6. परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बीच का पारस्परिक संबंध

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)

अंत के दिनों का कार्य तीनों चरणों में से अंतिम चरण है। यह एक अन्य नए युग का कार्य है और संपूर्ण प्रबंधन-कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता। छह हज़ार वर्षीय प्रबंधन-योजना कार्य के तीन चरणों में विभाजित है। कोई भी एक चरण अकेला तीनों युगों के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, बल्कि संपूर्ण कार्य के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। यहोवा नाम परमेश्वर के संपूर्ण स्वभाव का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। यह तथ्य कि उसने व्यवस्था के युग में अपना कार्य किया था, यह प्रमाणित नहीं करता कि परमेश्वर केवल व्यवस्था के अंतर्गत ही परमेश्वर हो सकता है। यहोवा ने मनुष्य से मंदिर और वेदियाँ बनाने के लिए कहते हुए उसके लिए व्यवस्थाएँ निर्धारित कीं और उसे आज्ञाएँ दीं; जो कार्य उसने किया, वह केवल व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है। उसके द्वारा किया गया यह कार्य यह प्रमाणित नहीं करता कि केवल वही परमेश्वर, परमेश्वर है जो मनुष्य से व्यवस्था बनाए रखने के लिए कहता है, या वह बस मंदिर में परमेश्वर है, या बस वेदी के सामने परमेश्वर है। ऐसा कहना झूठ होगा। व्यवस्था के अधीन किया गया कार्य केवल एक युग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। इसलिए, यदि परमेश्वर ने केवल व्यवस्था के युग में ही कार्य किया होता, तो मनुष्य ने यह कहते हुए परमेश्वर को निम्नलिखित परिभाषा में सीमित कर दिया होता, "परमेश्वर मंदिर में ही परमेश्वर है और परमेश्वर की सेवा करने के लिए हमें याजकीय वस्त्र पहनने चाहिए और मंदिर में प्रवेश करना चाहिए।" यदि अनुग्रह के युग का कार्य कभी न किया जाता और व्यवस्था का युग ही वर्तमान समय तक जारी रहता, तो मनुष्य यह नहीं जान पाता कि परमेश्वर दयालु और प्रेमपूर्ण भी है। यदि व्यवस्था के युग में कोई कार्य न किया जाता और केवल अनुग्रह के युग में ही कार्य किया जाता, तो मनुष्य बस इतना ही जान पाता कि परमेश्वर मनुष्य को छुटकारा दे सकता है और उसके पाप क्षमा कर सकता है। वह केवल इतना ही जान पाता कि परमेश्वर पवित्र और निर्दोष है, और वह मनुष्य के लिए अपना बलिदान करने और सलीब पर चढ़ने में सक्षम है। मनुष्य केवल इतना ही जान पाता और उसे अन्य किसी चीज़ की कोई समझ न होती। अतः प्रत्येक युग परमेश्वर के स्वभाव के एक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। जहाँ तक इस बात का संबंध है कि व्यवस्था के युग में किन पहलुओं का प्रतिनिधित्व किया जाता है, अनुग्रह के युग में किन पहलुओं का, और इस वर्तमान युग में किन पहलुओं का : केवल तीनों युगों को पूर्ण एक में मिलाने पर ही वे परमेश्वर के स्वभाव की समग्रता को प्रकट कर सकते हैं। केवल इन तीनों चरणों को जान लेने के बाद ही मनुष्य इसे पूरी तरह से समझ सकता है। तीनों चरणों में से एक भी चरण छोड़ा नहीं जा सकता। कार्य के इन तीनों चरणों को जान लेने के बाद ही तुम परमेश्वर के स्वभाव को उसकी संपूर्णता में देखोगे। यह तथ्य कि परमेश्वर ने व्यवस्था के युग में अपना कार्य किया, यह प्रमाणित नहीं करता कि वह केवल व्यवस्था के अधीन ही परमेश्वर है, और इस तथ्य का कि उसने छुटकारे का कार्य किया, यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर सदैव मानवजाति को छुटकारा देगा। ये सभी मनुष्य द्वारा निकाले गए निष्कर्ष हैं। अनुग्रह के युग के समाप्ति पर आ जाने पर तुम यह नहीं कह सकते कि परमेश्वर केवल सलीब से ही सबंध रखता है, और केवल सलीब ही परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले उद्धार का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसा करना परमेश्वर को परिभाषित करना होगा। वर्तमान चरण में परमेश्वर मुख्य रूप से वचन का कार्य कर रहा है, परंतु इससे तुम यह नहीं कह सकते कि परमेश्वर मनुष्य के प्रति कभी दयालु नहीं रहा है और वह बस ताड़ना और न्याय लाया है। अंत के दिनों का कार्य यहोवा और यीशु के कार्य को और उन सभी रहस्यों को प्रकट करता है, जिन्हें मनुष्य द्वारा समझा नहीं गया था, ताकि मानवजाति की मंज़िल और अंत प्रकट किया जा सके और मानवजाति के बीच उद्धार का समस्त कार्य समाप्त हो सके। अंत के दिनों में कार्य का यह चरण सभी चीज़ों को समाप्ति की ओर ले आता है। मनुष्य द्वारा समझे न गए सभी रहस्यों को प्रकट किया जाना आवश्यक है, ताकि मनुष्य उन्हें उनकी गहराई तक जान सकें और उनके हृदयों में उनकी एक पूरी तरह से स्पष्ट समझ उत्पन्न हो सके। केवल तभी मानवजाति को प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है। केवल छह हज़ार वर्षीय प्रबंधन-योजना पूर्ण होने के बाद ही मनुष्य परमेश्वर का स्वभाव उसकी संपूर्णता में समझ पाएगा, क्योंकि तब उसकी प्रबंधन-योजना समाप्ति पर आ गई होगी।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)

आज के कार्य ने अनुग्रह के युग के कार्य को आगे बढ़ाया है; अर्थात्, समस्त छह हजार सालों की प्रबंधन योजना का कार्य आगे बढ़ा है। यद्यपि अनुग्रह का युग समाप्त हो गया है, किन्तु परमेश्वर के कार्य ने प्रगति की है। मैं क्यों बार-बार कहता हूँ कि कार्य का यह चरण अनुग्रह के युग और व्यवस्था के युग पर आधारित है? क्योंकि आज का कार्य अनुग्रह के युग में किए गए कार्य की निरंतरता और व्यवस्था के युग में किए कार्य की प्रगति है। तीनों चरण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हुए हैं और श्रृंखला की हर कड़ी निकटता से अगली कड़ी से जुड़ी है। मैं यह भी क्यों कहता हूँ कि कार्य का यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित है? मान लो, यह चरण यीशु द्वारा किए गए कार्य पर आधारित न होता, तो फिर इस चरण में क्रूस पर चढ़ाए जाने का कार्य फिर से करना होता, और पहले किए गए छुटकारे के कार्य को फिर से करना पड़ता। यह अर्थहीन होता। इसलिए, ऐसा नही है कि कार्य पूरी तरह समाप्त हो चुका है, बल्कि युग आगे बढ़ गया है, और कार्य के स्तर को पहले से अधिक ऊँचा कर दिया गया है। यह कहा जा सकता है कि कार्य का यह चरण व्यवस्था के युग की नींव और यीशु के कार्य की चट्टान पर निर्मित है। परमेश्वर का कार्य चरण-दर-चरण निर्मित किया जाता है, और यह चरण कोई नई शुरुआत नहीं है। सिर्फ तीनों चरणों के कार्य के संयोजन को ही छह हजार सालों की प्रबंधन योजना माना जा सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने

कार्य का अंतिम चरण अकेला नहीं होता है, बल्कि यह उस संपूर्ण का हिस्सा है जो पिछले दो चरणों के साथ मिलकर बनता है, कहने का अर्थ है कि कार्य के तीनों चरणों में से केवल एक को करके उद्धार के समस्त कार्य को पूरा करना असंभव है। भले ही कार्य का अंतिम चरण मनुष्य को पूरी तरह से बचाने में समर्थ है, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि केवल इसी एक चरण को इसी के दम पर करना आवश्यक है, और यह कि कार्य के पिछले दो चरण मनुष्यों को शैतान के प्रभाव से बचाने के लिए आवश्यक नहीं हैं। इन तीन चरणों में से किसी भी एक चरण को ही एकमात्र ऐसा दर्शन नहीं ठहराया जा सकता है जिसे समस्त मानवजाति को जानना होगा, क्योंकि उद्धार के कार्य की संपूर्णता कार्य के तीन चरण हैं न कि उनमें से कोई एक चरण। जब तक उद्धार का कार्य पूर्ण नहीं होगा तब तक परमेश्वर का प्रबंधन का कार्य पूरी तरह से समाप्त नहीं हो पाएगा। परमेश्वर का अस्तित्व, स्वभाव और बुद्धि उद्धार के कार्य की संपूर्णता में व्यक्त होते हैं, वे मनुष्य पर बिलकुल आरंभ में प्रकट नहीं होते हैं, बल्कि उद्धार के कार्य में धीरे-धीरे व्यक्त किए जाते हैं। उद्धार के कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर के स्वभाव के एक भाग को और उसके अस्तित्व के एक भाग को व्यक्त करता है; कार्य का कोई एक चरण प्रत्यक्षतः और पूर्णतः परमेश्वर के अस्तित्व की संपूर्णता को व्यक्त नहीं कर सकता है। इसलिए, उद्धार का कार्य केवल तभी पूरी तरह से संपन्न हो सकता है जब कार्य के ये तीनों चरण पूरे हो जाते हैं, और इसीलिए परमेश्वर की संपूर्णता का मनुष्य का ज्ञान परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों से अलग नहीं किया जा सकता। कार्य के एक चरण से मनुष्य जो प्राप्त करता है वह सिर्फ परमेश्वर का वह स्वभाव है जो उसके कार्य के सिर्फ एक भाग में व्यक्त होता है। यह उस स्वभाव और अस्तित्व का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है जो इससे पहले या बाद के चरणों में व्यक्त होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानवजाति को बचाने का कार्य सीधे एक ही अवधि के दौरान या एक ही स्थान पर समाप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि भिन्न-भिन्न समयों और स्थानों पर मनुष्य के विकास के स्तरों के अनुसार यह धीरे-धीरे अधिक गहरा होता जाता है। यह वह कार्य है जो चरणों में किया जाता है, और एक ही चरण में पूरा नहीं होता है। इसलिए, परमेश्वर की संपूर्ण बुद्धि एक अकेले चरण के बजाय तीन चरणों में एक ठोस रूप लेती है। उसका संपूर्ण अस्तित्व और उसकी संपूर्ण बुद्धि इन तीन चरणों में व्यक्त होते हैं, और प्रत्येक चरण में उसके अस्तित्व का समावेश है और प्रत्येक चरण उसके कार्य की बुद्धिमत्ता का अभिलेख है। ... कार्य के तीनों चरणों में से प्रत्येक चरण पूर्ववर्ती चरण की बुनियाद पर पूरा किया जाता है; इसे स्वतंत्र रूप से, उद्धार के कार्य से पृथक नहीं किया जाता है। यद्यपि किए गए कार्य और युग में काफी बड़े अंतर हैं, पर इसके मूल में मानवजाति का उद्धार ही है, और उद्धार के कार्य का प्रत्येक चरण पिछले चरण से ज्यादा गहरा होता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना का कार्य व्यक्तिगत रूप से स्वयं परमेश्वर द्वारा किया जाता है। प्रथम चरण—संसार का सृजन—परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था, और यदि ऐसा न किया जाता, तो कोई भी मनुष्य का सृजन कर पाने में सक्षम न हुआ होता; दूसरा चरण संपूर्ण मानव-जाति के छुटकारे का था, और उसे भी देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से कार्यान्वित किया गया था; तीसरा चरण स्वत: स्पष्ट है : परमेश्वर के संपूर्ण कार्य के अंत को स्वयं परमेश्वर द्वारा किए जाने की और भी अधिक आवश्यकता है। संपूर्ण मानव-जाति के छुटकारे, उस पर विजय पाने, उसे प्राप्त करने, और उसे पूर्ण बनाने का समस्त कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। यदि वह व्यक्तिगत रूप से इस कार्य को न करता, तो मनुष्य द्वारा उसकी पहचान नहीं दर्शाई जा सकती थी, न ही उसका कार्य मनुष्य द्वारा किया जा सकता था। शैतान को हराने, मानव-जाति को प्राप्त करने, और मनुष्य को पृथ्वी पर एक सामान्य जीवन प्रदान करने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से मनुष्य की अगुआई करता है और व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच कार्य करता है; अपनी संपूर्ण प्रबधंन योजना के वास्ते और अपने संपूर्ण कार्य के लिए उसे व्यक्तिगत रूप से इस कार्य को करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

कार्य के तीनों चरण एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए थे; यही सबसे महान दर्शन है और यह परमेश्वर को जानने का एकमात्र मार्ग है। कार्य के तीनों चरण केवल स्वयं परमेश्वर द्वारा ही किए गए हो सकते हैं, और कोई भी मनुष्य इस प्रकार का कार्य उसकी ओर से नहीं कर सकता है—कहने का तात्पर्य है कि आरंभ से लेकर आज तक केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना कार्य कर सकता था। यद्यपि परमेश्वर के कार्य के तीनों चरण विभिन्न युगों और स्थानों में किए गए हैं, और यद्यपि प्रत्येक का कार्य भी अलग-अलग है, किंतु यह सब कार्य एक ही परमेश्वर द्वारा किया गया है। सभी दर्शनों में, यह सबसे महान दर्शन है जो मनुष्य को जानना चाहिए, और यदि यह पूरी तरह से मनुष्य के द्वारा समझा जा सके, तो वह अडिग रहने में समर्थ होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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