20. उत्पीड़न और क्लेश का अनुभव कैसे करें
बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन
“जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)।
“जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)।
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
परमेश्वर के विश्वासी होने के नाते, तुममें से प्रत्येक को सराहना करनी चाहिए कि अंत के दिनों के परमेश्वर का कार्य ग्रहण करके और उसकी योजना का वह कार्य ग्रहण करके जो आज वह तुममें करता है, तुमने किस तरह अधिकतम उत्कर्ष और उद्धार सचमुच प्राप्त कर लिया है। परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को समस्त ब्रह्माण्ड भर में अपने कार्य का एकमात्र केंद्रबिंदु बनाया है। उसने तुम लोगों के लिए अपने हृदय का रक्त तक निचोड़कर दे दिया है; उसने ब्रह्माण्ड भर में पवित्रात्मा का समस्त कार्य पुनः प्राप्त करके तुम लोगों को दे दिया है। इसी कारण से तुम लोग सौभाग्यशाली हो। इतना ही नहीं, वह अपनी महिमा इस्राएल, उसके चुने हुए लोगों से हटाकर तुम लोगों के ऊपर ले आया है, और वह इस समूह के माध्यम से अपनी योजना का उद्देश्य पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष करेगा। इसलिए तुम लोग ही वह हो जो परमेश्वर की विरासत प्राप्त करोगे, और इससे भी अधिक, तुम परमेश्वर की महिमा के वारिस हो। तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : “क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।” तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है। अर्थात, परमेश्वर विजय का कार्य उन्हीं लोगों के माध्यम से करता है जो उसका विरोध करते हैं, और केवल इसी प्रकार परमेश्वर की महान सामर्थ्य प्रत्यक्ष की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, केवल अशुद्ध देश के लोग ही परमेश्वर की महिमा का उत्तराधिकार पाने के योग्य हैं, और केवल यही परमेश्वर की महान सामर्थ्य को उभारकर सामने ला सकता है। इसी कारण अशुद्ध देश से ही, और अशुद्ध देश में रहने वालों से ही परमेश्वर की महिमा प्राप्त की जाती है। ऐसी ही परमेश्वर की इच्छा है। यीशु के कार्य का चरण भी ऐसा ही था : वह केवल उन्हीं फरीसियों के बीच महिमा प्राप्त कर सकता था जिन्होंने उसे सताया था; यदि फरीसियों द्वारा किया गया उत्पीड़न और यहूदा द्वारा दिया गया धोखा नहीं होता, तो यीशु का उपहास नहीं उड़ाया जाता या उसे लांछित नहीं किया जाता, सलीब पर तो और भी नहीं चढ़ाया जाता, और इस प्रकार उसे कभी महिमा प्राप्त नहीं हो सकती थी। जहाँ परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य करता है, और जहाँ वह देह में काम करता है, वहीं वह महिमा प्राप्त करता है और वहीं वह उन्हें प्राप्त करता है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है। यही परमेश्वर के कार्य की योजना है, और यही उसका प्रबंधन है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?
जब मैं औपचारिक रूप से अपना कार्य शुरू करता हूँ, तो सभी लोग वैसे ही चलते हैं जैसे मैं चलता हूँ, इस तरह कि समस्त संसार के लोग मेरे साथ कदम मिलाते हुए चलने लगते हैं, संसार भर में “उल्लास” होता है, और मनुष्य को मेरे द्वारा आगे की ओर प्रेरित किया जाता है। परिणामस्वरूप, स्वयं बड़ा लाल अजगर मेरे द्वारा उन्माद और व्याकुलता की स्थिति में डाल दिया जाता है, और वह मेरा कार्य करता है और अनिच्छुक होने के बावजूद अपनी स्वयं की इच्छाओं का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता, और उसके पास मेरे नियंत्रण में समर्पित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। मेरी सभी योजनाओं में बड़ा लाल अजगर मेरी विषमता, मेरा शत्रु, और साथ ही मेरा सेवक भी है; उस हैसियत से मैंने उससे अपनी “अपेक्षाओं” को कभी भी शिथिल नहीं किया है। इसलिए, मेरे देहधारण के काम का अंतिम चरण उसके घराने में पूरा होता है। इस तरह से बड़ा लाल अजगर मेरी उचित तरीके से सेवा करने में अधिक समर्थ है, जिसके माध्यम से मैं उस पर विजय पाऊँगा और अपनी योजना पूरी करूँगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 29
अंत के दिनों के लोगों के समूह के बीच मेरा कार्य एक अभूतपूर्व उद्यम है, और इस प्रकार, मेरी खातिर सभी लोगों को आखिरी कठिनाई का सामना करना है, ताकि मेरी महिमा सारे ब्रह्मांड को भर सके। क्या तुम लोग मेरी इच्छा को समझते हो? यह आखिरी अपेक्षा है जो मैं मनुष्य से करता हूँ, जिसका अर्थ है, मुझे आशा है कि सभी लोग बड़े लाल अजगर के सामने मेरे लिए सशक्त और शानदार ज़बर्दस्त गवाही दे सकते हैं, कि वे मेरे लिए अंतिम बार स्वयं को समर्पित कर सकते हैं और एक आखिरी बार मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। क्या तुम लोग वाकई ऐसा कर सकते हो? तुम लोग अतीत में मेरे दिल को संतुष्ट करने में असमर्थ थे—क्या तुम लोग अंतिम बार इस प्रतिमान को तोड़ सकते हो? मैं लोगों को आत्म-चिंतन करने का मौका देता हूँ; मुझे अंतिम जवाब देने से पहले, मैं उन्हें सावधानी से विचार करने का अवसर देता हूँ—क्या ऐसा करना गलत है? मैं मनुष्य की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता हूँ, मैं उसके “प्रत्युत्तर पत्र” का इंतज़ार करता हूँ—क्या तुम लोगों को मेरी अपेक्षाओं को साकार कर पाने का भरोसा है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34
पहले यह कहा गया था कि ये लोग बड़े लाल अजगर की संतानें हैं। वास्तव में, स्पष्ट कहा जाए तो, वे बड़े लाल अजगर के मूर्त रूप हैं। जब परमेश्वर उन्हें रास्ते के अंत तक जाने को मजबूर कर देता है और उन्हें मार डालता है, तब—बिना किसी संदेह के—बड़े लाल अजगर के आत्मा के पास उनमें कार्य करने का कोई अवसर नहीं रहता। इस तरह, जब लोग रास्ते के अंत तक पहुँचते हैं, तब बड़ा लाल अजगर भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यह कहा जा सकता है कि वह परमेश्वर की “महान दया” का बदला चुकाने के लिए मृत्यु का उपयोग कर रहा है—जो बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य है। जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि, “देह” की परिभाषा में यह कहा जाता है कि देह शैतान द्वारा दूषित है, लेकिन अगर लोग वास्तव में स्वयं को अर्पित कर देते हैं, और शैतान से प्रेरित नहीं रहते, तो कोई भी उन्हें मात नहीं दे सकता—और इस समय देह अपना दूसरा कार्य निष्पादित करेगा, और औपचारिक रूप से परमेश्वर के आत्मा से दिशा प्राप्त करना शुरू कर देगा। यह एक आवश्यक प्रक्रिया है; इसे कदम-दर-कदम होना चाहिए; यदि नहीं, तो परमेश्वर के पास जिद्दी देह में कार्य करने का कोई उपाय नहीं होगा। ऐसी परमेश्वर की बुद्धि है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36
शैतान चाहे जितना भी “सामर्थ्यवान” हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है; अन्यथा मैं तुम पर क्रोधित हो जाऊँगा और अपने हाथ से मैं...। फिर तुम अनंत मानसिक पीड़ा भोगोगे। तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?
तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता? मुझे संतुष्ट करने से क्या तुम और भी अनंत और जीवनपर्यंत शान्ति या आनंद से नहीं भर जाओगे? तुम्हारी आज की तकलीफ़ें बताती हैं कि तुम्हारी आशीष भविष्य में कितनी बड़ी होगी; वे अवर्णनीय हैं। तुम्हें जो आशीष प्राप्त होगी, वे कितनी बड़ी होंगी, ये तुम नहीं जानते; तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आज वह साकार हो गयी है; बिल्कुल वास्तविक! यह बहुत दूर नहीं है—क्या तुम उसे देख सकते हो? इसका हर अंतिम अंश मुझमें है; आगे का मार्ग कितना रोशन है! अपने आंसू पोंछो, तथा दुःख और दर्द महसूस मत करो। सब-कुछ मेरे हाथों से व्यवस्थित किया जाता है, और मेरा लक्ष्य यह है कि तुम्हें जल्द विजेता बनाऊं और तुम्हें अपने साथ महिमा में ले चलूँ। तुम्हारे साथ जो कुछ होता है, उसके अनुरूप तुम्हें आभारी होना चाहिए और भरपूर स्तुति करनी चाहिए; इससे मुझे गहरी संतुष्टि मिलेगी।
मसीह का सर्वोत्कृष्ट जीवन पहले ही प्रकट हो चुका है; ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे तुम डरो। शैतान हमारे पैरों के नीचे हैं, और उनका समय अधिक लंबा नहीं होगा। जागो! अनैतिकता के संसार को त्यागो; मृत्यु के गर्त से खुद को स्वतंत्र करो! चाहे कुछ भी हो जाए, मेरे प्रति निष्ठावान रहो, और बहादुरी से आगे बढ़ो; मैं तुम्हारी शक्ति की चट्टान हूँ, इसलिए मुझ पर भरोसा रखो!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10
यदि लोगों में आत्मविश्वास नहीं है, तो उनके लिए इस मार्ग पर चलते रहना आसान नहीं है। अब हर कोई देख सकता है कि परमेश्वर का कार्य लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप जरा-सा भी नहीं है। परमेश्वर ने इतना अधिक कार्य किया है और इतने सारे वचनों को कहा है, और भले ही लोग मानें कि वे सत्य हैं, पर परमेश्वर के बारे में धारणाएँ अभी भी पैदा हो सकती हैं। अगर लोग सत्य को समझना और पाना चाहते हैं, तो उनमें उस चीज के साथ खड़े होने का आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति होनी चाहिए, जिसे वे पहले ही देख चुके हैं और अपने अनुभवों से प्राप्त कर चुके हैं। भले ही परमेश्वर लोगों में कुछ भी कार्य करे, उन्हें वह बनाए रखना चाहिए जो उनके पास है, उन्हें परमेश्वर के सामने ईमानदार होना चाहिए, और उसके प्रति बिलकुल अंत तक समर्पित रहना चाहिए। यह मनुष्य का कर्तव्य है। लोगों को जो करना चाहिए, उसे उन्हें बनाए रखना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास के लिए उसके प्रति समर्पण करना और उसके कार्य का अनुभव करना आवश्यक है। परमेश्वर ने बहुत कार्य किया है—यह कहा जा सकता है कि लोगों के लिए यह सब पूर्ण बनाना, शुद्धिकरण, और इससे भी बढ़कर, ताड़ना है। परमेश्वर के कार्य का एक भी चरण ऐसा नहीं रहा है, जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप रहा हो; लोगों ने जिस चीज का आनंद लिया है, वह है परमेश्वर के कठोर वचन। जब परमेश्वर आता है, तो लोगों को उसके प्रताप और उसके कोप का आनंद लेना चाहिए। हालाँकि उसके वचन चाहे कितने ही कठोर क्यों न हों, वह मानवजाति को बचाने और पूर्ण करने के लिए आता है। सृजित प्राणियों के रूप में लोगों को वे कर्तव्य पूरे करने चाहिए, जो उनसे अपेक्षित हैं, और शुद्धिकरण के बीच परमेश्वर के लिए गवाह बनना चाहिए। हर परीक्षण में उन्हें उस गवाही पर कायम रहना चाहिए, जो कि उन्हें देनी चाहिए, और परमेश्वर के लिए उन्हें ऐसा जबरदस्त तरीके से करना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति विजेता होता है। परमेश्वर चाहे कैसे भी तुम्हें शुद्ध करे, तुम आत्मविश्वास से भरे रहते हो और परमेश्वर पर से कभी विश्वास नहीं खोते। तुम वह करते हो, जो मनुष्य को करना चाहिए। परमेश्वर मनुष्य से इसी की अपेक्षा करता है, और मनुष्य का दिल पूरी तरह से उसकी ओर लौटने तथा हर पल उसकी ओर मुड़ने में सक्षम होना चाहिए। ऐसा होता है विजेता। जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर “विजेताओं” के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाह बनने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और इसी को परमेश्वर “विजेता” होने के रूप में संदर्भित करता है। यदि परमेश्वर द्वारा तुम्हें आशीष दिए जाने पर तुम्हारा अनुसरण उत्कृष्ट होता है, लेकिन उसके आशीष न मिलने पर तुम पीछे हट जाते हो, तो क्या यह पवित्रता है? चूँकि तुम निश्चित हो कि यह रास्ता सही है, इसलिए तुम्हें अंत तक इसका अनुसरण करना चाहिए; तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखनी चाहिए। चूँकि तुमने देख लिया है कि स्वयं परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाने के लिए पृथ्वी पर आया है, इसलिए तुम्हें पूरी तरह से अपना दिल उसे समर्पित कर देना चाहिए। भले ही वह कुछ भी करे, यहाँ तक कि बिलकुल अंत में तुम्हारे लिए एक प्रतिकूल परिणाम ही क्यों न निर्धारित कर दे, अगर तुम फिर भी उसका अनुसरण कर सकते हो, तो यह परमेश्वर के सामने अपनी पवित्रता बनाए रखना है। परमेश्वर को एक पवित्र आध्यात्मिक देह और एक शुद्ध कुँवारापन अर्पित करने का अर्थ है परमेश्वर के सामने ईमानदार दिल बनाए रखना। मनुष्य के लिए ईमानदारी ही पवित्रता है, और परमेश्वर के प्रति ईमानदार होने में सक्षम होना ही पवित्रता बनाए रखना है। यही वह चीज है, जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना चाहिए। जब तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, तब तुम प्रार्थना करो; जब तुम्हें संगति में एक-साथ इकट्ठे होना चाहिए, तो तुम इकट्ठे हो जाओ; जब तुम्हें भजन गाने चाहिए, तो तुम भजन गाओ; और जब तुम्हें देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, तो तुम देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करो। जब तुम अपना कर्तव्य करते हो, तो तुम उसमें गड़बड़ नहीं करते; जब तुम्हें परीक्षणों का सामना करना पड़ता है, तो तुम मजबूती से खड़े रहते हो। यह परमेश्वर के प्रति भक्ति है। लोगों को जो करना चाहिए, यदि तुम वह बनाए नहीं रखते, तो तुम्हारी पिछली सभी पीड़ाएँ और संकल्प व्यर्थ रहे हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए
इस समय, वे दर्शन और वे सत्य जिन्हें तुम समझते हो, वे तुम्हारे भविष्य के अनुभवों की एक नींव की रचना कर रहे हैं; भविष्य के क्लेश में तुम सब इन वचनों के व्यावहारिक अनुभव को प्राप्त करोगे। बाद में, जब परीक्षाएँ तुम्हारे ऊपर आएँगी और तुम क्लेश से होकर जाओगे, तो तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे जिन्हें तुम आज कहते हो : चाहे कैसे भी क्लेश, परीक्षाओं, या बड़े कष्टों का मैं अनुभव करूँ, मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करना आवश्यक है। पतरस के अनुभव के बारे में सोचें, और अय्यूब के अनुभव के बारे में सोचें—तुम आज के वचनों के द्वारा उत्तेजित हो जाओगे। केवल इस प्रकार से तुम्हारा विश्वास प्रेरित हो सकता है। उस समय, पतरस ने कहा कि वह परमेश्वर के दंड और उसकी ताड़ना को प्राप्त करने के योग्य नहीं था, और तब तक तुम भी सब लोगों को अपने द्वारा परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को दिखाने के लिए तैयार हो जाओगे। तुम उसके दंड और उसकी ताड़ना को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाओगे, और उसका दंड, उसकी ताड़ना, और उसका श्राप तुम्हारे लिए राहत का कारण होगा। अब, तुम्हारा सत्य से लैस न होना बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। न केवल तुम भविष्य में दृढ़ खड़े रहने में असमर्थ होओगे, बल्कि वर्तमान कार्य में से होकर जाने में भी शायद सक्षम नहीं होओगे। इस रीति से, क्या तुम निष्कासन और सजा के पात्र नहीं होओगे? अभी, ऐसी कोई वास्तविकताएँ नहीं हैं जो तुम पर आ पड़ी हों, और जिन किन्हीं पहलुओं में तुममें घटी है, मैंने उनमें तुम्हारी पूर्ति की है; मैं हर पहलू से बात करता हूँ। तुम लोगों ने वास्तव में अधिक दुःख नहीं सहे हैं; तुम लोग केवल वही ले लेते हो जो उपलब्ध होता है, तुम लोगों ने कोई मूल्य नहीं चुकाया है, और इससे बढ़कर तुम लोगों के पास अपने सच्चे अनुभव और अंतर्दृष्टियाँ भी नहीं हैं। इसलिए, जो तुम समझते हो वह तुम्हारी सच्ची क्षमता नहीं है। तुम लोग केवल समझ, ज्ञान और दृष्टि तक सीमित हो, परंतु तुमने अधिकाँश कटनी नहीं काटी है। यदि मैंने तुम लोगों पर कभी ध्यान नहीं दिया होता बल्कि तुम्हें तुम्हारे अपने घर में अनुभवों से होकर जाने देता, तो तुम बहुत पहले ही निकलकर इस बड़े संसार में वापस चले गए होते। जिस मार्ग पर तुम लोग भविष्य में चलोगे वह दुःख का मार्ग होगा, और यदि तुम लोग मार्ग के वर्तमान चरण में अच्छी तरह से चलते हो, और जब बाद में तुम बड़े क्लेश से होकर जाते हो, तो तुम लोगों के पास एक साक्षी होगी। अगर तुम मानवीय जीवन के महत्व को समझते हो, और तुमने मानवीय जीवन के सही मार्ग को अपनाया है, और अगर भविष्य में परमेश्वर तुमसे जैसा भी व्यवहार करे, तुम बिना किन्हीं शिकायतों या विकल्पों के परमेश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित हो जाओगे, और तुम्हें परमेश्वर से कोई मांगें भी नहीं रहेंगी, इस रीति से तुम महत्व से युक्त एक व्यक्ति होगे। अभी तक, तुम क्लेश से होकर नहीं गए हो, इसलिए तुम किसी भी बात का पालन कर सकते हो। तुम कहते हो कि परमेश्वर जैसे भी अगुवाई करता है ठीक है, और कि तुम सब कुछ परमेश्वर के आयोजनों पर छोड़ दोगे। परमेश्वर चाहे तुम्हें ताड़ना देता है या श्राप, तुम उसे संतुष्ट करने के लिए तैयार रहोगे। ऐसा कहकर जो अब तुम कहते हो वह जरूरी नहीं है कि तुम्हारी क्षमता को प्रस्तुत करे। अब तुम जो करने के लिए तैयार हो वह यह नहीं दर्शा सकता कि तुम अंत तक अनुसरण करने में सक्षम हो। जब बड़े क्लेश तुम पर आते हैं या जब तुम किसी सताव या उत्पीड़न से, या फिर बड़ी परीक्षाओं से होकर जाते हो, तो तुम उन शब्दों को नहीं कह पाओगे। यदि तुम उस प्रकार की समझ रख सकते हो तब तुम दृढ़ खड़े रहोगे, केवल यही तुम्हारी क्षमता होगी। उस समय पतरस कैसा था? उसने कहा : “प्रभु, मैं तेरे लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। यदि तू कहे कि मैं मरूँ, तो मैं मर जाऊँगा!” उस समय उसने इस रीति से प्रार्थना की थी। उसने यह भी कहा था, “यदि दूसरे तुझसे प्रेम नहीं भी करते हैं तो भी मैं तुझसे अंत तक अवश्य प्रेम करूँगा। मैं हर समय तेरा अनुसरण करूँगा।” उस समय उसने यह कहा, परंतु जैसे ही परीक्षाएँ उस पर आईं, तो वह टूट गया और रोने लगा। तुम सब जानते हो कि पतरस ने तीन बार प्रभु का इनकार किया, है ना? ऐसे बहुत से लोग हैं जो तब रोएँगे और मानवीय निर्बलताओं को व्यक्त करेंगे जब परीक्षाएँ उन पर आ पड़ती हैं। तुम अपने स्वामी नहीं हो। इसमें, तुम स्वयं को नियंत्रित नहीं कर सकते। शायद आज तुम वास्तव में अच्छा कर रहे हो, परंतु वह इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पास एक उपयुक्त वातावरण है। यदि कल यह बदल जाए, तो तुम अपनी कायरता और अयोग्यता को दिखाओगे, और तुम अपनी तुच्छता और अनुपयुक्तता को भी दिखाओगे। तुम्हारी “मर्दानगी” बहुत पहले ही बरबाद हो गई होगी, और कभी—कभी तुम हार मानकर बाहर भी निकल जाओगे। यह दिखाता है कि उस समय जो तुम समझते थे वह तुम्हारी वास्तविक क्षमता नहीं थी। एक व्यक्ति को लोगों की वास्तविक क्षमता को देखना आवश्यक होता है कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं या नहीं, क्या वे वास्तव में परमेश्वर की योजना के प्रति समर्पित होने के योग्य हैं या नहीं, और क्या वे इस योग्य हैं या नहीं कि अपने सारे बल को वह प्राप्त करने में लगा दें जिसकी माँग परमेश्वर करता है और फिर भी परमेश्वर के प्रति समर्पित रहें और परमेश्वर को अपना सर्वोत्तम दें, फिर चाहे इसका अर्थ उनके द्वारा स्वयं को बलिदान चढ़ाना ही क्यों न हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए
इन दिनों, परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकांश लोग अभी तक सही रास्ते पर नहीं चले हैं और सत्य नहीं समझ पाए हैं, इसलिए वे अभी भी अंदर से खालीपन महसूस करते हैं, और यह भी कि जीवन कष्टमय है और उनमें अपने कर्तव्य निभाने की ऊर्जा नहीं है। परमेश्वर के विश्वासी ऐसे ही होते हैं, जब तक कि उनके हृदय में कोई दर्शन नहीं होता। लोगों ने सत्य प्राप्त नहीं किया है और वे अभी तक परमेश्वर को नहीं जानते, इसलिए वे अभी भी ज्यादा आनंद महसूस नहीं करते। तुम सबने, विशेष रूप से, उत्पीड़न सहा है और घर लौटने में कठिनाई का सामना किया है। जब तुम कष्ट उठाते हो, तुममें मृत्यु के विचार और जीने की अनिच्छा भी होती है। ये देह की कमजोरियाँ हैं। कुछ लोग यह तक सोचते हैं : परमेश्वर में विश्वास करना सुखद होना चाहिए। अनुग्रह के युग में पवित्र आत्मा ने लोगों को शांति और आनंद दिया। अब बहुत कम शांति और आनंद है, और अनुग्रह के युग जैसी प्रसन्नता विद्यमान नहीं है। आज परमेश्वर में विश्वास करना अत्यंत कष्टप्रद है। तुम केवल यह जानते हो कि देह का सुख ही सब कुछ है। तुम नहीं जानते कि आज परमेश्वर क्या कार्य कर रहा है। परमेश्वर को तुम सब की देह को कष्ट उठाने की अनुमति देनी पड़ती है ताकि तुम्हारे स्वभाव को बदल सके। भले ही तुम्हारी देह कष्ट उठाती है, पर तुम्हारे पास परमेश्वर का वचन है और तुम्हारे पास परमेश्वर का आशीर्वाद है। अगर तुम चाहो तो भी तुम मर नहीं सकते। क्या तुम परमेश्वर को न जानने और सत्य प्राप्त न करने से संतोष कर सकते हो? अब, अधिकांशत:, बस इतना है कि लोगों ने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है और उनके पास जीवन नहीं है। वे उद्धार की खोज के बीच में हैं, इसलिए उन्हें इस प्रक्रिया में थोड़ा कष्ट उठाना होगा। आज दुनिया में हर व्यक्ति परीक्षण से गुजर रहा है, यहाँ तक कि परमेश्वर भी कष्ट उठा रहा है, इसलिए क्या तुम्हारा कष्ट न उठाना उचित है? बड़ी आपदाओं के माध्यम से शोधन के बिना सच्ची आस्था नहीं हो सकती और सत्य और जीवन प्राप्त नहीं किया जा सकता। परीक्षण और शोधन न होने से काम नहीं चलेगा। पतरस को ही देखो—आखिरकार वह सात सालों के परीक्षणों से गुजरा (जब वह तिरेपन वर्ष का था)। उन सात सालों के दौरान उसने सैकड़ों परीक्षणों का अनुभव किया। उसे हर कुछ दिनों में इन परीक्षणों में से एक से गुजरना पड़ता था, और तमाम तरह के परीक्षणों से गुजरने के बाद ही उसे जीवन प्राप्त हुआ और उसने अपने स्वभाव में परिवर्तन अनुभव किया। जब तुम वास्तव में सत्य प्राप्त कर लेते हो और परमेश्वर को जान जाते हो, तब तुम महसूस करते हो कि तुम्हें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के लिए नहीं जीते, तो तुम्हें अफसोस होगा; तुम अपने बाकी दिन भारी खेद और घोर पछतावे में बिताओगे। तुम अभी मर नहीं सकते। तुम्हें अपनी मुट्ठियाँ भींचकर संकल्प के साथ जीते रहना होगा। तुम्हें परमेश्वर के लिए जीवन जीना चाहिए। जब लोगों के भीतर सत्य होता है, तब उनमें यह संकल्प होता है और वे फिर कभी मरने की इच्छा नहीं करते। जब मृत्यु तुम्हें डराएगी, तो तुम कहोगे, “हे परमेश्वर, मैं मरने का इच्छुक नहीं हूँ; मैं अभी भी तुझे नहीं जानता। मैंने अभी तक तेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दिया है। मैं तब तक नहीं मर सकता, जब तक मैं तुझे अच्छी तरह से नहीं जान लेता।” क्या तुम लोग अब इस बिंदु पर हो? अभी तक नहीं, है न? कुछ लोग परिवार की पीड़ा झेलते हैं, कुछ विवाह की पीड़ा झेलते हैं और कुछ उत्पीड़न सहते हैं, यहाँ तक कि उनके रहने के लिए जगह की भी कमी होती है। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वह किसी और का ही घर होता है, और वे अपने दिल में दर्द महसूस करते हैं। जो दर्द तुम लोग अभी अनुभव कर रहे हो, क्या यह वही दर्द नहीं है जो परमेश्वर ने झेला है? तुम लोग परमेश्वर के साथ पीड़ित हो रहे हो और परमेश्वर मनुष्यों के दुख में साथ दे रहा है। आज मसीह के क्लेश, राज्य और धीरज में तुम सभी लोगों का हिस्सा है, और तुम अंत में महिमा प्राप्त करोगे! यह पीड़ा सार्थक है। क्या ऐसा ही नहीं है? तुम इस इच्छा से रहित नहीं हो सकते। तुम्हें आज पीड़ा का अर्थ समझना चाहिए और इस बात का भी कि तुम इतनी पीड़ा क्यों झेलते हो। तुम्हें सत्य खोजना चाहिए और परमेश्वर की इच्छा की समझ हासिल करनी चाहिए, तब तुममें पीड़ा सहने की इच्छा होगी। अगर तुम परमेश्वर की इच्छा नहीं समझते, और सिर्फ पीड़ा के बारे में सोचते हो, तो जितना अधिक तुम इसके बारे में सोचते हो, यह उतनी ही असुविधाजनक हो जाती है और तुम उतने ही उदास महसूस करते हो, जैसे कि तुम्हारे जीवन का मार्ग समाप्त हो रहा हो। तुम मृत्यु की पीड़ा भोगने लगोगे। अगर तुम अपना हृदय और समस्त प्रयास सत्य में लगाओ और सत्य समझने में सक्षम हो जाओ, तो तुम्हारा हृदय उज्ज्वल हो जाएगा, और तुम आनंद का अनुभव करोगे। तुम जीवन में अपने दिल के भीतर शांति और आनंद पाओगे, और जब बीमारी आएगी या मौत मँडराएगी, तो तुम कहोगे, “मैंने अभी तक सत्य प्राप्त नहीं किया है, इसलिए मैं मर नहीं सकता। मुझे परमेश्वर के लिए अच्छी तरह खपाना चाहिए, अच्छी तरह से परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना चाहिए। मैं अंत में कैसे मरता हूँ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैंने एक संतोषजनक जीवन जी लिया होगा। चाहे कुछ भी हो, मैं अभी मर नहीं सकता। मुझे बने रहना चाहिए और जीना चाहिए।” अब तुम्हें इस मामले में स्पष्टता होनी चाहिए, और तुम्हें इन चीजों से सत्य समझना चाहिए। जब लोगों के पास सत्य होता है, तो उनके पास ताकत होती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनके पास एक अक्षय ऊर्जा होती है जो उनके शरीर को भर देती है। जब उनके पास सत्य होता है, तो उनमें दृढ़ संकल्प होता है। सत्य के बिना लोग सड़ी हुई सब्जियों की तरह नर्म होते हैं; जब उनके पास सत्य होता है, तो वे फौलाद की तरह सख्त हो जाते हैं। चीजें चाहे जितनी भी कड़वी हों, उन्हें जरा भी कड़वी नहीं लगेंगी।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें
आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, उसके कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, उसके परीक्षण उतने अधिक बढ़ते हैं। यदि तुम उससे प्रेम करते हो, तो तुम्हें हर प्रकार के कष्ट झेलने पड़ेंगे—और यदि तुम उससे प्रेम नहीं करते, तब शायद सब-कुछ तुम्हारे लिए सुचारु रूप से चलता रहेगा और तुम्हारे चारों ओर सब-कुछ शांतिपूर्ण होगा। जब तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, तो तुम महसूस करोगे कि तुम्हारे चारों ओर बहुत-कुछ दुर्गम है, और चूँकि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, इसलिए तुम्हारा शोधन किया जाएगा; इसके अलावा, तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ रहोगे और हमेशा महसूस करोगे कि परमेश्वर की इच्छा बहुत बड़ी और मनुष्य की पहुँच से बाहर है। इस सबकी वजह से तुम्हारा शोधन किया जाएगा—क्योंकि तुममें बहुत निर्बलता है, और बहुत-कुछ ऐसा है जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में असमर्थ है, इसलिए तुम्हारा भीतर से शोधन किया जाएगा। फिर भी तुम लोगों को यह स्पष्ट देखना चाहिए कि शुद्धिकरण केवल शोधन के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है। जब शैतान तुम्हें लुभाए, तो तुम्हें कहना चाहिए : “मेरा हृदय परमेश्वर का है, और परमेश्वर ने मुझे पहले ही प्राप्त कर लिया है। मैं तुझे संतुष्ट नहीं कर सकता—मुझे अपना सर्वस्व परमेश्वर को संतुष्ट करने में लगाना चाहिए।” जितना अधिक तुम परमेश्वर को संतुष्ट करते हो, उतना ही अधिक परमेश्वर तुम्हें आशीष देता है, और परमेश्वर के लिए तुम्हारे प्रेम की ताकत भी उतनी ही अधिक हो जाती है; तुममें विश्वास और संकल्प भी उतना ही अधिक होगा, और तुम महसूस करोगे कि परमेश्वर से प्रेम करने में बिताए गए जीवन से बढ़कर कीमती और महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है। यह कहा जा सकता है कि अगर मनुष्य परमेश्वर से प्रेम करता है, तो वह शोक से रहित होगा। यद्यपि ऐसा समय भी होता है, जब तुम्हारी देह निर्बल होती है और कई वास्तविक परेशानियाँ तुम्हें घेर लेती हैं, ऐसे समय तुम सचमुच परमेश्वर पर निर्भर रहोगे, और अपनी आत्मा के भीतर तुम राहत महसूस करोगे, और एक निश्चितता का अनुभव करोगे, और महसूस करोगे कि तुम्हारे पास कुछ है जिस पर तुम निर्भर हो सकते हो। इस तरह, तुम कई परिवेशों पर विजय प्राप्त कर पाओगे, और इसलिए तुम अपनी यातना के कारण परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं करोगे। इसके बजाय तुम गीत गाना, नाचना और प्रार्थना करना चाहोगे, तुम एकत्र होना, संगति करना, परमेश्वर के बारे में विचार करना चाहोगे, और तुम महसूस करोगे कि तुम्हारे चारों ओर जो सारे लोग, मामले और चीजें परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित की गई हैं, वे सब उपयुक्त हैं। यदि तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, तो जिन चीजों पर भी तुम दृष्टि डालोगे, वे सब तुम्हारे लिए दुःखद होंगी, कुछ भी तुम्हारी आँखों के लिए सुखद नहीं होगा; अपनी आत्मा में तुम मुक्त नहीं बल्कि पतित होगे, तुम्हारा हृदय सदैव परमेश्वर के बारे में शिकायत करेगा, और तुम सदैव महसूस करोगे कि तुम बहुत अधिक यातना सहते हो, और कि यह बहुत ही अन्यायपूर्ण है। यदि तुम प्रसन्नता के लिए प्रयास नहीं करते, बल्कि परमेश्वर को संतुष्ट करने और शैतान द्वारा दोषी न ठहराए जाने के लिए प्रयास करते हो, तो ऐसा प्रयास तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करने की बड़ी ताकत देगा। मनुष्य परमेश्वर द्वारा कही गई सारी चीजें पूरी करने में सक्षम है, और वह जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम है—वास्तविकता से संपन्न होने का यही अर्थ है। परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयास उसके वचनों को अभ्यास में लाने के लिए अपने परमेश्वर-प्रेमी हृदय का उपयोग करना है; चाहे जो भी समय हो—तब भी जब दूसरे लोग अशक्त होते हैं—तुम्हारे भीतर परमेश्वर-प्रेमी हृदय होता है, जो बड़ी गहराई से परमेश्वर की लालसा करता है और परमेश्वर को याद करता है। यह वास्तविक आध्यात्मिक कद है। तुम्हारा आध्यात्मिक कद कितना बड़ा है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हारे पास कितनी मात्रा में परमेश्वर-प्रेमी हृदय है, परीक्षा लिए जाने पर तुम अडिग रह सकते हो या नहीं, अपने सामने कोई खास परिवेश आने पर तुम कमजोर तो नहीं पड़ जाते, और अपने भाई-बहनों द्वारा ठुकराए जाने पर तुम अडिग रह पाते हो या नहीं; इनसे आने वाले तथ्य दिखाएँगे कि तुम्हारा परमेश्वर-प्रेमी हृदय कैसा है। परमेश्वर के अधिकांश कार्य से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर सचमुच मनुष्य से प्रेम करता है, हालाँकि मनुष्य की आत्मा की आँखों का पूरी तरह से खुलना अभी बाकी है, और वह परमेश्वर के अधिकांश कार्य और उसकी इच्छा को, और उससे संबंधित बहुत-सी प्यारी चीजों को देखने में असमर्थ है; मनुष्य में परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम बहुत कम है। तुमने इस पूरे समय के दौरान परमेश्वर पर विश्वास किया है, और आज परमेश्वर ने बच निकलने के सारे मार्ग बंद कर दिए हैं। सच कहूँ तो, तुम्हारे पास सही मार्ग अपनाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है, वह सही मार्ग, जिस पर तुम्हें परमेश्वर द्वारा अपने कठोर न्याय और सर्वोच्च उद्धार द्वारा लाया गया है। कठिनाई और शोधन का अनुभव करने के बाद ही मनुष्य जान पाता है कि परमेश्वर प्यारा है। आज तक इसका अनुभव करने के बाद कहा जा सकता है कि मनुष्य परमेश्वर की मनोहरता का एक अंश जान गया है, परंतु यह अभी भी अपर्याप्त है, क्योंकि मनुष्य में बहुत सारी कमियाँ हैं। मनुष्य को परमेश्वर के अद्भुत कार्यों का और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित कष्टों के शोधन का और अधिक अनुभव करना चाहिए। तभी मनुष्य का जीवन स्वभाव बदल सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो
तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि वचनों को अब कह दिया गया है : बाद में, तुम बड़े क्लेश और बड़े दुःख से होकर जाओगे! सिद्ध बनना सरल या आसान बात नहीं है। कम से कम तुममें अय्यूब के समान विश्वास होना चाहिए या शायद उसके विश्वास से भी बड़ा विश्वास। तुम्हें जानना चाहिए कि भविष्य में परीक्षाएँ अय्यूब की परीक्षाओं से बड़ी होंगी, और कि तुम्हें फिर भी लम्बे समय की ताड़ना से होकर जाना अवश्य होगा। क्या यह एक सरल बात है? यदि तुम्हारी क्षमता में सुधार नहीं हो सकता, अगर तुम्हारी बोध क्षमता में कमी है, और अगर तुम बहुत कम जानते हो, तो फिर उस समय तुम्हारे पास कोई साक्षी नहीं होगी, बल्कि तुम उपहास का पात्र बन जाओगे, अर्थात् शैतान के लिए एक खिलौना बन जाओगे। यदि तुम अभी दर्शनों को थामे नहीं रह सकते, तो तुम्हारी कोई नींव नहीं है, और भविष्य में तुम दुत्कार दिए जाओगे! मार्ग का हर भाग चलने के लिए सरल नहीं होता, इसलिए इसे हल्के में न लो। ध्यान से समझो और इस बात की तैयारी करो कि इस मार्ग के अंतिम चरण में सही तरीके से कैसे चलना है। यही वह मार्ग है जिस पर भविष्य में चलना होगा और इसमें सब लोगों को चलना होगा। तुम इस वर्तमान समझ को एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दे सकते, और यह न सोचो कि जो कुछ मैं तुमसे कह रहा हूँ बिल्कुल व्यर्थ है। ऐसा दिन आएगा जब तुम इसका सदुपयोग करोगे—मेरे वचनों को व्यर्थ ही नहीं कहा जा सकता। यह अपने आपको तैयार करने का समय है, यह भविष्य का मार्ग तैयार करने का समय है। तुम्हें उस मार्ग को तैयार करना चाहिए जिसमें तुम्हें बाद में चलना है; तुम्हें इस बात के प्रति चिंतित और व्याकुल होना चाहिए कि बाद में तुम कैसे स्थिर खड़े रह पाओगे और भविष्य के मार्ग के लिए कैसे अच्छी तरह से तैयारी कर पाओगे। पेटू और आलसी मत बनो! तुम्हें अपनी जरुरत की सब चीजों को प्राप्त करने हेतु अपने समय का सर्वोत्तम इस्तेमाल करने के लिए सब कुछ करना होगा। मैं तुम्हें सब कुछ दे रहा हूँ ताकि तुम समझ जाओ। तुम लोगों ने अपनी—अपनी आँखों से देखा है कि तीन वर्षों से भी कम समय में मैंने बहुत सी बातें कहीं है और बहुत सा कार्य किया है। इस रीति से कार्य करने का एक पहलू यह है कि लोगों में बहुत घटी है, और दूसरा पहलू यह है कि समय बहुत कम है और इसमें और देरी नहीं की जा सकती। तुम जिस प्रकार से इसकी कल्पना करते हो, उसके आधार पर लोगों को गवाही देने और उपयोग में लाये जाने के पहले पूर्ण आंतरिक स्पष्टता पानी होगी—क्या यह बहुत धीमा नहीं है? अतः मुझे कितनी दूर तुम्हारे साथ चलना होगा? यदि तुम चाहते हो मैं तब तक तुम्हारे साथ चलूँ जब तक कि बूढ़ा न हो जाऊँ, तो यह असंभव है! बड़े क्लेश से होकर जाने के द्वारा सब लोगों के भीतर सच्ची समझ विकसित हो जाएगी। ये कार्य के चरण हैं। एक बार जब तुम उन दर्शनों को समझ लेते हो जो आज पाए जाते हैं और सच्ची क्षमता को प्राप्त कर लेते हो, तो भविष्य में चाहे तुम जैसी भी कठिनाइयों से होकर गुजरो वे तुम पर जयवंत नहीं होंगी—तुम उनका सामना कर पाओगे। जब मैं कार्य के इस अंतिम चरण को पूरा कर लूँगा, और अंतिम वचनों को भी कह लूँगा, तो भविष्य में लोगों को अपने—अपने मार्ग पर चलना होगा। यह पहले कहे वचनों को पूरा करेगा : पवित्र आत्मा के पास हर व्यक्ति के लिए आदेश है और हर व्यक्ति के द्वारा किया जाने वाला कार्य है। भविष्य में, प्रत्येक व्यक्ति पवित्र आत्मा की अगुवाई के द्वारा उस मार्ग पर चलेगा जिस पर उन्हें चलना चाहिए। क्लेश के समय में होकर जाते हुए कौन दूसरों को संभाल पाएगा? हरेक व्यक्ति के अपने दुःख हैं, और हरेक व्यक्ति की अपनी क्षमता है। किसी की क्षमता किसी दूसरे के जैसी नहीं होती। पति अपनी पत्नियों को नहीं संभालेंगे और माता—पिता अपने बच्चों को नहीं संभालेंगे; कोई किसी को नहीं संभाल पाएगा। यह आज के जैसा नहीं है—पारस्परिक संभाल और सहयोग आज भी संभव है। वह ऐसा समय होगा जब हर प्रकार के व्यक्ति का खुलासा किया जाएगा। कहने का अर्थ यह है कि जब परमेश्वर चरवाहों को मारेगा तो झुंड की भेड़ें तितर—बितर हो जाएँगी, और उस समय तुम लोगों के पास कोई सच्चा अगुवा नहीं होगा। लोगों में फूट पड़ जाएगी—यह आज के जैसा नहीं होगा, जहाँ तुम लोग एक सभा के रूप में एक साथ एकत्रित हो सकते हो। बाद में, जिनके पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं होगा वे अपने वास्तविक रंग को दिखाएँगे। पति अपनी पत्नियों को बेच देंगे, पत्नियाँ अपने पतियों को बेच देंगी, बच्चे अपने माता—पिता को बेच देंगे, माता—पिता अपने बच्चों को सताएँगे—मानवीय हृदय का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता! केवल यह किया जा सकता है कि एक व्यक्ति उसी को थामे रहे जो उसके पास है, और मार्ग के अंतिम चरण में अच्छी तरह से चले। अभी तुम लोग इसे स्पष्टता से नहीं देखते और तुम सब निकटदर्शी हो। कार्य के इस चरण में से सफलतापूर्वक होकर जाना कोई सरल कार्य नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए
यदि तुम यह स्वीकारते हो कि तुम सृजित प्राणी हो, तो तुम्हें सुसमाचार फैलाने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करने और अपना कर्तव्य समुचित रूप से निभाने की खातिर कष्ट भुगतने और कीमत चुकाने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। यह कीमत कोई शारीरिक बीमारी या कठिनाई या बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न या सांसारिक लोगों की गलतफहमियाँ, और साथ ही वे क्लेश सहना भी हो सकती है जिनसे सुसमाचार फैलाते समय व्यक्ति गुजरता है : जैसे विश्वासघात किया जाना, पिटाई और डाँट-फटकार किया जाना; निंदा किया जाना—यहाँ तक कि घेरकर हमला किया जाना और मृत्यु के खतरे में डाल दिया जाना। सुसमाचार फैलाने के दौरान, यह संभव है कि परमेश्वर का कार्य पूरा होने से पहले ही तुम्हारी मृत्यु हो जाए, और तुम परमेश्वर की महिमा का दिन देखने के लिए जीवित न बचो। तुम्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। इसका उद्देश्य तुम लोगों को भयभीत करना नहीं है; यह सच्चाई है। अब जब मैंने यह स्पष्ट कर दिया है, और तुमने इसे समझ लिया है, यदि अब भी तुम लोगों की यही आकांक्षा है और तुम सुनिश्चित हो कि यह बदलेगी नहीं और तुम मृत्यु तक वफादार रहोगे, तो यह सिद्ध करता है कि तुम्हारा एक निश्चित आध्यात्मिक कद है। यह मानकर मत चलो कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों वाले इन समुद्रपार राष्ट्रों में सुसमाचार का प्रसार खतरे से खाली होगा, और तुम जो करोगे वह सब कुछ सुचारू ढंग से होता जाएगा, यह कि इन सभी को परमेश्वर की आशीष मिलेगी और उसके महान सामर्थ्य और अधिकार का साथ मिलेगा। यह मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं की एक बात है। फरीसी भी परमेश्वर में विश्वास करते थे, फिर भी उन्होंने देहधारी परमेश्वर को सलीब पर चढ़ा दिया। तो मौजूदा धार्मिक संसार देहधारी परमेश्वर के साथ कौन-सी बुरी चीजें करने में सक्षम है? उन्होंने बहुत-सी बुरी चीजें की हैं—परमेश्वर की आलोचना करना, परमेश्वर की निंदा करना, परमेश्वर का तिरस्कार करना—ऐसी कोई भी बुरी चीज नहीं है जो वे करने में सक्षम नहीं हैं। भूलो मत कि जिन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाकर मार डाला, वे विश्वासी थे। केवल उन्हीं के पास इस प्रकार का काम करने का मौका था। अविश्वासी इन चीजों की परवाह नहीं करते थे। ये विश्वासी ही थे जिन्होंने प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाकर मार डालने के लिए सरकार के साथ साँठ-गाँठ की थी। इतना ही नहीं, प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उनकी भर्त्सना की गई, पीटा गया, डाँटा-फटकारा गया और मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था और उन्हें इस संसार के लोगों ने ठुकरा दिया था—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के निर्णायक अंत की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और भर्त्सना थी, या यह उसकी योजना और आशीष था? यह दोनों ही नहीं था। यह क्या था? अब लोग अत्यधिक मानसिक व्यथा के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, “इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?” वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उनके जीवन को, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि समस्त मानवजाति के लिए उसने जो छुटकारे का कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही समझ और प्रवृत्ति सृजित प्राणियों की होनी चाहिए। यही अंतिम सत्य है, जिसे सुसमाचार फैलाने और अपने कर्तव्य के निर्वहन में हर किसी को समझना चाहिए—देहधारी परमेश्वर द्वारा अपना कार्य करने और मानवजाति के उद्धार के सुसमाचार को फैलाने और उसकी गवाही देने के लिए इंसान को अपने जीवन की कीमत चुकानी ही होगी। यदि तुम्हारे मन में यह अभिलाषा है, यदि तुम इस तरह गवाही दे सकते हो, तो बहुत अच्छी बात है। यदि तुम्हारे मन में अभी तक इस प्रकार की अभिलाषा नहीं है, तो तुम्हें इतना तो करना ही चाहिए कि अपने सामने उपस्थित इस दायित्व और कर्तव्य को अच्छी तरह पूरा करो, और बाकी सब परमेश्वर को सौंप दो। शायद तब, ज्यों-ज्यों महीने और वर्ष बीतेंगे और तुम्हारे अनुभव और आयु में बढ़ोतरी होगी, और सत्य की तुम्हारी समझ गहरी होती जाएगी, तो तुम्हें एहसास होगा कि अपने जीवन के अंतिम पल तक भी, परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने के कार्य के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देना तुम्हारा दायित्व और जिम्मेदारी है।
अब इन विषयों पर चर्चा शुरू करने का सही समय है क्योंकि राज्य के सुसमाचार का प्रसार शुरू हो चुका है। इससे पहले, व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में, कुछ प्राचीन पैगंबरों और संतों ने सुसमाचार फैलाने में अपना जीवन न्योछावर कर दिया था, तो अंत के दिनों में पैदा हुए लोग भी इस मकसद के लिए अपना जीवन न्योछावर कर सकते हैं। यह कोई नई या अचानक हुई बात नहीं है, यह कोई अतिशय आवश्यकता भी नहीं है। यह वह कर्तव्य है जिसे सृजित प्राणियों को निभाना और पूरा करना चाहिए। यह सत्य है; यह सर्वोच्च सत्य है। अगर तुम सिर्फ यह नारा लगाते हो कि तुम परमेश्वर के लिए क्या करना चाहते हो, तुम अपना कर्तव्य कैसे पूरा करना चाहते हो, और तुम परमेश्वर के लिए खुद को कितना खपाना चाहते हो, तो यह बेकार है। जब वास्तविकता तुम्हारे सामने आएगी, जब तुमसे अपना जीवन बलिदान करने को कहा जाएगा, तो क्या तुम अंतिम क्षण में शिकायत करोगे, क्या तुम इच्छुक होगे, क्या तुम वास्तव में समर्पण करोगे? यह तुम्हारे आध्यात्मिक कद की परीक्षा है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है
राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात् मनुष्य को शुद्धिकरण और क्लेश का भागी बनाया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान गवाही दे सकते हैं, वे वो लोग हैं जिन्हें अंततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजेता हैं। इस क्लेश के दौरान मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस शुद्धिकरण को स्वीकार करे, और यह शुद्धिकरण परमेश्वर के कार्य की अंतिम घटना है। यह अंतिम बार है कि परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को शुद्ध किया जाएगा, और जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन सभी को यह अंतिम परीक्षा स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें यह अंतिम शुद्धिकरण स्वीकार करना चाहिए। जो लोग क्लेश से व्याकुल हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किंतु जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं, वे अंततः डटे रहेंगे; ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता है, और जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, इन विजयी लोगों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा, और ये फिर भी अपनी गवाही में असफल हुए बिना सत्य को अभ्यास में लाएँगे। ये वे लोग हैं, जो अंततः बड़े क्लेश से उभरेंगे। भले ही आपदा को अवसर में बदलने वाले आज भी मुफ़्तख़ोरी कर सकते हों, किंतु अंतिम क्लेश से बच निकलने में कोई सक्षम नहीं है, और अंतिम परीक्षा से कोई नहीं बच सकता। जो लोग विजय प्राप्त करते हैं, उनके लिए ऐसा क्लेश जबरदस्त शुद्धिकरण हैं; किंतु आपदा को अवसर में बदलने वालों के लिए यह पूरी तरह से उन्हें बाहर निकाले जाने का कार्य है। जिनके हृदय में परमेश्वर है, उनकी चाहे किसी भी प्रकार से परीक्षा क्यों न ली जाए, उनकी निष्ठा अपरिवर्तित रहती है; किंतु जिनके हृदय में परमेश्वर नहीं है, वे अपने देह के लिए परमेश्वर का कार्य लाभदायक न रहने पर परमेश्वर के बारे में अपना दृष्टिकोण बदल लेते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जो अंत में डटे नहीं रहेंगे, जो केवल परमेश्वर के आशीष खोजते हैं और उनमें परमेश्वर के लिए अपने आपको व्यय करने और उसके प्रति समर्पित होने की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे सभी अधम लोगों को परमेश्वर का कार्य समाप्ति पर आने पर बहिष्कृत कर दिया जाएगा, और वे किसी भी प्रकार की सहानुभूति के योग्य नहीं हैं। जो लोग मानवता से रहित हैं, वे सच में परमेश्वर से प्रेम करने में अक्षम हैं। जब परिवेश सही-सलामत और सुरक्षित होता है, या जब लाभ कमाया जा सकता है, तब वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी रहते हैं, किंतु जब जो वे चाहते हैं, उसमें कमी-बेशी की जाती है या अंततः उसके लिए मना कर दिया जाता है, तो वे तुरंत बगावत कर देते हैं। यहाँ तक कि एक ही रात के अंतराल में वे अपने कल के उपकारियों के साथ अचानक बिना किसी तुक या तर्क के अपने घातक शत्रु के समान व्यवहार करते हुए, एक मुस्कुराते, “उदार-हृदय” व्यक्ति से एक कुरूप और जघन्य हत्यारे में बदल जाते हैं। यदि इन पिशाचों को निकाला नहीं जाता, तो ये पिशाच बिना पलक झपकाए हत्या कर देंगे, तो क्या वे एक छिपा हुआ ख़तरा नहीं बन जाएँगे? विजय के कार्य के समापन के बाद मनुष्य को बचाने का कार्य हासिल नहीं किया जाता। यद्यपि विजय का कार्य समाप्ति पर आ गया है, किंतु मनुष्य को शुद्ध करने का कार्य नहीं; वह कार्य केवल तभी समाप्त होगा, जब मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध कर दिया जाएगा, जब परमेश्वर के प्रति वास्तव में समर्पण करने वाले लोगों को पूर्ण कर दिया जाएगा, और जब अपने हृदय में परमेश्वर से रहित छद्मवेशियों को सफा कर दिया जाएगा। जो लोग परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण में उसे संतुष्ट नहीं करते, उन्हें पूरी तरह से बाहर निकाल दिया जाएगा, और जिन्हें बाहर निकाल दिया जाता है, वे शैतान के हो जाते हैं। चूँकि वे परमेश्वर को संतुष्ट करने में अक्षम हैं, इसलिए वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं, और भले ही वे लोग आज परमेश्वर का अनुसरण करते हों, फिर भी इससे यह साबित नहीं होता कि ये वो लोग हैं, जो अंततः बने रहेंगे। “जो लोग अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करेंगे, वे उद्धार प्राप्त करेंगे,” इन वचनों में “अनुसरण” का अर्थ क्लेश के बीच डटे रहना है। आज बहुत-से लोग मानते हैं कि परमेश्वर का अनुसरण करना आसान है, किंतु जब परमेश्वर का कार्य समाप्त होने वाला होगा, तब तुम “अनुसरण करने” का असली अर्थ जानोगे। सिर्फ इस बात से कि जीत लिए जाने के पश्चात् तुम आज भी परमेश्वर का अनुसरण करने में समर्थ हो, यह प्रमाणित नहीं होता कि तुम उन लोगों में से एक हो, जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा। जो लोग परीक्षणों को सहने में असमर्थ हैं, जो क्लेशों के बीच विजयी होने में अक्षम हैं, वे अंततः डटे रहने में अक्षम होंगे, और इसलिए वे बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ होंगे। जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर सनक के आधार पर किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि “गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता”। जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है। अपने विभिन्न कार्यों और गवाहियों के आधार पर राज्य के भीतर विजेता लोग याजकों और अनुयायियों के रूप में सेवा करेंगे, और जो क्लेश के बीच विजेता होंगे, वे राज्य के भीतर याजकों का एक निकाय बन जाएँगे। याजकों का निकाय तब बनाया जाएगा, जब संपूर्ण विश्व में सुसमाचार का कार्य समाप्ति पर आ जाएगा। जब वह समय आएगा, तब जो मनुष्य के द्वारा किया जाना चाहिए, वह परमेश्वर के राज्य के भीतर अपने कर्तव्य का निष्पादन होगा, और राज्य के भीतर परमेश्वर के साथ उसका जीना होगा। याजकों के निकाय में महायाजक और याजक होंगे, और शेष लोग परमेश्वर के पुत्र और उसके लोग होंगे। यह सब क्लेश के दौरान परमेश्वर के प्रति उनकी गवाहियों से निर्धारित होता है, ये ऐसी उपाधियाँ नहीं हैं जो सनक के आधार पर दी जाती हैं। जब मनुष्य की हैसियत स्थापित कर दी जाएगी, तो परमेश्वर का कार्य रुक जाएगा, क्योंकि प्रत्येक को उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत कर दिया जाएगा और उसकी मूल स्थिति में लौटा दिया जाएगा, और यह परमेश्वर के कार्य के समापन का चिह्न है, यह परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के अभ्यास का अंतिम परिणाम है, और यह परमेश्वर के कार्य के दर्शनों और मनुष्य के सहयोग का स्फटिकवत् ठोस रूप है। अंत में, मनुष्य परमेश्वर के राज्य में विश्राम पाएगा, और परमेश्वर भी विश्राम करने के लिए अपने निवास-स्थान में लौट जाएगा। यह परमेश्वर और मनुष्य के बीच 6,000 वर्षों के सहयोग का अंतिम परिणाम होगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास
राज्य मनुष्यों के मध्य विस्तार पा रहा है, यह मनुष्यों के मध्य बन रहा है और यह मनुष्यों के मध्य खड़ा हो रहा है; ऐसी कोई भी शक्ति नहीं है जो मेरे राज्य को नष्ट कर सके। आज के राज्य में जो मेरे लोग हैं, उनमें से ऐसा कौन है जो मानवों में मानव नहीं है? तुम लोगों में से कौन मानवीय स्थिति से बाहर है? जब भीड़ के सामने मेरे प्रारम्भ बिन्दु का ऐलान किया जायेगा, तो लोग कैसे प्रतिक्रिया देंगे? तुम सबने अपनी आंखों से मानवजाति की दशा देखी है; निश्चय ही तुम लोग अब भी इस संसार में हमेशा के लिए बने रहने की आशा नहीं कर रहे हो? अब मैं अपने लोगों के मध्य चल रहा हूँ, और उनके मध्य रह रहा हूँ। आज जो लोग मेरे लिए वास्तविक प्रेम रखते हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। धन्य हैं वे लोग जो मुझे समर्पित हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में रहेंगे। धन्य हैं वे लोग जो मुझे जानते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में शक्ति प्राप्त करेंगे। धन्य हैं वे जो मुझे खोजते हैं, वे निश्चय ही शैतान के बंधनों से स्वतंत्र होंगे और मेरे आशीषों का आनन्द लेंगे। धन्य हैं वे लोग जो खुद की इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे राज्य की प्रचुरता पाएंगे। जो लोग मेरी खातिर दौड़-भाग करते हैं उन्हें मैं याद रखूंगा, जो लोग मेरे लिए व्यय करते हैं, मैं उन्हें आनन्द से गले लगाऊंगा, और जो लोग मुझे भेंट देते हैं, मैं उन्हें आनन्द दूंगा। जो लोग मेरे वचनों में आनन्द प्राप्त करते हैं, उन्हें मैं आशीष दूंगा; वे निश्चय ही ऐसे खम्भे होंगे जो मेरे राज्य में शहतीर को थामेंगे, वे निश्चय ही मेरे घर में अतुलनीय प्रचुरता को प्राप्त करेंगे और उनके साथ कोई तुलना नहीं कर पाएगा। क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19
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