मेमने के पदचिह्नों पर चलना
"चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे 'जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना' चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा निष्कासित कर दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि 'यहोवा ही परमेश्वर है' और 'यीशु ही मसीह है,' जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। जो लोग बिलकुल अंत तक मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं, केवल वे ही अंतिम आशीष प्राप्त कर सकते हैं" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। हम परमेश्वर के वचनों से समझ सकते हैं कि परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करना और उसके पदचिह्नों पर चलना कितना अहम है। पहले मैं सत्य को नहीं समझता था, बस अपनी कल्पनाओं से चिपका रहता था, यह सोच कर कि अगर मैं प्रभु यीशु के नाम के प्रति सच्चा बना रहूँ, तो वह मुझे अपने साथ स्वर्ग ले जाएगा। इसीलिए मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य को नहीं खोजा। प्रभु का स्वागत करने का मौक़ा मैं गंवाने ही वाला था।
अगस्त 2012 में एक दिन, मैं रात के खाने के बाद अपने बिस्तर पर अधलेटा था, मेरी पत्नी हेडफोन लगाये मेरे सामने बैठी थी। मुझे याद है, संगीत की कोई मधुर धुन मुझे सुनाई दे रही थी। मैंने उससे पूछा, "ये कौन-सी धुन है? तुम क्या सुन रही हो?" उसने कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भजन।" मैंने तुरंत सीधे बैठ कर ऊंची आवाज़ में पूछा, "क्या कहा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर? क्या तुमने प्रभु यीशु को धोखा दे दिया?" उसने सख्त लहज़े में तुरंत जवाब दिया, "तुम्हें नहीं मालूम तुम क्या बोल रहे हो! प्रभु यीशु वापस लौट आया है। उसने राज्य के युग की शुरुआत की है और अनुग्रह के युग का अंत किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, इसलिए मैं प्रभु को धोखा नहीं दे रही हूँ, बल्कि मेमने के पदचिह्नों पर चल रही हूँ| जैसा कि बाइबल में कहा गया है, 'ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं' (प्रकाशितवाक्य 14:4)। ज़रा सोचो, जब प्रभु यीशु ने प्रकट हो कर कार्य किया, तो बहुत-से लोगों ने धार्मिक स्थल को छोड़ कर उसके कार्य को स्वीकार कर लिया। क्या तुम कहोगे कि उन लोगों ने यहोवा परमेश्वर को धोखा दे दिया? उन लोगों ने यहोवा परमेश्वर को धोखा नहीं दिया, बल्कि वे परमेश्वर के पदचिह्नों के साथ चले, और प्रभु ने उन सबको बचाया। दरअसल, मुख्य पादरी, शास्त्री और फरीसी ही यह सोच कर कि वे यहोवा परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं, बाइबल की व्यवस्थाओं से चिपके हुए थे, प्रभु यीशु की निंदा कर रहे थे, और आखिर वे परमेश्वर से दंडित और अभिशप्त हुए। क्या तुम्हें इस बारे में वाकई नहीं मालूम?" उस पल मुझे कुछ नहीं सूझा कि उसका खंडन कैसे करूं, इसलिए मैंने बस इतना ही कहा, "प्रभु ने हमें आशीष दिया है। चाहे जो हो, हमें उसके नाम और मार्ग के प्रति सच्चा रहना चाहिए। हम कृतघ्न नहीं हो सकते!" फिर, मैं आग बबूला हो कर झटके से बाहर निकल गया। इस घटना के बारे में मैंने अपनी बेटी को बता दिया, ताकि अपनी पत्नी को रोक सकूं, उसने मेरी तरफदारी की। उसी दिन बाद में, जब मेरी पत्नी एक सभा में गयी, तो मेरी बेटी तमाशा खड़ा करने के लिए वहां पहुँच गयी। काम के बाद मुझे इस बारे में पता चला। मैंने उससे कहा, "तुमने आज बहुत बढ़िया काम किया। शाबाश, लगी रहो। हर रोज़ जब मैं काम पर जाऊं, तो अपनी मॉम पर नज़र रखो। हमें उसे प्रभु यीशु का अनुसरण करने की तरफ वापस लाने का कोई रास्ता ढूँढ़ना होगा।" लेकिन कुछ दिन बाद, हमारी बेटी स्कूल वापस चली गयी। इस डर से कि मेरी पत्नी और ज़्यादा सभाओं में जाएगी, मैंने अपने दस साल के बेटे को मनाया कि वह उस पर नज़र रखे, देखे कि कहीं वो सभाओं में गयी तो नहीं। हर दिन मेरे काम से लौटने पर वह मुझे बताता कि वो कहाँ गयी थी। यह सुन कर कि वो काम पर गयी थी, मुझे थोड़ा सुकून महसूस होने लगा। लेकिन कुछ अजीब चीज़ें हो रही थीं। अब उसने महजोंग खेलना छोड़ दिया था। इसके बजाय वह घर साफ़ करने लगी थी। खेत का काम भी वह निपटा रही थी। मैं उलझन में था। वह हमेशा महजोंग खेला करती थी, घर के कामकाज की सुध नहीं लेती थी, मैं उसे खेल बंद करने को प्रेरित नहीं कर सका था। वह प्रभु के सामने प्रार्थना करती, अपराध स्वीकार करती, लेकिन कभी बदली नहीं। तो आखिर वह क्यों बदल गयी? मैं समझ नहीं पाया।
एक रात, मेरी नींद खुली, तो मैंने परदे पर रोशनी की पट्टी देखी। मैं हैरान था कि रोशनी कहाँ से आ रही है। मैंने देखा कि यह मेरी पत्नी के कंबल के अंदर से आ रही है। मैंने हैरत में सोचा, "आखिर वह कर क्या रही है?" मैं सावधानी से बिस्तर से उतर कर, दबे पाँव बिस्तर की दूसरी तरफ गया, और बिस्तर के नीचे झांका। वह फ्लैशलाइट की रोशनी में एक क़िताब पढ़ रही थी। मुझे लगा, "वह अभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखती है? अभी भी वह क़िताब पढ़ रही है। आखिर उसमें ऐसा क्या है, जो वह इस तरह से पढ़ रही है? मेरे विरोध करने के बावजूद, वह विश्वास रखने पर क्यों डटी हुई है?" मैं इस बात को समझ नहीं पाया। मैंने फिर सोचा कि उसे महजोंग खेलना इतना अच्छा लगता है, कि वह घर के कामकाज की सुध नहीं लेती। मैं हैरान था, "आखिर हुआ क्या है? क्या उस क़िताब ने उसे बदल दिया है?" फिर मैंने सोचा, "वही है। मुझे पता लगाना होगा कि उसमें वास्तव में क्या लिखा हुआ है।" एक दिन जब मेरी पत्नी सुबह के नाश्ते के बाद बाहर गयी, तो मैंने फिर उस क़िताब के बारे में सोचा। मैंने हरेक दराज़ खंगाला, हर चीज़ टटोल डाली, लेकिन क़िताब हाथ नहीं लगी। फिर मैंने अंदाजा लगाया कि शायद उसने कपड़ों की तहों में छिपा कर रखी होगी। यकीनन, इसी तरह मैं वो क़िताब ढूँढ़ पाया। बाहर निकाल कर देखा, वो मोटे गत्ते वाली क़िताब थी: वचन देह में प्रकट होता है। मैंने क़िताब खोली, तो उसके एक अध्याय ने मेरा ध्यान खींचा। "परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है।" मैंने शुरू से आखिर तक उसे पूरा पढ़ डाला, उसका एक अंश वाकई मेरे दिल को छू गया। "मैं सभी राष्ट्रों, सभी देशों, और यहाँ तक कि सभी उद्योगों के लोगों से विनती करता हूँ कि परमेश्वर की वाणी को सुनें, परमेश्वर के कार्य को देखें, और मानवजाति के भाग्य पर ध्यान दें, परमेश्वर को सर्वाधिक पवित्र, सर्वाधिक सम्माननीय, मानवजाति के बीच आराधना का सर्वोच्च और एकमात्र लक्ष्य बनाएँ, और संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के आशीष के अधीन जीने की अनुमति दें, ठीक उसी तरह से, जैसे अब्राहम के वंशज यहोवा की प्रतिज्ञाओं के अधीन रहे थे और ठीक उसी तरह से, जैसे आदम और हव्वा, जिन्हें परमेश्वर ने सबसे पहले बनाया था, अदन के बगीचे में रहे थे। परमेश्वर का कार्य एक ज़बरदस्त लहर के समान उमड़ता है। उसे कोई नहीं रोक सकता, और कोई भी उसके प्रयाण को बाधित नहीं कर सकता। केवल वे लोग ही उसके पदचिह्नों का अनुसरण कर सकते हैं और उसकी प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं, जो उसके वचन सावधानीपूर्वक सुनते हैं, और उसकी खोज करते हैं और उसके लिए प्यासे हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे ज़बरदस्त आपदा और उचित दंड के भागी होंगे।" मैंने सोचा, "ये वचन बहुत शक्तिशाली हैं। कोई भी इंसान ये वचन नहीं बोल सकता! क्या ये वचन पवित्र आत्मा के हैं? मेरी पत्नी ने कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, उसमें आस्था रखने का अर्थ है मेमने के पदचिह्नों पर चलना। अगर यह सच है, तो उसके आड़े आना यानी परमेश्वर का विरोध करना होगा। ऐसा करने से क्या मैं ठीक फरीसियों जैसा नहीं हो जाऊंगा? फरीसी व्यवस्थाओं/नियमों से चिपके रह कर प्रभु यीशु को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने पागलों की तरह उसकी निंदा की, आखिरकार उसके सूली पर चढ़ाये जाने में उनका हाथ था और परमेश्वर ने उन सबको श्राप दिया।" मैंने सोचा, "अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर वाकई लौटकर आया हुआ प्रभु है, तो क्या मैं परमेश्वर के नये कार्य का विरोध करके पाप नहीं करूंगा? इसके परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती!" मुझे क़िताब में लिखा हुआ एक वचन याद आया, "केवल वे लोग ही उसके पदचिह्नों का अनुसरण कर सकते हैं और उसकी प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं, जो उसके वचन सावधानीपूर्वक सुनते हैं, और उसकी खोज करते हैं और उसके लिए प्यासे हैं।" मैंने सोचा, "मैं आँखें मूँद कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की आलोचना नहीं कर सकता। मुझे इस क़िताब को ध्यान से पढ़ कर उस पर गौर करना चाहिए।"
उस वक्त से, जब कभी मेरी पत्नी घर पर नहीं होती, मैं वचन देह में प्रकट होता है को पढ़ता। एक बार जब उसने मुझे बताया कि उसे ज़्यादा देर तक काम करना है, तो मैं अपना काम जल्दी निपटा कर जल्दी से बाइक पर घर लौट आया, ताकि मुझे क़िताब पढ़ने के लिए ज़्यादा वक्त मिल सके। फिर मैंने यह अंश देखा: "मेरी संपूर्ण प्रबंधन योजना, छह-हज़ार-वर्षीय प्रबंधन योजना, के तीन चरण या तीन युग हैं : आरंभ में व्यवस्था का युग; अनुग्रह का युग (जो छुटकारे का युग भी है); और अंत के दिनों का राज्य का युग। इन तीनों युगों में मेरे कार्य की विषयवस्तु प्रत्येक युग के स्वरूप के अनुसार अलग-अलग है, परंतु प्रत्येक चरण में यह कार्य मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है—या, ज्यादा सटीक रूप में, यह शैतान द्वारा उस युद्ध में चली जाने वाली चालों के अनुसार किया जाता है, जो मैं उससे लड़ रहा हूँ। मेरे कार्य का उद्देश्य शैतान को हराना, अपनी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता व्यक्त करना, शैतान की सभी चालों को उजागर करना और परिणामस्वरूप समस्त मानवजाति को बचाना है, जो शैतान के अधिकार-क्षेत्र के अधीन रहती है।" "आज के कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबंधन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? क्योंकि आज का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुड़ी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य फिर से करना होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य के स्तर को पहले से अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। परमेश्वर का कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबंधन योजना माना जा सकता है" (वचन देह में प्रकट होता है)। इन अंशों को पढ़ कर मैंने सोचा कि शायद मेरी पत्नी सही होगी: क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य प्रभु यीशु के कार्य की बुनियाद पर किया जा रहा है? और अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ा रहा है? क़िताब ने मुझमें ज़बरदस्त उत्सुकता और चाहत जगा दी। जब भी मौक़ा मिलता मैं चोरी-छिपे क़िताब को पढ़ता।
मैं तुम लोगों के साथ वो अंश साझा करना चाहता हूँ जो मैंने एक बार पढ़ा था। "तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन देह में प्रकट होता है)। यह वचन मुझे बहुत व्यावहारिक लगा। फिर मैंने सोचा कि बरसों की अपनी आस्था में, मैं हमेशा पाप स्वीकार करने के बाद फिर से पाप करता रहता हूँ। मैं पाप करने से बच नहीं पाया हूँ। मुझे यकीन नहीं था कि मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकूंगा। मैंने सोचा, "अगर ये सब सच हुआ तो? अगर मैं कोई कदम चूक रहा हूँ तो, अगर प्रभु के कार्य को स्वीकार करना काफ़ी न हुआ तो?" मैंने जितना ज़्यादा पढ़ा, उतना ही ज़्यादा मुझे लगा कि क़िताब में सच्चाई है। ये बनायी हुई बातें नहीं हैं। क्या यह वास्तव में स्वयं परमेश्वर से आया है? इस विचार ने मुझे प्रेरित किया। मैंने क़िताब के और अंश पढ़े।
फिर, मेरी पत्नी का ध्यान गया कि मैं अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के खिलाफ़ नहीं रहा। उसने मेरी पीठ पीछे पढ़ना बंद कर दिया। कभी-कभार वह जोर से पढ़ती ताकि मैं भी सुन सकूं। एक दिन जब मैं घर पहुंचा, तो वह परमेश्वर के वचन पढ़ रही थी, मुझे देख कर वह खुशी से बोली, "ली झॉन्ग, आओ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ो। वचन देह में प्रकट होता है परमेश्वर के अंत के दिनों के वचन हैं। पहले हम जिस सत्य को कभी नहीं समझ पाये यह उसे प्रकाशित करता है। मैं तुम्हें कुछ वचन पढ़ कर सुनाऊँ?" मैंने सोचा, "मैं भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को शायद तुम्हारे जितना ही पढ़ता रहा हूं।" जब मैंने मना नहीं किया, तो उसने क़िताब ले कर पढ़ा। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।" "न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है।" "यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता" (वचन देह में प्रकट होता है)। मैंने अपनी पत्नी से इन वचनों को विस्तार से समझाने को कहा। वह भौंचक्का हो गयी, मगर उसने मुझे बताया: "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था, प्रभु यीशु में आस्था है। दरअसल, यहोवा, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक ही परमेश्वर हैं। परमेश्वर अलग-अलग युगों में अलग-अलग कार्य करता है। व्यवस्था के युग में, यहोवा परमेश्वर ने धरती पर शुरू के इंसान को जीवन जीने का रास्ता दिखाने के लिए व्यवस्थाएं जारी की। इसलिए वे जान सके कि पाप क्या होता है, और परमेश्वर का गुणगान कैसे करें। लेकिन व्यवस्था का युग समाप्त होते ही, और ज़्यादा पाप होने लगे, कोई भी व्यवस्थाओं/नियमों का पालन नहीं करता था... और उन सबको मृत्यु का दंड मिलने वाला था। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने देहधारी बनकर इंसान को छुटकारा दिलाया और उसे बचाया। उसने मुख्य रूप से दया और प्रेम का अपना स्वभाव व्यक्त कर इंसानों पर अपना अनुग्रह बरसाया। आखिरकार, उसे पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ा दिया गया। पाप करने पर हमें बस स्वीकार कर प्रायश्चित करना होता है और परमेश्वर हमें छुटकारा दिला देता है। लेकिन प्रभु यीशु ने सिर्फ हमारे पापों से छुटकारा दिलाया। हमारी पापी प्रकृति ठीक नहीं की गयी है। हम अभी भी निरंतर झूठ बोलने और पाप करने से बाज नहीं आते। हम घमंडी, स्वार्थी और लालची हैं ... दिखावा करना पसंद करते हैं। थोड़ा त्याग करने वाले और कष्ट सहने वाले विश्वासी भी, सिर्फ स्वर्ग के राज्य का आशीष पाने के लिए यह सब करते हैं। बड़े इम्तेहान या कोई बड़ी आपदा आने पर, हम बस प्रभु को दोष देते हैं, और कभी-कभार उसे धोखा भी देते हैं। जब परमेश्वर का कार्य हमारी धारणाओं से अलग होता है, तो हम उसे आंकते हैं, निंदा करते हैं, और यहाँ तक कि उसका विरोध करते हैं। परमेश्वर पवित्र है, तो भला अभी भी पाप और परमेश्वर का विरोध करने वाले हम लोग, स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं? इसी वजह से, प्रभु यीशु ने लौटकर आने और अंत के दिनों में न्याय-कार्य करने का वचन दिया अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है, प्रभु यीशु के कार्य के आधार पर, परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय-कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। वह हमारी पापी प्रकृति और भ्रष्टता को शुद्ध करने के लिए आया है। फिर हम पूरी तरह बचाये जायेंगे और पाप से मुक्त हो जाएंगे। यह प्रभु यीशु की इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:48)। हालांकि परमेश्वर अलग-अलग युगों में अलग-अलग नामों से अलग-अलग कार्य करता है, ये सारे कार्य एक ही परमेश्वर करता है। व्यवस्था का युग, अनुग्रह का युग और राज्य का युग, उसके कार्य के तीन चरण हैं, हरेक चरण पिछले से ज्यादा गहरा और प्रबल है। हरेक चरण पिछले चरण की बुनियाद पर खड़ा है और ये सभी करीब से जुड़े हुए हैं। ये तीनों चरण साथ मिल कर इंसान को बचा सकते हैं। यही वजह है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था, प्रभु यीशु को धोखा देना नहीं है। यह परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करना और प्रभु का स्वागत करना है।"
उसकी संगति के बाद, हमने एक वीडियो देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ" (वचन देह में प्रकट होता है)। इसे देखने के बाद मेरा दिल रोशन हो गया। मैंने समझ लिया कि यहोवा, प्रभु यीशु और सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक ही परमेश्वर है, जिसने अलग-अलग युग में अलग-अलग कार्य किये हैं। व्यवस्था के युग में यहोवा परमेश्वर का कार्य व्यवस्था/नियम जारी करना था, अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु का कार्य पूरी मानवजाति को छुटकारा दिलाना था, और अब अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सत्य के साथ इंसान का न्याय कर उसे शुद्ध करना है। हमारी ज़रूरत के मुताबिक़, इन तीन चरणों के साथ परमेश्वर इंसान को बचायेगा। मैं दिल से जानता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, उसको स्वीकार करना ही मेमने के पदचिह्नों पर चलना है। मैं वाकई बड़े जोश में था, मैंने अपनी पत्नी से कहा, "मैं समझता हूँ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रख कर तुम प्रभु यीशु को धोखा नहीं दे रही हो! मैं भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ता रहा हूँ।"
वह चौंक गयी और उसने कहा, "क्या... कब से? मुझे ज़रा भी भनक नहीं लगी!" जवाब देने में मैंने थोड़ा वक्त लिया, फिर थोड़ा सिर झुका कर धीरे-से कहा, "जब तुमने पहले-पहल सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण किया, तब मैं न सिर्फ तुम्हारे आड़े आया, बल्कि मैंने अपने बच्चों से भी तुम्हारी निगरानी करवायी। काश! मैंने ऐसा न किया होता। ऐसा करना परमेश्वर का विरोध करना और उसके खिलाफ़ जाना था। लेकिन परमेश्वर कृपालु है, वह मुझे अपने वचनों की ओर ले जा रहा था। अब मुझे पूरा यकीन है, कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है, और वही है जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे थे! मैं अब खुले तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करता हूँ।" उस रात मैं बहुत ज़्यादा जज़्बाती हो गया। मैंने प्रार्थना करते समय सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम पुकारा, "हे परमेश्वर, धन्यवाद, तुमने मुझे चुना, अपने पदचिह्नों पर चलने दिया, मेमने के भोज में शामिल होने दिया!"
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?