तुम यह गवाही देते हो कि प्रभु यीशु पहले से ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में वापस आ चुका है, कि वह पूरी सत्य को अभिव्यक्त करता है जिससे कि लोग शुद्धिकरण प्राप्त कर सकें और बचाए जा सकें, और वर्तमान में वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहा है, लेकिन हम इसे स्वीकार करने की हिम्मत नहीं करते। यह इसलिए है क्योंकि धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों का हमें बहुधा यह निर्देश है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में अभिलेखित हैं और बाइबल के बाहर परमेश्वर का कोई और वचन या कार्य नहीं हो सकता है, और बाइबल के विरुद्ध या उससे परे जाने वाली हर बात विधर्म है। हम इस समस्या को समझ नहीं सकते हैं, तो तुम कृपया इसे हमें समझा दो।

13 मार्च, 2021

उत्तर: धार्मिक समुदाय का इस प्रकार का दृष्टिकोण परमेश्वर के वचन पर आधारित नहीं है; यह पूरी तरह से बाइबल की गलत व्याख्या का परिणाम है। बाइबल परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों की गवाही देती है; यह सच है। हालांकि, बाइबल में जो आलेखित है, वह सीमित है, और इसमें परमेश्वर द्वारा अपने कार्य के दो चरणों में कहे गए सारे वचन और इस कार्य की सारी गवाहियाँ शामिल नहीं हैं। बाइबल के संकलनकर्ताओं के बीच चूक और वाद-विवादों के कारण, नबियों की कुछ भविष्यवाणियाँ, प्रेरितों के कुछ अनुभव और उनकी गवाहियाँ छोड़ दी गईं थीं; यह एक मान्यता-प्राप्त तथ्य है। तो यह कैसे कहा जा सकता है कि बाइबल के अलावा, परमेश्वर के कार्य के बारे में कोई भी अन्य आलेख या गवाही नहीं है? क्या उन ग़ैरहाज़िर भविष्यवाणियों और धर्म-पत्रों में मानवीय इच्छा की मिलावट थी? प्रभु यीशु ने सिर्फ उन वचनों को ही नहीं कहा था जो नए नियम में लिखे गए हैं; उसके कुछ कथन और कार्य उसमें नहीं लिखे गए थे। क्या इसका मतलब यह है कि इसी वजह से उन्हें बाइबल में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए? बाइबल स्वयं परमेश्वर के निर्देशन में संकलित नहीं की गई थी, बल्कि उसकी सेवा में कार्यरत कई लोगों द्वारा संयुक्त रूप संकलित की गयी थी। बेशक, उनके बीच मतभेद और चूकें हुई होंगी, या कुछ समस्याएँ खड़ी हुई होंगी। इसके अलावा, आधुनिक समय के लोगों के पास बाइबल की भिन्न-भिन्न व्याख्याएँ और दृष्टिकोण हैं। हालांकि, लोगों को सत्य का सम्मान करना ही चाहिए, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि बाइबल के बाहर परमेश्वर के वचन और कार्य मौजूद नहीं हैं; ऐसा कहना तथ्यों के अनुरूप नहीं होगा। मूल रूप से, बाइबल में केवल पुराना नियम ही शामिल था। पुराने नियम में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है जो प्रभु यीशु ने अपने छुटकारे के कार्य को करते वक्त कहा था; क्या प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य और उसकी अभिव्यक्तियाँ उस समय की बाइबल में शामिल थीं, या बाइबल से बाहर थीं? लोग वास्तविक तथ्यों को नहीं समझते हैं, और यह बिल्कुल नहीं जानते हैं कि हर बार जब परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा कर लेता था, उसके बाद ही वे तथ्य प्रकट होते हैं और बाइबल में लिखे जाते हैं। यह तर्क करना कि परमेश्वर के कार्य और वचन का बाइबल के बाहर कोई आलेख नहीं है, कुछ हद तक व्यक्तिपरक और बेतुका है! परमेश्वर द्वारा अपने कार्य के एक चरण को पूरा करने के बाद ही पुराने नियम और नए नियम को तैयार किया गया था, लेकिन बाइबल के आने के बाद, कोई भी नहीं जानता था कि परमेश्वर और क्या करेगा या क्या कहेगा; यह सच्चाई है। बाइबल को इस तरह से विभाजित कर पाने में, या उसमें लिखी गई बातों के आधार पर परमेश्वर को सीमित कर पाने में, इंसान बिलकुल भी योग्य नहीं है। इस बिंदु पर, हम सब ने स्पष्ट रूप से देख लिया है कि भ्रष्ट इंसान वास्तव में कितना अभिमानी, और इसलिए कितना तर्कहीन, हो गया है; जब सत्य का सामना करना पड़ता है, तो इंसान बेधड़क निष्कर्ष निकालने की भी हिम्मत करते हैं। क्या यह यहूदी मुख्य याजकों, धर्म-शास्त्रियों और फरीसियों की उस गलती को दोहराना नहीं है, जिसे उन्होंने परमेश्वर का विरोध करने के लिए बाइबल का इस्तेमाल करते समय की थी? इस प्रकार, हम केवल बाइबल को आधार मानकर परमेश्वर पर विश्वास, उसका अनुसरण और सही मार्ग का पालन और अध्ययन नहीं कर सकते, क्योंकि इसका उपयोग सिर्फ संदर्भ के रूप में किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने दृढ़ संकल्प का आधार इसे बनाना चाहिए कि क्या उसमें पवित्र आत्मा का कार्य है, और क्या उसमें सत्य है; तभी यह नींव सही होगी; तभी हम सही चुनाव कर सकते हैं। इसलिए, ऐसे दावे कि "जो कुछ भी बाइबल के विरुद्ध या उससे परे जाता है, एक विधर्म और भ्रांति है", वास्तव में अनुचित हैं। अनुग्रह के युग में, यहूदी मुख्य याजकों, धर्म-शास्त्रियों और फरीसियों ने बाइबल के मुताबिक प्रभु यीशु की निंदा की और उसे क्रूस पर कीलों से जड़ दिया—जो एक ऐसा कार्य था जिसने परमेश्वर के स्वभाव को नाराज कर दिया और उन सब के दंडित और शापित होने का कारण बना। यह सब बाइबल में अंधविश्वास करने और उसकी आराधना करने और मसीह को अस्वीकार करने का परिणाम था। क्या मैं पूछ सकता हूँ, प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य बाइबल के अनुरूप था या नहीं? प्रभु यीशु ने जब अपना छुटकारे का कार्य समाप्त किया, उसके दो हज़ार साल बाद, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने आया है; क्या यह नए नियम की विषय-वस्तु के अनुरूप है? धार्मिक मंडलियाँ हमेशा परमेश्वर के कार्य को परिसीमित करने के लिए बाइबल का इस्तेमाल करती हैं; यह तो बहुत ही हास्यास्पद और बेतुका है! सतही तौर पर, ऐसा लगता है कि वे बाइबल का सम्मान करते हैं, लेकिन वे वास्तव में अपने ओहदे और अपने वर्चस्व को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। वे वास्तव में सत्य की खोज नहीं कर रहे हैं; जिस मार्ग पर वे चल रहे हैं वो वास्तव में मसीह-विरोधियों का मार्ग है। इस से यह स्पष्ट है कि सही मार्ग का निर्धारण करने और परमेश्वर के कार्य की सही शोध करने के लिए बाइबल को आधार बनाना गलत है; सटीक होने का एकमात्र तरीका यह है कि वह सही मार्ग या परमेश्वर का कार्य है या नहीं, इसके निर्धारण का आधार हम पवित्र आत्मा के कार्य और सत्य की मौजूदगी को बनाएँ। इस प्रकार, यह कहना गलत है कि बाइबल के अलावा परमेश्वर का कोई अन्य कथन या कार्य नहीं है; ऐसा दावा वास्तव में एक भ्रान्ति है।

— ऊपर से संगति से उद्धृत

धर्म में, पादरियों और एल्डर्स के प्रचार के कारण, वे सभी लोग जो प्रभु पर विश्वास करते हैं, उनका मानना है; परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में निहित हैं; बाइबल में परमेश्वर का उद्धार कार्य पूर्ण हो चुका है, और परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है; प्रभु में विश्वास बाइबल पर आधारित और बाइबल के वचनों पर अवलंबित होना चाहिए; जब तक हम बाइबल को नहीं छोड़ते हैं, जब प्रभु का आगमन होगा, वे हमें स्वर्ग के राज्य में लेकर जाएंगे। इस तरह का नज़रिया लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप हो सकता है, मगर क्या यह प्रभु यीशु के वचनों पर आधारित है? क्या आप गारंटी दे सकते हैं कि यह सत्य के अनुरूप है? प्रभु यीशु ने ऐसा कभी नहीं कहा था कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज होंगे, कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। यह सही है। बाइबल को समझने वाले सभी लोग यह जानते हैं कि बाइबल को परमेश्वर के कार्य के कई सालों बाद मनुष्यजाति द्वारा संकलित किया गया था। परमेश्वर का कार्य पहले आता है, और बाइबल उसके बाद। दूसरे शब्दों में, हर बार जब परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, जिन लोगों ने परमेश्वर के कार्य को अनुभव किया उन्‍होंने उस समय से परमेश्वर के वचन और कार्य को दर्ज किया, और इन दस्‍तावेज़ों को लोगों द्वारा बाइबल में संकलित किया गया। इस पर जरा विचार करें, जो कार्य परमेश्वर द्वारा अब तक पूरे नहीं किये गए वो पहले से बाइबल में कैसे संकलित किये जा सकते हैं? ख़ास तौर पर, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय कार्य को बाइबल में दर्ज नहीं किया जा सकता। नए और पुराने विधान (नियम) करीब 2,000 सालों से बाइबल का हिस्सा रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों का अपना न्याय का कार्य अभी ही शुरू किया है। इसलिए, अंत के दिनों के परमेश्वर के वचन और कार्य शायद हज़ारों साल पहले बाइबल में दर्ज नहीं किए गए होंगे। क्या यह एक सच्चाई नहीं है? अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए न्याय का कार्य पूरा किया है, और लाखों वचन कहे हैं। ये सारे वचन सत्य हैं जो मनुष्य को शुद्ध करते और बचाते हैं, और अंत में दिनों के मसीह द्वारा लाये गए अनंत जीवन का रास्ता हैं। इन्हें राज्य के युग के बाइबल, वचन देह में प्रकट होता है, में पहले ही संकलित किया जा चुका है। हालांकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सत्य वचनों को पहले से बाइबल में दर्ज नहीं किया गया है, लेकिन वे पूरी तरह से प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरा करते हैं। "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सत्य वचनों ने इस बात की पूरी तरह से पुष्टि कर दी है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य के आत्मा का शरीर रूप हैं। वे देहधारी परमेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए सारे वचन, यानी अंत के दिनों में सत्य के आत्मा की अभिव्यक्तियां, कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचन हैं। क्या हममें यह कहने की हिम्मत है कि ये परमेश्वर के वचन नहीं हैं? क्या हममें अभी भी इससे इनकार करने की हिम्मत है। अगर हम अंत के दिनों में परमेश्वर के वचनों और कार्यों की वास्तविकता पर नज़र डालते हैं, क्या हम अभी भी यही कहेंगे कि परमेश्वर के सारे वचन बाइबल में दर्ज हैं और यह कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है? बाइबल कैसे बनी, इसकी अंदर की कहानी को हम नहीं समझ पाते हैं। हम इस तथ्य को नहीं जानते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर द्वारा अपने कार्य का हर चरण पूरा करने के पश्‍चात बनाई गई थी, और फिर भी हम मनमाने ढंग से यह निष्कर्ष निकालते और तय करते हैं कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। क्या हम बहुत ही मनमाने और बेतुके नहीं हैं?

अगर हम यह नहीं समझ पाते हैं कि बाइबल कैसे बनाई गई और इसकी अंदर की कहानी क्या है, तो परमेश्वर में विश्वास करने के मार्ग से विचलित होना बहुत आसान हो जाएगा। असल में, व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्य के दो चरणों के दौरान, परमेश्वर द्वारा कहे गए सारे वचन बाइबल में पूरी तरह से दर्ज नहीं किए गए थे। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग में कुछ ऐसे पैगंबर हुए थे जिनकी भविष्यवाणियां बाइबल में दर्ज नहीं की गयी थीं। यह एक ऐसा तथ्य है जिसके बारे में शायद कुछ ही भाई-बहनों को पता होगा। फिर अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने कहीं अधिक वचन बोले थे। लेकिन बाइबल में दर्ज किए गए वचन बहुत सीमित हैं। ज़रा सोचिए। प्रभु यीशु ने करीब साढ़े-तीन वर्षों तक पृथ्वी पर उपदेश दिया था। हम हर दिन कितने शब्द बोलते हैं? प्रत्येक धर्मोपदेश में उन्होंने कितने वचन बोले होंगे? उन साढ़े तीन वर्षों में प्रभु यीशु ने बहुत सारे धर्मोपदेश और वचन बोले थे। इसकी गणना करने का कोई तरीका नहीं है। जैसा कि प्रचारक यूहन्ना ने कहा था: "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)। आइए अब हम नए व्यवस्थान के चार सुसमाचारों पर नज़र डालें। इनमें दर्ज किए गए प्रभु यीशु के वचन बहुत सीमित हैं! यह तो मानो एक हिमशिला की नोक समान है! अगर प्रभु यीशु ने उन साढ़े तीन सालों के चार सुसमाचारों में केवल वे चंद वचन कहे होते, तो फिर वे उन लोगों को जीतने में कैसे सफल हो पाते जिन्होंने उस समय उनका अनुसरण किया था? प्रभु यीशु का कार्य पूरे यहूदिया को हिलाने में कैसे सफल हुआ होता? इसलिए, यह निश्चित है कि बाइबल में दर्ज किए गए परमेश्वर के वचन इसका केवल एक बहुत सीमित हिस्सा हैं, निश्चित रूप से इसमें परमेश्वर द्वारा अपने कार्य के दौरान बोले गए सारे वचन शामिल नहीं हैं। यह एक ऐसा तथ्‍य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता! हम सब जानते हैं कि परमेश्वर सृष्टि के प्रभु हैं। मनुष्य के जीवन का स्रोत! सजीव पानी का सोता जो कभी नहीं सूखता। परमेश्वर की प्रचुरता कभी न ख़त्म होने वाली है और हमेशा इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होती है, जबकि बाइबल सिर्फ परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों का एक लेखा जोखा है। परमेश्वर के वचनों की दर्ज की गयी मात्रा बहुत ही सीमित है। यह परमेश्वर के जीवन में सागर की एक बूँद के सामान है। हम परमेश्वर के वचनों और कार्य को सिर्फ बाइबल तक कैसे सीमित कर सकते हैं? हालांकि यह ऐसा है कि परमेश्वर ने केवल बाइबल में सीमित वे वचन बोले थे। क्या यह परमेश्वर को सीमांकित करना, छोटा करना और उनकी निंदा करना नहीं है? इसलिए, परमेश्वर के सभी वचन और कार्य को बाइबल तक सीमित करना और यह सोचना कि परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है, एक बड़ी गलती है!

आइए आगे हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंशों को पढ़ते हैं, और हमें सच्चाई के इस पहलू के बारे में और भी स्पष्ट हो जाएगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1))

"यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। ... आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। ... कौन आज के कार्य के प्रत्येक अंश को, बिना किसी चूक के, अग्रिम रूप से दर्ज कर सकता है? कौन इस अति पराक्रमी, अति बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य को, जो परंपरा के विरुद्ध जाता है, इस पुरानी घिसी-पिटी पुस्तक में दर्ज कर सकता है? आज का कार्य इतिहास नहीं है, और इसलिए, यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

"आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त का पालन करना होता और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना होता, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

"मैं जिसे यहाँ समझा रहा हूँ वह तथ्य यह है: परमेश्वर जो है और उसके पास जो है, वह सदैव अक्षय और असीम है। परमेश्वर जीवन का और सभी वस्तुओं का स्रोत है। परमेश्वर की थाह किसी भी रचित जीव के द्वारा नहीं पाई जा सकती। अन्त में, मुझे अभी भी सब को याद दिलाना होगा: पुस्तकों, वचनों या उनकी अतीत की उक्तियों में परमेश्वर को सीमांकित न करो। परमेश्वर के कार्य की विशेषता के लिए केवल एक ही शब्द है—नवीन। वह पुराने रास्ते लेना या अपने कार्य को दोहराना पसंद नहीं करता, और इसके अलावा, वह नहीं चाहता कि लोग उसे एक निश्चित दायरे के भीतर सीमांकित करके उसकी आराधना करें। यह परमेश्वर का स्वभाव है" ("वचन देह में प्रकट होता है" का 'अंतभाषण')

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

हम सोचते हैं परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर पर हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित होना चाहिए। क्या ये गलत है?

उत्तर: धार्मिक समूह में कई विश्वासियों का मानना है कि: "परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन...

पौलुस ने 2 तिमुथियस में यह बात बिलकुल साफ़ कर दी है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश" (तीमुथियुस 3:16)। इसका मतलब है कि बाइबल का प्रत्येक वचन परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। बाइबल से दूर जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना! प्रभु में हमारा विश्वास केवल हमसे बाइबल पर अवलंबित रहने की मांग करता है। भले ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, हमें तब भी मुक्ति मिलेगी और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

उत्तर: धार्मिक जगत का ज्यादातर हिस्सा पौलुस के इन शब्दों पर भरोसा करता है कि "सारा धर्मशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिया गया है" जिससे यह...

Leave a Reply

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें