प्रश्न 2: इतने वर्षों से प्रभु में विश्वास कर के, हमने सदा यह अनुभव किया है कि, जब तक कोई विनम्रता और सहनशीलता अपना कर भाइयों और बहनों से प्रेम करता है, और प्रभु के लिए व्यय और मेहनत करके पौलुस के उदाहरण का अनुसरण कर सकता है, वह प्रभु के मार्ग का अनुसरण कर रहा है, और प्रभु के लौटने पर वह स्वर्ग के राज्य में आरोहित होगा। जैसा पौलुस ने कहा था, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है…" (2 तीमुथियुस 4:7-8)। लेकिन आप सबने गवाही दी है कि जब हम प्रभु में विश्वास करते हैं, तो हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को ग्रहण करना होगा। जब हम शुद्धिकरण प्राप्त करेंगे, तब परमेश्वर हमें प्रशस्त करेंगे और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पायेंगे। मेरा एक प्रश्न है: हम इतने वर्षों से प्रभु में विश्वास करते रहे हैं, और हम प्रभु के लिए व्यय और मेहनत करते रहे हैं; क्या हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य को ग्रहण किये बिना स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं?
उत्तर: प्रभु में विश्वास करने वाले बहुत से लोग समझते हैं कि प्रभु के लिए मेहनत और खर्च करने वाले पौलुस के मार्ग पर चलना प्रभु के मार्ग पर चलने जैसा ही है, जिससे प्रभु के लौटने पर वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जाएंगे। बहुत से लोगों की यही सोच है। यह सोच क्या प्रभु के वचन पर आधारित है? हमारे ऐसा करने से क्या प्रभु के ह्रदय को खुशी मिलती है? पौलुस की तरह प्रभु के लिए मेहनत करके क्या हम सचमुच प्रभु के मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम स्वर्ग के राज्य के लायक बनेंगे? प्रभु यीशु ने कहा था: "जो मुझ से, हे प्रभु! हे प्रभु! कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:21-23)। प्रभु यीशु ने यह साफ़ तौर पर कहा था। परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाले लोग ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। प्रभु यीशु ने यह नहीं कहा कि प्रभु के लिए त्याग करनेवाले, खर्च करनेवाले और मेहनत करनेवाले स्वर्ग के राज्य में जा पायेंगे। बहुत से लोग जो उपदेश देते हैं, शैतानों को दूर भगाते हैं, और प्रभु के नाम पर चमत्कार करते हैं, वे मेहनत करने वाले लोग हैं। उनकी तारीफ़ करना तो दूर, प्रभु उनको अधार्मिक श्रमिक कहते हैं। पौलुस ने कहा था, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है…" (2 तिमुथियस 4:7-8)। यह कथन प्रभु यीशु के वचन के विपरीत है। यह प्रभु के इरादे के साथ बुनियादी रूप में मेल नहीं खाता। स्वर्ग के राज्य में पहुँचने का बस सिर्फ एक ही पक्का रास्ता है। जो प्रभु यीशु ने साफ़ तौर पर कहा था: "आधी रात को धूम मची: देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। "प्रभु के साथ भोजन करने" का मतलब है अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय-कार्य को प्राप्त करना। परमेश्वर का न्याय और ताड़ना पाकर, हम सारे सत्य समझ पाते हैं, स्वच्छ और परिपूर्ण हो जाते हैं। प्रभु के साथ भोजन करने के ये परिणाम हैं। तो हम निश्चित हो सकते हैं कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय-कार्य और ताड़ना से शुद्धता पाकर ही कोई व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है।
हम सब जानते हैं कि सिर्फ प्रभु यीशु मसीह ही सत्य हैं, सही मार्ग और जीवन हैं। यानी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के मार्ग का अंतिम आधार प्रभु यीशु का वचन ही होना चाहिए। पौलुस महज एक धर्मप्रचारक थे, जिन्होंने सुसमाचार का प्रचार किया। उनको प्रभु की ओर से बोलने का अधिकार नहीं था। उनका चुना हुआ मार्ग आवश्यक रूप से स्वर्ग के राज्य का मार्ग नहीं था। क्योंकि प्रभु यीशु ने पौलुस के मार्ग के सही होने की गवाही नहीं दी। इतना ही नहीं, प्रभु यीशु ने लोगों से पौलुस का मार्ग अपनाने को भी नहीं कहा। यदि स्वर्ग के राज्य का मार्ग चुनने के लिए हम सिर्फ पौलुस के वचन पर चलें, तो आसानी से राह भटक सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था: "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।" यह वाक्य हमें बताता है कि हमें प्रभु के वचन में विश्वास करना चाहिए। स्वर्ग के राज्य तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग परमेश्वर की इच्छा का पालन करना है। जब अंत के दिनों में प्रभु यीशु, परमेश्वर के निवास से आरंभ होने वाला न्याय का कार्य करने के लिए लौट आयेंगे। यदि हम अंत के दिनों में परमेश्वर की आवाज को सुनें, उनके कार्य को ग्रहण करें, शुद्धता पा लें और परमेश्वर के न्याय और उनकी ताड़ना से परिपूर्ण बन जायें, तब हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाले व्यक्ति बन जायेंगे और फिर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जायेंगे। यह सुनिश्चित है। जो लोग प्रभु की ओर से उपदेश देने के लिए सिर्फ उत्साह के भरोसे रहते हैं, शैतानों को दूर भगाते हैं, और प्रभु के नाम पर चमत्कार करते हैं, वे न तो प्रभु के वचन का पालन करने पर ध्यान देते हैं, न ही इस समय परमेश्वर के कार्य को ग्रहण करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग क्या प्रभु को जान पायेंगे? क्या वे परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं? प्रभु यीशु ने क्यों कहा था: "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:23)। यह उद्धरण सचमुच विचारोत्तेजक है! हम सब जानते हैं कि पुराने जमाने में जब यहूदी धर्म के फारसियों ने सुसमाचार का प्रचार करने हेतु थल और समुद्र से हर जगह यात्रा की थी, तब उन्होंने बहुत तकलीफें झेलीं और कई मूल्य अदा किए। देखने में तो लगता था कि उनमें परमेश्वर के प्रति निष्ठा है, लेकिन दरअसल उन्होंने परमेश्वर के वचनों पर अमल करने के स्थान पर, धार्मिक रीति रिवाज़ों और नियमों के पालन करने पर ही जोर दिया, उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया। यही नहीं, उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाएं मिटा दीं। उन्होंने जो किया, वह परमेश्वर की इच्छा के बिलकुल विपरीत और उनके मार्ग से भिन्न था। इसलिए प्रभु यीशु ने उनकी निंदा की और उनको श्राप दिया: "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। हम जो मानते हैं, यह उसमें देखा जा सकता है: "जब तक कोई प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करेगा, उसे प्रभु के आगमन के समय स्वर्ग के राज्य में प्रवेश दिया जाएगा।" यह विचार केवल मनुष्य की धारणा और कल्पना मात्र है, जो प्रभु के वचन से बिलकुल मेल नहीं खाती। उद्धार और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने की हमारी इच्छा ठीक है, लेकिन हमें प्रभु यीशु के वचन को अंतिम मान कर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। यदि हम प्रभु के वचन को नजरअंदाज कर दें, पर पौलुस के वचन को आधार और पौलुस के आचरण को अपनी खोज का लक्ष्य मान लें, तो हम प्रभु से सराहना कैसे पा सकते हैं?
दरअसल, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पाने से पहले, हम सबके मन में यह धारणा और कल्पना थी कि जब तक हम प्रभु के नाम की गरिमा बनाए रखेंगे, उपदेश देंगे, व्यय करेंगे और उनके लिए कार्य करेंगे, तब तक हम प्रभु के वचन का पालन करते हुए उनके मार्ग पर चल रहे हैं, और जब प्रभु पधारेंगे, तब हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश मिल जाएगा। बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पाया और उनके वचन के दर्शन किये। "जब कार्य के बारे में बात की जाती है, तो मनुष्य का मानना है कि परमेश्वर के लिए इधर-उधर भागना, सभी जगहों पर प्रचार करना और परमेश्वर के लिए व्यय करना कार्य है। यद्यपि यह विश्वास सही है, किन्तु यह अत्यधिक एक-तरफा है; परमेश्वर आदमी से जो कहता है वह परमेश्वर के लिए केवल इधर-उधर यात्रा करना ही नहीं है; यह आत्मा के भीतर सेवकाई और आपूर्ति अधिक है। …कार्य परमेश्वर के लिए इधर-उधर चलने को संदर्भित नहीं करता है; यह इस बात को संदर्भित करता है मनुष्य का जीवन और मनुष्य जो जीवन बिताता है वे परमेश्वर के आनंद के लिए हैं या नहीं। कार्य परमेश्वर के प्रति गवाही देने और मनुष्य के प्रति सेवकाई के लिए मनुष्य द्वारा परमेश्वर के प्रति अपनी विश्वसनीयता और परमेश्वर के बारे में उनके ज्ञान के उपयोग को संदर्भित करता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है और वह है जो सभी लोगों को महसूस करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, तुम लोगों का प्रवेश तुम लोगों का कार्य है; तुम लोग परमेश्वर के लिए अपने कार्य के दौरान प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हो। परमेश्वर का अनुभव करना न केवल उसके वचन को खाने और पीने में सक्षम होना है; बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण है, कि तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर की सेवा करने, और मनुष्य की सेवकाई और आपूर्ति करने में सक्षम अवश्य होना चाहिए। यह कार्य है, और तुम लोगों का प्रवेश भी है; इसे ही हर व्यक्ति को निष्पादित करना चाहिए। ऐसे कई लोग हैं जो केवल परमेश्वर के लिए इधर-उधर यात्रा करने, और सभी जगहों पर उपदेश देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, फिर भी अपने व्यक्तिगत अनुभव को अनदेखा करते हैं और आध्यात्मिक जीवन में अपने प्रवेश की उपेक्षा करते हैं। यही कारण है कि परमेश्वर की सेवा करने वाले लोग परमेश्वर का विरोध करने वाले बन जाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (2))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के दर्शन करने पर, मैं समझ पाया कि मनुष्य के कार्य को ले कर परमेश्वर की ज़रूरत सिर्फ कष्ट झेलना, यहां-वहां भाग दौड़, और परमेश्वर के लिए व्यय करना ही नहीं है। यह मुख्य रूप से परमेश्वर के वचन का पालन कर उसका अनुभव करने की हमारी क्षमता, व्यावहारिक अनुभवों से परमेश्वर के वचन को समझ कर उसको व्यक्त करने की हमारी क्षमता को ले कर है, और परमेश्वर के वचन के यथार्थ तक पहुँचने में भाइयों-बहनों को हमारा मार्गदर्शन है। केवल इसी प्रकार के कार्य से परमेश्वर की इच्छा पूरी होगी। प्रभु में कई वर्षों से अपने विश्वास को याद करते हुए, हालांकि मैंने हर जगह प्रभु के नाम पर उपदेश देने का कार्य किया है आंधी-तूफ़ान और बरसात में, तकलीफें सही हैं और कुछ कीमत भी चुकाई है, फिर भी मैंने प्रभु के वचन का पालन कर उसका अनुभव करने पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए मैं प्रभु के वचन के पालन को ले कर अनुभवों और गवाहियों के बारे में चर्चा नहीं कर सका। अपने उपदेश-कार्य में, मैं कुछ खोखले शब्दों और बाइबल के सिद्धांतों के बारे में ही चर्चा कर सका, और भाइयों और बहनों को कुछ धार्मिक रस्मों-रिवाजों और नियमों का पालन करने की शिक्षा दे सका। इससे भला भाई-बहन परमेश्वर के वचन के यथार्थ को कैसे जान पाते? इतना ही नहीं, उपदेश देते समय, लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए अक्सर खुद को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता, और अपने खुद के रंग-ढंग, हाव-भाव दिखा कर मैं अक्सर प्रभु की जरूरतों के खिलाफ चला जाता था। थोड़ा-कुछ त्याग कर, कुछ तकलीफें झेल कर, और प्रभु के लिए थोड़ी कीमत चुका कर, मैं सोचता था कि मैं प्रभु को सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ, और मैं उनके प्रति सबसे अधिक निष्ठावान हूँ। मैं इतना बेशर्म था कि मैं परमेश्वर से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की मांग करने लगा। अपने आपको बहुत ऊंचा दिखा कर और उन सभी भाई-बहनों को नीचा दिखा कर, जो निष्क्रिय और कमजोर थे। क्योंकि मैंने प्रभु के लिए कार्य करने को ले कर सिर्फ उत्साह पर जोर दिया और प्रभु के वचन का पालन और अनुभव करने पर ध्यान नहीं दिया, प्रभु में कई वर्षों तक विश्वास करने के बाद, मैं उस मुकाम पर पहुँच गया जहां न तो मुझे प्रभु को कुछ भी ज्ञान रहा न ही परमेश्वर के प्रति हृदय में कोई भय, अपने जीवन के स्वभाव में संपूर्ण परिवर्तन का क्या कहें! चूंकि मैंने कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया था, और मैंने बड़ी तकलीफें झेलीं और बड़ी कीमत चुकाई थी, इसलिए मैं ज्यादा-से-ज्यादा घमंडी और किसी की न सुनने वाला बनता गया। मैं हर पहलू में शैतान का स्वभाव उजागर करते हुए धोखेबाजी और जालसाजी के काम तक तक करने लगा। मैं जो कड़ी मेहनत कर रहा था, उसका प्रभु की आज्ञा मानने और उनके वचन का पालन करने की सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं था। इससे प्रभु को समझने का रास्ता भला कैसे खुलता? मुझ जैसे व्यक्ति के लिए जिसको न तो सत्य की वास्तविकता मालूम थी और न ही प्रभु की समझ थी, क्या मेरा हर काम प्रभु का अपमान और उनका प्रतिरोध नहीं था? यह प्रभु के लिए ऊंचा कार्य और गवाही जैसा कैसे होता? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद, मैंने जाना कि किसी व्यक्ति ने चाहे जितने वर्ष प्रभु में विश्वास कर लिया हो, चाहे जितनी कड़ी मेहनत की हो, यदि उसने प्रभु के अंत के दिनों के न्याय और सुधार का अनुभव नहीं किया, तो उसके लिए परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाला, और हृदय से परमेश्वर की आज्ञा मानने और उनकी आराधना करने वाला व्यक्ति बनना असंभव है। यह बिलकुल सही है।
आइये देखें उन धार्मिक पादरियों और एल्डर्स को। हांलाकि उन्होंने प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने हेतु सब कुछ त्याग दिया है, वे किस प्रकार का काम कर रहे थे? उनके कार्य का स्वभाव क्या है? कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास करने के बाद, उन्होंने सत्य की खोज कभी नहीं की। वे पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त नहीं कर पाए, और हमें नहीं समझा पाए कि हमारी श्रद्धा और जीवन में प्रवेश से जुड़ी व्यावहारिक समस्याओं को कैसे सुलझाएं। वे आस्तिकों को धोखा देने के लिए अक्सर बाइबल के कुछ खोखले सिद्धांतों की चर्चा करते हैं। और प्रभु के लिए उपदेश देने में वे कितना आगे बढ़ गए हैं, यह देखने का हर मौक़ा झपटते रहते हैं, कितना कार्य उन्होंने किया, कितनी पीड़ा उन्होंने झेली, कितने चर्च उन्होंने बनाए, आदि, स्वयं को स्थापित करने के लिए, ताकि लोग उनकी आराधना और अनुपालन करें। फलस्वरूप इतने साल काम करने के बावजूद वे न केवल भाई-बहनों को सत्य को समझाने और परमेश्वर को जानने के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा पाए, बल्कि उन्होंने भाई-बहनों को उनकी खुद की आराधना करने और अनुगमन करने दिया, उनको मनुष्य की आराधना करने और अनजाने में परमेश्वर को धोखा देने के मार्ग पर ला खड़ा किया। तो आइए सोचें, ये पादरी और एल्डर्स क्या ऐसा कार्य और खर्च कर के, प्रभु के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं? क्या वे प्रभु के विरुद्ध बुरा नहीं कर रहे हैं? विशेषकर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के साथ वे जैसा बर्ताव करते हैं। अधिकतर पादरी और एल्डर्स वास्तव में जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन ही सत्य है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य ही पवित्र आत्मा का कार्य है, लेकिन वे उसको खोज कर नहीं पढ़ते, बल्कि अपना स्थान व आजीविका सुरक्षित रखने के लिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा करने और उनका प्रतिरोध करने हेतु जूनून में आ कर अफवाहें ईजाद करके तमाम बकवास और भ्रम फैलाते हैं। और धार्मिक समुदाय को एक हवाबंद और जल-रोधी हालात में बंद कर देते हैं। वे किसी को भी सही रास्ता खोजने और उसको समझने नहीं देते, और लोगों को परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए चर्च में जाने से रोकते हैं। वे दुष्ट चीनी साम्यवादी दल के साथ साँठ-गाँठ कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देने वाले लोगों को पकड़ कर उनको सजा देते हैं। क्या वे साफ़-साफ़ परमेश्वर के खिलाफ काम नहीं कर रहे? परमेश्वर के खिलाफ उनके पाप पुराने जमाने में प्रभु यीशु के खिलाफ फारसियों के पापों से भी ज्यादा बदतर हैं। बहुत बदतर! इन तथ्यों के अनुसार, क्या हम अब भी कह सकते हैं कि हम परमेश्वर की इच्छा का पालन कर रहे हैं, जबकि हम प्रभु के नाम पर केवल व्यय कर रहे हैं और कड़ी मेहनत कर रहे हैं? क्या हम अब भी यह कह सकते हैं कि जब तक हम प्रभु का नाम ले कर, उनके मार्ग को साथ रख कर, प्रभु के लिए इधर-उधर जा कर व्यय करते जाएं, तो हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जाएंगे? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के कई और उद्धरण पढ़ने के बाद हम बात को और अधिक समझ पाएंगे।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "तू कहता है कि तूने हमेशा परमेश्वर का अनुसरण करते हुए दुख उठाया है, यह कि तूने हमेशा हर परिस्थितियों में उसका अनुसरण किया है, और तूने उसके साथ अपना अच्छा और खराब समय बिताया है, किन्तु तूने परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचनों के अनुसार जीवन नहीं बिताया है; तू हर दिन उसके पीछे पीछे भागना चाहता है, और तूने कभी भी एक अर्थपूर्ण जीवन बिताने के बारे में नहीं सोचा है। तू कहता है कि, किसी भी सूरत में, तू विश्वास करता है कि परमेश्वर धर्मी है: तूने उसके लिए दुख उठाया है, तू उसके लिए यहाँ वहाँ भागते रहता है, और तूने उसके लिए अपने आपको समर्पित किया है, और तूने कड़ी मेहनत की है इसके बावजूद तुझे कोई पहचान नहीं मिली है; वह निश्चय ही तुझे स्मरण रखता है। यह सच है कि परमेश्वर धर्मी है, फिर भी इस धार्मिकता को किसी अशुद्धता के द्वारा प्राप्त नहीं किया गया है: इस में कोई मानवीय इच्छा नहीं है, और इसे शरीर, या मानवीय सौदों के द्वारा कलंकित नहीं किया जा सकता है। वे सभी जो विद्रोही हैं और विरोध में हैं, और जो उसके मार्ग की सम्मति में नहीं हैं, उन्हें दण्डित किया जाएगा; किसी को भी क्षमा नहीं किया गया है, और किसी को भी बख्शा नहीं गया है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)।
"तुझे जानना होगा कि मैं किस प्रकार के लोगों की इच्छा करता हूँ; ऐसे लोग जो अशुद्ध हैं उन्हें राज्य में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई है, ऐसे लोग जो अशुद्ध हैं उन्हें पवित्र भूमि को गंदा करने की अनुमति नहीं दी गई है। हालाँकि तूने शायद अधिक कार्य किया है, और कई सालों तक कार्य किया है, फिर भी अन्त में तू दुखदाई रूप से मैला है—यह स्वर्ग की व्यवस्था के लिए असहनीय है कि तू मेरे राज्य में प्रवेश करने की कामना करता है! संसार की नींव से लेकर आज तक, मैं ने कभी भी उन लोगों को अपने राज्य के लिए आसान मार्ग का प्रस्ताव नहीं दिया है जो अनुग्रह पाने के लिए मेरी खुशामद करते हैं। यह स्वर्गीय नियम है, और इसे कोई तोड़ नहीं सकता है! तुझे जीवन की खोज करनी ही होगी। आज, ऐसे लोग जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा वे पतरस के ही समान हैं: वे ऐसे लोग हैं जो अपने स्वयं के स्वभाव में परिवर्तनों की कोशिश करते हैं, और वे परमेश्वर के लिए गवाही देने, और परमेश्वर के प्राणी के रुप में अपने कर्तव्य को निभाने के लिए तैयार हैं। केवल ऐसे ही लोगों को सिद्ध बनाया जाएगा। यदि तू केवल प्रतिफलों की ओर ही देखता है, और अपने स्वयं के जीवन स्वभाव को परिवर्तित करने की कोशिश नहीं करता है, तो तेरे सारे प्रयास व्यर्थ होंगे—और यह एक अटल सत्य है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन में यह स्पष्ट कहा गया है। परमेश्वर पवित्र और धर्मपरायण हैं। किसी भी गंदे और भ्रष्ट व्यक्ति को परमेश्वर अपने राज्य में प्रवेश की बिलकुल इजाज़त नहीं देते।
"स्वर्गिक राज्य का मेरा स्वप्न" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश