46. केवल परमेश्वर को जानने वाले ही उसकी सेवा कर सकते हैं और उसके लिए गवाही दे सकते हैं

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे परमेश्वर के अंतरंग होने चाहिए, वे परमेश्वर को प्रिय होने चाहिए, और उन्हें परमेश्वर के प्रति परम निष्ठा रखने में सक्षम होना चाहिए। चाहे तुम निजी कार्य करो या सार्वजनिक, तुम परमेश्वर के सामने परमेश्वर का आनंद प्राप्त करने में समर्थ हो, तुम परमेश्वर के सामने अडिग रहने में समर्थ हो, और चाहे अन्य लोग तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें, तुम हमेशा उसी मार्ग पर चलते हो जिस पर तुम्हें चलना चाहिए, और तुम परमेश्वर की जिम्मेदारी का पूरा ध्यान रखते हो। केवल इसी तरह के लोग परमेश्वर के अंतरंग होते हैं। परमेश्वर के अंतरंग सीधे उसकी सेवा करने में इसलिए समर्थ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर का महान आदेश और परमेश्वर की जिम्मेदारी दी गई है, वे परमेश्वर के हृदय को अपना हृदय बनाने और परमेश्वर की जिम्मेदारी को अपनी जिम्मेदारी की तरह लेने में समर्थ हैं, और वे अपने भविष्य की संभावना पर कोई विचार नहीं करते : यहाँ तक कि जब उनके पास कोई संभावना नहीं होती, और उन्हें कुछ भी मिलने वाला नहीं होता, तब भी वे हमेशा एक परमेश्वर-प्रेमी हृदय से परमेश्वर में विश्वास करते हैं। और इसलिए, इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर का अंतरंग होता है। परमेश्वर के अंतरंग उसके विश्वासपात्र भी हैं; केवल परमेश्वर के विश्वासपात्र ही उसकी बेचैनी और उसके विचार साझा कर सकते हैं, और यद्यपि उनकी देह पीड़ायुक्त और कमज़ोर होती, फिर भी वे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए दर्द सहन कर सकते हैं और उसे छोड़ सकते हैं, जिससे वे प्रेम करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को और अधिक जिम्मेदारी देता है, और जो कुछ परमेश्वर करना चाहता है, वह ऐसे लोगों की गवाही से प्रकट होता है। इस प्रकार, ये लोग परमेश्वर को प्रिय हैं, ये परमेश्वर के सेवक हैं जो उसकी इच्छा के अनुरूप हैं, और केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के साथ मिलकर शासन कर सकते हैं। जब तुम वास्तव में परमेश्वर के अंतरंग बन जाते हो, तो निश्चित रूप से तुम परमेश्वर के साथ मिलकर शासन करते हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें

परमेश्वर न्याय और ताड़ना का कार्य करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सके और उसकी गवाही दे सके। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का परमेश्वर द्वारा न्याय के बिना, संभवतः मनुष्य अपने धार्मिक स्वभाव को नहीं जान सकता था, जो कोई अपराध नहीं करता और न वह परमेश्वर के अपने पुराने ज्ञान को एक नए रूप में बदल पाता। अपनी गवाही और अपने प्रबंधन के वास्ते, परमेश्वर अपनी संपूर्णता को सार्वजनिक करता है, इस प्रकार, अपने सार्वजनिक प्रकटन के ज़रिए, मनुष्य को परमेश्वर के ज्ञान तक पहुँचने, उसको स्वभाव में रूपांतरित होने और परमेश्वर की ज़बर्दस्त गवाही देने लायक बनाता है। मनुष्य के स्वभाव का रूपांतरण परमेश्वर के कई विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज़रिए प्राप्त किया जाता है; अपने स्वभाव में ऐसे बदलावों के बिना, मनुष्य परमेश्वर की गवाही देने और उसकी इच्छा के अनुरूप बनने लायक नहीं हो पाएगा। मनुष्य के स्वभाव में रूपांतरण दर्शाता है कि मनुष्य ने स्वयं को शैतान के बंधन और अंधकार के प्रभाव से मुक्त कर लिया है और वह वास्तव में परमेश्वर के कार्य का एक आदर्श, एक नमूना, परमेश्वर का गवाह और ऐसा व्यक्ति बन गया है, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। आज देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर अपना कार्य करने के लिए आया है और वह अपेक्षा रखता है कि मनुष्य उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे, उसके प्रति समर्पित हो, उसके लिए उसकी गवाही दे—उसके व्यावहारिक और सामान्य कार्य को जाने, उसके उन सभी वचनों और कार्य के प्रति समर्पण करे, जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं और उस समस्त कार्य की गवाही दे, जो वह मनुष्य को बचाने के लिए करता है और साथ ही सभी कर्मों की जिन्हें वह मनुष्य को जीतने के लिए कार्यान्वित करता है। जो परमेश्वर की गवाही देते हैं, उन्हें परमेश्वर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए; केवल इस तरह की गवाही ही सटीक और व्यावहारिक होती है और केवल इस तरह की गवाही ही शैतान को शर्मिंदा कर सकती है। परमेश्वर अपनी गवाही के लिए उन लोगों का उपयोग करता है, जिन्होंने उसके न्याय, उसकी ताड़ना, और काट-छाँट से गुज़रकर उसे जान लिया है। वह अपनी गवाही के लिए उन लोगों का उपयोग करता है, जिन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है और इसी तरह वह अपनी गवाही देने के लिए उन लोगों का भी उपयोग करता है, जिनका स्वभाव बदल गया है और जिन्होंने इस प्रकार उसके आशीर्वाद प्राप्त कर लिए हैं। उसे मनुष्य की आवश्यकता नहीं, जो अपने मुँह से उसकी स्तुति करे, न ही उसे शैतान की किस्म के लोगों की स्तुति और गवाही की आवश्यकता है, जिन्हें उसने नहीं बचाया है। केवल वो जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही देने योग्य हैं और केवल वो जिनके स्वभाव को रूपांतरित कर दिया गया है, उसकी गवाही देने योग्य हैं। परमेश्वर जानबूझकर मनुष्य को अपने नाम को शर्मिंदा नहीं करने देगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं

धर्म के दायरे में बहुत से लोग सारा जीवन अत्यंत कष्ट भोगते हैं : अपने शरीर को वश में रखते हैं और चुनौतियों का सामना करते हैं, यहाँ तक कि अंतिम सांस तक पीड़ा भी सहते हैं! कुछ लोग अपनी मृत्यु की सुबह भी उपवास रखते हैं। वे जीवन-भर स्वयं को अच्छे भोजन और अच्छे कपड़ों से दूर रखते हैं और केवल पीड़ा सहने पर ही ज़ोर देते हैं। वे अपने शरीर को वश में करके दैहिक इच्छाओं से विद्रोह कर देते हैं। पीड़ा सहन करने का जोश सराहनीय है। लेकिन उनकी सोच, उनकी अवधारणाओं, उनके मानसिक रवैये और निश्चय ही उनके पुराने स्वभाव की लेशमात्र भी काट-छाँट नहीं की गई है। उनकी स्वयं के बारे में कोई सच्ची समझ नहीं होती। परमेश्वर के बारे में उनकी मानसिक छवि एक अज्ञात परमेश्वर की पारंपरिक छवि होती है। परमेश्वर के लिए पीड़ा सहने का उनका संकल्प, उनके उत्साह और उनकी मानवता के अच्छे चरित्र से आता है। हालांकि वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वे न तो परमेश्वर को समझते हैं और न ही उसकी इच्छा जानते हैं। वे केवल अंधों की तरह परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं और पीड़ा सहते हैं। विवेक पर वे बिल्कुल महत्व नहीं देते और उन्हें इसकी भी बहुत परवाह नहीं होती कि वे यह कैसे सुनिश्चित करें कि उनकी सेवा वास्तव में परमेश्वर की इच्छा पूरी करे। उन्हें इसका ज्ञान तो बिल्कुल ही नहीं होता कि परमेश्वर के विषय में समझ कैसे हासिल करें। जिस परमेश्वर की सेवा वे करते हैं, वह परमेश्वर की अपनी अंतर्निहित छवि नहीं है, बल्कि उनकी कल्पनाओं का एक परमेश्वर जिसके बारे में उन्होंने बस सुना है या लेखों में बस उनकी कहानियाँ सुनी हैं। फिर वे अपनी उर्वर कल्पनाओं और धर्मनिष्ठता का उपयोग परमेश्वर की खातिर पीड़ा सहने के लिए करते हैं और परमेश्वर के लिए उस कार्य का दायित्व स्वयं ले लेते हैं जो परमेश्वर करना चाहता है। उनकी सेवा बहुत ही अनिश्चित होती है, ऐसी कि उनमें से कोई भी परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने के पूरी तरह योग्य नहीं होता। चाहे वे स्वेच्छा से जितनी भी पीड़ा भुगतते हों, सेवा पर उनका मूल परिप्रेक्ष्य और परमेश्वर की उनकी मानसिक छवि अपरिवर्तित रहती है, क्योंकि वे परमेश्वर के न्याय, उसकी ताड़ना, उसके शुद्धिकरण और उसकी पूर्णता से नहीं गुज़रे हैं, न ही किसी ने सत्य द्वारा उनका मार्गदर्शन किया है। भले ही वे उद्धारकर्ता यीशु पर विश्वास करते हों, तो भी उनमें से किसी ने कभी उद्धारकर्ता को देखा नहीं होता। वे केवल किंवदंती और अफ़वाहों के माध्यम से ही उसके बारे में जानते हैं। इसलिए उनकी सेवा आँख बंद करके बेतरतीब ढंग से की जाने वाली सेवा से अधिक कुछ नहीं है, जैसे एक नेत्रहीन आदमी अपने पिता की सेवा कर रहा हो। इस प्रकार की सेवा के माध्यम से आखिरकार क्या हासिल किया जा सकता है? और इसे स्वीकृति कौन देगा? शुरुआत से लेकर अंत तक, उनकी सेवा कभी भी बदलती नहीं। वे केवल मानव-निर्मित पाठ प्राप्त करते हैं और अपनी सेवा को केवल अपनी स्वाभाविकता और ख़ुद की पसंद पर आधारित रखते हैं। इससे क्या इनाम प्राप्त हो सकता है? यहाँ तक कि पतरस, जिसने यीशु को देखा था, वह भी नहीं जानता था कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा कैसे करनी है; अंत में, वृद्धावस्था में पहुंचने के बाद ही वह इसे समझ पाया। यह उन नेत्रहीन लोगों के बारे में क्या कहता है जिन्होंने किसी भी तरह की काट-छाँट का ज़रा-भी अनुभव नहीं किया और जिनका किसी ने मार्गदर्शन नहीं किया? क्या आजकल तुम लोगों में से अधिकांश की सेवा उन नेत्रहीन लोगों की तरह ही नहीं है? जिन लोगों का न्याय नहीं हुआ है, जिनकी काट-छाँट नहीं हुई है, जो नहीं बदले हैं—क्या वे अधूरे ढंग से नहीं जीते गए हैं? ऐसे लोगों का क्या उपयोग? यदि तुम्हारी सोच, जीवन की तुम्हारी समझ और परमेश्वर की तुम्हारी समझ में कोई नया परिवर्तन नहीं दिखता है, और तुम्हें वास्तव में थोड़ा-सा भी लाभ नहीं मिलता है, तो तुम कभी भी अपनी सेवा में कुछ भी उल्लेखनीय प्राप्त नहीं कर पाओगे! परमेश्वर के कार्य की एक नई समझ और दर्शन के बिना, तुम पर विजय नहीं पाई गई है। फिर परमेश्वर का अनुसरण करने का तुम्हारा तरीका उन्हीं लोगों की तरह होगा जो पीड़ा सहते हैं और उपवास रखते हैं : उसका कोई मूल्य नहीं होगा! वे जो करते हैं उसमें कोई गवाही नहीं होती, इसीलिए मैं कहता हूँ कि उनकी सेवा व्यर्थ होती है! जीवनभर वे लोग कष्ट भोगते हैं और बंदीगृह में समय बिताते हैं; वे हर पल सहनशील, दयालु होते हैं और हमेशा चुनौतियों का सामना करते हैं। उन्हें दुनिया बदनाम करती है, नकार देती है और वे हर तरह की कठिनाई का अनुभव करते हैं। हालाँकि वे अंत तक आज्ञापालन करते हैं, लेकिन फिर भी, उन पर विजय प्राप्त नहीं की जाती और वे विजय प्राप्ति की कोई भी गवाही पेश नहीं कर पाते। वे कम कष्ट नहीं भोगते, लेकिन अपने भीतर वे परमेश्वर को बिल्कुल नहीं जानते। उनकी पुरानी सोच, पुरानी अवधारणाओं, धार्मिक प्रथाओं, मानव-निर्मित ज्ञान और मानवीय विचारों में से किसी की भी काट-छाँट नहीं हुई होती है। उनमें कोई नई समझ नहीं होती। परमेश्वर के बारे में उनकी थोड़ी-सी भी समझ सही या सटीक नहीं होती। उन्होंने परमेश्वर की इच्छा को गलत समझ लिया होता है। क्या इससे परमेश्वर की सेवा होती है? तुमने परमेश्वर के बारे में अतीत में जो कुछ भी समझा हो, यदि तुम उसे आज भी बनाए रखो और चाहे परमेश्वर कुछ भी करे, तुम परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान को अपनी अवधारणाओं और विचारों पर आधारित रखना जारी रखो, अर्थात्, तुम्हारे पास परमेश्वर का कोई नया, सच्चा ज्ञान न हो और तुम परमेश्वर की वास्तविक छवि और स्वभाव को जानने में विफल रहे हो, यदि परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ अभी भी सामंती, अंधविश्वासी सोच पर आधारित है और अब भी मानवीय कल्पनाओं और अवधारणाओं से पैदा हुई है, तो तुम पर विजय प्राप्त नहीं की गई है। मैं अब जो सारे वचन कहता हूँ, उनका उद्देश्य यह है कि तुम जान सको, और यह ज्ञान तुम्हें एक सटीक और नई समझ की ओर ले जाए; इनका उद्देश्य तुम लोगों के भीतर बसी पुरानी अवधारणाओं और ज्ञान को काटना-छाँटना भी है। अगर तुम सच में मेरे वचनों को खाते-पीते हो, तो तुम्हारे ज्ञान में काफी बदलाव आएगा। यदि तुम एक समर्पित हृदय के साथ परमेश्वर के वचनों को खाओगे-पिओगे, तो तुम्हारा परिप्रेक्ष्य बदल जाएगा। यदि तुम बार-बार ताड़ना को स्वीकार कर पाओ, तो तुम्हारी पुरानी मानसिकता धीरे-धीरे बदल जाएगी। यदि तुम्हारी पुरानी मानसिकता पूरी तरह से नई बन जाए, तो तुम्हारा अभ्यास भी तदनुसार बदलेगा। इस तरह तुम्हारी सेवा अधिक से अधिक लक्ष्य पर होगी और अधिक से अधिक परमेश्वर की इच्छा को पूरा कर पाएगी।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (3)

प्रत्येक व्यक्ति, जिसने संकल्प लिया है, परमेश्वर की सेवा कर सकता है—परंतु यह अवश्य है कि जो परमेश्वर की इच्छा का पूरा ध्यान रखते हैं और परमेश्वर की इच्छा को समझते हैं, केवल वे ही परमेश्वर की सेवा करने के योग्य और पात्र हैं। मैंने तुम लोगों में यह पाया है : बहुत-से लोगों का मानना है कि जब तक वे परमेश्वर के लिए सुसमाचार का उत्साहपूर्वक प्रसार करते हैं, परमेश्वर के लिए सड़क पर जाते हैं, परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते एवं चीज़ों का त्याग करते हैं, इत्यादि, तो यह परमेश्वर की सेवा करना है। यहाँ तक कि अधिक धार्मिक लोग मानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ बाइबल हाथ में लेकर यहाँ-वहाँ भागना, स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार का प्रसार करना और पश्चात्ताप तथा पाप स्वीकार करवाकर लोगों को बचाना है। बहुत-से धार्मिक अधिकारी हैं, जो सोचते हैं कि सेमिनरी में उन्नत अध्ययन करने और प्रशिक्षण लेने के बाद चैपलों में उपदेश देना और बाइबल के धर्मग्रंथ को पढ़कर लोगों को शिक्षा देना परमेश्वर की सेवा करना है। इतना ही नहीं, गरीब इलाकों में ऐसे भी लोग हैं, जो मानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ बीमार लोगों की चंगाई करना और अपने भाई-बहनों में से दुष्टात्माओं को निकालना है, या उनके लिए प्रार्थना करना या उनकी सेवा करना है। तुम लोगों के बीच ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो मानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, प्रतिदिन परमेश्वर से प्रार्थना करना, और साथ ही हर जगह कलीसियाओं में जाकर कार्य करना है। कुछ ऐसे भाई-बहन भी हैं, जो मानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने का अर्थ कभी भी विवाह न करना और परिवार न बनाना, और अपने संपूर्ण अस्तित्व को परमेश्वर के प्रति समर्पित कर देना है। बहुत कम लोग जानते हैं कि परमेश्वर की सेवा करने का वास्तविक अर्थ क्या है। यद्यपि परमेश्वर की सेवा करने वाले इतने लोग हैं, जितने कि आकाश में तारे, किंतु ऐसे लोगों की संख्या नगण्य है—दयनीय रूप से कम है, जो प्रत्यक्षतः परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं, और जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में समर्थ हैं। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ, क्योंकि तुम लोग “परमेश्वर की सेवा” वाक्यांश के सार को नहीं समझते, और यह बात तो बहुत ही कम समझते हो कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा कैसे की जाए। लोगों को यह समझने की तत्काल आवश्यकता है कि वास्तव में परमेश्वर की किस प्रकार की सेवा उसकी इच्छा के सामंजस्य में हो सकती है।

यदि तुम लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करना चाहते हो, तो तुम लोगों को पहले यह समझना होगा कि किस प्रकार के लोग परमेश्वर को प्रिय होते हैं, किस प्रकार के लोगों से परमेश्वर घृणा करता है, किस प्रकार के लोग परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाते हैं, और किस प्रकार के लोग परमेश्वर की सेवा करने की योग्यता रखते हैं। तुम लोगों को कम से कम इस ज्ञान से लैस अवश्य होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, तुम लोगों को परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य जानने चाहिए, और उस कार्य को भी जानना चाहिए, जिसे परमेश्वर यहाँ और अभी करेगा। इसे समझने के पश्चात्, और परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के माध्यम से, तुम लोगों को पहले प्रवेश पाना चाहिए और पहले परमेश्वर की आज्ञा प्राप्त करनी चाहिए। जब तुम लोग परमेश्वर के वचनों का वास्तविक अनुभव कर लोगे, और जब तुम वास्तव में परमेश्वर के कार्य को जान लोगे, तो तुम लोग परमेश्वर की सेवा करने योग्य हो जाओगे। और जब तुम लोग परमेश्वर की सेवा करते हो, तब वह तुम लोगों की आध्यात्मिक आँखें खोलता है, और तुम्हें अपने कार्य की अधिक समझ प्राप्त करने और उसे अधिक स्पष्टता से देखने की अनुमति देता है। जब तुम इस वास्तविकता में प्रवेश करोगे, तो तुम्हारे अनुभव अधिक गहरे और व्यावहारिक हो जाएँगे, और तुम लोगों में से वे सभी, जिन्हें इस प्रकार के अनुभव हुए हैं, कलीसियाओं के बीच आने-जाने और अपने भाई-बहनों को आपूर्ति प्रदान करने में सक्षम हो जाएँगे, ताकि तुम लोग अपनी कमियाँ दूर करने के लिए एक-दूसरे की खूबियों का इस्तेमाल कर सको, और अपनी आत्माओं में अधिक समृद्ध ज्ञान प्राप्त कर सको। केवल यह परिणाम प्राप्त करने के बाद ही तुम लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने योग्य बन पाओगे और अपनी सेवा के दौरान परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाओगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें

परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप के ज्ञान का मनुष्यों के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह परमेश्वर पर और अधिक विश्वास रखने और उसके प्रति सच्चा समर्पण करने और उनका भय मानने में उनकी सहायता कर सकता है। तब वे आँख मूँदकर उसका अनुसरण या आराधना नहीं करते रहते। परमेश्वर को मूर्ख या आँख मूँदकर भीड़ का अनुसरण करने वाले नहीं चाहिए, बल्कि ऐसे लोगों का एक समूह चाहिए, जिनके हृदय में परमेश्वर के स्वभाव की एक स्पष्ट समझ और ज्ञान हो और जो परमेश्वर के गवाह के रूप में कार्य कर सकते हों, ऐसे लोग जो परमेश्वर की मनोहरता की वजह से, उसके स्वरूप की वजह से और उसके धार्मिक स्वभाव की वजह से उसका कभी परित्याग नहीं करेंगे। परमेश्वर के अनुयायी के रूप में, यदि तुम्हारे हृदय में अभी भी स्पष्टता की कमी है, या परमेश्वर के सच्चे अस्तित्व, उसके स्वभाव, उसके स्वरूप, और मानवजाति के उद्धार की उसकी योजना के बारे में अस्पष्टता या भ्रम है, तो तुम्हारा विश्वास परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त नहीं कर सकता। परमेश्वर नहीं चाहता कि इस प्रकार के लोग उसका अनुसरण करें, और वह इस प्रकार के लोगों का अपने सामने आना पसंद नहीं करता। चूँकि इस प्रकार के व्यक्ति परमेश्वर को नहीं समझते, इसलिए वे अपना हृदय परमेश्वर को देने में असमर्थ हैं—उनका हृदय उसके लिए बंद है, इसलिए परमेश्वर के प्रति उनका विश्वास अशुद्धताओं से भरा हुआ है। उनका परमेश्वर का अनुसरण केवल अंधानुसरण ही कहा जा सकता है। लोग केवल तभी सच्चा विश्वास प्राप्त कर सकते हैं और केवल तभी सच्चे अनुयायी बन सकते हैं, जब उन्हें परमेश्वर की सच्ची समझ और ज्ञान हो, जो उनके भीतर परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण और भय उत्पन्न करता हो। केवल इसी तरह से वे अपना हृदय परमेश्वर को दे सकते हैं और उसे उसके लिए खोल सकते हैं। परमेश्वर यही चाहता है, क्योंकि जो कुछ भी वे करते और सोचते हैं, वह परमेश्वर की परीक्षा का सामना कर सकता है और परमेश्वर की गवाही दे सकता है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

लोगों के हृदय में परमेश्वर की समझ जितनी अधिक होती है, उतनी ही उनके हृदय में उसके लिए जगह होती है। उनके हृदय में परमेश्वर का ज्ञान जितना बड़ा होता है, उनके हृदय में परमेश्वर का स्थान उतना ही बड़ा होता है। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, अगर वह खोखला और अस्पष्ट है, तो जिस परमेश्वर में तुम विश्वास करते हो, वह भी खोखला और अस्पष्ट ही होगा। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, वह तुम्हारी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के दायरे तक ही सीमित होता है, और उसका सच्चे स्वयं परमेश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है। इसलिए, परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को जानना, परमेश्वर की व्यावहारिकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को जानना, स्वयं परमेश्वर की सच्ची पहचान को जानना, उसके स्वरूप को जानना, सभी सृजित चीजों के बीच अभिव्यक्त उसके कार्यों को जानना—ये चीजें हर उस व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो परमेश्वर को जानने की कोशिश में लगा है। इनका इस बात से सीधा संबंध है कि लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं। अगर तुम परमेश्वर के बारे में अपनी समझ केवल शब्दों तक सीमित रखते हो, अगर तुम उसे अपने छोटे-मोटे अनुभवों, परमेश्वर के अनुग्रह के बारे में अपनी समझ या परमेश्वर के लिए अपनी छोटी-मोटी गवाहियों तक ही सीमित रखते हो, तो मैं कहता हूँ कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह सच्चा स्वयं परमेश्वर बिल्कुल नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह एक काल्पनिक परमेश्वर है, सच्चा परमेश्वर नहीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सच्चा परमेश्वर वह है, जो हर चीज पर शासन करता है, जो हर चीज के मध्य चलता है, और हर चीज का प्रबंधन करता है। वही है, जिसकी मुट्ठी में पूरी मानवजाति और सभी चीजों की नियति है। जिस परमेश्वर के बारे में मैं बात कर रहा हूँ, उसका कार्य और उसके कृत्‍य लोगों के एक छोटे-से हिस्से तक ही सीमित नहीं हैं। अर्थात्, वे केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं हैं, जो वर्तमान में उसका अनुसरण करते हैं। उसके कर्म सभी चीजों में, सभी चीजों के अस्तित्व में, और सभी वस्तुओं के परिवर्तन की व्यवस्थाओं में अभिव्यक्त होते हैं। अगर तुम परमेश्वर की सभी सृजित चीजों में परमेश्वर का कोई कर्म देख या पहचान नहीं सकते, तो तुम उसके किसी भी कर्म की गवाही नहीं दे सकते। अगर तुम परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते, अगर तुम उस छोटे तथाकथित परमेश्वर की बात करते रहते हो जिसे तुम जानते हो, वह परमेश्वर जो तुम्हारे अपने विचारों तक ही सीमित है और तुम्हारे मस्तिष्क के संकुचित दायरे में रहता है, अगर तुम उसी किस्म के परमेश्वर के बारे में बोलते रहते हो, तो परमेश्वर कभी तुम्हारी आस्था की प्रशंसा नहीं करेगा। जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, तो अगर तुम ऐसा सिर्फ इस संदर्भ में करते हो कि कैसे तुम परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हो, कैसे तुम परमेश्वर का अनुशासन और उसकी ताड़ना स्वीकार करते हो, और कैसे तुम उसके लिए अपनी गवाही में उसके आशीषों का आनंद लेते हो, तो यह बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है, और यह उसे कतई संतुष्ट नहीं कर सकता। अगर तुम परमेश्वर के लिए उस तरह गवाही देना चाहते हो जो उसके इरादों के अनुरूप हो, सच्चे स्वयं परमेश्वर के लिए गवाही देना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के कार्यों से उसके स्वरूप को समझना होगा। तुम्हें हर चीज पर परमेश्वर के नियंत्रण से उसका अधिकार देखना चाहिए, और यह तथ्य देखना चाहिए कि कैसे वह समस्त मानवजाति का भरण-पोषण करता है। अगर तुम केवल यह स्वीकार करते हो कि तुम्हारा दैनिक भरण-पोषण और जीवन की तुम्हारी जरूरत की चीजें परमेश्वर से आती हैं, लेकिन तुम यह तथ्य नहीं देख पाते कि परमेश्वर ने अपनी सृष्टि की सभी चीजें संपूर्ण मानवजाति के पोषण के लिए ली हैं, और सभी चीजों पर अपने शासन के माध्यम से वह संपूर्ण मानवजाति की अगुआई कर रहा है, तो तुम परमेश्वर के लिए गवाही देने में कभी सक्षम नहीं होगे।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

एक सृजित प्राणी के रूप में यदि तुम सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहते हो और परमेश्वर की इच्छा को समझते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के कार्य को अवश्य समझना चाहिए, सृजित प्राणियों के लिए परमेश्वर की इच्छा को अवश्य समझना चाहिए, तुम्हें उसकी प्रबंधन योजना को अवश्य समझना चाहिए, और उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य के समस्त महत्व को भी अवश्य समझना चाहिए। जो लोग इस बात को नहीं समझते हैं वे गुणसंपन्न सृजित प्राणी नहीं हैं! सृजित प्राणी के रूप में यदि तुम यह नहीं समझते हो कि तुम कहाँ से आए हो, मानवजाति के इतिहास और परमेश्वर द्वारा किए गए संपूर्ण कार्य को नहीं समझते हो, और, इसके अलावा, यह नहीं समझते हो कि आज तक मानवजाति का विकास कैसे हुआ है, और नहीं समझते हो कि कौन संपूर्ण मानवजाति को नियंत्रित करता है, तो तुम अपने कर्तव्य को करने में अक्षम हो। परमेश्वर ने आज तक मानवजाति की अगुवाई की है, और जब से उसने पृथ्वी पर मनुष्य की रचना की है तब से उसने उसे कभी भी नहीं छोड़ा है। पवित्र आत्मा कभी भी कार्य करना बंद नहीं करता है, उसने मानवजाति की अगुवाई करना कभी भी बंद नहीं किया है, और कभी भी मानवजाति को नहीं त्यागा है। परंतु परमेश्वर के बारे में जानना तो दूर, मानवजाति को यह भी अहसास नहीं होता कि परमेश्वर है, और क्या सभी सृजित प्राणियों के लिए इससे अधिक अपमानजनक कुछ और हो सकता है? परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से मनुष्य की अगुवाई करता है, परंतु मनुष्य परमेश्वर के कार्य को नहीं समझता है। तुम एक सृजित प्राणी हो, फिर भी तुम अपने ही इतिहास को नहीं समझते हो, और इस बात से अनजान हो कि किसने तुम्हारी यात्रा में तुम्हारी अगुआई की है, तुम परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रति बेसुध हो और इसलिए तुम परमेश्वर को नहीं जान सकते हो। यदि तुम अब भी नहीं जानते हो, तो तुम कभी भी परमेश्वर की गवाही देने के योग्य नहीं बनोगे। आज, सृष्टिकर्ता व्यक्तिगत तौर पर एक बार फिर से सभी लोगों की अगुवाई कर रहा है, और सभी लोगों को अपनी बुद्धि, सर्वशक्तिमत्ता, उद्धार और उत्कृष्टता दिखाता है। फिर भी तुम्हें अब भी न तो इसका अहसास है और न तुम इसे समझते हो—इसलिए क्या तुम वह नहीं हो जिसे उद्धार प्राप्त नहीं होगा? जो शैतान से संबंधित होते हैं वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते हैं और जो परमेश्वर से संबंधित होते हैं वे परमेश्वर की आवाज़ को सुन सकते हैं। वे सभी लोग जो मेरे द्वारा बोले गए वचनों को महसूस करते और समझते हैं ऐसे लोग हैं जो बचा लिए जाएँगे, और परमेश्वर की गवाही देंगे; वे सभी लोग जो मेरे द्वारा बोले गए वचनों को नहीं समझते हैं, परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो त्याग दिए जाएँगे। जो लोग परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते हैं और परमेश्वर के कार्य का अहसास नहीं करते हैं वे परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने में अक्षम हैं, और इस प्रकार के लोग परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते। यदि तुम परमेश्वर की गवाही देना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर को अवश्य जानना होगा, और परमेश्वर के कार्य के द्वारा ही परमेश्वर के ज्ञान को पाया जा सकता है। कुल मिला कर, यदि तुम परमेश्वर को जानने की इच्छा करते हो, तो तुम्हें उसके कार्य को अवश्य जानना चाहिए : परमेश्वर के कार्य को जानना सबसे महत्वपूर्ण बात है। जब कार्य के तीन चरण समाप्ति पर पहुँचेंगे, तो ऐसे लोगों का एक समूह बनाया जाएगा जो परमेश्वर की गवाही देंगे, ऐसे लोगों का समूह जो परमेश्वर को जानते हैं। ये सभी लोग परमेश्वर को जानेंगे और सत्य को व्यवहार में लाने में समर्थ होंगे। उनमें मानवता और समझ होगी और उन्हें परमेश्वर के उद्धार के कार्य के तीनों चरणों का ज्ञान होगा। यही कार्य अंत में निष्पादित होगा, और यही लोग 6,000 साल के प्रबंधन के कार्य का सघनित रूप हैं, और शैतान की अंतिम पराजय की सबसे शक्तिशाली गवाही हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

मैं तुम लोगों से प्रशासनिक आज्ञाओं के विषय की बेहतर समझ हासिल करने और परमेश्वर के स्वभाव को जानने का प्रयास करने का आग्रह करता हूँ। अन्यथा, तुम लोग अपनी जबान बंद नहीं रख पाओगे और बड़ी-बड़ी बातें करोगे, तुम अनजाने में परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करके अंधकार में जा गिरोगे और पवित्र आत्मा एवं प्रकाश की उपस्थिति को गँवा दोगे। चूँकि तुम्हारे काम के कोई सिद्धांत नहीं हैं, तुम्हें जो नहीं करना चाहिए वह करते हो, जो नहीं बोलना चाहिए वह बोलते हो, इसलिए तुम्हें यथोचित दंड मिलेगा। तुम्हें पता होना चाहिए कि, हालाँकि कथन और कर्म में तुम्हारे कोई सिद्धांत नहीं हैं, लेकिन परमेश्वर इन दोनों बातों में अत्यंत सिद्धांतवादी है। तुम्हें दंड मिलने का कारण यह है कि तुमने परमेश्वर का अपमान किया है, किसी इंसान का नहीं। यदि जीवन में बार-बार तुम परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध अपराध करते हो, तो तुम नरक की संतान ही बनोगे। इंसान को ऐसा प्रतीत हो सकता है कि तुमने कुछ ही कर्म तो ऐसे किए हैं जो सत्य के अनुरूप नहीं हैं, और इससे अधिक कुछ नहीं। लेकिन क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर की निगाह में, तुम पहले ही एक ऐसे इंसान हो जिसके लिए अब पाप करने की कोई और छूट नहीं बची है? क्योंकि तुमने एक से अधिक बार परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन किया है और फिर तुममें पश्चाताप के कोई लक्षण भी नहीं दिखते, इसलिए तुम्हारे पास नरक में जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, जहाँ परमेश्वर इंसान को दंड देता है। परमेश्वर का अनुसरण करते समय, कुछ थोड़े-से लोगों ने कुछ ऐसे कर्म कर दिए जिनसे सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ, लेकिन काट-छाँट और मार्गदर्शन के बाद, उन्होंने धीरे-धीरे अपनी भ्रष्टता का अहसास किया, उसके बाद वास्तविकता के सही मार्ग में प्रवेश किया, और आज तक यथार्थवादी हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अंत तक बने रहेंगे। मुझे ईमानदार इंसान की तलाश है; यदि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और सिद्धांत के अनुसार कार्य करते हो, तो तुम परमेश्वर के विश्वासपात्र हो सकते हो। यदि अपने कामों से तुम परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं करते, तुम परमेश्वर की इच्छा की खोज करते हो और तुममें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय है, तो तुम्हारी आस्था मानक के अनुरूप है। जो भी व्यक्ति परमेश्वर का भय नहीं मानता, और उसका हृदय डर से नहीं काँपता, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि वह परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन करेगा। बहुत-से लोग अपनी तीव्र भावना के बल पर परमेश्वर की सेवा तो करते हैं, लेकिन उन्हें परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं की कोई समझ नहीं होती, उसके वचनों में छिपे अर्थों का तो उन्हें कोई भान तक नहीं होता। इसलिए, नेक इरादों के बावजूद वे प्रायः ऐसे काम कर बैठते हैं जिनसे परमेश्वर के प्रबंधन में विघ्न पहुँचता है। गंभीर मामलों में, उन्हें बाहर निकाल दिया जाता है, आगे से परमेश्वर का अनुसरण करने के किसी भी अवसर से वंचित कर दिया जाता है, नरक में फेंक दिया जाता है और परमेश्वर के घर के साथ उनके सभी संबंध समाप्त हो जाते हैं। ये लोग अपने नादान नेक इरादों की शक्ति के आधार पर परमेश्वर के घर में काम करते हैं, और अंत में परमेश्वर के स्वभाव को क्रोधित कर बैठते हैं। लोग अधिकारियों और स्वामियों की सेवा करने के अपने तरीकों को परमेश्वर के घर में ले आते हैं, और व्यर्थ में यह सोचते हुए कि ऐसे तरीकों को यहाँ आसानी से लागू किया जा सकता है, उन्हें उपयोग में लाने की कोशिश करते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि परमेश्वर का स्वभाव किसी मेमने का नहीं बल्कि एक सिंह का स्वभाव है। इसलिए, जो लोग पहली बार परमेश्वर से जुड़ते हैं, वे उससे संवाद नहीं कर पाते, क्योंकि परमेश्वर का हृदय इंसान की तरह नहीं है। जब तुम बहुत-से सत्य समझ जाते हो, तभी तुम परमेश्वर को निरंतर जान पाते हो। यह ज्ञान शब्दों या धर्म सिद्धांतों से नहीं बनता, बल्कि इसे एक खज़ाने के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिससे तुम परमेश्वर के साथ गहरा विश्वास पैदा कर सकते हो और इसे एक प्रमाण के रूप में उपयोग सकते हो कि वह तुमसे प्रसन्न होता है। यदि तुममें ज्ञान की वास्तविकता का अभाव है और तुम सत्य से युक्त नहीं हो, तो मनोवेग में की गई तुम्हारी सेवा से परमेश्वर सिर्फ तुमसे घृणा और ग्लानि ही करेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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