान होना सामान्य मानवता होने और सच्चे मनुष्य जैसा जीवन जीने की सबसे मूल अभिव्यक्ति है। अगर कोई व्यक्ति कभी भी ईमानदार नहीं रहा या उसने ईमानदार बनने की नहीं सोची, तो फिर उसके लिए सत्य हासिल करना तो बहुत दूर रहा, वह सत्य को समझ भी नहीं सकता है। अगर तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, तो जाओ और खुद परख लो या इसका खुद अनुभव कर लो। केवल ईमानदार बनकर ही तुम्हारे दिल के द्वार परमेश्वर के लिए खुल पाएँगे, तुम सत्य स्वीकार कर पाओगे, सत्य तुम्हारा जीवन बन सकेगा और तुम सत्य को समझ और हासिल कर सकोगे। अगर तुम्हारे दिल के दरवाजे हमेशा बंद रहते हैं, अगर तुम खुलकर नहीं बोलते हो या अपने दिल की बात किसी को नहीं बताते, इस कदर कि कोई भी तुम्हें समझ नहीं सकता तो फिर तुम बड़े ही घुन्ने हो और सबसे धोखेबाज लोगों में शामिल हो। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो लेकिन खुद को परमेश्वर के सामने शुद्ध मन से नहीं खोल सकते, अगर तुम परमेश्वर से झूठ बोल सकते हो या उसे धोखा देने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर बात कर सकते हो, अगर तुम परमेश्वर के सामने अपना दिल खोलने में असमर्थ हो, और अब भी घिसी-पिटी बातें करके अपनी मंशा छिपा सकते हो, तो फिर तुम अपना ही नुकसान कर रहे होगे और परमेश्वर तुम्हारी उपेक्षा करेगा और तुम पर कार्य नहीं करेगा। तुम न कोई सत्य समझ पाओगे, न कोई सत्य हासिल कर सकोगे। क्या तुम लोग अब सत्य का अनुसरण करने और इसे हासिल करने का महत्व समझ पा रहे हो? सत्य का अनुसरण करने के लिए तुम्हें पहला काम क्या करना चाहिए? तुम्हें ईमानदार इंसान बनना चाहिए। अगर लोग ईमानदार होने की कोशिश करें तभी वे जान सकते हैं कि वे कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट हैं, उनमें वास्तव में इंसानियत बची है या नहीं, और क्या वे अपनी थाह ले सकते हैं कि नहीं या अपनी कमियाँ देख सकते हैं कि नहीं। ईमानदारी पर अमल करने पर ही वे जान सकते हैं कि वे कितने झूठ बोलते हैं और कपट और बे‌ईमानी उनके अंदर कितनी गहराई में छिपे हैं। ईमानदारी पर अमल करने का अनुभव होने पर ही वे धीरे-धीरे अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को जान सकते है और अपने प्रकृति-सार को पहचान सकते हैं और तभी उनका भ्रष्ट स्वभाव निरंतर शुद्ध हो सकेगा। अपने भ्रष्ट स्वभाव की निरंतर शुद्धि के दौरान ही लोग सत्य पा सकते हैं। इन वचनों का अनुभव करने के लिए समय लो। परमेश्वर उन लोगों को सिद्ध नहीं बनाता है जो धोखेबाज हैं। अगर तुम लोगों का हृदय ईमानदार नहीं है, अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किए जाओगे। इसी तरह, तुम कभी भी सत्य को प्राप्त नहीं कर पाओगे, और परमेश्वर को पाने में भी असमर्थ रहोगे। परमेश्वर को न पाने का क्या अर्थ है? अगर तुम परमेश्वर को प्राप्त नहीं करते हो और तुमने सत्य को नहीं समझा है, तो तुम परमेश्वर को नहीं जानोगे और तुम्हारे पास परमेश्वर के अनुकूल होने का कोई रास्ता नहीं होगा, ऐसा हुआ तो तुम परमेश्वर के शत्रु हो। अगर तुम परमेश्वर से असंगत हो, तो परमेश्वर तुम्हारा परमेश्वर नहीं है; अगर परमेश्वर तुम्हारा परमेश्वर नहीं है, तो तुम्हें बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम उद्धार प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते, तो तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? अगर तुम उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते, तो तुम हमेशा परमेश्वर के कट्टर शत्रु बनकर रहोगे और तुम्हारा परिणाम तय हो चुका होगा। इस प्रकार, अगर लोग चाहते हैं कि उन्हें बचाया जाए, तो उन्हें ईमानदार बनना शुरू करना होगा। अंत में जिन्हें परमेश्वर प्राप्त कर लेता है, उन पर एक संकेत चिह्न लगाया जाता है। क्या तुम लोग जानते हो कि वह क्या है? बाइबल में, प्रकाशित-वाक्य में लिखा है : “उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:5)। कौन हैं “वे”? ये वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर द्वारा बचाया, पूर्ण किया और प्राप्त किया जाता है। परमेश्वर उनका वर्णन कैसे करता है? उनके आचरण की विशेषताएँ और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? उन पर कोई दोष नहीं है। वे झूठ नहीं बोलते।‌ तुम सब शायद समझ-बूझ सकते हो कि झूठ न बोलने का क्या अर्थ है : इसका अर्थ ईमानदार होना है। “निर्दोष” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कोई बुराई न करना। और कोई बुराई न करना किस नींव पर निर्मित है? बिना किसी संदेह के, यह परमेश्वर का भय मानने की नींव पर निर्मित है। अतः निर्दोष होने का अर्थ है परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना। निर्दोष व्यक्ति को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? परमेश्वर की दृष्टि में केवल वे ही पूर्ण हैं, जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं; इस प्रकार, निर्दोष लोग वे हैं जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं, और केवल पूर्ण लोग ही निर्दोष हैं। यह बिल्कुल सही है। ... अगर तुम्हें लगता है कि तुम पहले ही प्रगति का अनुभव कर चुके हो, लेकिन तुम्हारे झूठ बिल्कुल भी कम नहीं हुए हैं और तुम मूल रूप से किसी अविश्वासी जैसे ही हो, तो क्या यह सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का सामान्य लक्षण है? (नहीं।) जब कोई व्यक्ति सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लेता है तो वह झूठ बहुत ही कम बोलेगा; वह मूल रूप से ईमानदार इंसान होगा। अगर तुम बहुत ज्यादा झूठ बोलते हो और तुम्हारे शब्दों में बहुत मिलावट होती है, तो इससे साबित हो जाता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले हो और तुम अभी भी एक ईमानदार इंसान नहीं हो। अगर तुम ईमानदार नहीं हो, तो फिर तुम्हारे पास जीवन प्रवेश भी नहीं होगा, फिर तुम कैसी प्रगति का अनुभव कर सकोगे? तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव अब भी मजबूती से कायम है, और तुम अविश्वासी और दुष्ट हो।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक

परमेश्वर का लोगों से ईमानदार बनने का आग्रह करना यह साबित करता है कि वह धोखेबाज लोगों से सचमुच घृणा करता है, उन्हें नापसंद करता है। धोखेबाज लोगों के प्रति परमेश्वर की नापसंदगी उनके काम करने के तरीके, उनके स्वभावों, उनके इरादों और उनकी चालबाजी के तरीकों के प्रति नापसंदगी है; परमेश्वर को ये सब बातें नापसंद हैं। यदि धोखेबाज लोग सत्य स्वीकार कर लें, अपने धोखेबाज स्वभाव को मान लें और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने को तैयार हो जाएँ, तो उनके बचने की उम्मीद भी बँध जाती है, क्योंकि परमेश्वर सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करता है, जैसा कि सत्य करता है। और इसलिए, यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले लोग बनना चाहें, तो सबसे पहले हमें अपने व्यवहार के सिद्धांतों को बदलना होगा : अब हम शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जी सकते, हम झूठ और चालबाजी के सहारे नहीं चल सकते। हमें अपने सारे झूठ त्यागकर ईमानदार बनना होगा। तब हमारे प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण बदलेगा। पहले लोग दूसरों के बीच रहते हुए हमेशा झूठ, ढोंग और चालबाजी पर निर्भर रहते थे, और शैतानी फलसफों को अपने अस्तित्व, जीवन और आचरण की नींव की तरह इस्तेमाल करते थे। इससे परमेश्वर को घृणा थी। अविश्वासियों के बीच यदि तुम खुलकर बोलते हो, सच बोलते हो और ईमानदार रहते हो, तो तुम्हें बदनाम किया जाएगा, तुम्हारी आलोचना की जाएगी और तुम्हें त्याग दिया जाएगा। इसलिए तुम सांसारिक चलन का पालन करते हो और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हो; तुम झूठ बोलने में ज्यादा-से-ज्यादा माहिर और अधिक से अधिक धोखेबाज होते जाते हो। तुम अपना मकसद पूरा करने और खुद को बचाने के लिए कपटपूर्ण साधनों का उपयोग करना भी सीख जाते हो। तुम शैतान की दुनिया में समृद्ध होते चले जाते हो और परिणामस्वरूप, तुम पाप में इतने गहरे गिरते जाते हो कि फिर उसमें से खुद को निकाल नहीं पाते। परमेश्वर के घर में चीजें ठीक इसके विपरीत होती हैं। तुम जितना अधिक झूठ बोलते और कपटपूर्ण खेल खेलते हो, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे उतना ही अधिक ऊब जाते हैं और तुम्हें त्याग देते हैं। यदि तुम पश्चाताप नहीं करते, अब भी शैतानी फलसफों और तर्क से चिपके रहते हो, अपना भेस बदलकर खुद को बढ़िया दिखाने के लिए चालें चलते और बड़ी-बड़ी साजिशें रचते हो, तो बहुत संभव है कि तुम्हें उजागर कर निकाल दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर धोखेबाज लोगों से नफरत करता है। केवल ईमानदार लोग ही परमेश्वर के घर में समृद्ध हो सकते हैं, धोखेबाज लोगों को अंततः त्यागकर बाहर निकाल दिया जाता है। यह सब परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर दिया है। केवल ईमानदार लोग ही स्वर्ग के राज्य में साझीदार हो सकते हैं। यदि तुम ईमानदार व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करोगे, सत्य का अनुसरण करने की दिशा में अनुभव प्राप्त नहीं करोगे और अभ्यास नहीं करोगे, यदि अपना भद्दापन उजागर नहीं करोगे और यदि खुद को खोल कर पेश नहीं करोगे, तो तुम कभी भी पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर पाओगे।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

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उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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