क्या यह सच है कि परमेश्वर के सभी कार्य और वचन बाइबल में हैं?

29 नवम्बर, 2021

क्या यह सच है कि परमेश्वर के सभी कार्य और वचन बाइबल में हैं?

उद्धारकर्ता सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में प्रकट होकर कार्य कर रहा है, उसने करोड़ों वचन व्यक्त किए हैं। वह मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध करके बचाने के लिए परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय-कार्य कर रहा है। उसके वचनों का संग्रह, वचन देह में प्रकट होता है, ऑनलाइन उपलब्ध है। उसने सिर्फ धार्मिक संसार में ही नहीं, दुनिया भर में हलचल मचा दी है। हर देश और हर संप्रदाय के उन लोगों ने, जो सत्य से प्रेम करते और परमेश्वर के प्रकटन को तरसते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है, और पाया है कि वे सत्य हैं, पवित्र आत्मा के कथन हैं। उन्होंने परमेश्वर की वाणी को सुना है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को लौट कर आए हुए प्रभु यीशु के रूप में पहचाना है, और वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने आए हैं। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं(यूहन्ना 10:27)। धार्मिक संसार के बहुत-से लोग हालांकि यह मानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, सामर्थ्यवान और आधिकारिक हैं, पर वे इन वचनों के बाइबल में दर्ज न होने के कारण, उन्हें स्वीकार करने से मना करते हैं। उनका विश्वास है कि परमेश्वर का पूरा कार्य और सारे वचन बाइबल में हैं, और कुछ भी इसके बाहर नहीं हो सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, लेकिन इनके बाइबल में न होने के कारण, ये परमेश्वर का कार्य और उसके वचन कैसे हो सकते हैं? और कुछ लोग, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के कुछ सदस्यों को बाइबल के बजाय वचन देह में प्रकट होता है को पढ़ते देख, इसकी निंदा करते हैं, और कहते हैं कि बाइबल से दूर जाना प्रभु को धोखा देना है, यह विधर्म है। इससे मुझे यहूदी फरीसियों की याद आती है, जिन्होंने प्रभु यीशु की आलोचना और निंदा की, उसके विरुद्ध लड़े, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका कार्य और उसके वचन उनके धर्मग्रंथ से बाहर के थे और उसे मसीहा नहीं कहा गया था। उन्होंने उसे सूली पर भी चढ़वा दिया, आखिर में वे परमेश्वर द्वारा दंडित और शापित हुए, जिससे इस्राएल राष्ट्र तबाह हो गया। यह विचार जगाने वाला सबक है! आज बहुत-से धार्मिक लोग जोर देकर कहते हैं कि परमेश्वर का पूरा कार्य और सारे वचन बाइबल में हैं, और इसके बाहर कुछ नहीं है। वे इस गलत विचार से चिपककर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों को नकारते और निंदा करते हैं। कुछ लोग वैसे तो सीधे मान लेते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, फिर भी उनकी जांच-पड़ताल नहीं करते, नतीजा यह होता है कि वे विपत्तियों से पहले प्रभु का स्वागत करने का अपना मौक़ा गँवा देते हैं। दुख की बात है कि वे विपत्तियों में डूब गए हैं। “परमेश्वर का पूरा कार्य और सारे वचन बाइबल में हैं, और इससे बाहर कुछ भी नहीं है।” इस विचार के कारण अनगिनत लोगों ने प्रभु का स्वागत करने का अपना मौक़ा गँवा दिया है, जिससे अकथनीय नुकसान हुआ है। आखिर इस विचार में गलत क्या है? इस बारे में मैं जो जानता हूँ, वो साझा करूँगा।

इस पर गौर करने से पहले, आइए स्पष्ट कर लें कि बाइबल कहाँ से आया। यह दो भागों से बना है : पुराना नियम और नया नियम। यहूदी यहोवा में आस्था रखते हैं, और पुराने नियम के धर्मग्रंथों का प्रयोग करते हैं, जबकि प्रभु यीशु में विश्वास रखने वाले ईसाई नए नियम का प्रयोग करते हैं। पुराना नियम और नया नियम दोनों ही, परमेश्वर द्वारा अपना कार्य पूरा कर लेने के सदियों बाद इंसानों द्वारा संकलित किए गए थे। बाइबल स्वर्ग से नहीं आई है, और जाहिर है, परमेश्वर ने स्वयं इसे लिखकर हमें नहीं सौंपा। उस समय के धार्मिक अगुआओं ने आपसी सहयोग से इसे संकलित किया। जाहिर है उन्हें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन मिला था—इसमें शक नहीं। बाइबल का संकलन इंसानों ने किया, इसलिए किसी भी तरह यह संभव नहीं कि पुराने नियम में नए नियम की विषयवस्तु शामिल हों, और यह भी संभव नहीं कि नए नियम में परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य शामिल हो। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोग भविष्य में नहीं देख सकते। बाइबल में शामिल किए गए पदों और किताबों को चुना गया था, नबियों और प्रेरितों की सभी रचनाएँ बाइबल में नहीं हैं। बहुत-सी छोड़ दी गईं या निकाल दी गईं। मगर समस्या यह नहीं है। इंसानों ने संकलन किया है तो, कुछ का चुना जाना, कुछ का निकाल दिया जाना या ना रखा जाना आम बात है। इसमें लोग ये गलती करते हैं कि वे इस पर जोर देते हैं कि परमेश्वर का पूरा कार्य और वचन बाइबल में है, मानो उन युगों में परमेश्वर ने बस उतना ही कहा और किया। यह किस प्रकार की समस्या है? नबियों की कुछ किताबें पुराने नियम में दर्ज नहीं की गईं, हमारी जानकारी में ऐसी दो-चार किताबें हैं जो बाइबल में नहीं हैं, जैसे एनोह और एज्रा की। हम पक्का मान सकते हैं कि दूसरे नबियों की किताबें भी होंगी जिन्हें नए नियम में जगह नहीं मिली होगी, यह कहने की बात ही नहीं है कि प्रभु यीशु ने तीन वर्ष से ज्यादा तक के प्रचार में बहुत-कुछ कहा होगा, लेकिन उनके बहुत थोड़े-से वचन बाइबल में हैं। जैसा कि प्रेरित यूहन्ना ने कहा, “और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं” (यूहन्ना 21:25)। यह स्पष्ट है कि परमेश्वर के कार्य और वचनों का बाइबल का रिकॉर्ड बहुत सीमित है! बेशक हम यह जानते हैं कि न तो पुराने नियम और न नए नियम में, उस युग के परमेश्वर के कार्य और वचनों का संपूर्ण वृत्तांत नहीं है। इस सच्चाई को सब लोग मानेंगे। धार्मिक संसार में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो न तो बाइबल को समझते हैं, और न ही यह जानते हैं कि इसे कैसे संकलित किया गया। उनका विश्वास है कि परमेश्वर का पूरा कार्य और वचन बाइबल में हैं, और वे बाइबल के बाहर की हर चीज को नकारते हैं, उसकी निंदा करते हैं। क्या यह ऐतिहासिक तथ्यों के अनुरूप है? क्या यह दावा परमेश्वर के कार्य को आँक नहीं रहा? क्या यह उसका प्रतिरोध नहीं है? सच्चाई घटित होने के बाद बाइबल का संकलन हुआ, और यह काम इंसानों ने किया, तो इंसान समय से पहले परमेश्वर के अगले चरण के कार्य को बाइबल में कैसे डाल सकते थे? यह तो असंभव है, क्योंकि लोगों के पास भविष्य को देखने की शक्ति नहीं होती। जिन लोगों ने पुराने नियम का संकलन किया वे प्रभु यीशु के समय में जीवित नहीं थे, और उन्होंने प्रभु यीशु के कार्य का अनुभव नहीं किया। वे उसके कार्य और वचनों को और प्रेरितों की किताबों को, समय से पहले पुराने नियम में कैसे डाल सकते थे? यह भी संभव नहीं है कि जिन लोगों ने नए नियम का संकलन किया वे, 2,000 साल बाद के, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य और वचनों को पहले से ही धर्मग्रंथ में डाल देते आज पूरा धार्मिक संसार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों का साक्षी है। कुछ लोगों ने इन पर गौर किया है, और मान लिया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में समस्त सत्य हैं, ये अधिकारपूर्ण है। लेकिन बाइबल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और उसका नाम न होने, और उनके वहाँ न मिलने के कारण, वे नकार देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही स्वयं परमेश्वर का प्रकटन है। क्या उनकी गलती फरीसियों जैसी ही नहीं है, जब उन्होंने प्रभु यीशु का प्रतिरोध कर उसकी निंदा की थी? फरीसियों ने सोचा कि प्रभु यीशु का नाम मसीहा न होने, और उसके कार्यों और वचनों के धर्मग्रंथों के अनुरूप न होने के कारण, वे नकार सकते हैं कि वही मसीहा है। आज धार्मिक लोग देख रहे हैं कि बाइबल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की भविष्यवाणी नहीं की गई है, और उसके वचन भी इसमें नहीं मिलते, इसलिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों को नकार कर उसकी निंदा करते हैं। ये लोग फिर से परमेश्वर को सूली पर चढ़ाने का पाप दोहरा रहे हैं। दरअसल, बाइबल में परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य और वचन भले ही नहीं हैं, मगर उसमें अंत के दिनों में परमेश्वर के नए नाम की भविष्यवाणियाँ हैं, जैसे कि यशायाह की यह भविष्यवाणी : “तब जाति जाति के लोग तेरा धर्म और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे, और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा(यशायाह 62:2)। और हम प्रकाशितवाक्य में देख सकते हैं : “जो जय पाए उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊँगा, और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है, और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा(प्रकाशितवाक्य 3:12)। “प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्‍तिमान है, यह कहता है, ‘मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ’(प्रकाशितवाक्य 1:8)। “हल्‍लिलूय्याह! क्योंकि प्रभु हमारा परमेश्‍वर सर्वशक्‍तिमान राज्य करता है(प्रकाशितवाक्य 19:6)। बाइबल में परमेश्वर के अंत के दिनों में ज्यादा बोलने और ज्यादा कार्य करने की भविष्यवाणी भी है, जैसे कि प्रभु यीशु ने कहा : “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशितवाक्यों में एक चेतावनी भी है, जो सात बार दी गई है : “जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है(प्रकाशितवाक्य अध्याय 2, 3)। प्रकाशितवाक्य में यह भविष्यवाणी भी है कि परमेश्वर अंत के दिनों में सीलबंद किताबों को खोलेगा। साफ तौर पर, अंत के दिनों में, परमेश्वर के कलीसियाओं से बात करने और मनुष्य को सारे सत्यों की ओर ले जाने की भविष्यवाणी है। अंत के दिनों के लिए परमेश्वर का यह कार्य और वचन पहले से ही बाइबल में कैसे प्रकट हो सकता है? यह असंभव है! इन सभी भविष्यवाणियों और प्रत्यक्ष तथ्यों के बावजूद इतने सारे लोग आँखें खोलकर भी कुछ देख क्यों नहीं पाते, वे यह राय बनाकर क्यों अड़े हुए हैं कि परमेश्वर के सभी कार्य और वचन सिर्फ बाइबल में हैं, और इससे बाहर कहीं नहीं मिल सकते? अब जबकि परमेश्वर प्रकट होकर कार्य कर रहा है, तब उसकी आलोचना और उसका प्रतिरोध करने की ढिठाई दिखाने वाले ये लोग, परमेश्वर के कार्य को नहीं समझते, और दूर-दूर तक सत्य को नहीं समझते। ये परमेश्वर द्वारा निंदित कर हटा दिए जाते हैं, और वे विपत्तियों में डूब चुके हैं। इससे बाइबल के ये पद साकार होते हैं : “मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं” (नीतिवचन 10:21)। “मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्‍ट हो गई(होशे 4:6)

आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन देखें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “बाइबिल में दर्ज की गई चीज़ें सीमित हैं; वे परमेश्वर के संपूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं। सुसमाचार की चारों पुस्तकों में कुल मिलाकर एक सौ से भी कम अध्याय हैं, जिनमें एक सीमित संख्या में घटनाएँ लिखी हैं, जैसे यीशु का अंजीर के वृक्ष को शाप देना, पतरस का तीन बार प्रभु को नकारना, सलीब पर चढ़ाए जाने और पुनरुत्थान के बाद यीशु का चेलों को दर्शन देना, उपवास के बारे में शिक्षा, प्रार्थना के बारे में शिक्षा, तलाक के बारे में शिक्षा, यीशु का जन्म और वंशावली, यीशु द्वारा चेलों की नियुक्ति, इत्यादि। फिर भी मनुष्य इन्हें ख़ज़ाने जैसा महत्व देता है, यहाँ तक कि उनसे आज के काम की जाँच तक करता है। यहाँ तक कि वे यह भी विश्वास करते हैं कि यीशु ने अपने जीवनकाल में सिर्फ इतना ही कार्य किया, मानो परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है, इससे अधिक नहीं। क्या यह बेतुका नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1))

आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? अतीत की चीज़ों को आज सामने लाना उन्हें इतिहास बना देता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे हैं तो इतिहास ही—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता, क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास नहीं देखता! तो यदि तुम केवल बाइबल को समझते हो और परमेश्वर आज जो कार्य करना चाहता है, उसके बारे में कुछ नहीं समझते और यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, किन्तु पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते, तो तुम्हें पता ही नहीं कि परमेश्वर को खोजने का क्या अर्थ है। यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने के लिए, परमेश्वर द्वारा समस्त लोकों और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल पढ़ते हो, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो और मृत पत्रों और सिद्धांतों या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजना चाहिए और पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा की तलाश करनी चाहिए। यदि तुम पुरातत्ववेत्ता होते तो तुम बाइबल पढ़ सकते थे—लेकिन तुम नहीं हो, तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अच्छा होगा तुम परमेश्वर की आज की इच्छा की खोज करो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))

यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। आज परमेश्वर देहधारी हो चुका है और उसने चीन में अन्य चयनित लोगों को छाँट लिया है। परमेश्वर इन लोगों में कार्य करता है, वह पृथ्वी पर अपना काम जारी रख रहा है, और अनुग्रह के युग के कार्य से आगे जारी रख रहा है। आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। इस प्रकार, जो कार्य पहले कभी नहीं किया गया, वह इतिहास नहीं है, क्योंकि अभी तो अभी है, और वह अभी अतीत नहीं बना है। लोग नहीं जानते कि परमेश्वर ने पृथ्वी पर और इस्राएल के बाहर पहले से बड़ा और नया काम किया है, जो पहले ही इस्राएल के दायरे के बाहर और नबियों के पूर्वकथनों के पार जा चुका है, वह भविष्यवाणियों के बाहर नया और अद्भुत, और इस्राएल के परे नवीनतर कार्य है, और ऐसा कार्य, जिसे लोग न तो समझ सकते हैं और न ही उसकी कल्पना कर सकते हैं। बाइबल ऐसे कार्य के सुस्पष्ट अभिलेखों को कैसे समाविष्ट कर सकती है? कौन आज के कार्य के प्रत्येक अंश को, बिना किसी चूक के, अग्रिम रूप से दर्ज कर सकता है? कौन इस अति पराक्रमी, अति बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य को, जो परंपरा के विरुद्ध जाता है, इस पुरानी घिसी-पिटी पुस्तक में दर्ज कर सकता है? आज का कार्य इतिहास नहीं है, और इसलिए, यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे। ... जब एक उच्चतर मार्ग मौजूद है, तो फिर निम्न, पुराने मार्ग का अध्ययन क्यों करते हो? जब यहाँ अधिक नवीन कथन और अधिक नया कार्य उपलब्ध है, तो पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों के मध्य क्यों जीते हो? नए कथन तुम्हारा भरण-पोषण कर सकते हैं, जिससे साबित होता है कि यह नया कार्य है; पुराने अभिलेख तुम्हें तृप्त नहीं कर सकते, या तुम्हारी वर्तमान आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकते, जिससे साबित होता है कि वे इतिहास हैं, और यहाँ का और अभी का कार्य नहीं हैं। उच्चतम मार्ग नवीनतम कार्य है, और नए कार्य के साथ, भले ही अतीत का मार्ग कितना भी ऊँचा हो, वह सिर्फ इतिहास है जिसे लोग पीछे मुड़कर देख रहे हैं, और भले ही संदर्भ के रूप में उसका कितना भी महत्व हो, वह फिर भी एक पुराना मार्ग है। भले ही वह ‘पवित्र पुस्तक’ में दर्ज किया गया हो, फिर भी पुराना मार्ग इतिहास है; भले ही ‘पवित्र पुस्तक’ में नए मार्ग का कोई अभिलेख न हो, फिर भी नया मार्ग यहाँ का और अभी का है। यह मार्ग तुम्हें बचा सकता है, और यह मार्ग तुम्हें बदल सकता है, क्योंकि यह पवित्र आत्मा का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

मैं जो बात समझाना चाहता हूँ वह यह है : परमेश्वर जो है और उसके पास जो है, वह सदैव अक्षय और असीम है। परमेश्वर जीवन का और सभी वस्तुओं का स्रोत है; उसकी थाह किसी भी रचित जीव के द्वारा नहीं पाई जा सकती। अन्त में, मुझे सभी को याद दिलाते रहना होगा : परमेश्वर को फिर कभी पुस्तकों, वचनों या उसकी अतीत की उक्तियों में सीमांकित मत करना। परमेश्वर के कार्य की विशेषताओं का वर्णन करने के लिए केवल एक ही शब्द है : नवीन। वह पुराने रास्ते लेना या अपने कार्य को दोहराना पसंद नहीं करता; इसके अलावा, वह नहीं चाहता कि लोग उसे एक निश्चित दायरे के भीतर सीमांकित करके उसकी आराधना करें। यह परमेश्वर का स्वभाव है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अंतभाषण)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सब कुछ स्पष्ट कर देते हैं, है ना? बाइबल परमेश्वर के व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दो चरणों के कार्य का महज एक रिकॉर्ड है। यह इतिहास की किताब है, और परमेश्वर के पूरे कार्य और वचनों का बिल्कुल प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। परमेश्वर सृजनकर्ता है, इंसानी जीवन का स्रोत है। वह हजारों साल से बोल रहा है और कार्य कर रहा है, वह मनुष्य के पोषण का एक अक्षय स्रोत है, वह हमेशा हमें आगे ले जाता है। उसके वचन, जीवन जल का सदा बहने वाला सोता हैं। परमेश्वर के कार्य और वचनों को कोई भी इंसान या कोई भी चीज रोक नहीं सकती, बाइबल द्वारा सीमित होना तो दूर की बात है। उसने अपनी प्रबंधन योजना और मनुष्य की जरूरतों के अनुसार, कभी भी ज्यादा बोलना या नया कार्य करना नहीं छोड़ा है। व्यवस्था के युग में, जब बाइबल था ही नहीं, यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को रास्ता दिखाने के लिए व्यवस्था जारी की। प्रभु यीशु ने पुराने नियम से बाहर जाकर अनुग्रह के युग में प्रायश्चित के मार्ग का उपदेश दिया, और छुटकारे का कार्य किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आया है और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय-कार्य कर रहा है। उसने सात सील तोड़कर किताबें खोल ली हैं, और मनुष्य को शुद्ध करके पूरी तरह से बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। यह कार्य का एक नया और अधिक उन्नत चरण है, जो अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर संपन्न किया जाता है। यह नया और ज्यादा व्यावहारिक कार्य है, यह संभव नहीं कि बाइबल में यह पहले से दर्ज हो। हम इससे देख सकते हैं कि परमेश्वर का कार्य हमेशा नया ही होता है, पुराना नहीं, हमेशा आगे बढ़ता है, कभी दोहराया नहीं जाता। उसका नया कार्य बाइबल में समाहित चीजों से आगे जाता है, इंसान को एक नया रास्ता और ऊंचे सत्य देता है। इसलिए हमारी आस्था सिर्फ बाइबल पर आधारित नहीं हो सकती, और निश्चित रूप से हम यह नहीं कह सकते कि परमेश्वर का पूरा कार्य और वचन बाइबल में हैं। परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पोषण और अगुआई पाने के लिए, हमें पवित्र आत्मा के कार्य को खोजना होगा और परमेश्वर के कार्य के पदचिन्हों पर चलना होगा। जैसा की प्रकाशितवाक्य में कहा गया है : “ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं(प्रकाशितवाक्य 14:4)। ये बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं, जो मेमने के विवाह भोज में शामिल हो सकती हैं, और अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार पा सकती हैं।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंत के दिनों का अपना न्याय-कार्य पिछले 30 वर्षों से कर रहा है, उसने करोड़ों वचन व्यक्त किए हैं। उसके कथन भरपूर हैं, और इनमें कोई कमी नहीं है। ये बाइबल और साथ ही परमेश्वर की 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना के रहस्यों पर से परदा उठाते हैं, जैसे कि मनुष्य का प्रबंध करने के उसके लक्ष्य क्या हैं, शैतान मनुष्य को कैसे भ्रष्ट करता है, परमेश्वर शैतान की ताकतों से कदम-दर-कदम मनुष्य को कैसे बचाता है, परमेश्वर परीक्षणों और शुद्धिकरण से मनुष्य को कैसे शुद्ध और पवित्र करता है, अंत के दिनों में, उसके न्याय-कार्य का महत्व, देहधारणों के रहस्य, उसके नाम, बाइबल की सच्ची कहानी, हर किस्म के लोगों के परिणाम, मनुष्य का अंतिम गंतव्य, और मसीह का राज्य पृथ्वी पर कैसे साकार होता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मनुष्य की भ्रष्टता के सत्य और उसकी परमेश्वर-विरोधी, शैतानी प्रकृति का भी न्याय कर उसे उजागर करता है। वह हमें पाप से बच निकलने और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से बचाए जाने का मार्ग दिखाता है, जैसे कि सच्चा प्रायश्चित कैसे करें, देह-सुख का त्याग और सत्य का अभ्यास कैसे करें, ईमानदार इंसान कैसे बनें, परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी करें, परमेश्वर का भय मान बुराई से कैसे दूर रहें, परमेश्वर का ज्ञान और उसके प्रति समर्पण, और प्रेम कैसे हासिल करें, इत्यादि। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के वचनों से अधिक भरपूर और उन्नत हैं, ये वे सभी सत्य हैं जो परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने के लिए हमारे पास होने चाहिए। ये अविश्वसनीय रूप से आँखें खोलने वाले और तृप्त करने वाले हैं, और हर चीज में हमें अभ्यास का मार्ग देते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में, हमें हमारी आस्था के सभी संघर्षों और सवालों के जवाब और हल मिलते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रदत्त वचन देह में प्रकट होता है, राज्य के युग का बाइबल है, और यह परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में, मनुष्य को दिया गया अनंत जीवन का मार्ग है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खा-पीकर और उनका अभ्यास करके, उसके वचनों के जरिए न्याय और ताड़ना पाकर, और कुछ सत्यों को समझकर, परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर की सच्ची समझ हासिल करते हैं। उनका भ्रष्ट स्वभाव अलग-अलग स्तर तक शुद्ध होकर बदल जाता है, और आखिरकार वे पाप के बंधनों से बच निकलते हैं और शैतान को पराजित करने की गवाही देते हैं। वे विपत्तियों से पहले परमेश्वर द्वारा तैयार किए गए विजेता हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम, कार्य और वचन बाइबल में दर्ज न भी हों, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों से प्राप्त फल और वास्तविक परिणाम, पूरी तरह से बाइबल की भविष्यवाणियों को साकार करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की गवाहियों के वीडियो और फ़िल्में अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जो संसार को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की गवाही देते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन महाप्रकाश की तरह हैं, जो पूर्व से पश्चिम तक दुनिया भर को प्रकाशित कर रहे हैं। दुनिया के कोने-कोने से सत्य से प्रेम करने वाले ज्यादा-से-ज्यादा लोग सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल कर रहे हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ रहे हैं। यह दुनिया भर में फैलती विराट लहर है जिसे कोई भी ताकत नहीं रोक सकती। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “एक दिन, जब संपूर्ण विश्व परमेश्वर के पास वापस लौट जाएगा, तो संपूर्ण ब्रह्मांड में उसके कार्य का केंद्र उसके कथनों का अनुसरण करेगा; अन्यत्र कुछ लोग टेलीफोन का उपयोग करेंगे, कुछ लोग विमान लेंगे, कुछ लोग समुद्र के पार एक नाव लेंगे, और कुछ लोग परमेश्वर के कथनों को प्राप्त करने के लिए लेज़र का उपयोग करेंगे। हर कोई प्रेममय और लालायित होगा, वे सभी परमेश्वर के निकट आएँगे और परमेश्वर की ओर एकत्र हो जाएँगे, और सभी परमेश्वर की आराधना करेंगे—और यह सब परमेश्वर के कर्म होंगे। इसे स्मरण रखो! परमेश्वर निश्चित रूप से कभी अन्यत्र कहीं फिर से आरंभ नहीं करेगा। परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे। यह वह समय होगा, जब परमेश्वर के कर्म प्रकट होंगे, और जब परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा; ब्रह्मांड भर के सभी लोग इस साधारण ‘मनुष्य’ की आराधना करेंगे। क्या वह परमेश्वर की महिमा का दिन नहीं होगा? ... जिस दिन संपूर्ण राज्य आनंद करेगा, वही दिन परमेश्वर की महिमा का होगा, और जो कोई तुम लोगों के पास आएगा और परमेश्वर के शुभ समाचार को स्वीकार करेगा, वह परमेश्वर द्वारा धन्य किया जाएगा, और जो देश तथा लोग ऐसा करेंगे, वे परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाएँगे और उनकी देखभाल की जाएगी। भविष्य की दिशा इस प्रकार होगी : जो लोग परमेश्वर के मुख से कथनों को प्राप्त करेंगे, उनके पास पृथ्वी पर चलने के लिए मार्ग होगा, और चाहे वे व्यवसायी हों या वैज्ञानिक, या शिक्षक हों या उद्योगपति, जो लोग परमेश्वर के वचनों से रहित हैं, उनके लिए एक कदम चलना भी दूभर होगा, और उन्हें सच्चे मार्ग पर चलने के लिए बाध्य किया जाएगा। ‘सत्य के साथ तू संपूर्ण संसार में चलेगा; सत्य के बिना तू कहीं नहीं पहुँचेगा’ से यही आशय है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। राज्य का युग वचन का युग है। परमेश्वर, मनुष्य पर विजय पाने, उसे शुद्ध करने और बचाने के लिए अपने वचनों का प्रयोग कर रहा है, और उसने विजेताओं का एक समूह तैयार किया है। यह पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों का अधिकार और सामर्थ्य दर्शाता है। लेकिन धार्मिक संसार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को मानने से इनकार करके बाइबल से चिपका हुआ है, ये लोग पाप करने, उसे स्वीकारने और फिर से पाप करने के घिसेपिटे जीवन में फंसे हुए हैं, और परमेश्वर के कार्य द्वारा हटा दिए गए हैं, वे विपत्तियों में डूब गए हैं, रो रहे हैं और दांत पीस रहे हैं। ये लोग अभी भी प्रभु के बादल पर आने और अनंत जीवन के लिए उन्हें स्वर्ग के राज्य में ले जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्या यह खयाली पुलाव पकाना नहीं हैं? जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, “तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते(यूहन्ना 5:39-40)। बाइबल से चिपके रहने वाले ये लोग सत्य या जीवन प्राप्त नहीं कर सकेंगे। सिर्फ मसीह में विश्वास रखने वाले लोग जो उसका अनुसरण कर उसके प्रति समर्पण करेंगे, वे ही सत्य और जीवन पा सकेंगे। अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अब मनुष्य को शुद्ध कर पूरी तरह से बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। अगर हम सत्य और जीवन चाहते हैं, तो हमें बाइबल के पार जाकर परमेश्वर के पदचिन्हों के साथ चलना होगा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार कर समर्पण करना होगा। पाप से बच निकलने और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह बचाए जाने का यही एकमात्र तरीका है, विपत्तियों के दौरान परमेश्वर द्वारा सुरक्षा प्राप्त करने और उसके राज्य में प्रवेश करने का एकमात्र रास्ता है। जो लोग बाइबल को नहीं छोड़ते, और परमेश्वर के पुराने कार्य और वचनों में अटके हुए हैं, जो परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में हमें दिए गए सत्य के मार्ग को मानने से इनकार करते हैं, वे मनुष्य को पूरी तरह से बचाने के परमेश्वर के कार्य को पूरी तरह गंवा देंगे, वे सिर्फ विपत्तियों में डूबकर दंडित हो सकेंगे। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, “परमेश्वर का कार्य ऐसे किसी शख्स का इंतज़ार नहीं करता, जो उसके साथ कदमताल नहीं कर सकता, और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव किसी भी मनुष्य के प्रति कोई दया नहीं दिखाता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के एक और अंश से समापन करें : “अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की जाती, वे हमेशा मुर्दे, शैतान के खिलौने और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत् खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को खारिज करने की कोशिश नहीं करते, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के कदम उमड़ती लहरों और घुमड़ते गर्जनों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके हो और कुछ नहीं करते। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो, उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो, जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के कदमों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? जिन्हें तुम अपने हाथों में थामे हो, वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। जो शास्त्र तुम पढ़ते हो, वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और वे दर्शनशास्त्र के वे वचन नहीं हैं, जो मानव-जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हों, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने वाले मार्ग देने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती? क्या तुम अपने बल पर परमेश्वर से मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग पहुँचाने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो, जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो, जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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