11. क्या हमें पारंपरिक सदगुणों के अनुसार जीना चाहिए?

एडवीज, फ्रांस

जब मैं प्राइमरी स्कूल में थी, तो एक पाठ ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी—कॉन्ग रॉन्ग के नाशपाती दे देने की कहानी। कॉन्ग रॉन्ग ने अपने बड़े और छोटे भाइयों को सबसे बड़ी नाशपाती दी, जबकि खुद सबसे छोटी ली, जिससे उसे उसके पिता की प्रशंसा मिली। उसकी कहानी “थ्री कैरेक्टर क्लासिक” में दर्ज की गई थी। उस समय, मैं उसके नैतिक आचरण की बड़ी प्रशंसा करती थी और मैं भी ऐसी ही बच्ची बनना चाहती थी। इसलिए बचपन से ही, अगर मेरे पास कुछ विशेष रूप से स्वादिष्ट या मजेदार होता, तो भले ही मैं उसे अपने लिए रखना चाहती थी, पर मैं कॉन्ग रॉन्ग की नकल करती, उसे अपनी बड़ी और छोटी बहनों को दे देती, उसके लिए कभी नहीं लड़ती थी। मेरी बहनें मुझे इसके लिए बहुत पसंद करती थीं, और बड़े मेरी और भी ज्यादा प्रशंसा करते थे, दूसरे बच्चों को मुझसे सीखने को कहते थे। इससे मुझे लगने लगा कि लोगों में ऐसी ही मानवीय गुणवत्ता होनी चाहिए। परमेश्वर में आस्था रखने के बाद, अपने भाई-बहनों के साथ मैं इसी हिसाब से चलती थी। कर्तव्य और जीवन दोनों में, मैं कभी चीजों के लिए नहीं लड़ी। हर चीज में मैंने हमेशा दूसरों को सबसे पहले रखा। इसलिए भाई-बहनों में मेरा स्वागत होता था, हर कोई कहता कि मैं सभी के साथ घुल-मिल जाती हूँ, स्वार्थी नहीं हूँ और दूसरों का ध्यान रखती हूँ। ऐसे व्यवहार के लिए मुझे खुद पर बहुत गर्व था और मैं हमेशा सोचती थी कि मेरी मानवता अच्छी है। बाद में, कुछ तथ्यों से खुलासा होने पर, मुझे आखिर चीजों पर अपने भ्रांतिपूर्ण विचार की कुछ समझ मिली।

जनवरी 2022 में, सुसमाचार कार्य की जरूरतों के चलते, कई नए सुसमाचार कर्मियों और सिंचन कर्मियों की तलाश थी, तो मुझे लगातार विकास के लिए उपयुक्त सिंचन कर्मियों की खोज करके उन्हें प्रशिक्षित करना था। कभी-कभी जब मुझे ऐसे भाई-बहन मिलते जो सिंचन के लिए ठीक होते तो सुसमाचार कर्मी मुझसे पहले ही उनके पास पहुँच जाते थे। इसने मुझे बहुत दुख होता, पर यह कहने में बहुत शर्मिंदगी होती, क्योंकि लगता था हर कोई सोचेगा कि मैं स्वार्थी और प्रतिस्पर्धी हो रही हूँ। तो मैंने एक तरीका निकाला। मैंने जान-बूझकर सिंचन उपयाजक को संदेश भेजा, जिसमें कहा कि जो लोग सिंचन के लिए ठीक हैं, उन्हें सुसमाचार कर्मी ले जा रहे हैं। इसने सिंचन उपयाजक को सुसमाचार कर्मियों के प्रति पूर्वाग्रह से भर दिया और उनके बीच मिल-जुलकर सहयोग करना मुश्किल हो गया। इसका पता चलने पर उच्च-स्तरीय अगुआ ने सख्ती से मेरी काट-छाँट की, और कलीसिया के काम में मतभेद पैदा करने और इसे बाधित करने वाली बातें कहने को लेकर मुझे उजागर किया। काटे-छाँटे जाने से मुझे दुख हुआ पर मैंने न आत्मचिंतन किया, और न ही खुद को पहचाना।

बाद में, मैंने सुना कि लीसे नाम की एक बहन में अच्छी काबिलियत और समझ थी, तो वह सिंचन कार्य के लिए बहुत सही थी। मैं नए सदस्यों के सिंचन के लिए इस बहन के तबादले की बात करने के लिए कलीसिया अगुआ के पास गई। मगर चूँकि सुसमाचार प्रचार के लिए तुरंत लोगों की जरूरत पड़ गई, इसलिए कलीसिया अगुआ ने लीसे को वह कर्तव्य निभाने भेज दिया। यह खबर सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ, मैं इस बारे में कलीसिया अगुआ से बात करना चाहती थी, पर सोचा कि ऐसा करने पर मेरे भाई-बहन यही सोचेंगे कि मैं स्वार्थी हूँ और किसी बात के लिए लड़ना पसंद करती हूँ। मैंने खुद से कहा, “नहीं, मैं यह नहीं करूंगी। इस तरह मैं उदार और अच्छी प्रकृति वाली दिखूँगी।” इसलिए मैंने अपनी नाराजगी दबा दी, पाखंड से कहा कि मैं लीसे के लिए खुश हूँ और यह कि सिंचन और सुसमाचार कार्य दोनों ही कलीसिया के काम हैं। इसके जल्द बाद, मैंने कलीसिया अगुआ को यह कहते सुना, “भाई जरोम में अच्छी काबिलियत है और उनकी समझ विशुद्ध है।” मैं चाहती थी कि यह भाई नए सदस्यों का सिंचन करे पर अचानक कलीसिया अगुआ ने कहा कि उसने उसे सुसमाचार कर्मी बनने भेज दिया था। मैं और सहन नहीं कर सकी। पिछली बार उसने लीसे को सुसमाचार प्रचार करने को कहा था। उसने जरोम को भी सुसमाचार कार्य में क्यों लगा दिया? हमें सिंचन कार्य के लिए लोगों की जरूरत थी। तो मैंने कलीसिया अगुआ को स्थिति के बारे में बताया। मेरी बात सुनकर उसने कहा, “अगर उसकी सिंचन कार्य में ज्यादा जरूरत है तो मैं जरोम को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगी।” मगर मुझे लगा, चूँकि कलीसिया अगुआ ने पहले ही उसे सुसमाचार कार्य के लिए भेज दिया था, अब अगर मैं उसे लेने पर जोर दूँगी तो शायद सुसमाचार कार्यकर्ता कहें कि मैं स्वार्थी हूँ और अच्छे लोगों को लेने पर अड़ी हूँ। इसलिए मैंने उसे सुसमाचार का प्रचार करने दिया। इससे दिखेगा कि मुझमें अच्छी मानवता है और मैं स्वार्थी नहीं हूँ, दूसरों का ध्यान रख सकती हूँ। समूह में मैंने संदेश दिया कि जरोम एक अच्छा सुसमाचार कर्मी होगा और खुशी और अभिनंदन जताने वाली इमोजी भेज दी। दरअसल वह सब दिखावा था। मेरा मूड खराब था और मैं शिकायतों से भरी थी। अगुआ ने यह कैसे सोचा कि केवल सुसमाचार कार्य के लिए अच्छे लोग चाहिए? उसने हमारी वास्तविक कठिनाइयां नहीं देखीं। जितना मैंने सोचा, उतना दुखी हुई।

कुछ दिन बाद, एक और बात हो गई—अगुआ ने हमें हाल ही में विकसित किए गए कर्मियों पर रिपोर्ट बनाने को कहा। मैंने देखा कि हम जितने सिंचन कर्मियों को विकसित कर रहे थे उससे ज्यादा लोगों को सुसमाचार कर्मी विकसित कर रहे थे, और मैं फिर इसे और सहन नहीं कर पाई। मेरा मन तुरंत असंतोष और शिकायत से भर गया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वे इतने सारे लोगों को विकसित कर रहे थे। मैंने तो लीसे और जरोम को भी उनके पास जाने दिया था। यह बिल्कुल अनुचित था! अब सिंचन कर्मियों की तुलना में सुसमाचार कर्मी अधिक थे। यह सोचकर कि आगे बड़ी संख्या में नए सदस्य आएंगे, और हमारे पास कितने कम सिंचन कर्मी हैं, मुझे बहुत दबाव महसूस हुआ, साथ ही अगुआ के प्रति पूर्वाग्रह भी। लगा जैसे उसने केवल सुसमाचार कार्य के बारे में सोचा, और कोई भी सिंचन कार्य के बारे में नहीं सोच रहा था। जितना अधिक मैंने यह सोचा, उतना ही मुझे दुख हुआ, और मैं रोने लगी। सुसमाचार उपयाजक और कलीसिया अगुआ को समूह में नए सदस्यों के बारे में जोश से बोलते देख लगा कि मैं बाहरी व्यक्ति हूँ। इतनी निराशा हुई कि मैं समूह छोड़ना चाहती थी। उस दिन दोपहर में मैं इतनी दुखी थी कि कुछ खा भी न सकी। मैं अकेले बिस्तर पर लेटी सिसक रही थी; मुझे लगा कि अगर ऐसे ही चला तो मैं बीमार पड़ जाऊँगी। जब एक बहन ने मेरी हालत देखी, तो उसने कहा कि मैं सीधे नहीं बोलती और छिपाती हूँ ताकि दूसरों को लगे कि मैं उदार हूँ और वो मुझे ऊंची नजर से देखें। बहन के याद दिलाने पर मैंने आखिर आत्मचिंतन करना शुरू किया। परमेश्वर के वचन में मैंने इन अंशों को पढ़ा : “क्या तुम लोग जानते हो कि कोई फरीसी सचमुच कैसा होता है? क्या तुम लोगों के आसपास कोई फरीसी है? इन लोगों को ‘फरीसी’ क्यों कहा जाता है? फरीसियों का वर्णन कैसे किया जाता है? वे ऐसे लोग होते हैं जो पाखंडी हैं, जो पूरी तरह से नकली हैं और अपने हर कार्य में नाटक करते हैं। वे क्या नाटक करते हैं? वे अच्छे, दयालु और सकारात्मक होने का ढोंग करते हैं। क्या वे वास्तव में ऐसे होते हैं? बिल्कुल नहीं। चूँकि वे पाखंडी होते हैं, इसलिए उनमें जो कुछ भी व्यक्त और प्रकट होता है, वह झूठ होता है; वह सब ढोंग होता है—यह उनका असली चेहरा नहीं होता। उनका असली चेहरा कहाँ छिपा होता है? वह उनके दिल की गहराई में छिपा होता है, दूसरे उसे कभी नहीं देख सकते। बाहर सब नाटक होता है, सब नकली होता है, लेकिन वे केवल लोगों को मूर्ख बना सकते हैं; वे परमेश्वर को मूर्ख नहीं बना सकते। ... दूसरों को ऐसे लोग बहुत ही धर्मपरायण और विनम्र लगते हैं, लेकिन वास्तव में यह नकली होता है; वे सहिष्णु, धैर्यवान और प्रेमपूर्ण लगते हैं परंतु यह सब वास्तव में ढोंग होता है; वे कहते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, लेकिन वास्तव में यह एक नाटक होता है। दूसरे लोग ऐसे लोगों को पवित्र समझते हैं, लेकिन असल में यह झूठ होता है। सच्चा पवित्र व्यक्ति कहाँ मिल सकता है? मनुष्य की सारी पवित्रता नकली होती है, वह सब एक नाटक, एक ढोंग होता है। बाहर से वे परमेश्वर के प्रति वफादार प्रतीत होते हैं, लेकिन वे वास्तव में केवल दूसरों को दिखाने के लिए ऐसा कर रहे होते हैं। जब कोई नहीं देख रहा होता है, तो वे जरा से भी वफादार नहीं होते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह लापरवाही से किया गया होता है। सतह पर वे खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं और उन्होंने अपने परिवारों और अपनी आजीविकाओं को छोड़ दिया है। लेकिन वे गुप्त रूप से क्या कर रहे हैं? वे परमेश्वर के लिए काम करने के नाम पर कलीसिया का फायदा उठाते हुए और चुपके से चढ़ावे चुराते हुए कलीसिया में अपना उद्यम और अपना कार्य व्यापार चला रहे हैं...। ये लोग आधुनिक पाखंडी फरीसी हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक)। “अगर तुम जिसका अनुसरण करते हो वह सत्य है, और तुम जिसका अभ्यास करते हो वह सत्य है, और तुम्हारे भाषण और कार्यों का आधार परमेश्वर के वचन और सत्य-सिद्धांत हैं, और अगर दूसरे तुमसे लाभ और उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं, तो क्या यह तुम दोनों के लिए ही लाभदायक नहीं होगा? अगर परंपरागत संस्कृति की सोच से विवश होकर तुम दिखावा करते हो और दूसरे भी ऐसा ही करते हैं, और उनके चापलूसी करने पर तुम भी शिष्टतापूर्ण बातें करते हो, दोनों एक-दूसरे के लिए दिखावा करते हो, तो तुम दोनों में से कोई भी किसी काम का नहीं है। वह और तुम पूरे दिन खुशामद और शिष्टतापूर्ण बातें करते रहते हो, जिसमें सत्य का एक भी शब्द नहीं होता, और जीवन में परंपरागत संस्कृति द्वारा प्रचारित अच्छे व्यवहार को अपनाते हो। हालाँकि बाहर से इस तरह का व्यवहार परंपरागत दिखता है लेकिन यह सब पाखंड है, ऐसा व्यवहार है जो दूसरों को चकमा देता है और गुमराह करता है, ऐसा व्यवहार है जो लोगों को फँसाता और ठगता है, जिसमें ईमानदारी का एक शब्द नहीं होता। अगर तुम ऐसे इंसान से मित्रता करते हो, तो अंत में तुम्हें फँसाया और ठगा जाना तय है। उनके अच्छे व्यवहार से ऐसा कुछ नहीं मिलता, जो तुम्हें शिक्षित करता हो। तुम्हें सिखाने के लिए उसमें सिर्फ झूठ और कपट होता है : तुम उनके साथ ठगी करते हो, वे तुम्हारे साथ ठगी करते हैं। अंततः तुम अपनी निष्ठा और गरिमा का अत्यधिक क्षरण महसूस करोगे, जिसे तुम्हें सहना ही होगा। तुम्हें अभी भी दूसरों से बहस या उनसे बहुत ज्यादा अपेक्षा किए बिना खुद को विनम्रता, सुशिक्षित और समझदार तरीके से पेश करना होगा। तुम्हें अभी भी धैर्यवान और सहिष्णु होना होगा, एक दीप्तिमान मुस्कराहट के साथ बेफिक्री और व्यापक उदारता का स्वाँग करना होगा। ऐसी स्थिति प्राप्त करने के लिए कितने वर्षों तक प्रयास करना होगा? अगर तुम खुद से दूसरों के सामने ऐसे ही जीने की अपेक्षा करते हो, तो क्या तुम्हारा जीवन तुम्हें थका नहीं देगा? इतना प्रेम होने का दिखावा करना, पूरी तरह से जानते हुए कि तुममें वह नहीं है—ऐसा पाखंड कोई आसान चीज नहीं है! एक इंसान के रूप में तुम खुद को इस तरह से पेश करने की थकावट और ज्यादा दृढ़ता से महसूस करोगे; तुम अपने अगले जन्म में इंसान के रूप में पैदा होने के बजाय गाय या घोड़े, सुअर या कुत्ते के रूप में पैदा होना पसंद करोगे। तुम उन्हें बहुत झूठे और दुष्ट ही पाओगे(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (3))। परमेश्वर ने खुलासा किया कि लोग पारंपरिक सांस्कृतिक विचारों के पाखंड के अनुसार जीते हैं, जो केवल दर्द, अवसाद और खुद से अलगाव पैदा करता है। इसने मुझे पूरी तरह हिला दिया क्योंकि इन विचारों ने मेरा बहुत नुकसान किया था। खासकर जब मैंने पढ़ा : “इतना प्रेम होने का दिखावा करना, पूरी तरह से जानते हुए कि तुममें वह नहीं है—ऐसा पाखंड कोई आसान चीज नहीं है!” मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई—इन वचनों ने मेरे हालात बयान कर दिए। जाहिर है, मैं बहुत उदार नहीं थी पर उदार होने का दिखावा करती थी, और मैंने कलीसिया के काम पर ध्यान नहीं दिया, फिर भी मैं ध्यान देने का नाटक करती थी। जब लीसे और जरोम को सुसमाचार का प्रचार करने को कहा गया, तो मैं साफ तौर पर बहुत अनिच्छुक थी, पर मैं जबरन मुस्कराई, और संदेश भेजा कि मैं खुश हूँ कि वे सुसमाचार का प्रचार कर रहे थे। मैं कितनी झूठी और स्वांग रचने वाली थी! परमेश्वर के वचन से पता चलता है कि फरीसी पाखंडी थे जो हमेशा स्वांग रचते रहते थे। बाहर से उनमें अच्छी मानवता थी, वे सहिष्णु, धैर्यवान, विनम्र और पवित्र थे। पर असल में वे इन तरीकों का उपयोग लोगों को गुमराह करने, उन्हें फँसाने, और अपने रुतबे और हैसियत को बचाने के लिए किया। उनका सार सत्य और परमेश्वर से घृणा करने वाला था, यही कारण है कि प्रभु यीशु ने सांप जैसे बताकर उनकी निंदा की और उनके लिए शोक जताया। इन बातों पर सोचते हुए मुझे डर लगने लगा। मेरे झूठे दिखावे बिल्कुल फरीसियों जैसे थे। कर्मियों की नियुक्ति के कई मामलों में मैंने दिखाया था कि मैं दूसरों से नहीं लड़ूँगी, और मैं चाहती थी कि दूसरे इसके बदले मेरा अच्छा मूल्यांकन करें। मैंने कहा कि मुझे सभी मामलों में कलीसिया के हितों को पहले रखना चाहिए, पर मैं वास्तव में सिर्फ अपनी छवि का खयाल कर रही थी। मुझे चिंता थी कि कहीं सुसमाचार कर्मी यह न कहें कि मैं स्वार्थी हूँ, मुझमें बुरी मानवता खराब है, और मैं कलीसिया के काम पर ध्यान नहीं देती, इसलिए मैं खुद को रोकती थी। हालाँकि मैं बाहर से उदार और सदाशयी लगती थी, पर मैं बहुत दर्द में थी और बहुत नाराज भी थी, मेरे मन में कलीसिया अगुआ और सुसमाचार उपयाजक के लिए भी पूर्वाग्रह था। मगर मैंने इन विचारों को छिपा दिया ताकि वे उन्हें जान न पाएं, मेरे भाई-बहन सोचें कि मेरी मानवता अच्छी है और मैं कलीसिया के काम को बरकरार रख सकती हूँ। मैंने अपने इरादों और जो व्यवहार दिखाया किया, उस पर आत्मचिंतन किया, तो अपने व्यवहार से घृणा हुई। मैंने बाहरी भले कर्मों से लोगों को गुमराह कर आकर्षित किया था और अपनी छवि बनाई—मैंने जो कुछ कहा और किया था वह परमेश्वर के लिए घिनौना और घृणित था।

बाद में, मैंने कई बार पारंपरिक संस्कृति और सद्गुणों का विश्लेषण करते हुए परमेश्वर की संगति को सुना, खुद पर और इन चीजों पर चिंतन करने लगी कि मुझ पर किस तरह के पारंपरिक सांस्कृतिक विचारों का नियंत्रण है जो मैं इतने पाखंड और कष्टों के साथ जी रही हूँ। मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “परंपरागत संस्कृति में कोंग रोंग द्वारा बड़ी नाशपातियाँ त्याग दिए जाने की एक कहानी है। तुम लोगों को क्या लगता है : क्या कोंग रोंग जैसा न हो सकने वाला व्यक्ति अच्छा इंसान नहीं होता? लोग सोचा करते थे कि जो कोई कोंग रोंग जैसा हो सकता है, वह चरित्रवान और दृढ़ निष्ठा वाला, दूसरों की खातिर अपने हित त्याग देने वाला—अच्छा इंसान होता है। क्या इस ऐतिहासिक कहानी का कोंग रोंग एक आदर्श व्यक्ति है, जिसका सभी ने अनुसरण किया है? क्या लोगों के दिलों में इस किरदार की कोई खास जगह है? (हाँ।) उसका नाम नहीं, बल्कि उसके विचार और अभ्यास, उसकी नैतिकता और व्यवहार लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं। लोग ऐसी प्रथाओं का सम्मान और अनुमोदन करते हैं, और वे आंतरिक रूप से कोंग रोंग के नैतिक आचरण की प्रशंसा करते हैं(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (10))। “बुद्धिजीवियों पर पारंपरिक संस्कृति का प्रभाव विशेष रूप से गहरा होता है। वे न केवल पारंपरिक संस्कृति को स्वीकारते हैं, बल्कि पारंपरिक संस्कृति के कई विचारों और दृष्टिकोणों को भी अपने दिल में स्वीकारते हैं और उन्हें सकारात्मक चीजें मानते हैं, इस हद तक कि उन्होंने कुछ मशहूर कहावतों को अपने आदर्श वाक्य बना लिए हैं, और इस तरह वे जीवन में गलत मार्ग पर चल पड़ते हैं। कन्फ्यूशियस का धर्म-सिद्धांत पारंपरिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। कन्फ्यूशियस के धर्म-सिद्धांत में अनेक वैचारिक सिद्धांत हैं, यह मुख्य रूप से पारंपरिक नैतिक संस्कृति को बढ़ावा देता है, और इसे पूरे इतिहास में राजवंशों के शासक वर्गों द्वारा सम्मान दिया जाता था, जिन्होंने कन्फ्यूशियस और मेन्सियस को संत मानकर उनकी पूजा की थी। कन्फ्यूशियस का धर्म-सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति को परोपकार, धार्मिकता, औचित्य, बुद्धि और विश्वसनीयता के मूल्यों को बनाए रखना चाहिए, सबसे पहले कुछ घटित होने पर शांत रहना, संयमित रहना और सहनशील होना सीखना चाहिए, शांत रहकर चीजों के बारे में बातचीत करनी चाहिए, उनके लिए लड़ाई या छीना-झपटी नहीं करनी चाहिए, विनम्र और मिलनसार होना सीखना चाहिए, और सभी का सम्मान पाना चाहिए—यह शिष्टाचार के साथ आचरण करना है। ये बुद्धिजीवी लोग खुद को आम लोगों से ऊँचा स्थान देते हैं, और उनकी नजरों में सभी लोग उनके संयम और सहनशीलता की वस्तु हैं। ज्ञान के ‘प्रभाव’ बहुत बढ़िया हैं! ये लोग बहुत हद तक नकली सज्जनों की तरह दिखते हैं, है ना? जो लोग बहुत ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं वे नकली सज्जन बन जाते हैं। अगर परिष्कृत विद्वानों के इस समूह को किसी एक वाक्यांश में परिभाषित किया जाए, तो यह वाक्यांश होगा परिष्कृत विद्वतापूर्ण लालित्य। ... वे सज्जनों जैसी सभ्यता और शिष्टता को सीखने और उसकी नकल करने में माहिर हैं। वे किस लहजे और तरीके से आपस में बातचीत और चीजों पर चर्चा करते हैं? उनके चेहरे के भाव खास तौर पर कोमल होते हैं, और वे विनम्रता और संयम से बात करते हैं। वे सिर्फ अपने विचार व्यक्त करते हैं और भले ही उन्हें पता हो कि दूसरों के विचार गलत हैं, फिर भी वे कुछ नहीं कहते। कोई भी किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाता और उनके शब्द बेहद कोमल होते हैं, जैसे कि रुई में लिपटे हों, ताकि उनसे किसी को ठेस न पहुँचे या वे चिढ़ न जाएँ, जिसे सुनते ही व्यक्ति को उबकाई, बेचैनी या गुस्सा आ सकता है। सच तो यह है कि किसी के विचार एकदम स्पष्ट नहीं होते और कोई भी किसी के सामने झुकता नहीं। इस तरह के लोग खुद को छिपाने में माहिर होते हैं। छोटी-छोटी बातों में भी वे खुद को छिपाएँगे और मुखौटा ओढ़ेंगे, और उनमें से कोई भी अच्छा स्पष्टीकरण नहीं देगा। आम लोगों के सामने, वे कैसी मुद्रा अपनाना चाहते हैं, और किस तरह की छवि बनाना चाहते हैं? ऐसी, जिससे आम लोगों को यह दिखे कि वे विनम्र सज्जन हैं। सज्जन दूसरों से बेहतर होते हैं और लोगों के सम्मान के पात्र होते हैं। लोग सोचते हैं कि उनके पास औसत लोगों की तुलना में गहरी अंतर्दृष्टि है और उन्हें चीजों की बेहतर समझ है, इसलिए जब भी किसी को कोई समस्या होती है तो हर कोई उनसे सलाह लेता है। ये बुद्धिजीवी यही परिणाम देखना चाहते हैं, वे सभी संतों जैसा सम्मान पाने की उम्मीद करते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन ने मेरी समस्या का सटीक वर्णन किया। मैंने इन पाखंडी अच्छे कर्मों को अनुकरण के लायक सकारात्मक चीजें क्यों माना था? ऐसा इसलिए क्योंकि मैं कॉन्ग रॉन्ग के बड़े नाशपाती देने के पारंपरिक सांस्कृतिक विचार से प्रभावित हो गई थी। मैं बचपन से ही इस विचार के साथ जी रही थी। लोगों को यह दिखाने के लिए कि मैं अच्छी बच्ची थी, मैंने बहनों को अपने बहुत से पसंदीदा खिलौने और स्नैक्स दे दिए। बड़ी होने पर मैं हर मामले में उदारता दिखाती थी। हालाँकि मैंने ऐसा बेमन से किया, मुझे लगा कि ऐसे इंसान में ही अच्छी मानवता है और शिष्टाचार की समझ है, दूसरों की प्रशंसा और सम्मान पाने का यही एकमात्र तरीका था, इसलिए मैंने बेमन से यह सब सहा। परमेश्वर में आस्था रखने के बाद भी, मैंने इस पारंपरिक धारणा को सत्य मानकर अभ्यास किया। इन दो कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में मैंने बस इसे सह लिया। साफ तौर पर सिंचन कर्मियों की कमी थी पर मैंने निस्वार्थता का मुखौटा लगाकर सिंचन के लिए उपयुक्त दोनों लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने दिया। इसने मुझे बहुत नेक और उदार दिखाया, पर असल में मैं इतनी निराश थी कि कर्मियों की कमी के कारण कई बार छिपकर रोई। मेरे मन में कलीसिया अगुआ के प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो गया था, और आखिर सिंचन के काम में देरी हुई। इस तरह “देने” का क्या मतलब था? अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए मैंने कॉन्ग रॉन्ग की तरह खुद को नेकदिल दिखाया, मैंने कलीसिया के काम में देरी होने की परवाह नहीं की। मैं निश्चित ही एक पाखंडी थी। अगर मुझे सचमुच कलीसिया के काम की चिंता होती, तो मैंने सिंचन कार्य की असल जरूरतों के अनुसार कर्मियों की अपनी जरूरत को समझा होता, पर अपनी छवि बचाने के लिए मैंने सिद्धांतों का जरा भी पालन नहीं किया था। यहाँ तक कि जब कर्मियों की कमी से सिंचन का काम प्रभावित हुआ, तब भी मैं “खुशी-खुशी” लोगों को जाने देने पर अड़ी रही। मैंने सिंचन कार्य में देरी की कीमत पर दूसरों की प्रशंसा हासिल की थी। कोई ताज्जुब नहीं कि परमेश्वर ऐसे लोगों को पाखंडी कहता है। मुझे एहसास हुआ कि मेरा व्यवहार वास्तव में झूठा था।

बाद में, मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े जिन्होंने मुझे हिला दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “तुम लोगों को स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि नैतिक आचरण के बारे में किसी भी प्रकार की कहावत सत्य नहीं है, वह सत्य का स्थान तो बिल्कुल नहीं ले सकती। वे सकारात्मक चीजें भी नहीं हैं। तो वे वास्तव में क्या हैं? यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नैतिक आचरण के बारे में ये कहावतें विधर्मी भ्रांतियाँ हैं, जिनसे शैतान लोगों को गुमराह करता है। वे अपने आप में ऐसी सत्य वास्तविकता नहीं हैं जो लोगों में होनी चाहिए, न ही वे सकारात्मक चीजें हैं जिन्हें सामान्य मनुष्यों को जीना चाहिए। नैतिक आचरण के बारे में ये कहावतें जालसाजी, ढोंग, झूठ-फरेब और चालबाजियाँ हैं—ये कृत्रिम व्यवहार हैं, और मनुष्य के जमीर और विवेक या उसकी सामान्य सोच से बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होते। इसलिए नैतिक आचरण के संबंध में परंपरागत संस्कृति की तमाम कहावतें बेहूदा, बेतुके पाखंड और भ्रम हैं। इन कुछ संगतियों से, नैतिक आचरण के बारे में शैतान जिन कहावतों को सामने रखता है उनकी आज पूर्णरूपेण निंदा की जाती है। अगर वे सकारात्मक चीजें तक नहीं हैं, तो लोग उन्हें कैसे स्वीकार सकते हैं? लोग इन विचारों और मतों को कैसे जी सकते हैं? कारण यह है कि नैतिक आचरण के बारे में ये कहावतें लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं से बहुत अच्छी तरह मेल खाती हैं। वे प्रशंसा और स्वीकृति दिलाती हैं, इसलिए लोग नैतिक आचरण के बारे में इन कहावतों को दिल से स्वीकारते हैं, और हालाँकि वे इन्हें अमल में नहीं ला सकते, फिर भी वे आंतरिक रूप से इन्हें गले लगाकर उत्साहपूर्वक इनकी आराधना करते हैं। और इस प्रकार, शैतान लोगों को गुमराह करने, उनके दिलों और व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए नैतिक आचरण के बारे में विभिन्न कहावतों का उपयोग करता है, क्योंकि अपने दिलों में लोग नैतिक आचरण के बारे में सभी प्रकार की कहावतों पर आँखें मूंदकर विश्वास रखते हैं और उनकी आराधना करते हैं, और अत्यधिक गरिमा, महानता और दयालुता के झूठे एहसास का दिखावा करके अत्यधिक सम्मान और प्रशंसा पाने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए वे सभी इन कथनों का उपयोग करना चाहते हैं। संक्षेप में, नैतिक आचरण के बारे में सभी प्रकार की कहावतें यह अपेक्षा करती हैं कि किसी ख़ास तरह का काम करते हुए लोगों को नैतिक आचरण के क्षेत्र में किसी प्रकार का व्यवहार या मानवीय गुण प्रदर्शित करना चाहिए। ये व्यवहार और मानवीय गुण काफी नेक लगते हैं और श्रद्धेय होते हैं, इसलिए सभी लोग अपने दिलों में इन्हें पाना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने इस बात पर विचार नहीं किया होता कि नैतिक आचरण के बारे में ये कहावतें व्यवहार के वे सिद्धांत बिल्कुल नहीं हैं, जिनका सामान्य इंसान को पालन करना चाहिए; इसके बजाय, वे विभिन्न प्रकार के पाखंडी व्यवहार हैं जिनका व्यक्ति स्वाँग कर सकता है। वे जमीर और विवेक के मानकों से अलग जाते हैं, सामान्य मनुष्य की इच्छा के विरुद्ध जाते हैं। शैतान नैतिक आचरण की झूठी और बनावटी कहावतों का उपयोग लोगों को गुमराह करने, उनसे अपनी और उन पाखंडी तथाकथित संतों की आराधना करवाने के लिए करता है, जिससे लोग सामान्य मानवता और मानवीय व्यवहार के मानदंडों को साधारण, सरल, यहाँ तक कि तुच्छ चीजें समझें। लोग इन चीजों का तिरस्कार करते हैं और इन्हें पूरी तरह से बेकार समझते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि शैतान द्वारा समर्थित नैतिक आचरण की कहावतें आँखों को बहुत भाती हैं और मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं से बहुत मेल खाती हैं। हालाँकि, तथ्य यह है कि नैतिक आचरण के बारे में कहावत, चाहे वह जो भी हो, एक ऐसा सिद्धांत है जिसका लोगों को अपने व्यवहार या दुनिया में अपने लेनदेन में पालन करना चाहिए। सोचो—क्या ऐसा नहीं है? सार में, नैतिक आचरण की कहावतें लोगों से सिर्फ सतही रूप से ज्यादा सम्मानजनक, नेक जीवन जीने के लिए कहती हैं, जिससे दूसरे उनकी आराधना या प्रशंसा करें, उन्हें नीचा न दिखाएँ। इन कहावतों का सार दर्शाता है कि ये सिर्फ लोगों से यह अपेक्षा करती हैं कि वे अच्छे व्यवहार के जरिये अच्छा नैतिक आचरण प्रदर्शित करें, जिससे भ्रष्ट मनुष्यजाति की महत्वाकांक्षाएँ और फालतू इच्छाएँ छिपाई और नियंत्रित की जा सकें, मनुष्य के बुरे और घिनौने प्रकृति सार के साथ-साथ विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों की अभिव्यक्तियों पर पर्दा डाला जा सके। ये सतही रूप से अच्छे व्यवहार और अभ्यासों के जरिये व्यक्ति का व्यक्तित्व उभारने के लिए हैं, दूसरों के मन में उनकी छवि निखारने और उनके बारे में व्यापक दुनिया का अनुमान सँवारने के लिए हैं। ये बिंदु दर्शाते हैं कि नैतिक आचरण की कहावतों का उद्देश्य मनुष्य के आंतरिक विचारों, नजरियों, लक्ष्यों और इरादों, उसके घृणित चेहरे और उसके प्रकृति सार को सतही व्यवहार और अभ्यासों से छिपाना है। क्या ये चीजें सफलतापूर्वक छिपाई जा सकती हैं? क्या इन्हें छिपाने की कोशिश करने से ये और ज्यादा स्पष्ट नहीं हो जातीं? लेकिन शैतान इसकी परवाह नहीं करता। उसका उद्देश्य भ्रष्ट मनुष्य का घिनौना चेहरा ढकना, मनुष्य की भ्रष्टता का सत्य छिपाना है। इसलिए, शैतान लोगों को खुद को छिपाने के लिए नैतिक आचरण की स्वभावजन्य अभिव्यक्तियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जिसका अर्थ है कि वह नैतिक आचरण के नियमों और व्यवहारों का उपयोग कर मनुष्य का रूप साफ-सुथरा बनाता है, मनुष्य के मानवीय गुण और व्यक्तित्व उभारता है, ताकि वे दूसरों से सम्मान और प्रशंसा पा सकें। मूल रूप से, नैतिक आचरण के बारे में ये कहावतें व्यक्ति की स्वभावजन्य अभिव्यक्तियों और नैतिक मानकों के आधार पर निर्धारित करती हैं कि वह नेक है या नीच(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (10))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही मुझे समझ आया कि मेरा नजरिया हमेशा गलत रहा था, जो यह था कि मैंने पारंपरिक संस्कृति के गुणों को किसी व्यक्ति की मानवता के अच्छे या बुरे होने का मानक माना था। मैंने गलती से सद्गुण को सत्य की तरह देखा, सोचा कि सद्गुण वाले लोगों में अच्छी मानवता होती है। दरअसल सद्गुण वह जीवन सिद्धांत नहीं जिसका लोगों को पालन करना चाहिए। यह पाखंड का काम है और असल में यह वह युक्ति और तरीका है जिस का इस्तेमाल शैतान लोगों को गुमराह करने और भ्रष्ट करने में करता है। शैतान लोगों के जीवन के नैतिक मानक खड़े करने में पारंपरिक संस्कृति का उपयोग करता है। इस तरह वे खुद को और अंदरूनी भ्रष्टता और कुरूपता को छिपाने के लिए बाहरी अच्छे कर्मों का उपयोग करें और दूसरों का ज्यादा सम्मान पाएं—नतीजतन लोग और ज्यादा पाखंडी और धोखेबाज हो जाते हैं। मैंने देखा कि मैं भी ऐसी ही थी। मैं पारंपरिक संस्कृति के गुणों को अपने कर्मों की कसौटी मानती थी। हालाँकि लगता था कि मैं दूसरों के साथ होड़ नहीं करती थी और उनके साथ घुल-मिल कर रहती थी, पर असल में मैं खुद को अच्छे कर्मों के लिए मजबूर करती थी ताकि लोग कहें कि मैं अच्छी हूँ, और उनके मन में मेरी अच्छी छवि बनी रहे। मैं कहती कि मैं कलीसिया के काम पर विचार कर रही थी। मैं बहुत धोखेबाज थी!

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन में पढ़ा : “जो व्यक्ति सत्य समझता है, उसे नैतिक आचरण के बारे में परंपरागत संस्कृति के विभिन्न दावों और माँगों का विश्लेषण करना चाहिए। तुम्हें विश्लेषण करना चाहिए कि तुम उनमें से किसे सबसे ज्यादा सँजोते और किससे हमेशा चिपके रहते हो, जो हमेशा तुम्हारे लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने का आधार और कसौटी बनती है। फिर, तुम्हें उन चीजों को, जिनसे तुम चिपके रहते हो, तुलना के लिए परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के सामने रखकर यह देखना चाहिए कि परंपरागत संस्कृति के ये पहलू परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों का विरोध तो नहीं करते या उनसे टकराते तो नहीं। अगर वाकई कोई समस्या नजर आए, तो तुम्हें तुरंत विश्लेषण करना चाहिए कि वास्तव परंपरागत संस्कृति के ये पहलू आखिर कहाँ गलत और बेतुके हैं। जब तुम इन मुद्दों पर स्पष्ट होगे, तो तुम जान जाओगे कि क्या सत्य है और क्या भ्रांति; तुम्हारे पास अभ्यास का मार्ग होगा, और तुम वह मार्ग चुन पाओगे जिस पर तुम्हें चलना चाहिए। इस तरह सत्य की खोज करके तुम अपना व्यवहार सुधारने में सक्षम हो जाओगे(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में I, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (5))। परमेश्वर के वचन से मैं समझी कि यदि आप इन पारंपरिक विचारों के अनुसार नहीं जीना चाहते तो पहले आपको इन चीजों को समझना और इनका विश्लेषण करना होगा, उनकी त्रुटियों और बेतुकेपन का पता लगाना होगा, कैसे वे सत्य के खिलाफ हैं, और उनके अनुसार जीने के क्या नतीजे होते हैं। इन चीजों को साफ-साफ देखकर ही आप इन्हें त्याग सकते हैं और सत्य स्वीकार सकते हैं। मैं सोचने लगी : क्या कॉन्ग रॉन्ग में बड़े नाशपाती “देना” सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या यह “देना” सामान्य मानवता के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं में से एक है? क्या हर चीज को सहन करने वाले लोग वास्तव में अच्छे होते हैं? मेरी अपनी अंध सहनशीलता ने सिंचन कार्य में कर्मियों की गंभीर कमी पैदा कर दी थी। सब चीजों में उदारता और सहनशीलता दिखाने के लिए मैंने कई पाखंडी झूठ बोले थे। इन पारंपरिक विचारों में शिक्षित होने से मैं अच्छी इंसान बनाने के बजाय पाखंडी और धोखेबाज बन गई थी। दूसरों का सम्मान पाकर मैं खुश नहीं थी—बल्कि अधिक से अधिक उदास और दुखी हो गई थी। ये पारंपरिक संस्कृति की पूजा करने के नतीजे थे। अगर परमेश्वर ने पारंपरिक संस्कृति के सार का खुलासा न किया होता, मैं जीवन भर अंधी बनी रहती। मैं सत्य व्यक्त करने, पारंपरिक विचारों का विश्लेषण करने, और मुझे जगाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना नहीं भूली।

उसके बाद मैंने सोचा, “चूंकि कॉन्ग रॉन्ग का बड़े नाशपाती दे देने का गुण केवल बाहरी अच्छा व्यवहार था, और इसका मतलब यह नहीं था कि उसमें अच्छी मानवता थी, वास्तव में अच्छी मानवता क्या है?” परमेश्वर के वचन में मैंने पढ़ा : “अच्छी मानवता होने का कोई मानक अवश्य होना चाहिए। इसमें संयम का मार्ग अपनाना, सिद्धांतों से चिपके न रहना, किसी कोभी नाराज नकरने का प्रयत्न करना, जहाँ भी जाओ वहीं चापलूसी करके कृपापात्र बनना, जिससे भी मिलो उससे चिकनी-चुपड़ी बातें करना और सभी से अपने बारे में अच्छी बातें करवाना शामिल नहीं है। यह मानक नहीं है। तो मानक क्या है? यह परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम होना है। यह अपने कर्तव्य को और सभी तरह के लोगों, घटनाओं और चीजों को सिद्धांतों के साथ और जिम्मेदारी की भावना से लेना है। सब इसे स्पष्ट ढंग से देख सकते हैं; इसे लेकर सभी अपने हृदय में स्पष्ट हैं। इतना ही नहीं, परमेश्वर लोगों के हृदयों की जाँच-पड़ताल करता है और उनमें से हर एक की स्थिति जानता है; चाहे वे जो भी हों, परमेश्वर को कोई मूर्ख नहीं बना सकता। कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, कि वे कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते, कभी किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी अन्य लोगों की संपत्ति की लालसा नहीं की। जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे दूसरों का फायदा उठाने के बजाय नुकसान तक उठाना पसंद करते हैं, और बाकी सभी सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड़यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ़ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे दुष्ट लोगों को बुरे कर्म करते हुए देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह किस प्रकार की मानवता है? यह अच्छी मानवता नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वे किसके अनुसार जीते हैं, क्या प्रकट करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय उनका रवैया कैसा होता है, साथ ही उनकी अंदरूनी दशा कैसी है और उन्हें किससे प्रेम है। अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के घर के हितों से बढ़कर है, या अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वे परमेश्वर के प्रति दर्शाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों में मानवता है? वे मानवता वाले लोग नहीं हैं। उनका व्यवहार दूसरों के द्वारा और परमेश्वर द्वारा देखा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए सत्य को हासिल करना बहुत कठिन होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन से मैं समझ गई कि असल में अच्छी मानवता वाला व्यक्ति सत्य और सकारात्मक चीजों से प्यार करता है, अपने कर्तव्यों में जिम्मेदार, सत्य सिद्धांतों से जुड़ा और कलीसिया के काम को बरकरार रखने वाला होता है। जो बाहर से किसी को ठेस नहीं पहुँचाते, आँख बंद करके और सिद्धांत के बिना सब सहन करते हैं और जो दूसरों का फायदा उठाने के बजाय खुद नुकसान उठाना पसंद करते हैं, वे बाहर से भले ही अच्छे चरित्र वाले होते हैं, पर अपने कर्तव्यों में वे हमेशा अपने हित बचाना चाहते हैं, कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते, कभी कलीसिया के कार्य पर ध्यान नहीं देते। ऐसे लोगों में जरा भी अच्छी मानवता नहीं होती। मैं पारंपरिक संस्कृति के सहारे जीकर अब ऊपरी तौर पर अच्छी इंसान नहीं बने रहना चाहती थी। मैं परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार इंसान की तरह जीना चाहती थी।

परमेश्वर के वचन पढ़ते ही मुझे अभ्यास का मार्ग मिल गया। परमेश्वर कहता है : “कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन-प्रवेश करने की दिशा में सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जांच करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएंगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधाओं या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन से मैं समझ गई कि दूसरों को झूठी छवि दिखाने के लिए मुझे खुद को छिपाना नहीं चाहिए। इसके बजाय मुझे एक ईमानदार, सरल और सच्ची इंसान बनना चाहिए, मुझे अपनी समस्या या मुश्किलों के बारे में खुलकर बात और संवाद करना चाहिए, ताकि मेरे भाई-बहन मेरी ठीक से मदद कर सकें। जब मैंने अपनी बात नहीं कही, जब मैंने आँख बंद करके चीजें सहीं और खुद को छिपाया, तो सभी को लगा कि सिंचन कर्मियों की कोई कमी नहीं है और सोचा कि काम अच्छा चल रहा है। लेकिन असल में, मैं परेशान थी और कलीसिया का काम खराब हो रहा था। इसलिए मैंने समझदारी से परमेश्वर के वचन के अनुसार अभ्यास किया और अपने भाई-बहनों से साफ तौर पर मुश्किलें बता दीं। उसके बाद, उन सभी ने सिंचन कार्य करने में सक्षम कुछ कर्मी दिए। इससे मैंने देखा कि परमेश्वर के वचन के अनुसार अभ्यास करना कितना आसान और आनंददायक है। पारंपरिक संस्कृति के मुताबिक चलकर हम केवल अधिक से अधिक भ्रष्ट, झूठे और धोखेबाज, और ज्यादा से ज्यादा दुखी होते जाते हैं। केवल सत्य का अभ्यास करने से ही हम इंसान की तरह जीवन जी सकते हैं, वास्तव में अच्छे इंसान बन पाते हैं, और सच्ची शांति और आनंद का अनुभव कर पाते हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!

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