क्या पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है?
1998 में मेरा चचेरा भाई, यांग मेरे साथ प्रभु यीशु का सुसमाचार साझा करने आया। उसने मुझे बाइबल की एक प्रति देकर कहा, कि पूरी बाइबल परमेश्वर से प्रेरित है, उसमें शामिल हर बात परमेश्वर का वचन है, और उसी में निहित है परमेश्वर के राज्य और अनंत जीवन का मार्ग। यह सुनकर कि मुझे अनंत जीवन मिल सकता है, मेरी जिज्ञासा जाग उठी, और बाद में, समय मिलने पर मैंने बाइबल पढ़ी। जल्द ही मैं जान गया कि प्रभु यीशु ने मानवता को छुटकारा दिलाया, और मैंने उसे स्वीकार लिया। परमेश्वर की खोज का जूनून होने के कारण, बाद में मैं एक सहकर्मी बन गया, और कलीसिया में सुसमाचार का प्रचार करने लगा। मुझे पक्का विश्वास था कि बाइबल ही मेरी आस्था की बुनियाद और मार्गदर्शक है।
कुछ ही वर्षों में, कलीसिया सूख-सी गई और वहाँ पवित्र आत्मा का कार्य महसूस करना मुश्किल हो गया। ज्यादातर विश्वासी निष्क्रिय और कमजोर थे, उनकी आस्था ठंडी पड़ गई थी, और बहुत-से लोग भौतिक संसार में लौट गए थे। इन सबका सामना कर मैं बेचैन और बेसहारा महसूस करने लगा, मेरा दिल कमजोर पड़ गया। क्या प्रभु ने हमें त्याग दिया था? लेकिन जब भी मैं प्रभु की इस बात को याद करता, "जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा" (मत्ती 10:22), तो मुझे भरोसा होता कि प्रभु सच्चे दिल से उसका अनुसरण करने वालों के साथ गलत नहीं करता, और मैं प्रभु के लिए खुद को खपाता रहा। मैं अक्सर मन-ही-मन प्रार्थना कर प्रभु से हमारी आस्था मजबूत करने की विनती करता। ऐसे समय में, चमकती पूर्वी बिजली नामक एक कलीसिया प्रकट हुई। उन्होंने गवाही दी कि प्रभु वापस आ चुका है, वह सत्य व्यक्त कर रहा है, और अंत के दिनों में, न्याय का कार्य कर रहा है। प्रभु के विश्वासी अनेक भाई-बहनों ने चमकती पूर्वी बिजली को अपना लिया। मैंने उन्हें संगति करते सुना कि बाइबल में परमेश्वर और मनुष्य दोनों के वचन हैं और मैं यह स्वीकार नहीं कर पाया। बाइबल में साफ तौर पर कहा गया है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16)। पादरी और एल्डर हमेशा यही कहते हैं कि बाइबल की हर बात परमेश्वर का वचन है। तो क्या चमकती पूर्वी बिजली की बातें बाइबल के विपरीत और प्रभु से धोखा करने वाली नहीं हैं? इस वजह से, मैं चमकती पूर्वी बिजली के बहुत खिलाफ था। तब से, हमारी ज्यादातर बैठकों में, चमकती पूर्वी बिजली से सुरक्षित रहने, उसे दूर रखने, और कलीसिया के झुंड को बचाए रखने के बारे में चर्चा होती। चमकती पूर्वी बिजली के लोगों द्वारा हमारी भेड़ों की चोरी रोकने के लिए मैंने भाई-बहनों से कहा : पूरी बाइबल परमेश्वर से प्रेरित है, और परमेश्वर के सारे वचन इसमें हैं। अगर हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो हम बाइबल से दूर नहीं जा सकते। ऐसा करना विधर्म होगा। मुझे उम्मीद थी कि ऐसा करके मैं उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच करने से रोक सकूँगा, लेकिन वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारते रहे।
एक बार, एक कलीसिया सभा के बाद घर लौटकर मैंने देखा कि मेरी पत्नी आटा गूंध रही थी, और उसके साथ बैठी एक बुजुर्ग महिला, हाथ में किताब लिए उसके साथ संगति कर रही थी। मुझे फौरन लगा कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखती है, मैं गुस्से से तमतमा गया और बोला, "आपने बाइबल को नकार कर उसे त्याग दिया है, फिर भी आप परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करती हैं? यहाँ से चली जाइए!" बुजुर्ग बहन मुझसे सब्र से बोलीं, "भाई, नाराज न हो। आँखें बंद करके फैसले न करो। हम भी बाइबल पढ़ती थीं और इस पद 'सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है' (2 तीमुथियुस 3:16), का अर्थ यह मानती थीं कि बाइबल के सभी वचन परमेश्वर के वचन हैं। बाद में हमें यह एहसास हुआ कि ऐसी व्याख्या गलत है।" "आपके पास क्या सबूत है?" मैंने तिरस्कार से पूछा। बहन ने कहा, "मिसाल के तौर पर, लूका के सुसमाचार में कहा गया है : 'बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है, जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे, हम तक पहुँचाया' (लूका 1:1-2)। क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि लूका का सुसमाचार लूका ने अपने अनुभवों के आधार पर लिखा था? लूका ने उस समय देखे-सुने कुछ तथ्यों को बस लिख डाला। यह मनुष्य द्वारा लिखी गई किताब है, तो हम कैसे कह सकते हैं कि इसमें सारे वचन सिर्फ परमेश्वर के ही हैं? जरूरी नहीं है कि परमेश्वर द्वारा प्रेरित चीजें मनुष्य द्वारा अनुभव की जाएँ या इंसानी विचारों के साथ मिला दी जाएँ। ये दोनों साफ तौर पर अलग हैं।" मैं बहन की बातों से थोड़ा चौंक गया था : परमेश्वर द्वारा प्रेरित वचनों और लोगों द्वारा लिखी देखी-सुनी बातों में सचमुच फर्क होता है। मुझे बहन की बातों में कोई गलती नजर नहीं आई। मैंने गहरी साँस ली, और यह सोचते हुए कनखियों से बहन को मापा-तोला : "ये बूढ़ी हैं, ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं लगतीं, फिर भी इनकी दृष्टि इतनी गहरी है। यकीन नहीं होता!" पल भर के लिए, मैं उनकी बात का कोई जवाब नहीं सोच पाया, मेरा चेहरा लाल हो गया। मुझे फिक्र हो गई कि अगर मैं इनकी बातें सुनता रहा, तो गुमराह हो जाऊंगा, इसलिए मैंने खाँसकर कहा : "बहुत हो गया, हमारी आस्थाएँ अलग हैं। यहाँ दोबारा न आएँ।" ऐसा कहकर मैंने बहन को दरवाजे से बाहर भेज दिया। उनकी आँखों में सच्ची अभिव्यक्ति और जाड़ों की सर्द हवा में उनका कमजोर तन देखकर, मेरे दिल में गहरी चुभन महसूस हुई, जान नहीं पाया यह अनुभूति क्या थी। लेकिन मुझे याद आया कि किस तरह बाइबल के सभी वचन परमेश्वर के हैं, और कोई भी दूसरी चीज परमेश्वर में आस्था नहीं है। वे बाइबल से बाहर की बातों का प्रचार करते हैं, फिर भी हमारी कलीसिया में भेड़ें चुराने आए हैं। मैं उनका प्रचार नहीं सुन सकता, मुझे अपने विचारों पर अडिग रहना होगा। इसके बाद, मैं अब भी अपनी सोच और करनी के साथ शांतचित्त था, और मैंने झुंड को "बचाए रखने" की भरसक कोशिश की। इसके बावजूद, जब भी मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के किसी व्यक्ति को देखता, तो घबरा जाता। उनकी संगति अर्थपूर्ण थी और उसे काटना मुश्किल था। इसलिए कुछ और नहीं बल्कि एक कट्टर रवैया अपनाने, उनकी बात न सुनने, उनकी किताबें न पढ़ने और उनसे मेलजोल न रखने की जरूरत थी।
जल्दी ही 2004 का पतझड़ का मौसम आ गया। मेरे चचेरे भाई यांग ने फोन किया कि किसी जरूरी काम के लिए उसे मेरी जरूरत है। मैं फौरन चला गया, चचेरे भाई ने मुझे भाई वांग से मिलवाया। उसने बताया कि भाई वांग एक प्रचारक है, और उसने हमसे प्रभु की हमारी समझ पर संवाद करने को कहा। मुझे सच में बहुत खुशी हुई, फिर नमस्ते कहने के बाद, चचेरे भाई ने मुझे बाइबल की एक प्रति दे दी, और दो मोटी जिल्द वाली किताबें ले आया। मैंने किताब का शीर्षक देखा : वचन देह में प्रकट होता है। ये चमकती पूर्वी बिजली की किताबें थीं! मैंने बुरी तरह चौंक कर कहा : "यांग, तुमने चमकती पूर्वी बिजली को स्वीकार लिया है?" मेरे चचेरे भाई ने चहकते हुए कहा : "सही कहा। मैंने तुम्हें आज इसलिए बुलाया, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ संगति करना चाहता था। उम्मीद है तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर गौर करोगे।" तब मुझे याद आया कि पादरी और एल्डर हमेशा कहते थे, पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है और परमेश्वर के सभी वचन इसमें हैं। चमकती पूर्वी बिजली की शिक्षाएँ बाइबल से बाहर की हैं, वे प्रभु की शिक्षाओं से अलग हैं। किसी भी हालत में हमें इन्हें नहीं सुनना चाहिए। हमारा सबसे अच्छा पलटवार उनसे बचना ही है। इसलिए मैंने बहाना बनाया कि मुझे घर में कुछ जरूरी काम है। मेरे चचेरे भाई ने शांति से कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले किसी व्यक्ति से मिलने पर, तुम भाग क्यों जाते हो? अगर तुम सत्य जानते हो, तो गुमराह होने से क्यों डरते हो? आए ही हो, तो क्यों न दिल को शांत कर थोड़ी खोज कर लो?" अपनी कुर्सी पर लौटने के सिवाय मैं कुछ नहीं कर सकता था, मगर मेरे मन में हलचल मची हुई थी : मैं आज इस हालत को कैसे सँभालूँ? मैंने मन-ही-मन प्रभु से प्रार्थना की : "हे प्रभु! मैं यह हालत तुम्हें सौंपता है। मेरी रक्षा करो, रास्ता दिखाओ।" फिर मेरे चचेरे भाई ने वचन देह में प्रकट होता है किताब उठाकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा। "मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें विनम्र और श्रद्धावान होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बढ़ाई न करो। परमेश्वर के लिए अपने हृदय में इतना थोड़ा-सा आदर रखकर तुम बड़े प्रकाश को प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)। मैं यूँ बैठा रहा मानो मुझ पर कोई असर ही न हुआ हो, मगर दरअसल, किताब के वचनों ने छाप छोड़ दी थी। ये सारी अपेक्षाएँ प्रभु यीशु के वचनों के अनुरूप थीं। प्रभु ने कहा, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)। परमेश्वर के विश्वासियों में विनम्रता और खोजने का रवैया होना चाहिए। मैंने खोज या जाँच-पड़ताल के बिना चमकती पूर्वी बिजली की निंदा और आलोचना की थी। मैं सच में अहंकारी और दंभी था। मुझे अपराध-बोध हुआ, मैंने मन-ही-मन सोचा : "ये वचन कुछ ख़ास हैं, प्रभु की शिक्षाओं के समान ही हैं। क्या ये वास्तव में वापस आये प्रभु द्वारा बोले गए वचन हो सकते हैं?" मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों से समय-समय पर हुई अपनी बातचीत को भी याद किया : वे प्रतिष्ठित और ईमानदार थे, प्रेम से सुसमाचार फैलाते थे, धैर्यवान थे, सवालों के जवाब में बताई गयी उनकी बातें पुख्ता और आश्वस्त करने वाली थीं। पवित्र आत्मा के कार्य के बिना, वे अपने आप यह कैसे कर सकते थे? इससे पता चलता था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मार्ग यकीनन ख़ास था। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच में वापस आया हुआ प्रभु यीशु है और मैंने खोज और जाँच-पड़ताल नहीं की, तो क्या मैं प्रभु के आगमन का स्वागत करने का मौका गँवा नहीं दूंगा और आखिर उसके द्वारा ठुकरा नहीं दिया जाऊँगा? मैंने सोचा : "मुझे जिद्दी नहीं बनना चाहिए। क्यों न मैं आज इस बारे में खोजूँ कि प्रभु सच में आया है या नहीं? फिर मुझे स्पष्टता हासिल हो जाएगी।" पल भर सोचने के बाद, मैं दृढ़ता से बोला : "तुमने जो वचन पढ़े, वे यकीनन अच्छे और बहुत विशेष थे। लेकिन मैं नहीं समझ पा रहा। बाइबल ईसाई धर्म का सिद्धांत-सूत्र है। दो हजार साल से भी ज्यादा से, धार्मिक संसार ने हमेशा यह विश्वास रखा है कि पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, और बाइबल में दर्ज हर बात परमेश्वर का वचन है, और इसलिए बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। अपने ईसाई होने के इन तमाम वर्षों में मैंने इसे सत्य माना, लेकिन अब तुम कहते हो कि बाइबल में परमेश्वर और मनुष्य दोनों के वचन हैं। क्या यह बाइबल के विपरीत नहीं है? यह प्रभु को नकारना है, उसे अपनी पीठ दिखाना है, और भद्दी ईशनिंदा है!" भाई वांग ने सब्र से कहा : "क्या यह कहना कि बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर से प्रेरित है, वास्तविकता से मेल खाता है? प्रभु के कौन-से वचन इसका सबूत हैं?" इस सवाल ने मेरा मुँह बंद कर दिया। सही है। ये वचन पौलुस ने कहे थे, प्रभु यीशु ने नहीं। फिर भाई वांग ने कहा : "प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, पवित्र आत्मा भी इसकी गवाही नहीं देता। पौलुस की बातें बाइबल की सिर्फ उसकी समझ दर्शाती हैं, परमेश्वर का प्रतिनिधित्व बिल्कुल भी नहीं करतीं।" मैं निरुत्तर था। उसकी बात सही थी। फिर भाई वांग ने पूछा : "पौलुस ने कहा, 'सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है' (2 तीमुथियुस 3:16)। 'बाइबल' कहते समय क्या वह सच में पूरी बाइबल का संदर्भ दे रहा है या सिर्फ उसके एक भाग का?" मैंने मन-ही-मन सोचा, "जाहिर है, उसका अर्थ पूरी बाइबल से था।" भाई वांग ने आगे कहा : "दरअसल, पौलुस ने 2 तीमुथियुस, प्रभु के आने के 60 वर्ष बाद लिखा, तब तक नया नियम संकलित नहीं हुआ था, सिर्फ पुराना नियम था। प्रभु के आगमन के 90 साल बाद, यूहन्ना ने पतमुस द्वीप पर हुए दर्शन के बारे में लिखा, जो बाद में प्रकाशितवाक्य की किताब बना। प्रभु के आगमन के करीब 300 साल बाद, नायसिया की एक बैठक में, विभिन्न देशों के धार्मिक नेताओं ने अनुयायियों के ढेरों पत्रों में से चार सुसमाचारों और कुछ दूसरे धर्मपत्रों को चुना, और यूहन्ना की प्रकाशितवाक्य की किताब के साथ जोड़ कर उन्हें नए नियम के रूप में संकलित किया। इसके बाद, उन्होंने पुराने नियम और नए नियम को साथ जोड़कर एक किताब बना दी, जो कि पूरा पुराना और नया नियम है जिसे आज हम पढ़ते हैं। नया नियम ईसा के जन्म के 300 साल बाद संकलित किया गया, और पौलुस ने 2 तिमुथियुस ईसा के 60 साल बाद लिखा, जो कि नए नियम के संकलन से करीब 200 वर्ष पहले का है। इससे हम देख सकते हैं कि जब पौलुस ने कहा, 'सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है,' तो वह जिस बाइबल का संदर्भ दे रहा था उसमें नया नियम शामिल नहीं था।" यह सुनने के बाद, मैं अपना सिर हिलाकर यह कहे बिना नहीं रह सका : "पौलुस जिस बाइबल के बारे में बोल रहा था अगर उसमें नया नियम शामिल नहीं था, तो उसका अर्थ पुराना नियम रहा होगा।" भाई वांग ने कहा : "हाँ, मगर पुराना नियम भी पूरी तरह परमेश्वर से प्रेरित नहीं था। एक बार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ लेने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा।"
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि बाइबल में कितने भाग शामिल हैं; पुराने विधान में उत्पत्ति, निर्गमन शामिल हैं..., और उसमें नबियों द्वारा लिखी गई भविष्यवाणियों की पुस्तकें भी हैं। अंत में, पुराना विधान मलाकी की पुस्तक के साथ समाप्त होता है। ... भविष्यवाणी की ये पुस्तकें बाइबल की अन्य पुस्तकों से काफी अलग थीं; वे उन लोगों द्वारा बोले या लिखे गए वचन थे, जिन्हें भविष्यवाणी की आत्मा दी गई थी—उनके द्वारा, जिन्होंने यहोवा के दर्शनों या आवाज़ को प्राप्त किया था। भविष्यवाणी की पुस्तकों के अलावा, पुराने विधान में हर चीज़ उन अभिलेखों से बनी है, जिन्हें लोगों द्वारा तब तैयार किया गया था, जब यहोवा ने अपना काम समाप्त कर लिया था। ये पुस्तकें यहोवा द्वारा खड़े किए गए नबियों द्वारा की गई भविष्यवाणियों का स्थान नहीं ले सकतीं, बिलकुल वैसे ही जैसे उत्पत्ति और निर्गमन की तुलना यशायाह की पुस्तक और दानिय्येल की पुस्तक से नहीं की जा सकती। भविष्यवाणियाँ कार्य पूरा होने से पहले की गई थीं; जबकि अन्य पुस्तकें कार्य पूरा होने के बाद लिखी गई थीं, जिसे करने में वे लोग समर्थ थे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। "बाइबल में हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का अभिलेख नहीं है। बाइबल बस परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण दर्ज करती है, जिनमें से एक भाग नबियों की भविष्यवाणियों का अभिलेख है, और दूसरा भाग युगों-युगों में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों द्वारा लिखे गए अनुभवों और ज्ञान का अभिलेख है। मनुष्य के अनुभव उसके मतों और ज्ञान से दूषित होते हैं, और यह एक अपरिहार्य चीज़ है। बाइबल की कई पुस्तकों में मनुष्य की धारणाएँ, पूर्वाग्रह और बेतुकी समझ शामिल हैं। बेशक, अधिकतर वचन पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी का परिणाम हैं और वे सही समझ हैं—फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह से सत्य की सटीक अभिव्यक्ति हैं। कुछ चीज़ों पर उनके विचार व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान या पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से बढ़कर कुछ नहीं हैं। नबियों के पूर्वकथन परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किए गए थे : यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल जैसों की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं; ये लोग द्रष्टा थे, उन्होंने भविष्यवाणी के आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के नबी थे। व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त करने वाले लोगों ने अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))। इसके बाद, भाई वांग ने संगति की : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। नबियों की भविष्यवाणियों के निर्देश पवित्र आत्मा ने स्वयं दिए थे, जिन्हें नबियों ने आगे प्रचारित किया। ये परमेश्वर के वचन हैं, और परमेश्वर का सटीक अर्थ बताते हैं। परमेश्वर द्वारा प्रेरित वचन बाइबल में हमेशा स्पष्ट रूप से अंकित होते हैं; मिसाल के तौर पर, यशायाह की शुरुआत में कहा गया है, 'आमोस के पुत्र यशायाह का दर्शन' (यशायाह 1:1)। यिर्मयाह की शुरुआत में कहा गया है, 'यहोवा का वचन जिसके पास पहुँचा' (यिर्मयाह 1:2)। परमेश्वर द्वारा प्रेरित वचन कौन-से हैं, यह पक्का करने के लिए लोगों को सिर्फ ध्यान देने की जरूरत है। भविष्यवाणी की किताबों के अलावा, बाइबल का बाकी भाग परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेने के बाद लोगों द्वारा लिखी गई बातें हैं। इनमें से ज्यादातर स्मृतियों के अभिलेख हैं, ये सभी अनुभव और वचन मनुष्यों के हैं, हम यह नहीं कह सकते कि ये परमेश्वर के वचन हैं, इसलिए ये इंसानी अर्थ की मिलावट से बच नहीं सकते। जैसे कि 2 शमूएल 24:1 में कहा गया है, 'यहोवा का कोप इस्राएलियों पर फिर भड़का, और उसने दाऊद को उनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा, "इस्राएल और यहूदा की गिनती ले।"' फिर 1 इतिहास 21:1 में भी कहा गया है : 'शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठकर, दाऊद को उकसाया कि इस्राएलियों की गिनती ले।' ये दोनों पद तब दर्ज हुए जब दाऊद ने इस्राएल को अंकित किया। एक जगह पर इसमें कहा गया है कि यहोवा परमेश्वर ने दाऊद को इस्राएल को अंकित करने भेजा, और दूसरे में कहा गया है कि दाऊद को शैतान ने भेजा। अगर यह परमेश्वर से प्रेरित होता, तो इतनी बड़ी गलती कैसे होती? अगर पूरा पुराना नियम परमेश्वर द्वारा प्रेरित होता, तो एक ही घटना की कहानी प्रेरित करते समय क्या परमेश्वर गलती करता?" भाई वांग की बातें सुनकर, मेरे मन की गांठें काफी खुल गईं, मेरा जिद्दी मानसिक बचाव टूटकर बिखरने लगा। मैंने कहा : "अगर पुराना नियम पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा प्रेरित नहीं था, तो हम नए नियम को भी पूरी तरह परमेश्वर के वचन नहीं मान सकते, क्योंकि ये सारे प्रेरितों के अभिलेख हैं।" भाई वांग ने खुशी से कहा : "परमेश्वर का धन्यवाद, आपने सही समझा है। दरअसल, नए नियम में, सिर्फ प्रभु यीशु के वचन और प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियाँ ही परमेश्वर के वचन हैं। बाकी सब अनुयायियों, फरीसियों, आम लोगों, सैनिकों और दानव के कथन हैं। क्या यह कहना बेतुका नहीं है कि बाइबल की हर बात परमेश्वर का वचन है? क्या यह ईशनिंदा नहीं है?"
इसके बाद, भाई वांग ने मेरे लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। ... यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))। मैंने जितना सुना, उतना ज्यादा समझा। मैंने खुद को उलाहना दी : "पहले, मैं पौलुस की इन बातों का संदर्भ नहीं समझ पाया था। मैं सोचता था कि पूरी बाइबल परमेश्वर द्वारा प्रेरित है, इसके सभी वचन परमेश्वर के हैं, और बाइबल में विश्वास रखना परमेश्वर में विश्वास रखना है। यह व्याख्या बेहद बेतुकी थी! मैं बाइबल में लोगों के वचनों को परमेश्वर के वचन मानने पर जोर देता रहा, और इन्हें अपनी आस्था का आधार बनाया। क्या यह प्रभु के मार्ग से दूर जाना नहीं है?"
फिर भाई वांग ने यह कहकर संगति की कि बाइबल परमेश्वर के कार्य की बस एक गवाही है, और यह एक ऐतिहासिक किताब है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था और अनुग्रह के युगों के दौरान परमेश्वर के कार्य का अभिलेख है। इसे परमेश्वर के स्तर पर कैसे रखा जा सकता है? इसलिए प्रभु यीशु ने फरीसियों को यह कहकर फटकारा : "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)। बाइबल सिर्फ परमेश्वर की गवाही है, इसमें अनंत जीवन निहित नहीं है। सिर्फ परमेश्वर ही लोगों को अनंत जीवन दे सकता है! मुझे याद है, मेरे चचेरे भाई ने भी संगति की थी कि बाइबल को पढ़कर हम व्यवस्था और अनुग्रह के युग में किए गए परमेश्वर के कार्य को समझते हैं, हम जानते हैं कि ब्रह्मांड की सभी चीजें परमेश्वर द्वारा रची गई हैं, किस तरह परमेश्वर ने मानवता की अगुआई, पृथ्वी पर हमारी जीवनचर्या और परमेश्वर की आराधना के लिए व्यवस्था लागू की। हम जानते हैं पाप क्या है, और यह भी कि परमेश्वर किस किस्म के लोगों को आशीष या श्राप देता है। हम यह भी जानते हैं कि हमें प्रभु के सामने किस प्रकार अपने पाप स्वीकारने हैं और प्रायश्चित करना है, कैसे विनम्र, धैर्यवान, क्षमाशील बनना है, और किस तरह अपना सलीब उठाकर प्रभु का अनुसरण करना है। हम अपने लिए प्रभु यीशु की असीम करुणा और प्रेम देखते हैं, और समझते हैं कि सिर्फ प्रभु यीशु में विश्वास रखकर और उसके सामने आकर ही हम परमेश्वर के प्रचुर अनुग्रह और सत्य का आनंद पा सकते हैं। लेकिन अंत के दिनों में, परमेश्वर कौन-से सत्य व्यक्त करता है, और परमेश्वर किस तरह मनुष्य की भ्रष्टता का न्याय कर उसे शुद्ध करता है, हमारे पाप की जड़ कैसे उखाड़ता है, इनका हमें जरा भी अंदाजा नहीं, क्योंकि ये सत्य बाइबल में दर्ज नहीं किए गए थे। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर, अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय-कार्य किया है, मानवता को शुद्ध करने के बारे में सभी सत्य व्यक्त किए हैं, भ्रष्ट मानवता के शैतानी स्वभाव और प्रकृति का खुलासा किया है, ताकि हमारी भ्रष्टता शुद्ध हो जाए, हम परमेश्वर से प्रेम करने और उसकी आज्ञा मानने वाले लोग बन जाएँ, हम यह पहचान सकें कि परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और धार्मिक है; वह अपमान की इजाजत नहीं देता। ये वचन अनंत जीवन का सच्चा मार्ग हैं, और प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरी तरह साकार करते हैं : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। वचन देह में प्रकट होता है नामक किताब में, प्रकाशितवाक्य में की गई भविष्यवाणी के वचन हैं, जो पवित्र आत्मा सभी कलीसियाओं से कहता है। यह मेमने द्वारा खोली गई किताब है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर धार्मिक संसार में रहने वाले परमेश्वर के सच्चे विश्वासियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की वाणी को पहचाना है, और मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण किया है।
यह कहने के बाद, भाई वांग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की जाती, वे हमेशा मुर्दे, शैतान के खिलौने और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत् खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को खारिज करने की कोशिश नहीं करते, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के कदम उमड़ती लहरों और घुमड़ते गर्जनों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके हो और कुछ नहीं करते। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो, उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो, जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के कदमों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? जिन्हें तुम अपने हाथों में थामे हो, वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। जो शास्त्र तुम पढ़ते हो, वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और वे दर्शनशास्त्र के वे वचन नहीं हैं, जो मानव-जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हों, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने वाले मार्ग देने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती? क्या तुम अपने बल पर परमेश्वर से मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग पहुँचाने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो, जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो, जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। ये वचन सुनने के बाद, मैं पूरी तरह से हिल गया। अगर मैं अपने धार्मिक नजरिये से चिपका रहा, तो आखिर मैं ही सब-कुछ खो दूँगा। मैंने सोचा कि एक ईसाई होने के इतने वर्षों में, मैंने बाइबल का कितना ज्ञान हासिल कर लिया था, फिर भी मुझे सत्य या परमेश्वर की बस थोड़ी ही समझ थी। इसके विपरीत, मैं और ज्यादा अहंकारी होता जा रहा था। प्रभु वापस आ चुका था, मगर मैंने न सिर्फ जाँच-पड़ताल नहीं की, बल्कि मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा के लिए बाइबल के वचनों का इस्तेमाल किया। मैं उन फरीसियों जैसा ही था जिन्होंने परमेश्वर का प्रतिरोध किया। मैं सच में अंधा था, परमेश्वर को नहीं जानता था! न सिर्फ मैं अपनी धारणाओं से चिपका रहा, मैंने दूसरों को भी जाँच-पड़ताल करने से रोकने के लिए अपना दिमाग लड़ाया। क्या यह परमेश्वर के कार्य में बाधा डालना नहीं था? अगर दूसरे लोग प्रभु का स्वागत नहीं कर पाते या उसके नए कार्य का अनुसरण नहीं कर पाते, तो वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश का अपना मौका गँवा देते। मैं एक दुष्ट व्यक्ति था जिसने दूसरों को नरक में घसीटा और परमेश्वर का प्रतिरोध किया! मैंने ऐसी दुष्टता की थी, फिर भी परमेश्वर ने मुझ पर करुणा और अनुग्रह दिखाया। परमेश्वर ने मुझे अपनी वाणी सुनने दी, उसका प्रकटन देखने दिया। परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा है! इसके बाद, हमने बाइबल पर संगति जारी रखी। हमने इस बारे में भी बात की कि अनुग्रह के युग में कलीसिया वीरान क्यों हो गई, परमेश्वर अपने कार्य के तीन चरणों के जरिये किस तरह मानवता को बचाता है, वगैरह।
बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार किया। बाद में, मेरी पत्नी ने भी इसे स्वीकार लिया। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?