प्रश्न 7: आज हम प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं; उनके नाम को फैलाने के लिये इतना त्याग करते हैं, हर चीज़ छोड़ रहे हैं। हम स्‍वर्गिक पिता की इच्छा का पालन ही तो कर रहे हैं। इसका मतलब है कि हम पवित्र बन चुके हैं। जब प्रभु आएंगे तो वो ज़रूर हमें स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहित करेंगे।

उत्तर: जहां तक सवाल है कि स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश कर सकता है: प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। प्रभु यीशु ने साफ तौर पर हमसे कहा है कि जो स्वर्ग के पिता की इच्छा पूरी कर सकता है, वही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है। भाइयो और बहनो, ये बात सही है कि लोग प्रभु का नाम फैलाने के लिये हर चीज़ का त्याग करते हैं, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वो पाप भी अधिक कर रहे हैं। पाप करने का मतलब है कि वे शैतान के साथ हैं और अभी भी गंदे और दूषित हैं। वे अभी भी परमेश्‍वर का विरोध कर सकते हैं, धोखा दे सकते हैं। मतलब ये कि वे सही मायने में शुद्ध नहीं हुए हैं। अगर उन्हें राजा बना दिया जाए, तो वे परमेश्वर के ख़िलाफ़ ही अपना राज्य बना लेंगे। ये साबित करने के लिये इतना काफी है कि उन्हें अभी भी शुद्ध और पवित्र नहीं बनाया गया है। इस तरह से परमेश्वर का विरोध करने वाले लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक कैसे हो सकते हैं? प्रभु के लिये त्याग करना, सुसमाचार का प्रचार करना, कलीसिया बनाना, विश्वासियों को समर्थन देना वगैरह, ये सब इंसान का अच्छा बर्ताव है। अगर लोग परमेश्वर के लिये प्यार की खातिर अच्छा बर्ताव करते हैं, वाकई परमेश्वर के लिये त्याग करते हैं, समझबूझकर परमेश्‍वर का कहा मानते हैं और उन्हें संतुष्‍ट करते हैं, अगर वे अपनी मंशा पूरी नहीं करते हैं या परमेश्वर से सौदेबाज़ी करते हैं, तो फिर इस तरह का बर्ताव अच्छा कार्य कहलाता है; परमेश्वर ऐसा बर्ताव याद रखते हैं और ऐसे लोगों को अपना आशीष देते हैं। लेकिन अगर उनका ये बर्ताव परमेश्वर से सौदेबाज़ी की कोशिश है, अपनी देह की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिये है और इनाम के लिये है, फिर तो ऐसा बर्ताव परमेश्वर के साथ ठगी है; ऐसे लोग परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं! इसलिये, क्या लोगों का दिखावे का ये बर्ताव इस बात का प्रमाण है कि वो ये सब स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने के लिये कर रहे हैं? इसके मायने, क्या वे पवित्र हैं? बिल्कुल नहीं! इस तरह के दिखावे का बर्ताव, उनके पापी स्वभाव की वजह से है। परमेश्वर से सौदेबाज़ी के लिये वो ऐसा करते हैं, अपनी व्यर्थ की कामनाओं को पूरा करने के लिये ऐसा करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि इंसान के दिल में बहुत-सी अशुद्धियां हैं। इस तरह के लोग परमेश्वर से सच्चा प्रेम और उसकी आज्ञाओं का पालन कैसे कर सकते हैं? लोग अपने पापी स्वभाव से मजबूर हैं। परमेश्वर जब कोई ऐसी बात कहते हैं जो उनकी मान्यताओं से मेल नहीं खाती, वो उनकी आलोचना शुरु कर देते हैं, उन्हें नकारते हैं और उनकी निंदा करते हैं। जब परमेश्वर उनकी परीक्षा लेते हैं, तो वे उन्हें गलत समझते हैं, उन पर आरोप लगाते हैं और उन्हें धोखा देते हैं। एक तरफ परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, दूसरी तरफ इंसान को पूजते और उसका अनुसरण करते हैं। परमेश्वर से भी पहले वे इंसान की सुनते हैं। परमेश्वर की सेवा करते हुए भी ऐसे लोग अपनी मान्यताओं पर चलते हैं, अपना गुणगान करते हैं, अपनी ही गवाही देते हैं, और परमेश्वर को अपना दुश्मन मानते हैं। इंसान अपने पापी स्वभाव की कैद में है। जैसे ही उन्हें सामर्थ्य मिलेगी, वो परमेश्वर का विरोध करेंगे और अपना राज्य स्थापित करेंगे। ऐसी ही हरकतें यहूदी मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने की थी; जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आए, तो उनकी निंदा की और विरोध किया ताकि उनकी सत्ता बनी रहे। और नतीजा ये हुआ कि यहूदियों ने प्रभु यीशु के उद्धार को कभी स्वीकार नहीं किया। क्या वे परमेश्वर के विरोध में अपने राज्य की स्थापना नहीं कर रहे थे? इसलिये जो लोग दिखावे के लिये मेहनत करते हैं और अच्छा बर्ताव करते हैं, अगर उनके पापी स्वभाव में सुधार नहीं आया है, और उनके शैतानी स्वभाव की शुद्धि नहीं हुई है, तो भले ही उन्होंने कितने भी कष्ट उठाएं हों कोई भी कार्य किया हो, वे परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी करेंगे? जो लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं वही पूरी तरह से परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं। उनका मन परमेश्वर के समान ही होता है। ऐसे लोग यकीनी तौर पर न तो परमेश्वर से विद्रोह करेंगे और न ही उनके विरुद्ध जाएंगे। ऐसे लोग ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के अधिकारी हैं और उन्हें परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं प्राप्त होती हैं।

"मर्मभेदी यादें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 6: हम सब-कुछ त्याग दें, प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करें और कलीसिया की देखभाल करें। इस तरह के कामों से हम स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा कर पाएंगे। इस तरह से अभ्यास करना क्या कोई गलत है?

अगला: प्रश्न 1: बाइबल में लिखा है, "क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है" (रोमियों 10:10)। यीशु में अपने विश्वास के कारण हमें पहले ही बचा लिया गया है। एक बार बचा लिए जाने पर, हम अनंत काल के लिये बच जाते हैं। प्रभु के आने पर हम ज़रूर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकेंगे।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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