अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लें तो क्या गारंटी है कि हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा जाएंगे?

15 मार्च, 2021

उत्तर: सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इस सवाल का जवाब बहुत साफ-साफ दिया है। आओ उन्होंने जो कहा है पहले उस पर नज़र डाल लें।

"यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए, जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का पालन करता हो और सत्य की खोज के लिए लालायित हो; सिर्फ़ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

"मैं उन सबको, जो मेरा अनुसरण करते हैं, यह तथ्य ज्ञात करवाऊँगा : जो लोग पूरी तरह से मेरे वचनों को स्वीकार नहीं कर सकते, जो मेरे वचनों का अभ्यास नहीं कर सकते, जिन्हें मेरे वचनों में कोई लक्ष्य नहीं मिल पाता, और जो मेरे वचनों के कारण उद्धार प्राप्त नहीं कर पाते, वे लोग हैं जो मेरे वचनों के कारण निंदित हुए हैं और इतना ही नहीं, जिन्होंने मेरे उद्धार को खो दिया है, और मेरी लाठी उन पर से कभी नहीं हटेगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए)

"अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है, फिर भी तुम सत्य को या परमेश्वर की इच्छा को नहीं खोजते, न ही उस मार्ग से प्यार करते हो, जो परमेश्वर के निकट लाता है, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो न्याय से बचने की कोशिश कर रहा है, और यह कि तुम एक कठपुतली और ग़द्दार हो, जो महान श्वेत सिंहासन से भागता है। परमेश्वर ऐसे किसी भी विद्रोही को नहीं छोड़ेगा, जो उसकी आँखों के नीचे से बचकर भागता है। ऐसे मनुष्य और भी अधिक कठोर दंड पाएँगे। जो लोग न्याय किए जाने के लिए परमेश्वर के सम्मुख आते हैं, और इसके अलावा शुद्ध किए जा चुके हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के राज्य में रहेंगे। बेशक, यह कुछ ऐसा है, जो भविष्य से संबंधित है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से पता चलता है कि परमेश्वर लोगों को सिद्धांत के आधार पर बचाते हैं। ऐसा नहीं है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने वाला हर व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा। जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं, उनकी आखिरी मंज़िल अच्छी होगी या नहीं, ये इस बात पर निर्भर है कि क्या वो सच्चाई को प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं और क्या वो परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करते हैं और उसका पालन करते हैं, उसके परिणामस्वरूप, सत्य को प्राप्त करते हैं, दूषित शैतानी स्वभाव से खुद को मुक्त करते हैं और निर्मल बनते हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय और ताड़ना दूषित इंसान के लिये पूरी तरह से बचाए जाने का आखिरी मौका है। जो लोग सत्य से प्यार करते हैं, परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शुद्धिकरण को मानते हैं, सत्य को प्राप्त करते हैं और निर्मल बन जाते हैं, सिर्फ वे ही उनके राज्य में लाए जाएंगे। जो लोग सत्य को प्राप्त नहीं करते या परमेश्वर के न्याय और ताडना को नहीं मानते, परमेश्वर उन्हें त्याग देंगे। और जो लोग हर तरह के अपराध करते हैं उन्हें सज़ा दी जाएगी। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग दर्जा देगा। क्या लोग परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य को स्वीकार कर पाते हैं, सत्य को प्राप्त कर पाते हैं और निर्मल हो पाते हैं इसका संबंध सीधे इस बात से है कि क्या उन्हें उद्धार और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश मिल पाता है। क्या लोग अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर पाते हैं इसका सीधा संबंध नियति, मंज़िल और अंतिम परिणाम से है। आइये, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एक और अवतरण पढ़ें। "क्या अब तुम समझ गए हो कि न्याय क्या है और सत्य क्या है? अगर तुम समझ गए हो, तो मैं तुम्हें न्याय किए जाने के लिए आज्ञाकारी ढंग से समर्पित होने की नसीहत देता हूँ, वरना तुम्हें कभी भी परमेश्वर द्वारा सराहे जाने या उसके द्वारा अपने राज्य में ले जाए जाने का अवसर नहीं मिलेगा। जो केवल न्याय को स्वीकार करते हैं लेकिन कभी शुद्ध नहीं किए जा सकते, अर्थात् जो न्याय के कार्य के बीच से ही भाग जाते हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर की घृणा के शिकार हो जाएँगे और नकार दिए जाएँगे। फरीसियों के पापों की तुलना में उनके पाप संख्या में बहुत अधिक और ज्यादा संगीन हैं, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया है और वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं। ऐसे लोग, जो सेवा करने के भी योग्य नहीं हैं, अधिक कठोर दंड प्राप्त करेंगे, जो चिरस्थायी भी होगा। परमेश्वर ऐसे किसी भी गद्दार को नहीं छोड़ेगा, जिसने एक बार तो वचनों से वफादारी दिखाई, मगर फिर परमेश्वर को धोखा दे दिया। ऐसे लोग आत्मा, प्राण और शरीर के दंड के माध्यम से प्रतिफल प्राप्त करेंगे। क्या यह हूबहू परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का प्रकटन नहीं है? क्या मनुष्य का न्याय करने और उसे उजागर करने में परमेश्वर का यह उद्देश्य नहीं है? परमेश्वर उन सभी को, जो न्याय के समय के दौरान सभी प्रकार के दुष्ट कर्म करते हैं, दुष्टात्माओं से आक्रांत स्थान पर भेजता है, और उन दुष्टात्माओं को इच्छानुसार उनके दैहिक शरीर नष्ट करने देता है, और उन लोगों के शरीरों से लाश की दुर्गंध निकलती है। ऐसा उनका उचित प्रतिशोध है। परमेश्वर उन निष्ठाहीन झूठे विश्वासियों, झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकर्ताओं का हर पाप उनकी अभिलेख-पुस्तकों में लिखता है; और फिर जब सही समय आता है, वह उन्हें गंदी आत्माओं के बीच में फेंक देता है, और उन अशुद्ध आत्माओं को इच्छानुसार उनके संपूर्ण शरीरों को दूषित करने देता है, ताकि वे कभी भी पुन: देहधारण न कर सकें और दोबारा कभी भी रोशनी न देख सकें। वे पाखंडी, जो किसी समय सेवा करते हैं, किंतु अंत तक वफ़ादार बने रहने में असमर्थ रहते हैं, परमेश्वर द्वारा दुष्टों में गिने जाते हैं, ताकि वे दुष्टों की सलाह पर चलें, और उनकी उपद्रवी भीड़ का हिस्सा बन जाएँ; अंत में परमेश्वर उन्हें जड़ से मिटा देगा। परमेश्वर उन लोगों को अलग फेंक देता है और उन पर कोई ध्यान नहीं देता, जो कभी भी मसीह के प्रति वफादार नहीं रहे या जिन्होंने अपने सामर्थ्य का कुछ भी योगदान नहीं किया, और युग बदलने पर वह उन सभी को जड़ से मिटा देगा। वे अब और पृथ्वी पर मौजूद नहीं रहेंगे, परमेश्वर के राज्य का मार्ग तो बिलकुल भी प्राप्त नहीं करेंगे। जो कभी भी परमेश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहे, किंतु उसके साथ बेमन से व्यवहार करने के लिए परिस्थिति द्वारा मजबूर किए जाते हैं, वे परमेश्वर के लोगों की सेवा करने वालों में गिने जाते हैं। ऐसे लोगों की एक छोटी-सी संख्या ही जीवित बचेगी, जबकि बड़ी संख्या उन लोगों के साथ नष्ट हो जाएगी, जो सेवा करने के भी योग्य नहीं हैं। अंतत: परमेश्वर उन सभी को, जिनका मन परमेश्वर के समान है, अपने लोगों और पुत्रों को, और परमेश्वर द्वारा याजक बनाए जाने के लिए पूर्वनियत लोगों को अपने राज्य में ले आएगा। वे परमेश्वर के कार्य के परिणाम होंगे। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है, जो परमेश्वर द्वारा निर्धारित किसी भी श्रेणी में नहीं आ सकते, वे अविश्वासियों में गिने जाएँगे—तुम लोग निश्चित रूप से कल्पना कर सकते हो कि उनका क्या परिणाम होगा। मैं तुम सभी लोगों से पहले ही वह कह चुका हूँ, जो मुझे कहना चाहिए; जो मार्ग तुम लोग चुनते हो, वह केवल तुम्हारी पसंद है। तुम लोगों को जो समझना चाहिए, वह यह है : परमेश्वर का कार्य ऐसे किसी शख्स का इंतज़ार नहीं करता, जो उसके साथ कदमताल नहीं कर सकता, और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव किसी भी मनुष्य के प्रति कोई दया नहीं दिखाता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

"मर्मभेदी यादें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: कि प्रभु यीशु ने हमारे लिए सलीब पर जान दी, उन्होंने हमें पापों से छुड़ाया, और हमारे पापों को क्षमा किया, भले ही हमारा पाप करना जारी है और हमारा अभी शुद्ध होना बाकी है, प्रभु ने हमारे सभी पापों को क्षमा कर हमारी आस्था के ज़रिये हमें न्यायपूर्ण बना दिया है। मुझे लगा कि प्रभु के लिये सबकुछ त्याग करने, यातना सहन करने और कीमत अदा करने की हमारी इच्छा, हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश दिलाएगी। मुझे लगा, हमारे लिये यही प्रभु की प्रतिज्ञा है। लेकिन कुछ लोगो ने इस पर सवाल उठाया है। उनके अनुसार, चाहे हमने प्रभु के लिए श्रम किया, हम अभी भी पाप करके उन्हें स्वीकार करते हैं, इसलिए हम अभी तक अशुद्ध हैं। उनके अनुसार प्रभु पवित्र हैं, इसलिए अपवित्र लोग उनसे नहीं मिल सकते। मेरा सवाल है: हम लोगों ने प्रभु के लिए अपना सब-कुछ बलिदान कर दिया, क्या हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाया जा सकता है? दरअसल हमें इस सवाल का उत्तर नहीं पता, इसलिए हम चाहते हैं कि आप हमें इस बारे में बताएँ।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

आप कहते हैं कि हमें अंतिम दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि केवल तभी हमारे भ्रष्ट शैतानी स्वभावों को शुद्ध और परिवर्तित किया जाएगा, और उसके बाद ही हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे। इसलिए, जैसा कि परमेश्वर द्वारा अपेक्षित है, हम विनम्र और सहनशील हैं, हम अपने शत्रुओं से प्रेम करते हैं, हम अपने क्रूस को सहन करते हैं, हम अपने शरीर को अनुशासित करते हैं, हम सांसारिक चीज़ों को त्यागते हैं, हम काम करते हैं और प्रभु के लिए प्रचार करते हैं, इत्यादि। क्या ये सभी वो परिवर्तन नहीं जो हमारे अंदर हुए हैं? क्या आप कह रहे हैं कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए यह फिर भी पर्याप्त नहीं है? मेरा मानना है कि जब तक हम इस तरह से प्रयास करते रहेंगे, हम पवित्र होने लगेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे...

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें