घर वापसी
"परमेश्वर का लबालब प्यार मिलता है इंसान को उदारता से, उसके आसपास ही है प्यार परमेश्वर का, परमेश्वर का। मासूम, निर्मल, किसी भी बंधन से बेफिक्र इंसान, रहता है आनंदित परमेश्वर की नज़र में। ... गर ज़मीर और इंसानियत है तेरे अंदर, तो महसूस करेगा स्नेह, परवाह और प्यार परमेश्वर का तू, महसूस करेगा खुशी से धन्य ख़ुद को तू" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये")। जब भी मैं परमेश्वर के वचन का यह भजन गाती हूँ, मेरे लिए अपने अन्दर उमड़ते जज़्बातों पर क़ाबू पाना मुश्किल हो जाता है। इसकी वजह यह है कि मैंने एक बार परमेश्वर को त्याग दिया था और उसके खि़लाफ़ विद्रोह कर दिया था। मैं अपने घर का रास्ता पाने में असमर्थ एक भटके हुए मेमने की तरह थी, और यह परमेश्वर का अटल प्रेम ही था जो मुझे परमेश्वर के घर वापस ले गया था। मैं इस लेख में अपने भाइयों और बहनों, साथ ही उन दोस्तों के साथ, जो अभी तक परमेश्वर की ओर उन्मुख नहीं हुए हैं, परमेश्वर के घर वापस लौटने के अपने अनुभव में साझा करना चाहती हूँ।
मैं बचपन में हमेशा डरी हुई रहती थी क्योंकि मेरी माँ और पिता हमेशा झगड़ते रहते थे। जब मैंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी कर ली, तो मेरी माँ एक पड़ोसी के आग्रह पर प्रभु यीशु में विश्वास करने लगी थी, और मैं उसके साथ कलीसिया जाया करती थी। उसके बाद से मैं जानने लगी थी कि परमेश्वर सारे रचे गये प्राणियों का प्रभु है, और मानव-जाति का पाप से उद्धार करने, मनुष्य के लिए पाप की बलि बनाये जाने की ख़ातिर देहधारी परमेश्वर स्वयं सूली पर लटका दिया गया था—मनुष्य के प्रति परमेश्वर का प्रेम इतना महान है! प्रभु के प्रेम से प्रेरणा पाकर मैंने पूरी ईमानदारी से प्रभु में विश्वास करने का और उसके लिए उसके प्रेम का प्रतिदान करने का निश्चय कर लिया, और इस तरह मुझे अपने जीवन की दिशा और प्रयोजन हासिल हुए। उसके बाद, मैं अक्सर समागमों में जाने लगी, धर्मग्रन्थ पढ़ने लगी, और प्रभु की सराहना करने लगी, और जैसे-जैसे समय बीतता गया मैं सुखी महसूस करने लगी। ख़ासतौर से जब मैंने बाइबल में पढ़ा कि अन्त के दिनों में प्रभु एक बादल पर सवार होकर फिर से आएगा और हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा, तो मेरा हृदय और भी ज़्यादा उम्मीद से भर उठा। इसके अलावा, समागम के दौरान पादरी अक्सर हमारे सामने धर्मग्रन्थ के इस पद की विस्तार से व्याख्या करते थे: "हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा" (प्रेरितों 1:11)। मुझे और भी यक़ीन हो गया कि प्रभु यीशु हमें हमारे स्वर्गिक घर में ले जाने के लिए एक सफ़ेद बादल पर सवार होकर उतरेंगे!
2005 में, मेरी एक कोरियाई से मुलाक़ात हुई जो मेरा प्रेमी बन गया और मैं उसके साथ कोरिया चली गयी। भाषा की अड़चन की वजह से मैंने किसी प्रवासी चीनी कलीसिया को तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह मुझे मिल नहीं सकी, और इसलिए मेरी आत्मा लगातार कमज़ोर होती गयी। अनजाने ही परमेश्वर से मेरी दूरी बढ़ती गयी। हमने शादी कर ली, लेकिन हमारे बीच सांस्कृतिक दूरी इतनी ज़्यादा थी कि हमें साथ रहना असम्भव हो गया, और बहुत जल्दी ही हमारा तलाक हो गया। मेरे वैवाहिक जीवन की यह नाकामयाबी मेरे लिए आध्यात्मिक तौर पर बहुत बड़ा आघात था, और इसने मुझे बहुत ज़्यादा तकलीफ़ पहुँचायी। एक पराये मुल्क में बिना किन्हीं दोस्तों या परिवार के, मैं और भी ज़्यादा अकेला महसूस करने लगी। मैं सिर्फ़ चुपचाप परमेश्वर की प्रार्थना ही कर सकती थी और मन-ही-मन उसको अपना दुख बयान सकती थी। मैंने परमेश्वर से निवेदन किया कि वह मुझे किसी चीनी कलीसिया की राह दिखाये ताकि मैं परमेश्वर के घर वापस लौट सकूँ।
एक साल बाद प्रेस्बिटरों के एक कलीसिया में एक चीनी मिनिस्ट्री से मेरी मुलाक़ात हुई, और मैं बेहद ख़ुश हुई। आखि़रकार मैं एक बार फिर कलीसिया जाकर परमेश्वर का गुणगान करने के क़ाबिल हुई। लेकिन जिस चीज़ ने मुझे निराश किया वह यह थी कि जब कभी हमारा समागम होता, पादरी धर्मग्रन्थों से महज़ कुछ हिस्से पढ़ देते थे और उनके शाब्दिक अर्थों की बहुत थोड़ी-सी व्याख्या करते थे। उनके उपदेशों में ज्ञान का कोई आलोक या आनन्द देने वाली कोई चीज़ नहीं होती थी। वे हमारी जि़न्दगी के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं कराते थे, और वे समागम एक औपचारिकता से ज़्यादा कुछ नहीं रह जाते थे। समागमों के दौरान कुछ लोग एक-दूसरे से फ़सफुसाते रहते, कुछ लोग अपने सेलफ़ोन पर खेल खेलते रहते, कुछ सोते रहते, कुछ वहाँ मौजूद अपनी प्रेमिकाओं या प्रेमियों को ताकते रहते, और कुछ ऐसे लोग तक वहाँ होते थे जो एक-दूसरे की बाँहों में बाँहें डाले रहते थे। मैं सोचती थी: "कलीसिया एक देवालय है, एक ऐसी जगह जहाँ परमेश्वर के प्रति श्रद्धा अर्पित की जाती है। हम यहाँ समागम में शामिल होने के लिए आते हैं लेकिन यहाँ तो किसी के पास भी लेशमात्र वह हृदय नहीं है जो परमेश्वर से डरता हो। परमेश्वर को यह देखकर बहुत घृणा होती होगी! क्या प्रभु इस तरह की घिनौनी जगह को छोड़कर चला नहीं जाएगा?" लेकिन पादरी और उपदेशक कुछ इस तरह पेश आते थे जैसे वहाँ जो कुछ चल रहा होता था उसे उन्होंने देखा ही न हो, और वे उसकी ओर ज़रा भी ध्यान नहीं देते थे।
दुनिया के इस दुराचार से भरे विशाल कड़ाहे में जीवन जीते हुए मैंने धीरे-धीरे अपना वक़्त गुज़ारने के लिए भ्रष्ट तरीक़े अपनाने शुरू कर दिये, और मैं ख़ाली वक़्त में अक्सर अपने दोस्तों के साथ शराबख़ोरी के लिए जाने लगी, और मेरे आचरण में ऐसा कुछ भी नहीं रह गया जो परमेश्वर के एक विश्वासी में होना चाहिए। लेकिन, जब भी मेरे हृदय में परमेश्वर से दूरी बनने लगती थी, तो उसके वचन मेरे मन में प्रकट हो उठते थे: "जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं। तब कहती है, 'मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी।' और लौटकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है" (मत्ती 12:43-45)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे संयमित किया और मेरी रक्षा की, और उनने मुझे परमेश्वर से बहुत ज़्यादा विमुख होने तथा दुराचार की सीमा लाँघने से रोका, जिसके पीछे यह भय था कि मैं प्रभु को नाराज़ कर दूँगी और उसके मन में अपने प्रति नफ़रत पैदा कर दूँगी। मैं प्रभु द्वारा त्याग दिये जाने और अपवित्र आत्मा के हाथों में पड़ जाने से डरती थी।
2016 की क्रिस्मस पर, कलीसिया में लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए, कलीसिया ने एक प्रदर्शन आयोजित करने प्रतिभाशाली भाइयों और बहनों का एक समूह तैयार किया। उनमें एक बहन थी जिसे मैंने कभी नहीं देखा था जिसने परमेश्वर की स्तुति में हमें गीत गाकर सुनाया: "'परमेश्वर का हुक्म आदम के लिये' - बाइबल की तस्वीर ये, मार्मिक भी है, दिल को भी छूती है। हालाँकि सिर्फ परमेश्वर और इंसान हैं तस्वीर में, मगर कितना अंतरंग रिश्ता है दोनों में, हैरानी भी होती है हमें, अनुराग भी जागता है दिल में। परमेश्वर का लबालब प्यार मिलता है इंसान को उदारता से, उसके आसपास ही है प्यार परमेश्वर का, परमेश्वर का। मासूम, निर्मल, किसी भी बंधन से बेफिक्र इंसान, रहता है आनंदित परमेश्वर की नज़र में। परमेश्वर करता है परवाह इंसान की, रहता है इंसान परमेश्वर की देखरेख में। इंसान के काम सारे, उसके वचन और कर्म सारे, बंधे हैं परमेश्वर से, जो अलग हो नहीं सकते। जिस पल बनाया इंसान को परमेश्वर ने, उस पल से ली है ज़िम्मेदारी इंसान की परमेश्वर ने। किस तरह की है ज़िम्मेदारी ये? उसी को हिफ़ाज़त करनी है इंसान की, उसी को नज़र रखनी है इंसान पर। वो चाहता है इंसान यकीन करे, यकीन करे उसके वचनों पर और उनका पालन करे। यही वो पहली चीज़ थी जो चाहता था परमेश्वर इंसान से। यही पहली उम्मीद लिये, परमेश्वर ने बोले ये वचन: तू खा सकता है बाग के दरख्तों के सारे फल बेख़ौफ, मगर तू न खाना भले-बुरे के ज्ञान के दरख़्त के फल, क्योंकि उस दिन गँवा बैठेगा तू जान अपनी, जिस दिन तूने खाए उस दरख्त के फल। परमेश्वर की इच्छा को ज़ाहिर करते ये मामूली वचन, दिखलाते हैं उसके दिल में पहले ही फिक्र थी इंसान की। देखते हैं इन मामूली वचनों में हम, क्या है दिल में परमेश्वर के। क्या प्यार है उसके दिल में? क्या परवाह और चिंता नहीं है वहाँ? महसूस किया जा सकता है, अनुभव किया जा सकता है, परमेश्वर के प्यार और परवाह को। गर ज़मीर और इंसानियत है तेरे अंदर, तो महसूस करेगा स्नेह, परवाह और प्यार परमेश्वर का तू, महसूस करेगा खुशी से धन्य ख़ुद को तू। जब महसूस करेगा इन चीज़ों को, तो कैसे पेश आएगा परमेश्वर से तू? क्या जुदा हो जाएगा उससे तू? क्या भक्तिमय प्यार, नहीं उपजेगा तेरे दिल में? क्या कशिश होगी उसके लिये तेरे दिल में? देखते हैं हम इससे, कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये। मगर उससे भी ज़्यादा अहम है, परमेश्वर का प्यार इंसाँ महसूस कर पाए, इंसाँ समझ पाए" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये")।
इस भजन के हर शब्द के साथ मेरे हृदय की धड़कनें तेज़ होती गयीं और मैं इतनी भावुक हो उठी कि मेरी आँखों से बहते आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मुझे लग रहा था जैसे मैं परमेश्वर के साथ, परमेश्वर का प्रेम प्राप्त करती हुई और उसके द्वारा सृष्टि को प्रदान की गयी हर चीज़ का आनन्द लेती हुई इस ख़ूबसूरत तस्वीर के भीतर हूँ। हवा, प्रकाश और जल आदि – सब कुछ परमेश्वर के प्रेम से सराबोर हैं! मैं उस हर चीज़ का आनन्द ले रही हूँ जिससे परमेश्वर ने हमें नवाज़ा है लेकिन मेरा हृदय परमेश्वर से उदासीन हो चुका है, और इससे परमेश्वर को निश्चय ही बहुत दुख पहुँचा होगा। मुझे ख़ासतौर से महसूस हुआ कि ये वचन मेरे हृदय और आत्मा के प्रति परमेश्वर की पुकार हैं: "गर ज़मीर और इंसानियत है तेरे अंदर, तो महसूस करेगा स्नेह, परवाह और प्यार परमेश्वर का तू, महसूस करेगा खुशी से धन्य ख़ुद को तू" 2007 में, जब मैं अपने पति के साथ रहना जारी नहीं रख सकी थी और मेरे पास घर नाम की कोई चीज़ नहीं थी, तब परमेश्वर ने मेरे लिए वीमन माइग्रेण्ट ह्यूमन राइट्स सेण्टर ऑफ़ कोरिया का इन्तज़ाम कर दिया था। उन्होंने वहाँ पर मुझे मुफ़्त भोजन और आवास मुहैया कराया था और मेरे लिए एक वकील उपलब्ध कर दिया था। उन्होंने मेरे तलाक की क़ानूनी कार्रवाइयों की नि:शुल्क जि़म्मेदारी उठायी थी। जब मेरे नागरिकीकरण के लिए आवेदन देने का वक़्त आया, तो परमेश्वर ने प्रेबिस्टरों की कलीसिया के एक मन्त्री को मेरे संरक्षक की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित कर दिया था। सामान्यत:, कोरियाई किसी का संरक्षक बनने के लिए शायद ही कभी तैयार होते हैं, ख़ासतौर से मेरे जैसी स्त्री के मामले में जो एक विदेशी थी और, इसके अलावा, मैं उस कलीसिया में मात्र तीन-चार बार ही गयी थी। मैं जानती थी कि यह सब परमेश्वर की गुप्त मदद से ही मुमकिन हो सका था। यह भी एक तथ्य था कि नागरिकीकरण के लिए आवेदन करने वाले विदेशियों के पास स्थायी सम्पत्ति के रूप में 3 करोड़ वान होना अनिवार्य है, लेकिन मेरे पास तो 30 लाख भी नहीं थे। इमिग्रेशन कार्यालय ने मुझसे रोज़गार का प्रमाण पेश करने को कहा ताकि यह ज़ाहिर हो सकता कि मैं अपना भरण-पोषण कर सकती हूँ, और उन्होंने इसको लेकर मेरे सामने कोई मुश्किल पैदा नहीं की...। जब भी मैं बेहद अभाव की स्थिति में रही, परमेश्वर ने हमेशा चमत्कार किये, और यह सब उसकी सम्प्रभुता का प्रदर्शन था! परमेश्वर का प्रेम विस्तीर्ण और गहन है, और तब भी मैं उसके प्रति बहुत ज़्यादा विद्रोह करती रही थी। मैं बहुत पहले परमेश्वर को भुला चुकी थी और उसका दिल तोड़ चुकी थी। स्तुति के इस भजन ने मेरी आत्मा को छू लिया, और मैंने अपनी आस्था को फिर से हासिल करने और कभी भी विलासिता में मुब्तिला न होने तथा परमेश्वर को सन्ताप न पहुँचाने का निश्चय कर लिया।
19 फ़रवरी 2017 को मेरे सिर और आँखों में भीषण दर्द होने लगा। मैं अस्पताल गयी लेकिन वहाँ का इलाज कारगर नहीं रहा। हमारी कलीसिया की बहन ली ने अपनी एक दोस्त से मेरा परिचय कराया जिसको पारम्परिक चीनी चिकित्सा का ज्ञान था और मुझसे कहा कि इस इलाज का असर होने में मात्र एक सप्ताह लगेगा। मैं अपना इलाज कराने उसके साथ चली गयी, और उस दिन हम एक भाई से मिले जिसका उपनाम जिन था, जो उस स्त्री का दोस्त था जो चीनी चिकित्सा-पद्धति के बारे में जानती थी। मैंने प्रभु में एक भाई के मिलने की उम्मीद नहीं की थी, और मुझे लगा कि यह निश्चय ही परमेश्वर का विधान होगा। मुझे भाई जिन के साथ बाइबल पर चर्चा करने का अवसर मिला। भाई जिन ने हमें बाइबल से दस क्वाँरियों की नीतिकथा पढ़कर सुनायी। उसने मुझसे पूछा, "बहन, क्या आप प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा कर रही हैं?" मैंने कहा, "निश्चय ही!" उस भाई ने कहा, "तो प्रभु कैसे लौटेगा?" मैंने बिना हिचकिचाये कहा, "धर्मग्रन्थ कहते हैं कि वह एक बादल पर अवतरित होगा!" भाई ने कहा, "क्या आपको यह मालूम है? प्रभु वापस आ चुका है।" यह सुनकर मैं चकित हो उठी, और बोली, "मरकुस अध्याय 13 का पद 32 कहता है: 'उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता।' कोई नहीं जानता कि प्रभु कब लौटेगा। आप कह रहे हैं कि प्रभु वापस आ चुका है लेकिन आपको यह बात कैसे मालूम हो सकती है?" भाई जिन ने मुझे सीधा जवाब देने की बजाय प्रभु की वापसी के बारे में बाइबल की कुछ भविष्यवाणियाँ खोज निकालीं। लूका 12:40 कहता है: "तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।" लूका 17:24-26 कहता है: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ। जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा।" प्रकाशितवाक्य 3:20 कहता है: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" यूहन्ना 10:27 कहता है: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।"
यह पढ़ने के बाद भाई जिन ने कहा "प्रभु हमसे चौकन्नी निगाह रखने को कहता है क्योंकि उस दिन के बारे में कोई नहीं जानता जब वह आएगा। लेकिन भविष्यवाणियों के मुताबिक़, जब प्रभु वापस आएगा तो वह मनुष्य के पुत्र के रूप में होगा। मनुष्य का पुत्र होना परमेश्वर का मनुष्य बन जाना है, जिसका मतलब है परमेश्वर का देहधारी होना। भले ही हम उस ठीक-ठीक वक़्त के बारे में नहीं जानते जब प्रभु आएगा, तब भी हम उसकी वाणी से उसको पहचान लेंगे। इसलिए क्योंकि परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की वाणी को सुन लेगीं, और जब वे उसको सुनेंगी तो वे उसका अनुसरण करेंगी।" तब मैंने अपने पादरी के बारे में सोचा जिसने कहा था कि जो भी कोई प्रभु यीशु की वापसी की गवाही देता है वह धोखेबाज़ है। भाई जिन जो कह रहे थे वह मैं और आगे नहीं सुन सकी, इसलिए मैंने पादरी को एक टैक्स्ट सन्देश भेजा जिसमें कहा गया था, "कोई मुझे बता रहा है कि प्रभु देहधारी होकर लौट आया है। ये लोग किस कलीसिया से सम्बन्ध रखते हैं?" पादरी ने जवाब दिया, "ये लोग ईस्टर्न लाइटनिंग से हैं।" उसने मुझसे तुरन्त वहाँ से वापस लौटने और उनके साथ आगे कोई रिश्ता न रखने को कहा। वह यह भी चाहता था कि मैं उनकी पुस्तकें कभी न पढूँ और उसने मुझे इस बारे में कुछ उपदेश भी भेजे कि विधर्मिता के खि़लाफ़ किस तरह चौकसी बरती जाए। मैंने सोचा कि पादरी जो कुछ भी कह रहा है वह निश्चय ही सही होगा, और इसलिए मैंने उनकी संगत को दोबारा न सुनने का और उनको सिर्फ़ नज़रअन्दाज़ करने का फ़ैसला कर लिया।
मुझे आश्चर्य हुआ कि 20 तारीख़ की दोपहर को भाई जिन और उनकी छोटी बहन वहाँ आये जहाँ मैं इलाज करा रही थी और भाई जिन ने मुझे प्रभु की वापसी के बारे में बहुत कुछ बताया। लेकिन चूँकि उसी सुबह मुझे अपनी माँ की मृत्यु की सूचना मिली थी, साथ ही उनके उपदेशों को लेकर मेरे मन में कुछ सन्देह थे, इसलिए उन्होंने जो कुछ भी कहा उसे मैं समझ नहीं सकी। यह सिलसिला तीन दिनों तक जारी रहा और ऐसा लगता था जैसे भाई जिन ने मुझे सुसमाचार का उपदेश देने से हार नहीं मानी थी। लेकिन अपनी अन्दरूनी उथल-पुथल की वजह से मैंने उनसे कहा कि वे मुझे अकेला छोड़ दें। मैंने कहा, "अब इसे छोड़ें। अगर आप मुझसे बात करते रहेंगे, तो अगर आप नहीं जाएँगे तो मैं चली जाऊँगी!" भाई जिन ने पाया कि मैं वाक़ई उनकी बात नहीं सुन रही थी और उनके पास वहाँ से चले जाने के अलावा और उपाय नहीं बचा। मैं सोचती थी कि भाई जिन दोबारा आने की कोशिश नहीं करेंगे, लेकिन मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अगले ही दिन वे अपने साथ भाई चेंग नामक किसी व्यक्ति को लेकर आ गये और मुझे फिर से सुसमाचार का उपदेश देने लगे। मैंने मन-ही-मन सोचा: "ये इस तरह जि़द पर क्यों अड़े हुए हैं?" संकोच की वजह से मैं इतना ही कर सकती थी कि उसे बरदाश्त करती, लेकिन मैं उनके साथ किसी तरह की चर्चा में मुब्तिला नहीं हुई। हालाँकि मैं उनके साथ रूखे ढंग से पेश आ रही थी, लेकिन भाई चेंग ने धीरज बरतते हुए मुझसे बोलना जारी रखा। उन्होंने कहा, "प्रभु देहधारी होकर इस दुनिया में वापस आ चुका है और वह न्याय का तथा ताड़ना का कार्य कर रहा है... " उनको इस तरह धीरज और प्रेम से पेश आते देखकर और यह देखकर कि मुझे उपदेश देने में उनको कोई तकलीफ़ महसूस नहीं हो रही है, मैंने सोचा: "हमारी कलीसिया के लोग कमज़ोर हैं। उनकी आस्था और प्रेम में कोई ऊर्जा नहीं बची है। क्या कारण है कि ईस्टर्न लाइटनिंग में विश्वास रखने वाले लोगों की आस्था और लोगों के प्रति उनका प्रेम इतना ज़बरदस्त है? वह क्या शक्ति है जो मुझ तक सुसमाचार का प्रसार करने की उनकी कोशिशों की तमाम मुश्किलों के बावजूद उनको बल प्रदान करती है? अगर यह पवित्र आत्मा का कार्य न होता, तो वे अपने बूते यह कभी न कर पाते!"
इस दौरान याँग उपनाम वाला एक और भाई मेरी ही तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य की पड़ताल में लगा था। जहाँ मेरा रवैया लापरवाह और अनमना था, वहीं भाई याँग सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की पड़ताल को लेकर बहुत संजीदा और ईमानदार था। भाई याँग ने बताया कि पहले जब लोगों ने उसको सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सुसमाचार का उपदेश दिया था तो उसने उसका तिरस्कार कर दिया था, लेकिन आज उसको फिर से सुनना निश्चय ही परमेश्वर द्वारा उपलब्ध कराया गया एक सुअवसर है, और इसलिए वह उसकी पड़ताल करने को इच्छुक हो उठा है। भाई याँग ने देखा कि मैं सिर्फ़ पादरी के शब्दों को सुनने में दिलचस्पी रखती हूँ और खुले दिमाग़ से जानने की कोशिश नहीं कर रही हूँ। उसने मेरे लिए बाइबल का एक अंश ढूँढ़ निकाला जो मत्ती 5:3-6 था: "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। ... धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।" प्रभु के इन वचनों को पढ़ने के बाद मेरे मन में सवाल उठा: "क्या वजह है कि मैं प्रभु की उपस्थिति में खुद को स्थिर कर सत्य की खोज में नहीं लगा पाती? अगर किसी संयोग से प्रभु सचमुच वापस आ गया हो, और अगर मैं उन लोगों के उपदेशों को नहीं सुनती या उनकी पड़ताल नहीं करती, तो क्या मैं त्याग नहीं दी जाऊँगी? मुझे कुछ और उदार होने की ज़रूरत है, और मुझे आँखें बन्द कर अपने काल्पनिक ख़यालों पर टिके नतीजों पर नहीं पहुँचना चाहिए।" जिस वक़्त मैंने अपने हृदय को स्थिर कर संजीदगी के साथ इसकी पड़ताल करने का निश्चय किया था, तभी अप्रत्याशित रूप से मेरी कलीसिया के एक उपदेशक का फ़ोन आया और उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं अभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों के साथ हूँ। मैंने कहा कि मैं उनके साथ हूँ, और उस उपदेशक ने मुझे एकबार फिर उनसे सम्पर्क तोड़ देने की याद दिलायी। उस उपदेशक की सख़्त समझाइश ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को परखने को लेकर मेरे मन में अभी-अभी पैदा हुए मेरे विचारों को भंग कर दिया। मैंने सोचा, "पादरी और उपदेशक बाइबल को मुझसे ज़्यादा समझते हैं, और वे इस बात को स्वीकार नहीं करते कि प्रभु वापस लौट आया है। मुझे बाइबल की बहुत कम समझ है और मुझमें विवेक का अभाव है, इसलिए यही बेहतर होगा कि मैं पादरी और उपदेशक की कही बातों पर ही ध्यान दूँ।" जब मैंने फ़ोन काट दिया, तो मैंने भाई चेंग से कहा, "अगर भाई याँग इसकी जाँच करना चाहते हैं, तो आप दोनों अपनी चर्चा जारी रख सकते हैं। अब मैं और नहीं सुनूँगी।" मैंने तत्काल एकबार फिर सहसा परमेश्वर के उद्धार का तिरस्कार कर दिया।
एक हफ़्ते के इलाज के बाद मैं काम पर लौट आयी। माँ की मृत्यु की वजह से मेरा दिल दुख और सन्ताप से भरा हुआ था और मैं लगातार उन्हीं के बारे में सोच रही थी। हर दिन जब मैं काम से वापस घर लौटती, तो मैं अपनी माँ की एक तस्वीर की ओर देखने लगती और उनसे बात करने लगती। एक दिन सहसा मैंने सोचा: "मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, और इसलिए जब भी कभी मैं कोई कठिनाई या कमज़ोरी महसूस करती हूँ तो मैं हमेशा इन चीजों के बारे में प्रभु से कह सकती हूँ।" इसके बाद मैं जब भी कभी किन्हीं मुश्किलों का सामना करती तो मैं प्रभु के सामने जाती और उनसे प्रार्थना करते हुए सान्त्वना की याचना करती। लेकिन होता यह कि मैं कितनी ही प्रार्थना क्यों न करती, मैं अन्दर से कभी प्रेरित महसूस नहीं करती थी। कभी-कभी प्रार्थना करते हुए मेरी आँख लग जाती। उस समय मैं घोर बेचैनी की हालत में रह रही थी, इस क़दर बेचैनी कि मेरे पीछे से आती ज़रा-सी आहट तक मुझमें इतने ज़्यादा डर का अहसास पैदा कर देती थी कि वह बयान के परे होता था। मैं अपने भय और असहायता की इस हालत में पूरी संजीदगी के साथ परमेश्वर से प्रार्थना करती: "हे प्रभु! मेरा हृदय अन्धकार से भरा हुआ है और मैं भय के मारे काँप रही हूँ। क्या मुमकिन है कि मुझसे कहीं कोई ग़लती हो गयी हो? हे प्रभु! पिछले कुछ दिनों से लोग मुझसे कह रहे हैं कि तू सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। हे प्रभु! अगर तू सचमुच वापस लौट आया है और तू वही सर्वशक्तिमान परमेश्वर है जिसके बारे में लोगों ने मुझे बताया है, तो तू ऐसा कोई समय तय कर दे और ऐसी माकूल परिस्थितियाँ तैयार कर दे जिनमें भाई याँग या तो मुझे फ़ोन करें या कोई टैक्स्ट सन्देश भेजें। जब वे वापस आएँगे, तो वे चाहे जो भी कहें, मेरा हृदय तेरे नये कार्य और वचनों को आज्ञाकारी ढंग से और उत्सुकतापूर्वक स्वीकार करेगा। अगर वह तेरा कार्य नहीं है और वे मुझे जिस सन्देश का उपदेश दे रहे हैं वह बनावटी और छलपूर्ण है, तो उनका रास्ता रोक दे और उनको कभी मेरे पास वापस न आने दे।"
चकित करने वाली बात थी कि जब मैंने इस तरह प्रार्थना की, तो परमेश्वर ने ठीक वही किया जिसके लिए मैंने प्रार्थना की थी। भाई याँग ने वाक़ई मुझे फ़ोन किया, और मैंने उन्हें वह सब कुछ बता दिया जो पिछले कुछ दिनों से चल रहा था। भाई याँग ने कहा कि क्योंकि मैंने परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य का तिरस्कार किया था और उसके प्रति विद्रोह किया था इसलिए मेरा हृदय अन्धकारमय हो गया था। उन्होंने उम्मीद जतायी कि मैं परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य की पड़ताल जारी रखूँगी, और इस बार उनके सुझाव का तिरस्कार नहीं करूँगी।
इसके बाद जल्दी ही भाई याँग ने मुझे सुसमाचार सम्बन्धी एक फि़ल्म भेजी। उस फि़ल्म के संवाद में एक पंक्ति थी जिसने मुझे झकझोर कर जगा दिया: "क्योंकि हमें परमेश्वर में विश्वास है, इसलिए हमें परमेश्वर को सुनना चाहिए न कि मनुष्यों को।" "यह सही है!" मैंने सोचा। "यह परमेश्वर ही तो है जिसमें मैं विश्वास करती हूँ, और मुझे परमेश्वर के वचन को ही तो सुनना चाहिए! लेकिन जब भाई जिन और भाई चेंग मुझे परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य के बारे में बता रहे थे, उस दौरान मैं उसके बारे में लगातार पादरी से पूछती रही थी। मैं उन बातों को मानती रही थी जो पादरी और उपदेशक ने कही थीं और संजीदा ढंग से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नये कार्य की पड़ताल नहीं करना चाहती थी या परमेश्वर के वचन नहीं सुनना चाहती थी। मैंने परमेश्वर में विश्वास तो किया था लेकिन प्रभु की प्रार्थना नहीं की थी या परमेश्वर से याचना नहीं की थी, और इसकी बजाय आँख मूँदकर उन बातों पर विश्वास कर लिया था जो पादरी और उपदेशक ने कही थीं। मैं कितनी बेवकूफ़ थी! बाइबल कहती है: "मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है" (प्रेरितों 5:29)। मैंने परमेश्वर में विश्वास तो किया लेकिन उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया। इसकी बजाय, मैंने लोगों की आज्ञा मानी, इसलिए मैं क्या उन लोगों में से नहीं हूँ जो मनुष्यों में विश्वास और उनका अनुसरण करते हैं? क्या यह परमेश्वर का प्रतिरोध और उसके प्रति विश्वासघात नहीं है? अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस लौटे प्रभु यीशु हैं, और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने के प्रति अनिच्छुक रहते हुए उनके साथ इस तरह से द्रोह और उनका प्रतिरोध किया है, तो क्या मैं एक अन्धी बेवकूफ़ नहीं रही हूँ? क्या मैं प्रभु के लिए दरवाज़े बन्द नहीं करती रही हूँ?" यह सोचते हुए मेरा हृदय गहरे पश्चाताप से भर उठा और मेरी आँखें छलछला आयीं।
मैंने एकबार फिर प्रभु को सामने रखकर प्रार्थना की: "प्रभु यीशु मसीह! किसी ने मुझे सुसमाचार का उपदेश देते हुए कहा है कि आप देहधारी होकर वापस लौट आये हैं, और आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अन्त के दिनों के मसीहा हैं। मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि मैं इसके बारे में निश्चित महसूस कर सकूँ, लेकिन मैं प्रबुद्धता की तलाश और याचना करने आपके सामने आना चाहती हूँ, ताकि मैं आपकी वाणी को पहचान सकूँ। अगर आप सचमुच वापस लौट आये हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, तो मैं आपके सामने प्रायश्चित करना चाहती हूँ और उद्धार के आपके कार्य को स्वीकार करना चाहती हूँ। मैं याचना करती हूँ कि मेरा मार्गदर्शन करें ताकि मैं वापस आपके पास लौट सकूँ।" प्रार्थना करने के बाद मैंने एक तरह का आनन्द महसूस किया और मुझे एक ऐसी सान्त्वना का अहसास हुआ जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह एक ऐसी चीज़ थी जिसे मैंने अरसे से महसूस नहीं किया था, और मैं जानती थी कि प्रभु ने मेरी प्रार्थना सुन ली है, प्रभु ही मुझे सान्त्वना दे रहे हैं, और यह मेरे लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया प्रमाण है। मैं इसकी जाँच-पड़ताल करने तुरन्त सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में जाना चाहती थी, लेकिन फिर जब मैंने सोचा कि मेरे व्यवहार से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों को निश्चय ही ठेस पहुँची होगी, तो मुझे उनकी कलीसिया में जाने को लेकर बहुत शर्म महसूस हुई।
जिस वक़्त मैं इस दुविधा में थी तभी भाई याँग ने मुझसे यह जानने के लिए फ़ोन किया कि क्या मेरे पास समय है और कहा कि उनको उम्मीद है कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य की पड़ताल जारी रख सकी हूँ। मैंने उनको अपने सन्देहों के बारे में बताया। भाई याँग ने कहा, "कोई बात नहीं, परमेश्वर के हम सब विश्वासी एक ही परिवार के हैं, और इस चीज़ से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाइयों और बहनों को बिल्कुल भी परेशानी नहीं होती।" जब मैंने भाई याँग की यह बात सुनी, तो मैं समझ गयी कि परमेश्वर मेरे अपरिपक्व आध्यात्मिक कद के प्रति समझ का परिचय दे रहा है, और इसलिए अगले दिन मैं भाई याँग के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया गयी।
वहाँ के भाई और बहन यह देखकर ख़ुश थे कि मैंने सच्चे मार्ग पर वापस लौटने की राह पा ली थी। उन्होंने औपचारिक तौर पर मेरे सामने इस बात की गवाही दी कि प्रभु यीशु सत्य को व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने वापस लौट चुके हैं जिसकी शुरुआत अन्त के दिनों में परमेश्वर के घर में हो रही है। उन्होंने मुझे अन्त के दिनों के देहधारी परमेश्वर के कार्य के अर्थ के बारे में तथा मानव-जाति के उद्धार के लिए इस देहधारण के महत्व के बारे में भी संगत दी। इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों पढ़ा जो कहते हैं: "मैं तुम लोगों बता दूँ, कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं, वे निश्चित रूप से उस श्रेणी के होंगे जो विनाश को झेलेगी। वे जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकार करने में अक्षम हैं, वे निश्चित रूप से नरक के वंशज, महान फ़रिश्ते के वंशज हैं, उस श्रेणी के हैं जो अनंत विनाश के अधीन की जाएगी। कई लोग मैं क्या कहता हूँ इसकी परवाह नहीं करते हैं, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को बताना चाहता हूँ जो यीशु का अनुसरण करते हैं, कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते हुए अपनी आँखों से देखो, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते हुए देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दण्ड दिए जाने के लिए नीचे नरक में चले जाओगे। यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति की घोषणा होगी, और यह तब होगा जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दण्ड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के संकेतों को देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब वहाँ सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति ही होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं तथा संकेतों की खोज नहीं करते हैं और इस प्रकार शुद्ध कर दिए जाते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे ही जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि "ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता है एक झूठा मसीह है" अनंत दण्ड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेतों को प्रदर्शित करता है, परन्तु उस यीशु को स्वीकार नहीं करते हैं जो गंभीर न्याय की घोषणा करता है और जीवन में सच्चे मार्ग को बताता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटें तो वह उसके साथ व्यवहार करें। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु का लौटना उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, परन्तु उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह निंदा का एक संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के विरोध में तिरस्कार नहीं करना चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का पालन करता हो और सत्य की खोज करने के लिए लालायित हो; सिर्फ़ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे, ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा")।
परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैंने उन सत्यों के बारे में ध्यानपर्वक विचार किया जिनपर मेरे भाइयों ने मुझे संगत दी थी और जिसकी उन्होंने गवाही दी थी। मैं समझ गयी कि प्रभु अन्त के दिनों में दो तरह से वापस लौटता है, जिनमें से एक है अप्रत्यक्ष अवतार और दूसरा है प्रभु का सबके समक्ष प्रत्यक्ष रूप से आना। अब, परमेश्वर के घर में आरम्भ हो रहा देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय का कार्य दरअसल परमेश्वर के परोक्ष अवतार का कार्य है। चूँकि देहधारी परमेश्वर मानव-जाति के बीच वापस लौट आया है, उसका यह प्रकटन एक साधारण व्यक्ति जैसा है और महज़ उसकी ओर देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि वह परमेश्वर है। उसकी वास्तविक पहचान को कोई नहीं जानता, और इसको लोगों से गुप्त रखा गया है। जो लोग परमेश्वर की वाणी के फ़र्क को पहचान सकते हैं, केवल वही लोग उसको जान पाएँगे, स्वीकार कर पाएँगे, उसका अनुसरण कर पाएँगे। यह ठीक वैसा ही जैसा प्रभु यीशु ने कहा था: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। जो लोग परमेश्वर की वाणी को नहीं पहचानते वे निश्चय ही देहधारी परमेश्वर को एक साधारण व्यक्ति की तरह ही बरतेंगे। वे परमेश्वर के अनुसरण का निषेध करेंगे, प्रतिरोध करेंगे, उससे इन्कार करेंगे, ठीक उसी तरह जैसे यहूदी फरीसियों ने अपने वक़्त में किया था। उन्होंने प्रभु यीशु को देखा तो था लेकिन वे उनको पहचानते नहीं थे, और उन्होंने आँख मूँदकर प्रभु की निन्दा की थी। वर्तमान समय मानव-जाति की रक्षा के परमेश्वर के अप्रत्यक्ष कार्य का चरण है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों का न्याय करने, शुद्धिकरण करने, और उनको सुधारने के लिए वचन व्यक्त करता है। तबाहियों के पहले वह लोगों के समूह को आस्थावानों में बदलेगा, और जब आस्थावानों का यह समूह पूरी तरह से तैयार हो जाएगा तो देहधारी परमेश्वर के परोक्ष अवतार का कार्य समाप्त हो जाएगा। जब तबाहियाँ शुरू होंगी, तो परमेश्वर सदाचारियों को पुरस्कृत करेगा और दुराचारियों को ताड़ना देगा, और वह प्रत्यक्ष रूप से सारे राष्ट्रों और लोगों के सामने प्रकट होगा। उस समय, प्रभु के प्रत्यक्ष रूप से सामने आने की भविष्यवाणियाँ सही साबित हो जाएँगीं, जैसा कि बाइबल में कहा गया है: "तब मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे" (मत्ती 24:30)। "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे" (प्रकाशितवाक्य 1:7)। यही वजह है कि जब प्रभु एक बादल पर सवार होकर अवतरित होगा तो पृथ्वी के सारे कुनबे विलाप करेंगे। इस बार मेरा हृदय सहसा आलोकित हो उठा, और मैंने देखा कि प्रभु के परोक्ष अवतार का कार्य हमारा महान उद्धार है। हम केवल प्रभु के परोक्ष अवतार के दौरान परमेश्वर के वचन के न्याय को स्वीकार करके ही शुद्धिकरण और परमेश्वर के उद्धार को हासिल कर सकते हैं। अगर हम अभी परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते, तो जब वह बादलों के साथ प्रत्यक्ष रूप से आएगा तब तक हम वे लोग बन चुके होंगे जिन्होंने प्रभु का प्रतिरोध किया होगा, और निश्चित है कि तब हम रोएँगे और अपने दाँत पीसेंगे। उस मुकाम पर हमारे पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी, क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: "परमेश्वर का न्याय मनुष्य के संकेतों को देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब वहाँ सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति ही होगी।"
धन्य है परमेश्वर! परमेश्वर का वचन सारे रहस्यों पर से परदा हटा देता है और सत्य को उसके सारे पहलुओं में दोटूक ढंग से स्पष्ट कर देता है—मेरी आँखें खुल गयी थीं और उसके बाद मुझे अपने हृदय में शब्दश: यक़ीन हो गया था। बाद में मैं अन्त के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गये वचनों को भाइयों और बहनों के साथ मिलकर पढ़ने के लिए नियमित रूप से कलीसिया जाने लगी। हम भजन सुनते और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कलीसिया के भाइयों और बहनों द्वारा तैयार किये गये संगीत के वीडियो, परमेश्वर के वचनों के सस्वर पाठ के वीडियो, और सुसमाचार सम्बन्धी फि़ल्में देखते। ऐसे हर समागम के बाद मुझे लगता था जैसे मैंने कुछ नया हासिल किया है और मुझे अतुलनीय सुख का अनुभव होता था। ख़ासतौर से सुसमाचार सम्बन्धी फि़ल्मों में, भाइयों और बहनों ने हर मुद्दे पर इतने विस्तार और स्पष्टता के साथ बात की थी कि मैंने प्रभु में अपने विश्वास को लेकर इतने सारे वर्षों से जो सन्देह और भ्रम पाल रखे थे उन सबका धीरे-धीरे निराकरण होता गया। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य प्रतिबिम्बित है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस लौटा प्रभु यीशु है! जिस चीज़ ने मुझे और भी ज़्यादा उत्साहित किया वह यह थी कि इस कलीसिया में मेरे शामिल होने के तीसरे ही दिन मैंने उस बहन को देखा जिसने 2016 की क्रिस्मस पर स्तुति के गीत की मंचीय प्रस्तुति दी थी। उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अन्त के दिनों के कार्य को भी स्वीकार किया था। मैंने सच्चे मन से परमेश्वर को धन्यवाद दिया, क्योंकि यह परमेश्वर का मार्गदर्शन और प्रबुद्धता ही थे जिनने हमें मेमने के क़दमों से क़दम मिलाकर चलने की राह दिखायी, जिनने हमें परमेश्वर के घर लौटने के लिए उजाड़ से निकलकर कनान की पवित्र भूमि तक जाने की राह दिखायी, और जिनने हमें परमेश्वर के जीवनदायी वचनों की विपुलता और आपूर्ति का उसके साथ मिलकर आनन्द लेने की राह दिखायी!
मैं समझती हूँ कि यह परमेश्वर की विशेष कृपा ही थी कि मैं परमेश्वर के घर लौटने में समर्थ हुई। अन्यथा, अपनी विद्रोही प्रकृति के चलते, परमेश्वर के नेतृत्व और मार्गदर्शन के बिना या परमेश्वर के वचनों में मेरे साथ संगत करने को लेकर भाइयों और बहनों के धैर्य के बिना, मैं प्रभु की वापसी का स्वागत कैसे कर सकी होती? मेरे प्रति परमेश्वर का प्रेम सचमुच इतना अधिक है कि मैं उसका बयान नहीं कर सकती! मैं तो अब सिर्फ़ भजनों के माध्यम से परमेश्वर की सराहना और अटल रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करना चाहती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?