परमेश्‍वर में अपना विश्वास रखते हुए और उनका अनुसरण करते हुए, हम शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्‍वर के वचन इस बात का समर्थन करते हैं: प्रभु यीशु ने कहा था: "मैं ही पुनरुज्जीवन, और जीवन हूँ: जो कोई भी मुझमें विश्वास करता है, चाहे उसकी मृत्यु क्यों न हो जाएं, वह जीवित रहेगा: और जो कोई भी मुझमें जीता और विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरता है" (यूहन्ना 11:25-26)। "परंतु जो कोई भी मेरे द्वारा दिए गये जल को पीता है, उसे प्यास फिर कभी नहीं सताएगी; परंतु जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसमें एक कुएं का निर्माण करेगी जिससे उसे चिरस्थायी जीवन प्राप्त होगा" (यूहन्ना 4:14)। ये अंश प्रभु यीशु के वादे हैं। प्रभु यीशु हमें शाश्‍वत जीवन प्रदान कर सकते हैं, प्रभु यीशु का मार्ग शाश्‍वत जीवन का मार्ग है। बाइबल कहती है, "वह जो पुत्र पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करता है: और जो पुत्र पर विश्वास नहीं करता है, उसे जीवन का प्रकाश नहीं दिखेगा; बल्कि उसे परमेश्वर का क्रोध झेलना पड़ेगा" (यूहन्ना 3:36)। क्‍या प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र नहीं हैं, क्या वह मसीह नहीं है? प्रभु यीशु में विश्वास करके, हमें, इस प्रकार, शाश्‍वत जीवन का मार्ग भी मिलना चाहिए। लेकिन आप लोग इस बात की गवाही देते हैं कि अंतिम दिनों में मसीह के आसन के समक्ष न्‍याय और शुद्धिकरण का अनुभव कर सकें, और अंतिम दिनों में परमेश्‍वर से उद्धार प्राप्‍त कर सकें। हमारे लिये शाश्वत जीवन का मार्ग लाएँगे। मैं यह बिल्कुल नहीं समझ पा रहा हूँ, कि हम सभी प्रभु यीशु मसीह के अनुयायी हैं। यह शाश्‍वत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त क्यों नहीं है? तो हमें अंतिम दिनों के मसीह के वचनों और कार्य को क्यों स्वीकार करना है?

03 मार्च, 2021

उत्तर: देहधारी बने परमेश्वर ही प्रभु यीशु हैं, परमेश्‍वर का प्रकटन हैं। प्रभु यीशु ने कहा: "और जो कोई भी मुझमें जीता और विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरता है" (यूहन्ना 11:26)। "...परंतु जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसमें एक कुएं का निर्माण करेगी जिससे उसे चिरस्थायी जीवन प्राप्त होगा" (यूहन्ना 4:14)बाइबल कहती है, "वह जो पुत्र पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करता है" (यूहन्ना 3:36)। ये सभी वचन सत्य हैं, वे सभी तथ्य हैं! क्योंकि देहधारी बने परमेश्वर ही प्रभु यीशु हैं, उनमें परमेश्‍वर का सार और पहचान है। वे स्‍वयं चिरस्थायी जीवन का मार्ग हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं और करते हैं वह परमेश्वर के जीवन की एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। वह जो कुछ व्यक्त करते हैं वह सत्‍य है और वह है जो परमेश्‍वर के पास है और जो परमेश्‍वर है। तो प्रभु यीशु स्‍वयं अनन्त जीवन हैं, और शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं। वह मृतक को में वापस जीवित कर सकते हैं। प्रभु यीशु में विश्वास करके, हम एकमात्र सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और इस तरह शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। इस पर तो सवाल ही नहीं है। प्रभु यीशु का लाज़रस का पुनस्र्ज्जीवन एक अच्छा प्रमाण है। कि प्रभु यीशु हमें शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं, उनके पास यह अधिकार है। फिर, ऐसा क्यों है कि प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग के दौरान शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान नहीं किया? ऐसा इसलिए है क्योंकि, मानवजाति के छुटकारे के लिए प्रभु यीशु सूली पर चढ़ने आये, अंतिम दिनों की तरह शुद्धिकरण और उद्धार का कार्य करने के लिये नहीं। प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य केवल मनुष्यों के पापों को क्षमा करने से संबंधित था, परन्तु इसने मनुष्य को उसकी शैतानी प्रकृति और स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। इसलिए, प्रभु पर विश्वास करके, हमें हमारे पापों के लिए माफ़ किया गया था, लेकिन हमारे शैतानी स्वभाव को किसी भी तरह से शुद्ध नहीं किया गया था। हम अभी भी स्वयं के बावजूद पाप करते हैं, परमेश्‍वर का विरोध करते हैं और उनसे विश्वासघात करते हैं। क्‍या यह सच नहीं है? हम्‍म। यह सब स्थापित करने के बाद, हमें कुछ किसी चीज पर स्पष्ट होना चाहिए। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने अंतिम दिनों में न्‍याय कार्य के लिये मार्ग प्रशस्त किया, इसलिए, जब प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य पूरा कर लिया, तो उन्‍होने यह भी वादा किया कि वे फिर से आएँगे। प्रभु यीशु ने कहा था: "अभी भी मेरे पास कहने के लिए बहुत सी बातें हैं, लेकिन अभी तुम उन्हें सहन नहीं कर सकते हो। हालाँकि, जब वह, सत्य का आत्मा आएगी, तो वह सच्चाई की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी: क्योंकि वह स्वयं कुछ नहीं बोलेगी; बल्कि वह जो कुछ भी सुनेगी, उसके बारे में वह तुम्हें बताएगी: वह तुम्हें होने वाली घटनाओं के बारे में बताएगी" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रभु यीशु के शब्दों से हम देख सकते हैं कि जब परमेश्‍वर अंतिम दिनों में वापस आते हैं केवल तभी वह समस्त सत्य व्यक्त करेंगे जो मनुष्य को शुद्ध करता और बचाता है। यहाँ, "सत्य का आत्मा आएगी, तो वह सच्चाई की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी।" ये सत्य वास्तव में वे सत्य हैं जो अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने में व्यक्त करते हैं। ये वे शब्द हैं जो पवित्र आत्मा कलीसियों से कहती है, और वे शाश्‍वत जीवन के मार्ग हैं जो परमेश्‍वर ने अंतिम दिनों में मानवजाति को प्रदान किये हैं। यही कारण है कि अनुग्रह के युग में प्रभु के अनुयायी शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्राप्त करने में असमर्थ थे। प्रभु यीशु ने कहा था, "और जो कोई भी मुझमें जीता और विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरता है।" और बाइबल भी कहती है, "वह जो पुत्र पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करता है।" परन्तु वास्तव में, परमेश्‍वर ने यह कहा ताकि वे इस तथ्य को प्रमाणित कर सकें कि वे स्‍वयं परमेश्‍वर का प्रकटन हैं। और केवल वे ही मनुष्य को शाश्‍वत जीवन प्रदान कर सकते हैं। प्रभु यीशु का वादा कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं वे कभी नहीं मरेंगे, परमेश्वर के अधिकार की गवाही है। परमेश्‍वर स्‍वयं शाश्‍वत जीवन का मार्ग हैं, परमेश्‍वर मनुष्य को शाश्‍वत जीवन प्रदान करने में सक्षम है। कहने का यह मतलब नहीं है कि प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार करने पर मनुष्‍य ने शाश्‍वत जीवन प्राप्त किया। मुझे विश्वास है कि हर कोई इस बात को समझता है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि जब मनुष्य ने अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे को स्वीकार किया, तो उनके पापों को माफ कर दिया गया और उन्हें परमेश्‍वर की प्रार्थना करने और उनके अनुग्रह और आशीषों का आनंद लेने का अधिकार दिया गया, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस समय, मनुष्य अभी भी अपनी पापी प्रकृति से विवश है, वे अभी भी पाप में असहायपूर्वक रहते हैं, वे प्रभु के वचनों का पालन करने में पूरी तरह से असमर्थ हैं और उनमें परमेश्‍वर के प्रति कोई वास्तविक श्रद्धा और आज्ञाकारिता नहीं है। इस समय, मनुष्य अक्सर अभी भी झूठ बोल सकता है और परमेश्‍वर को धोखा दे सकता है, वे प्रसिद्धि और भाग्य, पैसे की लालसा के पीछे पड़े रहते हैं, और दुनिया की प्रवृत्ति का पालन करने में लगे रहते हैं। विशेषकर जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों के मतों के अनुरूप नहीं होता है, तो मनुष्य परमेश्‍वर को दोष देता है, उनकी आलोचना करता है और यहाँ तक कि परमेश्‍वर का विरोध भी करता है। ऐसे लोग वास्‍तव में पश्चाताप तक नहीं कर सकते, क्या ऐसे लोग परमेश्‍वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं? यद्यपि बहुत से लोग अनुसरण करने, गवाही देने, यहाँ तक कि प्रभु के लिए अपने जीवन तक बलिदान करने में सक्षम होते हैं, और वास्तव में पश्चाताप करते हैं, वास्तव में, क्या उनके भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध किया गया है ताकि वे पवित्रता प्राप्‍त कर सकें? तो क्या वे सचमुच प्रभु को जानते हैं? क्या उन्होंने वास्तव में शैतान के प्रभाव से खुद को मुक्‍त कर लिया है परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिये गए हैं? बिल्कुल नहीं, यह आमतौर पर स्वीकार्य तथ्य है। यह इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि अनुग्रह के युग दौरान प्रभु यीशु का कार्य केवल छुटकारा दिलाने का कार्य था। यह निश्चित रूप से अंतिम दिनों का उद्धार और सिद्धि का कार्य नहीं था। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के वचनों ने केवल लोगों को पश्चाताप का तरीका दिया, शाश्‍वत जीवन का मार्ग नहीं। इसलिए यही कारण है कि प्रभु यीशु ने कहा कि वे फिर से आएँगे। प्रभु यीशु की वापसी सत्य को व्यक्त करने के कार्य करने और मनुष्य को शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान करने के लिए है, ताकि वे खुद को शैतान के प्रभाव से छुड़ा सकें और जीवन के रूप में सत्य को प्राप्त कर सकें ऐसे मनुष्य बन सकें जो परमेश्वर को जानते हैं, परमेश्वर की आज्ञापालन करते हैं, परमेश्‍वर का आदर करते हैं और परमेश्वर के साथ अनुकूल हो सकें, ताकि वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें और शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकें। प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे के कार्य की नींव पर, अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से शुरूआत करके न्‍याय का कार्य आरंभ कर दिया है और मानवता को शुद्ध करने और बचाने के लिए समस्त सत्‍य व्यक्त कर दिया है। उसने मानवजाति को परमेश्‍वर के धार्मिक, प्रतापी, और अपमान न किए जाने योग्य स्वभाव को प्रकट कर दिया है, शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के सार और तथ्य को ऊजागर और न्‍याय किया है। उन्होंने परमेश्‍वर के प्रति मनुष्य के विद्रोह और प्रतिरोध के मूल को उघाड़ दिया है, और मनुष्‍य को परमेश्‍वर के सभी इरादों और अपेक्षाओं के बारे में बता दिया है। इसी समय, उन्‍होनें मानवजाति को स्पष्ट शब्दों में उन सभी सत्‍यों के बारे में समझाया है जिनकी उद्धार प्राप्त करने के लिए मुनष्‍य को आवश्यकता है, जैसे कि परमेश्‍वर के उद्धार के कार्य के सभी तीन चरणों की अंदर की कहानी और उनका सार और साथ ही इन तीन चरणों के बीच संबंध, परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य के बीच का अंतर, बाइबल के अंदर की कहानी और सत्य, अंतिम दिनों में न्‍याय का रहस्य, बुद्धिमान कुँवारियों को स्वर्गारोहण किए जाने का रहस्य और आपदाओं से पहले लोगों को विजेताओं में सिद्ध बनाने का रहस्य, देहधारी बने परमेश्वर का रहस्य, और परमेश्वर में वास्तव में विश्‍वास करने, उनकी आज्ञापालन करने और उनसे प्रेम करने का मतलब है, कैसे परमेश्‍वर का आदर करें और मसीह के अनुकूल बनने के लिए कैसे बुराई को दूर रखें, कैसे अर्थपूर्ण जीवन जीयें, और इत्‍यादि। ये सत्‍य, शाश्‍वत जीवन के मार्ग हैं जो अंतिम दिनों में परमेश्‍वर द्वारा मानवजाति को प्रदान किये गए हैं। इसलिए, अगर हम सत्य और जीवन को प्राप्त करना चाहते हैं, उद्धार, शुद्धिकरण को प्राप्त करना और सिद्ध किया जाना चाहते हैं, तो हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों के मसीह के वचनों और कार्य को स्वीकार और उनका आज्ञापालन अवश्य करना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम सत्य और जीवन को प्राप्त कर सकते हैं। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर एक नज़र डालें।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य नहीं माने जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है। यदि तुम अतीत के युगों के दौरान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के अभिलेखों को आज पर लागू करते हो, तो यह तुम्हें पुरातत्ववेत्ता बना देता है, और तुम्हें ज्यादा-से-ज्यादा ऐतिहासिक धरोहर का विशेषज्ञ ही कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि तुम हमेशा परमेश्वर द्वारा बीते समयों में किए गए कार्य के अवशेषों पर विश्वास करते हो, केवल पूर्व में मनुष्य के बीच कार्य करते समय छोड़ी गई परमेश्वर की परछाई में विश्वास करते हो, और केवल पहले के समयों में परमेश्वर द्वारा अपने अनुयायियों को दिए गए मार्ग में विश्वास करते हो। तुम परमेश्वर के आज के कार्य के मार्गदर्शन में विश्वास नहीं करते हो, परमेश्वर के आज के महिमामयी मुखमंडल में विश्वास नहीं करते हो, और परमेश्वर द्वारा आज के समय में व्यक्त किए गए सत्य के मार्ग में विश्वास नहीं करते हो। और इसलिए तुम निर्विवाद रूप से एक दिवास्वप्नदर्शी हो जो वास्तविकता से कोसों दूर है। यदि तुम अब भी उन वचनों से चिपके हुए हो जो मनुष्य को जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो तुम एक निर्जीव काष्ठ[क] के बेकार टुकड़े हो, क्योंकि तुम अत्यंत रूढ़िवादी, अत्यंत असभ्य, तर्क के प्रति अत्यंत विवेकशून्य हो।

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अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। वे जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की गई है, हमेशा के लिए मुर्दे, शैतान के खिलौने, और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को ख़ारिज़ करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये बुद्धिमत्ता के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे।

मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर की घृणा के भागी होंगे। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों के मसीह ने सभी सत्यों को व्यक्त किया है जो मानवता को शुद्ध करेंगे और बचाएँगे। ये वचन प्रचुर मात्रा में हैं, व्यापक हैं और इनमें वे सभी जीवनाधार हैं जो परमेश्वर प्रदान करते हैं। वे हमारी आँखें खोलते हैं और हमारे ज्ञान को समृद्ध करते हैं, हमें यह देखने की इजाजत देते हैं कि मसीह ही सत्‍य है, मार्ग है, और जीवन है। मसीह शाश्‍वत जीवन का मार्ग है। ये वचन जो परमेश्वर ने राज्‍य के युग में व्यक्त किये व्‍यवस्‍था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान जो कुछ कहा गया उन सबसे परे जाते हैं। विशेष रूप से, जैसा कि "परमेश्‍वर का संपूर्ण ब्रह्माण्ड को कथन" में है वचन देह में प्रकट हुआ में परमेश्‍वर स्‍वयं को समस्त मानवता के लिए पहली बार ज्ञात करवाते हैं। यह भी पहली बार है कि मानवजाति सभी मनुष्यों के लिये सृष्टिकर्ता के कथनों को सुनती है। इसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को आश्चर्यचकित करके मनुष्यों की आँखें खोल दी। यह अंतिम दिनों में महान श्वेत सिंहासन के समक्ष न्याय का काम है। राज्य का युग वह युग है जिसमें परमेश्वर न्याय का कार्य करते हैं, और वह युग है जहाँ परमेश्वर का धर्मी स्‍वभाव समस्त मानव जाति के लिए अभिव्यक्त होता है। इसलिए, राज्य के युग में, परमेश्वर मनुष्य का न्याय करते हुए, उसे शुद्ध और सिद्ध करते हुए अपना वचन व्यक्त करते हैं। वे मनुष्य पर सभी प्रकार की आपदाएँ भेजते हैं, अच्‍छों को पुरस्कृत करते हैं और बुरों को दंड देते हैं। वे परमेश्वर की धार्मिकता, प्रताप और क्रोध को मानव जाति को प्रकट करते हैं। वे सभी सत्यों जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्‍य को शुद्ध करने, बचाने और सिद्ध करने के लिये व्‍यक्‍त करते हैं शाश्‍वत जीवन के वे मार्ग हैं जिन्हें परमेश्वर अंतिम दिनों में मनुष्य को प्रदान करते हैं। ये सत्य जीवन की नदी का जल है जो सिंहासन से बहता है। इसलिए, हमारे परमेश्वर पर विश्वास में अगर हम शाश्‍वत जीवन का मार्ग हासिल करना चाहते हैं, और स्वर्गारोहण प्राप्त करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, तो हमें अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मसीह के न्याय के कार्य को स्वीकार अवश्य करना चाहिए, और साथ ही उनके वचनों के न्‍याय और ताड़ना को भी स्वीकार अवश्य करना चाहिए। केवल इसी तरह से हम पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल कर सकते हैं, सत्‍य को समझ और हासिल कर सकते हैं, शुद्धि प्राप्त कर सकते हैं, और बचाए जा सकते हैं। केवल जो लोग अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्‍याय और ताड़ना से गुज़रते हैं, वे ही परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के हकदार हैं। यह एक परम तथ्य है! यदि हम अपने धार्मिक मतों का अनुसरण करते रहें, तो अंत में हमें ही नुकसान सहना होगा। बुद्धिमान कुँवारियाँ केवल सत्य की खोज और परमेश्‍वर के वचनों को सुनने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, लेकिन मूर्ख कुँवारियाँ केवल बाइबल के अक्षरों और अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं का पालन करती हैं, और सत्य की तलाश नहीं करती हैं या परमेश्‍वर की वाणी को नहीं सुनती हैं। फिर एक दिन, वे अचानक विपत्ति में पड़ जाएँगी और विलाप करेंगी और दाँत पीसेंगी। और तब पश्चाताप भी बेकार होगा। इसलिए, वे सभी जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते हैं, वे विपत्ति में पड़ेंगे और दंडित किए जाएँगे। यही है वह जिसका परमेश्वर ने आदेश दिया है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता है। विशेष रूप से वे जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की बेतहाशा निंदा करते हैं पहले से ही परमेश्वर के द्वारा प्रकट कर दिये गए हैं कि वे अंतिम दिनों के ईसा-विरोधी हैं - वे लोग शाश्‍वत दंड भुगतेंगे और उन्‍हें परमेश्‍वर से मिलने का अब और अवसर नहीं मिलेगा। यह स्पष्ट है कि अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य, लोगों के परिणामों का निर्धारण करने और युग का समापन करने के लिए, मनुष्य को प्रकारों के अनुसार वर्गीकृत करना है।

"मेरा प्रभु कौन है" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

फुटनोट :

क. निर्जीव काष्ठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"सहायता से परे"।

पिछला: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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आप कहते हैं कि सिर्फ़ परमेश्‍वर की इच्छा का पालन करने वाले अनन्‍त जीवन का मार्ग पाते हैं। जब हमने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया था, तो हमने प्रभु का सुसमाचार फैलाने के लिए काफी कष्ट सहा और इसकी कीमत चुकाई। हम प्रभु के झुंड के चरवाहे बने, क्रूस उठाया और प्रभु का अनुसरण किया, हमने नम्रता, धैर्य और सहिष्णुता का पालन किया। क्या आप ये कह रहे हैं कि हम परमेश्‍वर की इच्छा का पालन नहीं कर रहे हैं? हम जानते हैं कि अगर हम इसे जारी रखते हैं, तो हम पवित्र हो जायेंगे और स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहित किये जायेंगे। क्या आपका मतलब है कि प्रभु के वचनों को इस तरह समझना और उनको अमल में लाना गलत है?

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सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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