प्रभु यीशु ने कहा: "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। अधिकांश लोग सोचते हैं कि प्रभु यीशु ने हमें पहले से ही अनन्त जीवन का मार्ग प्रदान किया है, लेकिन मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा है: "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है।" यह सब क्या है? यह क्यों कहता है कि आखिरी दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है?

12 मार्च, 2021

उत्तर: अनन्‍त जीवन का मार्ग वास्‍तविकता में क्‍या है, इस विषय में हमें पहले यह जानना होगा कि वह आता कहाँ से है। हम सभी जानते हैं कि जब परमेश्‍वर देहधारी हुए, तो उन्‍होंने गवाही दी कि वे ही सत्‍य हैं, मार्ग हैं, और जीवन हैं। यह इस बात का पर्याप्‍त प्रमाण है कि केवल मसीह ही अनन्‍त जीवन का मार्ग व्‍यक्‍त कर सकते हैं। चूँकि मसीह देहधारी परमेश्‍वर के प्रकटन हैं, चूँकि वे देहरूपी वस्‍त्र धारण किए हुए परमेश्‍वर के आत्‍मा हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि मसीह का सार परमेश्‍वर का सार है, और यह कि स्‍वयं मसीह ही सत्‍य हैं, मार्ग हैं, और जीवन हैं। इसलिए, मसीह मनुष्‍यजाति को छुटकारा देने और बचाने के कार्य को कार्यान्वित करने के लिए सत्‍य व्‍यक्‍त कर सकते हैं। यह सुनिश्चित है। परमेश्‍वर चाहे किसी भी युग में देहधारण करे, मसीह का सार कभी परिवर्तित नहीं होगा। प्रभु यीशु, देह में स्‍वयं परमेश्‍वर हैं। इसलिए जब प्रभु यीशु आए, तो उन्‍होंने स्‍वयं के सत्‍य, मार्ग और जीवन होने की, तथा मानवजाति के लिए जीवन-जल होने की साक्षी दी; और वे सत्‍य की अभि‍व्‍यक्ति और मनुष्‍य को पश्‍चाताप का मार्ग प्रदान कर पाए। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था: "जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:13-14)। प्रभु यीशु द्वारा कहा गया सब कुछ उनके दिव्‍य सार की अभिव्‍यक्ति है, तथा उनके द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य की अनुरूपता में भी, वह व्‍यक्‍त होता है। यह अखण्‍डनीय है! प्रभु यीशु देह रूप में परमेश्‍वर हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर प्रभु यीशु का पुनरागमन हैं। वे सत्‍य के साकार स्‍वरूप, देहधारी परमेश्‍वर भी हैं। इसलिए, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के आगमन के बाद से ही, उन्‍होंने भी स्‍वयं के सत्‍य, मार्ग और जीवन होने की साक्षी दी है तथा मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए सभी सत्‍य अभिव्‍यक्‍त करते हुए, मनुष्‍य को अनन्‍त जीवन का मार्ग प्रदान किया। परमेश्‍वर ने अपने दोनों ही देहधारण के समय स्‍वयं के सत्‍य, मार्ग और जीवन होने की साक्षी क्‍यों दी? इसलिए दी है क्‍योंकि मसीह का सार दिव्‍य है। सरल शब्दों में कहा जाए तो, परमेश्‍वर स्‍वयं ही अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं, परमेश्‍वर स्‍वयं ही अनन्‍त जीवन हैं। फलस्‍वरूप, देहधारी परमेश्‍वर सत्‍य व्‍यक्‍त कर सकते हैं, तथा वे मनुष्‍य को अनन्‍त जीवन का मार्ग प्रदान सकते हैं तथा विभिन्‍न युगों में परमेश्‍वर का कार्य कर सकते हैं। मानवजाति को बचाने का परमेश्‍वर का कार्य विभिन्‍न चरणों में विभाजित है। यह ऐसा कार्य नहीं है जिसे छुटकारे के एक ही चरण में पूरा किया जा सके। परमेश्‍वर द्वारा छुटकारे का कार्य पूर्ण करने के पश्‍चात्, अभी भी उन्‍हें अपना अंत के दिनों का न्‍याय, शुद्धिकरण और सम्‍पूर्ण रूप से मानवजाति को बचाने का कार्य संपादित करना है। इसीलिए प्रभु यीशु ने वचन दिया था कि वे पुन: लौटेंगे, जो यह सिद्ध करता है कि परमेश्‍वर का कार्य आगे बढ़ने से कभी नहीं रूकता, वह व्‍यवस्‍था के युग में अथवा अनुग्रह के युग में रूक जाए, ऐसा किसी भाँति नहीं हो सकता। मानवजाति के उद्धार के लिए परमेश्‍वर के कार्य के तीन चरण हैं, अर्थात्, व्‍यवस्‍था के युग, अनुग्रह के युग और राज्‍य के युग के कार्य। व्‍यवस्‍था के युग से अनुग्रह के युग की कालावधि लगभग 2,000 वर्षों की रही, तथा अनुग्रह के युग से राज्‍य के युग तक का समयकाल उसके इतर लगभग दो सहस्‍त्राब्‍दी का रहा। लौटकर आये प्रभु यीशु द्वारा किया गया न्‍याय का कार्य, जो परमेश्‍वर के आवास से प्रारम्‍भ होता है, मानवजाति को सम्‍पूर्ण रूप से शुद्ध करने और बचाने का कार्य है; यह अंधकार और दुष्‍टता के एक युग का समापन कर राज्‍य के युग का सूत्रपात करने का भी कार्य है। मानवजाति के उद्धार का परमेश्‍वर का प्रबन्‍धन कार्य अंत के दिनों के उनके न्‍याय के कार्य के माध्‍यम से संपादित होगा, तथा मानवजाति को एक सुंदर मंज़िल पर लाया जाएगा। इसलिए चूँकि अंत के दिनों का परमेश्‍वर के कार्य का यह फल प्राप्‍त हुआ है, तो क्‍या आप यह नहीं कहेंगे कि अंत के दिनों में परमेश्‍वर के कार्य में व्‍यक्‍त सभी सत्‍य अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं जो परमेश्‍वर मानवजाति को प्रदान करते हैं? यदि बहुत से लोग ऐसे हों जो अंत के दिनों में परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सत्‍य के द्वारा जीते गये हैं, शुद्ध और पूर्ण किये गये हैं, जो परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्‍त करते हैं, जिनका जीवन स्‍वभाव रूपांतरित हो गया है और जो एक सच्‍चे मनुष्‍य की तरह जीवन जीते हैं, तो क्‍या जीवन का वह मार्ग जो उन्‍होंने पाया है, सही मायने में अनन्‍त जीवन का मार्ग है? यदि वह वाकई अनन्‍त जीवन का मार्ग है, तो यह निश्चित है कि यह वह सत्‍य है जो मनुष्‍य को शुद्ध और पूर्ण कर सकता और बचा सकता है, और यह निश्चित है कि यह लोगों को परमेश्‍वर का ज्ञान, उनके प्रति आज्ञाकारिता, व उनके लिए आराध्‍य भाव प्राप्‍त करने दे सकता है। यह परम सत्‍य है। अगर हम इस बात की सच्‍ची समझ पाने के पश्‍चात् सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सभी सत्‍य का पुनरावलोकन करते हैं, तो हम यह जान पाएंगे कि अनन्‍त जीवन का मार्ग क्‍या है।

दोनों ही समय जब परमेश्‍वर ने देहधारण किया, तो वे मानवता को सत्‍य, मार्ग और जीवन प्रदान कर पाए, परंतु प्रभु यीशु ने जो किया वह मात्र छुटकारे का कार्य था। केवल अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही न्‍याय और शुद्धिकरण का कार्य करते हैं, और केवल उनके कार्य के द्वारा ही मानवता को पूरी तरह शुद्ध करने और बचाने का कार्य सिद्ध किया जा सकता है। सहभागिता के इस बिंदु पर संभवत: कुछ लोग ऐसा पूछें: "जब प्रभु यीशु अपना कार्य संपादित करने आए थे, तो उन्‍होंने आगे से ही अंत के दिनों में परमेश्‍वर द्वारा किए जाने वाले कार्य और अभिव्‍यक्‍त किए जाने वाले सत्‍य प्रकट क्‍यों नहीं किए? क्‍या ऐसा हो सकता है कि प्रभु यीशु मानवजाति का न्‍याय और ताड़ना नहीं कर पाए? क्‍या ऐसा हो सकता है कि प्रभु यीशु हमें सत्‍य और जीवन प्रदान नहीं कर पाए? क्‍या हम प्रभु यीशु के वचन द्वारा अनन्‍त जीवन नहीं पा सकते?" नि:संदेह, कई लोगों में इन प्रश्‍नों की पर्याप्‍त समझ का अभाव है, परंतु हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्‍वर के कार्य के हर चरण का अपना ही सार और तत्‍व होता है, व उनके कार्य का हर चरण एक निश्चित परिणाम लेकर आएगा। लिहाजा, परमेश्‍वर के कार्य के हर चरण में व्‍यक्‍त किए गए सभी सत्‍य तथा ऐसे सभी वचन जो वे कहते हैं, वे अर्थपूर्ण हैं और उनका अपना ही प्रयोजन होता है; वे किसी उद्देश्‍य विशेष को पाने में सहायक होते हैं। परमेश्‍वर के हर चरण में व्‍यक्‍त किए गए कार्य उनके समस्‍त कार्य पर केन्द्रित होते हैं, और अभिष्‍ट उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने के मान से उच्‍चारित किए जाते हैं। परमेश्‍वर ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे जो उनके कार्य से असंबद्ध हो—यह उनके कार्य और उनके वचन का सिद्धांत है। प्रभु यीशु द्वारा किया गया समस्‍त कार्य छुटकारे का कार्य था, न कि अंत के दिनों में परमेश्‍वर द्वारा किया जाने वाला न्‍याय का कार्य। तो, प्रभु यीशु द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सभी सत्‍य उनके छुटकारे के कार्य पर केन्द्रित थे व वे अंत के दिनों में मनुष्‍य को शुद्ध करने, उसका उद्धार करने और उसे पूर्ण बनाने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किए जाने वाले कार्य से भिन्‍न हैं। इसी कारणवश अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सत्‍य अनन्‍त जीवन का मार्ग कहे जा सकते हैं जो मनुष्‍य को शुद्ध करते, बचाते और पूर्ण बनाते हैं, जब कि प्रभु यीशु द्वारा व्‍यक्‍त किए जाने वाले सभी सत्‍य मानवजाति को केवल छुटकारा दिलाने वाले सत्‍य हैं। उन्‍होंने जो अभिव्‍यक्‍त किया वह पश्‍चाताप के मार्ग से अधिक कुछ और नहीं था क्‍योंकि परमेश्‍वर के कार्य की एक योजना होती है, और उसके चरण होते हैं। हर युग में परमेश्‍वर द्वारा किए जाने वाले अनिवार्य कार्य पहले से ही नियोजित होते हैं—उनकी योजना बदल नहीं सकती, तथा वे अपने ही कार्य के माध्‍यम से अपनी ही योजना अव्‍यवस्थित नहीं करेंगे। ठीक वैसे ही जैसे, व्‍यवस्‍था के युग में, यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्‍वी पर मानवजाति के जीवन को निर्देशित करने के लिए, मानवता की आवश्‍यकताओं और उनकी अपनी कार्य-योजना के अनुरूप केवल आज्ञाएं जारी की थीं। वे पृथ्‍वी पर मानवजाति के जीवन को संचालित करने मात्र का कार्य ही कर रहे थे। तत्‍पश्‍चात प्रभु यीशु आए, और उन्‍होंने अनुग्रह के युग का सूत्रपात किया तथा पश्‍चाताप का मार्ग व्‍यक्‍त किया, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है," व अपने क्रूसारोहण के माध्‍यम से मानवजाति के छुटकारे का कार्य किया। और अंत के दिनों में, मानवजाति के शुद्धिकरण व उसे बचाने हेतु सभी सत्‍य व्‍यक्‍त करने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर आ गए हैं। वे परमेश्‍वर के आवास से प्रारम्‍भ कर अपना न्‍याय-कार्य सम्‍पादित करते हुए पूर्ववर्ती युग का समापन तथा राज्‍य के युग का सूत्रपात कर रहे हैं। इससे हम यह देख पाते हैं कि परमेश्‍वर किसी भी युग में जो भी कार्य करते हैं, जो भी सत्‍य उन्‍हें व्‍यक्‍त करने की आवश्‍यकता होती है, वह सब कुछ सुनियोजित व सिद्धांतानुसार होता है। परमेश्‍वर का कार्य संरचित होता है एवं चरण-दर-चरण बढ़ता है, जिसमें हर चरण एक दूसरे का पूरक होता है। परमेश्‍वर के कार्य का हर चरण, मानवजाति की आवश्‍यकताओं पर, उसके वास्‍तविक स्‍तर पर, तथा परमेश्‍वर के पूर्व-नियुक्‍त आयोजनों पर आधारित होता है। जब प्रभु यीशु अपना छुटकारे का कार्य कर रहे थे तब मनुष्‍य को परमेश्‍वर का या उनके कार्य का ज्ञान नहीं था; लोग मात्र यह मानते थे कि परमेश्‍वर ने स्‍वर्ग, पृथ्‍वी तथा अन्‍य सभी चीजे़ं बनाई हैं और वे केवल परमेश्‍वर की व्‍यवस्‍था और आज्ञाओं का पालन करना जानते थे। इसलिए जब प्रभु यीशु, अनुग्रह के युग में अपना छुटकारे का कार्य कर रहे थे, तो उन्‍होंने केवल पश्‍चाताप का मार्ग व्‍यक्‍त किया, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है," जिससे मनुष्‍य इस योग्‍य हो सके कि वह परमेश्‍वर के समक्ष आए, अपने पापों की स्‍वीकृति तथा पश्‍चाताप करे, एवं परमेश्‍वर के समक्ष उसके द्वारा किए गए सभी पापों को अंगीकार करे ताकि वह परमेश्‍वर से क्षमादान तथा उद्धार का निवेदन कर सके। यह इसलिए भी था ताकि वह परमेश्‍वर से प्रार्थना कर सके, परमेश्‍वर को धन्‍यवाद दे सके व उनकी स्‍तुति कर सके, तथा परमेश्‍वर के सभी अनुग्रहों का आनंद ले सके। ये वे परिणाम हैं जो परमेश्‍वर के छुटकारे के कार्य से पहले ही प्राप्त किए जा चुके हैं। कई वर्षों की आस्‍था के पश्‍चात्, कई लोग यह जान पाने में सक्षम हो पाए हैं कि उनके द्वारा किए गए सभी पाप वाकई परमेश्‍वर द्वारा क्षमा कर दिए गए हैं, परंतु उनकी अंतर्निहित पापी प्रकृति अभी भी, पहले की ही तरह विद्यमान है, और वह इस हद तक गहराई में व्‍याप्‍त है कि वे अभी भी अपने पापी स्‍वभाव के नियंत्रण में रहते हुए, बहुधा पाप और परमेश्‍वर का विरोध करते रहते हैं। वे अभी भी पाप के बंधनों को तोड़ कर शुद्ध नहीं हुए हैं। यह ऐसी बात है जिसे हर कोई तथ्‍य के रूप में स्‍वीकार करता है। तो फिर, हम जैसे विश्‍वासीगण जिन्‍हें पापमुक्त किया जा चुका है, क्‍या हमने सच में अनन्‍त जीवन का मार्ग पा लिया है? क्‍या हमारे पापमोचन का अर्थ है कि हमें शुद्ध किया जा चुका है? क्‍या इसका यह तात्‍पर्य है कि हमने सही अर्थों में उद्धार पा लिया है और क्या हमने परमेश्‍वर की प्रशस्ति प्राप्‍त कर ली है? यदि इन परिणामों को प्राप्‍त नहीं किया जा सकता, तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि हमने प्रभु में अपनी आस्‍था के कारण अनन्‍त जीवन का मार्ग पा लिया है? क्‍या कोई है जो यह कहने का साहस कर सकता है? प्रभु यीशु ने जो कार्य संपादित किया वह छुटकारे का कार्य था, और जो धर्मशिक्षा उन्‍होंने दी वह पश्‍चाताप का मार्ग था। स्‍पष्‍ट रूप से उनका कार्य अंत के दिनों में न्‍याय के कार्य के लिए मार्ग प्रशस्‍त करना था। अतएव, प्रभु यीशु को स्‍वीकार करके हमने केवल पापमुक्ति पाई है; हमने सही अर्थों में अनन्‍त जीवन नहीं पाया है। यदि हम अन्‍त के दिनों में पुन: लौटे प्रभु यीशु के द्वारा किए जाने वाले न्‍याय के कार्य को स्‍वीकार कर पाते हैं, तो हम भी शुद्ध हो जाएंगे और परमेश्‍वर की प्रशस्ति प्राप्‍त करेंगे, और सिर्फ़ तभी हम ऐसे जन बनेंगे जिन्‍होंने अनन्‍त जीवन पा लिया है। प्रभु यीशु में हमारी आस्‍था हमें सिर्फ़ अपने पापों से मुक्‍त कराती है और परमेश्‍वर से प्रार्थना करने एवं उनके अनुग्रह का आनंद उठाने के लिए सुयोग्‍य बनाती है। ये प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से प्राप्‍त किए हुए परिणाम मात्र हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्‍हें प्रभु यीशु के कार्य की समझ नहीं है। उनकी धारणा है कि चूँकि प्रभु यीशु ने अपना छुटकारे का कार्य पूरा कर दिया है और प्रभु यीशु में उनकी आस्‍था के कारण, उन्‍हें उनके पापों से मुक्‍त किया जा चुका है, अत: परमेश्‍वर के उद्धार का कार्य पूरी तरह समाप्‍त हो चुका है। वे सोचते हैं कि एक कार्य पूरा हो गया यानी सभी कुछ पूर्ण हो चुका है। यह एक बहुत बड़ी भूल है! यदि यह सत्‍य होता तो प्रभु यीशु ने ऐसा क्‍यों कहा होता कि वे वापिस लौटेंगे? प्रभु यीशु को अपनी वापसी पर वास्‍तव में क्‍या कार्य करना है, कई लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं; यह परमेश्‍वर के कार्य का ज्ञानाभाव है। प्रभु यीशु के कार्य को देखते समय वे मानवीय अवधारणाओं और कल्‍पनाओं पर ही निर्भर रहते हैं। वे इस प्रभाव में हैं कि केवल प्रभु में विश्‍वास करने मात्र से हम अनन्‍त जीवन पा लेते हैं, कि बस ऐसे ही हम स्‍वर्ग के राज्‍य में प्रवेश पा सकते हैं। क्‍या ये मनुष्‍य की अवधारणाएं और कल्‍पनाएं नहीं हैं?

अब हर कोई संभवत: इस बात से अवगत है कि केवल अंत के दिनों में पुन: लौटे प्रभु यीशु द्वारा किए जाने वाले कार्य के माध्‍यम से ही मनुष्‍य अनन्‍त जीवन पा सकता है। इससे अधिक सच और कुछ नहीं हो सकता। तो ऐसा क्‍यों है कि सिर्फ़ अंत के दिनों के मसीह ही मनुष्‍य को अनन्‍त जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं? क्‍या ऐसा हो सकता है कि प्रभु यीशु मनुष्‍य को यह प्रदान नहीं कर सकते? इस बात को ऐसे कहना उचित नहीं। हमें इस बारे में स्‍पष्‍ट होना चाहिए: प्रभु यीशु परमेश्‍वर का देहधारण हैं, वे स्‍वयं ही सत्‍य, मार्ग और जीवन हैं, और वे स्‍वयं ही अनन्‍त जीवन का मार्ग धारण किये हुए हैं। तब फिर ऐसा क्‍यों है कि हम केवल प्रभु यीशु में विश्‍वास करके अनन्‍त जीवन नहीं प्राप्‍त कर सकते? ऐसा क्‍यों है कि सिर्फ़ अंत के दिनों के मसीह ही मनुष्‍य को अनन्‍त जीवन का मार्ग दे सकते हैं? यह मुख्‍य रूप से परमेश्‍वर द्वारा किए गए कार्य के माध्‍यम से प्राप्‍त परिणामों पर आधारित है। हम सभी जानते हैं कि अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने मात्र छुटकारे का कार्य किया था, इसलिये, भले जब से हमने प्रभु में आस्‍था की है तभी से हमें हमारे पापों से मुक्ति मिल गई थी, परंतु हम अभी भी अपनी पापी प्रकृति के वशीभूत हैं और हम अक्‍सर, न चाहते हुए भी, पाप करते और परमेश्‍वर का विरोध करते हैं। हम पाप के बंधनों को तोड़ने और शुद्ध होने में असमर्थ हैं, और हम परमेश्‍वर के राज्‍य के प्रवेश करने योग्‍य नहीं हैं। यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्‍त है कि मनुष्‍यजाति को छुटकारा दिलाने का प्रभु यीशु का कार्य मानवजाति को पूरी तरह शुद्ध करने और बचाने का कार्य नहीं था—केवल अंत के दिनों में पुन: लौटे प्रभु यीशु द्वारा किया जाने वाला न्‍याय का कार्य ही मानवजाति को शुद्ध कर सकता और बचा सकता है। इसी कारण से प्रभु यीशु ने भविष्‍यवाणी की थी कि वे पुन: लौटेंगे; जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। प्रभु यीशु की भविष्‍यवाणी पहले ही सच हो चुकी है। यानी, परमेश्‍वर के आवास से आरंभ कर सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, न्‍याय का कार्य करते हैं, तथा उन्‍होंने मानवजाति को शुद्ध करने व बचाने के लिए सभी सत्‍य व्‍यक्‍त किए हैं। ये सत्‍य अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं जो अंत के दिनों में परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को प्रदान किये हैं। न्‍याय के द्वारा, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ऐसे सभी सत्‍य कार्यान्वित करते हैं, जो वे मानवजाति में व्‍यक्‍त करते हैं ताकि ये सत्‍य मनुष्‍य का जीवन बन जाएं। परमेश्‍वर बिना किसी कारण के कोई सत्‍य व्‍यक्‍त नहीं करते; अपने सत्‍य की अभिव्‍यक्ति में, मानवजाति का न्‍याय करने एवं उसे उजागर करने के लिए, वे मनुष्‍य की विभिन्‍न अवधारणाओं और कल्‍पनाओं पर लक्ष्‍य साधते हैं; साथ ही परमेश्‍वर की अवज्ञा और विरोध करने की मनुष्‍य की प्रकृति और सार पर तथा मनुष्‍य के विभिन्‍न शैतानी स्‍वभावों को भी वे निशाना बनाते हैं। परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की सत्‍य को स्‍वीकार करने की कार्यविधि, न्‍याय और ताड़ना की प्रक्रिया से गुज़रने तथा शुद्धिकरण की कठिनाइयों को सहन करने की प्रकिया है, साथ ही यह शुद्ध होने एवं उद्धार पाने की प्रक्रिया भी है। इसी कारणवश हर एक व्‍यक्ति जो अंत के दिनों में परमेश्‍वर की न्‍याय और ताड़ना से गुज़रता है, वह कई सत्‍य समझने लगता है; वे सचमुच अपने उस भ्रष्‍ट सार को जान जाते हैं जो परमेश्‍वर का विरोध करता और उनके साथ विश्‍वासघात करता है, तथा वे परमेश्‍वर के पवित्र सार एवं उनके धर्मी तथा सहिष्‍णु स्‍वभाव को भी समझ जाते हैं। उनमें परमेश्‍वर के लिए सच्‍ची श्रद्धा व आज्ञाकारिता होती है, एवं उन सभी ने परमेश्‍वर का सत्‍य तथा जीवन पा लिया होता है—वे परमेश्‍वर द्वारा विजेता बना दिए गए हैं। यह समूह ऐसे लोगों का है, जिनके विषय में प्रकाशितवाक्‍य की पुस्‍तक में गंभीर परीक्षणों से निकल कर विजेता होने की भविष्‍यवाणी की गई थी। यह इंगित करता है कि परमेश्‍वर के न्‍याय और ताड़ना से गुज़रने के पथ पर, उनके चुने हुए लोगों को, पूरी तरह शुद्ध होने के लिए बहुत से कष्‍ट भुगतने पड़ेंगे। क्‍या यह कोई साधारण मामला हो सकता है? क्‍या सत्‍य को अपने जीवन के रूप में स्‍वीकार करना आसान है? उन्‍हें कई कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी, और ये सभी कठिनाइयाँ परमेश्‍वर के न्‍याय और ताड़ना से गुज़र रही हैं; सत्‍य को अपने जीवन के रूप में प्राप्‍त करने के लिए इन सभी कष्‍टों को भुगता जाता है। इन सभी को आसन्‍न-मृत्‍यु के अनुभव अथवा एक सम्‍पूर्ण परिवर्तन से गुज़रना कहा जा सकता है। जब ये लोग गंभीर परीक्षणों से बाहर निकलते और विजयी बन जाते हैं, तो जो जीवन वे प्राप्‍त करेंगे वह वाकई कैसा होगा? वह अंत के दिनों के मसीह द्वारा न्‍याय के सभी कार्यों से लाया जाने वाला अनन्‍त जीवन का मार्ग होगा।

अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया, उसी ने लोगों को यह मार्ग दिया: "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।" अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर आ गए हैं, व मानवजाति को शुद्ध करने तथा बचाने के लिए उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर सभी सत्‍य व्‍यक्‍त किए हैं। वे मनुष्‍यों की भ्रष्‍ट जाति को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह बचा रहे हैं ताकि वे अपने पापों से, अपनी गंदगी और भ्रष्‍टता से मुक्‍त हो सकें, व अपने मौलिक मानवीय सदृश्‍ता में आ सकें। यह मानवजाति को परमेश्‍वर के सान्निध्‍य में रहने की गुंजायश देगा, जहाँ वे परमेश्‍वर का आज्ञापालन तथा आराधना करने वाले इंसान बनें, और इस प्रकार परमेश्‍वर की मानवजाति को बचाने की प्रबंधन योजना का समापन होगा। अत:, अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के न्‍याय के कार्य को स्‍वीकार करके ही हम शुद्ध हो सकते और बचाए जा सकते हैं, तथा स्‍वर्ग के राज्‍य में प्रवेश कर सकते हैं। सहभागिता के इस स्‍थान पर, सभी को यह जानना आवश्‍यक है कि आख़िर क्‍यों केवल अंत के दिनों के मसीह ही मनुष्‍य को अनन्‍त जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं।

— 'पटकथा-प्रश्नों के उत्तर' से उद्धृत

देहधारी बने परमेश्वर ही प्रभु यीशु हैं, परमेश्‍वर का प्रकटन हैं। प्रभु यीशु ने कहा था, "और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्‍वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा" (यूहन्ना 11:26)। "वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)बाइबल कहती है, "जो पुत्र पर विश्‍वास करता है, अनन्त जीवन उसका है" (यूहन्ना 3:36)। ये सभी वचन सत्य हैं, ये सभी तथ्य हैं! क्योंकि देहधारी बने परमेश्वर ही प्रभु यीशु हैं, उनमें परमेश्‍वर का सार और पहचान है। वे स्‍वयं चिरस्थायी जीवन का मार्ग हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं और करते हैं वह परमेश्वर के जीवन की एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। वह जो कुछ व्यक्त करते हैं वह सत्‍य है और परमेश्‍वर का स्वरूप है। तो प्रभु यीशु स्‍वयं अनन्त जीवन हैं, और शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं। वह मृतक को में वापस जीवित कर सकते हैं। प्रभु यीशु में विश्वास करके, हम एकमात्र सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और इस तरह शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में तो कोई संदेह ही नहीं है। प्रभु यीशु का लाज़रस को पुनर्जीवित करनाएक अच्छा प्रमाण है कि प्रभु यीशु हमें शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान कर सकते हैं, उनके पास यह अधिकार है। फिर, ऐसा क्यों है कि प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग के दौरान शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान नहीं किया? ऐसा इसलिए है क्योंकि, मानवजाति के छुटकारे के लिए प्रभु यीशु सूली पर चढ़ने आये, अंतिम दिनों की तरह शुद्धिकरण और उद्धार का कार्य करने के लिये नहीं। प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य केवल मनुष्यों के पापों को क्षमा करने से संबंधित था, परन्तु इसने मनुष्य को उसकी शैतानी प्रकृति और स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। इसलिए, प्रभु पर विश्वास करके, हमें हमारे पापों के लिए माफ़ किया गया था, लेकिन हमारे शैतानी स्वभाव को किसी भी तरह से शुद्ध नहीं किया गया था। हम अभी भी अनजाने में पाप करते हैं, परमेश्‍वर का विरोध करते हैं और उनसे विश्वासघात करते हैं। यह सब स्पष्ट करने के बाद, हमें कुछ किसी चीज पर स्पष्ट होना चाहिए। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने अंतिम दिनों में न्‍याय कार्य के लिये मार्ग प्रशस्त किया, इसलिए, जब प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य पूरा कर लिया, तो उन्होंने यह भी वादा किया कि वे फिर से आएँगे। प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रभु यीशु के वचनों से हम देख सकते हैं कि जब परमेश्‍वर अंतिम दिनों में वापस आते हैं केवल तभी वह समस्त सत्य व्यक्त करेंगे जो मनुष्य को शुद्ध करता और बचाता है। यहाँ, "जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा।" ये सत्य वास्तव में वे सत्य हैं जो अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने में व्यक्त करते हैं। ये वे वचन हैं जो पवित्र आत्मा कलीसियों से कहता है, और वे शाश्‍वत जीवन के मार्ग हैं जो परमेश्‍वर ने अंतिम दिनों में मानवजाति को प्रदान किये हैं। यही कारण है कि अनुग्रह के युग में हम, प्रभु के विश्वासी होने के नाते, शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्राप्त करने में असमर्थ थे। प्रभु यीशु ने कहा था, "और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्‍वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा।" और बाइबल भी कहती है, "जो पुत्र पर विश्‍वास करता है, अनन्त जीवन उसका है।" वास्तव में, परमेश्‍वर ने यह कहा ताकि वे इस तथ्य को प्रमाणित कर सकें कि वे स्‍वयं परमेश्‍वर का प्रकटन हैं। और केवल परमेश्वर ही मनुष्य को शाश्‍वत जीवन प्रदान कर सकते हैं। प्रभु यीशु का वादा कि जो लोग उन पर विश्वास करते हैं वे कभी नहीं मरेंगे, परमेश्वर के अधिकार की गवाही है। परमेश्‍वर स्‍वयं शाश्‍वत जीवन का मार्ग हैं, परमेश्‍वर मनुष्य को शाश्‍वत जीवन प्रदान करने में सक्षम है। कहने का यह मतलब नहीं है कि प्रभु यीशु के कार्य को स्वीकार करने पर मनुष्‍य ने शाश्‍वत जीवन प्राप्त किया था। इस बात को समझना मुश्किल नहीं है। लेकिन धार्मिक मंडलियों में, बहुत से लोग मानते हैं कि जब तक तक हमारे पापों को माफ किया जाता है, तब तक हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं और शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। क्या परमेश्वर के वचनों में इस परिप्रेक्ष्य के लिये कोई आधार है? प्रभु यीशु ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा है। इसके बारे में सोचें: हमारी अवधारणा और कल्पना के अनुसार, जब तक तक हमारे पापों को माफ कर दिया जाता है, तब तक हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं और शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन प्रभु यीशु ने कई बार भविष्यवाणी क्यों की कि वे फिर से आएँगे? और उन्होंने अपने शिष्‍यों को इतनी भविष्यवाणियाँ और दृष्टान्त क्यों बताये? वे भविष्यवाणियाँ और दृष्टान्त वह चीजें हैं जिन्हें वे वापस आने पर पूरा करेंगे। क्या ऐसा हो सकता है कि हम कई सालों तक परमेश्‍वर पर विश्वास करें लेकिन फिर भी इन चीजों को स्पष्ट रूप से ना देखें? कुछ लोग केवल प्रभु को स्‍वीकार करते हैं लेकिन उनकी वापसी को स्वीकार नहीं करते हैं। यह किस प्रकार की समस्या है? क्या यह प्रभु से विश्वासघात नहीं है? कोई आश्चर्य नहीं कि प्रभु यीशु ने कहा: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। परमेश्‍वर के वचन अब पूरी तरह से सत्य हो गए हैं। अगर कोई केवल प्रभु यीशु को स्वीकार करता है लेकिन उनकी वापसी को स्वीकार नहीं करता है, तो क्या यह वह व्यक्ति है जो वास्तव में पुत्र पर विश्वास करता है? यह वह है जो प्रभु को धोखा देता है! पुत्र में सच्चे विश्वासी वे कहे जाते हैं जो न केवल प्रभु में विश्वास करते हैं बल्कि उनकी वापसी को भी स्वीकार करते हैं, जो अंत तक मसीह का अनुसरण करते हैं। केवल इस प्रकार का व्यक्ति ही शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकता है। जो लोग केवल प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं, लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते हैं, वे सब लोग हैं जो प्रभु यीशु को धोखा देते हैं। वे परमेश्‍वर में विश्वास करते हैं परन्तु क्योंकि वे अंत तक परमेश्‍वर का पालन नहीं करते हैं, इसलिए उनका विश्वास शून्य हो जाता है—वे सड़क के किनारे गिर पड़ते हैं। प्रभु यीशु यह निर्धारित करते हैं कि वे दुष्टता के कर्म करने वाले लोग हैं क्योंकि वे केवल उनका (प्रभु का) नाम स्वीकार करते हैं लेकिन उनकी वापसी को स्वीकार नहीं करते हैं। और उन्‍होनें कहा: "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।" तो, जो लोग इस प्रकार परमेश्वर द्वारा निंदित किए और त्याग दिए जाते हैं, जो केवल उनका नाम बनाए रखते हैं, क्‍या वे शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं? यह निश्चित है कि उन्हें कुछ प्राप्त नहीं होगा। इसके अलावा, वे नरक में गिरेंगे और दंडित किये जाएँगे! यह पूरी तरह से परमेश्‍वर की धार्मिकता और पवित्र स्वभाव को प्रकट करता है।

इस तथ्य के बावजूद कि जब हमने अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे को स्वीकार किया, तो हमारे पापों को माफ कर दिया गया और हमें परमेश्‍वर की प्रार्थना करने और उनके अनुग्रह और आशीषों का आनंद लेने का अधिकार दिया गया, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस समय, हम अभी भी अपनी पापी प्रकृति से विवश हैं, हम अभी भी पाप में असहायपूर्वक रहते हैं, हम प्रभु के वचनों का पालन करने में पूरी तरह से असमर्थ हैं और हममें परमेश्‍वर के प्रति कोई वास्तविक श्रद्धा और आज्ञाकारिता नहीं है। इस समय, हम अक्सर अभी भी झूठ बोल सकते हैं और परमेश्‍वर को धोखा दे सकते हैं, हम प्रसिद्धि और भाग्य, पैसे की लालसा के पीछे पड़े रहते हैं, और दुनिया की प्रवृत्ति का पालन करने में लगे रहते हैं। विशेषकर जब परमेश्वर का कार्य हमारे मतों के अनुरूप नहीं होता है, तो हम परमेश्‍वर को दोष देते हैं, उनकी आलोचना करते हैं और यहाँ तक कि परमेश्‍वर का विरोध भी करते हैं। ऐसे लोग वास्‍तव में पश्चाताप तक नहीं कर सकते, तो क्या ऐसे लोग प्रभु की प्रशंसा पा सकते हैं? यद्यपि बहुत से लोग अनुसरण करने, गवाही देने, यहाँ तक कि प्रभु के लिए अपने जीवन तक बलिदान करने में सक्षम होते हैं, और दिल से पश्चाताप करते हैं, वास्तव में, क्या उनके भ्रष्ट स्वभावों का शुद्धिकरण किया गया है? क्या वे सचमुच प्रभु को जानते हैं? क्या उन्होंने वास्तव में शैतान के प्रभाव से खुद को मुक्‍त कर लिया है परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिये गए हैं? बिल्कुल नहीं, यह आमतौर पर स्वीकार्य तथ्य है। यह इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि अनुग्रह के युग दौरान प्रभु यीशु का कार्य केवल छुटकारा दिलाने का कार्य था। यह निश्चित रूप से अंतिम दिनों का उद्धार और सिद्धि का कार्य नहीं था। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के वचनों ने केवल लोगों को पश्चाताप का तरीका दिया, शाश्‍वत जीवन का मार्ग नहीं; यही कारण है कि प्रभु यीशु ने कहा कि वे फिर से आएँगे। प्रभु यीशु की वापसी सत्य को व्यक्त करने के कार्य करने और मनुष्य को शाश्‍वत जीवन का मार्ग प्रदान करने के लिए है, ताकि वे खुद को शैतान के प्रभाव से छुड़ा सकें और जीवन के रूप में सत्य को प्राप्त कर सकें ऐसे मनुष्य बन सकें जो परमेश्वर को जानते हैं, परमेश्वर की आज्ञापालन करते हैं, परमेश्‍वर का आदर करते हैं और परमेश्वर के साथ अनुकूल हो सकें, ताकि वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें और शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकें। प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे के कार्य की नींव पर, अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से शुरूआत करके न्‍याय का कार्य आरंभ कर दिया है और मानवता को शुद्ध करने और बचाने के लिए समस्त सत्‍य व्यक्त कर दिया है। उसने मानवजाति को परमेश्‍वर के धार्मिक, प्रतापी, और अपमान न किए जाने योग्य स्वभाव को प्रकट कर दिया है, शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के सार और तथ्य को ऊजागर और न्‍याय किया है। उन्होंने परमेश्‍वर के प्रति मनुष्य के विद्रोह और प्रतिरोध के मूल को उघाड़ दिया है, और मनुष्‍य को परमेश्‍वर के सभी इरादों और अपेक्षाओं के बारे में बता दिया है। इसी समय, उन्‍होनें मानवजाति को स्पष्ट शब्दों में उन सभी सत्‍यों के बारे में समझाया है जिनकी उद्धार प्राप्त करने के लिए मुनष्‍य को आवश्यकता है, जैसे कि परमेश्‍वर के उद्धार के कार्य के सभी तीन चरणों की अंदर की कहानी और उनका सार और साथ ही इन तीन चरणों के बीच संबंध, परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के कार्य के बीच का अंतर, बाइबल के अंदर की कहानी और सत्य, अंतिम दिनों में न्‍याय का रहस्य, बुद्धिमान कुँवारियों को स्वर्गारोहण किए जाने का रहस्य और आपदाओं से पहले लोगों को विजेताओं के सिद्धता का रहस्य, देहधारी बने परमेश्वर का रहस्य, और परमेश्वर में वास्तव में विश्‍वास करने, उनकी आज्ञापालन करने और उनसे प्रेम करने का मतलब है, कैसे परमेश्‍वर का आदर करें और मसीह के अनुकूल बनने के लिए कैसे बुराई को दूर रखें, कैसे अर्थपूर्ण जीवन जीयें, और इत्‍यादि। ये सत्‍य, शाश्‍वत जीवन के मार्ग हैं जो अंतिम दिनों के परमेश्‍वर द्वारा मानवजाति को प्रदान किये गए हैं। इसलिए, अगर हम सत्य और जीवन को प्राप्त करना चाहते हैं, उद्धार और शुद्धिकरण को प्राप्त करना और सिद्ध किया जाना चाहते हैं, तो हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों के मसीह के वचनों और कार्य को स्वीकार और उनका आज्ञापालन अवश्य करना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम सत्य और जीवन को प्राप्त कर सकते हैं।

आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वरके वचन के कुछ अनुच्छेद पढ़ते हैं। "परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य नहीं माने जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है। यदि तुम अतीत के युगों के दौरान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के अभिलेखों को आज पर लागू करते हो, तो यह तुम्हें पुरातत्ववेत्ता बना देता है, और तुम्हें ज्यादा-से-ज्यादा ऐतिहासिक धरोहर का विशेषज्ञ ही कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि तुम हमेशा परमेश्वर द्वारा बीते समयों में किए गए कार्य के अवशेषों पर विश्वास करते हो, केवल पूर्व में मनुष्य के बीच कार्य करते समय छोड़ी गई परमेश्वर की परछाई में विश्वास करते हो, और केवल पहले के समयों में परमेश्वर द्वारा अपने अनुयायियों को दिए गए मार्ग में विश्वास करते हो। तुम परमेश्वर के आज के कार्य के मार्गदर्शन में विश्वास नहीं करते हो, परमेश्वर के आज के महिमामयी मुखमंडल में विश्वास नहीं करते हो, और परमेश्वर द्वारा आज के समय में व्यक्त किए गए सत्य के मार्ग में विश्वास नहीं करते हो। और इसलिए तुम निर्विवाद रूप से एक दिवास्वप्नदर्शी हो जो वास्तविकता से कोसों दूर है। यदि तुम अब भी उन वचनों से चिपके हुए हो जो मनुष्य को जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो तुम एक निर्जीव काष्ठ[क] के बेकार टुकड़े हो, क्योंकि तुम अत्यंत रूढ़िवादी, अत्यंत असभ्य, तर्क के प्रति अत्यंत विवेकशून्य हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। वे जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की गई है, हमेशा के लिए मुर्दे, शैतान के खिलौने, और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को ख़ारिज़ करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये बुद्धिमत्ता के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर की घृणा के भागी होंगे। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अंतिम दिनों के मसीह ने सभी सत्यों को व्यक्त किया है जो मानवता को शुद्ध करेंगे और बचाएँगे। ये वचन प्रचुर मात्रा में हैं, व्यापक हैं और इनमें वे सभी जीवनाधार निहित हैं जो परमेश्वर प्रदान करते हैं। वे हमारी आँखें खोलते हैं और हमारे ज्ञान को समृद्ध करते हैं, हमें यह देखने की इजाजत देते हैं कि मसीह ही सत्‍य है, मार्ग है, और जीवन है और मसीह शाश्‍वत जीवन का मार्ग है। ये वचन जो परमेश्वर ने राज्‍य के युग में व्यक्त किये व्‍यवस्‍था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान जो कुछ कहा गया उन सबसे परे जाते हैं। विशेष रूप से, जैसा कि "परमेश्‍वर का संपूर्ण ब्रह्माण्ड को वचन" में वचन देह में प्रकट होता है, में परमेश्‍वर स्‍वयं को समस्त मानवता के लिए पहली बार ज्ञात करवाते हैं। यह भी पहली बार है कि मानवजाति, सभी मनुष्यों को कहे गये सृष्टिकर्ता के कथनों को सुनती है। इसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को आश्चर्यचकित करके मनुष्यों की आँखें खोल दी। यह अंतिम दिनों में महान श्वेत सिंहासन के समक्ष न्याय का काम है। राज्य का युग वह युग है जिसमें परमेश्वर न्याय का कार्य करते हैं, और वह युग है जहाँ परमेश्वर का धर्मी स्‍वभाव समस्त मानव जाति के लिए अभिव्यक्त होता है। इसलिए, राज्य के युग में, परमेश्वर मनुष्य का न्याय करते हुए, उसे शुद्ध और सिद्ध करते हुए अपना वचन व्यक्त करते हैं। वे सभी प्रकार की आपदाएँ भेजेंगे, अच्‍छों को पुरस्कृत करेंगे और बुरों को दंड देंगे। वे परमेश्वर की धार्मिकता, प्रताप और क्रोध को मानव जाति को प्रकट करते हैं। वे सभी सत्यों जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्‍य को शुद्ध करने, बचाने और सिद्ध करने के लिये व्‍यक्‍त करते हैं शाश्‍वत जीवन के वे मार्ग हैं जिन्हें परमेश्वर अंतिम दिनों में मनुष्य को प्रदान करते हैं। ये सत्य जीवन की नदी का जल है जो सिंहासन से बहता है। इसलिए, हमारे परमेश्वर पर विश्वास में अगर हम शाश्‍वत जीवन का मार्ग हासिल करना चाहते हैं, और स्वर्गारोहण प्राप्त करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं, तो हमें अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मसीह के न्याय के कार्य को स्वीकार अवश्य करना चाहिए, और साथ ही उनके वचनों के न्‍याय और ताड़ना को भी स्वीकार अवश्य करना चाहिए। केवल इसी तरह से हम पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल कर सकते हैं, सत्‍य को समझ और हासिल कर सकते हैं, शुद्धि प्राप्त कर सकते हैं, और बचाए जा सकते हैं। केवल जो लोग अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्‍याय और ताड़ना से गुज़रते हैं, वे ही परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के हकदार हैं। यह एक परम तथ्य है! यदि हम अपने धार्मिक मतों का अनुसरण करते रहें, तो अंत में हमें स्वयं ही नुकसान सहना होगा। बुद्धिमान कुँवारियाँ केवल सत्य की खोज और परमेश्‍वर के वचनों को सुनने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, लेकिन मूर्ख कुँवारियाँ केवल बाइबल के अक्षरों और अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं का पालन करती हैं, और सत्य की तलाश नहीं करती हैं या परमेश्‍वर की वाणी को नहीं सुनती हैं। फिर एक दिन, वे अचानक विपत्ति में पड़ जाएँगी, वे विलाप करेंगी और दाँत पीसेंगी। और तब पश्चाताप भी बेकार होगा। इसलिए, वे सभी जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते हैं, वे विपत्ति में पड़ेंगे और दंडित किए जाएँगे। यही है वह जिसका परमेश्वर ने आदेश दिया है और कोई भी इसे बदल नहीं सकता है। विशेष रूप से वे जो अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की बेतहाशा निंदा करते हैं वे पहले से ही परमेश्वर के द्वारा प्रकट कर दिये गए हैं कि वे अंतिम दिनों के मसीह-विरोधी हैं—वे लोग शाश्‍वत दंड भुगतेंगे और उन्‍हें परमेश्‍वर से मिलने का अब और अवसर नहीं मिलेगा। यह स्पष्ट है कि अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य, लोगों के परिणामों का निर्धारण करने और युग का समापन करने के लिए, मनुष्य को प्रकारों के अनुसार वर्गीकृत करना है। आज हम अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, इसमें हमने वास्तव में उनका अनुग्रह और उनकी दया प्राप्त की है। यह परमेश्‍वर के द्वारा परम उत्थान है! हम सभी को सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्‍यवाद देना चाहिए!

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

फुटनोट :

क. निर्जीव काष्ठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"सहायता से परे"।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

पिछले कुछ सालों में हमने हमारे कलीसीया में बढ़ती हुई वीरानी को महसूस किया है। हमने अपने शुरुआती विश्वास और प्यार को खो दिया है, हम कमज़ोर और ज्‍़यादा नकारात्मक बन गए हैं। यहां तक कि कभी-कभी हम उपदेशक भी खोया-खोया महसूस करते हैं, और नहीं जानते कि किस बारे में बात करनी है। हमें लगता है कि हमने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। हमने पवित्र आत्मा के कार्य वाली किसी कलीसिया के लिए भी हर जगह खोज की। लेकिन जिस भी कलीसिया को हमने देखा, वह हमारी कलीसिया की तरह ही वीरान है। इतनी सारी कलीसियाएं भूखी और वीरान क्यों हैं?

उत्तर: आपका सवाल महत्वपूर्ण है। हम सभी जानते हैं कि हम अंत के दिनों की आखरी अवस्‍था में रहते हैं। प्रभु यीशु ने एक बार भविष्यवाणी की थी:...

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें