4. बाइबल में जो लिखित है उसके अनुसार, प्रभु यीशु देह बना हुआ मसीह है, वह परमेश्वर का पुत्र है। फिर भी आप गवाही देते हैं कि देहधारी मसीह परमेश्वर का प्रकटन है, वह स्वयं परमेश्वर ही है। यदि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर है, तो प्रार्थना करते समय प्रभु यीशु अपने पिता से प्रार्थना कैसे कर सकता है? देहधारी मसीह परमेश्वर का पुत्र है या स्वयं परमेश्वर ही है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"यीशु ने उससे कहा, 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते; और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।' फिलिप्पुस ने उससे कहा, 'हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।' यीशु ने उससे कहा, 'हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्‍वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्‍वास करो'" (यूहन्ना 14:6-11)

"मैं और पिता एक हैं" (यूहन्ना 10:30)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसका वाह्य आवरण एक सृजित प्राणी का था। भले ही उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी प्रकटन अभी भी एक सामान्य व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह "मनुष्य का पुत्र" बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी चोले के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसे तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है, जो यीशु ने तुम लोगों को याद करने के लिए सिखाई थी? "स्वर्ग में हमारे पिता..." उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और चूँकि वह भी उसे पिता कहता था, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया, जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था। चूंकि तुम लोगों ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया था, यीशु ने स्वयं को तुम सबके साथ समान स्तर पर देखा और पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा चुने गए व्यक्ति (अर्थात परमेश्वर के पुत्र) के रूप में देखा। यदि तुम लोग परमेश्वर को पिता कहते हो, तो क्या यह इसलिए नहीं कि तुम सब सृजित प्राणी हो? पृथ्वी पर यीशु का अधिकार चाहे जितना अधिक हो, क्रूस पर चढ़ने से पहले, वह मात्र मनुष्य का पुत्र था, पवित्र आत्मा (यानी परमेश्वर) द्वारा नियंत्रित था और पृथ्वी के सृजित प्राणियों में से एक था क्योंकि उसे अभी भी अपना कार्य पूरा करना था। इसलिए, स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना पूरी तरह से उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता थी। परमेश्वर (अर्थात स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग था, न कि वह एक अलग व्यक्ति था। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है! क्रूस पर चढ़ने से पहले, यीशु मनुष्य का पुत्र था, जो देह की सीमाओं से बंधा था और उसमें पूरी तरह आत्मा का अधिकार नहीं था। यही कारण है कि वह केवल एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से परमपिता परमेश्वर की इच्छा तलाश सकता था। यह वैसा ही है जैसा गतसमनी में उसने तीन बार प्रार्थना की थी: "जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।" क्रूस पर रखे जाने से पहले, वह बस यहूदियों का राजा था; वह मसीह मनुष्य का पुत्र था और महिमा का शरीर नहीं था। यही कारण है कि एक सृजित प्राणी के दृष्टिकोण से, उसने परमेश्वर को पिता बुलाया। अब तुम यह नहीं कह सकते कि सभी जो परमेश्वर को पिता बुलाते हैं, पुत्र हैं। यदि ऐसा होता, तो क्या यीशु द्वारा प्रभु की प्रार्थना सिखाए जाने के बाद, क्या तुम सभी पुत्र नहीं बन गए होते? यदि तुम लोग अभी भी आश्वस्त नहीं हो तो मुझे बताओ, वह कौन है जिसे तुम सब पिता कहते हो? यदि तुम यीशु की बात कर रहे हो तो तुम सबके लिए यीशु का पिता कौन है? एक बार जब यीशु चला गया तो पिता और पुत्र का यह विचार नहीं रहा। यह विचार केवल उन वर्षों के लिए उपयुक्त था जब यीशु देह में था; अन्य सभी परिस्थितियों में, जब तुम परमेश्वर को पिता कहते हो, तो यह वह रिश्ता है, जो सृष्टि के परमेश्वर और सृजित प्राणी के बीच होता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

अन्य लोग हैं, जो कहते हैं, "क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?" यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को गवाही देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, "मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है," क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। युग में परिवर्तन, कार्य की आवश्यकताओं और उसकी प्रबंधन योजना के विभिन्न चरणों के कारण, जिस नाम से मनुष्य उसे बुलाता है, वह भी अलग हो जाता है। जब वह कार्य के पहले चरण को क्रियान्वित करने आया था, तो उसे केवल यहोवा कहा जा सकता था, जो इस्राएलियों का चरवाहा है। दूसरे चरण में, देहधारी परमेश्वर को केवल प्रभु और मसीह कहा जा सकता था। परंतु उस समय, स्वर्ग में आत्मा ने केवल यह बताया था कि वह परमेश्वर का प्यारा पुत्र है और उसके परमेश्वर का एकमात्र पुत्र होने का कोई उल्लेख नहीं किया था। ऐसा हुआ ही नहीं था। परमेश्वर की एकमात्र संतान कैसे हो सकती है? तब क्या परमेश्वर मनुष्य नहीं बन जाता? क्योंकि वह देहधारी था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया और इससे पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच जो विभाजन है, उसके कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता की देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है, जो उसने कहा: “मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देहधारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ।” इस कारण से, वह केवल परमपिता परमेश्वर से देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था और यह वह था, जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं था क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता था। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता था, वह अभी भी परमेश्वर था क्योंकि वह आत्मा का देहधारण था और उसका सार अब भी आत्मा का था।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है और मसीह परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की गई देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है; वह आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियां बनाए रखती है, जबकि उसकी दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य अभ्यास में लाती है। चाहे यह उसकी मानवता हो या दिव्यता, दोनों स्वर्गिक परमपिता की इच्छा को समर्पित हैं। मसीह का सार पवित्र आत्मा, यानी दिव्यता है। इसलिए, उसका सार स्वयं परमेश्वर का है; यह सार उसके स्वयं के कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं करेगा और वह संभवतः कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता, जो उसके स्वयं के कार्य को नष्ट करता हो, न ही वह ऐसे वचन कहेगा, जो उसकी स्वयं की इच्छा के विरुद्ध जाते हों। इसलिए, देहधारी परमेश्वर कभी भी कोई ऐसा कार्य बिल्कुल नहीं करेगा, जो उसके अपने प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करता हो। यह वह बात है, जिसे सभी मनुष्यों को समझना चाहिए। पवित्र आत्मा के कार्य का सार मनुष्य को बचाना और परमेश्वर के अपने प्रबंधन के वास्ते है। इसी प्रकार, मसीह का कार्य भी मनुष्य को बचाना है तथा परमेश्वर की इच्छा के वास्ते है। यह देखते हुए कि परमेश्वर देह बन जाता है, वह अपने देह में अपने सार का, इस प्रकार अहसास करता है कि उसकी देह उसके कार्य का भार उठाने के लिए पर्याप्त है। इसलिए देहधारण के समय परमेश्वर के आत्मा का संपूर्ण कार्य मसीह के कार्य द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है और देहधारण के पूरे समय के दौरान संपूर्ण कार्य के केंद्र में मसीह का कार्य होता है। इसे किसी भी अन्य युग के कार्य के साथ मिलाया नहीं जा सकता। और चूँकि परमेश्वर देहधारी हो जाता है, वह अपनी देह की पहचान में कार्य करता है; चूँकि वह देह में आता है, वह अपनी देह में वह कार्य पूरा करता है, जो उसे करना चाहिए। चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या चाहे वह मसीह हो, दोनों स्वयं परमेश्वर हैं और वह उस कार्य को करता है, जो उसे करना चाहिए और उस सेवकाई को करता है, जो उसे करनी चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है

मनुष्य के देहधारी पुत्र ने अपनी मानवता के माध्यम से परमेश्वर की दिव्यता व्यक्त की और परमेश्वर की इच्छा को मानवजाति तक पहुँचाया। और परमेश्वर की इच्छा और स्वभाव की अभिव्यक्ति के माध्यम से उसने लोगों के सामने उस परमेश्वर को भी प्रकट किया, जिसे देखा और छुआ नहीं जा सकता और जो आध्यात्मिक क्षेत्र में रहता है। लोगों ने स्वयं परमेश्वर को मूर्त रूप में, माँस और रक्त से निर्मित देखा। तो मनुष्य के देहधारी पुत्र ने स्वयं परमेश्वर की पहचान, हैसियत, छवि, स्वभाव और उसके स्वरूप जैसी चीज़ों को ठोस और मानवीय बना दिया। भले ही परमेश्वर की छवि के संबंध में मनुष्य के पुत्र के बाहरी रूप-रंग की कुछ सीमाएँ थीं, किंतु उसका सार और स्वरूप स्वयं परमेश्वर की पहचान और हैसियत दर्शाने में पूर्णतः समर्थ थे—केवल अभिव्यक्ति के रूप में कुछ भिन्नताएँ थीं। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मनुष्य के पुत्र ने अपनी मानवता और दिव्यता, दोनों रूपों में स्वयं परमेश्वर की पहचान और हैसियत दर्शाई। हालाँकि इस दौरान परमेश्वर ने देह के माध्यम से कार्य किया, देह के परिप्रेक्ष्य से बात की और मानवजाति के सामने मनुष्य के पुत्र की पहचान और हैसियत के साथ खड़ा हुआ, और इसने लोगों को मानवजाति के बीच परमेश्वर के सच्चे वचनों और कार्य को देखने-सुनने और अनुभव करने का अवसर दिया। इसने लोगों को विनम्रता के बीच उसकी दिव्यता और महानता के संबंध में अंतर्दृष्टि और साथ ही परमेश्वर की प्रामाणिकता और वास्तविकता की एक प्रारंभिक समझ और परिभाषा भी प्रदान की। भले ही प्रभु यीशु द्वारा पूर्ण किया गया कार्य, कार्य करने के उसके तरीके और उसके बोलने का परिप्रेक्ष्य आध्यात्मिक क्षेत्र में परमेश्वर के वास्तविक व्यक्तित्व से भिन्न थे, फिर भी उसकी हर चीज़ वास्तव में स्वयं परमेश्वर को दर्शाती थी, जिसे मानवजाति ने पहले कभी नहीं देखा था—इससे इनकार नहीं किया जा सकता! अर्थात्, परमेश्वर चाहे किसी भी रूप में प्रकट हो, वह चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में बात करे, या किसी भी छवि में वह मानवजाति के सामने आए, वह अपने सिवाय किसी को नहीं दर्शाता। वह न तो किसी मनुष्य को दर्शा सकता है, न ही भ्रष्ट मानवजाति को दर्शा सकता है। परमेश्वर स्वयं परमेश्वर है, और इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

मनुष्य ने जो सबसे पहले देखा वह यह था कि पवित्र आत्मा यीशु पर एक कबूतर की तरह उतर रहा है; यह यीशु के लिए विशेष आत्मा नहीं था, बल्कि पवित्र आत्मा था। तो क्या यीशु का आत्मा पवित्र आत्मा से अलग हो सकता है? अगर यीशु यीशु है, पुत्र है, और पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है, तो वे एक कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा है तो कार्य क्रियान्वित नहीं किया जा सकता। यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्वसमावेशी आत्मा कहा जाता है। परमेश्वर का आत्मा बहुत से कार्य क्रियान्वित कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को छुटकारा दिला सकता है और इसके अलावा वह सारी मानवजाति को जीत और नष्ट कर सकता है। यह सारा कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा क्रियान्वित किया गया है और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी अन्य व्यक्तित्व द्वारा नहीं किया जा सकता है। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और बहुलता के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह कार्य स्वयं परमेश्वर के आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का कार्य है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता। स्वर्ग में वह आत्मा है, लेकिन स्वयं परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच वह देह है, पर स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे सैकड़ों-हज़ारों नामों से बुलाया जा सकता है, तो भी वह स्वयं है, आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष कार्य था और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भूभागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग में और पृथ्वी पर केवल एक ही परमेश्वर है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

पिछला: 3. मैंने कई वर्षों से प्रभु यीशु पर विश्वास किया है, और हालाँकि मुझे पता है कि प्रभु यीशु देह बना परमेश्वर है, मैं देहधारण के सत्य को पूरी तरह से नहीं समझता हूँ। जब प्रभु लौटता है, तब यदि वह वास्तव में प्रभु यीशु के रूप में प्रकट होता है, मनुष्य के पुत्र के रूप में कार्य करते हुए, तो हमारे लिए उसे पहचानना या उसके आने का स्वागत कर पाना असंभव होगा। मुझे लगता है कि देहधारण एक रहस्य है, और केवल कुछ ही लोग देहधारण की सच्चाई को समझते हैं। कृपया मेरे साथ सहभागिता करें कि वस्तुतः देहधारण क्या है।

अगला: 5. नियम के युग का कार्य यहोवा परमेश्वर द्वारा मूसा के उपयोग के माध्यम से किया गया था। अंतिम दिनों के न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर किसी का उपयोग क्यों नहीं करता है? उसे देह क्यों बनना पड़ता है और क्यों इस कार्य को उसे स्वयं ही करना चाहिए?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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