आप इसका प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य को अभिव्यक्त करते हैं और अंतिम दिनों में न्याय का अपना कार्य करते हैं। मुझे लगता है कि प्रभु यीशु में हमारा विश्वास और पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति का मतलब है कि हमने पहले से ही परमेश्वर के न्याय का अनुभव किया है। सबूत के तौर पर यहाँ प्रभु यीशु के वचन दिए गए हैं: "क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा" (यूहन्ना 16:7-8)। हमारा मानना है कि, हालांकि प्रभु यीशु का कार्य छुटकारे का कार्य था, जब वे स्वर्ग तक पहुंच गए तो पेन्तेकोस्त के दिन, पवित्र आत्मा उतर आया और उसने मनुष्यों पर काम किया: "वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा।" यह आखिरी दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य होना चाहिए, इसलिए हम जिस बात को जानना चाहते हैं, वो यह है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अंतिम दिनों में किए गए न्याय के कार्य और प्रभु यीशु के कार्य के बीच वास्तव में क्या भिन्नताएँ हैं?
उत्तर: चूंकि आप सब यह मानते हैं कि प्रभु यीशु ने जो कार्य किया वह छुटकारे का था, और जो मार्ग उन्होंने दिखाया, वह था, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17), तो फिर आप सबने यह कैसे निर्धारित कर लिया कि पवित्र आत्मा पिंतेकुस्त में आया था, अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए? आप सबने प्रभु यीशु के इस वचन को आधार बनाया था, जिसमें कहा गया है, "क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा" (यूहन्ना 16:7-8), आप सब यह निश्चित रूप से मानने की हिम्मत कर रहे हैं कि पवित्र आत्मा द्वारा किया गया कार्य अंतिम दिनों का न्याय कार्य था, तो परमेश्वर के वचन के अनुसार क्या कोई आधार है? क्या प्रभु यीशु ने कहा था, "पवित्र आत्मा आ गया है। वह जो करेगा, अंत के दिनों का न्याय कार्य होगा"? नहीं, प्रभु यीशु ने यह कभी नहीं कहा। प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा था, "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। प्रभु यीशु ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने जो किया वह न्याय का कार्य नहीं था। अंत के दिनों में पुनरागमन पर प्रभु यीशु न्याय का कार्य करने के लिये, केवल सत्य ही व्यक्त करेंगे। निश्चित होने के लिए, कुछ लोगों का अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा के कार्य को परमेश्वर का न्याय कार्य कहना गलत है। जाहिर है, जब हम अपने पापों को स्वीकार कर प्रभु के सामने पश्चाताप करते हैं, तो हमारे पास पवित्र आत्मा की गति तथा कार्य होना चाहिए ताकि हम परमेश्वर का अनुग्रह ग्रहण कर शांति और आनंद का अनुभव कर सकें। परंतु जब कोई प्रभु के सामने पश्चाताप करता है, बिलख-बिलख कर रोने लगता है, तो इसका यही अर्थ है कि पवित्र आत्मा ने उसको हिला कर रख दिया है। इसका प्रभाव यह है कि यह मनुष्य को स्वीकार करने और पश्चाताप करने के बाद परमेश्वर के अनुग्रह के योग्य बना देता है। यह परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय से प्राप्त प्रभाव नहीं है—शुद्धिकरण के बाद पूर्ण बनाए जाने का। पवित्र आत्मा का अनुग्रह के युग का कार्य पवित्र आत्मा के अंतिम दिनों के कार्य से भिन्न है। आइये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के दो उद्धरण सुनें और समझ लें कि न्याय क्या है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "'न्याय' शब्द का जिक्र होने पर संभवत: तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे, जो यहोवा ने सभी स्थानों पर कहे थे और फटकार के जो वचन यीशु ने फरीसियों से कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के बावजूद, ये वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय नहीं थे; बल्कि वे विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात् विभिन्न संदर्भों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं। ये वचन मसीह द्वारा अंत के दिनों में मनुष्यों का न्याय करते हुए कहे जाने वाले शब्दों से भिन्न हैं। अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)।
"न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर के अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होने का सवाल ही नहीं उठता। अर्थात्, अंत के दिनों में मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)।
परमेश्वर का न्याय कार्य एक रहस्य है। परमेश्वर के प्रकाशन के बिना, कोई उसके अन्दर नहीं झाँक सकता। सच है न? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से व्याख्या की है कि न्याय क्या है और उसके क्या प्रभाव होते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को सुनने के बाद, क्या आप सब परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को थोड़ा-बहुत समझ पाए हैं? अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य मानवजाति को संपूर्ण रूप से शुद्ध करने और बचाने के लिए है। यह मनुष्य को महज थोड़ी फटकार और लानत लगाने के लिए नहीं है। न ही शब्दों के कुछ अनुच्छेदों की अभिव्यक्ति, लोगों को परमेश्वर से शुद्धिकरण और उद्धार ग्रहण करने के लिए, पापों के चंगुल से छुड़ा सकती है। परमेश्वर को पर्याप्त वचन व्यक्त करने होते हैं, सत्य के तमाम पहलू समझाने के लिए, जिनको समझ कर और अपना कर भ्रष्ट मानवजाति शुद्धिकरण और उद्धार पा सके, और मानवजाति के सामने अपनी प्रबंधन योजना के तमाम रहस्य उजागर करने के लिए। यह अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा अभिव्यक्त वचन से सैकड़ों-हज़ारों गुना अधिक है। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय कार्य, सत्य और न्याय के वचन को अभिव्यक्त करने पर केंद्रित है, ताकि परमेश्वर का प्रतिरोध कर विश्वासघात करने वाली मनुष्य की शैतानी प्रवृत्ति, और शैतान द्वारा मनुष्य के भ्रष्ट होने की सच्चाई का न्याय कर उसे उजागर किया जा सके, और परमेश्वर के पवित्र, धार्मिक और रुष्ट न होने वाले स्वभाव को संपूर्ण रूप में प्रकट किया जा सके। परमेश्वर के इरादे और मानवजाति की ज़रूरतों के सत्य के सभी पहलू, और किस प्रकार के लोग उद्धार या सजा पायेंगे, आदि-आदि हमारे समक्ष प्रकट किये गए है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव कर के, हम उनकी प्रबंधन योजना का उद्देश्य समझ पाते हैं। हम सकारात्मक और नकारात्मक चीजों में अंतर समझ सकते हैं, और पागलपन की हद तक परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले शैतान के राक्षसी रूप को स्पष्ट देख सकते हैं। हम शैतान द्वारा मनुष्य के गहराई तक भ्रष्ट होने का सच देख सकते हैं, और परमेश्वर का प्रतिरोध कर विश्वासघात करने वाली हमारी शैतानी प्रवृत्ति को पहचान सकते हैं। परमेश्वर की धार्मिक प्रवृत्ति, सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धिमत्ता, और उनकी संपत्ति और हस्ती को ले कर, हम एक सच्ची समझ प्राप्त करते हैं और परमेश्वर के प्रति धर्मभीरू हृदय पाते हैं। हम शर्म से जमीन पर गिर जाते हैं, इस अनुभूति से कि हम परमेश्वर के सामने जीवित रहने योग्य नहीं हैं। हम स्वयं से घृणा कर खुद को त्याग देते हैं, हम धीरे-धीरे पाप के चंगुल से छुटकारा पाते हैं, एक वास्तविक मनुष्य की भाँति रह कर, परमेश्वर से सचमुच भयग्रस्त हो कर, उनके आज्ञाकारी बन जाते हैं। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव करने पर ये प्रभाव होते हैं। केवल इस प्रकार का कार्य ही परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय कार्य है।
तो आइये अनुग्रह का युग देखें। प्रभु यीशु ने केवल छुटकारे का कार्य किया और पश्चाताप के मार्ग का उपदेश दिया। मनुष्य को, परमेश्वर के स्वभाव के केवल कृपालु और स्नेही आयाम दिखा कर। हालांकि प्रभु यीशु ने मनुष्य के साथ न्याय करने, फारसियों को निंदित कर उनको कोसने के कुछ शब्द भी कहे, लेकिन यह उनके कार्य का केंद्रबिंदु नहीं था। प्रभु यीशु ने केवल छुटकारे का कार्य किया, जो पापों को क्षमा करने, पश्चाताप का उपदेश देने और अनुग्रह प्रदान करने पर केंद्रित था। वह मनुष्य के पापों के शुद्धिकरण और न्याय पर केंद्रित कार्य नहीं था। यानी प्रभु यीशु का कार्य केवल छुटकारे के कार्य के इर्द-गिर्द ही था और उन्होंने सीमित वचन ही व्यक्त किये, जिनसे मनुष्य को पश्चाताप करने, पाप स्वीकारने, विनम्र और धैर्यवान बनने, बपतिस्मा लेने, सूली उठाने, दु:ख सहने, आदि की विधि की शिक्षा मिली। प्रभु में विश्वास करने पर, हमें स्वीकृति और पश्चाताप हेतु, केवल प्रभु के वचन पर निर्भर होना होगा, जिससे हमारे पापों को क्षमा मिलेगी। तब हमें कानून से सजा नहीं होगी, और मृत्युदंड नहीं मिलेगा। हम परमेश्वर से प्रार्थना कर उनका अनुग्रह और आशीष ग्रहण करने योग्य बन जायेंगे। अनुग्रह के युग में परमेश्वर के छुटकारे के कार्य से ये प्रभाव प्राप्त हुए थे, जो अंत के दिनों में न्याय कार्य से हुए प्रभावों से बिलकुल अलग थे। फिर भी, कुछ लोग यह मानते हैं कि, अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करना और उससे प्रबुद्धता, फटकार और अनुशासन पाना, आंसू बहाते हुए प्रार्थना करना, पाप स्वीकार करना और अच्छा व्यवहार करना, दरअसल परमेश्वर से शुद्धिकरण और न्याय पाने का अनुभव है। तो मैं आप सबसे पूछता हूँ, क्या हम अपने पापों की जड़ को जानते हैं? क्या हम परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले अपने स्वयं की शैतानी प्रवृत्ति के सत्व को जानते हैं? क्या हम मनुष्य के गहन भ्रष्टाचार का सच जानते हैं? क्या हम शैतान के बुरे सत्व को स्पष्ट देख सकते हैं? क्या हम परमेश्वर के धार्मिक, प्रतापी और रुष्ट न होने वाले स्वभाव को जानते हैं? क्या हम पापों के चंगुल से सचमुच छूट चुके हैं? क्या हमारी शैतानी प्रवृत्ति का शुद्धिकरण हो चुका है? क्या हम परमेश्वर के प्रति श्रद्धालु और आज्ञाकारी बन गए हैं? यदि हम ये सब नहीं कर सके, तो कैसे कह सकते हैं कि हमने परमेश्वर से शुद्धिकरण और न्याय पाने का अनुभव किया है? क्या आप सब मेरी बात समझ रहे हैं? अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु का कार्य न्याय कार्य नहीं था। राज्य के युग में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य उनके अंत के दिनों का न्याय कार्य है।
— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?