अब मुझे बाइबल और परमेश्वर के बीच का रिश्ता समझ आ गया है

06 अगस्त, 2020

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बहुत सालों से, लोगों के विश्वास (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत) का परंपरागत साधन बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास करना नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक पाखंड और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकें पढ़ते हैं, तो उन पुस्तकों की बुनियाद भी बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम प्रभु में विश्वास करते हो तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, और बाइबल के अलावा तुम्हें ऐसी किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए, जिस में बाइबल शामिल न हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो। ... बाइबल लोगों के मन में एक आदर्श बन चुकी है, वह उनके मस्तिष्क में एक पहेली बन चुकी है, और वे यह विश्वास करने में सर्वथा असमर्थ हैं कि परमेश्वर बाइबल के बाहर भी काम कर सकता है, वे यह विश्वास करने में असमर्थ हैं कि लोग बाइबल के बाहर भी परमेश्वर को पा सकते हैं, और यह विश्वास करने में तो वे बिलकुल ही असमर्थ हैं कि परमेश्वर अंतिम कार्य के दौरान बाइबल से प्रस्थान कर सकता है और नए सिरे से शुरुआत कर सकता है। यह लोगों के लिए अचिंत्य है; वे इस पर विश्वास नहीं कर सकते, और न ही वे इसकी कल्पना कर सकते हैं। लोगों द्वारा परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में बाइबल एक बहुत बड़ी बाधा बन गई है, और उसने परमेश्वर के लिए इस नए कार्य का विस्तार करना कठिन बना दिया है" (वचन देह में प्रकट होता है)। पहले बाइबल मुझे अपनी आस्था में प्रभु को जानने में मदद करती थी, पादरी हमेशा यही कहते थे कि यह हमारी आस्था की नींव है। मुझे लगता था कि बाइबल में विश्वास प्रभु में विश्वास है और मैं इसे प्रभु से भी ऊपर मानती थी। मैंने प्रभु के वचनों का अभ्यास या अनुभव किए बिना बाइबल के कुछ बेजान शब्दों से खुद को तैयार कर लिया था। जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया और देखा कि उसके वचन क्या प्रकट करते हैं, तब जाकर मैंने परमेश्वर और बाइबल के बीच के संबंध को समझा। मेरी आस्था में मेरी गलतियां आखिरकार ठीक हो गईं।

प्रभु को बेहतर ढंग से समझने के लिए मैं बाइबल पढ़ा करती, कलीसिया की सभाओं में जाती और ऑनलाइन धर्मोपदेशों की खोज किया करती थी। एक बार मैंने यूट्यूब पर एक फ़िल्म देखी जिसका नाम था, 'कहाँ है घर मेरा'। यह दिल को छू लेने वाली फ़िल्म थी। फ़िल्म में पढ़े जा रहे वचन ख़ास तौर पर स्नेहशील और अधिकारपूर्ण लगते थे। मैं बहुत उत्सुक थी कि वे कहाँ से आए हैं। जब मैंने देखा कि ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से आए हैं, तो मैंने इस फ़िल्म को बनाने वाली कलीसिया के बारे में ज़्यादा जानने के लिए ऑनलाइन खोज की। लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ नकारात्मक चीज़ें पढ़ने को मिलीं, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह असली है या मनगढ़ंत। थोड़ा सोचने के बाद, मुझे लगा कि मुझे दूसरों के कहे पर आँख मूँदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। जैसी कि कहावत है, "जो आप सुनते हैं उस पर यकीन न करें, अपनी आंखों से देखें।" मैं जानता था कि मुझे खुद पता करना चाहिए, यह अच्छी कलीसिया है या नहीं। मैंने देखने के लिए कुछ और फ़िल्में डाउनलोड करने का फ़ैसला किया। मैंने दो फ़िल्में और देखीं, 'जागृति' और 'तड़प'। इन फ़िल्मों ने मुझे सच में हिला दिया। उनमें पढ़े जाने वाले वचन अधिकार और सामर्थ्य से भरपूर थे, सहभागिता भी व्यवहारिक थी। मैंने कलीसियाओं के वीरान होने की असली वजह को जाना, बचाए जाने और पूरी तरह बचाए जाने के बीच फ़र्क को समझा। इसमें कहा गया है कि प्रभु यीशु लौट आया है और अंत के दिनों में न्याय का कार्य कर रहा है जो बाइबल की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। मैं बहुत खुश थी, मुझे समझ आया कि फ़िल्मों में जो वचन पढ़े गए थे वो लौटकर आये प्रभु के कथन हैं। इसी कारण वे इतने अधिकार और सामर्थ्य से भरपूर हैं! मैंने एक संदेश छोड़ा और कलीसिया के भाई-बहनों से संपर्क किया, मैंने देखा कि वे वाकई सच्चे हैं और उनकी सहभागिता प्रबुद्ध करने वाली है। उनके संपर्क में रहने से बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैंने उनकी सभाओं में भाग लेना शुरू कर दिया।

एक शाम मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के चैनल से और फिल्में डाउनलोड करने वाली थी। मैं फ़िल्मों की सूची देख रही थी, जब मैंने 'बाइबल से बाहर निकलें' नाम की एक फ़िल्म देखी। मैं असमंजस में पड़ गई। इसका क्या मतलब है? हमें अपनी आस्था में बाइबल से बाहर क्यों आना चाहिए? बाइबल के बिना लोग परमेश्वर में कैसे विश्वास कर सकते हैं और उसे कैसे जान सकते हैं? मुझे याद आया कि कैसे पादरी हमेशा कहते थे कि हमारी आस्था बाइबल पर आधारित होनी चाहिए और बाइबल से बाहर सब पाखंड है। क्या बाइबल से बाहर निकलना प्रभु को धोखा देना नहीं है? अगले कुछ दिनों में मैंने कलीसिया के भजनों और फ़िल्मों को देखना बंद कर दिया, इस डर से कि कहीं मैं अपनी आस्था में भटक न जाऊँ। लेकिन मैं ख़ुद को ये सोचने से रोक नहीं पाई, "अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में लौटकर आया प्रभु यीशु है और मैं उसे स्वीकार नहीं करती हूँ, तो क्या मैं प्रभु का स्वागत करने का अपना मौका नहीं गंवा दूंगी?" मैं असमंजस में थी, इसलिए मैंने उपवास और प्रार्थना शुरू कर दी। मैंने प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहा कि वह मुझे प्रबुद्ध करे और रास्ता दिखाए ताकि मैं जान सकूँ कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में लौटकर आया प्रभु यीशु है। मेरे उपवास की पहली रात, मुझे परमेश्वर से कोई प्रेरणा नहीं मिली, इसलिए मुझे लगा कि मुझे बाइबल पर एक नज़र डालनी चाहिए। मैंने प्रकाशितवाक्य 1:8 को पढ़ा, "प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, 'मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ।'" मैंने प्रकाशितवाक्य 11:16-17 भी पढ़ा, "तब चौबीसों प्राचीन जो परमेश्‍वर के सामने अपने अपने सिंहासन पर बैठे थे, मुँह के बल गिरकर परमेश्‍वर को दण्डवत् करके यह कहने लगे, 'हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था, हम तेरा धन्यवाद करते हैं कि तू ने अपनी बड़ी सामर्थ्य को काम में लाकर राज्य किया है।'" मुझे अचानक लगा कि ये पद मेरे लिए परमेश्वर का मार्गदर्शन हैं। प्रकाशितवाक्य में कहा गया है कि अंत के दिनों में परमेश्वर को "सर्वशक्तिमान कहा जाएगा। क्या वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं है? इस समझ ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में ज़्यादा जानने का हौसला दिया। मैंने फ़ैसला किया कि मैं 'बाइबल से बाहर निकलें' को पूरा देखूँगी ताकि मुझे पता चले कि असल में इसमें क्या है।

फ़िल्म में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के एक सुसमाचार प्रचारक ने यह सहभागिता की: "बहुत से धार्मिक लोगों का कहना है कि उद्धार का कार्य करने के लिए परमेश्वर बाइबल से बाहर नहीं जाएगा, और जो कुछ भी बाइबल से बाहर है वह पाखंड है। पहले क्या आया : बाइबल या परमेश्वर का कार्य? शुरुआत में, यहोवा परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों को बनाया। उसने बाढ़ से दुनिया को तबाह कर दिया, उसने सदोम और अमोरा को आग से नष्ट कर दिया। जब परमेश्वर ने यह सब कार्य किया, तब क्या पुराना नियम मौजूद था?" मैंने सोचा, "ये भी कोई पूछने की बात है? जब परमेश्वर ने पृथ्वी बनाई, दुनिया में बाढ़ भेजी, सदोम और अमोरा को जला दिया, तो ज़ाहिर है बाइबल मौजूद नहीं थी।" उन्होंने आगे कहा: "जब परमेश्वर ने ये सब कार्य किया, तब कोई बाइबल नहीं थी। इसका मतलब है कि पहले परमेश्वर का कार्य आया और उसके बाद ही इसे बाइबल में दर्ज किया गया। जब प्रभु यीशु अनुग्रह के युग में कार्य कर रहा था, तब तक कोई नया नियम नहीं आया था। उसके कार्य पूरा करने के बाद, उसके शिष्यों ने इसे लिखा था। साफ़ है कि बाइबल परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक ब्यौरा मात्र है। परमेश्वर बाइबल के मुताबिक कार्य नहीं करता है और बाइबल उसे सीमित नहीं करती है। वह अपना कार्य अपनी प्रबंधन योजना और मानवजाति की ज़रूरतों के मुताबिक करता है। इसलिए हम यह नहीं सोच सकते कि परमेश्वर का कार्य सिर्फ़ बाइबल में है और हम बाइबल का उपयोग उसके कार्य को सीमित करने के लिए नहीं कर सकते। हम सच में यह नहीं कह सकते कि बाइबल के बाहर की हर चीज़ पाखंड है। परमेश्वर को अपना कार्य करने और इसे बाइबल की सीमाओं के बाहर करने का हक है।"

यह सुनकर अचानक मेरी आँखें खुल गईं। जब प्रभु यीशु ने कार्य किया, तब कोई नया नियम नहीं था। इसे उसके कार्य समाप्त करने के बाद लोगों ने संकलित किया था। बाइबल असल में परमेश्वर के पिछले कार्य का ब्यौरा मात्र है। मैंने पहले कभी ऐसा क्यों नहीं सोचा?

फ़िल्म की सहभागिता में आगे था: "अगर बाइबल के बाहर का कुछ भी पाखंड है, तो क्या हम परमेश्वर के पिछले सभी कार्यों की निंदा नहीं कर रहे हैं? जब प्रभु यीशु आया और कार्य किया, तो उसने पुराने नियम के मुताबिक कार्य नहीं किया, बल्कि वो उससे आगे निकल गया, जैसे कि पश्चाताप करने के तरीके, बीमारों को ठीक करने, राक्षसों को बाहर निकालने, सब्त को न मनाने, दूसरों को सत्तर गुना सात बार माफ़ करने की शिक्षाएं और कई अन्य शिक्षाएं। इनमें से कुछ भी पुराने नियम में नहीं था। इसने सीधे तौर पर पुराने नियम की व्यवस्थाओं का खंडन भी किया। क्या इसका मतलब है कि प्रभु यीशु का कार्य परमेश्वर का कार्य नहीं था? मुख्य याजकों, एल्डरों और शास्त्रियों ने प्रभु यीशु के कार्य और वचनों की पाखंड कहकर निंदा की क्योंकि वे पुराने नियम के मुताबिक नहीं थे। वे परमेश्वर का विरोध करने वाले लोग बन गए। अगर हम इंसानी धारणाओं के मुताबिक कहते हैं कि बाइबल के बाहर कही गई हर बात पाखंड है, तो क्या हम प्रभु यीशु के कार्य की भी निंदा नहीं करेंगे?"

तब उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े जो बाइबल के बाहर किसी भी बात के पाखंड होने के सवाल का जवाब देते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बाइबल एक ऐतिहासिक पुस्तक है, और यदि तुमने अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान को खाया और पीया होता—यदि तुम अनुग्रह के युग के दौरान पुराने विधान के समय में जो अपेक्षित था, उसे व्यवहार में लाए होते—तो यीशु ने तुम्हें अस्वीकार कर दिया होता, और तुम्हारी निंदा की होती; यदि तुमने पुराने विधान को यीशु के कार्य में लागू किया होता, तो तुम एक फरीसी होते। यदि आज तुम पुराने और नए विधान को खाने और पीने के लिए एक-साथ रखोगे और अभ्यास करोगे, तो आज का परमेश्वर तुम्हारी निंदा करेगा; तुम पवित्र आत्मा के आज के कार्य में पिछड़ गए होगे! यदि तुम पुराने विधान और नए विधान को खाते और पीते हो, तो तुम पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हो! यीशु के समय में, यीशु ने अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार यहूदियों की और उन सबकी अगुआई की थी, जिन्होंने उस समय उसका अनुसरण किया था। उसने जो कुछ किया, उसमें उसने बाइबल को आधार नहीं बनाया, बल्कि वह अपने कार्य के अनुसार बोला; उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया कि बाइबल क्या कहती है, और न ही उसने अपने अनुयायियों की अगुआई करने के लिए बाइबल में कोई मार्ग ढूँढ़ा। ठीक अपना कार्य आरंभ करने के समय से ही उसने पश्चात्ताप के मार्ग को फैलाया—एक ऐसा मार्ग, जिसका पुराने विधान की भविष्यवाणियों में बिलकुल भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसने न केवल बाइबल के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि एक नए मार्ग की अगुआई भी की, और नया कार्य किया। उपदेश देते समय उसने कभी बाइबल का उल्लेख नहीं किया। व्यवस्था के युग के दौरान, बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने के उसके चमत्कार करने में कभी कोई सक्षम नहीं हो पाया था। इसी तरह उसका कार्य, उसकी शिक्षाएँ, उसका अधिकार और उसके वचनों का सामर्थ्य भी व्यवस्था के युग में किसी भी मनुष्य से परे था। यीशु ने मात्र अपना नया काम किया, और भले ही बहुत-से लोगों ने बाइबल का उपयोग करते हुए उसकी निंदा की—और यहाँ तक कि उसे सलीब पर चढ़ाने के लिए पुराने विधान का उपयोग किया—फिर भी उसका कार्य पुराने विधान से आगे निकल गया; यदि ऐसा न होता, तो लोग उसे सलीब पर क्यों चढ़ाते? क्या यह इसलिए नहीं था, क्योंकि पुराने विधान में उसकी शिक्षाओं, और बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की उसकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं कहा गया था? उसका कार्य एक नए मार्ग की अगुआई करने के लिए था, वह जानबूझकर बाइबल के विरुद्ध लड़ाई करने या जानबूझकर पुराने विधान को अनावश्यक बना देने के लिए नहीं था। वह केवल अपनी सेवकाई करने और उन लोगों के लिए नया कार्य लाने के लिए आया था, जो उसके लिए लालायित थे और उसे खोजते थे। वह पुराने विधान की व्याख्या करने या उसके कार्य का समर्थन करने के लिए नहीं आया था। उसका कार्य व्यवस्था के युग को विकसित होने देने के लिए नहीं था, क्योंकि उसके कार्य ने इस बात पर कोई विचार नहीं किया कि बाइबल उसका आधार थी या नहीं; यीशु केवल वह कार्य करने के लिए आया था, जो उसके लिए करना आवश्यक था। ... आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त का पालन करना होता और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना होता, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल!" (वचन देह में प्रकट होता है)

फ़िल्म में सुसमाचार प्रचारक ने यह सहभागिता की: "बाइबल परमेश्वर का प्रतीक नहीं है। यह उसके कार्य के पहले दो चरणों के सही ब्यौरे के अलावा कुछ नहीं। यानी, वह व्यवस्था और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य की गवाही है। यह मानवजाति को बचाने के उसके सभी कार्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। बाइबल में परमेश्वर के वचनों का ब्यौरा बहुत सीमित है। यह सिर्फ़ परमेश्वर के जीवन स्वभाव की एक झलक देती है, उसकी संपूर्णता नहीं दिखा सकती। परमेश्वर हमेशा नया रहता है, कभी पुराना नहीं होता। वह हर युग में नया कार्य करता है और नए वचन बोलता है। उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु अनुग्रह के युग में आया, तो वह नया कार्य करने के लिए पुराने नियम से आगे गया। परमेश्वर बाइबल के मुताबिक कार्य नहीं करता है या बाइबल का संदर्भ नहीं लेता है। वह अपने अनुयायियों की रहनुमाई करने का रास्ता बाइबल में नहीं खोजता। परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहता है। जब परमेश्वर एक नया युग शुरू करता है और नया कार्य करता है, तो वह मानवजाति के लिए एक नया रास्ता लेकर आता है, हमारे लिए और सत्यों को उजागर करता है ताकि हम उससे और ज़्यादा उद्धार हासिल कर सकें।" "परमेश्वर अपने पुराने कार्य की बुनियाद पर मानवजाति को रास्ता नहीं दिखाता। यानी, परमेश्वर बाइबल के मुताबिक काम नहीं करता है, क्योंकि वह न केवल सब्त का प्रभु है, बल्कि वह बाइबल का प्रभु भी है। उसे बाइबल से बाहर जाने का, उसकी योजना और मानवजाति की ज़रूरतों के मुताबिक नया कार्य करने का पूरा हक़ है।" "नए युग में परमेश्वर का कार्य कभी भी पुराने युग के उसके कार्य की तरह नहीं हो सकता। इसलिए, यह कहना कि बाइबल से बाहर जाना पाखंड है, सही साबित नहीं होता।"

मुझे इस बात से ये समझ आया कि नया और पुराना नियम, व्यवस्था और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य और वचनों का ब्यौरा है, लेकिन यह परमेश्वर के सभी कार्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। मुझे लगता था, बाइबल से बाहर जाने का मतलब है कि मुझे प्रभु पर विश्वास नहीं है। क्या मैं परमेश्वर और बाइबल को एक ही स्तर पर नहीं रख रही थी? जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो उसने पुराने नियम को अपने कार्य का आधार नहीं बनाया। अगर हम कहते हैं कि बाइबल से परे जाना पाखंड है, तो क्या हम प्रभु यीशु के कार्य की निंदा नहीं करेंगे? अगर मैं उस युग में पैदा होती जब प्रभु यीशु कार्य कर रहा था, और मैं अपनी अभी की धारणाओं को लेकर चलती, तो मैंने उसका विरोध किया होता। अगर मैं परमेश्वर के कार्य और वचनों को सिर्फ़ बाइबल तक सीमित करूँगी, तो क्या मैं प्रभु यीशु की निंदा करने के लिए पुरानी बाइबल पर अड़े रहने वाले फरीसियों जैसी गलती नहीं करूँगी?

सुसमाचार प्रचारक ने फ़िल्म में परमेश्वर के वचनों से कुछ और अंश पढ़े: "मैं तुम्हें बाइबल का सार और उसकी अंतर्कथा बता रहा हूँ। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम बाइबल मत पढ़ो या तुम चारों तरफ यह ढिंढोरा पीटते फिरो कि यह मूल्यविहीन है, मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि तुम्हें बाइबल का सही ज्ञान और तुम्हारे पास सही दृष्टि हो। तुम्हारी दृष्टि एकतरफा न हो! यद्यपि बाइबल इतिहास की पुस्तक है जो मनुष्यों के द्वारा लिखी गई थी, लेकिन इसमें कई ऐसे सिद्धांत भी लिपिबद्ध हैं जिनके अनुसार प्राचीन संत और नबी परमेश्वर की सेवा करते थे, और साथ ही इसमें परमेश्वर की सेवा-टहल करने के आजकल के प्रेरितों के अनुभव भी अंकित हैं—यह सब इन लोगों ने सचमुच देखा और जाना था, जो सच्चे मार्ग का अनुसरण करने में इस युग के लोगों के लिए सन्दर्भ का काम कर सकता है। ... फिर भी ये पुस्तकें अप्रचलित हैं और पुराने युग की हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी अच्छी हैं, वे केवल एक कालखंड के लिए ही उपयुक्त हैं, चिरस्थायी नहीं हैं। क्योंकि परमेश्वर का कार्य निरन्तर विकसित हो रहा है, यह केवल पौलुस और पतरस के समय पर ही नहीं रुक सकता या हमेशा अनुग्रह के युग में ही बना नहीं रह सकता जिसमें यीशु को सलीब पर चढ़ा दिया गया था। अत:, ये पुस्तकें केवल अनुग्रह के युग के लिए उपयुक्त हैं, अंत के दिनों के राज्य के युग के लिए नहीं। ये केवल अनुग्रह के युग के विश्वासियों को पोषण प्रदान कर सकती हैं, राज्य के युग के संतों को नहीं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी अच्छी हैं, वे अब भी अप्रचलित ही हैं" (वचन देह में प्रकट होता है)

यह सुनकर, मुझे समझ आया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर बाइबल की अहमियत को नकार नहीं रहा है। बाइबल सिर्फ़ परमेश्वर के पिछले कार्य की गवाही है जो हमें ये जानने में मदद करती है कि वो क्या कार्य कर चुका है और उसे मानवजाति से क्या चाहिए था। लेकिन परमेश्वर नया कार्य कर रहा है और बाइबल पुरानी है। यह लोगों को वो नहीं दे सकती जिसकी उन्हें अभी ज़रूरत है। जब मैंने पहली बार 'बाइबल से बाहर निकलें' शीर्षक देखा, तो मुझे प्रतिरोध महसूस हुआ। मुझे लगा कि हर किसी की आस्था बाइबल पर आधारित है, परमेश्वर पर विश्वास करने और उसका आदर करने का यही एकमात्र तरीका है। मुझे लगा कि बाइबल से अलग होने का मतलब है परमेश्वर से अलग होना। इसलिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को देखना नहीं चाहती थी। मुझे लगा कि बाइबल मेरी आस्था की बुनियाद होनी चाहिए और बाइबल परमेश्वर का प्रतीक है। इसका मतलब है कि बाइबल ने मेरे दिल में परमेश्वर की जगह ले ली थी। मुझे परमेश्वर पर विश्वास नहीं था—मुझे बाइबल पर विश्वास था। मैंने परमेश्वर और बाइबल को समान समझा और ऐसा करके परमेश्वर के कार्य को बाइबल के अंदर सीमित कर दिया, यह सोचकर कि इसके बाहर की हर बात पाखंड है। क्या मैं परमेश्वर को सीमित नहीं कर रही थी, उसका तिरस्कार नहीं कर रही थी? इस विचार पर मेरी साँस मानो रुक गई और मैं घबरा गई। इस फ़िल्म तक मुझे पहुँचाने के लिए मैं परमेश्वर की ऋणी थी। अन्यथा, नतीजों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

फ़िल्म में सुसमाचार पढ़ने वाले लोगों ने फिर कहा: "अनन्त जीवन बाइबल से नहीं आता है...।" मैं दंग रह गई। बाइबल से कोई अनंत जीवन नहीं आता? यह कैसे मुमकिन हो सकता है? मैंने उनकी आगे की बातें सुनीं। "यह लोगों की धारणाओं के मुताबिक नहीं है, लेकिन यह एक निर्विवाद तथ्य है। फरीसियों को फटकारते हुए प्रभु यीशु ने हमें बहुत पहले यह बताया: 'तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते' (यूहन्ना 5:39-40)। प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा कि बाइबल में कोई अनन्त जीवन नहीं है। क्योंकि बाइबल सिर्फ़ परमेश्वर की गवाही देती है। अगर लोग सत्य और जीवन हासिल करना चाहते हैं, तो बाइबल काफ़ी नहीं है। सत्य और जीवन सीधे मसीह से हासिल किया जाना चाहिए। उन फरीसियों के बारे में सोचें जो पुराने नियम पर अड़े हुए थे। उन्होंने अनन्त जीवन हासिल नहीं किया, बल्कि, उन्हें प्रभु यीशु का विरोध और उनकी निंदा करने के लिए सज़ा दी गई। लेकिन प्रभु यीशु के अनुयायी, जो बाइबल पर अड़े नहीं रहे, जिन्होंने परमेश्वर के कार्य को और उस समय के वचनों को स्वीकार किया, उन्हें आख़िर में प्रभु यीशु ने छुटकारा दिलाया।" "और इसलिए, अनन्त जीवन हासिल करने का एकमात्र तरीका मसीह और परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलना है।" "अगर हम आँख बंद करके बाइबल पर अड़े रहेंगे, तो हम न केवल परमेश्वर की स्वीकृति खो देंगे, बल्कि यह असल में वैसा ही है जैसा पौलुस ने कहा था, 'परन्तु पवित्रशास्त्र ने सब को पाप के अधीन कर दिया' (गलातियों 3:22)। और हम परमेश्वर का उद्धार भी खो देंगे। परमेश्वर हर युग में नया कार्य करता है। यहोवा परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में नियम और धर्मादेश जारी किए, ताकि इस्राएलियों को पता चल सके कि परमेश्वर की आराधना कैसे करनी चाहिए, धरती पर कैसे रहना चाहिए, पाप क्या है और उन्हें अपने पापों के लिए सज़ा दी जाएगी। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया, खुद पाप बलि बन गया। लोगों को बस नियमों के तहत अपने पापों को कबूल करना, पश्चाताप करके उन्हें माफ़ करवाना, सज़ा पाने और नरकभोगी बनने से बचना था। लेकिन, प्रभु यीशु के छुटकारे से सिर्फ़ हमारे पाप माफ़ हो सकते हैं। हमारी पापी प्रकृति अभी भी हमारे अंदर गहराई से बसी है। हम लगातार अहंकार, धोखेबाजी, और दुष्टता जैसे भ्रष्ट स्वभाव दिखाते हैं, हम पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने से खुद को रोक नहीं सकते। इसलिए प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वह न्याय का कार्य करने, मानवजाति को पाप से शुद्ध करने और पूरी तरह से बचाने के लिए लौटेगा। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के आधार पर, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहा है। वह मानवजाति को बचाने और शुद्ध करने के लिए सभी सत्यों को व्यक्त करता है और परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्यों का खुलासा करता है। वह भ्रष्ट मानवजाति के शैतानी स्वभावों और प्रकृति का न्याय करता है, उसे उजागर करता है, और कोई भी अपमान न सहने वाले अपने पवित्र, धार्मिक स्वभाव को दिखाता है।" "सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त ये वचन परमेश्वर ने कभी भी व्यवस्था के युग या अनुग्रह के युग में नहीं कहे थे। ये वचन वो हैं जिनकी मदद से परमेश्वर हमें अंत के दिनों में अनन्त जीवन के रास्ते पर ले जा रहा है। यह पूरी तरह से प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)।"

इसके बाद, उन लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। चलिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। वे जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की गई है, हमेशा के लिए मुर्दे, शैतान के खिलौने, और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को ख़ारिज़ करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये बुद्धिमत्ता के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन देह में प्रकट होता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सुसमाचार प्रचारकों ने यह सहभागिता की: "अगर हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कथनों को स्वीकार किए बिना सिर्फ़ बाइबल में अपने विश्वास पर अड़े रहेंगे, तो हम कभी भी परमेश्वर के जीवन जल का सिंचन और पोषण नहीं पा सकेंगे। परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण के बिना, हम सिर्फ़ पाप करने और उसे कबूल करने के दुष्चक्र में फंसे रहेंगे। पाप के बंधनों से निकले बिना, कोई कैसे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक हो सकता है? सिर्फ़ अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय कार्य को स्वीकार करके ही हम परमेश्वर के वचनों का सिंचन और पोषण पा सकते हैं, सत्य को समझ सकते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभावों से मुक्त होकर शुद्ध हो सकते हैं। सिर्फ़ तभी हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक बन सकते हैं।"

ये सुनते हुए मेरा उत्साह और मेरी प्रबुद्धता बढ़ती गई। सत्य पर यह सहभागिता बहुत व्यावहारिक थी। बाइबल में कोई अनंत जीवन नहीं है—यह सिर्फ़ परमेश्वर की गवाही है। यह परमेश्वर का प्रतीक नहीं है, यह किसी भी तरह उसके उद्धार के कार्य की जगह नहीं ले सकती। सिर्फ़ मसीह ही मार्ग, सत्य और जीवन है। सिर्फ़ मसीह ही हमें सत्य और जीवन दे सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का मसीह, मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी सत्यों को व्यक्त करता है लेकिन मैं सिर्फ़ बाइबल से चिपकी हुई थी। मैं कितनी बेवकूफ़ी कर रही थी! मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ कि उसने मुझे परमेश्वर की वाणी सुनने और आस्था पर मेरे बेतुके विचारों को छोड़ने की राह दिखाई। फिर मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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