बाइबल में पौलुस कहता है, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16)। इसलिए बाइबल के समस्त वचन परमेश्वर के वचन हैं। फिर तुम ऐसा क्यों कहते हो कि बाइबल के वचनों में सब वचन परमेश्वर के वचन नहीं हैं?

13 मार्च, 2021

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

बाइबल में हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का अभिलेख नहीं है। बाइबल बस परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण दर्ज करती है, जिनमें से एक भाग नबियों की भविष्यवाणियों का अभिलेख है, और दूसरा भाग युगों-युगों में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों द्वारा लिखे गए अनुभवों और ज्ञान का अभिलेख है। मनुष्य के अनुभव उसके मतों और ज्ञान से दूषित होते हैं, और यह एक अपरिहार्य चीज़ है। बाइबल की कई पुस्तकों में मनुष्य की धारणाएँ, पूर्वाग्रह और बेतुकी समझ शामिल हैं। बेशक, अधिकतर वचन पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी का परिणाम हैं और वे सही समझ हैं—फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह से सत्य की सटीक अभिव्यक्ति हैं। कुछ चीज़ों पर उनके विचार व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान या पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से बढ़कर कुछ नहीं हैं। नबियों के पूर्वकथन परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किए गए थे : यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल जैसों की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं; ये लोग द्रष्टा थे, उन्होंने भविष्यवाणी के आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के नबी थे। व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त करने वाले लोगों ने अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)

पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा द्वारा बड़ी संख्या में खड़े किए गए नबियों ने उसके लिए भविष्यवाणी की, उन्होंने विभिन्न कबीलों एवं राष्ट्रों को निर्देश दिए, और यहोवा द्वारा किए जाने वाले कार्य की भविष्यवाणी की। इन सभी खड़े किए गए लोगों को यहोवा द्वारा भविष्यवाणी की आत्मा दी गई थी: वे यहोवा से उसके दर्शन प्राप्त करने और उसकी आवाज़ सुनने में सक्षम थे, और इस प्रकार वे उसके द्वारा प्रेरित थे और उन्होंने भविष्यवाणियाँ लिखीं। उन्होंने जो कार्य किया, वह यहोवा की आवाज़ की अभिव्यक्ति था, यहोवा की भविष्यवाणी की अभिव्यक्ति था, और उस समय यहोवा का कार्य केवल पवित्रात्मा का उपयोग करके लोगों का मार्गदर्शन करना था; वह देहधारी नहीं हुआ, और लोगों ने उसका चेहरा नहीं देखा। इस प्रकार, उसने अपना कार्य करने के लिए बहुत-से नबियों को खड़ा किया और उन्हें आकाशवाणियाँ दीं, जिन्हें उन्होंने इस्राएल के प्रत्येक कबीले और कुटुंब को सौंप दिया। उनका कार्य भविष्यवाणी करना था, और उनमें से कुछ ने अन्य लोगों को दिखाने के लिए उन्हें यहोवा के निर्देश लिखकर दिए। यहोवा ने इन लोगों को भविष्यवाणी करने, भविष्य के कार्य या उस कार्य के बारे में पूर्वकथन कहने के लिए खड़ा किया था जो उस युग के दौरान अभी किया जाना था, ताकि लोग यहोवा की चमत्कारिकता एवं बुद्धि को देख सकें। भविष्यवाणी की ये पुस्तकें बाइबल की अन्य पुस्तकों से काफी अलग थीं; वे उन लोगों द्वारा बोले या लिखे गए वचन थे, जिन्हें भविष्यवाणी की आत्मा दी गई थी—उनके द्वारा, जिन्होंने यहोवा के दर्शनों या आवाज़ को प्राप्त किया था। भविष्यवाणी की पुस्तकों के अलावा, पुराने विधान में हर चीज़ उन अभिलेखों से बनी है, जिन्हें लोगों द्वारा तब तैयार किया गया था, जब यहोवा ने अपना काम समाप्त कर लिया था। ये पुस्तकें यहोवा द्वारा खड़े किए गए नबियों द्वारा की गई भविष्यवाणियों का स्थान नहीं ले सकतीं, बिलकुल वैसे ही जैसे उत्पत्ति और निर्गमन की तुलना यशायाह की पुस्तक और दानिय्येल की पुस्तक से नहीं की जा सकती। भविष्यवाणियाँ कार्य पूरा होने से पहले की गई थीं; जबकि अन्य पुस्तकें कार्य पूरा होने के बाद लिखी गई थीं, जिसे करने में वे लोग समर्थ थे। ... इस तरह, बाइबल के पुराने विधान में जो कुछ भी दर्ज है, वह केवल उस समय इस्राएल में किया गया परमेश्वर का कार्य है। नबियों द्वारा, यशायाह, दानिय्येल, यिर्मयाह और यहेज़केल द्वारा बोले गए वचन ... उनके वचन पृथ्वी पर उसके अन्य कार्य के बारे में पूर्वकथन करते हैं, वे यहोवा स्वयं परमेश्वर के कार्य का पूर्वकथन करते हैं। यह सब-कुछ परमेश्वर से आया, यह पवित्र आत्मा का कार्य था, और नबियों की इन पुस्तकों के अलावा, बाकी हर चीज़ उस समय यहोवा के कार्य के बारे में लोगों के अनुभवों का अभिलेख है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1)

आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। और इस प्रकार, नए नियम में पौलुस के धर्मपत्र वे धर्मपत्र हैं, जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था, और वे पवित्र आत्मा की अभिप्रेरणाएँ नहीं हैं, न ही वे पवित्र आत्मा के प्रत्यक्ष कथन हैं। वे महज प्रेरणा, सुविधा और प्रोत्साहन के वचन हैं, जिन्हें उसने अपने कार्य के दौरान कलीसियाओं के लिए लिखा था। इस प्रकार वे पौलुस के उस समय के अधिकांश कार्य के अभिलेख भी हैं। वे प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाई-बहनों के लिए लिखे गए थे, ताकि उस समय कलीसियाओं के भाई-बहन उसकी सलाह मानें और प्रभु यीशु द्वारा बताए गए पश्चात्ताप के मार्ग पर बने रहें। किसी भी तरह से पौलुस ने यह नहीं कहा कि, चाहे वे उस समय की कलीसियाएँ हों या भविष्य की, सभी को उसके द्वारा लिखी गई चीज़ों को खाना और पीना चाहिए, न ही उसने कहा कि उसके सभी वचन परमेश्वर से आए हैं। उस समय की कलीसियाओं की परिस्थितियों के अनुसार, उसने बस भाइयों एवं बहनों से संवाद किया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था, और उन्हें उनके विश्वास में प्रेरित किया था, और उसने बस लोगों में प्रचार किया था या उन्हें स्मरण दिलाया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था। उसके वचन उसके स्वयं के दायित्व पर आधारित थे, और उसने इन वचनों के जरिये लोगों को सहारा दिया था। उसने उस समय की कलीसियाओं के प्रेरित का कार्य किया था, वह एक कार्यकर्ता था जिसे प्रभु यीशु द्वारा इस्तेमाल किया गया था, और इस प्रकार कलीसियाओं की ज़िम्मेदारी लेने और कलीसियाओं का कार्य करने के लिए उसे भाइयों एवं बहनों की स्थितियों के बारे में जानना था—और इसी कारण उसने प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाइयों एवं बहनों के लिए धर्मपत्र लिखे थे। यह सही है कि जो कुछ भी उसने कहा, वह लोगों के लिए शिक्षाप्रद और सकारात्मक था, किंतु वह पवित्र आत्मा के कथनों का प्रतिनिधित्व नहीं करता था, और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता था। यह एक बेहद गलत समझ और एक ज़बरदस्त ईश-निंदा है कि लोग एक मनुष्य के अनुभवों के अभिलेखों और धर्मपत्रों को पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं को बोले गए वचनों के रूप में लें! यह पौलुस द्वारा कलीसियाओं के लिए लिखे गए धर्मपत्रों के संबंध में विशेष रूप से सत्य है, क्योंकि उसके धर्मपत्र उस समय प्रत्येक कलीसिया की परिस्थितियों और उनकी स्थिति के आधार पर भाइयों एवं बहनों के लिए लिखे गए थे, और वे प्रभु में विश्वास करने वाले भाइयों एवं बहनों को प्रेरित करने के लिए थे, ताकि वे प्रभु यीशु का अनुग्रह प्राप्त कर सकें। उसके धर्मपत्र उस समय के भाइयों एवं बहनों को जाग्रत करने के लिए थे। ऐसा कहा जा सकता है कि यह उसका स्वयं का दायित्व था, और यह वह दायित्व भी था, जो उसे पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया था; आखिरकार, वह एक प्रेरित था जिसने उस समय की कलीसियाओं की अगुआई की थी, जिसने कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे और उन्हें प्रोत्साहित किया था—यह उसकी जिम्मेदारी थी। उसकी पहचान मात्र काम करने वाले एक प्रेरित की थी, और वह मात्र एक प्रेरित था जिसे परमेश्वर द्वारा भेजा गया था; वह नबी नहीं था, और न ही भविष्यवक्ता था। उसके लिए उसका कार्य और भाइयों एवं बहनों का जीवन अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस प्रकार, वह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था। उसके वचन पवित्र आत्मा के वचन नहीं थे, और उन्हें परमेश्वर के वचन तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पौलुस परमेश्वर के एक प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं था, और वह परमेश्वर का देहधारण तो निश्चित रूप से नहीं था। उसकी पहचान यीशु के समान नहीं थी। यीशु के वचन पवित्र आत्मा के वचन थे, वे परमेश्वर के वचन थे, क्योंकि उसकी पहचान मसीह—परमेश्वर के पुत्र की थी। पौलुस उसके बराबर कैसे हो सकता है? यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है? तो, तुम क्या कहते हो—क्या वे धर्मपत्र, जिन्हें उसने कलीसियाओं के लिए लिखा था, उसके स्वयं के विचारों से दूषित नहीं हो सकते? वे मानवीय विचारों द्वारा दूषित कैसे नहीं हो सकते? उसने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और अपने ज्ञान के आधार पर कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे। उदाहरण के लिए, पौलुस ने गलातियाई कलीसियाओं को एक धर्मपत्र लिखा, जिसमें एक निश्चित राय थी, और पतरस ने दूसरा धर्मपत्र लिखा, जिसमें दूसरा विचार था। उनमें से कौन-सा पवित्र आत्मा से आया था? कोई निश्चित तौर पर नहीं कह सकता। इस प्रकार, सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि उन दोनों ने कलीसियाओं के लिए दायित्व वहन किया था, फिर भी उनके पत्र उनके आध्यात्मिक कद का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे भाइयों एवं बहनों के लिए उनके पोषण एवं समर्थन का, और कलीसियाओं के प्रति उनके दायित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वे केवल मनुष्य के कार्य का प्रतिनिधित्व करते हैं; वे पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नहीं थे। यदि तुम कहते हो कि उसके धर्मपत्र पवित्र आत्मा के वचन हैं, तो तुम बेतुके हो, और तुम ईश-निंदा कर रहे हो! पौलुस के धर्मपत्र और नए नियम के अन्य धर्मपत्र बहुत हाल की आध्यात्मिक हस्तियों के संस्मरणों के बराबर हैं : वे वाचमैन नी की पुस्तकों या लॉरेंस आदि के अनुभवों के समतुल्य हैं। सीधी-सी बात है कि हाल ही की आध्यात्मिक हस्तियों की पुस्तकों को नए नियम में संकलित नहीं किया गया है, फिर भी इन लोगों का सार एकसमान था : वे पवित्र आत्मा द्वारा एक निश्चित अवधि के दौरान इस्तेमाल किए गए लोग थे, और वे सीधे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते थे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)

अगला: तुम यह गवाही देते हो कि प्रभु यीशु पहले से ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में वापस आ चुका है, कि वह पूरी सत्य को अभिव्यक्त करता है जिससे कि लोग शुद्धिकरण प्राप्त कर सकें और बचाए जा सकें, और वर्तमान में वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहा है, लेकिन हम इसे स्वीकार करने की हिम्मत नहीं करते। यह इसलिए है क्योंकि धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों का हमें बहुधा यह निर्देश है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में अभिलेखित हैं और बाइबल के बाहर परमेश्वर का कोई और वचन या कार्य नहीं हो सकता है, और बाइबल के विरुद्ध या उससे परे जाने वाली हर बात विधर्म है। हम इस समस्या को समझ नहीं सकते हैं, तो तुम कृपया इसे हमें समझा दो।

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हम सोचते हैं परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर पर हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित होना चाहिए। क्या ये गलत है?

उत्तर: धार्मिक समूह में कई विश्वासियों का मानना है कि: "परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन...

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